सुनीता शानू जी के नए कविता -संग्रह 'मन पखेरू उड़ चला फिर ' की मानार्थ प्रति मिली तो शीर्षक ने मन में बहुत उमड़ घुमड़ मचाया। अभी तक तो प्राण पखेरू का रूढ़ प्रयोग हिन्दी में दुखद संदर्भों में आया है मगर यहाँ मन पखेरू के उड़ने के सर्वथा नए प्रयोग ने चौका सा दिया . यहाँ मन का पखेरू शरीर के प्रतिबंधों से दूर उन्मुक्त विचरण के लिए उड़ चला है .बंधनों से चिर आजादी का यह भाव और इस नए बिम्ब प्रयोग को स्वीकार करने में कोई असहजता संग्रह को पढ़ने के बाद नहीं बची थी . किताबों की समीक्षार्थ/ मानार्थ प्रतियाँ मिलने पर मैं उन्हें आदतन तुरंत नहीं पढता बल्कि अपनी स्टडी मेज या फिर ड्राईंग/लिविंग कक्ष की मेज (यहाँ राबर्ट्सगंज में टू इन वन या इन आल इन वन ही कहिये ) पर छोड़ कई दिन निहारता रहता हूँ . फिर बहुत ही अहतराम से उठा पढने में मुब्तिला हो उठता हूँ . अभी कल ही संग्रह की अंतिम कविता तक पहुंचा हूँ .
कविता संग्रह बहुत ही मौके से मिला है मुझे -फागुनी बयारों के बीच फागुनी कविताओं ने कहर ही ढा दिया है समझिये :-) .मैंने अपने मन को गहरे स्पर्श कर गयी एक कविता को फेसबुक पर भी शेयर किया . देखिये मैं हिन्दी साहित्य का मनई तो हूँ नहीं तो मुझे समीक्षा कर्म वगैरह आता नहीं और उसके प्रतिमानों और अनुशासनों से सर्वथा अनभिज्ञ भी हूँ इसलिए इसे कृति की समीक्षा न माना जाय .यह एक सुहृद के प्रति मेरी कृतज्ञता ज्ञापन का बस विनम्र उपक्रम भर है -सुनीता शानू जी से विगत वर्ष मेरी भेंट लखनऊ के ब्लॉगर परिकल्पना दशक सम्मान में हुयी थी -उनकी विनम्रता, सहजता,सरलता ने क्षणों में ही अपरिचय की औपचारिकताओं को छू मंतर कर दिया था . तब मुझे यह बिल्कुल भान नहीं था कि मैं एक उदीयमान प्रतिभाशाली कवयित्री के चंद घंटों के सानिध्य में मैं हूँ-वे दिल्ली लौटीं और फिर उनकी स्मृति उनकी फागुनी कविताओं के साथ सहसा लौट आयी हैं .
मन पखेरू का मूल स्वर उन्मुक्तता/जड़ बंधनों से आज़ादी का तो हैं मगर डोर को पूरी तरह से स्वच्छंद छोड़ देने की हिमायती भी कवयित्री नहीं है। उनकी कविता डोर की अंतिम पंक्तियां यही तो कहती हैं - 'सच है डोर से बंधी होती तो पूरा न सही होता उसका भी अपना एक आकाश' ...संग्रह की आख़िरी कई कविताओं ने ख़ास प्रभावित किया जो मेरी अपनी पसंद है -कवयित्री या प्रकाशक/सम्पादक ने कविताओं के चयन क्रम को अपने ढंग से रखा होगा . आनंद कृष्ण जी की इस पुस्तक से सम्बन्धित समीक्षा संग्रह के शुरू में ही है और यह इतनी सम्पूर्ण है कि उसके बाद किसी के लिए भी समीक्षा के लिए कुछ बचता ही नहीं . उन्हें इस संग्रह की कविताओं में एक संभावनाशील कवयित्री की पदचाप सुनायी दी है और मैं उनसे सहमत हुए बिना नहीं रह सकता . सुनीता जी ने प्रेम की सघन अनुभूतियों की ही अभिव्यक्ति नहीं की है बल्कि कई सामाजिक विडंबनाओं को भी सटीक उकेरा है -इस लिहाज से कन्यादान, ऐ कामवाली,माँ रचनाएं बहुत सशक्त बन पडी है . संग्रह की सबसे बड़ी खासियत है कविताओं का अपने पाठकों से सहज संवाद -इन कविताओं में अमूर्तता नहीं है,निर्वैयक्तिकता नहीं है. जीवन के पल प्रतिपल के अनुभवों से लबरेज हैं ये कवितायें!
कृति
हिन्द -युग्म ने बहुत सलीके से और एक स्लीक लुक के साथ इस कविता संग्रह को प्रकाशित किया है -प्रशंसा के मेरे दो शब्द प्रकाशक के लिए भी हैं। मुझे एक लम्बे समय बाद एक कविता संग्रह ऐसा मिला है जिसकी अधिकाँश कविताओं ने मुझसे सहज संवाद किया है। अंत में वो फेसबुक वाली कविता आपको पढ़ाना चाहता हूँ-
और वहां मेरा कमेन्ट था- सारे पहरेदार या तो मौकाए वारदात पर सोये रहे या गुनाह के खामोश भागीदार हुए। :-) सुनीता शानू जी को उनके प्रथम कविता संग्रह के प्रकाशन पर बहुत बहुत बधाई!
बहुत ही सार्थक प्रस्तुतीकरण,अभार.
जवाब देंहटाएंBAHUT BADHIYA LIKHA APANE .ABHI USKA KAAWY SANGRH PADH NAHI PAAYI HUN ...AAPNE ACCHA LIKHA HAI ....SUNITA BAHUT SAHAJ SARAL HAIN ...BADHAAI :)
जवाब देंहटाएंसुनीता शानू जी को कविता संग्रह के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई!!
जवाब देंहटाएंइस प्रस्तुतिकरण के लिए आपका आभार!!
सार्थक समीक्षा ........पर सुनीता जी ने हम को पढ़ने को नहीं दी अभी ये पुस्तक :(
जवाब देंहटाएंआपने पढ़ने की ललक जगा दी..
जवाब देंहटाएं...आपने बता ही दिया है कि आप कोई समीक्षा नहीं कर रहे हैं,बस यह कृतज्ञता-ज्ञापन भर है और वास्तव में यह महज़ आभार-प्रकटन है.
जवाब देंहटाएंसुनीता जी का काव्य-संग्रह मुझे पुस्तक मेले में ही मिल चुका है पर गठरी इतनी भारी है और समयाभाव के चलते उसकी समीक्षा नहीं कर पाया हूँ.आज यहीं सही.
सबसे पहले आपका यह कहना कि यह कृति के पाने का आभार प्रकट करना और फ़िर मित्रता के नाते उस पर कुछ कहना,सही नहीं लगता.मित्रता के लिहाज़ से शानू जी निश्चय ही बहुत उपयुक्त हैं पर उनके कविता-कर्म के बारे में नरमी दिखाना ठीक नहीं लगता.आलोचना-कर्म निर्मम ही होता है तभी वह सही होता है.
मेरी निर्ममता के साथ टीप :
काव्य-संग्रह के शुरुआत के पचास पेज निराश करते हैं.उसमें सृजन-समय का उल्लेख नहीं दिया हुआ है पर मुझे लगता है,ये रचनाएँ उनके किशोरावस्था की होंगी.कमज़ोर तुकबंदी ने इस संग्रह को हल्का बना दिया है.अगर यही कवितायेँ मुक्तक में होतीं और परिपक्व होतीं तो कहीं बेहतर संकलन बनता.इस लिहाज़ से कई रचनाओं को इस संग्रह में जगह न मिलती तो उचित रहता.इसमें प्रकाशन की भी घोर अकर्मण्यता है.
बाद की अधिकतर रचनाएँ प्रभावित करती हैं और वास्तव में यदि संकलन में हल्की रचनाओं को हटा दिया जाता तो यह संग्रहणीय बनता.
बहरहाल,अगले संग्रह में इस बात का कवयित्री विशेष ख्याल रखेंगी,ऐसी उम्मीद करता हूँ.
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आपने मित्र-धर्म निभाया ,उसके लिए साधुवाद !
@संतोष जी,
हटाएंतुम एक भुन्ने चेले हो, किसी की भली तुमसे देखी नहीं जाती-एक कविता संग्रह प्रक्रिया से गुज़र कर सामने आता है वही जानता है जिसकी कोई कृति छप चुकी हो-मुझे नयी कृतियाँ, नयी प्रतिभाएं अपनी क्षमताओं में हमेशा अच्छी लगती हैं -मित्र धर्म की बात ही नहीं है-सुनीता जी का यह संग्रह वाकई प्रशंसनीय है!मैं संभावनाएं देखता हूँ और प्रोत्साहन की नीति पर चलता हूँ उन्हें जो संभावनाशील होते हैं! वैसे तुममे भी चेले थोड़ी संभावनाएं पाता हूँ और जबं तक मुझे यह आश्वस्ति है तुम्हारी चेलहाई बरकरार है :-)
बस किरपा बनाये रखना,किसी चेली की कीमत पर बलि मत चढ़ा देना :)
हटाएंगुरू का चेला कैसा हो ??
हटाएंइस फब्ती के बजाय कवि सतीश सक्सेंना का इस कविता संग्रह पर कुछ कहना था न !
हटाएं@ इस फब्ती ...
हटाएंबिलकुल नहीं यह आप दोनों के ऊपर होली के छींटे के रूप में स्वीकार हो :))
@ कविता संग्रह..
सुनीता एक अच्छी स्थापित रचनाकार हैं जहाँ तक मुझे पता है वे मंच पर भी आमंत्रित की जाने वाली चंद ब्लोगरों में से एक हैं !
यह पुस्तक मैंने नहीं पढ़ी है मगर जितना उन्हें जानता हूँ , यह किताब रुचिकर होनी चाहिए !
शुभकामनाएं सुनीता जी को !
सुनिता जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसा पढ़कर काव्य संग्रह पढ़ने की इच्छा हो रही है।
कह दिया सब कुछ..अमूर्त भावों को भी..सुनिता जी को बधाई एवं शुभकामना..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..... सुनीता जी शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंहाँ . पढना तो ज़रूर चाहूंगी ही :)
बहुत अच्छी समीक्षा लिखी है आपने।
जवाब देंहटाएंकविताएं भी अच्छी लग रही है,,,ज्यादा जटिल शब्द ना होकर हलके फुल्के शब्दों में बात कहना भी कभी कभी अच्छा लगता है .
मैं भी कभी कभी लिखता हूँ , शायद आपको पसंद आये ..
आभार
http://vishvnathdobhal.blogspot.in/
बढ़िया समीक्षा. सुनता जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंसुनीता जी को बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंसुनीता जी को कविता संग्रह के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन की नीति पर बहुत अच्छी समीक्षा लिखी है आपने.
..........
आप का कविता संग्रह कब छप रहा है?
मैं कोई कवि तो नहीं अल्पना जी ,कवि ह्रदय कह सकती हैं आप!लिहाजा कविता संग्रह कभी नहीं आएगा -
हटाएंहाँ आपका संग्रह आएगा तो यह प्रोत्साहन नीति अपने उत्स पर होगी -वायदा !
मेरे विचार में जितनी भी कविताएँ आप ने अभी तक अपने ब्लॉग पर पोस्ट की हैं वे बहुत अच्छी हैं,
हटाएंखैर,यह आप का निजी विचार है कि आप कवि नहीं हैं,मगर मेरे विचार में एक कवि हृदय और उसपर जैसा शब्द- भंडार आप के पास है वह किसी के पास हो तो कोई भी अच्छा कवि बन सकता है.
- मात्र जानकारी के लिए कि मेरा कोई कविता संग्रह कभी नहीं आएगा .:)..आप के शब्दों के लिए आभार.
सादर,
अल्पना
अल्पना जी ,
हटाएंभावों की तरंगित प्रवाह है कविता, शब्दों की महज ढेरी नहीं!
और मुझे एक सुखद अहसास और आत्म गौरव के अहसास से क्या सचमुच वंचित कर देगीं आप ?
आपकी कविताओं का संग्रह भला क्यों नहीं?
बढ़िया समीक्षा.
जवाब देंहटाएंभाई साहब आपने भावनाओं को शब्द दे दिए सुन्दर व्याख्या
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जवाब देंहटाएंमन का पंछी (पखेरू )तो सदियों से डोलता ही आया है ...पंछी बनूँ उड़ती फिरूं मस्त गगन में .....कवियित्री अपनी खुश्बू छोडती हुई हर
रचना के संग आगे बढती है ,आपकी समीक्षा भी ,कवियित्री के प्रति सम्मान,सहानुभूति लिए और नेहा भाव लिए बढ़ी है .बढ़िया समीक्षा
.शुक्रिया
आपकी टिपण्णी के लिए .
ख़ामोशी बेहतरीन रचना कविता संग्रह के प्रकाशन पर बधाई
जवाब देंहटाएंkya is sameeksha ko main apne naam se prakashit karwa sakta hoon,
जवाब देंहटाएं.
NO
हटाएंआदरणीय अरविंद जी, आपने मेरे काव्य-संग्रह पर जो टिप्पणी की है सचमुच मन को छू गई है। सभी कवितायें सभी को पसंद आयें ये ज़रुरी नही। मै बस इतना कहना चाहूंगी कि ये वो कवितायें हैं जो मैने अपने जीवन में महसूस की है। मुक्तक,छंद,गज़ल या गीत न लिख कर यह सिर्फ़ कवितायें हैं मेरे दिल की आवाज़ जो पखेरु बन एक मन से दुजे के मन तक उड़ जाने का प्रयास है और कुछ नही।
जवाब देंहटाएंमैने सभी दोस्तों की टिप्पणियाँ पढ़ी उन सभी को कोटिष धन्यवाद।
सुनीता शानू
ऐसी समीक्षा आती रहे यह ज़रूरी है .शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए जो अक्सर लेखन की आंच बन जाती हैं .
जवाब देंहटाएंपुस्तक पर सुंदर और प्रोत्साहित करते विचार ....
जवाब देंहटाएंसंतोष जी की बात से मैं इत्तेफाक नहीं रखती ..... क्यों कि कोई भी रचनाकार किस मनोभाव पर कब कविता लिखता है यह पता लगना मुश्किल है और इस पुस्तक की कोई भी रचना मुझे इतनी हल्की तो नहीं लगी कि उसे प्रकाशित न किया जा सके ।
सुनीता शानू जी को उनके कविता संग्रह के प्रकाशन पर बहुत बहुत बधाई,
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