अभी अभी रा.वन देखकर लौटा हूँ और सिफारिश करता हूँ बच्चों को जरुर दिखाईये ...यह एक विज्ञान फंतासी है और रोबोट (एन्थिरान) के बाद लगभग उसी स्टाईल की फिल्म है ...भारत में विज्ञान कथा फिल्मों,साहित्य के साथ एक मजाक यह बना हुआ है कि यहाँ इसे बच्चों का साहित्य मान लिया जाता है और कई फिल्म निर्माता पुस्तक प्रकाशक भी इस विधा के साथ अन्याय करते हुए इसे बच्चों के लिए बनाते और प्रचारित करते हैं ....जबकि हालीवुड में बनने वाली साईंस फिक्शन फ़िल्में अनिवार्यतः बच्चों के लिए ही नहीं होती बल्कि कामन आडियेंस /सभी के लिए होती है ..अब अवतार क्या बच्चों के लिए ही थी? मगर ताज्जुब है अपने फिल्म निर्माताओं /निर्देशकों को कि वे अच्छी खासी थीम वाली साई फाई फिल्मों को भी बच्चा संस्करण बना देते हैं जैसा कि रा. वन को बना दिया गया है .और मैं लहरें वाली पूजा उपाध्याय के इस विचार से अब सहमत हूँ कि यह फिल्म बच्चों के लिए है ..यह सचमुच ही बच्चों के लिए काट छाट दी गयी है ....जबकि जब तक इसे नहीं देखा था इसी खुशफहमी में था कि ऐसी कोई चिपकी इस पर नहीं लगी होगी.....मगर एक लिहाज से इन फिल्मों का बच्चों के लिए होना भी ठीक है क्योंकि यही पीढी इस तरह की अभिरुचि के लिए संस्कारित हो और भारत में भी कभी ऐसी मौलिक फिल्मों की क्रेज बढे ....
फिल्म एक शाश्वत भारतीय सोच "बुराई पर अच्छाई की जीत' का टेक लेती है और यद्यपि रा .वन नाम एक कम्प्यूटर प्रोग्राम का संक्षिप्ताक्षर है यह हमारे मिथकीय रावण की प्रतीति कराता है ..फिल्म का रा.वन दरअसल रावण सरीखा एक महा खलनायक है जिसे मारना आसान नहीं है ..फिल्म की एक रोचक संकल्पना यह भी है कि कम्प्यूटर गेम अनिवार्य रूप से नायक (सुपर हीरो) प्रधान ही क्यों हों? खलनायक प्रधान क्यों नहीं? कम्प्यूटर गेम एक्सपर्ट का बेटा खलनायकों और उनकी ढिशुंग ढिशुंग का दीवाना है और अपने पापा से एक खलनायक प्रधान गेम के लिए मनुहार करता रहता है ....और पुत्र प्रेम में पड़कर पिता एक ऐसा ही गेम बड़ी तैयारी के साथ बना देता है मगर जो पात्रों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता लिए होता है ....बिना बिचारे जो करे सो पीछे पछताय वाली कहावत तब चरितार्थ हो जाती है जब गेम का खलनायक कृत्रिम बुद्धि के सहारे खेल की आभासी दुनिया से वास्तविक दुनिया में आ धमकता है ....और इस खेल को खेलते हुए पहले ही स्तर पर इसे बीच में छोड़ कर चले गए कम्प्यूटर गेम विशेषज्ञ के बेटे को प्रतीक को (खेल में ल्यूसिफर ) को खोजता फिरता है -तब मुझे रावण की याद आती रही जो अपने प्रतिद्वंद्वियों के पास जाकर ललकार ललकार के कहता है -युद्धं देहि युद्धं देहि .....ऐसा ही रा. वन है जो अधूरा खेल छोड़कर चले गए खिलाड़ी को ललकारते हुए आभासी दुनिया से वास्तविक दुनिया में आ धमकता है ....और हश्र बहुत बुरा होता है..और सबसे पहले अपने सर्जक कम्प्यूटर गेम विशेषज्ञ को ही मार डालता है ..अरे अरे यह तो पश्चिमी सोच है ..यहाँ तो भस्मासुर शंकर को कहाँ मार पाया था? ....हाँ मेरी शेली के फ्रैन्केंनस्टीन में जरुर खेल खेल में वजूद में आ गए दानव ने अपने ही सर्जक को सपरिवार मरने को अभिशप्त कर दिया था ..यहाँ भी कुछ ऐसा होता है और अपने सर्जक को निपटाने के बाद रा.वन उसके कम्प्यूटर खेल प्रेमी बेटे और माँ के पीछे लग जाता है और उनके वतन (भारत ) वापसी तक उनका पीछा करता है -वह तो उसके विनाश का एक और प्रति -खलनायक (नायक ) जी वन भी उसी कम्प्यूटर विशेषज्ञ द्वारा बनाया गया होता है जिसे उसका बेटा खोज निकालता है और अपने बुद्धिचातुर्य तथा जी वन के पावर के सहयोग से से अंततः रा. वन का विनाश कर करता है ..फिल्म हैपी एंडिंग लिए हैं ...
हाँ यह फिल्म उन लोगों को जरुर चूं चूं का मुरब्बा लगेगी जो हालीवुड फिल्मों को देखते आये हैं -कई फिल्मों से सीन चुराए गए हैं ..यहाँ तक कि एक मार धाड़ दृश्य में रोबोट के चिंटी खुद भी फ्रेंडली अपेयिरेंस में पधार गए हैं ....फिल्म में भारतीयता का पूरा टच देने की सोच से देशी त्योहारों -करवा चौथ और दशहरा के रोचक सीन हैं और कम्प्यूटर गेम वाले रावन और मिथकीय रावण को एक ही फ्रेम में फिट करने की दृश्य रोचकता भी है जिससे एक तरह के काल विपर्यय (एनाक्रोनिज्म ) का प्रभाव पैदा किया गया है जो साईंस फिक्शन में एक आम बात है ....यह फिल्म बच्चों को तो निश्चित ही पसंद आयेगी और केवल उन्हें बिलकुल नापसंद होगी जिन्हें विज्ञान कथाओं का ककहरा भी पता नहीं है ...हाँ , विज्ञानकथा फिल्मों के शौक़ीन इसे औसत दर्जे की साई फाई फिल्म मानेगें ....
एंथिरान (रोबोट ) में विशेष दृश्य प्रभावों को डालने वाले स्टेंन विंस्टन ने इस फिल्म में भी चमत्कारी दृश्य प्रभाव डाले हैं ...और मैंने तो थ्री डी वर्जन नहीं देखा मगर उसकी कल्पना कर सकता हूँ ...थ्री डी तो बहुत जबरदस्त होगी ....फिल्म अच्छी है ..बच्चों को और उनकी माँ को भी जरुर दिखाईये..आप बोनस में देखिएगा और बच्चों की किलकारी में अपने आनन्द की तलाश करियेगा!
Badhiya vivaran kiya hai aapne!
जवाब देंहटाएंक्यों भड़का रहे हो यार ...
जवाब देंहटाएंहमारे तो बच्चे देख आये हैं मां समेत । ( हालाँकि अब बच्चे नहीं रहे)।
जवाब देंहटाएंलेकिन टी वी पर रिपोर्ट देखकर अपना तो मूड नहीं किया देखने का ।
वैसे भी हमें शाहरुख़ खान की फ़िल्में ज्यादा पसंद नहीं आती, एक आध को छोड़कर ।
हम जैसे क्या करें जिन्हें पिक्चर में ३ घंटे काटना ही भारी पड़ता है ?
जवाब देंहटाएंमैडम और गुडिया को पिक्चर बहुत पसंद है ....
:-)
देख आये हैं और बच्चों को भी दिखा आये हैं।
जवाब देंहटाएंदिखाना का है सब देखि आए...। हम ही नहीं गये अभी तक। देखते हैं...देख पाते हैं कि नहीं।
जवाब देंहटाएं:) :)
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका रिव्यू पढ़ कर...मेरे घर में जितने भी बच्चे हैं, छोटे-बड़े, ननद-देवर, भाई-बहन सब देख चुके हैं फिल्म और सबको अच्छी भी लगी है.
पुनःश्च अगर आपने 'Real Steel' नहीं देखी है तो देखिये...अच्छी फिल्म है. कुछ ऐसे ही पिता-पुत्र के संबंधों और साइंस फिक्शन का मिलाजुला रूप है.
जवाब देंहटाएंक्या धाँसू समीक्षक हैं आप ?हमें तो पूरा सीन ही दिखा दिए हैं दिमाग की आँख से !आप वास्तव में एक सफल फिल्म-समीक्षक (व्यावसायिक) बन सकते हैं !
जवाब देंहटाएंअब जब इतना गुणगान कर दिए हैं तो देखना पड़ेगा वह भी ३-डी में !
सुंदर समीक्षा।
जवाब देंहटाएंसुंदर समीक्षा ...अब तो पूरी तरह मन बन गया है फिल्म देखने का ....
जवाब देंहटाएंअब तो समय निकालना ही पड़ेगा, 3D में देखने के लिये ।
जवाब देंहटाएंबच्चों के नजरिये से तो थोड़ी इंटरटेनर फिल्म है ये, और इसने ये भी स्पष्ट किया है कि भारत में विज्ञान फिल्में भी बौलीवुड स्टाइल में ही बनेंगीं. मगर ये फिल्में महज सुपर हीरो की उत्पत्ति की पृष्ठभूमि के रूप में ही सीमित रह गईं तो यह विज्ञान फिल्मों के विकास के लिए नुकसानदेह होगा.
जवाब देंहटाएंaap ka favourite topic science fiction par hai kya? maine nahi dekhei hai
जवाब देंहटाएं@हाँ,साईंस फिक्शन ही है प्रमेश जी !
जवाब देंहटाएंसुंदर समीक्षा की आपने लगता है बच्चों दिखाना पडेगा मूवी..जानकारी के लिए आभार ...
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर स्वागत है ...
सटीक आलोचना किया है आपने , पर झेलना.. सब्र का इन्तहान सा रहा..
जवाब देंहटाएंडॉ साहिब,समीक्षा आपने लिखी है फिल्म देखने के लिहाज़ से पर शुरू के आधा घंटा तो सर मेरा झंझंना गया था.. तेज शोर, तेज विसुअल्स
जवाब देंहटाएंसपरिवार देख आया हूँ
जवाब देंहटाएंअब लीजिए…आप बोल रहे हैं दिखा आइए और यहाँ अधिकांश लोग देख चुके हैं…वैसे अभी नहीं देखा…झूठ-मूठ विज्ञान के नाम पर भारतीत तिलिस्मी या अरबी तिलिस्मी कथा दिखा रहे हों तो बेकार ही लगेगी फिल्म…जैसे मैट्रिक्स को ही देखिए…कहानी भारत, माया, ईश्वर जैसे कचरा विषयों में घुस जाती है। अब लगता है कि ऐसी फिल्में भारतीय पौराणिक कथाओं का आधुनिक संस्करण हैं…फिर भी ठीक है…मौका मिला + मन हुआ = देखेंगे…
जवाब देंहटाएंध्यान रहे कि बच्चों को और उन्हीं की मां को ले जाएं, पडोस एक बच्चों की मां को ले जाना वर्जित है:)
जवाब देंहटाएंआदरणीय महोदय,
जवाब देंहटाएंमेरी बिटिया रानी ने तो दीपावली के पहले ही यह घोषित कर दिया था कि हमें दीवाली के अगले दिन यानी 27 अक्टूबर को रा.वन देखनी है सो हम तो हुकुम उसी दिन बजा आये थे।
मुझे तो यह फिल्म किसी हालीवुड फिल्म का बचकाना संस्करण सी लगी अलबत्ता बिटियारानी की टिप्पणी यह थी कि पापा आप भी रा.वन की तरह खाने की टेबल पर लैक्चर बहुत देते हो। और क्या उसके कम्प्यूटर में कोई ऐसा थ्री डी गेम नहीं डाला जा सकता जिसमें इसी तरह जीवन और रावन जैसे चरित्र बाहर निकल कर लड सकें।फिर हमने तो रा.वन गेम की सीडी उन्हे दिला दी है ।
शाम को हमारे घर लौटने तक उनकी कक्षा के दोस्तों का जमावडा रहता है।
एक समीक्षक के रूप में आपकी पंक्तियाँ पढने के बाद फिल्म के बारे में और कुछ कहने की गुंजाइश बाकी नहीं रहती।
आपकी पोस्ट सराहनीय है शुभकामनाऐं!!
आप इसे तकनीकी रूप से अच्छा कह सकते हैं , पर मनोरंजक नहीं है ।
जवाब देंहटाएंढूँढ़ता हूँ कुछ बच्चे, माँ तो फिर उनकी साथ आ ही जाएगी :-)
जवाब देंहटाएंपूर्वाग्रह ही समझ लीजै,
इस नक्काल की फिल्मे देखने को मन नहीं करता
.फिल्म में उसकी ली ,इसकी ली सबकी ली जैसे करकेटर है ,करीना के मुंह से बेहूदा गलिया जैसे डी के बोस.. बच्चे के मुंह से कंडोम शंडोम .कई दिअर्थी सीन ओर डाइलोग......वाकई बच्चो की फिल्म है ...ऐसी फिल्मो के लिए . राईट टू टिकट " की भी व्यवस्था होनी चाहिए ...ये भी लुभावने विज्ञापन दिखाकर मुनाफे कमाने की तरकीबे है.....
जवाब देंहटाएंरा.वन निहायत ही बेहूदा फिल्म है ...टर्मिनेटर की स्टोरी की भौंडी कोपी ....कुछ सीन स्पाइडर मेन से चुराए हुए है ...शाहरुख़ इसे बच्चो के लिए बनायीं गयी फिल्म कहते है ..पर फिल्म में कई अश्लील डाइलोग है ! कमर्शियल सिनेमा के उपरी मानक माने जाने वाले स्टार के पास न केवल मौलिकता की कमी है बल्कि अपनी फिल्वैसे जो लोग समझते है सिर्फ एक्शन सीन ओर कंप्यूटर के डिज़िटल कमाल से फिल्मे साइंस फिक्शन हो जाती है ....वे महान लोग है ..... होलीवुड की कार्टून फिल्मो का स्तर इससे कही बेहद ऊपर हैम में वे ओवर एक्टिग करते नजर आते है ...अगर ये फिल्म चल जाती है तो समझ जाइए आप पबिलीसिटी के दम पर भी कुछ भी बेच सकते है .....
कुछ ऐसे ही रिव्यू कई जगह पढ़े तो बच्चों को दिखा दी है पर खुद जाने की हिम्मत न जुटा पाए:)
जवाब देंहटाएंडॉ. अनुराग जी ,
जवाब देंहटाएंश्लीलता अश्लीलता देश काल के सापेक्ष होती है और हमारे दिमागों में होती है ...ब्रूसली की नक़ल में इनकी उनकी सबकी ली का क्रम है ..मैं भी कितना भोला हूँ कि फिल्म देखते समय आपने जो भाव अब इंगित किया है वह मैं मिस कर गया ...बच्चे भी अमूमन ऐसे ही भोले होते हैं .......कंडोम आज का कौन सा बच्चा नहीं जानता हाँ उसके असली और अन्य उपयोगों से अपरिचित हो सकता है .....मगर आपकी बात में दम है कई सीन फालतू है और उनके बिना भी फिल्म चल क्या पूरी दौड़ लगा सकती थी ...मगर जैसी देश की ज्यादातर जनता वैसे ही भारतीय फिल्म निर्माता निर्देशक.......
"जो लोग समझते है सिर्फ एक्शन सीन ओर कंप्यूटर के डिज़िटल कमाल से फिल्मे साइंस फिक्शन हो जाती है ....वे महान लोग है ..."आप का यह कहना बिलकुल दुरुस्त है ....मगर फिल्म में जबरदस्त विशेष प्रभावों के दीगर भी है जो इसे देखने लायक बनाती है ...आभासी दुनिया से कृत्रिम बुद्धि के सहारे गेम कैरेक्टर का बाहर आना :सीख यह कि हमें मशीनों को बुद्धिमान बनाए जाने की मुहिम में बड़ी सावधानी बरतनी होगी ....एक ऐसा परिवेश जो आज तो वजूद में नहीं है मगर आ सकता है आगे ..हम विज्ञानं कथाओं को आलोचना के पारंपरिक या समकालीन मानदंडों पर आकलित /विवेचित नहीं कर सकते ..ये समकालीन साहित्य नहीं बल्कि आने वाली दुनिया का साहित्य है ....
इस फिल्म को बच्चों के फ्रेम में फिट करना ही इसकी बड़ी कमजोरी कही जा सकती है ...
रिपोर्ट तो ख़ास अच्छी नहीं है इस फिल्म की ...
जवाब देंहटाएंहम तो यूँ भी कम ही देखते हैं ,समीक्षा पढ़ कर ही काम चल गया !
रोचक व परिपक्व समीक्षा,आभार ! कृपया पधारेँ। http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html
जवाब देंहटाएंइस फिल्म के रिव्यूज मे कहीं भी इसे 'अच्छी फिल्म' नहीं कहा गया है. वैसे भी हम हॉलीवुड की साइंस फिक्शन के दीवाने हैं, तो शायद ही रा-वन अच्छी लगे. सिर्फ़ आपकी सिफारिश पर देखने का मन बनाया है.
जवाब देंहटाएं.फिल्म अच्छी है ..बच्चों को और उनकी माँ को भी जरुर दिखाईये..आप बोनस में देखिएगा और बच्चों की किलकारी में अपने आनन्द की तलाश करियेगा!
जवाब देंहटाएंकुछ यहाँ भी है
I haven't seen it yet... your review says its worth a watch,.... Lets see when I m going to.
जवाब देंहटाएंNice read !!