उन्होंने कहा था कि मैं उनका म्यूज हूँ ,पत्र खालिस अंगरेजी में था.हिन्दी में उनकी कोई गति नहीं थी (अब थोड़ी है ) ...हालांकि वे हिन्दी की दुर्गति नहीं करती थीं -मगर उस सहजता के साथ नहीं लिख पाती थीं जैसी कि अंगरेजी ....मैंने उन्हें हिन्दी में लिखने को प्रेरित किया ..उन्होंने एक ब्लॉग बनाया भी ..मेरा प्रयास.....मगर फिर अंतर्ध्यान(स्थ) हो गयीं ....वे निश्चय ही मेरे जीवन में अद्यावधि आविर्भूत नारियों में एक कुशाग्र प्रज्ञावान विदुषी बाला रहीं मगर हिन्दी (और प्रकारांतर से एक हिन्दी प्रेमी )उन्हें अपने मोहपाश में बांध नहीं सकी/सका ...और वे फिर से अपने आंग्ल भाषा के सृजन कर्म में प्रवृत्त हो गयीं ..शायद एक म्यूज के रूप में मेरी भूमिका समाप्त हुई ...
अरे अरे मैंने आपको यह तो बताया ही नहीं कि भला ये म्यूज है क्या बला .....यूनानी मिथकों में ये वे प्रकृति -देवियाँ हैं जो किसी में सृजन कर्म का स्फुरण देती हैं ....इनकी संख्या ९ तक बतायी गयी है .आधुनिक अर्थों में अंगरेजी भाषा का म्यूज शब्द प्रेरणा स्रोत से सम्बन्धित है -आप अपने सृजनात्मक/रचनात्मक कर्मों की प्रेरणा/स्फुरण जिस पुरुष या स्त्री से पाते हैं वह आपका म्यूज हुआ !मान्यता यही है कि सृजनकर्मियों के अक्सर म्यूज होते ही हैं बिना उनकी मौजूदगी के सृजन कर्म निखार नहीं पाता , नैरन्तर्य नहीं पाता और शायद मुकाम भी नहीं पाता .....बहरहाल वे सम्माननीय देवी मुझे अपना म्यूज मानती रहीं मगर मेरी म्यूज तो कोई और थीं ...दुर्भाग्यवश इन दोनों आईडल -म्यूजों का अब अवसान हो चुका है .न अब मैं किसी का म्यूज रहा और न अब कोई मेरा .....आप चाहें तो इस अवसर पर वह फ़िल्मी गीत गा सकते हैं कोई हमदम न रहा .... मगर मेरा हठयोग तो देखिये फिर भी अपने टूटे फूटे सृजन कर्म के साथ आपके सम्मुख हूँ -अहर्निश रचना कर्म को उद्यत ..यह बेहयाई नहीं मित्र बल्कि एक जिजीविषा है .....जीवन की असली परिभाषा समझ लेने की एक छटपटाहट है ....एक अंतर्नाद है .
अब म्यूज की बात चली है तो आईये इस पर कुछ बुद्धि विलास/वैचारिक जुगाली (म्यूजिंग ) ही कर ली जाय ....नए वर्ष का मौका है मूड भी है और दस्तूर भी है ....कहते हैं कि महान चित्रकार पिकासों की 'प्रेरणाओं' की बड़ी त्रासद परिणति होती थी ....अपने 'प्रेरणाओं' से सम्बन्ध को लेकर वे बड़े कुख्यात रहे ...उन्होंने अपनी अधिकाँश प्रेरणाओं का ह्रदय तोडा ....उनकी प्रेरणा- नायिकाएं बड़ी अभिशप्त रहीं क्योकि पिकासो एक समय के बाद उनसे बड़ी रुखाई से पेश आते और प्रेरणा -सम्बन्ध ही टूट जाता ...अपनी कला कृतियों के लिए वे फिर कोई नया म्यूज ढूंढ लेते .....जो उनके सृजन कर्म में एक बार फिर प्राण फूंक देता ....उनकी कलाकृतियाँ फिर जीवंत हो उठतीं ...शायद हिन्दी का जुमला तू नहीं और सही और नहीं और सही पिकासो की इसी म्यूज लीला से ही प्रेरित रहा हो!
अपोलो से अठखेलियाँ करती हुईं यूनानी मिथकों की नौ प्रेरणा -देवियाँ (म्यूजेज )
यह म्यूज- लीला सृजन कर्मियों के जीवन का स्थाई और अन्तस्थ भाव लगता है - लगता है प्रतिशोध की देवी (नेमेसिस ) जो इन म्यूज देवियों की ही सखी सहेली होंगी ,ने रचनाकर्मियों को मानो श्राप दे रखा है कि जाओ तुम्हारा सृजन कर्म गाहे बगाहे म्यूज- विछोहों से संतप्त अभिशप्त होता रहेगा ...हिन्दी सिनेमा जगत तो ऐसे कई कारुणिक उदाहरणों से भरा पड़ा है ..देवानंद की म्यूज थीं जीनत अमान मगर उन्होंने दामन पकड़ लिया राजकपूर का -तनिक देवानंद बनकर सोचिये कैसा ह्रदय विदीर्ण हुआ होगा उनका .....निदेशक राजकुमार संतोषी की लेडी लव मीनाक्षी शेषाद्री भी उनके जीवन को उजाड़ कर फुर्र हो गयीं और अभी कुछ समय पहले तक शाहरुख खान फारहा खान के पसंदीदा नंबर वन थे लेकिन अक्षय खन्ना बन गए तीस मार खान और फ्लाप भी हो गए .. तो क्या अब फारहा फिर अपना म्यूज बदल देगीं ? एम ऍफ़ हुसैन तो अपने लेडी म्यूज को ही डिच कर देने में कुख्यात रहे हैं -माधुरी दीक्षित ,अमृता राव ,तब्बू , विद्या बालन और अब अनुष्का में वे अपनी प्रेरणा ढूंढ रहे हैं .....और बालन के बालों में कलात्मकता का तासीर उतरते ही फिर कहीं और चल पड़ेगें ....आखिर सृजनकर्मियों -लेखकों ,कवियों ,कलाकारों ,संगीतकारों ,ब्लागरों के जीवन की यह त्रासदी क्यूं ?
मकबूल को अब अनुष्का कबूल
मकबूल को अब अनुष्का कबूल
मगर मेरी अंतर्व्यथा तो शेष ही रही -अब कौन बनेगा मेरा म्यूज? नए वर्ष के आगाज पर यह सवाल बार बार मेरे सामने आ उपस्थित हो रहा है? और अगर कोई म्यूज न हुआ तो फिर ब्लागीय रचना कर्म का नैरन्तर्य कैसे बना रहेगा? बिना म्यूज का कैसा रचना कर्म ..? बेजान और निष्प्राण सा ..या कोई मुझे बताये कि क्या बिना प्रेरणा देवी के रचना कर्म हो भी सकता है ..मेरा मानना है कि हाँ हो सकता है -यह जो आपके सामने है वह रचना कर्म ही तो है ..या फिर कूड़ा करकट ?
मेरे लिए नए शब्द से परिचय. आभार.
जवाब देंहटाएंअपको सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंपंडित जी! द्रोणाचार्य की मूर्ति को अपना म्यूज़ (क्योंकि मूर्ति गुरू हो नहीं सकती और उन्होंने गुरु बनने से इंकार भी कर दिया था, लिहाजा म्यूज ही रही होगी वह मूरत)बनाकर धनुर्विद्या में पारंगत हो एक भील युवक ने पिकासो, देवानंद, राज साहब, हुसैन साहब और पंडित अरविंद मिश्र को इतना तो बता ही दिया था कि हाड़ माँस या पंचतत्व का म्यूज़ गढने से अच्छा सिलिका का म्यूज़ गढ़ लो... ये धोका भी नहीं देता, अपनी राह भी नहीं बदलता और हाड़ माँस के दरोणाचार्य से बेहतर विद्या दान देता है!!!
जवाब देंहटाएंछा गए!
जवाब देंहटाएंटंच सोना है, सोना। खालिस बात।
@क्या बात कही बिहारी बाबू ! मान गए उस्ताद -ट्राई मारता हूँ मगर बता दूं ये बिहारी बालाएं बहुत जुल्मी होती हैं :)
जवाब देंहटाएंआपके लेखन का जवाब नहीं जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
ek naya shabd seekha.nav varsh kee shubhkamnaye.
जवाब देंहटाएंनया वर्ष है, नई पोस्ट है, नया शब्द है म्यूज।
जवाब देंहटाएंचर्चित हो सकता है जैसे हो कोई भयंकर न्यूज।।
....म्यूज शब्द का ज्ञान कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। ज्ञान कराने का अंदाज निराला है।
बिना प्रेरणा के कवि कुछ लिख ही नहीं सकता। तुलसीदास जी को मिली प्रेरणा जगजाहिर है।
...कौन किसे कब म्यूज बनाता है कब छोड़ देता है यह उनके बीच का आपसी मामला है। म्यूज कब फ्यूज हो जाय कौन कह सकता है ! जैसे बल्ब फेल होने पर हम अंधकार में रहते हैं वैसे ही म्यूज के फ्यूज हो जाने पर कवि भी अंधकार में रहता है।
...यह कुछ समय की बात है। वैसे आपने इस समय का भी भरपूर उपयोग कर ही लिया। शेष शीर्षक अपनी बात खुद ही कह रहा है।
@गिरिजेश राव
जवाब देंहटाएंटंच सोना नहीं आचार्य! बाईस कैरेट है..पंडित जी की म्यूज़ कोई बिहारी बाला नहीं बिहार से भी परे कोई बंगाली बाला है... यकीन न हो तो आज का टी ओ आई देख लें!!
@पंडित जी
बिहारी बालाएँ यूपी बिहार लूट ले जाती हैं! बालाएँ कम,बलाएँ ज़्यादा हैं! और आप तो वैसे भी बॉर्डर पर विराजमान हैं!! इक ज़रा हाथ बढ़ा लें तो पकड़ लें दामन. स्वयम् आपके शब्दों में ट्राई मार के देखिच डालिये!!
:))
@सलिल भाई ,अयोध्या और मिथिला के पुराने सम्बन्धों की चिरन्तनता की तनिक याद रखिये ,मान सम्मान रखिये ...ये कहाँ बंगाल जा रहे हैं.....मेरा मन अनत कहाँ सुख पावे ......बिआहर झारखंड मुझसे मत छीनिए प्रभु -इहाँ के सौन्दर्य के आगे सारा जग निस्सार है बाबू !तो पहली प्राथमिकता तो बस यहीं कहीं दिल कहे रुक जा रुक जा यहीं पे कहीं जो बात इस जगह है कहीं पे नहीं ....फिर ऊ बंगाल वाली बात भी ...मुला उसके बहुत बाद ....
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
बिना म्यूज का कैसा रचना कर्म ..? बेजान और निष्प्राण सा ..या कोई मुझे बताये कि क्या बिना प्रेरणा देवी के रचना कर्म हो भी सकता है ..मेरा मानना है कि हाँ हो सकता है -यह जो आपके सामने है वह रचना कर्म ही तो है ..या फिर कूड़ा करकट ?
देव, यह जो हमारे सामने है न वह रचना कर्म है और न ही कूड़ा करकट... मुझे तो यह आपकी ओर से नई म्यूज के लिये 'TO LET' जैसा इश्तहार सा कुछ लग रहा है... ;)
...
पोस्ट अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंअलग ही विषय है। म्यूज को लेकर बढ़िया चिन्तन रहा।
@बस इसीलिये एकदम इसीलिये ही आप प्रवीण शाह है .....बिलकुल सच बात ...जी हाँ जगह रिक्त है -अब आपसे क्या झूंठ कहना ?
जवाब देंहटाएंम्यूज के बहाने अच्छा अम्यूज किया है आपने। :-)
जवाब देंहटाएंअरविंद जी चूँकि आपका नया पाठक हूँ इसलिए पूछ रहा हूँ- ये जो आपके ब्लॉग का शीर्षक है (मैं तो ठीक से उच्चारण भी नहीं कर पा रहा हूँ) इसका क्या अर्थ है?
@सोमेश जी ,शीर्षक में थोड़ी आंचलिकता का टच है -मगर धीरे धीरे पढ़िए अर्थबोध हो जाएगा ...
जवाब देंहटाएंतूं नहीं ........और सही .....और नहीं ....और सही .....
इफ यू आर नाट माईन ..लेट सम वन एल्स टेक दिस प्राईड ..एंड इवेन इफ शी डिचेज लेट समवन एल्स बी माई लव ......
समझे बुद्धू जान (प्यार से ....) and let the saga continue....
अरविंद जी क्षमा करें पर मैं पोस्ट नहीं ब्लॉग शीर्षक (क्वचिदन्यतोअपि) की बात कर रहा था।
जवाब देंहटाएंamusing।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनायें ।
और अपनी राम राम ।
@सोमेश जी,
जवाब देंहटाएंनामकरण लेबल के इन दोन पोस्टों को पढ़ लीजिये ,जिज्ञासा शांत हो जायेगी !
http://mishraarvind.blogspot.com/2008/06/blog-post_28.html
http://mishraarvind.blogspot.com/2009/09/blog-post_12.html
देवियों से अनुराग और विराग की कथा शाश्वत है, प्रेरणा जहाँ से भी मिले, बटोर लें।
जवाब देंहटाएं@अब प्रवीण जी ने हरी झंडी दिखा दी तो फौलादी इरादों की लाईनों पर नैतकिता की भाप से उम्मीदों की ट्रेन लो यह चल पडी !
जवाब देंहटाएं'म्यूज' और इस शब्द की एतिहासिक मेरे लिए भी नई जानकारी थी. मगर साहित्यकार के लिए प्रेरणा तो अपरिहार्य है ही, चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक. हमारे जैसे जूनियर ब्लौगर्स के लिए तो आप जैसे ब्लौगर्स के सुझाव ही 'म्यूज' के समान हैं.
जवाब देंहटाएंहम मूजों (moose) के सामने म्यूजों की बात! :)
जवाब देंहटाएंनैतिकता से हमेशा भाप ही क्यों निकलती है ? बिजली क्यों नहीं पैदा होती ? जबकि जमाना विद्युत इंजन का है !
जवाब देंहटाएंदोनो पोस्टेँ पढ़ लीं। जिज्ञासा भी शांत हो गई। दूसरे पोस्ट पर की गईं टिप्पणियाँ भी रोचक और पठनीय हैं। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवैसे अगर मैने दूसरी टिप्पणी न की होती तो आपने तो मुझे हास्यास्पद ही बना दिया था। :-)
नितांत पुरुषोचित भाव! नहीं?
जवाब देंहटाएं@नहीं मित्र भूत भंजक -नितांत पीड़ा और टूटन का भाव ...याचक, भिखारी ,स्त्रैणता ,क्लैव्यता का भाव!
जवाब देंहटाएंपर हूँ तो पुरुष ही !
I am forced to muse over it.
जवाब देंहटाएंexcellent.
भईया बहुत ही उम्दा व नयी जानकारी दी आपने , आभार ।
जवाब देंहटाएंएक नया शब्द जानने को मिला ....
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ऊँचे लोगों की पसंद भी ऊँची होती है और उसके लिए वे शब्द भी ऊँचे ही ढूँढ लेते हैं और उनके मन की गहराई को जो ताड़ लेते हैं वे भी ऊँचे ही हुआ करते है ।
जवाब देंहटाएंमिश्रा जी तो ख़ैर ऊंचे हैं ही लेकिन प्रिय प्रवीन जी ने तो 'म्यूज़' के पीछे छिपी भावना का ही अनुवाद कर दिया ।
:)
म्यूज़ वही जो कन्फ़्यूज़ न करे , बेवफ़ाई न करे ।
बाहर अपना म्यूज़ वो तलाश करे जो घर के म्यूज़ में अपनी प्रेरणा का सामान न पा सके । घर सबसे अच्छा म्यूज़ियम हैं । औलाद सबसे सुंदर रचना है । पत्नी सबसे अच्छा म्यूज़ है ।
मुल्ला जी तो ऐसे सोचते हैं साहब !
वाह जी अब लोगो को एक नया शव्द मिल गया, लेख लिखने के लिये.....
जवाब देंहटाएंआप को सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
आप इस दुनिया को देखते हैं, अनेक दोष पाते हैं, एक दोष रहित दुनिया का सपना देखते हैं। उस सपने को साकार करने के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो म्यूज (प्रेरणा की देवियाँ) आप के आसपास बिखरे पड़े हैं। बस उन देवियों को पहचानने की जरूरत है। फिर देखिए आप के लेखन में उतर आएंगी।
जवाब देंहटाएंनववर्ष आप को नई ऊँचाइयाँ दे।
अब समझा की मैं इतने दिनों से कोई ब्लॉग पोस्ट क्यों नहीं लिख पा रहा था .
जवाब देंहटाएंम्यूज हीन तरपत मन मोरा .
न्यूज में छाया बस एक छोरा .
तो क्या बात बनती ?
रे मन मूरख जनम गवांयो वाली सिचुएसन ..................
जैनेन्द्र कुमार याद आ रहे हैं .उनका कहना था की लेखन के लिए पत्नी के अलावा भी प्रेरणा ( प्रेयसी पढ़ें ) जरूरी है .जरूर हरदम सम्यूज रहे होंगे . काफी लिखा . मुझे तो डर भी लगता है की बाबा तुलसी की तरह दांव उल्टा पड़ा और चोट पहुँची तो फिर एक नयी रामायण लिखना बाध्यकारी हो जायेगा .
बेहतर है कि अरविन्द जी आपकी बात को गंभीरता से लूँ .अनुभव भी आपके समान ही है .आपकी म्यूज की तर्ज़ में अपने साथ भी हो चुका है .......तुझे और की तमन्ना मुझे तेरी आरज़ू है ......टाईप का मामला . कोई म्यूज अंतर्मन बन जाने के बाद अंतर्ध्यान हो तो रचना हाहाकारी बन जायेगी ,इस डर से लिखा न गया .
तो फ़िलहाल आपको ही म्यूज नुमा यूज कर ( द्रोणाचार्य की तरह ) आपकी बात ट्राई करता हूँ .
स्फुरित तो रहता ही हूँ हरदम ,मूड भी हरदम दुरुस्त ही रहता है मौके तलाशने में पुराना माहिर , बस ' रचना ' गायब मिलती है .अब आपने कहा की ' नए वर्ष ' का दस्तूर भी है ( वरना मैं तो १४ फरवरी तक अलसाया रहता ) तो लग लेते हैं.
वैसे मेरा जीवन और कला का नाता और अनुभव पिकासो का उल्टा रहा .
कई बार कयिओं की कृपादृष्टि से म्यूज हुआ पर मेरी प्रेरणाओं की नहीं रचनाओं की त्रासद परिणति हुयी .अपठित रह जाना ही उनकी नियति रही .
तो मैं भी सृजन कर्म उद्धत ,स्फुरित,मूडित ,दस्तूरित और म्यूजित होने की लालसा से ' मेरा प्रयास ' शुरू करता हूँ ..............
कोई न कोई ,कभी न कभी ,कहीं न कहीं से आएगा
म्यूजित मुझे कराएगा ,' रचना धर्म ' निभाएगा .
इंतज़ार नहीं करना होगा आपको , अगली पोस्ट समझिये ठेल चुका .
पुनश्च : समझ नहीं पा रहा हूँ की ........... ' म्यूजाभाव ' में ' सर्प संसार ' कैसे लिख लेते हैं .कोई पुरानी नागिन का मामला तो नहीं है ?
@अनवर जमाल .
जवाब देंहटाएंघर की म्यूज को म्यूजियम कहेगें तो कोई जिन्दा जात कैसे उसमें कैद हो के रह पायेगी ?
@राज साहब ,
कहाँ लिख पा रहे ,सर्प संसार अधूरा पड़ा है नागिन छोड़ के चली गयी .क्या करे नाग विचारा ..अकेले कब तक बीन पर नाचेगा?इक्कीसवी सदी की नागिन है ,दंतकथाओं की थोड़े ही जो बस एक नाग का दामन थामे बैठी रहे ...कोई और सद्य केंचुल त्यागी नाग दिखा उधर आकर्षित हो सरक ली ....यही तो विडम्बना है ,नए युग और नयी रुझानों का !
मेरे विचार हम सब के जीवन में हमेशा कोई न कोई प्रेणना का स्रोत रहता है। हांलाकि यह समय के साथ बदलता रहता है।
जवाब देंहटाएंबचपन में, आइंस्टाइन, ओपेनहाइमर, विश्वविद्यालय स्तर पर फाइनमेन फिर जीवन की सत्यता से परिचय हुआ ... लेकिन प्रयत्न जो जारी रखना है यही जीवन है।
नये साल की शुभकामनायें।
:-| :)
जवाब देंहटाएंसुरीला, कलापूर्ण और रचनात्मक पोस्ट. कला की देवियां हैं- म्यूज, म्यूजियम शब्द तो इसी म्यूज से बनता है और शायद म्यूजिक भी.
जवाब देंहटाएंआपके प्रयास क्या कहें ...अपना जानकार अच्छा लगा ...आपका शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ..स्वीकार करें ...देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ..
कुछ समझे, कुछ नहीं.. बात जरा ऊपर की लगी :)
जवाब देंहटाएंnav varsh kee dher saari shubhkaamnayen aapko ... :)
जवाब देंहटाएंsaadar
जय हो म्यूज़ की। नया सीखने को मिला।
जवाब देंहटाएं'shahar sunsaan hai kidhar jaayen'
जवाब देंहटाएंkhak ho kar bikhar jaayen...behad khusburat shayari.
Abida sahiba ki gayaki kamaal.
aisi song clips tanhayeeyan badhane ka samaan hain.
tell you what,''Wo kalakaar hi kya jo dil na rakhta ho,wo dil hi kya jo kabhi toota na kare?
dil toot gaya hai to shayari kariye 2-4 umda ghzalen/nazmen likhne ka khub mauka hai.
in emotions ko bhuna lijiye.
BTW title of the post says it is written by a modern devdas 'tu nahin_________!
[it seems you like greek mythology a lot]
all the best!
ज़रूर कोई शार्ट सर्किट जैसा मामला रहा होगा वर्ना म्यूजियाई हुई पारस्परिकता फ्यूजियाई हुई कैसे हो जाती :)
जवाब देंहटाएंखैर सुना ये था कि इंसान पिछले तजुर्बात से सबक लेता है पर आप हैं कि वैकेंसी के इश्तेहार पे इश्तेहार दिए जा रहे हैं!(बकौल प्रवीण शाह और आप खुद)
ज़्यादा कुछ नहीं बस एक शंका का समाधान कीजियेगा कि ,पोस्ट में एक जगह दो प्रेरणाओं और दूसरी जगह नौ का जिक्र है ? इसे हम क्या समझें ?
जल्दी से आपके किसी नये म्यूज की न्यूज मुझ तक पहुंचे यही कामना है।
जवाब देंहटाएं---------
मिल गया खुशियों का ठिकाना।
बड़ी म्यूजिकल पोस्ट है. बड़े कलाकारों को तो प्रेरणा स्रोत की जरुरत होती है पर हम जैसे लोगों का क्या जो बिना किसी प्रेरणा के लिखते हैं. शायद इस रचनात्मकता की दुनिया में भी लैंगिक और अलैंगिक जनन जैसी भिन्नता होती होगी. जो सृजन म्युज की प्रेरणा से हो वो लैंगिक और हमारा सृजन अलैंगिक.
जवाब देंहटाएंI am amused :)
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएं@ चला बिहारी ...
और क्यों बिगाड़ते हो यार.....? गुरु देव वैसे ही कम बदनाम नहीं ब्लॉग शरीफों के बीच :-))
@ अली सर ,
आनंद आ गया ...आप प्रेरणा श्रोत हैं यार ..दूर बैठ कर भी पूरा मज़ा ले लेते हैं
बढ़िया पोस्ट के लिए बधाई अरविन्द भाई !
@Thanks Kritika,for inspiration!
जवाब देंहटाएं@अली भाई ,नौ की संख्या ऐसे ही नहीं लिखी गयी है खासा दार्शनिक लोचा है .....
@विचार शून्य ,ऐसे ही विचार शून्य थोड़े ही हैं महराज :) अब जो नैसर्गिक लैंगिक में है वह अलैंगिक में कहाँ -कहीं आप समलैंगिकता की बात तो नहीं कर रहे ..हे हे हे ....
अरविंद जी ... आपको और परिवार में सभी को नव वर्ष मंगलमय हो ...
जवाब देंहटाएंऊंची बात इसलिए समझ में नहीं आई.
जवाब देंहटाएंपोस्ट के लिए आपको बधाई.
एक नए शब्द से परिचय. आभार....नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंयह musing भी बड़ी amusing रही.
जवाब देंहटाएंतब तलाश शुरू कीजिये ........इसके लिए "उपयुक्त" ब्लागों पर इस पोस्ट का लिंक दे देता हूँ ............
जवाब देंहटाएंहाँ .... ब्लोगिंग से एक फायदा होता है [हम जैसों को] शब्दकोश बढ़ता रहता है .. ये पोस्ट तो पहले भी पढी थी पर शायद इस बात में इतना खो गया की टिप्पणी करना ही याद ना रहा
जवाब देंहटाएंये क्या ? कमेन्ट मोडरेशन ओन किया हुआ है :)
जवाब देंहटाएं~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जवाब देंहटाएंआपको और आपके पूरे परिवार को नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मुझे लगता है म्यूज हाड मांस का ही हो ,यह बिलकुल भी आवश्यक नहीं...
जवाब देंहटाएंरोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली आपके इस पोस्ट के माध्यम से...
निश्चित ही यह कूड़ा करकट नहीं...लेकिन हाँ,यदि मान लिया जाय कि बिना विपरीत लिंगी प्रेरणा के सार्थक सर्जना नहीं हो सकती तो फिर सृजन अधोमुखी हो सकती है...
अपनी अल्पबुद्दि और अनुभव से यह कहा है मैंने,कोई आवश्यक नहीं कि यह सही ही हो...
--म्यूज़= जो आपको अम्यूज़ करे और म्यूज़ियम में रखने लायक बना दे...
जवाब देंहटाएं-- ९ म्यूज़ = नौ देवियां, जो सब कुछ को सो काल्ड म्यूज़ करती हैं...
मकबूल को अब अनुष्का कबूल ... हाहाहा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आपका लेख पढ़ कर मिश्रा जी ... भगवान् करे आपको जल्द ही आपका म्यूज मिल जाये ...
आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
muse द्वारा use कर refuse किये जाने पर fuse होकर कला जगत में refuge ढूँढने वाले लोगों की फेहरिश्त बड़ी लंबी है.
जवाब देंहटाएंये म्यूज ने हमें बहुत कन्फयुज किया हुआ था। एक ब्लाग पर यही सवाल विद्यमान है कि आप म्यूज का अर्थ नहीं जानते। वहां बैठी बिल्ली को देखकर सोच रहे थे कि बिल्ली से संबंधित ही कोई बात होगी। सच तो यह है कि अपन ने भी ज्यादा माथापच्ची नहीं की।
जवाब देंहटाएंबलिहारी गुरु आपकी जो आपने दियो बताय।
लगता तो यही है कि ब्लाग जगत में म्यूजों की भारी कमी है जो हैं वे सब फ्यूज हैं।
मेरे शिष्य ओम जी द्वारा ब्लॉग पर निर्मित रेडिओ documentry में आपकी प्रस्तुति बहुत अच्छी रही.बधाइयां.
जवाब देंहटाएंबहुत दिन हो गए सर
जवाब देंहटाएंकुछ नया नहीं
आप कुशल मंगल होंगे
नयी पोस्ट की इंतज़ार में
दर्शन
नए शब्द से परिचय ...अभी तक म्यूज़ खोज रहे हैं ..कोई मिलता ही नहीं :):) कूड़ा करकट ही हो जाता है सब लिखा हुआ ...
जवाब देंहटाएंन अब मैं किसी का म्यूज रहा और न अब कोई मेरा .....
जवाब देंहटाएंमूर्त म्यूज हो न हो अमूर्त म्यूज जरूर होगा/होगी. अंतर्मन में झांके तो ...
aap muse hote rahen .... lekin ye kahan ka nisaf hai ke hum apke agle
जवाब देंहटाएंpost ko tarse ....
pranam.
बहुत ही उत्तम चिन्तन के लिए धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआश्चर्य है कि मुझे कभी भी किसी कार्य के लिए या रचनाकर्म के लिए किसी म्यूज़ की आवश्यकता नहीं पड़ी, कभी भी नहीं.
जवाब देंहटाएं@रंजना जी ,
जवाब देंहटाएंविचारयुक्त टिप्पणी के लिए आभार
@मुक्ति ,
आप अपवाद हैं
म्यूज के न्यूज का सनसनीखेज़ खुलासा ज्ञान वृद्धि कर रहा है.
जवाब देंहटाएं