रविवार, 14 फ़रवरी 2010

चिट्ठाकार चर्चा में आज "मुक्ति" से मुलाकात!

                                 अराधना चतुर्वेदी "मुक्ति "

आईये आपको आज "मुक्ति" से मिलवाते हैं. आप उनसे अब परिचित हो चुके हैं मगर उनकी तारीफ़ और तआरुफ़ करने /कराने का एक मौका हम भी चाहते हैं -वे शख्सियत ही ऐसी हैं-स्वाध्यायी ,सजग पाठक ,गंभीर ब्लॉगर , संस्कृत साहित्य की विदुषी और भी बहुत बहुत कुछ .वे ब्लॉग जगत में प्रत्यक्षतः बहुत पहले से तो नहीं हैं मगर उनका यहाँ अदृश्य आविर्भाव काफी पहले से लगता है .मैं तब गौरवान्वित हुआ था जब अभी पिछले दिनों उन्होंने मुझे याद दिलाया कि वे पहले से ही मेरे ब्लागों की पाठिका रही हैं -किंचित हतप्रभ और संकोच से मैंने इस तथ्य   का पुनरीक्षण किया तो पाया कि वे सही कह रही  हैं .एक विदुषी पाठिका -अनुसरणकर्ता,  वह भी ब्लॉग जगत में -मेरा मन  सहज ही उनके प्रति एक कृतज्ञता भाव से भर उठा .बिना छल क्षद्म की बौद्धिकता को सम्मान देना तो जैसे खुद को ही सम्मानित होने की अनुभूति  करना है .और यह सुअवसर मुहे सहज ही मिल गया था अब .

'मुक्ति ' अर्थात आराधना(अनुराधा नहीं )चतुर्वेदी अर्थात गुड्डू (माँ का दिया नाम ) .संस्कृत साहित्य की अध्येता -  जे.एन.यू. में शोधरत    ( I.C.S.S.R  की फ़ेलो )....ब्लॉग जगत में नारीवादी -बहस ,फेमेनिस्ट पोएम और आराधना ब्लागों की नियमित लेखिका .मगर उससे बढ़कर एक सजग पाठक -कहीं भी जो उनके मन  का हो और नारी की अस्मिता को ,पहचान को उभारता हो .वे  एक मुखर नारीवादी हैं -मगर दुराग्रही नहीं .अपने आत्मकथ्य में वे कहती हैं -"कुछ ख़ास नहीं,बस नारी होने के नाते जो झेला और महसूस किया ,उसे शब्दों में ढालने का प्रयास कर रही हूँ.चाह है, दुनिया औरतों के लिए बेहतर और सुरक्षित बने " मगर मैंने पाया है कि वे किसी प्रायोजित या कुंठित नारी स्वातन्त्र्य अभियान की प्रवक्ता नहीं हैं -नारी स्वातन्त्र्य के उनके अपने मायने हैं जो बार बार उनकी सहज सी लगती कविताओं और आलेखों में अभिव्यक्त होता रहता है .वे किसी भटके हुए और गुमराह नारी आन्दोलन की सदारत नहीं कर रही हैं बल्कि अपने मानवीय रिश्तों और बुनियाद की समझ से समस्यायों का निराकरण करने की चाह रखती हैं -  सिर्फ हंगामा खड़ा करना ही मंतव्य नहीं है मुक्ति का .

संस्कृत साहित्य की अध्येता होकर भी वे परम्परा वादी नहीं है -संस्कृति के श्रेष्ठ मूल्यों के प्रत्ति उनकी निष्ठां असंग्दिग्ध है मगर पोंगा पंथ को लेश मात्र भी प्रश्रय नहीं है वहां -कभी कभी तो मुझे लगता है संस्कृत साहित्य का गहन अवगाहन मनुष्य को तमाम अनुचित आग्रहों,व्यामोहो,पूर्वाग्रहों से विमुक्त करता है -और यह उक्ति शायद सबसे सटीक संस्कृत साहित्य के अध्ययन पर ही चरितार्थ होती है -सा  विद्या या  विमुक्तये! इसका एक अनुभव मैंने अभी ताजा ताजा ही किया जब मेरी इस पोस्ट पर जहां पुरुषों का ही वर्चस्व बना रहा -मुक्ति आयीं, बेहिचक  अपने विचार रखें और थोडा चुहल भी किया .कोई ग्रन्थि नहीं कोई पूर्वाग्रह नहीं -पूरी साफगोई और स्पष्टता -केवल और केवल  इसलिए कि उनके अकादमीय आग्रह और उनके व्यक्तित्व में कोई द्वंद्व, कोई क्लैव्यता नहीं है -वे विमुक्त हो चली है तमाम अनावश्यक प्रतिरोधों ,मनोग्रंथियों  से ....

ऐसे व्यक्तित्व हिन्दी ब्लागजगत के जीवंत धरोहर हैं - उनसे यह भी आशा है कि वे जितना भी संभव है यहाँ समय दें और इस जगत को अपने अवदानों से निरंतर समृद्ध  करें -यद्यपि उनके सामने उनका कैरियर है और निश्चित ही उनकी प्राथमिकता भी वही होना चाहिए मगर मेरी इच्छा है कि वे यहाँ भी अपनी प्रशस्त उपस्थिति का अहसाह निरंतर कराती रहें .मित्रों, एक संस्कृत की विदुषी के बारें में लिखते हुए मेरी  भाषाई अत्यल्पज्ञता  बार बार आगाह सी कर रही है  और सायास ऐसे शब्द भी यहाँ उत्कीर्ण हो रहे है  जो आप में से बहुतों को सच ही बनावटी से लग रहे होंगे मगर मैं करुँ भी तो क्या -संस्कृत के प्रति मेरी शायद  जन्मजात सी रागात्मकता ऐसा किये हुए है मुझे और कदाचित असहज भी   .काश मैं संस्कृत का छात्र हुआ होता तो  यह जीवन धन्य हो गया होता .मैं अपनी संस्कृत के प्रति इस चाह को मुक्ति में ढूंढता हूँ!


मित्रों ,आपने मेरी दृष्टि से मुक्ति को देखा और अब आह्वान है कि उन्हें अपनी नजरों से भी देखिये  -मुझे पूरा  विश्वास है कि वे आपको भी प्रभावित किये बिना नहीं रहेगीं .
पुनश्च: चिट्ठाकार चर्चा में मुख्यतः चिट्ठाकार के व्यक्तित्व पर ही चिट्ठाकार -चर्चाकार का फोकस रहता आया है किन्तु उड़न जी के एक कमेन्ट के संदर्भ में मुक्ति विरचित  वात्सल्य बोध परिपूरित यह और यह  पोस्ट पढना चाहें!

37 टिप्‍पणियां:

  1. आप का दिया परिचय पढ़ लिया. अब सीधे उनकी लेखनी को भी देखेंगे.

    सस्नेह -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
    मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
    लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??

    http://www.Sarathi.info

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  2. हाँ मैंने उन्हें पढ़ा है उनके अन्दर स्त्रियों द्वारा झेली गई विसंगतियों के विरुद्ध आक्रोश भले ही हो पर बेहतर बात ये है कि वे नारी मुक्ति के ध्वजवाहक होने के भ्रम में नहीं जीतीं ! संस्कृत की अध्येता हैं सो प्रणम्य हैं ! वे स्त्रियों के लिए बेहतर और सुरक्षित दुनिया की आकांक्षी हैं सो हम भी ! उनके व्यक्तित्व से परिचय निःसंदेह आपके कुछ अच्छे कार्यों में से एक है !

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  3. ohh Hi Mukti.. :)

    aur thanks Arvind ji, mukti ji se parichay karwane ke liye..abhi hi inko padhte hain..

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  4. आराधना जी से यह मुलाक़ात बहुत अच्छी लगी..... मैं खुद उनके लेखों का बहुत बड़ा फैन हूँ.... जो क्वालिटी उनके पोस्ट की होती है.... वो काबिले तारीफ़ है.... उनके लेख दिम्माग पर एक छाप छोड़ जाते हैं.....

    आराधना जी के लेखनी को नमन....


    आपको बहुत बहुत धन्यवाद....

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  5. मुक्ति जी को पढ़ा है ..क्या कहूँ .....आप ने तो इतने सुंदर शब्दों में अपनी बात कह दी.
    **उनसे परिचय की अभिलाषा थी.
    आप का आभार.
    ***मैं खुद उनसे बहुत प्रभावित हूँ,बहुत अच्छी लगती हैं,अपनी अपनी सी!***

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  6. चलो अच्छा है एक और के बारे में भी कुछ जाना.

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  7. हैलो टेस्टिंग
    हैलो.. अ ब स द,
    हैलो मॉडरेशन टेस्टिंग

    परिचय पाकर निहाल हुआ, बहुत कम रचनायें ही पढ़ी हैं
    पर ब्लॉगर पर साटी गई यह फोटू बहुत ही पुरानी है !

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  8. अरविन्द जी,
    आपने मेरे बारे में इतनी बातें लिख दीं. इसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद!! मैं तो अपने पिताजी की एक बात याद रखती हूँ- "चरैवेति...चरैवेति..." और चलती जा रही हूँ.

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  9. @डा० अमर कुमार
    ये फोटोग्राफ सिर्फ़ चार महीने पुरानी है. आपको ब्लैक एंड व्हाइट होने के कारण पुरानी लग रही है.

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  10. अराधना जी के बारे में जानकर अच्छा लगा. हम तो जबसे वो पप्पी उठाकर लाईं, उनके नियमित पाठक हो गये हैं. :)

    बहुत आभार इस परिचय का.

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  11. आपने हमें भी कुछ कहने, कुछ अभिव्यक्त करने का मौका दे दिया है इस प्रविष्टि से ।

    मुक्ति की नारीवादी छवि (ब्लॉग-शीर्षकों नारीवादी बहस और फेमिनिस्ट पोएम से सहज ही ज्ञापित) यहाँ आश्वस्त करती है तो केवल इसलिये कि मुक्ति नारों की अर्थहीन गूँज को समझती हैं और उन्हें टटोलने का प्रयास भी करती हैं, लेकिन ठहर नहीं जातीं यहीं, उस अर्थहीनता को किसी शाश्वत सन्दर्भ से जोड़ने का प्रयास भी करती हैं । वह अन्तर्निहित वास्तविकताओं की ढूँढ़ती हैं और उसे मानव-हृदय के बीच पहुँचाकर प्रतिष्ठित कर देती हैं ।

    संस्कृत का अध्ययन, सहज-सजग चिन्तन, सुविचारित अभिव्यक्ति मुक्ति को अपनी जड़ों से जोड़े रखती है, उन्हें उसमें जीने देती है, जो वह हैं । हर अगले कदम पर आधुनिक कहे जाने का प्रलोभन नहीं है उनमें । कारण बस यही है कि इस व्यापक अर्थहीनता के समय में भी कृपणता नहीं है, हृदय का संकोच नहीं है उनमें ।

    कितना सहज है कि आपने वात्सल्य-बोध पूरित प्रविष्टियों का सन्दर्भ दिया । मुझे नारीवादी बहस और फेमिनिस्ट पोएम के कुछ लिंक भी यहाँ देखने का मन हो रहा है । सर्वांगीण मुक्ति-चिन्तन तभी समझा जा सकता है ।

    ज्यादा लिखूँगा तो फोकस होने का डर है । पर ’मुक्ति’ का सन्दर्भ लेकर कुछ भी कहा जा सकता है ।

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  12. आराधना जी से यह मुलाकात अच्छी रही। यह कोई जरूरी नहीं कि संस्कृत अध्येता परंपरावादी हो।

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  13. सम्भवत: इनसे पहला सम्पर्क 'गुड्डू भार्गव' जनित उत्सुकता के कारण ही हुआ था। सच कहूँ कि लेखन/टिप्पणी की सहजता, संक्षिप्ति और to the point कथ्य इनके आभासी जगत के व्यक्तित्त्व(वास्तव में तो मिले ही नहीं) को एक ऐसी गरिमा देता है जो अभिभूत करती है। शुरू में तो मैं आतंकित ही हुआ था - लोगों में सहजता अब बहुत कम जो दिखती है।
    मुक्ति जी को बहुत शुभकामनाएँ। .... एक प्रसंग याद आ रहा है। दिल्ली AIIMS में पूज्य के ऑपरेशन के दौरान एक 'फेमिनिस्ट' महिला मिली थीं। एक ग्रामीण की निहायत ही सहज सी बात पर उन्हों ने ऐसा हंगामा किया था कि मैं पूर्वग्रही हो गया था। मुक्ति, अदा, रचना त्रिपाठी....का लिखा/टिप्पणियाँ पढ़ने के बाद पूर्वग्रह से मुक्ति मिली। ..बहुत कुछ समझने लगा हूँ।
    संस्कृत के लिए मेरे मन में प्रेमसिक्त सम्मान है। यह जान कर कि ब्लॉगर पर मुक्ति और वर्ड प्रेस पर भी इक्के दुक्के संस्कृत के ज्ञाता हैं, संतोष होता है।

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  14. आप के ब्लोग पर या फ़िर कहे पुरे ब्लोग जगत
    में नया हूं और आते ही एक अच्छे ब्लोगर के बारे में
    जानकारी पाना किसी नये ब्लोगर के लिये बहुत अच्छा
    होगा।धन्यवाद।

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  15. @महफूज भाई ,
    आपसे कुछ छूट गया है .आप शायद यह कहना चाहते थे -
    उनके लेख दिम्माग पर एक छाप और दिल पर कई सांप छोड़ जाते हैं.....
    (मजाक हा हा )

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  16. जितना सुंदर परिचय है उतनी ही सक्षम और सशक्त ब्लोग्गर हैं मुक्ति....पढते तो रहे हैं पहले भी अब आपके माध्यम से जानकर और भी अच्छा लगा
    अजय कुमार झा

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  17. परिचय का धन्यवाद. मुक्ति की टिप्पणियाँ पढ़कर आपके ब्लॉग पर ही पढी थीं - संतुलित और विचारणीय थीं.

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  18. अच्छा लगा मुक्ति का परिचय यहाँ पाकर..आपको धन्यवाद और आराधना को शुभकामनाएं.

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  19. मुक्ति जी के बारे में जानकार अच्छा लगा, बहुत शुभकामनाएं.

    राम्रराम

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  20. अच्छा लगा मुक्ति का परिचय जानकार...

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  21. 'मुक्ति' जी पर आपकी प्रविष्टि अच्छी लगी !
    आभार !

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  22. आराधना दीदी को मैं हमेशा से पढ़ता आया हूँ , वे लाजवाब तो लिखती ही हैं साथ ही तर्क संगत भी होता है । आपका आभार

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  23. मुक्ति जी के लेखन की हमेशा से कायल रही हूँ....आपके माध्यम से उन्हें थोड़ा और करीब से जानना बहुत अच्छा लगा...

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  24. मुक्ति जी के बारे में जानकार अच्छा लगा, बहुत शुभकामनाएं.

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  25. अच्छा परिचय कराया है आपने , मुक्ति जी का।
    अब पढने का भी प्रयास करेंगे।

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  26. Muktiji se parichay bahut hi accha raha ...aapko bahut bahut aabhar aur muktiji ko shubhkaamnae!!
    Saadar
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  27. आपके जरिये मुक्ति जी से मिलना बहुत अच्छा लगा ...!!

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  28. मुक्ति। नारीवादी।
    धन्यवाद। मुझे लगता है कि मैं नारीवादी लेखन बहुत समझ नहीं पाता।

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  29. Dearest Mishraji,

    Thanks for shedding light on ARADHANA.I appreciate your effort and I must say the article is definitely worth reading.

    However,she has miles to go and that's why I feel a little bit of inclination towards reading the ancient scriptures in light of philosphical understanding is going to add a new dimension in her persona.

    She has some terrible shortcomings.I am not going to point it out.Reason ? She has the power to acknowledge and remove it all on her own .The only thing is that she develops the guts to identify them as it is and take proper measures to get above them.

    There are some persons who don't need degrees from a reputed institution as a testimony to the excellence residing within them.Had she been altogether devoid of such degrees-the so-called mark of excellence-she would have still(at least in my eyes)been the most ideal representative of knowledge and refined skills.

    At this point,I must say that real gems have more often than not never been by-product of institutions !! However,that in no way dimishes the academic excellence of Aradhana:-))

    I hope Aradhana-and not Anuradha :-))- remains on right track,bringing light in the lives of people trapped in complexities.

    I came to read this wonnderful piece.Ending my observations with message highlighted in this piece.


    Yours sincerely,
    Arvind K.Pandey

    http://indowaves.instablogs.com/

    ***********************************
    "The longer I live, the more I realize the impact of attitude on life. Attitude to me, is more important than facts. It is more important than past, than education, than money, than circumstances, than failures, than successes, than what other people think or say or do. It is more important than appearance, gifted ability, or skill. It will make or break a company, a church, a home.

    The remarkable thing is we have a choice everyday regarding the attitude we will embrace from that day. We cannot change our past, we cannot change the fact that people will act in certain way. We cannot change the inevitable. The only thing that we can do is play on the one string that we have and this string is, Attitude. I am convinced that life is ten percent what happens to me and ninety percent how I react to it. And so it is with you....We are in charge of our Attitudes."

    -- Charles Swindoll

    ***************************

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  30. @Gyandutt Pandey

    Re: मुझे लगता है कि मैं नारीवादी लेखन बहुत समझ नहीं पाता।

    Thank God !! There is someone else also just like me !! I too have a dull intellect in matters pertaining to the ABC of feminism :-))

    My personal opinion is that an Indian woman is feminism in action (if at all one is hell bent on feeling the presence of feminism in Indian landscape) !!

    I don't think that Indian woman need to proclaim it loud !! The great Indian women own the attributes that define feminism in a natural way.What's the need to lay so much emphasis on it and decalre it loud ?

    Pandeyji,a very imporant book on ills of feminism has come in market.You love to buy books.So if you come across it in Indian market,then please do inform me :-))

    Exposing Feminism: How Moral Concepts of Feminism Hurt America (Paperback)
    ~ Howard Sieberman


    http://www.amazon.com/dp/0828320489?tag=followme0eb-20&camp=14573&creative=327641&linkCode=as1&creativeASIN=0828320489&adid=1WZYNZ49PZZ7QZMZJEWW&


    Yours sincerely,
    Arvind K.Pandey

    http://indowaves.instablogs.com/

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  31. Thanks Arvind ,for this marvellous piece of writing and sharing your views about Mukti.

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  32. Dearest Mishraji,

    Thanks Mishraji for praising my writing :-)).Well,the only reason that makes my writing impressive is that likes of Arvind Mishras and Aradhanas have always crossed my path at regular intervals in my course of writing !! So one is bound to feel the impact of essence of information I got from such people :-))

    Anyway,the reason why I appeared again is that I missed to say something on the suffix used by Aradhana "MUKTI " ..I don't know what made her add it after her name and I am least interested in harassing her by asking why that's the case the way Lord Shiva asked Adi Shankracaharya what he considers himself soul or body in context with his MUKTI(liberation) theory ?

    The word "Mukti" makes me smile and the reason why I appeared is to post this very beautiful sanskrit poem known as "Atma Shatkam (The song of soul)..Aradhana's "MUKTI" always makes me remember the last verse of this poem..

    "I am free from changes, and lack all the qualities and form.I envelope all forms from all sides and am beyond the sense-organs.I am always in the state of equality — there is no liberation (Mukti) or captivity (Bandha). I am the eternal happiness or bliss state, I am Shiv, I am Shiv.||6||"

    Have a look at this Sanskrit poem Mishraji.Though I am not happy with Sanskrit version available on net but I have tried my best to provide you the perfect sanskrit version.Forgive me for blunder in its Sanskrit version.I am ashamed to say that I love Sanskrit but I am an unletterd village pumpkin in this regard :-))


    ******************************

    ATMA SHATKAM (The Song Of The Soul)

    manobuddhyaha.nkaarachittaani naahaM
    na cha shrotrajivhe na cha ghraaNanetre .
    na cha vyomabhuumiH na tejo na vaayuH
    chidaana.ndaruupaH shivo.ahaM shivo.aham.h .. 1..

    na cha praaNasa.nGYo na vai pa.nchavaayuH
    na vaa saptadhaaturna vaa pa.nchakoshaH .
    na vaak.h paaNipaadau na chopasthapaayuu
    chidaana.ndaruupaH shivo.ahaM shivo.aham.h .. 2..

    na me dveshharaagau na me lobhamohau
    mado naiva me naiva maatsaryabhaavaH .
    na dharmo na chaartho na kaamo na mokshaH
    chidaana.ndaruupaH shivo.ahaM shivo.aham.h .. 3..

    na puNyaM na paapaM na saukhyaM na duHkhaM
    na ma.ntro na tiirthaM na vedaa na yaGYaaH .
    ahaM bhojanaM naiva bhojyaM na bhoktaa
    chidaana.ndaruupaH shivo.ahaM shivo.aham.h .. 4..

    na me mR^ityusha.nkaa na me jaatibhedaH
    pitaa naiva me naiva maataa na janma .
    na ba.ndhurna mitraM gururnaiva shishhyaH
    chidaana.ndaruupaH shivo.ahaM shivo.aham.h .. 5..

    ahaM nirvikalpo niraakaararuupo
    vibhu{vyaa}.rpya sarvatra sarvendriyaaNaam.h .
    sadaa me samatvaM na muktirna bandhaH
    chidaana.ndaruupaH shivo.ahaM shivo.aham.h .. 6..



    http://www.advaita-vedanta.org/archives/advaita-l/1998-October/031166.html

    For it's SANSKRIT version.U can also check this site:

    http://www.stutimandal.com/gif_adi/nirvana_shatakam.htm

    (CONTINUED)

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  33. ************************************
    Now its English Version:

    I am neither ego nor reason, I am neither mind nor thought,
    I cannot be heard nor cast into words, nor by smell nor sight ever caught:
    In light and wind I am not found, nor yet in earth and sky -
    Consciousness and joy incarnate, Bliss of the Blissful am I.

    I have no name, I have no life, I breathe no vital air,
    No elements have moulded me, no bodily sheath is my lair:
    I have no speech, no hands and feet, nor means of evolution -
    Consciousness and joy am I, and Bliss in dissolution.

    I cast aside hatred and passion, I conquered delusion and greed;
    No touch of pride caressed me, so envy never did breed:
    Beyond all faiths, past reach of wealth, past freedom, past desire,
    Consciousness and joy am I, and Bliss is my attire.

    Virtue and vice, or pleasure and pain are not my heritage,
    Nor sacred texts, nor offerings, nor prayer, nor pilgrimage:
    I am neither food, nor eating, nor yet the eater am I -
    Consciousness and joy incarnate, Bliss of the Blissful am I.

    I have no misgiving of death, no chasms of race divide me,
    No parent ever called me child, no bond of birth ever tied me:
    I am neither disciple nor master, I have no kin, no friend -
    Consciousness and joy am I, and merging in Bliss is my end.

    Neither knowable, knowledge, nor knower am I, formless is my form,
    I dwell within the senses but they are not my home:
    Ever serenely balanced, I am neither free nor bound -
    Consciousness and joy am I, and Bliss is where I'm found.


    http://en.wikipedia.org/wiki/Atma_Shatakam#Sanskrit

    ***********************************


    Yours sincerely,
    Arvind K.Pandey

    http://indowaves.instablogs.com/

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  34. "संस्कृत साहित्य का गहन अवगाहन मनुष्य को तमाम अनुचित आग्रहों,व्यामोहो,पूर्वाग्रहों से विमुक्त करता है -और यह उक्ति शायद सबसे सटीक संस्कृत साहित्य के अध्ययन पर ही चरितार्थ होती है" आपके इस विचार से मैं से कामा-फुलस्टाप सहित सहमत हूं.
    अतंर्जाल पर आज पहली बार ज्ञात हुआ कि ब्लागरों का भी परिचय आपके द्वारा कराया जा रहा है ,बहुत अच्छा लगा.अनुराधा जी का लेख पढने के बाद उनके बारे में जानने की उत्कंठा आपने पूरी कर दी.आभार स्वीकारें.

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