ब्लॉग जगत में होली की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है .नाम ले ले कर उपाधियाँ
बांटी जा रही है . हम भी कभी इस तरह की कल्पनाशील सृजनात्मकता दिखा कर
लोगों की वाहवाही तो कम गालियाँ ज्यादा बटोरते थे। कई मित्रों से जो मन
मुटाव हुआ तो लम्बे अरसे बाद काफी मान मनौवल के बाद ही मामला सुलट पाया .
इसलिए हम अब इस जोखिम के काम को लेकर उदासीन हो चले हैं। मगर ब्लॉग जगत की
इस नयी सुगबुगाहट के बाद सुषुप्त पड़ चली मसखरी फिर जोर मार रही है .
मगर ना
बाबा ना ..नाम के साथ तो मैं कोई उपाधि जोड़ना नहीं चाहता। मुझे याद है
इंटर मीडिएट के दौरान मेरा एक मित्र उसे मिली उपाधि को लेकर अच्छा ख़ासा
नाराज हो गया .उपाधि थी -देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर . अब वो गधा
मेरे पीछे ही पड़ गया कि वह कौन सा गंभीर घाव पैदा करता है .उसे लाख समझाता
कि यार यह तो मुहावरा भर है मगर वो माने तब ना,उसे तो तो बस यही सवाल
करते रहने की जैसे सनक सी हो गयी थी . जब मैं इलाहाबाद युनिवर्सिटी के
ताराचंद छात्रावास में था तो होली के अवसर पर एक मित्र के लिए जो टाईटल
चुना गया वह था -"दमित इच्छाओं के मसीहा" ..इतना बुरा मान गया वह कि
हमारी बोल चाल भी बंद हो गयी . अब ब्लॉग जगत में तो कितने मित्रों ने तो
पहले से ही बोलचाल बंद कर दी है और अब अगरचे मैं कोई होली की उपाधि किसी के
साथ चेंप या सटा दी तो जुलुम ही हो जाएगा -तो भैया ऐसी रिस्क लेने को मेरी हिम्मत नहीं है .
होली की उपाधि देने की परम्परा बड़ी पुरानी है, और यह पढ़े लिखे लोगों का एक शगल है -होली के अवसर पर हंसी मजाक करने का बस -इसे दिल पर लेने की बात ही नहीं होनी चाहिए .मगर यह भी सही है कि प्रायः उपाधि देने वाले का निजी मूल्यांकन किसी के बारे में काफी भावनिष्ठ हो जाता है -उपाधि पाने वाले को चोट सी लगती है कि अरे लोग मेरे बारे में ऐसा सोचते हैं,जबकि मैं तो ऐसा नहीं , लोग कहें भले न कई बार उपाधियाँ लोगों को चुभ जाती हैं -मगर फिर भी उचित तो यही है कि इन्हें गंभीरता से न लिया जाय ,बस हल्के फुल्के ही लिया जाय . अभी ब्लॉग जगत में कुछ और उपाधियाँ नामचीन ब्लागरों से और आने वाली हैं ऐसी अन्दर की खबर मुझे मिली है और मैं मानसिक रूप से खुद को उन्हें हंसी खुशी स्वीकार करने के लिए तैयार कर रहा हूँ और आपसे भी यही गुजारिश है .वैसे कभी कभी दूसरों की निगाहों से खुद का मूल्यांकन जरुर करना चाहिए!
होली की उपाधि देने की परम्परा बड़ी पुरानी है, और यह पढ़े लिखे लोगों का एक शगल है -होली के अवसर पर हंसी मजाक करने का बस -इसे दिल पर लेने की बात ही नहीं होनी चाहिए .मगर यह भी सही है कि प्रायः उपाधि देने वाले का निजी मूल्यांकन किसी के बारे में काफी भावनिष्ठ हो जाता है -उपाधि पाने वाले को चोट सी लगती है कि अरे लोग मेरे बारे में ऐसा सोचते हैं,जबकि मैं तो ऐसा नहीं , लोग कहें भले न कई बार उपाधियाँ लोगों को चुभ जाती हैं -मगर फिर भी उचित तो यही है कि इन्हें गंभीरता से न लिया जाय ,बस हल्के फुल्के ही लिया जाय . अभी ब्लॉग जगत में कुछ और उपाधियाँ नामचीन ब्लागरों से और आने वाली हैं ऐसी अन्दर की खबर मुझे मिली है और मैं मानसिक रूप से खुद को उन्हें हंसी खुशी स्वीकार करने के लिए तैयार कर रहा हूँ और आपसे भी यही गुजारिश है .वैसे कभी कभी दूसरों की निगाहों से खुद का मूल्यांकन जरुर करना चाहिए!
मेरे मन में भी कई उपाधियाँ तैर रही हैं -सुषुप्त सा शरारती किशोर जाग सा गया है . उपाधियाँ ही उपाधियाँ हैं आप लोग खुद अपने मन से स्वयंवर कर लें -चुन लें इनमें से-मुझे इनके साथ नाम नहीं देना है .
सनम बेवफा , फौलादी शख्सियत के नाम बड़े और दर्शन छोटे , मेरे तो पिया परमेश्वर दूजो न कोई,दोस्त दोस्त ना रहा , इतने पास न आना अगर चाहते हो मुझे पाना ,मुझे पता है औकात सभी की ,हमाम में मैं ही नहीं सभी नंगें हैं , हम तो दिल दे चुके सनम .दाल भात में मूसल चंद ,मैं हूँ इक चिर विरही , परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर ,कोई मेरी भी तो सुनो , सलाह ले लो भाई सलाह ले लो , मुझे छपास रोग लगा रे , मैं तो प्रेम दीवानी ,आजा मेरी प्यास बुझा जा ...जवानी बीती जाय रे ....अब अंत में क्या ख़ाक मुसल्मा होंगें?, मेरा जूता है जापानी पतलून लखनवीं ,घर में तो पिया, मगर दिल किसी और को दिया, मैं हूँ परदेश मगर दिलवर है उस देश , नादान बालमा, विरही सौतन आदि आदि .दोस्तों से गुजारिश है वे अपना भी योगदान कर सकते हैं ,उनका नाम गुप्त रखा जाएगा! ......ये सभी पर्सनालिटी ट्रेट यही अपने ब्लॉग जगत में भी है -अपनी पसंद की आप खुद चुन लो और मुझे मत कोसिएगा ....
आप सभी को होली की ..नहीं नहीं अभी वक्त है -होली की शुभकामनाओं के लिए थोड़ा और इंतज़ार करिए-हाँ फागुन चकाचक बीते !
होली पर उपाधि बड़ी सटीक मिलती है ,,, पर इसका बुरा नही मानना चाहिए,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: होरी नही सुहाय,
हमें कोई भी पसंद नहीं. एक्को हमरे लायक नहीं...
जवाब देंहटाएंएक्को हमरे लायक नहीं...धन्यवाद आपने तो अपना खुद चुन लिया -मैंने लिया चुन की तर्ज पर :-)
हटाएंआप सुधरेंगे थोड़े ही :)
हटाएंबहुत बढ़िया, घुमा फिरा के सब को सूट कर ही जायेंगीं ... :)
जवाब देंहटाएंहोली की उपाधियों का एक अलग सा आनंद है. हाँ मैंने भी इस दौरान लोगो को रार करते देखा है.
जवाब देंहटाएं'परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर' पसंद की है अगर आपको आपत्ति ना हो तो :)
जवाब देंहटाएंआपकी कल्पनाशीलता और सृजनात्मकता गड़बड़ा गयी है। बहादुरी तो और चौपट। अरे देना चाहिये था कुछ झन्नाटेदार उपाधियां। कुछ दिन मजे होते।
जवाब देंहटाएंवैसे यह बात भी सही है कि आमतौर पर लोग अपने लिये कोई ऐसा टाइटिल मिलने से दुखी और कभी-कभी नाराज तक हो जाते हैं, जिसके लिये वे अपने को उपयुक्त नहीं समझते। जैसे हम आपको जब भी वैज्ञानिक चेतना संपन्न ब्लॉगर कहते हैं तो आपकी सुलग जाती है (ऐसा आपने खुद बताया है) जबकि आप वैज्ञानिक चेतना संपन्न भी हैं और ब्लॉगर भी।
और लोगों के भी किस्से हैं लेकिन उनके बारे में आपके कमेंट बॉक्स में लिखेंगे तो वे आपसे भी दुखी हो जायेंगे और हमसे भी। क्या पता कोई फ़ोनियाये भी- अनूप भाई ये हमको अच्छा नहीं लगा।
वैसे कुछ झन्नाटेदार उपाधियां बांटनी चाहिये आपको। अभी भी समय है। :)
"वैसे कुछ झन्नाटेदार उपाधियां बांटनी चाहिये आपको। अभी भी समय है।"
हटाएंअनूप जी की इस बात से मैं सहमत हूँ।
खुद ही बाँट देते तो अच्छा होता ...
जवाब देंहटाएंनाम गुप्त रखने का कार्य और सुझाव, आप तो ऐसे ना थे :)
जवाब देंहटाएंहंसी मजाक के तौर पर उपाधियाँ ठीक है , मगर दुश्मनी निभाने के लिए नहीं !
बिना नाम की उपाधियाँ होली की महान परंपरा के खिलाफ है अरविन्द भैया. और फिर ऊपर से आपकी उपाधियाँ भी बड़ी शाकाहारी सी हैं..(महान जनता से होलियाना आग्रह है कि इसे नान-वेज के रूढ़ी अर्थ से ना जोड़े).. थोड़ी चमकीली हों उपाधियाँ, थोड़ी मसालेदार तब न बात बने.
जवाब देंहटाएंऐसे जैसे आपके लिए- इस दो टकिया की नौकरी में मेरा लाखों का जोबन जाय (क्या-क्यों कैसे)
मुक्ति- मैं तो प्रेम दीवानी नारीवादी..
ब्लॉग जगत में कम ही लोगों को जानता हूँ तो अन्यों को नहीं दूंगा.
समर, वो तो सब ठीक है मगर तुमने यौवन को जोबन क्यों लिखा है ? :-)
हटाएंएक तीर से दो शिकार करने की पुरानी आदत -है न ? :-)
दो ठो ताराचंदिहा मिल जायं तो और ना का होय :)
हटाएं@समर, और अपनी उपाधि पर- मंजूर है. तुमसे बेहतर कौन जान सकता है दोस्त. प्रेम के पीछे जग छूटा, रिश्ते-नातों से नाता टूटा :)
is blog ke sabhi pathkon ko
जवाब देंहटाएंfagunaste
mouj-ras moujoon rahe.......maouj bani rahe.....'upadhiyon' ka kya..
'parikalpana' walon se out-source kar liya jayega........
holinam
आग़ाज तो जोरदार है . देखना दिलचस्प होगा कि आगे कैसे बबूला फूटता है और कितने रंग बिखरते हैं..
जवाब देंहटाएं....ये भी कोई होली है ! अरे खोल के रख देते तो भी कोई बुरा न मानता ।
जवाब देंहटाएंइसमें सब कॉमन उपाधियाँ हैं,किसी की पहचान मुश्किल है।
जो फर्रुखाबादी नहीं होते वे कभी नहीं खोलते -हम तुम्हारे जैसे चेले के चढावे पर कामदेव की पहाडी पर नहीं चढने वाले :-(
हटाएंजय बोल कन्हैया लाल की ........फेसबुक विहारी लाल की .
जवाब देंहटाएंजय बोल कन्हैया लाल की ........फेसबुक विहारी लाल की .ब्लोगिया डोरे -लाल की ....
जवाब देंहटाएंअजी होली पर तो महा -मूर्ख सम्मलेन होते हैं -गर्दभ -नरेश का चयन होता है .वैशाख नंदन का भी .
koi bhi pasand nhi aayi :)
जवाब देंहटाएंऊंचे लोग ऊँची पसंद :-)
हटाएंहोली हो मजाक न हो ... हंसी ठल्ला न हो तो होली क्या हुई ...
जवाब देंहटाएंओर ये तो आम उपादियाँ हैं ... कोई बुरा नहीं मानेगा ...
बुरा कह के कह दो -- बुरा ना मानो होली है। ये होली भी बड़ी ठिठोली है। :)
जवाब देंहटाएंहम सडक पर पडे हुये रूपये तक नही उठाते फ़िर फ़ेंकी हुई उपाधि क्या उठायेंगे? जो भी देना हो इज्जत से जूते मारकर दिजिये, सर माथे लगाकर लेंगे.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
तुम भी गुनाहगार हो दोस्त उनको बेवफा बनानें में
हटाएंहे भगवान, फ़िर तो हम भी गुनाहों के देवता हो गये? यह भी कबूल है जी.:)
हटाएंरामराम.
लीजिये हमारा योगदान
जवाब देंहटाएं.
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’मो सम कौन कुटिल खल....’
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकर दिया न आपने गुस्सा होने वाली बात!
हटाएं:)..आगाज़ ये है तो अंजाम क्या होगा..१० दिन शेष हैं!
जवाब देंहटाएंभाई साहब प्रणाम आपका काम बड़ा चोंखा रहता है . आभार सहित अग्रिम चरण स्पर्श
जवाब देंहटाएंचुनावी साल में मौनी बाबा कुछ मसलों पर कठोर कदम उठाने की बात करा रहे हैं .
जवाब देंहटाएंकैसा रहेगा - चिल्लाया -चिल्लाया, मुर्दा कफ़न फाड़ कर चिल्लाया
अब ये क्या बात हुी कि खुद ही चुन लो ऐसा कहीं होता है । हिम्मत तो होन चाहिये ऐसे काम में ।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
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'हमाम में मैं ही नहीं सभी नंगें हैं'
वाह !
'मुझे पता है औकात सभी की'
भी अच्छी है !... :)
अपने लिये उपाधि तो अब आप खुद ही बता दिये हैं... 'इच्छाओं (वर्जित) के खुल्लमखुल्ला प्रदर्शन के सरताज'... हा हा हा... बुरा न मानिये होली है... पहले वाली टीप हटा रहा हूँ (आपका गुस्सा झेलने का दम अपन में नहीं है)...
...
अजी चारों तरफ हुडदंगी लाल हैं इन दिनों उपाधि दो न दो क्या फर्क पड़ता है .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंकभी कभी सोचता हूं कि अगर त्यौहार नहीं होते तो !
जवाब देंहटाएंthere's one for everyone :P
जवाब देंहटाएंभाई साहब किसी को चुप्पा /चुप्पा सिंह न कहना बुरा मान जाएगा .गाली है आजकल अपभाषा है किसी को चुप्पा कहना .शुक्रिया आपकी सम -सामयिक टिप्पणियों का .
जवाब देंहटाएंहोली पर उपाधि हमें तो अभी इस नई परंपरा का पता चला है । हम भी एक दो लोगो को उपाधि दे ही देते है ।
जवाब देंहटाएंनाम के साथ भी उपाधियाँ देते तो और भी बेहतर होता. उल्लास और उत्साहमय होली की हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंज़नाब की टिपण्णी ने हौसला बढ़ाया .सब कुछ कहना होली पे किसी को "चुप्पा "/चुप्पा सिंह न कहना ,बुरा न मानो होली है .
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