कल से यहाँ एक पहेली जी का जंजाल बनी हुई है. मुझे लगता है कि वह जमाना जल्दी ही आ जायेगा जब बिना गूगलिंग किये किसी भी माई के लाल या लल्ली का पहेली बूझना संभव नहीं रहेगा ...तब के बच्चे शायद शरद जोशी प्रेरित नए टी वी सीरियल लापतागंज के एक पात्र की ही तरह जुमले उछालेंगें -पहेलियाँ तो मेरे पिता जी बूझा करते थे और वह भी बिना गूगलिंग किये .....पहेलियों के अंतर्जाल युग ने पहेलियों के चिर प्राचीन शगल को अब नए संस्कार दिए हैं -जहां आपके मौलिक अध्ययन और ज्ञान के बजाय इस बात की स्पर्धा हो रही है कि कौन गूगल या दूसरे किसी भी सर्च इंजिन पर ज्यादा तेजी और कुशलता के साथ पहेली का उत्तर ढूंढ पाता है ..मजे की बात तो यह है कि इस समय हिन्दी ब्लॉग जगत में ऐसे कई ब्लॉग है जहाँ पहेलियों की बहार दिखती है और सदाबहार पहेलीकर्ता और पहेली ज्ञानी केवल और केवल गूगल सर्च इंजिन पर निर्भर हैं -मतलब न तो पहेलीकर्ता अपनी पहेली की अंतर्वस्तु (कंटेंट )से खुद मुतमईन है और न बूझने वाला -मानव बौद्धिकता का यह क्षरण दुखी करता है ...यह हमें ही नहीं हमारी आने वाली पीढी की जुगुप्सा ,सहज जिज्ञासा और प्रतिभा के परीक्षण के लिए निश्चय ही एक शुभ लक्षण नहीं है ..
पहेलियों के मामले में तो होना यह चाहिए कि पहेली बूझने वाले का खुद का अपना विपुल अध्ययन हो और वह पहेली में रूचि रखने वालों -प्रतिभागियों /प्रतिस्पर्धियों से प्रत्येक से यह घोषणा करवाए कि वे उत्तर अपने अद्यतन ज्ञान के आधार पर खुद देगें अन्यथा पास कर /कह देगें ....वे गूगल या अन्य किसी सर्च इंजिन का सहारा नहीं लेगें ....बौद्धिकता ,अध्ययनशीलता और ज्ञान की श्रेष्टता का तकाजा तो यही है ..या फिर पहेली पूछने वाले ब्लॉग अब पहले ही यह घोषणा करें कि वे किस तरह के पहेली बूझने वालों को आमंत्रित कर रहे हैं -मौलिक प्रतिभा वालों को या फिर गूगलिंग कर पहेली का उत्तर बताने वालो को ...आशय यह कि पहेली पूछना या बूझना दोनों ही हंसी ठट्ठा न बन कर एक गंभीर और उत्तरदायित्वपूर्ण खेल /शौक का रूप ले ...यह व्यक्ति के निजी अध्ययन को बढ़ाने के लिए प्रेरणा दायक बने न कि उसे बात बात पर नक़ल करने को उकसाए -यह तो प्रतिभा का अवमूल्यन ही हुआ न !
सामान्य ज्ञान दरअसल असमान्य रूप से विपुल ज्ञान की अपेक्षा रखता है .मतलब एक तरह से कहें तो एनी थिंग अंडर द सन .....अब ऐसा न कहें कि ऐसे लोग संसार में है ही नहीं ..मुझे याद है बी बी सी की एक प्रतियोगिता टी वी पर आती थी उसमें ऐसे धुरंधर प्रतिभागी होते थे जो सेकेंड्स में किसी भी प्रश्न का उत्तर लिए हाजिर होते थे -ऐसे लोग दुनियां में आज से नहीं अरसे से हैं जिनके लिए हम चलते फिरते ज्ञानकोष की उपमा देते आये हैं .जबकि हिन्दी ब्लॉग जगत की पहेलियाँ मनुष्य की इस विलक्षणता का निरंतर अपमान कर रही हैं ....
ब्लॉग जगत में पहेलियों के आगाज का काम संभवतः ताऊ रामपुरिया ने किया और फिर कई दीगर ब्लागों ने यह सिलसिला शुरू किया जिसमें तस्लीम भी अग्रणी रहा ..मैंने वहां पहेली परम्परा शुरू की और ज्यादातर पहेलियों की सामग्री मैं गूगल के बजाय प्रकृति से खुद जुगाड़ता और पाठकों के सामने प्रस्तुत करता ....केवल यह परखने के लिए कि देखें भला कि हमारा हिन्दी ब्लॉग जगत इनका उत्तर दे भी पाता है या नहीं ..मुझे आश्चर्यमिश्रित आनंद होता था जब कोई न कोई सही उत्तर दे जाता था जबकि वे चित्र गूगल पर होते भी नहीं थे-उन आरंभिक पहेली बूझने वालों में निश्चय ही अल्पना वर्मा जी और सीमा गुप्ता जी का नाम अग्रणी हैं मगर लगता है अब उनका भी ज्ञान चुक सा गया है और अब वे भी गूगल महराज के ही रहमो करम पर ही हैं :) लेकिन ऐसा है भी तो मैं उन्हें दोषी नहीं मानता क्योकि उन्हें ऐसा करने के लिए पहेली पूछने वालों में गूगल की पीढी का तेजी से अवतरित होना है जो अपने चित्र प्रकृति या मौलिक नए स्रोतों से नहीं बल्कि गूगल से ही कट पेस्ट कर प्रस्तुत करते हैं .......
अपने ज़माने के एक हास्य-व्यंगकार जी पी श्रीवास्तव ने एक रोचक लोक चरित्र लाल बुझक्कड़ को प्रचारित किया जो हर किसी पहेली को बूझने को लालायित रहते थे....उनके गाँव मे लोग औसत स्तर की बुद्धि से भी पैदल हुआ करते थे और इसलिए लाल बुझक्कड़ जी की बड़ी इज्जत ,मान मर्यादा थी ....कहावत ही है कि निरस्त पादपे देशे एरंडो अपि द्रुमायते मतलब जहाँ पेड़ न रूख वहां रेड़ ही महापुरुष मतलब अपने लाल बुझक्कड़ जी ....और जानते हैं वे पहेली कैसे हल करते थे-एक ठो एक्जाम्पल देखिये -
उनके उस अद्भुत या अभिशप्त गाँव में से एक रात हांथी गुजर गया -सुबह गाँव वालों में जमीन पर हाथी के पैरों के बड़े बड़े निशानों को देखकर खलबली मच गयी -अरे देखो देखो ये कैसे निशान हैं .....उन मूर्खों की समझ में तो आना था नहीं ..थक हार कर लाल बुझक्कड़ बुलाये गए ..वे बिना बुलाये आते नहीं थे मगर बुलाये जाने के लिए बेताब रहते थे.... उन्होंने काफी देर तक जाँच परख की और अपने चेहरे पर एक बड़ी समस्या के हल करने के खुशी के इजहार का प्रोफेसनल भाव लाते हुए उद्घोषित किया -
लाल बुझक्कड़ बूझते और न बूझे कोय
पैर में चक्की बाँध कर हिरन न कूदा होय
गाँव वालों ने इस उत्तर का पहले की ही तरह हर्षोल्लास से स्वागत किया .....आज हिन्दी ब्लागजगत की हालत यह है कि यहाँ नित पहेली बुझाने वाले लाल बुझक्कड़ पैदा हो रहे हैं ..जिन्हें खुद ही पता नहीं कि वे पूछ क्या रहे हैं ....विगत दिनों मुझे रात ९ बजकर पचास मिनट पर एक पहुंचे हुए अंतर्जाली पहेली बूझक का मेल आया -दुहाई हो दुहाई हो मिश्रा जी जरा अमुक जगह जाकर पॉँच मिनट में यह बताईये प्लीज कि यह जानवर कौन है ? जहाँ पहेली पूछने वाले ने ही गूगल से गलत चित्र लगा दिया था ....बहरहाल मित्र के लिए आखिर कौन सी कुर्बानी न दी जाय ..... एक मिनट के अन्दर उन्हें मेल पर सही जवाब भेज दिया ..धन्यवाद आज तक प्रतीक्षित है ....गूगल पर इतना भरोसा भी ठीक नहीं है .
जारी है ......
blogging to pitaji kiya karte thay!
जवाब देंहटाएंhaha...i am a big fan of lapataganj...i watch is regularly....
humein aapka lekh bahut achha laga hainge!
बचपन की बहुत पहेलियाँ अब याद आती हैं। अब शायद वह ज्ञान का स्रोत कम हो रहा है।
जवाब देंहटाएं-पहेलियाँ बूझना बिना किसी पूर्व ज्ञान के संभव नहीं होता..अगर कोई पक्षी /पेड़ देख रहे हैं तो इतना अंदाजा होना तो चाहिए कि किस फेमिली /क्लास /आर्डर से है.पत्तियां कैसी हैं?किस प्रकार की हैं /पत्तियों को देखने भर से मालूम हो जाता है बहुत बार..पहले देखा हुआ रिकॉल हो जाता है..पक्षी की चोंच ही बता देती है किस वर्ग से होगा..गूगल में ढूँढना बिना किसी पूर्व ज्ञान के संभव ही नहीं [मेरे विचार में]
जवाब देंहटाएं--यहाँ तक कि अगर कोई इमारत देखते हैं तो उसकी बनावट से /कलाकारी से उसके काल या स्थान का अंदाजा तभी लग सकता है जब थोडा पूर्व ज्ञान उस विषय से सम्बन्धित हो.चाहे आप ने वह जगह देखी न हो.
- कई बार गूगल में तलाश करते कई नयी जानकारियाँ हाथ आती हैं..यह इस तकनीक का लाभ है.
- पहेलियों के कई प्रकार की होती हैं--उनकी कठिनाई के स्तर अनुसार /विषय के अनुसार/मौखिक/रेखा चित्र/चित्र/सांकेतिक..आदि ...
-हर तरह की पहेली को बूझने का तरीका अलग हो सकता है.
-पहले के समय में पहेली बूझने का एक उद्देश्य न केवल बौद्धिक स्तर जांचना बल्कि मनोरंजन और समय गुज़ारना भी होता था ,अब भी वैसा ही कुछ है ...लेकिन फिर भी
हर पहेली का उद्देश्य अलग हो सकता है.कहीं सामन्य ज्ञान जांचना तो कहीं व्यक्ति की तार्किक शक्ति /बौद्धिक स्तर तो कहीं आप का गणित तो कहीं आप का आयी क्यू लेवल..
अंतर्जाल पर हर तरह की पहेलियाँ उपलब्ध हैं..हिंदी ब्लॉग जगत में चित्र पहेली बहुत ही कॉमन हो गयी हैं .
***लेकिन विवेक रस्तोगी जी की गणित की पहेलियाँ और रवि रतलामी जी की वर्ग पहेली ,सागर नाहर जी की संगीत पहेली[धुन आधारित ].... अपने आप में अलग हैं ***
--उनके जवाब आप को गूगल नहीं देगा .
खैर अंत में कहने का ये ही सार है कि -गूगल में सही ढूंढने के लिए भी विषय सम्बंधित थोडा ज्ञान तो अति आवश्यक है..अन्यथा सारा दिन लगा दिजीये जवाब हाथ नहीं लगेगा यह भी तय है.
...वास्तव में इतनी अधिक अच्छी- बुरी [सॉरी] चित्र पहेलियाँ आने लगी हैं कि चित्र पहेलियों से मोह भंग हो गया है..मैं बहुत पहले ही मन बना चुकी थी कि ताऊ पहेली १०० अंक के बाद आयोजन से भी हट जाऊँगी..क्योंकि एक ही तरह की पहेलियों की अधिकता अब ब्लॉगजगत में मोनोटोनी / नीरसता उत्पन्न कर रही हैं.
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-पहेलियाँ बूझें न बूझें उनके जवाब देख कर/पढ़ कर ज्ञान तो बढ़ता है ही .
--न तो पहेलियाँ बूझना आसान है न ही पहेलियाँ पूछना..
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सब से जटिल पहेली तो किसी इंसान का स्वभाव पहचानना है ..:)..वहाँ तो अक्सर सामान्य ज्ञान भी फेल हो जाता है..
सही कहा न !
मैंने जाकिर अली रजनीश को निम्न सुझाव दिया है ...
जवाब देंहटाएंएक कमेटी बना दो डॉ अरविन्द मिश्र और मैं मेंबर( अवैतनिक) बन जायेंगे मगर मीटिंगों में टीए डीए दे देना ! कार्यकाल ३ माह का रख दो ...विद्वान् लोगों को इतना समय तो चाहिए ही ! जबतक खुद अंतर सोहिल इसे भूल चुके होंगे और आपके लिए कोई झमेला भी नहीं होगा !!
पहेलियाँ तो पिताजी बूझा करते थे ... हा हा रोचक प्रस्तुति .... ब्लागजगत में लापतागंज की तरह कई पात्र हैं .... आभार
जवाब देंहटाएंब्लॉगजगत में ३ साल के मेरे अनुभव में *मैं ने सब से पहले चित्र पहेलियाँ राज भाटिया जी के ब्लॉग पर देखी थीं,उसके बाद तस्लीम और फिर ताऊ जी और मनीश जी के यहाँ चित्र पहेलियाँ आयीं.
जवाब देंहटाएंआवाज़ पर संगीत की तथा हिंद युग्म पर बाल पहेलियाँ /सागर नाहर जी और एक नाम याद नहीं[शायद तरुण जी का या मनीष जी का] संगीत सम्बन्धी ऑडियो पहेलियाँ ..उन सब से भी भी पहले पूछा करते थे..
"@ अल्पना जी ,
जवाब देंहटाएंसब से जटिल पहेली तो किसी इंसान का स्वभाव पहचानना है ..:)..वहाँ तो अक्सर सामान्य ज्ञान भी फेल हो जाता है..
सही कहा न !"
@ अरविन्द मिश्र ,
उपरोक्त शब्द ध्यान से पढ़ लो गुरु !
का है पंडित जी ..????
कहना कुछ चाहते हैं कह कुछ जाते हैं !
ऐसा लगता है, यह पंगा अनजाने में हो गया है ...?? अब गलती से छत्ते में हाथ डाल ही दिया है तो जवाब मांगने की गुस्ताखी इसलिए कर रहा हूँ कि कम से कम यह अच्छे लोग नाराज न हो जाये ! अभी सीमा जी भी आती होंगी सो बेहतर है, पहले ही मामला साफ़ कर लो !
हार्दिक शुभकामनायें
अल्पना जी
जवाब देंहटाएं"सब से जटिल पहेली तो किसी इंसान का स्वभाव पहचानना है ..:)..वहाँ तो अक्सर सामान्य ज्ञान भी फेल हो जाता है..
सही कहा न !"
हा हा ..यही डर था मुझे .... :) विषयगत तटस्थ नीर क्षीर विवेचन भी मनुष्य का एक स्वभाव ही है ....जब उसका नितांत निर्मम और निर्मोही हो उठना सहज ही है ....
विषय विश्लेषण में इमोशंस का कहाँ स्थान? -विज्ञान का व्यक्ति ऐसे ही नीरस थोड़े ही कहा जाता है !
अपरंच, विषय पर सुचिंतित विचार और सम्यक जानकारी देकर इस पोस्ट को समृद्ध करने के लिए आभारी हूँ !
सतीश महराज,
जवाब देंहटाएंइस समय एक दो और सीरिअल चर्चित हो रहे हैं एक है उतरन और मैं इसी तौर पर एक खुरचन भी
बनान चाहता हूँ बशर्ते गुरु डॉ अमर कुमार का अनुमोदन मिल जाय जो कहीं और मुब्तिला रहते हैं इन दिनों ...
बहरहाल मुझे कोफ़्त आप पर है जो अक्सर खुरचन लेकर बैठ जाते हैं ...हा हा हा
वैसे एक किस्म की खुरचन स्वादिष्ट भी होती है जिसे सतीश पंचम जी से दरियाफ्त किया जा सकता है .....वह धीमी अंगीठी पर रखी जाने वाले दूध की मेटी
की भीतरी सतह को खुरचने से प्राप्त होती है और बड़ी स्वादिष्ट होती है -गाँवों में उसे करौनी कहते हैं ..
कभी चखायेगें आपको !
सीमा जी बड़ी प्रबुद्ध महिला हैं आपके ताव दिलाने पर ताव नहीं खायेगी:) हाथ कंगन को आरसी क्या ?
सतीश पंचम जी के अंदाज़ में आपने गाँव की वह हड़िया की वह मोटी मलाई याद दिला दी जिसे भूले बरसों हो गए ...आभार !
जवाब देंहटाएंहुज़ूर इस बहाने आपका ध्यान तो खिंच सके धन्य हो गया :-)) हम तो आपको आगाह करते ही रहेंगे...कम से कम एक दोस्त तो आपका, हम जैसा भी हो !
अब तो सीमा जी नाराज नहीं होंगी यह तय है मगर क्या अल्पना जी .....??
:-))
पहेलियाँ तो पिताजी बूझा करते थे ...ब्लागगंज
जवाब देंहटाएंपहेलियों पर अन्तर्जाल खोज निर्भरता पर सुंदर व्यंग्य है।
लेकिन अल्पना जी का कथन भी सही है कि अन्तर्जाल खोज के लिये भी प्रारंभिक ज्ञान चाहिये।
प्रतियोगिता के लिये भी अधिसंख्या में तीव्र-बुद्धि बुझ्झकड भी उपलब्ध नहिं होते। फिर बिना पाठको के कैसे चले?
@सतीश जी...नहीं.. ऐसा कुछ विशेष नहीं कहा गया है इस पंक्ति में :) ..महज 'एक जुमला 'फिट करने की कोशिश की गयी है .. ..
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी से 'पंगा लेने के बारे मे सोचने की ज़हमत भी न तो मैं ही कर सकती हूँ न ही सीमा जी..हम दोनों उनका बहुत सम्मान करते हैं और उनके ज्ञान और व्यवहार कुशलता के हम हमेशा ही कायल हैं.
अब देखीये कितनी कुशलता से उन्होंने इसी बात का जवाब दे दिया..अब उन्हें वैज्ञानिक के साथ दार्शनिक भी कह दें तो अतिशयोक्ति न होगी.
हार्दिक शुभकामनायें
@मुक्ति जी की कमी महसूस हो रही है इन दिनों ..दिखाई नहीं दीं कई दिनों से ,,,यहाँ हमें मोरल सपोर्ट के लिए उनकी अति आवश्यकता है.
जवाब देंहटाएंसुज्ञ ,
जवाब देंहटाएंलेकिन अल्पना जी का कथन भी सही है कि अन्तर्जाल खोज के लिये भी प्रारंभिक ज्ञान चाहिये।-जी सहमत
प्रतियोगिता के लिये भी अधिसंख्या में तीव्र-बुद्धि बुझ्झकड भी उपलब्ध नहिं होते। फिर बिना पाठको के कैसे चले? हाँ यह समस्या तो है मगर ज्ञान विज्ञान के मामलों में समझौते करते जाना क्या उचित है ?
@सतीश जी आप आपकी दुश्चिंता मिट गयी होगी ....आपमें सचमुच पर दुःख कातरता है ! अल्पना जी को ऐसे ही विदुषी नहीं कहता मैं ! ब्लागरों में उनका बड़ा ऊँचा कद है और वह सही, सलामत है!
जवाब देंहटाएंलापतागंज के मामाजी की खूब याद दिलाई जी।
जवाब देंहटाएंसुश्री अल्पना जी ने काफी बातें कह दी हैं जो मैं अपनी पोस्ट में लिखना चाहता था, पर शब्दों की कमी और लेखन की अनुभवहीनता के कारण नहीं लिख पाया।
फिर भी कुछ तो कहूंगा ही
प्रणाम
[मूल्यांकन से बाहर पोस्ट]
जवाब देंहटाएंये पहेली बूझना बड़े दिमाग और धैर्य का काम है. अपने बस की बात नहीं. लेकिन आपका किलसना समझ नहीं आया. आप क्यूँ हलकान हैं ? यहाँ कोई कम्पटीशन की तैयारी करने नहीं आता. आप इसको मनोरंजन के तौर पर ही लीजिये न. फिर भी अगर कुछ ज्यादा ही दर्द हो तो आप स्वयं ऐसी पहेलियाँ पूछें जिसका जवाब गूगल के द्वारा खोजकर न दिया जा सके.
@बिना ठीक से पोस्ट पढ़े उस्तादी कर गए उस्ताद जी ,नारी कविताओं का ही बढ़ चढ़ मूल्यांकन किया करें न आप ..ये सब पोस्ट पर काहें कृपा दृष्टि डालते हैं :)
जवाब देंहटाएंआगे बढिए ..बख्शिए महराज !
बढ़िया चर्चा रही आपके एक कमेन्ट पर !
जवाब देंहटाएंब्लाग जगत में अक्सर पाठक लेख अथवा टिप्पणी की मूल भावना को नहीं देखते ! अक्सर कापी बुक स्टायल में जवाब चाहिए , मैं अक्सर इन शब्दों के फेर में फंस चुका हूँ ! एक बार मेरी बहुत बढ़िया और साफ़ सुथरी पोस्ट में भी यारों को राजनीति नज़र आ गयी ..हालत यह थी कि जिनके बारे में मुझे यह पता था कि वे मुझे खूब समझते हैं वे भी कमेन्ट करने नहीं आये !
और एक सीढ़ी साधी पोस्ट पर बार बार सफाई देनी पड़ी और यह सफाई मैंने उन्हें दी जिन्हें मैं विद्वान् मानता था जिनके लेख मैं बहुत श्रद्धा से पढता था ! जब से सावधान हो गया हूँ कि यहाँ किसी के बारे में कोई धारणा बनाना बेकार है ! अब सबको अपना गुरु मानता हूँ और वाकई सीख रहा हूँ अरविन्द भाई !
खैर आज बच गए आप वंदना जी के सहयोग से ...सो पार्टी देना चाहिए ....सादर !
:-))
सतीश भाई ई वंदना जी कौन हैं ?
जवाब देंहटाएंऔर हाँ इतने दिनों में दोस्त और दुश्मन शुभाकांक्षी और द्रोही समय की छननी से छन चुके ..अब यहाँ जो है खालिस लोग हैं !
जवाब देंहटाएंहा..हा...हा...हा....हा...हा....
जवाब देंहटाएंउस्ताद जी के लिए यह जवाब ...???
उस्ताद जी भी कह रहे हो और दरवाजा से ही भगा रहे हो यह ठीक बात नहीं डॉ साहब ..
अरविंद जी, चित्र पहेली को पहचान दिलाने का श्रेय आपको ही जाता है तस्लीम के द्वारा। शुरू में यह काम फिलर के रूप में शुरू हुआ था, जो काफी दिन तक चलता रहा, फिर बाद में कुछ दिनों के लिए बंद सा हो गया। तदुपरांत स्माल ब्रेक के बाद से यह लगातार जारी है।
जवाब देंहटाएंचँकि तस्लीम की पहेलियों को लोग पसंद करते हैं (पहेली के दिनों की टी आर पी अन्य दिनों से अधिक होती है), इसलिए आपकी व्यस्तता के कारण मैं इसे चलाने का प्रयत्न कर रहा हूँ। यदि आप इन्हें दुबारा संभाल लें, तो मेरे लिए आरामदायक रहेगा।
चूँकि मैं पहेली बूझता नहीं हूँ, इसलिए उस बारे में कोई कमेंट नहीं करूँगा। वैसे अल्पना जी ने दूसरे पक्ष को बहुत ही सुन्दर ढ़ग से रख दिया है।
6/10...आपकी इस पोस्ट के लिए।
जवाब देंहटाएं2/10...अल्पना वर्मा जी के कमेंट के लिए।
...शेष 2 अंक बचा कर रखा हूँ आगे आने वाले कमेंट के लिए।
...एक अनुरोध..यह अंक एक पाठक ने अपनी रूची के अनुसार दिया है, ऐसा समझा जाय...अन्यथा अर्थ न निकाले जांय।
यदि आप इन्हें दुबारा संभाल लें, तो मेरे लिए आरामदायक रहेगा।
जवाब देंहटाएंजाकिर जी अब कम करने का समय आप लोगों का है उम्र के बड़ों को आराम का तकाजा है ..
आप आराम करे और बड़े काम -अच्छी सोच है !
पहेली बूझना कोई आसान काम नहीं है !
और पूछना तो उससे भी दुष्कर !
और जिम्मेदारी का ..देख ही रहे हैं !
देवेन्द्र जी आज से आप ही मेरे नहीं ब्लागजगत के उस्ताद ...
जवाब देंहटाएंबस ६ अल्पना जी को २ मुझे कर दीजिये प्लीज ..
वैसे पोस्ट और टिप्पणी में कैसे तुलना हो सकती है ..मेरी पोस्ट है अल्पना जी की टिप्पणी ....
@ अल्पना जी ,
जवाब देंहटाएंसब से जटिल पहेली तो किसी इंसान का स्वभाव पहचानना है....
पहेलियाँ बूझें न बूझें उनके जवाब देख कर/पढ़ कर ज्ञान तो बढ़ता है ही ...
गूगल में ढूँढना बिना किसी पूर्व ज्ञान के संभव ही नहीं [मेरे विचार में]
सच ही !
So your post got
जवाब देंहटाएंtotal 8 out of 10..
ha! ha! ha!
What an evaluation!
all are becoming USTAAD!
New trend in hindi blogging.
I HATE IT!
CBSE stopped giving marks ,but here still old system is followed.
6/10...आपकी इस पोस्ट के लिए।
जवाब देंहटाएं2...अल्पना वर्मा जी के कमेंट के लिए।
...शेष 2 अंक बचा कर रखा हूँ आगे आने वाले कमेंट के लिए।
read that carefully.you did not understand?
2 marks will more make it 10 out of 10 .
आपका आचरण बहुत कुछ कह रहा है.
जवाब देंहटाएंकहीं आपकी उम्र साठ के आस-पास तो नहीं है ? अगर हाँ तो मुझे कुछ नहीं कहना है.
लगता है आप भी यहाँ उनमें से ही हैं जो अपने 10 -12 भक्तों के सहारे ही ब्लागिंग करना चाहते हैं.
जब कोई व्यक्ति इस तरह बमकता है और अनाप-शनाप कहता है तो उसकी अपनी कमजोरियां ही सामने आती हैं. इससे बचिए.
जी उस्ताद जी ,मजा आ गया आपकी गणित पढ़ कर ......
जवाब देंहटाएंमाडरेशन के लिए क्यों मजबूर कर रहे हैं .....गुमनामियों की कब से क्रेड बिलिटी होने लगी ....
आप पर कुछ कहा तो देखभाल कर ही कहा -काफी दिनों से आपके मूल्यांकन को देख रहा हूँ ...
आपका खेमा भी हम जान गए हैं ....वही जाईये ,रमिये ....यहाँ तो आपको दुर्दुराहट ही मिलेगी अब से ...
मेरी उम्र ३५ वर्ष है :) पहले भी कई बार बता चुका हूँ :)
पोस्ट और टिप्पणियां पढ़ कर आनंद आ गया। बाकी पहेलियां बूझने का धैर्य कभई नहीं रहा।
जवाब देंहटाएंऐन ओनी चूहा जी....
जवाब देंहटाएंमैं पहले ही लिख चुका हूँ कि यह अंक एक पाठक ने अपनी रूची के अनुसार दिए हैं कोई अन्यथा अर्थ न निकाला जाय।
अरविंद जी...
क्षमा करें मैने कोई उस्तादी नहीं करी...कभी-कभी विद्यार्थियों को भी अंक देने का मन करता है अपने गुरूजनो को। ...कोई तुलना भी नहीं है...जो विचार अच्छे लगे उन्हें बताने का एक तरीका मात्र है।
उस्ताद जी...
जिसने अपना पेशा आ बैल मुझे मार बना रखा हो उसे छोटे-मोटे जख्मो पर नहीं ध्यान देना चाहिये।
Hit post.Congratulations!
जवाब देंहटाएंThanks Spring!
जवाब देंहटाएंअरविन्द भाई
जवाब देंहटाएंक्षमा चाहता हूँ ! कृपया वंदना जी के जगह अल्पना जी पढ़ें ! वंदना जी कौन हैं ??
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपहेलियाँ तो मेरे पिताजी बुझा करते थे :):) बहुत मौके पर लगाया यह तीर ...
जवाब देंहटाएंवैसे पहेलियाँ बुझना बौद्धिक सकती को परखने का ही जरिया है ....कितना ज्ञान आप अर्जित कर चुके हैं ..कितना आपको पता है ... ..
लेकिन आज जब साधन ज्ञान बढ़ाने के उपलब्द्ध हैं तो लोंग उनका उपयोग करते हैं ...आप यही सोच कर प्रसन्न रहिये कि कम से कम लोगों का ज्ञान बढ़ तो रहा है ...
वैसे अल्पना जी कि बात से सहमत हूँ ...जब तक थोड़ा उस विषय में ज्ञान नहीं होगा तब तक गूगल बाबा भी मदद नहीं कर पाएंगे ...
कोशिश तो शुरुआत में हमने भी की थी ..पर अब सिर्फ पहले तस्लीम में पहेली देख लेते हैं और उत्तर आने पर पढ़ लेते हैं ....पर इस पर आपकी पोस्ट बहुत पसंद आई यह और फिर इस पर आये कॉमेंट्स ...हिट है यह भी ..:)
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत आनंद आया आपका लेख पढ़ कर मिश्रा जी ... टीवी बहुत कम देखना होता है इसलिय कभी लापतागंज देखा नहीं... अब लगता है देखना पड़ेगा ...:)
जवाब देंहटाएंमुझे भी पहेलियाँ बहुत पसंद हैं ... शिमला में सर्दी की छुट्टी होती है ... तो हम गाँव जाया करते थे .. वहा टीवी आदि तो था नहीं ... शाम को सब इकठ्ठा हो कर ... आग जला कर पहेलिआं आदि पूछने के खेल खेलते थे ... क्या दिन थे .. :)..
अब भी पसंद करती हूँ .. पर अब 'सुडोकू' बेहद पसंद है ... जब तक सुलझ नहीं जाता शांति नहीं पड़ती ... :):)
लाल भुझक्कड़ की सुलझाई पहेली पसंद आई ... :)
और 'खुरचन' का इंतज़ार रहेगा ... हाहाहा
शुभकामनायें
मेरे विचार से पहेली पूछकर भी सार्थक बात कही जा सकती है ।
जवाब देंहटाएं@ arvind ji,
जवाब देंहटाएं"Present sir, sorry for delay"
regards
@ Satish Saxena Ji,
जवाब देंहटाएं" reading with smile sir, no doubt very very interesting "
regards
@ Alpana Ji,
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी से 'पंगा लेने के बारे मे सोचने की ज़हमत भी न तो मैं ही कर सकती हूँ न ही सीमा जी..हम दोनों उनका बहुत सम्मान करते हैं और उनके ज्ञान और व्यवहार कुशलता के हम हमेशा ही कायल हैं.
regards
अल्पना जी की इस बात से हर्फ़ दर हर्फ़ सहमत...... हम अच्छे बच्चों की श्रेणी में आतें है हा हा हा हा हा हा ये हमारा मानना है तो पंगा जैसी चीज़ से हमारा दूर दूर तक कोई नाता ही नहीं है.
जवाब देंहटाएंऔर फिर आदरणीय अरविन्द जी जिनका हम सम्मान करते हैं और यकीन करते हैं उनसे तो हम सपने में भी सोच नहीं सकते.
हाँ हम ये जरुर कन्फेस करते हैं की काम की वजह से इतना समय नहीं मिलता की हम अपना सामान्य ज्ञान बढ़ा सकें, और इन पहेलियों के मध्यम से जो समय इन्हें बुझने में लगता है और अंतर्जाल पर इन्हें तलाश करने में लगता है उसकी वजह से जरुर दस चीज़ और सिखने को मिल जाती है. यही एक वजह हमे इन पहेलियों से जोड़े रखती है और रोचकता बनाये रखती है.
अच्छे बच्चों की तरह हमने अपना पक्ष रख दिया है , अब सम्मानीय जन जो फैसला करें , ख़ुशी ख़ुशी मंजूर है.
regards
पटाक्षेप :
जवाब देंहटाएंअब तक आयी टिप्पणियों से यह इंगित होता है कि अंतर्जाल की टिप्पणियों का अपना एक अलग फ्लेवर और कलेवर है और यहाँ नक़ल करके उत्तर देने की पूरी छूट है ....हाँ इस प्रक्रिया में पहेली बूझने वाले ज्ञानार्जन भी कर ले रहे हैं यह इस अंतर्जाल पहेली युग का सकारात्मक पहलू है -अन्यथा हमें कहीं भी इतनी छूट नहीं है -कौन बनेगा करोडपति में भी जुमा जुमा कुल चार ही और वह भी लाईफ लाईने हैं ....
निश्चय ही अंतर्जाल युग के कई पहेलीकर्ताओं का मिजाज और जायका इस विवाद से बिगड़ा होगा -कुछ लोग शीत निष्क्रियता की तैयारी में हैं तो कुछ कोप भवन को प्रस्थान कर भी चुके ...लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि असली पहेली प्रेमी कहीं नहीं जायेगें!
मुझे यह मानने में तनिक गुरेज नहीं कि नक़ल में भी अकल का इस्तेमाल होता है ....मगर मेरे मित्रों ,नक़ल तो नक़ल ही है उसे इतना गौरवान्वित और गरिमामंडित हम करे ही क्यों ?
अगर कोई पहेली पूछने वाला चीतल और बरगद तक नहीं पहचानता(अब जाकिर भाई का कुलीग वाला लेंम एक्सक्यूज चलिए मान लेते हैं) और बिचारे पहेली बूझने वालों को भी भ्रमित कर रहा है तो बेहतर है वह हिन्दी ब्लॉग अंतर्जाल पर कोई और सरल काम जैसे कविता वबिता लिखा करे :) -पहेली का काम जोखिम भरा है सबके बस का नहीं ...
जाकिर भाई अब आप ही सैकड़ा स्ट्रोक लगाईये ....और तस्लीम से पहेली को फिलहाल स्थगन दीजिये ....आगे किसी नए रूप में हम इसे दुबारा लायेगें !
@सीमा जी आप को साथ देख कर खुशी हुई.
जवाब देंहटाएंआप की बातों से सहमत .आभार.
-मुक्ति जी न जाने कहाँ हैं?
-पहेलियों के विषय में 'भूत भंजक जी' के विचार भी जानने की उत्सुकता है.
...तस्लीम पर पहेलियाँ बंद न करें क्योंकि आयोजन सफल है तभी १०० अंक का आंकड़ा छू रही है.
अरविन्द जी
जवाब देंहटाएंतस्लीम पर टिप्पणियां पढते हुए कल सोचा था कि पहेलियां 'आई क्यू टेस्ट' में गिनी जायेंगी या 'मेमोरी टेस्ट' में ? फिर ...इरादा किया कि आज पोस्ट लिखूंगा इस विषय पर लेकिन वक़्त ही नहीं मिला ! अब शाम को आपकी पोस्ट पर टिप्पणियों को पढकर इरादा तर्क किया !
मेरे हिसाब से आयोजकों को नियमावली पहले ही घोषित करना चाहिये थी,वो चाहे जैसे भी होती , मित्र अगर मर्ज़ी होती तो सहमत होकर पहेली बूझते या फिर नहीं !
व्यक्तिगत रूप से मैं इस विधा का क़ायल नहीं पर इस बात से सहमत हूँ कि हिंट बतौर लाइफ लाइन का प्रोसीजर इसमें पहले से ही मौजूद है , केबीसी ने अल्बत्ता गिनती चार कर दी !
मेरे ख्याल से तस्लीम को पहेली बूझन कार्यक्रम फिलहाल रद्द कर देना चाहिये क्योंकि इस कार्यक्रम से ज्ञान के बजाये वैमनष्य अधिक बढता दिखाई दे रहा है , व्यक्तिगत आक्षेप की हद तक ! यदि जरुरी हो तो इसे नये फार्मेट में शुरु किया जा सकता है !
एक बात और जो चलते चलते कहना ज़रुरी लग रही है :)
यहां छद्मनामधारी जी के कमेंट का एक वाक्य और तस्लीम में नामधारी जी के कमेंट का एक वाक्य हूबहू कैसे है ?
इस वाक्य में एक मंतव्य निहित है इसलिये बात कुछ खास हुई :)
अली भाई ,
जवाब देंहटाएंये मास्कधारी ऐसे ही होते हैं यानि मुंह और मुखौटा और ..
साथ ही यह भी कितने पुरानी और सच्ची बात है न कि परदेशियों से न अंखिया मिलाना ..हा हा
पहेलियाँ पूछना और बूझना दोनों आसान नहीं है. गुगल बाबा का क्या किया जाये जिनके पास बूझने और पूछने के साधन मौजूद हैं.
जवाब देंहटाएंपहेलियाँ अगर कौतूहल पैदा करता है तो सार्थक है अन्यथा गूगल बाबा हैं ही
@ यह हमें ही नहीं हमारी आने वाली पीढी की जुगुप्सा ,सहज जिज्ञासा और प्रतिभा के परीक्षण के लिए निश्चय ही एक शुभ लक्षण नहीं है ..
जवाब देंहटाएंजुगुप्सा के प्रयोग पर थोड़ा प्रकाश डालिए न!
hmm.....तो इतना सारा भाष्य हो चुका है इस मसले पर :)
जवाब देंहटाएंपहले दो तीन पहेली वाली पोस्टों पर मैं भी गया था लेकिन बाद में इच्छा ही नहीं हुई इस तरह के पोस्टो पर जाने की। इस तरह के पोस्टों पर जाना खुद ब खुद बंद कर दिया। यह मामला भी तब पढ़ा जब ब्लॉगजगत में राय मांगी गई थी कि बताओ किसको क्या दूं....वगैरह वगैरह।
सो, अपन तो बिन पहेलिये ही बहेलिये बने यदा कदा ब्लॉगजगत में घूमते हैं कि कहीं कोई अच्छी पोस्ट दिखे और बहेलिये की तरह शिकार कर उसका आनंद लें लिया, पढ़ लिया, गुन लिया।
यह नहीं कि अलहदा बातों को लेकर ऐसा नहीं तो क्यों... और वैसा नहीं तो फिर क्यों... यदि वैसा है ही तो फिर भला ऐसा ही क्यों नहीं :)
वैसे पोस्ट और टिप्पणीयां दोनों राप्चिक हैं। एकदम धुँआधार।
:-)
जवाब देंहटाएंप्रेमरस.कॉम
लाल बुझक्कड़ बूझते और न बूझे कोय
जवाब देंहटाएं-समीर लाल बुझक्कड़ बूझते और न बूझे कोय
सतीश सक्सेना जी मैं सोंच रहा हूँ, इंसान की पहचान नामक पहेली शुरू कर दूं.
जवाब देंहटाएंबूझे-बूझे लालबुझक्कड़ और ना बूझे कोय,
जवाब देंहटाएंपाँव में चक्की बाँध के हिरन छलांगा होय.
उस्ताद जी से सहमत.. जो पोस्ट को उत्तम कहे उसके मुँह में घी-शक्कर.. जो कमियों की तरफ इशारा करे उस पर जूतम-पैजार.. ये सही है जी.. :)
यह प्रतिक्रया मेल से प्राप्त हुयी -
जवाब देंहटाएंआप इस तरह की बातें आखिर क्यों करते हैं ?
आदरणीय अरविन्द जी
नमस्कार !!
आशा है आप प्रसन्नचित्त होंगे !
कल रात में मुझे दर्शन जी ने फोन किया !
मैं थोड़ा व्यक्तिगत मसलों में उलझा हुआ था !
मैं सवेरे से सब कुछ देख रहा हूँ ... आपकी पोस्ट भी पढ़ी !
चकित भी हूँ और दुःख भी है !
आप इस तरह की बातें आखिर क्यों करते हैं ?
क्या ऐसी बातें हम जैसे पहेली के शौकीनों के लिए अपमानजनक नहीं है ?
क्या आपको अंदाजा है कि इस पहेली के लिए हम लोग क्या-क्या सहते हैं ?
कितना समय बर्बाद करते हैं ?
कितनी ही बार तो नुकसान का सामना भी करना पड़ता है !
आपने एक पंक्ति में सब धो के रख दिया !
एक बात और
ध्यान दीजियेगा
जीतने वाला हमेशा २-४ मिनट के भीतर ही सही जवाब देता है !
आपके लिए ये मजाक है ?
मजा तो तब है कि आप भी ऐसा करके दिखाएँ !
तब मैं आपकी हर एक बात मान लूँगा !
आईये खेल के मैदान में !
ज्यादा कुछ कहूँगा तो स्वयं का गुण गान होगा !
फिर भी अगर किसी तरह की शंका हो तो कुछ प्रमाण आपको दिखाना चाहूँगा !
ऐसे प्रमाण जिसमें गूगल जैसी चीज के बिना भी स्वयं को साबित किया है !
वो भी एक प्रमाण नहीं पचासों प्रमाण !
एक छोटा सा प्रमाण देता हूँ
पता कीजियेगा आप
लखनऊ में एफ एम जीनियस मैं चार बन चुका हूँ
मेरे अलावा कोई दो बार भी नहीं बन पाया आज तक
ये क्विज प्रोग्राम ओन लाईन होता है !
--
प्रकाश गोविन्द
लखनऊ
www.aajkiaawaaz.blogspot.com
मेरा जवाब -
जवाब देंहटाएंआप इस तरह की बातें आखिर क्यों करते हैं ?
इसलिए कि हम किसी कट्टर साम्यवादी या इस्लामी देश के वासी नहीं हैं
आदरणीय अरविन्द जी
नमस्कार !!
नमस्कार जी ,
आशा है आप प्रसन्नचित्त होंगे !
मैं ज्यादातर प्रसन्नचित्त ही रहता हूँ ...
कल रात में मुझे दर्शन जी ने फोन किया !
तो वे आपको फोन करते हैं ,यह तो अच्छी बात है
मैं थोड़ा व्यक्तिगत मसलों में उलझा हुआ था !
उस्ताद जी ने पोस्टों को पढने का काम आपको ही तो ठेके पर नहीं दे दिया है :)
मैं सवेरे से सब कुछ देख रहा हूँ ... आपकी पोस्ट भी पढ़ी !
देखिये न भाई ईश्वर ने दो आँखे इसलिए ही दी हैं ,कृपा की आपने मेरी पोस्ट पढ़कर
चकित भी हूँ और दुःख भी है !
भला क्यों ,ऐसा क्या हो गया -दुखती रंग दबी क्या ?
आप इस तरह की बातें आखिर क्यों करते हैं ?
हम सिरफिरे हैं जी ,पागल दीवाना
क्या ऐसी बातें हम जैसे पहेली के शौकीनों के लिए अपमानजनक नहीं है ?
आलोचनाएँ अपमान कब से होने लगीं
क्या आपको अंदाजा है कि इस पहेली के लिए हम लोग क्या-क्या सहते हैं ?
नहीं जी ,मगर क्यूं ?
कितना समय बर्बाद करते हैं ?
अपने लिए या समाज के लिए
कितनी ही बार तो नुकसान का सामना भी करना पड़ता है !
अपने लिए या समाज के लिए
आपने एक पंक्ति में सब धो के रख दिया !
मैंने अपना पक्ष रखा है और वह मैं अपनी जिम्मेदारी समझता हूँ
एक बात और
ध्यान दीजियेगा
जीतने वाला हमेशा २-४ मिनट के भीतर ही सही जवाब देता है !
आपके लिए ये मजाक है ?
प्रतिभा का दुरूपयोग मजाक से भी बढ़कर है
मजा तो तब है कि आप भी ऐसा करके दिखाएँ !
मैंने ऐसे मजे लेने कबके छोड़ दिए ,१९८७ में आकाशवाणी की सलाहकार समिति में विज्ञान कार्यक्रमों का परामर्शदाता था तो वैज्ञानिक क्विज कार्यक्रम जो डॉ अरविन्द दुबे एम डी देखते थे ,मेरे पर्यवेक्षण में होता था ..यह केवल इसलिए बता दिया कि अब मुझे निरा गोबर गणेश ही मत मान लीजिये :)
तब मैं आपकी हर एक बात मान लूँगा !
आईये खेल के मैदान में !
ललकारिये मत नकलबाजी के लिए जी ,मै बौद्धिकता को दागदार नहीं करना चाहता ..और जो खेल आप खेल रहे हैं वह मेरे मन का नहीं है
ज्यादा कुछ कहूँगा तो स्वयं का गुण गान होगा !
फिर भी अगर किसी तरह की शंका हो तो कुछ प्रमाण आपको दिखाना चाहूँगा !
ऐसे प्रमाण जिसमें गूगल जैसी चीज के बिना भी स्वयं को साबित किया है !
वो भी एक प्रमाण नहीं पचासों प्रमाण !
एक छोटा सा प्रमाण देता हूँ
पता कीजियेगा आप
लखनऊ में एफ एम जीनियस मैं चार बन चुका हूँ
मेरे अलावा कोई दो बार भी नहीं बन पाया आज तक
ये क्विज प्रोग्राम ओन लाईन होता है !
मैंने भी अपना एक प्रमाणपत्र ऊपर दे दिया है ...
आपकी एक फैन ने मुझे पहले से ही काफी खरी खोटी सुना दी है ,मैं यही दुआ करता हूँ कि आप वह स्वयं न हों !
मुझे नकाब और मुखौटे लगाए लोग सख्त नापसंद हैं ,यहाँ अपवाद केवल उन्मुक्त जी हैं!
आपके और प्रकाश गोविन्द जी के सवाल जवाब कुछ कुछ रहस्यमय और एक दूसरे पर शंका लिए हुए लगते हैं !
जवाब देंहटाएंआपकी उपरोक्त पोस्ट मेरे विचार से विवादित नहीं होनी चाहिए, इन्टरनेट से सर्च कर दिए गए जवाब कुछ दिनों में ईनाम पाने वाले को ही याद नहीं रहेंगे औरों के ध्यान देने की तो बात ही छोड़ दें ! इस प्रकार की पहेली पोस्ट को पसंद एक विशेष वर्ग ही करेगा और शायद इसीलिये इस प्रकार की पोस्ट लिखी जा रही हैं ! अगर एक विशेष वर्ग में लेखक और पाठक दोनों खुश हैं तो हमें क्या फर्क पढता है ........??
उन्हें आनंद लेने दीजिये !
गूगल से उत्तर तलाश कर, जवाब देना केवल नक़ल प्रवृत्ति को ही बढ़ावा देता है ! ऐसा आनंद नटखट बच्चे उठाते रहे हैं और ऐसे बच्चों की आज भी कमी नहीं है .......
क्यों न उन्हें आनंद लेने दिया जाये ??
भारी भरकम बुद्धि के यह लोग जब मुस्कराते भी हैं तो लगता है, धन्य कर दिया वे इन प्रश्न पहेलियों को न ही पढ़ें तभी ठीक है !
बच्चों को खुश होने दो यार.......
@ सतीश सक्सेना जी
जवाब देंहटाएं"आभार किसी को तो नटखट बच्चों का ख्याल आया हा हा हा हा "
regards
ओ जी हूँण मुकावो वी गळल नुं !!!
जवाब देंहटाएंपंजाबी वाक्य
मतलब
अब बात(मामला) खत्म कर दी जाए
सादर
जवाब देंहटाएंउस्ताद जी जो भी हैं ...नाटकीय हैं !
उद्देश्य युक्त मार्किंग करके यह सिर्फ कुछ लोगों को खुश करने व अपने अनुयायियों को बढ़ावा देने की सोची समझी बेईमानी है ! ऐसी प्रवृत्तियों को नकारा जाना चाहिए !
खुद को विश्व का उस्तादजी बताने की प्रवृत्ति से ही इस व्यक्ति की मानसिकता का पता चल जाता है ! ऐसे बुद्धिधारी लोगों से और ईमानदारी की अपेक्षा क्यों करें ??
अफ़सोस है कुछ लोग इनकी तारीफों के कसीदे पढ़ते हैं ....
जिन अनामियों द्वारा दूसरों की निंदा करना स्पष्ट उद्देश्य हो उनकी प्रतिक्रिया नहीं छापना चाहिए !
अगर किसी का विरोध करना ही हो तो वही बात हँसते हुए अथवा शिकायती लहजे में भी, की जा सकती है ! इसके लिए हम लिख कर विरोधी विचारों का नाम लेकर अपमान करें, यह सिर्फ हमारी कुत्सित भावना का परिचायक है और कुछ नहीं !
क्या बात कही है सतीश जी! पूरा इत्तेफाक है !
जवाब देंहटाएं८.९५/१०
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट.
बधाई
प्रणाम
शुभकामनाएं.
मानव स्वभाव :
जवाब देंहटाएंजीवन से जुड़े सभी समस्यायों का जवाब मेरे पास नहीं है . भौतिकी
और गणित यह तो बता सकते हैं कि ब्रह्मांड विकसित कैसे हुआ , मगर ज्यादा कारगर नहीं हैं मानव स्वभाव का अंदाजा लगा सकें क्योकि यहाँ बहुत समीकरण हैं -मैं और की तुलना
में खुद को असफल पाता हूँ जानने में कि लोगों को अच्छा
क्या लगता है ,खासकर औरतों को!
स्टीफेन हाकिंग
टिप्पणियाँ देख कर लगता है कि पहेली सुलझने के बजाये उलझ गयी है।तभी तो मुझे केवल जीवन की पहेली सुलझाने मे अधिक आनन्द आता है। काफी ग्यान बढा यहाँ आ कर। सभी को शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंचलो बधाई हो सभी को..................... भुकंप शांत हो गया.........................:)
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढ़ी, आपके पटाक्षेप तक की टिप्पणियाँ भी.
जवाब देंहटाएं@ अल्पना जी, आपने याद किया तो मैं आ गयी. थोड़ी देर ज़रूर हुयी. इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अरविन्द जी की बात सही है, लेकिन आपकी भी बात ठीक है कि गूगल पर खोजने के लिए भी थोड़ा पूर्व ज्ञान आवश्यक है.
पूरी पोस्ट और टिप्पणियाँ पढ़कर अच्छा लगा क्योंकि विषय पर गंभीरता से चर्चा हुयी है.
आदरणीय श्री अरविंद मिश्रा जी नमस्कार,
जवाब देंहटाएंसर आपने एक बहुत ही अच्छा मुद्दा उठाया है,
आपने यहाँ कई बातें कही, मुझे कुछ समझ में आया कुछ नहीं.
कारण यह कि मैं अन्य लोगों की तरह इतना ज्ञानी और समझदार नहीं हूँ.
मै इस चिट्ठाजगत मे नया हूँ, और इसकी विशेषताओं से भी अंजान हूँ.
आप लोगों से उम्र और ज्ञान में तो न जाने कितना छोटा हूँ.
पर सर मुझे यहाँ एक बात बहोत बुरी लगी..........
जानते हैं क्या..............................?
आपने अपनें टिप्पणीयों में किसी के ई-मेल को शामिल कर लिया है.
मेरी दृष्टि में आपने ये बहोत गलत किया.
जब किसी ने आपसे इस पोस्ट के संबंध में एक निजी ई-मेल करके आपसे कुछ पुछना चाहा तो आपने उन बातों को यहाँ टिप्पणी बॉक्स में शामिल कर लिया............
और आपने उसका उत्तर भी यहीं देना उचित समझा.................?
आखिर ऐसा क्यों.......................?
मैं जानता हूँ कि मै छोटा मुँह बड़ी बात कर रहा हूँ..........
पर क्या करूँ ये बात मुझसे सहन नहीं हुई.....
मै ये बात बहोत पहले कहना चाहता था............
पर ना जाने क्यों मैं चाह कर भी आपसे ये नहीं कह पाया............
लेकिन आज ये कह रहा हूँ.........
इस दृष्टता के लिये यदि आप मुझे कोई द्ण्ड भी देंगे तो वो सहर्ष स्वीकार है....
@आंशिक सहमति -ई मेल की पूरी बात नहीं बताई गयी और नाम गोपनीय रखा गया .यह कम नहीं है बाकी असहमति का अधिकार आपको पूरा है ..मैं खुद व्यक्ति पूजा नहीं पसंद करता
जवाब देंहटाएं@ नाम कहाँ गोपनीय है...........वो तो सीधा दिख रहा है.
जवाब देंहटाएंआशीष जी ,बहुत कुछ है जो नहीं भी दिखा ,सारा मामला इसलिए थोडा अप्रिय हुआ कि एक मोहतरमा ने जो बुर्के के पीछे कोई और है ने मेरे विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की ....जिसका जवाब तस्लीम पर मैंने दिया ..उन्होंने फिर अहमकाना जवाब दिया ..वे मोहतरमा ई मेल वाले शख्स से जुडी हैं या वे वही भी हो सकती हैं ..मुझे मुखौटे और दुरभिसंधियां बेहद नापसंद हैं ..और मैं उनके प्रति रिएक्टिव होता हूँ ..इसलिए इतना मेरी दृष्टि में जरूरी था .....आप पूरे परिप्रेक्ष्य को देख नहीं पा रहे हैं -मुझे अपना फोन नंबर दें आपसे बात भी कर सकता हूँ !
जवाब देंहटाएंकिसी भी मुद्दे पर आलोचना प्रत्यालोचना एक स्वस्थ विचारधारा है और उसे अगर कोई कलेजे पर लेता है तो ले ,बला से !