कभी कभी मन में कुछ बातें ऐसी उलझती हैं कि सुलझाए नहीं सुलझतीं बल्कि और उलझती चली जाती हैं .यह आज की उलझन भी ऐसी है -गृह लक्ष्मी ही क्यों, 'गृह सरस्वती' क्यूं नहीं ? हम पत्नी को गृह लक्ष्मी क्यों कहते आये हैं और प्रकारांतर से उल्लू होने का बोझ उठाये रहे हैं! पत्नी को लक्ष्मी का दर्जा देते ही चिरकालिक उल्लू होना पति की नियति बन जाती है . शायद ही कोई बुद्धिमान पति इस बात से असहमत होगा कि अपनी पत्नी के चयन के मामले में वह उल्लू न बना हो ...चाहे यह चयन खुद उसके द्वारा किया गया हो या फिर सामजिक व्यवस्था के चलते उस पर यह थोप दिया गया हो -दोनों ही मामलों में उसे यह समझने में ज्यादा दिन नहीं लगता कि वह उल्लू बन बैठा है या उसे बनाया जा चुका है! .वैसे लोग लुगायियाँ यह भी दलील देगीं कि सरस्वती तो आखिर माँ तुल्य हैं उन्हें पत्नी के रूप में भला कैसे देखा जा सकता है ? मगर यह एक लचर तर्क है क्योंकि सभी देवियाँ हमारी माँ तुल्य ही हैं ...
.
मेरी एक मित्र ने एक निजी (चैट ) चर्चा के दौरान कहा कि पत्नी को सरस्वती कहने में ख़तरा यही है कि फिर उन्हें ज्यादा बुद्धिमान मानना होगा जो पुरुष अहम् को गवारा नहीं है .दरअसल यह लक्ष्मी चिंतन कई पहलुओं को समेटे हुए हैं जिसमें एक आम भारतीय के पारिवारिक जीवन ,उसकी सामजिक मान्यताएं ,पूजा उपासना पद्धति और पुरनियों की सोच और पारिवारिक -सामाजिक व्यवस्था ,मिथकीय चिंतन के भी कई रोचक सूत्र समाये हुए हैं ....अगर लक्ष्मी घर में हैं तो फिर सरस्वती भी तो कहीं निकट ही होंगीं जहाँ एक पति मन खुद को राजहंस मानने की अनुभूति से प्रमुदित भी होना चाहता होगा ? मुझे यही लगता है कि जीवन भर उल्लू बने रहने की मानसिकता से उबरने का भी हर पति -मन कभी न कभी जरूर प्रयास करता है -पल भर के लिए ही वह राजहंस होने ,नीर क्षीर विवेक की क्षमता से युक्त होने को मचलता है लिहाजा किसी सरस्वती को खोजता फिरता है ....और यह एक शाश्वत खोज है ...पति के लिए .चरैवेति चरैवेति किस्म की ....
पति की एक और चालाकी भरी सोच हो सकती है -वह पत्नी को लक्ष्मी का संबोधन देकर प्रकारांतर से खुद को विष्णु बन जाने की खुशफहमी पालता हो ...महज इस अर्थ में कि विष्णु बहुत सुन्दर और मोहक व्यक्तित्व के स्वामी हैं ..कहते हैं समुद्र मंथन से निकली लक्ष्मी ने विष्णु का वरण ही इसलिए किया कि वे सर्वांग सुन्दर थे ..मौके पर इतना सुन्दर वहां कोई और नहीं था ...तो ज़ाहिर है पत्नी को लक्ष्मी मानने मात्र से खुद को सुन्दर होने की सुखानुभूति पतियों को सहज ही मिल जाती हैं ..मगर एक बात मुझे यहाँ व्यथित करती है -संस्कृत के एक श्लोक का भाव यह है कि -पुरुष पुरातन की प्रिया क्यों न चंचला होय ? मतलब लक्ष्मी का मन स्थिर नहीं रहता,गति भी स्थिर नहीं है -हमेशा चंचल है -कहीं पत्नी को लक्ष्मी की संज्ञा से विभूषित कर पति का सहज संशकित मन उस पर हमेशा सजग दृष्टि की आवश्यकता की इन्गिति तो नहीं करता ? पति पुरनिया बेचारा कहीं किसी और सुदर्शन पुरुष के चलते बेसहारा और निरीह न हो उठे ! इसलिए ही वह पत्नी को लक्ष्मी का नामकरण देकर शाश्वत सजगता का उपाय कर बैठा हो !
जो भी हो लक्ष्मी और सरस्वती के फेर में पुरुष का जीवन बीत जाता है -लक्ष्मी स्वरूपा पार्वती जी सरस्वती रूपा माँ गंगा से सौतिया डाह रखती हैं क्यों कि शंकर जी गंगा जी को हमेशा सिर चढ़ाये रहते हैं -खुद तो आदि देव गंगा -संयुक्ता हो लिए मगर अपनी संतति पुरुषो को केवल लक्ष्मियों के सहारे ही छोड़ गए -भोले बाबा ये आपकी कैसी फितरत है ? खुद लक्ष्मी और सरस्वती को एक साथ साधे बैठे हैं और हमें केवल लक्ष्मियों के ही रहमो करम पर छोड़ बैठे हैं ..बहुत बेइंसाफी है यह ...
लक्ष्मी और सरस्वती चिंतन में आपके विचार आमंत्रित है! .
'पत्नी को लक्ष्मी मानने मात्र से खुद को सुन्दर होने की सुखानुभूति पतियों को सहज ही मिल जाती हैं'
जवाब देंहटाएंसौन्दर्यबोध के चलते तो लक्ष्मी मानने से रहे. शायद लक्ष्मी का सम्बोधन और मान्यता 'लक्ष्मी' के लोभ में तो नहीं!!
घर घर होता है विद्यालय नहीं। निरक्षरा भार्या भी घर को बहुत कौशल से सँभालती है और प्रकाण्ड विद्वान पति को उनकी सीमाओं से परिचित कराती रहती है। सहज समझ के आगे सरस्वती फेल हैं।
जवाब देंहटाएंवैसे आप की इस पोस्ट के विमर्श हमारी पीढ़ी तक ही लागू हैं। आगे तो घरना घरनी सब प्रकार उपलब्ध होंगे।
मैं सोच रहा हूँ कि इस पोस्ट पर महाभारत मचेगी कि नहीं ? समय आ गया है कि ब्लॉगजगत में भी सट्टेबाजी शुरू हो। ;)
@वर्मा जी -यह भी एक महत्वपूर्ण चिंतन बिंदु है -निट्ठल्ले पुरुष ऐसी ही गृद्ध दृष्टि लगाये रहते हैं !
जवाब देंहटाएंरोचक पोस्ट..सब धन धान्य से परिपूर्ण हो सुख भोगना चाहते हैं...और कहा जाता है कि लडकी अपना भाग्य साथ लाती है...इसी लिए उसे लक्ष्मी रूप में देखा जाता है
जवाब देंहटाएंदुबारा आते हैं कमेंट्स पढने..........
जवाब देंहटाएंregards
-यह भी एक महत्वपूर्ण चिंतन बिंदु है -
जवाब देंहटाएंregards
यह बात इतनी सतही नहीं है. इसके पीछे एक बहुत बड़ा सामाजिक/मनोवैज्ञानिक कारण छिपा है जिससे विवाह संस्था आज तक टिकी हुई है. गिरिजेश महाराज के सट्टेबाजी के अंदेशे से सहमती है.
जवाब देंहटाएंbahut badiya baat ki aapne
जवाब देंहटाएंdono ka apna mahatva hai
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
मेरे हिसाब से दोनों ही है और कुछ भी नहीं ...आपने मानने के ऊपर निर्भर है ..
जवाब देंहटाएंगृह लक्ष्मी , गृह सरस्वती इत्यादि पर काफी चर्चा होती हैं
जवाब देंहटाएंकभी गृह - राम ,
गृह - रावण ,
गृह - गणेश
या गृह ब्रह्मा , गृह विष्णु , गृह महेश
इत्यादि पर बात नहीं होती !!!!!!! ये गृह के साथ क्यूँ नारी ही को जोड़ा जाता हैं ???
1-Laxmi comes by the blessings of Saraswati only.
जवाब देंहटाएं2- Laxmi is short tempered and may desert you anytime, If Saraswati [vivek/buddhi], is not with you.
3-Laxmi is one and only. House is her regime.while Saraswati is a part of both [men and women].
4-Laxmi cannot manage home wisely without the help of Sarawati.
5- Now a days , A husband gets a good combo of Laxmi-Saraswati in his wife.
That is why it is becoming tougher for men to tackle the two in one....lol
On a lighter note,
ref- "Saraswati ki talaash.."
Gharwali- Laxmi
Baharwali- Saraswati
Laxmi will run away if Saraswati will get more attention. But only Saraswati can guide how to bring laxmi back in home.
" Laxmi, Saraswati dou khadi,
Kake lagu paon,
Balihari Saraswati aapno,
Laxmi diyo bataye. "
@ गिरिजेश जी
जवाब देंहटाएंविश्वकप फुटबाल का असर ब्लाग्स में भी दिख रहा है , ड्रिब्लिंग स्किल कमेंट्स में भी झलकने लगे हैं :)
@ राम त्यागी जी
आप निर्णायक हों तो सारे मैच ड्रा हो जायेंगे :)
@ अरविन्द जी
आप रचना जी के प्रश्न का निवारण करें हम पलट कर आते हैं !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@ लिहाजा किसी सरस्वती को खोजता फिरता है....
जवाब देंहटाएंपत्नी को लक्ष्मी मानने मात्र से खुद को सुन्दर होने की सुखानुभूति पतियों को सहज ही मिल जाती हैं ...
जीवन भर उल्लू बने रहने की मानसिकता से उबरने का भी हर पति -मन कभी न कभी जरूर प्रयास करता है ....
हास्य व्यंग्य में महारत हासिल है आपको ...लेखनी की इतनी ईमानदारी मूर्खाओं को सदमे से उबारने की कोशिश तो नहीं (व्यंग्य में ही सही )!!
सहज समझ के आगे सरस्वती फेल हैं....सहमत
ये गृह के साथ क्यूँ नारी ही को जोड़ा जाता हैं ??? ...आखिर क्योंकभी गृह - राम ,
गृह - रावण ,
गृह - गणेश
या गृह ब्रह्मा , गृह विष्णु , गृह महेश
इत्यादि पर बात नहीं होती ...?? क्यों ...??
कही की ईंट कही का रोड़ा ...भानुमती ने कुनबा जोड़ा ...(टिप्पणी तैयार )
गृहलक्ष्मी और गृहसरस्वती को भूमिका बदलने में देर ही कितनी लगती है ...!!
बहुत रोचक और विचार्णीय पोस्ट है। दिव्या जी का कमेन्ट लाजवाब है । Gharwali- Laxmi
जवाब देंहटाएंBaharwali- Saraswati वाह क्या बात है आभार्। ऐसे चिन्तन रोज़ करें
यह रहे हम और ये हमारी भावनाएँ.
जवाब देंहटाएंपति अपनी पत्नी को पत्नी और अर्धांगिनी मान ले वही बहुत है, बाकी तो सब झाँसेबाजी से अधिक कुछ नहीं है।
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिप्रेक्ष्य में भार्या अगर लक्ष्मी और सरस्वती दोनों का संगम हो तो ,मुझे लगता है ये combination ज्यादा उत्साहवर्धक है.
जवाब देंहटाएंदिनेश जी ने बिल्कुल सही बात कह दी………………पुरुष इतना ही कर ले तो ही काफ़ी है………………न खुद भ्रम मे जिये और ना ही किसी को बेवकूफ़ बनाने की कोशिश करे।
जवाब देंहटाएंपंगे वाला विषय छेड़ दिया आपने प्रभो , सो बोलेंगे कुछ नहीं केवल प्रतिक्रियाएं और प्रतिक्रिया देने वालों को पढ़ते हैं !
जवाब देंहटाएं:-)
Yah to wah bat kah dee aapne jo barson mere dimaag me udham machati rahi! "Dil ko samjhane ko Gaalib khayaal achha hai!"
जवाब देंहटाएंLaxmi kah den,yahi bahut hai..dayan bhi kah sakte hain...Laxmi to bhog vilas dilwayegi...Sarswati kya degi? Sadbuddhi to hame nahi chahiye!
लक्ष्मी हो या सरस्वती या फिर दुर्गा सब पुरषों का ही छलावा है और कुछ नहीं ..वो बस इंसान भर मान ले बहुत है.
जवाब देंहटाएंरोचक !
जवाब देंहटाएं[चूँकि कभी सोचा ही नहीं इस बारे में ...
इसलिए दोबारा आयेंगे..सोच विचार के बाद..]
@ अरविन्द जी
जवाब देंहटाएंहम पलट कर आये पर... आपकी उपस्थिति पर संशय हो चला है !
हेल्लो ...क्या सुन पा रहे हैं मुझे ? इतना सन्नाटा ssssssssss...
खैर नेट पर जब भी लौटियेगा आवाज दीजियेगा !
हा-हा , बड़ा ही नाजुक विषय उठाया है आपने अरविन्द साहब ! वैसे मैं तो मंद बुद्धि का इन्सान हूँ, अत: अपनी मंद बुद्धि के हिसाब से यही कह सकता हूँ कि हिन्दुस्तानियों की घूस खाने-खिलाने की सदियों पुरानी आदत है जो खून में रची-बसी है, जब कुछ पैसे ले देकर जिन्दगी की गाडी चल निकले तो पुरुष को किसी पागल कुत्ते ने काट रखा है कि वह बुद्धिमान स्त्री घर में बिठाकर आपने गले मुसीबत बांधे :)
जवाब देंहटाएं'गृह लक्ष्मी ' को लक्ष्मी ही रहने दीजिये. सरस्वती की पूछ परख कहीं नहीं.सरस्वती पुत्र भी अंततः लक्ष्मी को ही पाना चाहते हैं.
जवाब देंहटाएंसीधी सी बात. महिला सरस्वती बनेगी तो पुरुष को अक्ल आ जायेगी, वरना वह उल्लू ही बना रहेगा. यानी महिला के लक्ष्मी बनने में ही उसका फायेदा है.
जवाब देंहटाएं@लक्ष्मी के बहाने क्या खूब सरस्वती चर्चा चल रही है !
जवाब देंहटाएंयहाँ तो कई सरस्वती दिख रही हैं -बुद्धि चकरा गयी है ! कस्मै सरस्वताये हविषा विधेम !
शुक्रिया वाणी जी -अच्छे शब्दों के लिए !
रचना जी किसी ने रोका नहीं है आप शुरू कीजिये न गृह-राम ,विष्णु चर्चा !
दिव्या जी सरस्वती की प्रतिमूर्ति हैं -उनकी बात शब्द दर शब्द बुद्धिमानी भरी है ..
घोस्ट बस्तर के लिंकित पोस्ट को पढने पर लक्ष्मी चिंतन के नए आभार उभरते हैं !
यह पोस्ट हँसते हँसते एक गंभीर बात पर विमर्श का निमंत्रण था -मगर कुछ गंभीर लोग और गंभीर हो गए !
ऐसा क्यों होता है !
कुछ जवाब दूसरी सिटिंग में !
रचना जी किसी ने रोका नहीं है आप शुरू कीजिये न गृह-राम ,विष्णु चर्चा !
जवाब देंहटाएंI thought what ever you may be but you cant be an escapist
http://en.wikipedia.org/wiki/Escapism
सीधी सी बात है,घर में रसोई जरूरी है और रसोई के लिए राशन!! और राशन दाता लक्ष्मी ही हो सकती हैं।
जवाब देंहटाएंलक्ष्मी से पंगा लेकर सरस्वतीपुत्र कहाँ चैन से है,
फिर गृहिणी भी गृहसरस्वती हुई तो फाँके निश्चित हैं।
.... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!
जवाब देंहटाएंRachna ji ,
जवाब देंहटाएंWho told you I am an escapist -no I am neither an escapist nor a quitter and I shall prove it...!
Lets see who has the last laugh! :)
परिवार के सुख का एक कारण है, समृद्धि। इस समृद्धि में ही समाज का उत्थान है। समाज की सम्पन्नता जहाँ एक ओर आर्थिक है, वहीं दूसरी ओर सांस्कृतिक है। उसका आर्थिक पक्ष समृद्धि से जुड़ा है जबकि सांस्कृतिक पक्ष व्यक्तिगत सुख से। समृधि को "श्री" नाम से अभिहित किया जाता है और 'श्री'- 'लक्ष्मी' को कहते है .
जवाब देंहटाएंस्त्रियः श्रियश्य गेहेषु न विशेषोऽस्ति कश्चन।। (मनुस्मृति,9/26) घर की स्त्री और लक्ष्मी में कोई भेद नहीं है।’’
चाणक्य के अनुसार जिस गृहस्थाश्रम में आनन्दपूर्वक गृह, बुद्धिमान पुत्र, प्रियवादी पत्नी, इच्छापूर्ति के लिए पर्याप्त धन, अपनी पत्नी से प्रीति, आज्ञाकारी सेवक, अतिथि सत्कार, देव-पूजन, प्रतिदिन मधुर भोजन तथा सत्पुरुषों के संग-सत्संग का सुअवसर सदा सुलभ होता है, वह धन्य है।धन का भण्डार लुटाने वाली, श्री सौभाग्य, धन-धान्य और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माँ लक्ष्मी है जिसकी कामना सारी दुनिया में छोटे से लेकर बड़े तक बड़े चाव से करते हैं। और शायद यही कारण है स्त्री को गृहलक्ष्मी कहने का।
आपने कहा -----
@ "मगर एक बात मुझे यहाँ व्यथित करती है -संस्कृत के एक श्लोक का भाव यह है कि -पुरुष पुरातन की प्रिया क्यों न चंचला होय ?
लेकिन यह संस्कृत के श्लोक का भाव ना होकर शायद अब्दुर्रहीम खानखाना साहब की उक्ति है ----
"कमला थिर न रहीम जग, यह जानत सब कोय। "पुरुष पुरातन की बहू, क्यों न चंचला होय।।"
मामला बड़ा गंभीर है.
जवाब देंहटाएं....लाजवाब पोस्ट..!
जवाब देंहटाएंमैं इस कहने-वहने पर नहीं जाती... कहने को तो लोग लड़कियों के पैदा होने पर भी लक्ष्मी आयीं हैं कहते हैं और पैदा होने से पहले ही मार देते हैं, बहुओं को भी लक्ष्मी कहते हैं और दहेज न मिलने पर जला देते हैं... पत्नियों को भी लक्ष्मी कहा जाता है, पर ... कितने लोग सम्मान देते हैं... खैर जाने दीजिए... आप कहेंगे कि मैं व्यंग्य को गंभीरता से ले रही हूँ... गिरिजेश जी ने सही कहा घर, घर होता है विद्यालय नहीं... और "घरना" वाला कटाक्ष भी खूब किया है... मेरे होनेवाले तो मुझे घर सरस्वती मानते है और घर भी मुझसे अच्छा संभाल लेते हैं... गिरिजेश जी तो उन्हें "घरना" ही कहेंगे... पर मेरे लिए इन सब बातों का कोई मतलब नहीं...शुक्र है कि उनमें वो पुरुषवादी अहं नहीं... आप अच्छी तरह समझते हैं आज के युग में सिर्फ घर संभालना ही बड़ी बात नहीं और भी बहुत सी बातें हैं... कोई यूँ ही नहीं बाहर की बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी डालकर निश्चिन्त हो जाता है कि चलो वो तो काम करा ही लेगी... एक निरक्षरा ये कर सकती है... ज़रा सोचिये... आप तो जानते हैं ना???
जवाब देंहटाएंअमित जी आपने बहुत सुन्दर और प्रमाणित लिखा है -बहुत आभारी हूँ -दरअसल स्त्री के लक्ष्मी संबोधन के पीछे ऐश्वर्य और समृद्धि का ही भाव था -एक सुभार्या घर को धन धान्य सुख शान्ति से सम्पन्न रखने की कूवत रखती है ! और उस पर भी
जवाब देंहटाएंप्रिया च भार्या ...प्रियवादिन च ...तो सोने में सुहागा !
कारण जानने के लिए गहन अध्ययन में लग गया हूँ..जैसे ही पता चलता है पुनः आऊँगा. अभी तो इतना ज्ञान नहीं कि कुछ कह पाऊँ.
जवाब देंहटाएंक्यो नही उत्तर के इन्तज़ार मे
जवाब देंहटाएंक्यो नही उत्तर के इन्तज़ार मे
जवाब देंहटाएंगृह स्वामिन कह सकते हैं, हम तो इन दोनों शब्दों से बचते हुए :)
जवाब देंहटाएंबाकी ज्ञान बढ़ाकर आते हैं।
कुछ भी कहा जा सकता है़ कहने में क्या जाता है? वैसे मुक्ति वाली ही बात मैं सोच रही थी। पुत्री जन्म पर मुँह लटकाकर 'लक्ष्मी आई है' कहते बहुतों को देखा है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
जब हमरे पिता जी ब्याहे गए थे एक मिडिल पास कन्या से, तब उस कन्या ने ससुराल के सारे बिखरे खेती बाड़ी के हिसाब किताब की समझ हासिल की, और घर धान्य से परिपूर्ण हो गया, छोटे देवर ननदों को अपने पैरों पर खड़ा किया उनकी शादी करवाई, माँ गृह लक्ष्मी बन गईं... पिता जी नौकरी के कारण इलाहाबाद रहते थे...हम सभी भाई बहनों की पढाई का ध्यान रखा और सभी अव्वल रहे..तो वो गृह सरस्वती बन गईं... हमने दोनों रूप देखे हैं.. पण्डित जी आपने हमें माँ के उस रूप का नाम सुझा दिया.. धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहम तो दूसरों के चिंतन का लाभ उठाने की जुगत में रहते हैं, इसलिए इस विषय पर कोई राय दे पाने में अस्मर्थ महसूस कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी . विषय देखने मे रोचक है लेकिन शोधार्थ है ।
जवाब देंहटाएंविद्योत्तमा गृह लक्ष्मी या गृह सरस्वती ?
वाह मिसिरजी, बढिया सबजेक्टवा ढूंढे हो. अगर आपकी इजाजत हो तो कछु हम भी फ़रमावें? फ़ैलहाल त हम मैचवा में टंगडी मारने की बजाये टंगडी मारते हुये देखने जा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंना लक्ष्मी ना सरस्वती....बस गुणों और कमजोरियों का सम्मिश्रण समझ एक इंसान समझ लें..काफी है ,किसी भी पत्नी के लिए.
जवाब देंहटाएंवोटिंग कराना हो तो गृहदुर्गा भी एक विकल्प रखियेगा ।
जवाब देंहटाएंआप की इस रचना को शुक्रवार, 18/6/2010 के चर्चा मंच पर सजाया गया है.
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
अमित ने सही व प्रामाणिक लिखा है, घर के एश्वर्य व सम्रिद्धि पत्नी के व्यवहार, ग्यान व कौशल्य पर आधारित है; एश्वर्य और सम्रिद्धि ही मूलतः लक्ष्मी है , धन नहीं , इसीलिये गृहलक्ष्मी कहागया; सरस्वती तो प्रत्येक व्यक्ति--स्त्री-पुरुष की मूल मूर्धा है अतः व्यापक है उसे घर में सन्कुचित नहीं किया जा सकता, उसके आगे कोई उपनाम( prefix) या उपमान नहीं लगता |
जवाब देंहटाएं--तीनों देवियां ही आदि-शक्ति के रूप हैं-लक्षमी सान्सारिक नाम है( रज़ भाव )।
---गृहलक्ष्मी---पति को परामर्श काल में सरस्वती( मित्र), आपत्तिकाल में दुर्गा व सुख-सम्रिद्दि काल में लक्ष्मी होती है।
अमित ने सही व प्रामाणिक लिखा है, घर के एश्वर्य व सम्रिद्धि पत्नी के व्यवहार, ग्यान व कौशल्य पर आधारित है; एश्वर्य और सम्रिद्धि ही मूलतः लक्ष्मी है , धन नहीं , इसीलिये गृहलक्ष्मी कहागया; सरस्वती तो प्रत्येक व्यक्ति--स्त्री-पुरुष की मूल मूर्धा है अतः व्यापक है उसे घर में सन्कुचित नहीं किया जा सकता, उसके आगे कोई उपनाम( prefix) या उपमान नहीं लगता |
जवाब देंहटाएं--तीनों देवियां ही आदि-शक्ति के रूप हैं-लक्षमी सान्सारिक नाम है( रज़ भाव )।
---गृहलक्ष्मी---पति को परामर्श काल में सरस्वती( मित्र), आपत्तिकाल में दुर्गा व सुख-सम्रिद्दि काल में लक्ष्मी होती है।
--गृहपति ---नाम भी प्रयोग होता है।