सोते रहिये ब्लॉगर भाईयों -...हम सैकड़ो साल ऐसे ही गुलाम नहीं रहे ...राष्ट्रीय मुद्दों की आकस्मिकता के बजाय लोग अपने आमोद प्रमोद घर परिवार और प्रेम प्रणय मनुहारों में लगे रहते आये हैं तो अगर हमारे ब्लॉगर भाई भी अपने इस सनातन चरित्र का निर्वहन कर रहे हैं तो किम आश्चर्यम? आश्चर्य है लाल लाल चौक पर तिरंगे के मुद्दे ने कईयों को संवेदित नहीं किया -न तो खाए पिए अघाए लोगों को और न ही शायद उचित ही गमें रोजगार,गमें मआश से मारे लोगों को ..कुछ तटस्थ खड़े तमाशे देखते रहे और फिर अपने बाल बीबी बच्चों की फ़िक्र में लग गए तो कुछ अपने ही जयचंद अलग ढपली अलग राग बजाते रह गए ...एक और गुलामी करीब से दस्तक देकर चली गयी दुबारा आने और शायद रुकने के लिए भी ..तो क्या आप कहीं उस कटेगरी में तो नहीं जो अभी तक भी कुछ नहीं समझे ? - तो जाईये पूरी बहस को पढ़िए .आज तो बहस का समापन है -
लाल चौक पर तिरंगे को फहराए जाने का राज्य द्वारा विरोध अखंड भारत के इतिहास का एक काला दिन बन गया है -मैंने जनपक्ष पर इस बहस का उपसंहार करते हुए लिखा है -
लाल चौक पर तिरंगा! बहस का समापन
१-स्पष्ट है यहाँ विमर्श रत लोग अपने अपने निहितार्थों के चलते वैचारिक खेमे बना लिए हैं ....कुछ को तो जम्मू कश्मीर सरकार का ब्रैंड अम्बेसडर पद आसानी से हासिल हो जाएगा ..और उन्हें बिना देर आवेदन कर देना चहिये .......
२-कुछ भावना विहीन लोग लोगों की सहज भावनाओं का मजाक उड़ाते फिर रहे हैं -यह भूल गए की इसी झंडे के लिए कितनी जाने लोगों ने न्योच्छावर कर दी ....शहीद सैनिक का शव इसी तिरंगे में यूं ही नहीं सहेजा जाता .... आधुनिक वृहन्नलाओं की पहचान ऐसे ही मौकों पर होती हैं...
३-यहाँ सायास अयोध्या का मुद्दा लाने की भी कोशिश हुयी है -मन का चोर सारे राज खोल रहा है -स्पष्ट है कुछ लोग गहरे ब्रेन वाश हो चुके हैं -निज समाज पहचान से कटे हुए भ्रमित लोग ..जिनसे सचमुच समाज राष्ट्र को कोई अपेक्षा नहीं करनी चाहिए
४-अध्ययन ,वक्तृता का ऐसा पतन कहीं माँ सरस्वती को भी गहरा सदमा देता ही होगा -
..सर धुन गिरा लाग पछताना
अंततः
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है वह नर नहीं है पशु निरा है , और मृतक समान है ! ...
और मृतकों से कैसा संवाद ?
मित्रों संविधान के अपमान को ,अपने तिरंगे के अपमान को हम कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं -झंडा संहिता भी तार तार हो गयी ..आज तो यह तात्कालिक प्रतिक्रिया है ..हम इस मुद्दे पर सिलसिलेवार जल्दी कुछ लेकर आ रहे हैं ..तनिक इंतज़ार करिए ....
I am posting excerpts from my recent article as comment:
जवाब देंहटाएं"Coming back to the main issue, let me quash the bogus fears of Mr.Omar Obdullah. His fears pertaining to breakdown of normalcy is childish as few months back when Jammu and Kashmir was caught in flames of tension the separatists were not only allowed to organize a huge meeting at Lal Chowk but also allowed to hoist Pakistani flags. The separatists also raised anti India slogans. Was that a very encouraging gesture which prompted our Home Minster P Chidambaram to give a nod to it ?"
***************
It’s not a political issue. It’s a question that’s associated with the self-respect of nation. It would be hard to find an another nation wherein the government machinery prevented its own very people to hoist its own national flag. It’s a real shame. Now don’t make it a political issue by associating BJP with it. The issue is why one cannot hoist a national flag within national boundaries? In other words, why should we allow the separatists to rule our likes and dislikes? Who are they to dictate what we should do and what we should not do? Why do we not crush them badly when they thwart attempts to restore national pride?
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Another important angle is to decide what’s really more important ? To find what’s making people in Jammu and Kashmir increasingly prone to anti India gestures or to kill all such attempts that try to make this state a part of mainstream India much like other states ? So are we spending hard earned money of the tax payers’ on this state to give rise to scenario wherein giving rise to nationalistic fervour is a criminal offence ?
Anyway, time has come to marginalize intellectuals who love to support separatists,promote people involved in seditious activities and also create mayhem in the whole nation if something goes against their interests.
**************
Arvind K.Pandey
http://indowaves.instablogs.com/
http://indowaves.wordpress.com/
प्रतीक्षा है....शायद कुछ मृतकों में जान आ जाए...
जवाब देंहटाएंमैं भी कुछ लिखने की शुरुआत कर चुका हूँ इसी सन्दर्भ में...दो पंक्तियाँ मैंने, आपके पिछले लेख पे, अपनी अंतिम टिप्पणी में लिखी भी थी...
उम्मीद है आपका साथ दे सकूं...
प्रणाम.
sahi paksh rakha hai aapne
जवाब देंहटाएंमुझे तो ये समझ नहीं आ रहा कि अचानक से सबको लाल-चौक क्यों याद आ गया.....वहां आखिरी बार झंडा १९९२ में फेहरा था...जब केंद्र में भाजपा कि सरकार थी तब तो किसी भाजपाई को ये ध्यान नहीं रहा...अभी अचानक जब वैसे ही वहां हालत इतने नाजुक हैं तो इस झंदोत्तालन क्या मतलब है....
जवाब देंहटाएंये तो शुद्ध राजनीति है, और मैं भी इसका विरोध करता हूँ....
क्यूंकि अगर वहां झंडा फहराया जाता और खुदा न खास्ता कुछ हिंसक हो जाता तो इन भाजपाईयों का क्या ऊ तो हवाई जहाज में बैठकर भाग आते, भुगतना वहां की जनता को पड़ता....
नितीश कुमार जी ने भी इस कृत्य का विरोध किया और मैं भी इसी बात से सहमत हूँ.....
केवल इसी संदर्भ के कारण मैंने सुन्दरकाण्ड की कुछ चौपाईयाँ अपने पोस्ट पर लिखी हैं।
जवाब देंहटाएंअरे गुरुअर कहाँ आप भी मरे को जगाने लगे । इतनी जल्दी ये जागने लगते तो देश गुलाम थोड़ी ना हो पाता । हाँ ये है कि इस पोस्ट के बहाने कुछ लोगों का चेहरा साफ दिखने लगा , जैसे सर्फ एक्सल से धूला हो । इतना ही नहीं एक महाभाव को जो आपके पिछली पोस्ट पर मामला समझ रहें थे आपको बधाई हो कि उन्होनें मामला समझ लिया है ढ़ीचू-ढ़ीचू करते अपने वास्तविकता पर भी आ गए , अब समझे कि नहीं आप , ये थाआपके पोस्ट का कमाल । और हाँ जनपक्ष के उस पोस्ट पे मेरा कमेंट अभी तक प्रकाशित नहीं किया ।
जवाब देंहटाएंमुर्दों में जान फ़ूंकने की कोशिश तो हम भी कर रहे हैं, चार साल से… और उम्मीद का दामन अभी छोड़ा नहीं है…
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंडॉ अरविन्द मिश्र ,
बेहद दुखद है ...मगर यह आज से नहीं हुआ है अरविन्द भाई !
घाटी के लोगों की मानसिकता शुरू से ऐसी ही है ! मैं शायद १९९१ में कश्मीर गया था ! मुझे याद है वहां के दुकानदार मुझसे पूंछ रहे थे कि आप हिन्दुस्तान से आये हो ?
वे अपने को हिन्दुस्तानी नहीं मानते थे ....कश्मीरी मानते थे !
एक अजीब सा अलगाव महसूस हुआ उन दिनों मुझे ......
और एक कड़वा अनुभव लेकर बापस आया था !
हकीकत नज़रन्दाज़ नहीं की जा सकती हमें उसका इलाज़ सोंचना चाहिए और अगर हमारी गलतियाँ रही हैं तो मरहम का इंतजाम भी करना पड़ेगा !
शुभकामनायें आपको
Gantantr Diwas kee dheron badhayee!
जवाब देंहटाएं@शेखर सुमन जी
जवाब देंहटाएंअचानक यह मुद्दा कहाँ मौजू होता है ? अब २६ जनवरी और पंद्रह अगस्त को भी यह मुद्दा न उठेगा तब कब उठेगा ?
मृतकों को श्रद्धांजलि! अबकी पित्रपक्ष में उनके लिए तर्पण अभियान छेड़ने की सोच रही हूँ.
जवाब देंहटाएंविवेक रस्तोगी जी ,
जवाब देंहटाएंजी हाँ पढ़ लिया मैंने ,बहुत ही बढियां रूपक प्रस्तुत किया है आपने !
.
जवाब देंहटाएंआदरणीय अरविन्द जी और सुरेश जी,
तात्कालिक हल :
सभी का सहयोग लेने के लिये 'सहयोगी भाषा' बोली जाये. अरविन्द जी और सुरेश जी अपने पाठकों को 'मुर्दों से कैसा संवाद' कहकर उद्वेलित न करें. यदि मैं ये कहूँ कि आप दौड़ लगाते हुए लाल चौक की तरफ रवाना हों और मैं आपसे वहीं मिलता हूँ तो यह तो रही जोश में होश खोने की बात. इसलिये तत्काल रूप में आप, सुरेश जी, और बी एन शर्मा जी.. जो अपने लेखों से क्रान्ति ला रहे हैं... वे पर्याप्त हैं. उनका सबका असर आपको जल्द ही दिखायी देगा बस आप इस आग को सुरेश जी की भाँति बुझने मत देना.
सोचा-समझा हल :
किसी राजनीतिक पार्टी को जो बेहतर हो, राष्ट्रीय सोच के करीब हो, तुष्टिकरण न करती हो, उसे जिताने का मिलकर प्रयास करते हैं. आज बहुमत को साथ करना बेहद जरूरी सा हो गया है. इसके बिना हमारी अच्छी योजनायें मस्तिष्कों में ही पड़ी रह जाती हैं.
जो जिस काबिल हो उसका वैसा प्रयोग किया जाये. जैसे मैं व्यायाम प्रशिक्षण के साथ नैतिक और राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने में बाल-मतियों को प्रेरित कर सकने की योग्यता रखता हूँ. अपने से कद-काठी में बड़े लोगों को भी कुंग-फू और लाठी, छुरी और तलवार का प्रशिक्षण दे सकता हूँ. मैं 'सार्वदेशिक आर्य वीर दल' का प्रमाणित शिक्षक हूँ. मैं कार्य में भरोसा करता हूँ. बोलना तो मेरी विवशता है.
कोई और हल हो तो मुझे अवश्य सुझाएँ. मैं स्वयं को न्योछावर करूँगा देश की अखंडता के लिये. आप उपाय तो सुझाएँ. क्या मैं भी बम-बाँधकर कहीं फट पडूँ?
.
वही तो..
जवाब देंहटाएं९२ के बाद के १८ सालों में ऐसे मौके ३६ बार आये...
लेकिन किसी को कोई मतलब नहीं...
जैसा की मैंने पहले भी कहा, वहां भाजपाई इसलिए झंडा नहीं फहराना चाहते थे क्यूंकि वो कश्मीर को भारत का हिस्सा मानते हैं, सिर्फ इसलिए ताकि वो कश्मीर और भारत सरकार के खिलाफ अपनी राजनीति की रोटियाँ सेक सकें... कश्मीर में रह रहे लोग किसी जेल की यातना से कम नहीं गुजर रहे हैं....
हम लोगों के लिए ये कहना बहुत आसान है की वहां झंडा क्यूँ नहीं फहराया गया, वहां फलाना काम क्यूँ नहीं हुआ..वगैरह वगैरह..... लेकिन जितनी बंदिशें वो लोग झेल रहे हैं उसमें तो हम और आप शायद १० दिन भी न रह पाएं... आये दिन वहां कर्फ्यू लगा रहता है... ऐसे में वहां झंडा फहराने से ज्यादा जरूरी शांति व्यवस्था बनाये रखना है......
@सतीश जी ,
जवाब देंहटाएंकिसे मरहम लगाने की बात कर रहे हैं आप?
जिन्होंने कश्मीरी पंडितों को बेघर कर दिया और जो दर दर बिचारे आबो दाना के लिए तरस रहे हैं ...
या फिर उन्हें जिनकी बन्दूको से निकली गोलियों ने कितने ही नौजवानों का सीना चाक कर दिया
या फिर उन्हें जिनके जेहाद से सैकड़ों मासूमों की जान चली गयी ?
आप किसे मरहम लगाने की बात कर रहे हैं ..
ये ब्लॉगर तो प्यार मुह्ब्ब्बत की भाषा समझ ही नहीं रहे आप हार्ड कोर क्रिमिनल्स को मरहम लगाने की बात कर रहे हैं ?
भाई जान अपनी बात साफ़ करिए -ताकि कन्फ्यूजन की गुंजाईश न रहे ...
@प्रतुल जी ,
जवाब देंहटाएंवैचारिक निवेश के लिए आभार ..लोग राष्ट्रीय मुद्दे से तनिक जुड़े तो इसलिए यह उदबोधन -नहीं तो प्यार मुहब्बत की अंतर्धारा अभी भी बह रही है ..वह बहती रहे अनवरत इसलिए यह आह्वान और भी मौजू हो जाता है !
अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंदुखद है, आपकी प्रस्तुत देशप्रेम प्रेरणा, लोगों के ‘भाजपा द्वेष’ के कारण धूमिल हो गई।
जितने भी विरोधी विचार प्रकट हुए है, उनकी अपनी कोई वैचारिकता नहीं है, है तो मात्र और मात्र ‘राजनैतिक भाजपा द्वेष’। सभी अपने में राष्ट्रप्रेम होने की बात तो करते है पर भाजपा का नाम आते ही इनके कथित देशप्रेम पर ‘भाजपा द्वेष’ इस कदर हावी हो जाता है कि राष्ट्रद्वेष तक उतर आते है। भले बात कितनी ही योग्य हो भाजपा नें क्यों कही? बस!! बात भाजपा जैसी राष्ट्रवादी विचारधारा नें उठाई है तो देशहित गया खड्डे में, बस विरोध करो, भले अलगाववादीयों को प्रोत्साहन ही क्यों न मिल जाय। अन्त में मात्र कहना भर तो है कि हम राष्ट्रद्रोही नहीं।
यह लोग निर्ममता से इतिहास से वे अंश प्रस्तुत करेंगें जिससे कश्मीर के विवादास्पद की छाप सदा हरी रहे।
बडी चतुराई से जनता का विश्वास जीतने की बात करेंगे, जैसे सब कुछ, सभी जगह विश्वास जीत कर ही किया जाता है।
हालात सामान्य बनाने के प्रयास सराहनीय है, लेकिन इस तर्क को कुटिलता से प्रयोग करना देशद्रोह ही है। सामान्य बनाने के केवल प्रयास ही आपके हाथ है, किन्तु, पाकिस्तान को दुष्प्रचार और दुष्कर्म करने से रोक भी नहीं सकते, वह हालात सामान्य होने ही न देगा तो आप क्या कर लेंगे? और इसी लिये भारत जनमत संग्रह विरोध करता है, आप कितना भी सामान्य होने की प्रतिक्षा करें, उन्हे कभी भी बरगलाया जा सकता है।
@और हाँ प्रतुल जी मृतकों का संबोधन आम पाठकों के लिए नहीं है यह अलगाववादियों का पक्ष बोल रहे और झंडे के स्वाभिमान से खुद न जोड़ पाने वाले मानुषों के लिए है -जो एक विचित्र सी फुसफुसी भाषा बोल रहे हैं !
जवाब देंहटाएं@जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है वह नर नहीं है पशु निरा है , और मृतक समान है ! ...
जवाब देंहटाएंऔर मृतकों से कैसा संवाद ?
डा. साहेब, आपसे पूर्णता सहमत हूं.
@शेखर सुमन जी आपके एक शुभाकांक्षी ने अपना नाम न बताने के अनुरोध के साथ ये टिप्पणी मुझे मेल से भेजी है -
जवाब देंहटाएंतनिक संशोधन के साथ जस का तस प्रस्तुत कर रहा हूँ -
"शेखर सुमन को उत्तर दीजिये।
बताइये कि कथित यातना घर उन ...... ने स्वयं क्रियेट किया है। ईमानदार टैक्स पेयर्स का पैसा मुफ्त सबसिडी में खा खा कर उनका जिगर बढ़ गया है। कथित बन्दिशें न रहें तो कश्मीरी पंडितों के बाद पूरे भारत का वही हाल करें। कर्फ्यू लगाने वाली हरकतें यहाँ से लोग जाकर नहीं करते वही ..... करते हैं। भारत का कोई और हिस्सा होता तो कितनों को पुलिस ही ठोंक चुकी होती। .......... ... मैं अपने व्रत से बाध्य हूँ नहीं तो उसे बताता। इतना ही कह दीजिये - अपने नाम से। वैसे इन ....... से कुछ कहना भी पत्थर पर सिर मारने जैसा ही है। ... नपुंसक व्यवस्था है, क्या कीजियेगा।"
@ अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंफिर वही बात कि अगर किसी ने किसी मुद्दे पर अपने पक्ष रखे तो आपलोग उस पर व्यक्तिगत आरोप लगाने लग जायेंगे.
यहाँ तो ये लग रहा है कि कोई तानाशाही फरमान जारी हुआ है और उस पर प्रश्न उठाने वाले हर इंसान को फांसी की सजा ही नहीं सुनाई गयी, बल्कि मृत भी घोषित कर दिया गया.
मैंने अपने लेख में ये भे कहा है कि यदि तिरंगे के लाल चौक पर आरोहण से सारी समस्याएँ हल हो जाएँ तो मैं खुद जाकर उसे फहराना चाहूँगी, पर किसी पार्टी का पक्ष नहीं लूँगी. ये अंश आपको क्यों नहीं दिखा?
मैंने या उस बहस में किसी ने भी किसी पार्टी का नाम नहीं लिया. आपलोग भाजपा के प्रवक्ता की तरह पेश आ रहे हैं.
@ सतीश जी, कश्मीर के लोग ही खुद को बाहरी नहीं समझते बल्कि हमारे मुहल्ले में रहने वाले पूर्वोत्तर के लोग भी खुद को बाहरी महसूस करते हैं, जिसका कारण ये है कि राजनीतिक पार्टियों को उनकी याद तब आती है, जब चुनाव आता है और खुद दिल्ली के लोग उनसे परायों जैसा व्यवहार करते हैं. यहाँ भी अगर हम जैसे कुछ लोग उनके पक्ष में बोलते हैं तो हमारी खिल्ली उडाई जाती है कि इन चिंकियों से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है. हम ये बात तो करते हैं कि वो लोग कटे-कटे से रहते हैं, पर इसकी जड़ में नहीं जाना चाहते. इसका कारण नहीं जानना चाहते.
@शेखर, मैं तुमसे सहमत हूँ. पर, अगर खुद को जिंदा लोगों की श्रेणी में रखना चाहते हो तो भाजपा के इस मुद्दे के विरोध में मत बोलो.
अंततः, मैं और कोई बहस नहीं करने वाली क्योंकि मैं मर चुकी हूँ और मेरे तर्पण का इंतजाम भी कर दिया गया है. मैं मर चुकी हूँ क्योंकि मुझे हमेशा किसी पार्टी या गुट के एजेंडों से ज्यादा लोगों की परवाह रहती है, मैं शान्ति के बारे में सोचती हूँ. हम जैसे लोग उन लोगों की श्रेणी में आते हैं जिन्हें ना अलगाववादी पसंद करेंगे क्योंकि वे कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हैं, ना भाजपाई राष्ट्रवादी पसंद करेंगे क्योंकि हमें उनके राजनीतिक एजेंडे से ज्यादा लोगों के हितों की चिंता है, न सरकार पसंद करेगी क्योंकि हम कश्मीर के लोगों के हितों की रक्षा न कर पाने के लिए उसकी निंदा करते हैं.
अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा है कि नपुंसक व्यवस्था है, क्या कीजियेगा। एक आम भारतीय की नज़रों से देखें तो तिरंगा न फहराने देना दुखद है, किन्तु व्यवस्था की बागडोर जिन राजनीतिज्ञों के हाथ में है वे हमेशा से ही यह चाहते रहे हैं कि कश्मीर समस्या हल न हो, ताकि मुद्दे जस के तस बने रहे ! इस अवसर पर मुझे किसी की दो पंक्तियाँ याद आ गयी कि "राजपथ पर जब कभी जयघोष होता है, आदमी फूटपाथ का वेहोश होता है !"
अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंआर्य , आप बहुत भावुक ढंग से बातों को ले रहे हैं ! इस वजह से बंजर में तिल से ताड़ उग रहा है ! बात इतना भर समझने की है कि यह सब भाजपाई सियासी कर्म-काण्ड भर है ! और हम सब इसी में भावुक होकर जाने कितना वावदूकताएँ किये जा रहे हैं ! आप द्वारा प्रस्तावित वीडियो के सिरफिरों का कब मैंने पक्ष लिया , पर भाजपाई राह देशभक्ति की राह है , खुशहाली की राह है , इससे मैं लाजमी तौर पर असहमत हूँ ! सादर..!
देश के किसी भी कोने पर तिरंगा फहराना हर भारतवासी का हक है और ये हक उसे मिलना चाहिए.
जवाब देंहटाएंपरन्तु घटिया राजनीति और स्वार्थी राजनीतिज्ञों के स्वार्थस्वरुप नहीं, मासूमो की लाश पर नहीं...
तिरंगा फहरे तो शान से लहलहाए ,खून से लथपथ नहीं..
शेखर सुमन की टिप्पणीयां देखकर बहुत हताशा हुयी।
जवाब देंहटाएंइसी हताशा में मेकाइवली और मैकाले के सपनों का भारत बनता दिख भी रहा है।
जवाब देंहटाएंहार्ड कोर उग्रवादी निहित उद्देश्यों के लिए काम करते हैं उनका एक सूत्रीय काम, देश की एकता को कमज़ोर करना मात्र है ! उन्हें मरहम लगाने की बात सिर्फ एक गद्दार ही सोंच सकता है !
मगर आम जनता भी गहन परिस्थितियों में साथ साथ पिसती है ! निर्दोषों को भी तकलीफ होती है आम जनता के साथ न्याय ही नहीं होना चाहिए बल्कि उनके साथ न्याय हुआ है, यह महसूस भी होना चाहिए !
मरहम की आवश्यकता केवल आम और निर्दोष जनता को है ...चोट उन्हें भी लगी है !
उग्रवादियों की गोली का जवाब सिर्फ गोली से देना चाहिए !
पहले तो अपने शुभाकांक्षी को मेरा प्रणाम...
जवाब देंहटाएंबड़े ही अजीब हालात हैं कश्मीर में जो शान्ति से रहना चाहते हैं वो भी नहीं रह पाते..अब क्या करें गेहूं के साथ साथ घुन तो पिसता ही है....तो क्या लाल चौक पर झंडा फहरा देने भर से ही हमारी देशभक्ति साबित हो जाएगी??? शायद नहीं....इसके लिए बहुत कठोर निर्णयों की जरूरत होगी...और शायद भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ऐसे निर्णय नहीं लिए जा सकें...
अगर लाल चौक पर तिरंगा फहरता तो उसमे एक और रंग जुड़ता, न जाने कितने निर्दोषों के खून का रंग......
ऐसा तिरंगा किस काम का....:(
सुज्ञ की टिप्पणी से सहमत हूँ।
जवाब देंहटाएं"हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम"
....................
एक लाख से अधिक किसानों की मौत पर चुप्पी साधे लोग झंण्डे के नाम पर नौटंकी कर रहे हैं और इसका विरोध करने वालों को मृतक कह रहे हैं? हम यह कैसे भूल जायें कि इस तिरंगे को अशुभ कहकर इसका अपमान करने वाले गोलवलकर और सावरकर की तस्वीरें अब भी उनके दफ़्तरों और घरों में हैं? हम यह कैसे भूल जायें कि अभी आठ साल पहले तक आर एस एस के दफ़्तर पर तिरंगा नहीं फहराया जाता था? हम यह कैसे भूल जायें कि कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के दौरान सरकार ने मुरली मनोहर जोशी को इसी लाल चौक पर झंडा फहराने की अनुमति दी थी? हम यह कैसे भूल जायें कि जब इस देश को दंगों की आग में झोंक देने के लिये आडवाणी रथ यात्रा लेकर निकले थे तो उसके हुड पर हमारा तिरंगा नहीं भगवा झण्डा था? जिस समय कश्मीर में हमारे वार्ताकार गंभीर बहस चला रहे हैं उस समय ऐसा माहौल पैदा करने की कोशिश बस लाशों के सौदागर ही कर सकते हैं। इस देश की जनता यह बख़ूबी समझ चुकी है कि अपने राज्यकाल में कश्मीर का धार्मिक आधार पर विभाजन करने की ठान चुकी भाजपा विपक्ष में किस तरह बिलबिला रही है। कांग्रेस की जगह कोई दृढ़ इच्छाशक्ति वाला शासक होता तो असीमानंद तथा संघी आतंकवाद से ध्यान हटाने की इस घटिया मुहिम का और मज़बूत जवाब देता
जवाब देंहटाएं@ मुक्ति ,
जवाब देंहटाएं"सतीश जी, कश्मीर के लोग ही खुद को बाहरी नहीं समझते बल्कि हमारे मुहल्ले में रहने वाले पूर्वोत्तर के लोग भी खुद को बाहरी महसूस करते हैं,"
यह कड़वा सच है कि हम लोग ( भारतीय ) खुले आम भेदभाव करते हैं ! नोर्थ ईस्ट के लोगों के साथ ऐसा ही बर्ताव होता है ...सामान्य आदमी की बात छोडिये यह बात खुद नोर्थ ईस्ट के एक चीफ मिनिस्टर ने कही कि मुझे हमेशा यह अहसास दिलाया जाता है कि मैं भारतीय का नहीं बाहर का हूँ !
शायद हमारी अशिक्षा और सोंच का संकीर्ण दायरा हमें मजबूर करता है इस कूप मोहल्ले में रहने के लिए ! हम मजबूर और बंधे मन भारतीय अक्सर प्रतिकूल प्रतिक्रिया ( लाल चौक जैसी ) होने पर, इस विशाल भू भाग को एक रखने के लिए कटिबद्ध तो पूरे जोश में हो जाते हैं मगर सूदूर बसी विभिन्न जातियों और संस्कारों को न समझना चाहते हैं और न अपनी गलतियों से सबक सीखने की कोई इच्छा है !
विश्व इतिहास गवाह है जिन्होंने विरोध कि आवाजें नहीं सुनी वे समाप्त हो गए उन्हें इतिहास में भी जगह नहीं मिलती ! अगर जीवित कौम का हिस्सा हैं तो हमें अपने कान खुले रखने चाहिए !
.....
@@@मुक्ति जी
जवाब देंहटाएंतानाशाही फरमान नहीं दिया गया है बल्की मिश्रा जी की ये नाकाम कोशिश थी कि शायद कुछ मुर्दें जाग जाए देशहित की बातों से , लेकिन अफसोस मिश्रा जी फेल गए हों, बल्की मुझे तो लगता है कि उनके प्रयास से कुछ तो भावसून्य भी हो गए । मुझे तो बहुत दुख है कि आफ जैसी युवा पिढी केसे बिमुख हो गई राष्ट्र के मुददे से, शर्मनाक ही कहूँगा । आप बार-बार भाजपा का न जाने क्यों नाम ले रही है , हो सकता है कि आपका भाजपा से कोई व्यक्तिगत झमेला हो लेकिन उसे इस मुद्दे पर नहीं लाना चाहिए , यहाँ देशप्रेम की बात हो रही है ।
@@@अमरेन्द्र भईया
मिश्रा जी ने कब भाजपा का पक्ष लिया , वे तो बस तिरंगे की बात कह रहे थे , ये तो आप लोग हैं जिन्होंने न जाने कहाँ से भाजपा को अंदर कर दिया । किसी एकपक्ष में रहना सिख लीजिए और सपष्ट बोलें कि आप अलगाववादियों के पक्ष में हैं इसलिए लाल चौक पर झंडा नहीं फहराना चाहते हैं ।
@@@शिखा जी
आप भी दो मुही बात कर रही हैं एक तो आप कह रही है कि भारत में झंडा कहीं भी फहराया जा सकता है वहीं ये भी कि लाल चौक पर नहीं , तो क्या लाल चौक भारत का हिस्सा नहीं , या फिर बीजेपी पार्टी भारत की नहीं ।
खून खौल रहा है...लेकिन एक अफ़सोस यह भी है कि यदि भाजपा ने अपनी दुर्गति अपने हाथों न कर आज अपनी डेढ़ दशक पूर्व वाली स्थिति रखी होती, तो यह एक कारण पर्याप्त होता आम जन के धैर्य और गुस्से की बाँध तोड़ने का..लेकिन वर्तमान समय में सभी राजनितिक दलों , किसी ने उन्नीस तो किसीने बीस अपनी छवि एक सी बना छोडी है..यही कारण है कि इनके पीछे कतार न निकली...
जवाब देंहटाएंऐसा नहीं है कि अपने देश और झंडे के लिए मर मिटने के तेवर का देश में अकाल पड़ गया है....बस यह है कि इसे संगठित करने वाला संगठन अभी कोई राष्ट्रिय स्तर पर है नहीं...
पर हतोत्साहित होने वाली बात नहीं...हमारा काम जज्बे को जगाये रखना है...बिगुल बज उठने की घड़ी निकट ही है..
aapki post aur sabke vichar kafi prabhavshali lage hame .vande matram ,mera bharat wakai me mahan hai .
जवाब देंहटाएं@सभी चर्चाकार मित्र ,
जवाब देंहटाएं१-साम्यवादियों को आड़े हाथो लेते हुए जार्ज आर्वेल ने अपने मशहूर उपन्यास में एक पात्र से संवाद बुलवाया था -
सभी जानवर एक जैसे /समान होते हैं मगर कुछ ज्यादा ही एक जैसे होते हैं :)
और वही ज्यादा एक जैसे लोग यहाँ दिख रहे हैं मगर अल्पमत में ही बिचारे!
२-यहाँ राजनीति की बात ही नहीं शुरू हुयी थी मगर कुछ एक जैसों ने अपने पूर्वाग्रहों के चलते राजनीति ,अयोध्या अदि सब यहाँ ले आये और बात का बतंगड़ बना डाले .अब तो मुझे भी लगने लगा कि अगर भाजपा ने इस मुद्दे माप लोगों को संवेदित किया तो क्या बुरा किया -क्या मुद्दा गलत है ? कुछ लोगों के लिए भाजपा अछूत क्यों हो जाती है जब वह राष्ट्र हित की बात करती है ...हाँ यह भी सही है जैसा कि रंजना जी ने कहा है कि भाजपा ने लोगों के साथ छल किया ,उनके अरमानों के अनुरूप कम नहीं किया ,,
नहीं तो अब तक इन समस्याओं का हल हो चुका होता !
कोई और आगे कुछ जोड़ेगा ....
bhai kamal hai........hum itni jaldi apna itihas bhool gaye........jis khoon kharabe ki baat kar.....sahishnuta evam sadbhavna rakhne ke angargal pralap kiye ja rahe hain......unhe kya ye pata nahi...ke ye 'tiranga' kitne khoon bahane par mili hai......to is tirange is 'aan-baan-shaan' rakhne ke liye thora khoon aur bah jane do....
जवाब देंहटाएंya to haan ya to naa....bich ka koi
.....kintu....parantu nahi.........
मेरी टिप्पणियों से कई लोगों को हताशा हो रही है उसके लिए क्षमा चाहूँगा....
जवाब देंहटाएंक्या करूँ, जो मेरे मन में था मैंने कह दिया...
रही बात लाल चौक झंडा फहराने की तो वहां झंडा जरूर फहरना चाहिए लेकिन सैकड़ों निर्दोषों के खून की कीमत पर नहीं....
अरविन्द जी , आपकी दोनों पोस्ट्स पढ़ी । साथ ही टिप्पणियां और प्रतिक्रियाएं भी पढ़ी ।
जवाब देंहटाएंआपके लेखों और टिप्पणियों में जोश भी है और आक्रोश भी, जो सर्वथा उचित है ।
बेशक तिरंगे का अपमान किसी भी गैरतमंद भारतीय व्यक्ति के लिए असहनीय है ।
लेकिन यहाँ थोडा मतभेद हो सकता है । लाल चौक पर तिरंगा फहराने के लिए आम जनता नहीं गई , बल्कि एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के नेता गए ।
तिरंगे पर राजनीति क्या सही है ?
दोनों पोस्ट्स पर आई टिप्पणियों में विचारों का मतभेद नज़र आना स्वाभाविक है । इसे देश के साथ गद्दारी या देश द्रोही करार देना मेरे विचार से उचित नहीं है ।
साथ ही तटस्थ रहना या बहस में भाग न लेना किसी असंवेदनशीलता को नहीं दर्शाता बल्कि व्यक्तिगत सोच पर निर्भर करता है ।
पिछली पोस्ट पर लगभग ९५ % टिप्पणियां पुरुषों द्वारा दी गई हैं जबकि महिला ब्लोगर्स भी बराबर हैं ।
इसे ब्लोगर्स की विविधता ही समझें न कि उदासीनता ।
मेरे विचार से सिर्फ सीमाओं पर लड़ने वाले सैनिक ही देश प्रेमी नहीं होते ।
अपने व्यवसाय में रहकर इमानदारी और निष्ठां से काम करने वाले भी मेरी नज़र में देश भक्त हैं ।
हालाँकि यह बात और है कि ऐसे लोग अब विरले ही मिलते हैं ।
अंत में यही कहूँगा कि बहस का कोई अंत नहीं होता ।
बहस में दुर्भाव उत्त्पन न हो तो बहस सार्थक कहलाएगी ।
शुभकामनायें ।
अब व्यवस्था तो राष्ट्रिय अस्मिता से खिलवाड़ करने उतारू है ... देश प्रेम का जज्बा भी न रहा ...
जवाब देंहटाएंकाश्मीर का सत्य हमारे भीरु चरित्र को रह रह कर उद्घोषित कर रहा है।
जवाब देंहटाएंइस देश में हर बार कोई न कोई नया विवाद पैदा किया जाता है ....अब क्या कहें सबको अपनी अपनी पड़ी है ....बहुत सार्थक से प्रकाश डाला है ...शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ ... :( :(
जवाब देंहटाएंहे ईश्वर इस देश को बचाना प्रभो। रक्षा करना, अब तेरा ही आसरा है प्रभो।
जवाब देंहटाएंलाल चौक पर तिरंगा फहराना ...हर भारतीय चाहेगा की देश के किसी भी कोने में हो ध्वज शान से फहराया जाये ...लेकिन इस कृत्य के पीछे राजनीति हो रही है ...वैसे जो काम इतने सालों से नहीं हुआ वो आज भी न हो यह ज़रूरी नहीं ...वहाँ की जनता का भरोसा जीतना होगा ...
जवाब देंहटाएंसमस्या यह है कि समस्या उठाई किसने!
जवाब देंहटाएंलगता है फिर नई बिसात बिछाई उसने!
तिरंगा फहराना सही है मगर क्यों फहरने दें ?
कल ही तो कहा था हमें भी भाजपाई उसने!
....क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम राष्ट्रीय महत्व के सभी मुद्दों का चुनाव करें और यह तय कर लें कि हर बिंदु पर समाधान की नीति क्या हो ?
जो नीति निर्धारित कर ली जाय उस पर सभी पार्टियों को चलना ही पड़े। उसकी सफलता या असफलता का सेहरा किसी एक पार्टी के सर न हो।
एक सर्वदलीय बैठक बुला ली जाय जिसमें हर पार्टी समस्या से अवगत विद्वानो की एक निश्चित संख्या मुहैया कराये। इन विद्वानों द्वारा लिया गया निर्णय अंतिम और राष्ट्रीय निर्णय मान लिया जाय।
विभिन्नता में एकता भी हमारी एक शक्ति रही है .लोंगों के विचारों को इस नजरिये से भी देखने की जरूरत है.
जवाब देंहटाएंएक बात और भी स्पष्ट कर देनी चाहिए की राष्ट्रवाद किसी पार्टी या संगठन की बपौती नहीं है और उसकी बात करने का मतलब यह कदापि नहीं है हम किसी राज नीतिक दल से जुड़े है जो किसी एक धर्मं के बारे में ही बात करता हैं.
समस्या यह है कि अपनें विचारों को व्यक्त करना भी अब समस्या हो गयी है क्योंकि उसे भी राज नीतिक रंग दिया जाने लगता है.
अपने देश मे अपना झंडा फ़हराना हम सब का हक हे, कशमीर को शुरु से ही अलग ओर विशेष राज्य का दर्जा दिया गया हे? क्यो? ओर वो सिर्फ़ एक साल के लिये ही था, फ़िर पिछले ६३ साल से उस कानून को उस धारा ३७० को बदल क्यो नही, यही भाजपा भी तो आई थी, इस ने क्यो नही बदला उस धारा को? क्यो हर बार रियात देते हे उस राज्य को, क्यो सेनिक कम करते हे? जब वहां से हिंदूयो को मार मार कर निकाल गया तो उस समय यह नेता क्यो नही जागे? क्यो नही जब इन का राज था उस समय इन्हे वापिस वही बसाया गया? बहुत क्यो बहुत से हे, सिर्फ़ एक दिन जा कर झंडा लहराने से क्या होगा? अगर कुछ करना हे तो अब करे, इस सरकार को घूटनो पर लाओ कि उस धारा को हटाओ, जो झंडे से ज्यादा कारगार हे जब यह धारा हटेगी तो रोजाना वहा झंडा फ़हराए,
जवाब देंहटाएंमै राजनीति तो नही जानता लेकिन जब भी दुर से देखता हुं तो मुझे जनता का ही दोष नजर आता हे, जिस मे हम सब शामिल हे, ओर किसी नेता या पार्टी के भडकाने से हम भडक जाये यह अच्छा नही, हर काम होश से होना चाहिये जोश के संग भी होश होना चाहिये अकेले जोश से काम बिगडता हे
अरविंद जी … सावरकर ने भी संघियों के बारे में कुछ कहा था - 'संघ कार्यकर्ता की समाधि पर लिखा होगा कि यह पैदा हुआ, इसने शाखाओं में हिस्सा लिया, बैठकें की और मर गया।'
जवाब देंहटाएंअगर बहुसंख्या ही हर बात का निर्णायक होती है तो कश्मीर के मामले में वहाँ की बहुसंख्या के निर्णय को क्यूं न माना जाय? और अगर सच वह है जो तर्क कहता है और बहुसंख्या हमेशा सही नहीं होती तो हमारी बातों को अल्पसंख्या की बात कहकर ख़ारिज़ करने को आपकी हताशा समझी जाय या फिर कुछ और?
@शेखर सुमन
जवाब देंहटाएंजो लोग लालचौक पर तिरंगा फहराने की वजह से दंगा करेंगे और खून खराबा करेँगे .
क्या वो लोग तुम्हे निर्दोष लगते है ?
और क्या अब वहाँ तिरंगा फहराने के लिये ऐसे "निर्दोष लोगो" से अनापत्ति सर्टिफिकेट लेना पड़ेगा ?
सही दिशा में जा रही है बात......लगे हाथ थोड़ा आप लोग "concept of Nationality" पर भी डिस्कशन कर लिजिये . :);) . अकेडमिक्स में आजकल यह एक गम्भीर मुद्दा है.
जवाब देंहटाएं(अब मुझे ही कुछ लिखने के लिये मत कहियेगा,इसके एक्स्पर्ट बहुत से विद्वजन हैं यहां! )
अशोक कुमार पांडे जी
जवाब देंहटाएंआपसे किसने कहा कि आप कुछ भूलिये.
पर आप कुछ बाते भूल गये. उनको भी मत भूलिये
जैसे कश्मीर से तीन लाख कश्मीरी पंडितो का सूपड़ा साफ कर दिया गया.
(2) इसी लालचौक पर कई बार पाकिस्तानी झंडे फहराये गये
और भी बहुत कुछ.......
अगर आप इन सब बातो को भी नही भूलेँगे
तो आप अच्छे सेकुलर बन सकते है
कुछ लोग बीजेपी बीजेपी कर रहे है
जवाब देंहटाएंउनकी जानकारी के लिये बता दूँ कि इस देश मे आजादी के बाद इन 62 सालो मे बीजेपी ने केवल मात्र 5 साल शासन किया है और 55 साल कांग्रेस ने शासन किया .अब इन 55 सालो मे कांग्रेस ने इस देश का जितना कबाड़ा किया.इस देश को जो कभी न भरने वाले घाव दिये और जो भरष्टाचार की गंदगी फैलायी है.
उसको साफ करने की उम्मीद आप बीजेपी से केवल पाँच साल मै कैसे कर सकते है? क्या बीजेपी के पास कोई जादू की छड़ी थी जो कांग्रेस की पचपन साल की फैलायी गंदगी को पाँच साल मे साफ कर देती ?
अगर लाल चौक पर तिरंगा फहराने वाले राजनीति कर रहे हैं तो उन्हें रोकने वाले क्या राजनीति नहीं कर रहे ...... अब तो लगता है किसी दिन शांति के नाम पर देश को बेच खाऊ ये लोग लाल किले पर तिरंगा ना फहराने देने को भी न्यायसंगत ठहरा देंगें ...... उसे के लिए कोई पार्टी उठ खड़ी होगी तो उसे भी राजनीति का नाम दे देंगें ..... आपकी हर बात से सहमत .....
जवाब देंहटाएं@अशोक कुमार पाण्डेय जी ,
जवाब देंहटाएंअभिषेक 'आर्जव 'जी ने राष्ट्रीयता की अवधारणा
की बात भी उठायी है -लगता है अब दोगली और दुहरी नागरिकता जैसे बिंदु भी विचारित होंगे
जिनके चरित्र नायक आप और मुक्ति जी सरीखे लोग होंगे ..जो बौद्धिकता के आग्रह में इतना संभ्रमित
हो चुके हैं की अपने आँखों के सामने के नग्न सत्यों को नहीं देख पा रहे हैं -और अपनी विरासत ,इतिहास भूगोल सभी के
साथ गद्दारी कर रहे हैं ....इसकी आप लोगों को निश्चय ही भारी कीमत चुकानी होगी --उस लोक में नहीं यही अपने ही लोगों के बीच ..जद्यपि जग दारुण दुःख नाना सबसे कठिन जाती अवमाना
हम आपको अपने ब्लॉगर बंधुत्व से बहिष्कृत करते हैं ....न न यह कोई फ़तवा नहीं ..एक पीड़ा की अभिव्यक्ति है .....
अपना अलग कुनबा बनाये रखिये ...जार्ज आर्वेल के 'ज्यादा एक जैसे लोगों का ...'
मगर राष्ट्र आपको माफ़ नहीं करेगा ....देखते रहिये यह राष्ट्र भक्ति ,प्रेम का जज्बा आप लोगों को किस ठांव ठौर पहुंचा देता है !
1-खाए पिए अघाए लोगों
जवाब देंहटाएं2-गमें रोजगार,गमें मआश से मारे लोगों
3-आमोद प्रमोद घर परिवार और प्रेम प्रणय मनुहारों में लगे लोगों
4-कुछ तटस्थ खड़े तमाशे देखते और फिर अपने बाल बीबी बच्चों की फ़िक्र में लग गए तो कुछ अपने ही जयचंद जैसे अलग ढपली अलग राग बजाते लोगों
"खाने" "बजाने" और "पाखाने" से इतर भी कुछ प्राथमिकताएँ होती जिसमे आत्मसम्मान और आत्माभिमान जैसी चीज़ें भी शामिल हैं। लेकिन क्या करें, अंधों के आगे रोना अपने भी नैना खोना। दिल्ली मे खुले आम केंद्र सरकार के संरक्षण मे देश की संप्रभुता पर चोट की जाती है और तथाकथित जनपक्षकारों को कुछ नहीं दिखता, काश्मीर मे खुलेआम पाकिस्तानी झंडे फहराए जाते हैं और इनकी आंखो मे मोतियाबिंद हो जाता है... ज़ुबान लकवा मार जाती है। भाजपा के झण्डा फहराने पर इतना ऐतराज, काश्मीर मे तिरंगा न फहराए जाने पर क्या?
मिश्र जी ... सोते को जगाया जाता है। बेहोश और मृतात्माओं को क्या जगाएँगे।
झण्डा फहराना भाजपा का राजनीतिक शगल हो सकता है। लेकिन एक फायदा तो ज़रूर हुआ। दो पैसे की हांडी गई तो गई... लेकिन कुत्तों की ज़ात तो पहचानी गयी।
सच है-आधुनिक वृहन्नलाओं की पहचान ऐसे ही मौकों पर होती हैं..
जिसे कश्मीर की स्थिति देखनी है उसे काश्मीर ज़रूर जाना चाहिए। उसके बाद शायद उसे कुछ समझ मे आए।
"दोगली और दुहरी नागरिकता" यह विषय बहुत दिनों से मेरे अंगरतम को मथ रहा था ... इस पर विचार अति आवश्यक है।
जवाब देंहटाएंसोने की चिड़िया को जाने कितने ही लूट गए होंगे
जवाब देंहटाएंजब जब टूटी है डाल नए सौ अंकुर फूट गए होंगे
पथ कसम तुझे दुर्गमता अपनी कभी न कम होने देना
मेरे पैरों के शोणित से अपना वक्षस्थल धो लेना
थक कर गिरना, गिर कर उठना ये नियति भले हो सकती है
पर रुकना नहीं भले पग में काँटे सौ टूट गए होंगे
हो सजग पहरुओ भारत के पग भर यह भूमि न बंट जाए
यह सर काँधे पर रहे कि चाहे लड़ते लड़ते कट जाए
हम कभी न थक कर बैठेंगे है लक्ष्य हमारी आँखों में
हम भी उस राह चलेंगे जिस पर वीर सपूत गए होंगे
अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंयह एक प्रकार की विचारधारा सदैव राष्ट्रवाद का विरोध करती आई है, निश्चित ही वे खुलकर राष्ट्र्प्रेम का विरोध नहीं कर पाते,इसलिये किन्तु-परन्तु से द्रोह भावना का प्रसार करते है। वर्गविग्रह में खुन-खराबे को जायज मानने वाले राष्ट्र संप्रभुता के लिए खुन-खराबे की दुहाई देते है।
बिना रक्त बहाए कोई राष्ट्र सुरक्षित नहीं रह सकता।
हमारी सेना का रक्त भी हमारा ही है। क्यों बहाते है?
अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंलोग कहते है यह राजनिति है, और तिरंगे पर राजनीति क्या सही है ?
राजनितिज्ञ हमारे ही अंश होते है,हम उन्हें हमारा नेतृत्व करने के लिये प्रतिनिधि बनाते है,वे हमारे व्यवस्था के कार्य करते है।और से ही प्रतिक्रिया करते है, माना कि राजनिति बदनाम हो गई, कर क्या जो राजनैतिक विचारधारा हमारे विचारों से मेल नहीं खाती उस समुदाय के व्यक्ति को अपना देशप्रेम उजागर करने का हक़ नहीं।
जनता आखिर लोकतंत्र के चारों स्तम्भ सहित राजनेताओ के माध्यम से ही मुखर होती है।
फ़िर मात्र यह अपराध हो गया कि भाजपा क्यों मुखर हुई?
मान लेते हैं कि भाजपा के अपने राजनैतिक लाभ हो सकते है। पर हमारा जी उसकी हंडिया पर क्यों चिपका है। हम सीधे सीधे उनके मंतव्यो से राष्ट्र-प्रेम को क्यों नहीं चुन लेते?
धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा
जवाब देंहटाएंकुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँसा
कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है
मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है
दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे
बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे
प्यारे स्वदेश के हित अँगार माँगता हूँ
चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ
बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है
मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा?
...........
......अब विद्वान यह न कह दें कि यह क्या लिख दिया! राष्ट्र कवि याद आ गये तो मैं क्या करू ?
इसका शुक्लपक्ष यह रहा कि इस वर्ष घाटी में कहीं भारतीय झंडा जलाने या पाकिस्तानी झंडा फहराने का समाचार नहीं मिला। क्या यह एक अच्छा संकेत नहीं है?
जवाब देंहटाएं@वाह देवेन्द्र जी आप तो नैसर्गिक कवि हैं ,
जवाब देंहटाएंसुन्दर सारगर्भित और सटीक अभिव्यक्ति !
मित्रों ,
जवाब देंहटाएंइस ज्वलंत मुद्दे पर अब विमर्श का उपसंहार हो चूका है -
ज़ाहिर है कुछ लोग महज अपने प्रायोजित उद्येश्यों के तहत जन मन की
अवहेलना कर रहे हैं और जानबूझ कर एक लिजलिजे अभिव्यक्ति का सहारा
ले रहे है ..ये खुद ही जन मन से बहिष्कृत होने को अभिशप्त हैं ..इन्हें छोडिये और अपने मुहिम पर
लगे रहिये .....
बहुत आभार
उद्धरित कविता राष्ट्र कवि राम धारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविता 'आग की भीख' का अंश है। जो आज भी प्रासंगिक है।
जवाब देंहटाएं@ आदरणीय डा दाराल साहब ने कहा की निष्पक्ष रहने में कोई बुरी बात नहीं....
जवाब देंहटाएंइसी सन्दर्भ में दिनका जी ने अपनी कविता "समर शेष है" में कहा है....
"समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध.
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध."
कुछ मुद्दे होते हैं जिनमे तटस्थ रहना आत्मघाती होता है......
किसी ने कहा....की ये तिरंगा यात्रा....जनता ने नहीं बल्कि भाजपा ने शुरू किया....तो क्या सिर्फ भाजपाईयों के छो लेने से ये आप लोगों के लियी अस्पृश्य हो गया...५५ साल में अब्दुल्ला साहब ने क्या कर दिया वहाँ की भाजपा की बात आ गयी....
मुझे भी याद है अरविन्द साहब ने पार्टी की बात ही नहीं की थी....
अरविन्द मिश्र जी,
यहाँ पे जितनी भी चर्चा चली..वो मुझे नन्द वंश के समय मगध की कहानी की याद दिलाती है...आचार्य विष्णुगुप्त ने जब अखंड भारत (जिसमे गांधार, कैकेय और तक्षशिला भी था) के लिए नन्द वंशियों का विद्रोह किया था ज्यादातर लोगों ने उनका विरोध ही क्या था.... और लोगों ने उनको भारत के खिलाफ विद्रोह भी कहा था.... जबकि चाणक्य की उस बात ने अखंड भारत का स्वप्न पूरा किया....
@मोनिका जी की बात भी सही है....अगर झंडा फहराना राजनीति है तो उसको नहीं फहराने देना राजनीति कैसे नहीं है?
लोग कह रहे हैं....झंडा नहीं भी फहराया तो क्या हो गया....अरे साहब दिल्ली में भी नहीं फहराया जाता तो थोड़े ही ना कुछ हो जाता...उनका जरूर जाता जो इनको गौरव और आत्म सम्मान की बात समझते हैं....
दीवाली आदि पर्व भी अगर ना मनाये जाएँ तो क्या हो जाएगा.....लेकिन मानते हैं.....
एक बात और जोड़ दूं.....कुछ लोग जो कह रहे हैं क्या फर्क पड़ता है ग्फंतंत्र दिवस मनाने से....उनमे से कुछ लोग तो प्रतीक्षा कर रहे हैं १४ फरवरी की....२६ जनवरी से उन्हें क्या मतलब.....
फिर कभी बाद में....
प्रणाम.
यहाँ बहुत लोगों को लग रहा है की राष्ट्रभक्त मर चुके है....लेकिन मैं कहता हूँ की जितने भी ज़िंदा है वो करोड़ों के बराबर है. और जो मर भी गए हैं (या जिन्हें लोग मरा हुआ मान बैठे हैं ).वो भी कम नहीं है.....और वो सावधान कर रहे हैं औरों को......मुक्तक के माध्यम से कहता हूँ....
जवाब देंहटाएं"मैं नहीं हूँ लाश कोई, ना समझ मुझको मरा
मर भी जाऊं गर कहीं तो दंश न घटता मेरा
पूछ ले जाके परीक्षित से की कैसा स्वाद था.
जब मरे एक सर्प के डसने से चक्रवर्ती मरा.
राजेश "नचिकेता"
kafi acchi bahas chal rahi hai arvind ji aapki itni acchi pahal ke liye badhai
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता इसलिये मिल गयी कि उस समय पढ़े लिखे लोग न के बराबर थे. अगर सब पढ़े लिखे होते मैकाले वाली शिक्षा के तो अंग्रेजों को कभी न जाने देते. क्या झण्डा न फहराने से शान्ति आ जायेगी. आतंकवादी घटनायें बन्द हो जायेंगी, पाकिस्तान घुसपैठ बन्द कर देगा? यदि नहीं तो झण्डा क्यों न फहराया जाये. भाजपा राजनीति कर रही है तो इसका मुंहतोड़ जबाव था कि लाल चौक में सभी दल झण्डा फहराते. लाखों कश्मीरी हिन्दुओं का दर्द बाकियों की छाती में क्यों नहीं उठता, क्योंकि इससे साम्प्रदायिक होने का लेवल लग जायेगा या सिर्फ मुसलमानों से ही सम्बन्धित मामलों में दर्द होता है. झण्डा फहराने पर जो हिंसा करें वे आतंकवादी ही हो सकते हैं और आतंकवादियों का इलाज गोली ही है जो केपीएस गिल ने किया था. घाटी में भी हिन्दू थे जिन्हें मारकर घाटी को अल्पसंख्यक (मुस्लिम) बहुल बना दिया गया और अब बात हो रही है जनता के फैसले की. बहुत खूब. यही हालात पूरे देश में सामने आने वाले हैं. हम उत्तर प्रदेश वाले किसी को बाहरी नहीं मानते, चाहे वह कश्मीर के हों या असम, नागालैण्ड के. किसी मराठी/पहाड़ी/कश्मीरी/असमी को पिटते देखा है यूपी में.तिरंगा मिला ही शहीदों के खून से, बलिदान से. किसी की दया से नहीं. मतिभ्रम के शिकार लोगों को आजादी के पहले और बाद के दंगे याद नहीं आते. इतिहास नहीं पढ़ा जाता जो गजेटियरों में दर्ज है.क्या हमें किसी बाहरी आक्रान्ता की आवश्यकता है. हम खुद ही इतना उलझ गये हैं कि राष्ट्र के रूप में एक हैं ही नहीं. यदि झण्डा न फहराने से समस्याओं का समाधान हो जाये तो फिर ठीक है, लेकिन न हो सका तो. पूरा देश कर देता है और कश्मीर में सब्सिडी से मौज, इस सबके बाद कश्मीर अलग हो. गोद में बैठकर दाढ़ी मूंढ़ने जैसा कृत्य है. हो सकता है कुछ लोग टैक्स न देते हों. बहुसंख्या के निर्णय होने लगें, अच्छा है, पूरे देश में महत्वपूर्ण मुद्दों पर मैनडेट करा लिया जाये, कलई खुल जायेगी.. जिनके यहां पूर्वज शहीद हुये हैं, उन्हीं को दर्द होता है.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक अभिव्यक्ति ..बेहतरीन विमर्श ....शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंकुछ सोये हुओं को जगाने का प्रयास मैंने भी किया है.....
जवाब देंहटाएंजरूर पधारिये.....
माता के आँचल तक किसका हाथ बढ़ गया..
वधा गया दुस्साशन, रावण बलि चढ़ गया.
चीर हरण करने को ये फिर कौन उठ रहा.
उठो देश के वीरों माँ का मुकुट लुट रहा.
पूरी कविता यहाँ मिलेगी...
http://swarnakshar.blogspot.com/
प्रतुल मुक्ति और शेखर जी से काफी हद तक सहमत हूँ ऐसा क्यों लगता है कि भाजपा ने ही देश प्रेम का ठेका ले रखा है? वोटों की राज्निती है सब। उन ज़िन्दा लोगों से कुछ मरे हुये अच्छे हैं जो जिन्दा रह कर ज़िन्दा लोगों को किसी आग मे झोंकने से भी परहेज नही करते। देश प्रेम कब से केवल भाजपा की बपौती बन गया? किसी भी मुद्दे पर दो राय हो सकती हैं लेकिन उसे पार्टीबाजी मे उलझा कर कोई हल नही निकल सकता। सुग्य जी अगर ये भाजपा दुवेश है तो इसका विरोध करने वालों मे भी तो किसी न किसी के लिये दुवेश होगा। मेरा कहने का भाव है कि मुद्दा राजनिती बन गया है न कि इस बात पर बहस हुयी कि इस दौर मे वहाँ झंडा फहराना क्यों सही है और क्यों गलत। अर्विन्द जी माफी चाहूँगी आपने आवेश मे सब उन लोगों को गालियाँ दे दी जो देश से प्रेम करते हैं और केवल और केवल शान्ति और्5 अमन चाहते हैं। धन्यवाद।
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