शुक्रवार, 22 जून 2012

अब राम को कौन बताए कि वे कहां रहें? (मानस प्रसंग -2)


मानस पारायण चल रहा है...राम वन गमन का प्रसंग पूरा होने का नाम ही नहीं ले रहा। दुःख का समय कहां जल्दी बीतता है! सुख तो मानो पंख लगाकर उड़ चलता है और दुःख अंगद का पांव बन टाले नहीं टलता। यह पूरी गर्मी मानस के वन गमन को समर्पित हो गयी है। राम महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में आ पहुंचे हैं। लम्बा वनवास काटना है तो एक निरापद जगह की तलाश में हैं। वन गमन के पिता के आदेश की पूरी कथा बताकर वे वाल्मीकि से सहसा ही पूछ बैठते हैं - मुनिवर वह जगह बताइये जहां मैं सीता और लक्ष्मण के साथ कुछ समय व्यतीत कर सकूं। वाल्मीकि सुन कर मुस्करा पड़ते हैं। सकल ब्रह्माण्ड का स्वामी, सर्वव्यापी का यह मासूम प्रश्न वाल्मीकि को मानो निःशब्द कर देता है - अब वे क्या उत्तर दें?  कौन सी जगह उन्हें बता दी जाये जहां वे न रहते हों - बहुत दुविधाजनक जनक सवाल है। राम तो कण कण में व्याप्त हैं - कोई जगह उनसे अछूती रह गयी हो तो न बताई जाये। वाल्मीकि साधु साधु कह पड़ते हैं - सहज सरल सुनि रघुबर बानी साधु साधु बोले मुनि ग्यानी...

आखिर वाल्मीकि कह ही पड़ते हैं कि हे राम मुझे यह कहने में भी संकोच हो रहा है मगर जहां आप न हों वह स्थान तो बता दीजिये ताकि मैं चलकर वही स्थान आपको दिखा दूं? यह पूरा प्रसंग, यह संवाद ही बहुत रोचक बन गया है। राम वन गमन की भीषण ग्रीष्म सरीखी यात्रा में मानो यह एक छायादार पड़ाव हो... राम का आग्रह था तो वाल्मीकि को जवाब देना ही था। उनका जवाब इतना विवेकपूर्ण और प्रत्युत्पन्न मति का सुन्दर उदाहरण है कि सोचा आपसे साझा कर लूं। राम वाल्मीकि संवाद के कुछ अंश यूं हैं -

एक पल को तो राम ऋषिवर की यह बात सुन सकुचा गए - कहीं मेरी लीला का भेद न सभी आश्रमवासियों पर खुल जाये। मगर फिर ऋषिवर ने बात संभाल ली। वह विस्तार से बताने लगे कि राम कहां रहो...वे कई ठांव बताते हैं। राम तुम उन श्रवण रंध्रों में जाकर रहो जिन्हें रामकथा बहुत प्रिय है। आप भक्तों के ह्रदय में बस सकते हैं। आप गुरु देवता और ब्राह्मणों का सम्मान करने वालों के मन में जाकर रहिये...और भी जगह हैं जहां आप रह सकते हैं -

काम कोह मद मान न मोहा लोभ न छोभ न राग न द्रोहा
जिनके कपट दंभ नहीं माया तिन्ह के ह्रदय बसहु रघुराया

अर्थात जो काम क्रोध मद अभिमान मोह लोभ क्षोभ राग-द्वेष कपट दंभ और माया से रहित हैं, क्यों न आप उनके ह्रदय में निवास करें? जो दिन रात आपके सदैव शरणागत हैं आप उन के मन में जाकर रहिये...

जे हरषहिं पर सम्पति देखी दुखित होहिं पर बिपति विशेषी
जिनहिं राम तुम प्रानपियारे तिनके मन शुभ सदन तुम्हारे

हे राम आप जिन्हें प्राणों से प्रिय हैं और जो दूसरो की संपत्ति देखकर हर्षित होते हों और दूसरे के दुःख को देखकर दुखी, आपके लिए उनके मन शुभ निवास स्थान हैं।

जाति पांति धनु धरम बड़ाई प्रिय परिवार सदन सुखदाई
सब तजि रहहुँ तुम्हहि उर लाई तेहिं के ह्रदय रहहु रघुराई

जो जाति पांति धन धरम बड़ाई और प्यारे परिवार और सुख देने वाले घर को त्याग  आपमें ही मन लगाए बैठा हो, आप क्यों न उनके ह्रदय में रहें...

अब लीला पुरुष असमंजस में हैं। उन्हें तो अपने लीला के लिए एक जगह चाहिए। मुनि हैं कि उन्हें सर्वव्यापी बनाए रखने पर ही अड़े हुए हैं। आखिर ऋषिवर राम की दुविधा का एक हल निकाल ही लेते हैं -

चित्रकूट गिरि करहुं निवासू तहं तुम्हार सब भांति सुपासू

हर तरह की सुविधा लिए चित्रकूट पर्वत आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। आप वहां जाकर अपनी लीला का विस्तार कीजिये प्रभु! और श्रीराम के पग चित्रकूट की ओर बढ़ चलते हैं...जय श्रीराम!

24 टिप्‍पणियां:

  1. अब तो चित्रकूट जाने के लिये लखनऊ से जबलपुर वाली चित्रकूट एक्सप्रेस भी चलने लगी है। उसमें रिजर्वेशन भी आसानी से मिल जाता है।

    बोलो सियावर रामचन्द्र की जय।

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  2. परोक्ष रूप से संदेश स्पष्ट है कि राम किन प्रकार के मनुष्यों को प्राप्त होते हैं..

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  3. जय श्री राम | :)

    अब गर्मियों का मौसम गया - शीतल फुहारें पड़ रही हैं | राम दिलों में रहने पधारे हैं, स्वर्ण महलों से निकल कर :)

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  4. सुन्दर प्रसंग! भक्त के हृदय में तो भगवान रहेंगे ही।

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  5. राम से बड़ा राम का नाम ...
    रोचक प्रसंग !

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  6. बड़े साल बाद पढ़ा यह प्रसंग ...
    आभार आपका !

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  7. राम ने जब ऋषि से पूछा तो उन्होंने बड़े विस्तार से ऐसे-ऐसे उदाहरण गिनाए,जिससे भगवान राम भी निरुत्तर हो गए.यह एक बड़ा प्रसंग है.

    ...मैंने जो आज पथ पढ़ा है उसमें सीता-हरण के बाद राम जी विलाप कर रहे हैं...

    हा गुन खानि जानकी सीता|रूप सील ब्रत नेम पुनीता||
    लछिमन समुझाए बहु भाँती |पूछत चले लता तरु पाती ||
    ...जितना उनको समझाया जा रहा है,उतना ही वे विरह में अपना होश गँवा रहे हैं,आम आदमी की तरह !

    आगे देखिये :
    पूरनकाम राम सुखरासी|मनुज चरित कर आज अबिनासी ||

    वे हम मनुष्यों की दिलासा के लिए ही यह सब कर रहे हैं !
    जय श्रीराम !

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  8. भीषण ग्रीष्म में चित्रकूट गिरि करहुं निवासू तहं तुम्हार सब भांति सुपासू ... मूल लक्ष्य के पूर्व का विश्राम. एक गहरी सास फिर दौड.. जय सियराम!

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  9. आम आदमी से रामजी..... जीवन से जुड़े से... सुंदर प्रसंग

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  10. राम तो कण कण में व्याप्त हैं .
    हम ही उन्हें यहाँ वहां ढूंढते फिरते हैं .
    और माटी पत्थर के पुतले को राम समझ लेते हैं .

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  11. यही तो राम की महिमा है कण कण मे समाये हैं बस नज़रों के धोखे से ना नज़र आये हैं।

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  12. श्री राम की बातें अगम्य की ...बार-बार सुनने और गुनने की..

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  13. आपने कहा ये दुखद प्रसंग है सो ये भी नहीं लिख सकता कि सुन्दर प्रसंग !

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  14. सार्थक ...सार्गर्भित पोस्ट ...
    आभार.

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  15. सुन्दर पावन प्रसंग.... जय सिया राम.
    सादर.

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  16. यह पूरा प्रसंग, यह संवाद ही बहुत रोचक बन गया है। राम वन गमन की भीषण ग्रीष्म सरीखी यात्रा में मानो यह एक छायादार पड़ाव हो... राम का आग्रह था तो वाल्मीकि को जवाब देना ही था।

    जितना सुंदर प्रसंग उतनी ही प्यारी व्याख्या ।

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