रविवार, 27 नवंबर 2011

अब हमारे बीच में है शब्द की दीवार ........

बच्चन जी मेरे मेरे प्रिय कवियों में रहे हैं .आज उनका जन्मदिन है .मेरा मन भी कल से ही उझ-बुझ सा उद्विग्न है ...तो क्यों न आज उनकी यह कविता आपसे मैं साझा कर लूं -यह कहा भले ही जाता हो कि कवितायेँ बड़ी व्यक्तिपरक,व्यष्टिगत  होती हैं मगर उत्कृष्ट रचनाएं दरअसल समष्टि -जन जन की पीड़ा-मनोभावों से जा जुड़ती हैं और इस अर्थ में कालजयी बन जाती हैं -बच्चन जी की निम्न कविता कुछ इसी श्रेणी की कविता है -

क्षीण कितना शब्द का आधार! 

मौन तुम थीं ,मौन मैं था,मौन जग था, 
तुम अलग थीं और मैं तुमसे अलग था ,
जोड़-से हमको गए थे शब्द के कुछ तार 
क्षीण कितना शब्द का आधार! 

शब्दमय तुम और मैं,जग शब्द से भरपूर ,
दूर तुम हो और मैं हूँ आज तुमसे दूर 
अब हमारे बीच में है शब्द की दीवार 
क्षीण कितना शब्द का आधार! 

कौन आया और किसके पास कितना ,
मैं करूं अब शब्द पर विश्वास कितना 
कर रहे थे   जो  हमारे  बीच छल व्यापार 
क्षीण कितना शब्द का आधार! 

(हरिवंश राय बच्चन,२७ नवंबर १९०७ – १८ जनवरी २००३ 
कवि कर्म कौशल से सर्वथा विहीन मुझ जैसे व्यक्तियों का क्या हुआ होता जो अगर बच्चन सरीखे कवि न जन्मे होते, तब  अपने मन के भावों को कभी व्यक्त ही न कर पाते हम -आज ये कालजयी युग द्रष्टा कवि घोर पीड़ा ,दिशाहीनता और हताश क्षणों में  हमारी वाणी बन जाते हैं ...और अभिव्यक्ति  का सहारा  बन मानो  व्यथा को कुछ पल के लिए ही हर लेते  हैं ......शत शत नमन ......

34 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चन की कविता में एक बात जो मुझे सबसे अच्छी लगती है वह है इनकी कविता का आशावादी होना. अच्छी पंक्तियां पढ़वाने के लिए आभार.

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  2. बहुत खूबसूरत रचना को पढवाने के लिए आभार ।
    बच्चन जी को नमन ।

    शब्दों की दीवार आधुनिक युग में और भी ऊंची होती जा रही है ।

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  3. चलो अच्छा हुआ कि बच्चन जी के बहाने आपका गुबार निकल गया,अब मन कुछ हल्का ज़रूर हुआ होगा !

    बच्चनजी हमारे प्रिय गद्य-लेखक और कवि रहे हैं,उनकी आत्मकथा के चारों अंकों में जादू-जैसा लेखन है.उनकी स्मृति को प्रणाम !

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  4. इस पार प्रिय ,मधु है ,तुम हो ,उस पार न जाने क्या होगा ,
    तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो ,
    उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा ?
    नमन हरिवंश राय बच्चन को .बचपन में इन्हें इनके बुजुर्ग बच्चन कहते थे सो इन्होने इसे उपनाम के रूप में ही अपना लिया .अरविन्द जो आपने बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुत की है बच्चन जी के जन्म दिन पर .shukriyaa .

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  5. इस पार प्रिय ,मधु है ,तुम हो ,उस पार न जाने क्या होगा ,
    तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो ,
    उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा ?
    नमन हरिवंश राय बच्चन को .बचपन में इन्हें इनके बुजुर्ग बच्चन कहते थे सो इन्होने इसे उपनाम के रूप में ही अपना लिया .अरविन्द jee आपने बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुत की है बच्चन जी के जन्म दिन पर .shukriyaa .

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  6. मेरी टीप आकर,पाला छूकर चली गई,मिसिरजी,ज़रा उसे बेल पर रिलीज करें !

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  7. हरिवंश राय बच्चन जी की सुन्दर रचना पढवाई ...
    आभार

    बच्चन जी को नमन

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  8. आपकी उद्विग्नता शांत हो... बच्चन जी को नमन!!

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  9. @बिहारी बाबू
    ई उद्विग्नता को जरा मजा चखाना है ई दुष्ट मेरे ही पीछे क्यों पडी रहती है -जरा पता ठिकाना बताईयेगा !

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  10. क्षीण कितना शब्द का आधार। जोड़ते हमको मगर शब्द के ही तार।
    ...ब्लॉगरों को भी खुशी देने वाली कविता। क्षीण कितना कमेंट का आधार। जोड़ते हमको मगर कमेंट के ही तार।

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  11. शब्द का आधार बहुत विवश होता है, कुछ न कुछ भाव छूट जाते हैं।

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  12. क्षीण कितना शब्द का आधार! बच्चन जी की सुंदर कविता की प्रस्तुति के लिए आभार ...

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  13. अब हमारे बीच में है शब्द की दीवार .. शीर्षक देखकर लगा कि आज फ़िर कोई दीवार खड़ी हो गई है, परंतु यहाँ आकर राहत मिली और मेरी प्रिय कविता पढ़कर तो बस मजा ही आ गया ।

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  14. बच्चन जी बढ़िया रचना पढवाने के लिए आभार.

    पिछली तीन रचनाएँ भी पढ़ डाली.
    आपके उत्कृष्ट लेखन को सलाम.

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  15. बड़ा अजीब लगता है कि उनके जन्मदिन पर उनके ही परिवार की ओर से किसी आयोजन की खबर दिखाई नहीं देती !
    शब्दों को लेकर उनकी कविता अदभुत है और उनको प्रस्तुत करने के लिए मैं आप पर गर्व कर रहा हूं !

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  16. हरिवंश राय बच्चन--न कभी भूले जायेंगे, न भूलेगी उनकी मधुशाला.

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  17. पंडित जी:
    उद्विग्नता का पता...
    पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है!!
    :)

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  18. हरिवंश राय बच्चन जी की सुन्दर रचना पढवाने का शुक्रिया

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  19. राम नाम है सत्य न बोला
    रट थी सबकी जिह्वा पर
    अमर रहें बच्चन जी जग में,
    अमर रहे यह मधुशाला ।

    शुभकामनायें आपको !

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  20. बहुत सुन्दर. बच्चन जी को नमन. मुझे याद है वो दिन जब मैंने उनकी मधुशाला की एल.पी खरीदी थी.

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  21. मैं करूं अब शब्द पर विश्वास कितना ?
    कर रहे थे जो हमारे बीच
    "छल व्यापार"
    ...ब्लॉगरों को जोड़ते कमेंट के ही तार।

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  22. कौन आया और किसके पास कितना ,
    मैं करूं अब शब्द पर विश्वास कितना
    कर रहे थे जो हमारे बीच छल व्यापार
    क्षीण कितना शब्द का आधार!
    Thanks for this and your constant encouragements for posts .

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  23. शब्द का आधार ...

    नमन बच्चन जी की अमर रचनाओं को |

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  24. कुछ कवि और उनकी रचनाएँ सोचने पर विवश करती हैं कि कालजयी कौन है स्वयं कवि या उसकी कोई रचना !
    बच्चन जी की कविता पढवाने के लिए बहुत आभार !

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  25. व्यथा ने इतने सुन्दर शब्दों का सहारा लिया . मौन व्यथा में और कितने सुन्दर शब्द होंगे . ..

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  26. सुंदर कविता पढवाने का आभार ।बच्चन जी को नमन ।

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  27. कौन आया और किसके पास कितना ,
    मैं करूं अब शब्द पर विश्वास कितना
    कर रहे थे जो हमारे बीच छल व्यापार
    क्षीण कितना शब्द का आधार!

    kitna sundar likha hai waah!waah!!

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  28. सारे सम्बन्धों में ये शब्द ही अहम रोल निभाते हैं..तोड़ने में और जोड़ने में भी..
    बच्चन जी की यह कविता पसंद आई..

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  29. शब्द सजीव नहीं है इसलिए इसका आधार क्षीण होना इसका सत्य है..ह्रदय धड़कता हुआ आधार बन जाए तो कई-कई जन्म कम पड़ जाते हैं..

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