अली सैयद से मेरी मुलाक़ात कोई बहुत पुरानी नहीं मगर लगता है हम कभी अपिरिचित रहे ही नहीं ...यह उन दिनों की बात है जब अंतर्जाल को लेकर मेरे रूमान ढह रहे थे और कितने ही रूप रंगों के मनुष्य दर मनुष्य अपने चित्र विचित्र चेहरों के साथ यहाँ आ जा रहे थे-तभी अली अवतरित हुए ....कुछ आशा और विश्वास का संचार करते हुए ..और हम जम गए ..हमारी जम गयी ...और छनने लगी ....एक बहुत ही खास बात जो हमने अली की पाई है -वे अंतर्जाल -ख़ास कर हिन्दी ब्लॉग जगत में सर्वव्यापी है .आप को पता नहीं होता और वे आपकी पोस्ट चुपके चुपके पढ़ रहे होते हैं ....और हिन्दी ब्लॉग जगत की एक एक बारीकियों से परिचित हैं ...किसका टांका किससे भिड़ा ,किससे टूटा ,कहाँ और कब टूटा , कौन कैसा ब्लॉगर है आभासी जगत में और निजी जीवन में भी -सच कहूं तो ब्लॉग जगत के चलते फिरते ज्ञानकोष हैं अली ....अगर कोई हिन्दी ब्लॉग जगत का इतिहास लिखना चाहे तो अली की सेवायें ले सकता है ....मैं अली को प्यार से अली सा कहता हूँ ....अली साहब का संक्षिप्तांतर!
अली सा बहुत मजाकिया भी हैं ..मतलब मनो विनोदी .अपनी बातों से ऐसा हास्य उपजाते हैं कि हँसते हँसते पेटो में बल पड़ जाते हैं ...मैं मना करता हूँ अली अब और नहीं ..और नहीं ....और यह हास्य वे बहुत बार ब्लॉग जगत के हस्तियों की जोडियाँ बना बना कर करते हैं ..अरविन्द भाई फला फला की जोड़ी कैसी रहेगी ...केवल शुद्ध हास्य ..बस ..किसी के प्रति कोई बुरी नीयत नहीं ..भाव नहीं ....मैं कुछ ज्यादा बात खोलूँगा तो शायद किन्ही /किसी को बुरी लग जाय ....जो न मैं और न अली चाहते हैं ...मैंने अली सा से एक बैठकी में घंटो चैट किया है ..इन दिनों मुझसे खफा हैं कहते हैं मैं उनसे पहले जैसी बात नहीं कर रहा ..क्या मामला है? हमेशा जल्दी में क्यूं रहता हूँ ? .बिजली अली सा बिजली .बस बिजली ....बिजली ..बिजली ...हमें एक दूसरे से दूर किये हुए है न..और भला हो भी क्या हो सकता है ....मगर अली सा इन दिनों मैं बहुत खुश हूँ ....
मैंने अली सा से चैट कर कर के उनके बारे में एक बायोग्राफी तैयार की है ...आप भी शायद पढना चाहें ....
बायोग्राफी
अली सैयद ने उच्च शिक्षा सागर विश्व विद्यालय से प्राप्त की और १९८१-८२ में
नृजाति (Anthropology ) एवं समाजशास्त्र विभाग में लेक्चरर भी रहे ...संयोगवश उसी साल ( जनवरी १९८२ ) समाजशास्त्र और समाज कार्य विभाग की पृथक स्थापना भी हुई सो बिल्ली के भाग से छींका टूटा और विभाग के तीन संस्थापक सदस्यों में से अली एक हो लिए ! वे कहते हैं कि इस उपलब्धि को उनकी तुक्के पर आधारित उपलब्धि माना जाये . जनजातीय समाजों और संस्कृति उनकी विशेष अभिरुचि के मुद्दे रहे सो शोध के नाम से नौकरी से पहले दर दर बस्तर भटके !१९८२ अगस्त से बस्तर में फिलहाल अली सा की समाजशास्त्र की वजह से रोजी रोटी चलती है ! उनसे मैंने बस्तर की घोटुल प्रथा के बारे में और उन्मुक्त और सहज प्राप्य यौन साहचर्य की मीडिया रिपोर्टों और लोगों के संस्मरणों की जानकारी सहज उत्सुकता वश करनी चाही तो वे दुखी हो गए .उन्होंने कहा कि "मिश्रा जी यहाँ के लोगों की अति दयनीय और अमानवीय स्थितियों को देखकर तो कलेजा हिल जाता है कैसे लोग रुमान और श्रृंगार ढूंढते हैं ,ऐसे लोगों की रुचियों से ही उबकाई सी आती है ." मैंने अली को सलाम ठोका ! मैं यह किसी से सुनना चाहता था ! पहली बार किसी ने सच्चे सहृदय मन से कोई बात कही थी अन्यथा तो नराधमों की बातों ने कितना ही दिमाग को संतप्त कर रखा था ...
अली का जीवन मध्यवर्गीय और मुकदमों से जूझते किसान के घर में बीता और प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूलों की दया से हासिल हुई ...घरेलू माहौल ऐसा था कि पता ही नहीं चला कि हिन्दू और मुसलमानों में घृणा के सम्बन्ध होने ही चाहिये..लिहाज़ा दोस्ती यारी में भेदभाव नहीं कर पाये और ना ही त्योहारों ...न जाने क्यों लगा ही नहीं की किसानों के मज़हब भी अलग अलग हो सकते हैं ..इनकी बुआ टीचर थीं सो उनके स्कूल और उनकी सोहबत में कथा कहानियों और उपन्यासों को पढने की लत लग गई थी ...जनाब मदरसे भी गये और कुरान भी पढ़ी ,अरबी और उर्दू भी और संस्कृत भी .बीते दिनों की यादों में खोकर अली सा बताते हैं कि गांव में तालाब इतने थे की तैरना सीखना ही पड़ा ......कमल के फूलों और सिंघाडों से नजदीकियां इतनी हुईं कि थोड़ी बहुत शरारत भी कर लिए ...मगर वे शरारते कौन सी थीं यह बताते हुए वे शर्मा से जाते हैं -और एक सीमा के आगे मैं उनसे पूछता नहीं ..मेरी आदत नहीं है गुजरे वक्त की परतों को पर्त दर पर्त उघाड़ने की ..और बहुत सी बातें हम भी समझ ही जाते हैं यह एक तरह की आत्मबीती ही तो होती है ये बातें ..अली कहते हैं कि उन्होंने खूब कंचे खेले ...पतंग उड़ाई ..पहले हाकी फिर क्रिकेट भी खेली पर दिल कहीं भी स्थायी भाव से टिका नहीं! एक बेचैनी सी तारी रही हमेशा ..जैसे मेरी खुद की .... कोई बहुत होशियार बच्चे नहीं थे पर क्लास में कभी पिटे भी नहीं ! पढाई के वक्तों में उतना सीरियस नहीं थे जितना पढ़ते वक्त हो गये !
इन दिनों बिचारे एक नक्सल क्षेत्र में इम्तहान की ड्यूटी पर लगा दिए गए हैं ..जी हलकान हैं ,बगल के दांतेवाडा हमलों के सामूहिक नर संहार से हिल से गए हैं . मगर अपनी सिन्सिआर्टी से बाज नहीं आ रहे हैं-पोथी की पोथी नक़ल सामग्री लोगों के शरीर के गुप्त गह्वरों से बाहर निकाल लेते हैं -इस मामले में मैं सोचता हूँ कितना फर्क है मुझमें और अली में ..मैं तो ठाठ से बैठा रहता,कुछ पढता रहता - लोग नकल करते मेरी बला से -नक़ल करके कोई कौन सा बड़ा तीर मार पाया है आज तक -वह तो खुद अपने पैरों पर कुल्हाडी मार रहा है -जिस पेड़ की डाल पर बैठा है वही काट रहा है -काटने दो न ,हो सकता है उसी में से किसी को विद्योत्तमा ही मिल जाय ....बाकी तो अभिशप्त हैं हीं ....जिस देश में इतनी बेरोजगारी है अगर इम्तहान पास होकर बिचारे /बिचारी को टटपुजिया नौकरी मिल गयी तो कुछ लोगों का पेट तो भर सकेगा ...तो नक़ल मत रोको अली सा ..निर्बाध चलने तो और हाँ अगर नक्सली क्षेत्र में ड्यूटी करने की खीज उन बिचारे /बिचारियों पर मिटा रहे हो तो यह पहला अवसर है तुम्हारे का -पुरुष होने का -...चेतो अली सा, चेतो ....
अली को मेरी पसंद नापसंद पता है ....मेरे ऊपर के प्रहारों और पुष्प वर्षा का आभास उन्हें हो जाता है मगर इन दिनों उनके सेन्सर्स कुछ गड़बड़ से हो गए हैं -नक्सली क्षेत्र की ड्यूटी ने सब गड़बड़ कर रखा है ..आपको अगर भ्रम है कि आपको अली सा नहीं जानते होंगें तो मुझसे बाजी लगाईये ...उन्हें आपकी कुण्डली के हर्फ़ दर हर्फ़ का पता है ....उनके ब्लॉग का नाम है -
उम्मतें ... जो "उम्मत" का बहुवचन है . . ब्लाग का नाम रखते वक़्त उन्होंने सोचा कि यहाँ वैचारिक विविधताओं का सहअस्तित्व बने ...अलग अलग सहमतियों और असहमतियों का सह अस्त्वित्व हो ....आप उम्मतें का मतलब निकालिये "बहुपंथ" या "सर्व पंथ" ! वे ब्लॉग कम लिखते हैं मगर एक अच्छे ब्लॉग पाठक और टिप्पणीकार हैं ..उनकी टिप्पणियाँ बहुत बौद्धिक और गहन अर्थों वाली होती है ..कभी कभी शरारते भी करते हैं ..इधर उनका गिरिजेश जी को चिढाने का मन बहुत होता रहता है -मैंने कुछ तो आगाह किया है गिरिजेश जी को ..बाकी अपुन से क्या लेना देना ...लोग बाग़ महफूज पर फ़िदा हैं ..मैं तो अली सा पर फ़िदा हूँ उनकी संजीदगी और खुले दिल का कायल ..आप भी अली से क्यूं नहीं जुड़ते ..लीजिये तआरूफ तो मैं करा ही दे रहा हूँ .
कितनी पुरानी फोटो है अली सा ? -माशा अल्लाह जवान दिखे हैं ...
अली सा जी के हम भी प्रशंसक हैं. आपका आभार कि आपने उनके व्यक्तित्व पर यहाँ प्रकाश डाला.
जवाब देंहटाएंअली सैयद जी से परिचय करने का बेहद आभार .
जवाब देंहटाएंregards
अली सय्यद जी से मिलकर अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएंअली भाई साहब की टिप्पणियां और पोस्ट पढ कर तो हम भी काफ़ी प्रभावित रहे है. उनका आभासी व्यक्तित्व ही ऐसा है कि मन स्वमेव उनका आदर करता रहा है.
जवाब देंहटाएंयहां उनका परिचय पाकर बहुत अच्छा लगा, यह जानकर कि जनजातीय समाजों और संस्कृति पर उनकी विशेष अभिरुचि है, अत्यंत हर्ष हुआ मुझे भी इस पर आंशिक ही सहीं पर रूचि है.
बहुत बहुत धन्यवाद मिश्र जी अली साहब से परिचय कराने के लिए.
अली मेरे मित्रों की छोटी सी सूची की शोभा बढ़ाते हैं।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
अली सैयद जी के व्यक्तित्व के हर पहलू से परीचित करवाने का बहुत बहुत शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंअली सा पर हम भी फिदा हैं। बस हमें चैटियाने को बहुत समय नहीं मिलता। फिर भी एक संपर्क तो बना ही है। कभी उन का मेहमान बनने और उन्हें मेहमान बनाने की इच्छा है, देखते हैं कब पूरी होती है।
जवाब देंहटाएंअलीसा जी का परिचय प्राप्त हुआ ...और ये भी मालूम हुआ की आप अलीसा क्यों कहते हैं ...हम तो सोचे बैठे थे की सम्मान दिखने के लिए मारवाड़ी शब्द प्रयोग कर रहे हैं ...
जवाब देंहटाएं@ Vyasa-
जवाब देंहटाएंKhub pehchana aapne Ali sa ko..
"Heere ki pehchaan to sirf Johri ko hi hoti hai "
Aji sa se parichay karane ka Shukriya.
@ Ali saab-
As Martians are too different from venusians.....I truly wish that the beautiful dames of 'Blogvani' do not hold the opposite opinion about you.
Hey Chillax !...I'm just jesting !
अलीसा - आलसी
जवाब देंहटाएं1 2 3 - 3 1 2
2 3 1 - 1 2 3
अक्षर तो वही हैं, मात्राओं में भी घूर्णन सममिति है।
किसे चिढ़ाएँगे ?
ये आप 'व्यास' कब से हो गए?
जवाब देंहटाएंअली जी के बारे में जान कर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएं@ आदरणीय सुब्रमनियन जी ,घुघूती बासूती जी , द्विवेदी जी , डाक्टर मयंक जी , प्रिय संजीव तिवारी जी , सीमा गुप्ता जी ,रश्मि रविजा मैम , वाणी गीत जी और ज़ील मैंम सच कहूं तो अलग अलग कारणों से ही सही ...मैं खुद ही आपका प्रशंसक / शैदाई हूं ...तो फिर आपने जो कुछ भी मेरे बारे में कहा उसे सिर झुका कर ...आपके बड़प्पन बतौर स्वीकार कर रहा हूं !
जवाब देंहटाएं@ आदरणीय सुमन जी आपने ब्लॉग जगत में टिप्पणियों को नये आयाम दिए हैं आप औघड़ दानी जैसे सबसे समान व्यवहार करते हैं सुख हो या दुःख आपकी टिप्पणी परिस्थतियों के अनुरूप अर्थ देती है ! संक्षेप में इतना अर्थवान आपके सिवा कोई भी नहीं !
@ अरविन्द जी ...गुब्बारे को कुछ ज्यादा ही फुला दिया आपने ...मैंने तो पतझड़ के मौसम की फोटो भी भेजी थी पर आपने मेरा बसंत स्वीकारा...अस्तु आभार ...उम्मीद करता हूं कि आपका आब्जर्वेशन / अनुभव / अंदाज़े बयान...मुझे बेहतर होने में मददगार होगा !
अली साहब हमे भी जानते हैं इसलिये हम यह नही कहेंगे लेकिन सही मे अली साहब को आज आपके माध्यम से जाना । इस के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएं@ mired mirage-
जवाब देंहटाएंFortunate are you to have gems in your buddy list. My list is yet to germinate.
@Vyasa-
Thanks for telling the meaning of 'ummate '...though its still not clear to me.
@ Girijesh ji-
I liked the 'torque', 'centripatal and centrifugal force' in 'Alisa and aalsi'.
....and... Ganesha aayein ya na aayein....Vyas to avtarit hote hi raheinge.
@ गिरिजेश जी ...सारी संभावनायें अपने तक सिमट गई हैं :)
जवाब देंहटाएं@ भाई शरद कोकास एक बार फिर नये तरीके से मिले ...आपने परिचय का मान रखा ! अच्छा लगा !
@ मनोज मिश्र जी शुभकामनायें दीजियेगा ...अच्छेपन की उम्रदराज़ हो ..ज़मीन पर बना रहूं !
अभी हाल में हम भी अली जी से जुड़े हैं। नया-नया प्रशंसक कह सकते हैं। उनके बारे में विस्तार से जान कर और भी अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएं--आपकी इस सार्थक पोस्ट के लिए आभार।
अली सैयद जी से परिचय करने का बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंअली साहब से परिचय करवाने के लिये आपका बहुत बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अली जी के कमेंट्स देखती रहती हूँ. ब्लॉग तो कभी पढ़ा नहीं, पर उनकी सारगर्भित टिप्पणियों से मैं बहुत प्रभावित थी. उनके बारे में जानने की इच्छा थी, जो आपने पूरी कर दी. आभार.
जवाब देंहटाएंअली जी को मैं उनके ब्लॉग से कम टिप्पड़ियों से ज्यादा जानता हूँ, जो की हमेशा बौद्धिक रूप से धनी होती हैं.
जवाब देंहटाएंबड़े ही रोचक ढंग से आपने अली सा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है ...बड़ा अच्छा लगा पढ़कर और उनके बारे में जानकार..
जवाब देंहटाएं...
भाई देवेन्द्र जी ,समीर लाल जी , ताऊ जी , डाक्टर आराधना मैम , ज़ीशान भाई , रंजना मैम ...ये तो डाक्टर अरविन्द मिश्र हैं जिन्होंने नाहक़ को हक़ बता डाला...आपने मुझे स्वीकार किया मैं हृदय से आभारी हूँ !
जवाब देंहटाएंअच्छा परिचय ..
जवाब देंहटाएंअपनी ही जमात के लग रहे हैं !
अली जी को सबसे पहले आपके ब्लॉग पर की गयी टिप्पणियों से ही जाना ! फिर हर जगह सार्थक संवाद करती हुई टिप्पणियाँ दिखीं, अली जी परिचित होते गए !
जवाब देंहटाएंविस्तार अब मिल गया उनके परिचय को ! आभार !
आपका धन्यवाद, देर से ही सही, अली महाशय से बाक़ायदा परिचय तो हुआ।
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