कविता लय ताल यानि छंद बद्ध अर्थात तुकबंदी युक्त होनी चाहिए या फिर बिना तुकबंदी के, इस पर विद्वानों के बीच निहायत साहित्यिक /अकादमिक किस्म के गंभीर वाद विवाद होते रहते हैं -कोई कहता है जब कविता लय ताल बद्ध होती है तो वह प्रकृति के ही लय ताल से जुडती है और ऐसी उपलब्धि बहुत साधना के बाद हासिल होती है ....उनके लिए लयताल निबद्ध कविता ब्रह्म के नाद सौन्दर्य से तालमेल करती नज़र आती है और मन को निसर्ग से जोड़ने में सफल होती है ..वहीं छंद मुक्त कविता के समर्थक तुकबंदी की कविताओं में भावनाओं के उन्मुक्त बहाव को बाधित हुआ पाते हैं ..बहरहाल बहस जारी है और इसी की आड़ में मैं एक अतुकांत कविता आपको झेलने के लिए यहाँ पोस्ट कर देता हूँ .... :)
युगांतर की आस
फूलों की वादियाँ
बुलाती हैं मुझे बार बार
खिंचता उनके मोहपाश में
पहुंचता हूँ जब उनके पास
तो अचानक वे ओढ़ लेती हैं
बर्फानी चादरें,
फूलों की घाटी तब्दील
होती जाती है बर्फानी वादियों में
और मैं हतप्रभ बर्फ के ढेर को
अपनी उँगलियों से
कुरेदता हूँ इस चाह में कि
नीचे दबे उन मोहक फूलों का
दीदार हो सके
मगर नीचे तो एक
धधकता ज्वालामुखी सा
आकार लेता दीखता है
और मैं फिर डरता हुआ
हठात उँगलियों को खींचता
देता हूँ खुद को दिलासा
कि कभी तो हटेगीं
ये बर्फानी चादरें,
नीचे दबा ज्वालामुखी
कभी तो शांत होगा
बहारें कभी तो आयेगीं ..
और मैं ठहर जाता हूँ
एक युगांतर की आस लिए ...
अब यह पूछने की हिम्मत या बेहयाई कैसे करूँ कि कविता कैसी है?
बर्फ की चादर ओढ़ लेती हैं
जवाब देंहटाएंफूलों की वादियाँ
बर्फ हटाओ
तो जल जाती हैं उँगलियाँ
ज्वालामुखी की ताप से
स्तब्ध हो
ठहरा हुआ हूँ मैं
युगांतर की प्रतीक्षा में।
...वाह! इतने सुंदर भावों की तुकबंदी करने और सहजता से ग्राह्य बनाने में जुग बीत जाता। भाव फिर भी आ पाता या नहीं आता।
प्रवाह से भरी, प्यास बुझाती हुयी।
जवाब देंहटाएंवाह. आपकी कविता भी गद्य की ही तरह सुघड़.
जवाब देंहटाएंकविता में भाव,बहाव और रस का संगम है....न भी पूछते तो हम बताते ही !
जवाब देंहटाएंअतुकांत कविता में हाथ आजमाइए,काफ़ी स्कोप है !
कविता समय चक्र के तेज़ घूमते पहिए का चित्रण है। कविता की पंक्तियां बेहद सारगर्भित हैं।
जवाब देंहटाएंBtw, मैं खाने पीने वाली कविताएं जरा अच्छे से और जल्दी समझता हूँ लेकिन यह कविता भी अच्छी लगी, बहुत अच्छी।
जवाब देंहटाएंदेता हूँ दिल को दिलासा
जवाब देंहटाएंकि कभी तो हटेगीं
ये बर्फानी चादरें ,
नीचे दबा ज्वालामुखी
कभी तो शांत होगा और
बहारें कभी तो आयेगीं ..
और मैं ठहर जाता हूँ
उसी युगांतर की प्रतीक्षा में ....
Bahut achhee kavita!
बहुत प्रवाहमयी और भावपूर्ण लगी आपकी कविता....सहज ,सरल.. मन के भाव
जवाब देंहटाएंअतुकांत कविता में मनोभावों को दर्शाना आसान हो जाता है ।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत खूबसूरती से कोमल भावनाओं को प्रस्तुत किया है ।
बधाई ।
कविता तो शानदार है ही.. प्रश्न मौडेस्टी से सराबोर है!!
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता । हम सब युगांतर की प्रतीक्षा में ही तो हैं ।
जवाब देंहटाएंआप पूछें न पूछें, हम तो कहेंगे जो है सो- अच्छी बन पड़ी है कविता.
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंमैंने सीधा सीधा पढ़ा ...प्रेमासक्त एक युवा,बंधा हुआ प्रेम की डोर से,पहुंचा उस दग्ध हृदया सौंदर्य तक जिसने लज्जावश धारण किये श्वेत आवरण !
मैं नहीं जानता कि प्रणय की परिस्थतियों की सम्पूर्ण अनुकूलता के बावजूद उस युवा को,आवरण हटाकर ज्वालामुखी शांत करने वाले किसी अन्य समीर की प्रतीक्षा क्यों है :)
@मान गए अली भाई आपकी ऋषि -दृष्टि (प्रोफेतिक विजन ) को और स्तब्ध भी हुए ....आपके चरण किधर हैं ?
जवाब देंहटाएंकविता तुकांत हो या अतुकांत उसकी श्रेष्ठा उसके भावों से है,प्रवाह से है. मुझ को जो बहा ले जाये ऐसी लहर सी कोई भी कविता मुझे प्रिय है.विद्वानों ने क्या चाहा क्या नियम बनाए मेरे उन्मुक्त मन ने इसकी कभी परवाह नही की.
जवाब देंहटाएंआपकी इस कविता में चित्रात्मकता है. जैसे वो मैं थी जो फूलों की वादियों में पहुंची और वो बर्फानी वादियों में तब्दील हो गई.बर्फ के नीचे दबे फूलो को ढूंढती बर्फ उकेरती अंगुलिय मेरी हो गई.
मुझे वो फूलों की वादियाँ प्रिय है और बर्फानी चादर भी.उम्मीद और विशवास है कि फिर फूल खिलेंगे.वादियाँ फिर फूलों से भर जायेगी.
ज्वालामुखी का अपना सौंदर्य है जीवन के आघात जो कभी सुखद नही होते पर धरती के गर्भ से ज्वालमुखी के बाद बाहर निकल आए खनिजों,रत्नों की तरह हमारे भीतर दबे आशातीत गुणों को बाहर निकाल लाते हैं.धरती की उर्वरकता बढाता है ज्वालामुखी.हमारी अपनी असीमित क्षमताओं की.आश्चर्यचकित रह जाते हैं कि हम में इतनी क्षमता थी,हमे मालूम ही नही था. है न?
'धधकता ज्वालामुखी सा
आकार लेता दीखता है
और मैं फिर डरता हुआ
हठात उँगलियों को खींचता
देता हूँ दिल को दिलासा
कि कभी तो हटेगीं
ये बर्फानी चादरें,
नीचे दबा ज्वालामुखी
कभी तो शांत होगा और'
........... मुझे जीने के मकसद देते है और प्रेरणा भी.निसंदेह अच्छी कविता है.जैसे 'कामायनी' का कोई अंश पढ़ रही हूँ.
मेरा कमेन्ट कहाँ चला गया? हा हा हा जैसी मैं वैसे मेरे कमेन्ट. उठकर बिना कुछ कहे चल देते हैं.आवाज देने पर भी लौटकर नही आते.जाने किस दुनिया में रहते हैं ......मैं और मेरे कमेंट्स हा हा हा कोई बात नही. फिर आऊंगी......फिर लिखूंगी.
जवाब देंहटाएं@इंदु जी, आपका कमेन्ट स्पैम से वापस लाया हूँ ,आपका विश्लेषण तो मूल कविता से भी बेहतर है !
जवाब देंहटाएंबर्फ हटाओ
जवाब देंहटाएंतो जल जाती हैं उँगलियाँ
ज्वालामुखी की ताप से....वाह .बहुत सुन्दर बहुत सहज मासूम सी रचना ..बेहतरीन ...लिखते रहा करे ...
बात तुकांत या अतुकांत की नहीं है। बात है,कविता रचने और कविता के उतरने की।
जवाब देंहटाएंअली भाई और इन्दुजी की दृष्टि को प्रणाम !
जवाब देंहटाएंतुकबंदी एक माध्यम हो सकता है भावों को व्यक्त करने का पर रचना रचना ही होती है ... जोसे की ये .... शशक्त ... प्रभावी ... भावों की सहज अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंविज्ञान सेवी से कोमल भावनाएं ज्यादा प्रभावी है.कहीं उस ज्वालामुखी के नीचे युग प्रतीक कवि तो नहीं है युगांतर की प्रतीक्षा में.
जवाब देंहटाएंभावो को सहजता से दर्शाने के लिए अतुकांत कविता से अच्छा कुछ नहीं हो सकता.सुंदर कविता है.
जवाब देंहटाएंबर्फ़ानी वादियों और ज्वालामुखी का सुंदर संगम :)
जवाब देंहटाएंbeautiful n elegant compositions..
जवाब देंहटाएंAwesome imagery !!!
Vaaki kavita bahut achhi hai! Congrats!
जवाब देंहटाएंआपका धैर्य सराहनीय है जो युगांतर की प्रतीक्षा कर रहा है ...
जवाब देंहटाएंज्वालामुखी से तो उंगलियां जलती ही पर कभी कभी बर्फ भी जला देती है ..
कविता तुकांत हो या अतुकांत बस भावों का प्रवाह होना चाहिए जो आपकी इस कृति में प्रभावशाली रूप से विद्यमान है ..अच्छी प्रस्तुति
यह पूछने की ज़रूरत ही नहीं है सुंदर अतिसुन्दर बधाई की परिधि से बाहर
जवाब देंहटाएंकविता बहुत खूब है। यदि जानना हो कि हिन्दी की बर्फ़ अंग्रेज़ी में पिघलती है तो आगे पढें:
जवाब देंहटाएंLast time when it rained,
It flooded everywhere I could see.
Tall trees were deep into water
The street turned into a mighty river.
The storm shook my house
The flood washed away my office.
I was homeless and jobless
And used a boat instead of my car.
Now when the rain is gone
Far-far away from me.
Leaving no drop of water
Anywhere around me.
Not a single cloud in sight
I long for rain, I really long.
@अनुराग जी ,
जवाब देंहटाएंआह बहुत खूब ! यही तो वह संवेदना है जो हमें गहरे जोड़े हुए है - हाईवमाईंड जैसी !
हठात उँगलियों को खींचता
जवाब देंहटाएंदेता हूँ खुद को दिलासा
कि कभी तो हटेगीं
ये बर्फानी चादरें,
नीचे दबा ज्वालामुखी
कभी तो शांत होगा
बहारें कभी तो आयेगीं ..
और मैं ठहर जाता हूँ
एक युगांतर की आस लिए ...
कभी तो मिलेगी बहारों की मंजिल राही .आस गई तो हर बात गई सकारात्मक भाव की अ -कविता .कविता तो भाई साहब अकविता में भी होती है .
खूबसूरत कविता !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता सर बधाई |
जवाब देंहटाएंसहज हो सरल हो, भाव से भरी हो।
जवाब देंहटाएंछंद हो तुक हो, जरूरी नहीं है।।
प्रेम हो पीड़ा हो गुस्सा हो सच हो।
दिल में जो, लिख दिया,
बनती कवितायें।।
सफल प्रयास से सुन्दर कविता के लिये बधाई।
Arvind Mishra said...
जवाब देंहटाएं'@इंदु जी, आपका कमेन्ट स्पैम से वापस लाया हूँ ,आपका विश्लेषण तो मूल कविता से भी बेहतर है !'
आप जैसा इंसान ही सार्वजनिक मंच पर ऐसी बात लिख सकता है सर! बहुत दिल गुर्दे चाहिए इसके लिए.यह आपका बडप्पन है.आप जैसे विद्वानों के सामने कहीं नही टिकती यह इंदु पुरी.
थेंक्स सर! गौरान्वित महसूस कर रही हूँ.