रविवार, 6 जून 2010

मिलिए एक समर्पित टिप्पणीकार से ...दिव्या श्रीवास्तव यानि जील जेन ....

आप में से कई लोगों के ब्लॉग के टिप्पणी बाक्स में  जीन जेल (जो कहती हैं कि उन्हें आप खुद  खोजिये ,आखिर दुधमुहे बच्चे तो हैं नहीं आप -और एक दिलखीन्चू  मजाकिया सा इशारा-Its your job to discover, cannot spoonfeed you.....)  की टिप्पणी दिखी होगी ....इनका कोई ब्लॉग नहीं है मगर इनकी टिप्पणियाँ ही किसी ब्लॉग से कम नहीं है .आखिर कौन हैं जील जेन ? इसका जवाब उन्होंने एकाध जगहं केवल इसलिए दिया कि लोग उन्हें बेनामी न समझ बैठें! सबसे पर्याप्त जवाब उन्होंने दिया नवोत्पल पर,एक थर्ड परसन के रूप में ....

"Her name is Divya, She is born and brought up in Lucknow. Medical education from BHU-Varanasi. After spending some time in Lucknow, Faizabad, Gwalior, Indore and Delhi, She is now settled in Bangkok."(इसका हिंदी अनुवाद जरूरी नहीं लगता !) इनका ही  एक क्षद्म /निक नाम भी  है -जील जेंन  ! लोरेटो कान्वेंट लखनऊ की पढी हैं .आंग्ल भाषा पर कमांड है -देवनागरी में नहीं लिखतीं मगर हिन्दी मातृभाषा होने के नाते अच्छी तरह जानती हैं ..यह तो उनका एक स्थूल परिचय हुआ -मगर मैं यहाँ उनकी चर्चा उनके विचारों और सोच की स्पष्टता के लिए करना चाह रहा हूँ ....उनमें भारतीयता के बोधक संस्कार कूट कूट के भरे हुए हैं और वे मानवीय मूल्यों के प्रति सचेष्ट दीखती हैं ...उन्हें नर नारी की उन्मुक्त स्वच्छन्दता नहीं भाती ...उन्हें उन्मुक्त वर्जनाहीन समाज से चिढ सी लगती है .....मेरे मन में काफी दिनों से था कि मैं उनकी टिप्पणियों का एक संकलन प्रस्तुत करुँ और मैं यह सोच ही रहा था कि प्रतुल वशिष्ठ जी  ने बाजी मार ली ...उन्होंने अपने ब्लॉग पर दिव्या जी की एक टिप्पणी का पूरा हिन्दी अनुवाद ही छाप  दिया .और अनुवाद भी इतना त्रुटिहीन और प्रवाहपूर्ण -कि मैं उसे यहाँ उधृत करने का लोभ संवरण नहीं कर पा   रहा हूँ -
"मेरा पूर्ण विश्वास है कि लज्जा नारी का सौन्दर्य है किन्तु यह उसकी सुरक्षा नहीं है. एक स्त्री का रक्षात्मक कवच उसकी बुद्धिमत्ता तथा सजगता है जो कि शिक्षा, लालन-पालन एवं सचेतना से परिपूर्ण होता है.

आनंदानुभूति के लिये स्त्री को किसी प्रकार के "अलंकरण" की आवश्यकता नहीं होती है. पुरुष द्वारा, स्त्री को मूर्ख बनाए जाने की परम्परा सदियों से जारी है. चाटुकारिता, अनुशंसा, प्रशंसा आदि के द्वारा पुरुष नारी को मानसिक तौर पर कमज़ोर बनाकर उसे अपनी ओर करने का प्रयास करता रहता है. और यह विरले ही देखने में आता है कि वह अपनी बुद्धि का प्रयोग पुरुष को पहचानने में करे.

उसका लज्जा रूपी कवच ही उसका शत्रु बन जाता है. ऐसे में केवल उसकी बुद्धिमत्ता ही उसे भावावेग से दूर रखते हुए उसकी सुरक्षा कर सकती है.

"बुद्धि" एक सचेत एवं समझदार स्त्री का सर्वोपरि गुण है जो जीवन को हर परिस्थिति में उसकी सुरक्षा करता है. उसे जीवनयापन हेतु किसी प्रकार के अलंकरण की आवश्यकता नहीं होती है.

उसे अपनी स्थिति का आभास होना आवश्यक है. स्त्री को शिक्षा, ज्ञान तथा सजगता, सचेतता का अर्जन अवश्य ही करना चाहिए. उसे अपने साथ पर गर्व होना चाहिए, उसे स्वयं की प्रशंसा करनी चाहिए उसे स्वयं से प्रेम होना चाहिए. जब कोई स्वयं से प्रेम करता है तो उसे किसी अलंकरण की आवश्यकता नहीं रह जाती है.

वैसे भी कहा जाता है "सुन्दरता निहारने वाले की दृष्टि में होती है" केवल धीर-गंभीर व सभ्य पुरुष ही नारी में "लज्जा" का भाव उत्पन्न कर सकता है. क्योंकि नारी में नारीत्व जागृत करने की क्षमता केवल एक परिपूर्ण पुरुष [पुरुषत्व से परिपूर्ण] में ही होती है. पुरुष, नारी से सदैव समर्पण चाहता है जो कि उसमें [नारी के प्रति] अन्मंस्यकता का भाव जागृत करता है अथवा ये उसके क्रोध का कारण बन जाता है और वह [नारी] इनकार कर देती है. किन्तु इसके विपरीत प्रेम और परवाह करने वाला [loving and caring] पुरुष नारी को प्रेम की अनुभूति देता है जो नारी को स्वयं समर्पण के लिये उत्प्रेरित करता है, जिसमें समाहित होता है पुरुष के प्रति पूर्ण अटूट विश्वास.

 "survival of the fittest " वही है जिसके पास बुद्धि है और जो सजग है. अतः मात्र "बुद्धिमत्ता" ही मनुष्य का "कवच" है फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष".
 
आप देखिये  कि किस तरह  उन्होंने नारी के बारे में परम्परागत सोच के बजाय नारी का आभूषण केवल लज्जा  न मानकर शिक्षा और बुद्धि को मान्यता दी है .... और लगे हाथ उन्होंने एक नारी की दृष्टि में एक श्रेष्ठ पुरुष की आकांक्षा को भी चिन्हित किया है ...वे नारी को पुरुषों के द्वारा अपने वश में करने के हथकंडों के प्रति भी यत्र तत्र आगाह करती चलती हैं -मुझे लगता है कि उनके विचार नर नारी के दैनिक आचरण और जीवन दर्शन की दिशा में महत्वपूर्ण हैं ...उन्हें इस बात की  कोफ़्त भी है कि उनकी बातों पर  बहुत से चिट्ठाकारों ने  अपेक्षित ध्यान नहीं दिया है या संवाद को बनाने /बढ़ाने में रूचि नहीं ली है ..मगर दिव्या जी को  यह समझना चाहिए कि यह हिन्दी ब्लॉग जगत है -यहाँ ज्यादातर बात -व्यवहार हिन्दी में है -अगर अभी तक वे व्यापक तौर पर यहाँ संवाद नहीं बना पाई हैं तो इसका कारण केवल इतना है कि वे देवनागरी में  संवाद नहीं करतीं ...हिन्दी के कई आग्रही ऐसे हैं (जो अनुचित भी नहीं है ) जो अंगरेजी को जानते हुए भी हिन्दी में संवाद पसंद करते हैं ..मुझे दिव्या जी की अंगरेजी  बहुत प्यारी और प्रवाहमयी लगती है -उन लोगों की तरह नहीं जो कई बार यह जताने के लिए अंगरेजी में लिखते/लिखती हैं कि मुझे भी अंगरेजी आती है -मुझे हल्के में मत लो ..(जैसे मैं ) .....दिव्या जी की अंगरेजी सहज है हिन्दी भी वे बहुत अच्छा लिखती हैं मगर रोमन में ..जो कि बहुत से लोगों को ,उचित ही नहीं भाती ...मुझे खुद भी जबकि मैं चैट प्रायः रोमन हिन्दी में ही करता हूँ -खुद को कोसता हूँ -मगर जब आप औपचारिक संबोधन करें तो रोमन वाली हिन्दी निश्चित ही खटकने वाली है ...मैंने दिव्या जी से वायदा किया है कि मैं उनकी टिप्पणियाँ हिन्दी भावानुवाद करके संकलित करूंगा! यह श्रम साध्य कार्य है -उनकी यत्र तत्र बिखरी टिप्पणियाँ बटोरना खाली समय की मांग करता है .
 
आपसे यह गुजारिश है कि यदि आपके पास उनकी कोई टिप्पणी हो तो कृपा कर टिप्पणी में अथवा मुझे मेल से भेजने का अनुग्रह करें -मैंने दिव्या जी से भी यही आग्रह किया तो उनकी रूचि इसमें नहीं दिखी -नारी मन का भी कोई थाह नहीं मिलता ....वे सदैव की तरह अबूझ पहेलियाँ ही रही हैं ..कभी कभी तो लगता है सृजनकर्ता ब्रह्मा ने उनके मन -सृजन की   प्रोग्रामिंग कुछ ऐसी कर दी कि   खुद ही पासवर्ड भूल गए और अपनी इस भूल को उन्होंने पुरुषों में आरोपित कर दिया -आज तक बिचारा पुरुष उसी पासवर्ड को खोजने में हैरान परीशां रहा है -यह सिमसिम सहजता से खुलता  नहीं दिखता -हैकरों के बस का ही है -....और हैकरों को मैं मानवीय नहीं मानता ....
 
मुझे आपकी टिप्पणियों और मेल में दिव्या जी की टिप्पणियों का इंतज़ार रहेगा जो इस पोस्ट की अगली कड़ी बन सकेगी ..

99 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे पास तो ऐसी कोई टिप्पणी नही आई हाँ अगर आई तो ज़रूर भेज देंगे...ब्लॉग जगत के बारे में एक नई बात बताई आपने..धन्यवाद

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    1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. ढूंढ कर बताता हूँ अगर कोई कमेंट आया हो तो..वैसे तो आया होगा ही!! :)

    आभार परिचय का/

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  3. प्रोफाइल से :
    Interests
    Correcting people and system

    मुझे बहुत डर लगता है।

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  4. अनुदित टिप्पणी स्वयं में पोस्ट से कम नहीं है।

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  5. ...और हैकरों को मैं मानवीय नहीं मानता ....
    जानकारी का शुक्रिया!

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  6. लगता है हैकरों को आपकी बात अच्छी नहीं लगी (-) के ४ चटके लग चुके हैं इतनी देर में.

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  7. दिव्याजी की बुद्धिमत्ता से मैं भी बहुत प्रभावित हूँ ...जिस तरह पूरी पोस्ट को पढ़कर वे पॉइंट बाय पॉइंट टिप्पणी करती हैं , वाकई तारीफ के काबिल है ...
    उनकी टिप्पणी अपने आप में किसी ब्लॉग-लेखन से कम नहीं है ..और स्त्रियों की लज्जा और बुद्धि से सम्बंधित यह टिप्पणी तो सच ही संग्रहणीय है ......उनकी सभी टिप्पणियां संगृहीत कर ली जाए तो कितनी ब्लॉग पोस्ट की खुराक तैयार सकती है ...
    इस सराहनीय कार्य के लिए आपको साधुवाद ...!!

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  8. क्या कहा जाय।

    इतनी बढिया पोस्ट पर भी नापसदगी के चटके ?

    हद है।

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  9. दिव्याजी की हमारे ब्लॉग की followers भी हैं ,इसका मुझे खुशी है ,वास्तव में सार्थक और सटीक टिपण्णी ही ब्लॉग की सार्थकता की पहचान है और इस मामले में दिव्या जी को मैं ***** देता हूँ उनकी सच्ची तिपन्नियों के लिए | हम उनसे मिलना भी चाहेंगे क्योकि उनका सोच देश और समाज हित में है , अगर उनके पास वक्त हो तो मुझे फोन करें -09810752301 पर | अरविन्द जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद इस प्रस्तुती के लिए |

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  10. ये बात तो बिलकुल सही कह दी आपने दिव्या जी के कमेन्ट अक्सर पोस्ट से बेहतर होते है या फिर उन्हें पढ़ कर मन थोड़ी देर के लिय ठहर जाता है

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  11. उनका एक कमेन्ट मेरे पास आया था
    जो मैं यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ , एक चटका भी लगा रहा हूँ -१ स्कोर हो गया है पता नहीं कैसे ??
    **********************************************************************
    zeal ने कहा…

    @ Gaurav ji-

    I am glad to know that you do not consider women as 'abla'.

    But unfortunately, a huge women population is still 'abla'. Illiteracy and lack of awareness is the root cause. But time is changing. Things are improving.

    And Gaurav ji,

    Here on blog , women are aware and 'sabla' as well.

    All we need is to make the unprivileged women lot aware of their capabilities and rights.
    *********************************************************************

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  13. (1)
    हां वे समर्पित भाव से टिप्पणी करती हैं ! सोच की स्पष्टता और बौद्धिकता के फ्लेवर्स उनकी टिप्पणियों की पहचान हैं ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वे असहमत होने का माद्दा रखती हैं जिससे पोस्ट लेखक को रचनात्मक मदद मिलती है ! उन्होनें चयनित / विशिष्ट ब्लागों पर ही ज्यादातर टिप्पणियां की हैं इसलिये इनका संकलन आपके लिये मुश्किल नहीं होगा !
    (2)
    हमारे पास कुछ टिप्पणिय़ां व्यक्तिगत सम्वाद सी हैं शायद अनुवाद की जरुरत ना भी पडे फिर भी आपको यथाशीघ्र मेल करते हैं :)

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  14. Yah jaankaari nayi hai..khojne kee koshish karti..shayad Vani ji ki post par mil jayen!

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  15. दिव्या जी के बारे में जानकारी अच्छी लगी....नावोत्त्पल में मैंने उनकी कई जगह टिप्पणियाँ देखीं और पढ़ीं हैं...और कई ब्लोग्स पर भी...उनके विचार बहुत सुलझे हुए होते हैं....उपर्युक्त टिप्पणी में बहुत गहराई है...यहाँ पढवाने के लिए आपका आभार....यदि कभी ऐसी ही टिप्पणी पढने को मिलेगी तो आपको ज़रूर प्रेषित कर दी जायेगी...पर आपका E mail ID ??? .

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  16. क्या कहा जाय।

    इतनी बढिया पोस्ट पर भी नापसदगी के चटके ?

    हद है

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  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  18. .
    .
    .
    आदरणीय गिरिजेश राव जी की इस पोस्ट पर मेरा संवाद तो हुआ था... परंतु कवि के साथ काफी पहले से चल रहे मेरे संवाद पर ही Zeal जी ने ऐसा Attack कर दिया...कि हम तो चुप रहना ही सही समझे !

    यही कहूँगा कि काफी आक्रामक हैं वे...और मेरा अनुभव यही कहता है कि जब भी आक्रामकता को हथियार के जैसे प्रयोग करते हैं... तो कहीं न कहीं कुछ छिपा भी रहे होते हैं ।

    गिरिजेश राव जी की तरह मुझे भी बहुत डर लगता है... :)

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  19. बहुत सही कहा आपने, सूक्ष्म, सदी , नपी -तुली और प्रभावी टिप्पणिया होती है जील जी की !

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  20. मेरा प्रयास रहेगा कि आपका सहयोग कर पाऊं।

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  21. संगीता जी,
    मेरा ई मेल है -
    drarvind3@gmail.com

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  22. दिव्या हिंदी ब्लोगिंग मे टिप्पणी करने कुछ देर से पहुची हैं २००७ या उससे पहले आयी होती तो मोरनी , चोरनी कहलाती जैसे सुजाता या नीलिमा के लिये कहा जाता था , या एक कवियत्री को छिनाल और वेश्या का संबोधन दिया गया था , २००७ मे आयी होती तो परिवार का महत्व ना समझने वाली , पुरुष विरोधी , नारीवादी , ब्लॉग जगत कि ठेकेदारनी कहलाती जैसे रचना को कहा जाता हैं या कम से कम टिप्पणीकारा कहलाती ब्लोगरा कि तरह !!!
    अच्छा लगा कि अब खुल कर टिप्पणी लिखने वाली "जील" को सकारत्मक समझा जा रहा हैं और वो भी आप के ब्लॉग पर !!!!!!! वरना नारी का काम तो केवल child churning device ही हैं प्राकृतिक और वैज्ञानिक कारणों मे जैसे यहाँ


    आज की अत्याधुनिकाओं व तथाकथित आदर्शवादियों का यह नारा कि नारी हर क्षेत्र में पुरुष से `कन्धा से कन्धा´ मिलाकर चले सर्वथा अजैविकीय, अप्राकृतिक है। प्रकृति ने तो दोनों के कार्यक्षेत्रों का बँटवारा स्वयं कर रखा है।

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  23. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  24. यह पोस्ट लिख कर आपने बहुत अच्छा काम किया है.
    मैंने भी दिव्या जी के कमेन्ट पढ़कर उन्हें ढूँढने का प्रयास किया था मगर वही ..ब्लॉग नहीं है.. देख, लौट आता . शायद मैंने कभी पूछा भी है कि आप अपना ब्लॉग क्यों नहीं लिखतीं ..!
    ढूंढते हैं उनके कमेन्ट को ...
    ..आभार.

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  25. @अब देखिये गौरव जी मैंने आपके संग्रह की टिप्पणी का हिन्दी अनुवाद किया है और यह करने में मुझे अनिर्वचनीय आनंद मिला है-आप बताएं क्या अनुवाद सही हो सका है ? या दिव्या जी की नजर पड़े तो कृपया खुद बताएं की उनका मन्तव्य सही सही संचारित हुआ है -
    गौरव जी ,
    मुझे जानकार खुशी हुयी कि आप औरत को 'अबला' नहीं समझते
    लेकिन दुर्भाग्यवश औरतों की एक बड़ी जमात आज भी 'अबला' है अशिक्षा और जागरूकता की कमी इसकी मुख्य जड़ है .
    लेकिन समय बदल रहा है ,परिदृश्य बदल रहा है ....
    और गौरव जी ,
    यहाँ ब्लॉगजगत में महिलायें जागृत हैं और सबला भी ....
    समय की जरूरत है कि हम प्रवंचित महिलाओं को जागृत करें और उन्हें उनके अधिकारों और सामर्थ्य का ज्ञान कराएं

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  26. रचना जी ,
    आप औचक मार करती हैं -
    उसी पोस्ट पर मेरी यह टिप्पणी भी तो है -
    टिप्पणी :इस विषय को लेकर अभी कोई अन्तिम मत नही उभरा है -वैज्ञानिकों -जैव विदों ,समाज जैविकी विदों और व्यव्हारशास्त्रियों के बीच विचार मंथन जारी है ! यहाँ प्रस्तुत मत को अनिवार्यतः मेरा दृष्टिकोण न समझा जाय !
    संदर्भ से काट कर अधूरा उद्धरण दिया जाना क्या उचित है?
    और ब्लागरा केवल एक परिहास भर है ..जीवन में हास परिहास क्यों न हो ?
    बहरहाल आपकी अपनी खूबियाँ भी हैं -और हमें उनका भान भी है ....

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  27. डॉ मिश्र
    सन्दर्भ वही/ उतना दिया जाता हैं जिसकी जरुरत होती हैं हाँ सन्दर्भ कहा से लिया गया अगर ये ना दिया जाए तो जरुर गलत हैं शायद bibliography इसीलिये बनाई जाती हैं । परिहास कि परिभाषा मौज से अलग होती हैं । मौज के आप भी उतने ही विरोधी हैं !!!! सो ब्लोगरा को परिहास का नाम दे कर मौज कि परवर्ती को ना बदले बदलना हैं तो अन्दर छुपे जेंडर बायस को बदले शायद zeal के प्रभावी कमेन्ट ये करने मे सफल हो । मै तो यही खुश हूँ कि २००५ से २०१० तक मे बदलाव कि बयार चल ही पड़ी हैं और वहाँ से जहाँ सबसे जरुरी था ।


    "समय की जरूरत है कि हम प्रवंचित महिलाओं को जागृत करें और उन्हें उनके अधिकारों और सामर्थ्य का ज्ञान कराएं "

    वही हम भी कर रहे हैं

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  28. @आज से हम सार्वजनिक रूप से यह वचनबद्ध होते हैं कि ब्लागरा शब्द का अब प्रयोग नहीं करेगें -
    और ऐसा कुछ नहीं करेगें जिससे नारी के उपहास की किंचित भी इन्गिति होती हो (वैसे भी यह मेरी मंशा कभी नहीं रही ...गलतफहमियां क्या न करा दें ! )

    जवाब देंहटाएं
  29. एक बर कभी उनका कमेंट हमारे ब्लॉग पर भी दिखा था... उनको खोज नहीं पाया और वो दुबारा दिखी भी नहीं हमारे आस पास...

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  30. जील की टिप्पणियाँ वाकई कभी-कभी किसी पोस्ट से अधिक सही, सटीक और इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं. मुझे भी उनका वर्चुअल व्यक्तित्व आकर्षक लगता है. अच्छी लगी ये पोस्ट .

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  31. मेरे ब्लॉग 'जागो सोने वालों..' पर आई उनकी एक टिपण्णी...........
    zeal said...

    Tubal Sterilization is a permanent method of contraception where the fallopian tubes are blocked so that the ova or eggs are prevented from traveling to the uterus from the ovary.

    Vasectomy is a minor surgical procedure wherein the vas deferentia of a man are severed, and then tied/sealed in a manner such to prevent sperm from entering the seminal stream ( ejaculate)

    Vasectomy in males is a minor surgery compared to tubectomy in females. Reversal of vasectomy is also possible if the couple wants a child in future.

    Aware men and caring husbands prefer to opt for 'Vasectomy' [Nasbandi], instead of forcing their wives go for tubectomy.

    Vasectomy is a fine option for small and happy family.

    Divya
    May 4, 2010 7:30 AM

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  32. मेरे ब्लॉग 'जागो सोने वालों..' पर आई उनकी एक टिपण्णी...........
    zeal said...

    हो घने हो भले,
    एक पत्र छाह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत,
    अग्निपथ, अग्निपथ अग्निपथ;

    Shivam ji,

    You beautifully quoted the above lines. A very stern message is there in these lines. There is a deep philosophy in each line written by bachhan ji.

    The above lines quoted by you ,influenced me a lot so came to your blog and mentioned here.

    Regards,
    Divya
    May 4, 2010 7:37 AM

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  33. शिवम् जी आभार दिव्या जी की इन दो महत्वपूर्ण टिप्पणियों के लिए ...

    जवाब देंहटाएं

  34. पहली बार इनका नाम सुना है,
    भविष्य में इनकी टिप्पणियों को हेरता फिरूँगा !
    कुछ और भी लिखने का मन है, किन्तु चलूँ.. ..
    अर्धनारीश्वर की आरती का समय हो रहा है !

    जवाब देंहटाएं
  35. जी हाँ , दिव्या जी की टिप्पणियां अक्सर मेरे ब्लॉग पर आती रहती हैं । उनकी सोच बेशक उम्दा और सुलझी हुई है ।

    जवाब देंहटाएं
  36. मीनाक्षी धनवन्तरी() की मेल से प्राप्त टिप्पणी-

    आदरणीय मिश्राजी... आपकी पोस्ट पढकर ...फौरन आपको 'ज़ील' की एक टिप्पणी भेज रहे हैं.... (नारी ब्लॉग-http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2010/05/blog-post_07.html)
    की एक पोस्ट 'बताओ न अम्मा' मे दिव्या जी की टिप्पणी ने प्रभावित किया ..
    .काश हर उम्र के बच्चों के माँ बाप ऐसे ही उनकी उलझनों को सुलझा सकें..यही कामना करते हैं...

    आपकी पोस्ट के आखिरी पैराग्राफ़ को पढकर ऐसा लगा जैसे मेरे दोनो बेटे अपने मन की बात कर रहे हों...

    zeal said...

    Dear Shalaka,

    Just felt like talking to you today. Its a real pleasure talking to a cute, intelligent and beautiful girl like you. You talk like a matured and graceful person, so i am trying to be friendly with you. I will also try to answer your innocent questions as best of my knowledge and the way it was told to me by my mother.

    1-“ मम्मा लड़कियों को देवी क्यों मानते हैं ?”

    Because small girls below 12 are called as 'kanya' and are considered as pious as Goddess, hence they are worshiped . Enjoy it as feast and festival.

    2-“ अगर लड़कियाँ देवी होती हैं तो वर्मा आंटी के यहाँ जब दिव्या की छोटी बहिन आयी थी तो उसकी दादी गुस्सा क्यों हो रही थीं और आंटी क्यों रो रही थीं ? “

    Because her grandmother was uneducated and she doesn't have the calibre to think of equality between boys and girls.
    Her mother was crying out of sheer helplessness as she was failing to make everyone understand that girls and boys, both are boons for us. There should not be any discrimination.

    Continued.....

    जवाब देंहटाएं
  37. ....continued from previous comment-
    3-The baby girls were thrown because of their mother's helplessness.If she has not taken the decision to throw them out, her brutal husband and ignorant in-laws would have thrown her out of house. We women need to fight with such situation with courage and wisdom. And courage, awareness, wisdom, all comes by education. So study hard.Her mother was left with no option , so she opted for that unwillingly.

    4-मम्मा अगर उस लड़की को कोई कुत्ता या बन्दर काट लेता तो ? “

    Insensitive people cannot feel that pain. They themselves have not risen above kutta and billi.

    5-“ मम्मा ऐसे बच्चों को कौन ले जाता है ? “

    Such kids are taken to orphanage or they die before time depending on their fate and destiny. Rarely they meet good people who extend their love and services selflessly.

    6-“ मम्मा क्या लड़कों को भी देवता मानते हैं ? “

    Yes, There are certain occasions where boys get more importance..like 'Hal-shashthi' and 'karvachauth'.

    7-“ मम्मा क्या लड़कों को भी ऐसे ही घूरे पर फेंक देते हैं ? “

    No, Boys are never thrown as they are considered as boon in our male dominating society. But dear Shalaka, time is changing and people are realizing the significance of both the genders.

    8-“ मम्मा सब लड़कियों के हक की बात क्यों करते हैं ? क्या लड़कों का कोई हक नहीं होता ?

    Boys get all the rights without asking, so the focus is more on girls to be aware now and fight for their rights.

    "apna haq sang-dil zamane se chheen pao to koi baat bane...Sur jhukaane se kuchh nahi hota, sur uthaao to koi baat bane "

    9-मम्मा वो आंटी भी तो अष्टमी के दिन लड़कियों को अपने घर बुलाती होंगी ना पूजा के लिए जिन्होंने अपनी बेटी को कचरे में फेंका होगा ! फिर उन्होंने अपने घर की ‘देवी’ को क्यों फेंक दिया ? “

    It is their ignorance beta, They all will realize their mistake one day.

    Let us hope for a bright future for the daughters of India and everywhere on the universe.

    10-मम्मा लड़कियां कमजोर कैसे होती हैं ? मेरे क्लास में तो लड़कियां ही फर्स्ट आती हैं !”
    “ मम्मा टी वी पर लड़कियों को ही पढ़ाने के लिए क्यों कहते हैं ? क्या लड़कों को पढ़ने की ज़रूरत नहीं होती ? “

    No, they are not weak nor meek. They are usually brighter than boys of their age. They are more understanding and forgiving, so they tend to withdraw. Both the gender need to be equally educated.

    11-“ मम्मा वंश बढ़ाने का क्या मतलब होता है ? “
    12-“ मम्मा क्या सिर्फ लड़कों से ही वंश बढता है ? “
    13-“ मम्मा लड़कियाँ भी तो अपने मम्मी पापा की संतान होती हैं तो फिर उनसे वंश क्यों नहीं बढ़ता ? “

    Both are complementary. Both are equally significant for 'vansh-vriddhi'.Time is changing.Girls are proving their worth in all spheres.

    Dear Shalaka...am hungry now...Let's dine together.

    with love,
    Your aunt,
    Divya.

    जवाब देंहटाएं
  38. और यह बेनामी से (-http://benamee.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html#comments
    Freedom and equality of women !)

    A women can be free only by following the footprints of gentlemen !

    Smiles !

    A women can be treated as equal and considered free only if she develops the courage to :-

    1-Live and survive alone without depending on anyone (be it parents, husband or son ).

    2-She must educate herself against all the odds.

    3-She must know the fact that marriage is not everything. Instead of living for a small family, she must be committed towards bigger goals.

    If required , she must have the courage to deny marrying the dowry loving wolves .

    with an egoist husband, she must have the courage to deny conceiving for a child. [ Test tube babies and in vitro fertilization can be a good lesson for such men ].

    Men who do not value his wife's ambition and career and pester her for having babies, must be given the right lesson of showing them the path leading to surrogate mothers. [outsourcing of this sternuous job. ]

    If the husband demands a cuppa tea , early in the morning, then the wife must not forget to ask him to fix a cuppa coffee , before hitting bed.

    If the husband hits on left cheek, wife must hit him hard on both the cheeks and a great punch on his nasal septum too. [ ek haath se de, dono haath se le ]

    a wife must cook for in laws gladly and ensures that the hubby takes her parents to dine out on weekends.

    [Charity begins at home. Smiles ! ]

    Men and women are no longer complementary to each other. Very few are lucky enough to get a get real friend and companion in their spouse.

    Men feel insecured because the women are getting aware , educated and independent. This insecurity is leading them to be hostile, defensive and violent towards women folk.

    Marriage is a pious institution. It keeps us disciplined and it helps us follow our culture and moral values. It enables a better social system. I don't see anything wrong in live-in relationship. At times circumstances compels a person to go for live-in relationship. A relationship between a man and a woman is of companionship basically. Togetherness and being helpful in his/her needs is what companionship is. Marriage is more accepted but there is not much difference between marriage and live-in relationship.

    Incest is a crime. Nothing more to say in this regard.

    A woman can be free only by being aware. Education brings awakening.

    FREEDOM lies in our head and in out thoughts.

    Women folk is quite close to freedom.Freedom in true sense. A freedom in real.

    Freedom of thoughts !

    EDUCATION is the key !

    Divya [zeal]
    March 28, 2010 2:46 AM

    जवाब देंहटाएं
  39. इस पोस्ट पर अब तक नापसन्दी के छः से ज्यादा चटके लग चुके हैं जबकि इसकी विषय-वस्तु किसी भी तरह से किसी को भी खटकनेवाली नहीं है.

    जवाब देंहटाएं
  40. zeal said...

    Good info...thanks.

    25 April 2010 2:46 AM
    http://sciencemodelsinhindi.blogspot.com/2010/04/adhesive-property-0f.html#comments

    पोस्ट पर आयी

    जवाब देंहटाएं
  41. ब्लागर्स पर तो लोग लिखते रहे हैं, आपने टिपिप्पणीकार पर लेख लिख कर ये तथ्य उजागर किया है कि अच्छी टिप्पणी भी बहुत जरूरी हैं, वरना लोग बस अच्छा, नाइस आदि लिख कर काम चला लेते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  42. जील की टिप्पणियाँ कभी कभी वाकई सटीक होती हैं ..अच्छी पोस्ट.

    जवाब देंहटाएं
  43. वाणी शर्मा द्वारा प्रेषित :
    http://vanigyan.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
    @- तो उसको मैं कुत्ते से भी खराब मौत दूंगा.... एक ऐसी मौत जिससे मौत भी घबरा जाये"...

    1-Do we have the right to kill anyone?....She herself was going through tremendous torture and agony before her death.

    2-Do you think Nirupama has committed such a grave error to be sentenced for death , the way kasaab recieved?

    3-Can a woman become pregnant on her own without the involvement of any man with her?

    4-A 23 year old girl is very likely to commit such error. Aren't we supposed support the victim and look for some solution without forcing her to end her precious life?

    5-If Priybhanshu was really in love with her, then he must commit suicide after her death to prove his love as immortal.

    6- Parents obviously have given enough freedom to their daughter.They could not have have taken such a brutal and wrong decision so easily. They must be under huge pressure, that they opted for honour killing. I feel parents were provoked by selfish folk around.

    7-Priyabhanshu MURDERED a girl by making her pregnant before marriage. He misused her emotions and her body. He still thinks a woman is nothing but commodity. He proved it.

    In my humble opinion...

    Nirupama [ All women] are victims.
    Parents [of girls] are so helpless.
    Priybhanshu [saare lafange] are still rocking like 'khula-saand'.

    My sympathy is with Nirupma's parents, who lost their daughter and their izzat both.

    Media and allegations may force them to end their lives.

    Priyabhanshu type of men must get proper punishment , so that other males should not follow his dirty and selfish act.

    ----------------------------------------------------------------------------------------------

    http://vanigyan.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html
    On a lighter note..

    Once my husband was preaching me..

    "Itni meethi bhi na bano ki koi gulaabjamun ki tarah nigal jaye aur itni kadwi bhi na bano ki koi thook de"

    Since then i started adding lemon to give it a different flavor while talking with hubby as husbands do not have sweet or bitter tongue, they have a very diplomatic tongue.

    जवाब देंहटाएं
  44. @Nishant ji ,
    ब्लोगवाणी के आंकड़े के मुताबिक़ सबसे अधिक पढी गयी पोस्ट है यह -दिलजले नापसंद कर रहे हैं तो कोई परवाह नहीं -उन बिचारों की अब सुनता कौन है ?

    जवाब देंहटाएं
  45. दिव्या जी की टिप्पणियाँ हमेशा सार्थक होती हैं। ऐसी टिप्पणीकार जिनकी प्रतीक्षा रहती है। हाँ, कभी कभी मैंने आक्रामकता का भी अनुभव किया है। लेकिन वह एक ईमानदार आत्मा की शैली है। प्रोफाइल पहली बार देखा, Correcting people and system पढ़ा। सच कहूँ, चौंक गया।
    (1) http://girijeshrao.blogspot.com/2010/05/blog-post_18.html
    zeal ने कहा…
    "All are equal at birth". There are only two castes in the world: those who contribute positively and those who contribute negatively. From these, it can be inferred that the caste system is more of a socio-economic class system.

    Caste based discrimination shall not be appreciated.

    Can we cure the ignorance of educated lot?

    मंगलवार, १८ मई २०१० ९:२१:०० AM IST

    (2) http://girijeshrao.blogspot.com/2010/05/circumcision.html

    zeal ने कहा…
    Circumcision denies a male's right to genital integrity and choice for his own body.


    people must read this post and come out of ignorance .

    Brilliant post !
    रविवार, २ मई २०१० ५:१३:०० PM IST
    (3) http://girijeshrao.blogspot.com/2010/04/blog-post_11.html
    zeal ने कहा… Damn innovative ! A circular lid on rectangular frame !.....wow...This is called - "Thinking out of the box". Muskuraiye ki aap Laucknow mein hain !
    रविवार, ११ अप्रैल २०१० ७:१४:०० PM IST
    (4) http://girijeshrao.blogspot.com/2010/04/blog-post_10.html
    zeal ने कहा…
    Great post !


    A bitter truth ! but alas ! people don't understand this.

    शनिवार, १० अप्रैल २०१० १२:०४:०० PM IST
    (5)http://girijeshrao.blogspot.com/2010/04/blog-post_22.html
    zeal ने कहा…
    wonderful post !

    The message is conveyed beautifully .

    Ironically we all are running in the same fashion in lure or in fear of something or the other.

    We need to fight the fear in ourselves. Fear indeed deprives us from many opportunities coming our way.

    Unfortunately most of us are living like jackals , in fear of Lions.

    Thanks,
    (The Lioness)

    Smiles..

    गुरुवार, २२ अप्रैल २०१० १०:५९:०० AM IST
    (6) http://girijeshrao.blogspot.com/2010/04/6.html
    25 अप्रैल 2010
    zeal ने कहा… .. नास्तिकता की नींव पड़ चुकी थी।... A lot being said in the above line... Iss duniya mein pyar karne wale bhi hain, aur Pyar ki kadrr karne wale bhi.. Zaroorat hai aise hi logon ki. ...
    (7) http://girijeshrao.blogspot.com/2010/05/blog-post_25.html
    zeal ने कहा…
    .
    Name- Divya
    Gender- Female
    Caste- A Proud Indian !

    Jo bhi pyar se mila , hum ussi ke ho liye. !

    बुधवार, २६ मई २०१० ७:२३:०० AM IST

    जवाब देंहटाएं
  46. निश्चित तौर पर zeal की टिप्पणियाँ सार्थक होती हैं। मेरी भी इच्छा थी इस बारे में लिखने की, आपने बाजी मार ली :-)

    कुछ टिप्पणियाँ इस प्रकार हैं:

    जवाब देंहटाएं
  47. There is no end of accusations and explanations. So its wise to forgive and forget.


    "bygones are bygones , let them not trouble you now "

    We all are human beings. To err is quite natural. Only self analysis can guide us about right or wrong. If one realizes his/her mistake , then one must apologize, otherwise just move on. Personal attacks or cribbing is not a sign-symptom of literate people.

    http://mishraarvind.blogspot.com/2010/03/blog-post_15.html पर

    जवाब देंहटाएं
  48. @ khushdeep

    Gone are the days when she used to sing like that. now she sings something like...."Ja ja ja re, tujhe hum jaan gaye, kitne paani mein ho, pehchaan gaye..."

    @ Dr. Amar

    Hope he won't suggest her to go for abortion.

    http://doordrishti.blogspot.com/2010/03/blog-post_16.html पर

    जवाब देंहटाएं
  49. Is this progress or we are heading towards catastrophe?

    Something is amiss among Indians outside India.What's that?...Thats Our Indian culture !

    When brain gets drained overseas, then we are bound to face such problems. Expats miss Indian education, system , culture, our teachers and their honest opinions about students...

    Anyways, its the problem everywhere...Be it India , UK, Canada or anywhere on the earth.

    People are living in fears and under huge pressure. In cut throat competition ERA, teachers are more worried about their job security and mental peace. They are unwilling to buy any kind of stress by being honest with parents regarding their wards.

    In International schools specially, students are getting freedom , which is more than required. Students are pampered and spoiled.

    Worried parents !....Do they have any option?

    Yes they have !

    Put your children in some better schools !

    Better than International school?

    Yes !...In Government colleges !

    Otherwise...."Paisa phenk, tamaasha dekh"

    Smiles !
    Divya !

    http://shikhakriti.blogspot.com/2010/03/blog-post_19.html पर

    जवाब देंहटाएं
  50. Its your will power only , that forced you to write this post. Your post is a proof of your will power.

    But then what you are looking for ?....The thing which you are looking for is not will power. You are waiting for your dreams to come true.

    Failing there is making you believe that you are lacking the will power. Its not true !

    You have the courage and the will power both. All you need is to wait for the right time to reap the wonderful results.

    You have already have sown the beautiful seeds of "iksha-shakti", now be prepared to reap the fruits in the form of your dreams coming true.

    Smiles!

    http://halchal.gyandutt.com/2010/03/blog-post_26.html? पर

    जवाब देंहटाएं
  51. Swadee kha ( Namaste) Ojha saab-

    You have the skill to write, You are God gifted. Do not ask for more from almighty. Just be thankful to him.

    Your achievement is 'blogging', not the awards or chatka or rank you get by lesser mortals.

    awards or sanmaan or puraskaar brings greed in a person. One award instills the desire to get more . Is there any end of our expectations? .

    "Greater the expectations, greater is the disappointment".

    Next time if you happen to meet any Alexa..Do not forget to praise the lovely smile on her lips or the cute dimple on her cheeks with amul butter in your voice.

    In case you are supposed to to see some 'Alexander'...do not forget to attach a dollar or two.

    Ojha saab- Learn the art of blogging...opps...begging...oops...."Bhikshaam dehi"

    "Bura na mano HOLI hai"

    btw Ojha saab if you truly wish to remain ahead of everyone...here is a line for you...

    "Omnia vincit amor" -(French ) (love can conquer the world)

    Chalti hun,

    Khapun kha ( Thanks)
    Divya

    PS- sorry for using French, Thai, English and Hindi.

    Smiles !


    http://ajaykumarjha1973.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html? पर

    जवाब देंहटाएं
  52. mujhe to comments likhne ka nasha hai...

    Addiction of any sort is injurious for health. Be it 'blogging' or 'commenting'.

    http://tsdaral.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर

    जवाब देंहटाएं
  53. Reading or writing indeed broadens our vision. It motivates us to do better. It enrich us at all levels--be it Knowledge or wisdom. Pure reading is useful, but blogging is interactive as well. It enables us to deal with a variety of people and situation.

    @ Gyan ji-

    Glad to see the purple graph moving upwards.

    Congrats !

    http://halchal.gyandutt.com/2010/04/blog-post_15.html पर

    जवाब देंहटाएं
  54. Boredom is fatal !

    Blogging helps in killing your boredom up to certain extent but its not an absolute cure.

    "Something is better than nothing"

    Smiles.

    http://halchal.gyandutt.com/2010/04/blog-post_15.html पर

    जवाब देंहटाएं
  55. @ Anup Shukla-

    Sucide is a genetic disease.Nothing to do with blogging or painting or anything.

    But yes, Blogging helps in combating stress .


    http://halchal.gyandutt.com/2010/04/blog-post_15.html पर

    जवाब देंहटाएं
  56. @ Gyan ji-

    Virtual world is a solution to fight the difficulties of Real world in many ways.

    Different people come on net for different purposes. But all are getting some sort of solace here, which is not possible in real world.

    For some , its a good time pass. For few, it boosts their confidence. Some get appreciations here. Some are here with hidden agenda to harass and so on...

    But overall its a boon for human being.

    http://halchal.gyandutt.com/2010/04/blog-post_15.html पर

    जवाब देंहटाएं
  57. @ Pankaj Upadhyay-

    Read your blog by the given link in your comment and also i commented there.

    I do agree with your points mentioned there. I too have witnessed and experienced the same.And honestly speaking, i have not seen any difference in real and virtual worlds. In both the worlds ,people are alike. A merit of virtual world is that a person doesn't face identity crisis. Here a person can present him/herself without hesitation. A sense of equality can be felt. Its provides a good vent also. Otherwise the pent up emotions makes a person mentally sick. Virtual world gives a sense of equality, confidence, entertainment, interaction with like minded people and so on.. I consider it as a 'wonder-drug' and boon for inquisitive people.

    Thanks to technology !

    Pankaj ji..."Life is nothing but experiences...keep renovating it"

    Smiles !

    http://halchal.gyandutt.com/2010/04/blog-post_15.html पर

    जवाब देंहटाएं
  58. @ Khushdeep ji--

    You are indeed the richest person on this earth ( in terms of friends ).

    tippani ke tippe achhe lage !

    Good sense of humour !

    @ Dr Amar- read your posts, felt like commenting there but,as strangers are not allowed to comment on your blog so i couldn't comment there. Anyways i enjoyed reading your posts and comments thereon .

    thanks.

    http://deshnama.blogspot.com/2010/04/blog-post_21.html पर

    जवाब देंहटाएं
  59. @- हममे से अधिकतर महिला या पुरुष, प्रौढ़ावस्था तक पंहुचते पंहुचते अपनी हंसी,आनंद अभिव्यक्ति और वास्तविकता को छिपाने का प्रयत्न करने में सफल हो ही जाते हैं !

    Many of us really succeed in hiding our emotions at this age but unfortunately we fail to contain our angst when our 'EGO' is hurt.

    Ego is the real culprit. Ego is the root cause of many a problems in blog world and everywhere else also.

    http://satish-saxena.blogspot.com/2010/05/blog-post_05.html पर

    जवाब देंहटाएं
  60. मेरे पास zeal लिखित ज़्यादातर टिप्पणियाँ जनमदिन वाले ब्लॉग पर आईं हैं।

    अब अगले माह जुलाई में उनका जनमदिन है। कोई बताए कि उन्हें बधाई कैसे दी जाए? ना तो कोई ब्लॉग ना ही कोई प्रोफ़ाईल :-(

    कोई सुझाव?

    जवाब देंहटाएं
  61. Thanks to all the wonderful female and male bloggers who bothered to read my comments and appreciated it.

    @ Arvind ji-

    Thanks for the beautiful post. The post has proved how different you are from the general lot [“Actions speak louder than words”] . By writing a post on an ordinary commentator you truly proved your generousity.

    @ Yogendra Maudgil ji-

    You raised a very valid point regarding Divya-darshan . Indeed it’s missing here. It will be attended soon.

    @ Praveen Shah and Girijesh ji-

    Regarding ‘darr lagta hai’-

    I fear the terror created by terrorists and I fear God. Can you both let me know what you both are fearing in me? .. Arvind ji, Pratul ji, Ali ji, Pabla ji, Vani ji, Mukti ji, Shikha ji, Sangeeta ji ko mujhse darr kyun nahi lagta??

    In my humble opinion a person fears someone who is fearless and brutally honest.

    जवाब देंहटाएं
  62. @ Pabla ji-

    I rarely come across selfless people. You are selfless in true sense. I have seen you helping everyone with connection related issues and also I admire your selfless approach to wish happy birthdays .

    On my birthdays so far , I was remembered by my family only. As I have no friends, I never get to receive wishes from friends.

    Pabla ji, I am very much touched by your mention regarding my b’day. Going forward I will always remember you on my birthdays.

    two days are very important for for me :-
    1st July- Doctor's day
    11th July- Population day [My b'day ]

    We need more selfless people like you.

    जवाब देंहटाएं
  63. Arvind ji,

    Many times when my comments went unnoticed by the blog author , I always felt why I am wagging my tail here? What’s the use? What’s the purpose it is solving? What’s the worth of my comments? When there are no takers then the writing becomes worthless. A healthy discussion aborts with an abrupt end when people pull away or withdraw due to some fear or ego. This prompted me to write a book which has crossed over 100 pages so far.

    I wanted to have meaningful discussions with intellectuals over here, which will somehow help in reforming our society. But unfortunately, I realized lately that I am not at the right place. My motive to correct/reform and shape people is not welcome by the majority here. So I thought of quitting. Many at times I felt like having my own blog where I can express my views freely but I am aware I will be biased after having a blog space here and above all I have to learn typing in Hindi before writing a blog here.

    I am writing a book which will definitely interest you all and soon it will be in market. Arvind ji you have to translate it in Hindi as you have promised.[no excuse will be accepted later on ].

    Ek anjana sa rishta hai kuchh bloggers ke saath, those who communicated to me through comments- Mukti ji, Vani ji, Rachna ji, Alpana ji, Sadhna ji, Gyan ji, Praveen ji, Pratul ji, Ali ji, Girijesh ji, Himanshu Mohan ji, Satish Pancham ji and of course Pabla ji.

    I am mesmerized by the wonderful Hindi used by the bloggers here. Hindi is my mother tongue and above all Hindi is my National language. I am proud of all the bloggers here who write so beautifully in Hindi.

    I feel ashamed in commenting in English. But it is not by choice, it is my constraint. I do not know how to type in Devnagri and I hate writing in Roman. I hope this constraint will be attended soon. Let’s hope for the best.

    Again thanks to everyone and Arvind ji.

    Divya
    .

    जवाब देंहटाएं
  64. @-honesty project democracy-

    aapka andaaz pasand aaya.

    Your telephone number has been noted....will talk to you soon.

    जवाब देंहटाएं
  65. चलिए ,मेरे यहाँ पहुँचने तक आपके सारे काम सुलझ गए हैं...मेरी पोस्ट पर भी उनकी टिप्पणियाँ हैं...पर उतनी सारगर्भित नहीं...मुझे खुशदीप भाई की पोस्ट पर उनकी टिप्पणी बहुत ही सटीक लगी थी,जिसका उल्लेख पाबला जी ने कर दिया है...
    उनके विचारों से तो हर कोई प्रभावित है...अच्छी सोच है उनकी...

    जवाब देंहटाएं
  66. Divya
    The most importanyt part of your comment here

    I wanted to have meaningful discussions with intellectuals over here, which will somehow help in reforming our society. But unfortunately, I realized lately that I am not at the right place.
    --------
    No place is right place , we have to make it "right " . You should not think of moving on rather you should become a part and then be loud enough to make your self heard

    The society has become deaf to gender bais as its deep rooted in the system and the only way of making poeple realise that they are gender baised is to keep hammering in .

    A book has a long shelf life but how many of those who really need a change would read a book
    blog has better reach and being impersonal in blog is better an option because then we dont need to think wo we are displeasing

    we have to be HONEST to our MOTO

    Join us and help us to remove this gender bais , if we can do it on blogs then at least we have done a bit

    MAKE YOUR BLOG use phonetic hindi to put in your post its simple

    and be prepared for the foul language comments for your self

    Cheers young lady , i am waiting for you to join naari blog where you can even post in english
    love
    rachna

    जवाब देंहटाएं
  67. दिव्याजी की टिप्पणियाँ सदा ही स्तरीय रही हैं । मुझ पर विशेषकर उनका ध्यान बना रहता है । हर बार गूढ़ प्रश्न उठाकर पुनः उत्तर टटोलने भी आयी हैं । आपके माध्यम से दिव्या जी को धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  68. टिप्पणी पर प्रति-टिप्पणी को लेकर ही बहुत विचार हो चुका। अब यहाँ तो टिप्पणी पर पोस्ट - पोस्ट पर टिप्पणी - सृष्टिक्रम वाला मामला है।
    जय हो!

    जवाब देंहटाएं
  69. Dear Rachna ji,

    I am very much touched by your concern. Accept my heartiest thanks for the same. I sure won’t give up now. I will continue commenting as before.

    As far as removing gender bias is concerned, we need to be free from this bias first. “Nari-blog” in itself is showing a bias by the title ‘nari’. It’s clearly drawing a line between the two genders.

    I love to be a ‘nari’ but I hate to be ‘Nariwaadi’.

    To remove this bias from people we ought to mingle first. By asking half of the human species to stay at a distance, we cannot remove gender bias from their mind.

    In my humble opinion the name ‘nari-blog’ should be renamed as ‘Saathi haath badhana’.

    Women cannot earn respect by raising voice against men and vice-versa.

    “Omnia vincit amor”…..Love can conquer the world !

    Best part of ‘Nari-blog’ is that blogs are welcome in both the languages. But in Blogwani also, comments are welcome in both Hindi and English. So I’m comfortable in commenting here and Nari-blog as well.

    I tried ‘transliteration’ but I hate to play with the originality of any language. Typing phonetically to get the exact Hindi word is quite sternuous job, which simply bores me.
    Above all phonetic typing of Hindi words simple spoils your English, specially the spellings. I am not ready to compromise with that.

    @--“be loud enough to make yourself heard”

    Rachna ji, above line of yours is quite motivating. I definitely will pay heed to your advice. They are precious for an aspiring commentator like me.

    Once again I thank you for your genuine concern and affection.

    Divya

    जवाब देंहटाएं
  70. @- "लेकिन वह एक ईमानदार आत्मा की शैली है। "

    Girijesh ji,.. Thanks for the beautiful line .

    जवाब देंहटाएं
  71. divya

    the birth of naari and chokher bali blogs is because of many many reasons which now may look too small but which were too big when they happend . i am sure one day to woman will cease the need to give birth to naari and chokher bali blogs
    with love
    rachna

    जवाब देंहटाएं
  72. Women cannot earn respect by raising voice against men and vice-versa.

    I really dont think woman need to earn respect for any thing all human beings are equals and need to be respected by one and all

    Yes if someone disrespected a woman blogger because she is not writing what is acceptable to society then we need to raise our voice in toto against them

    जवाब देंहटाएं

  73. Continued from :
    कुछ और भी लिखने का मन है, किन्तु चलूँ.. ..

    @ दिव्या aka Zeal Zen
    Till now I kept my words chewing as I thought it unneccessary to react upon comments from a person incognito.
    But I could not hold myself anymore.. since your balanced answer to Rachna Di has exhilarating surprises for many.
    This was my concern too, as throughout life I nurtured the notion that mere few differences in physiology and anotomy of the both genders, do not / should not put apart the the intelligentia within human cranium . The difference in gender of a person is just a biological accident.. x overcoming y.. and vice versa.
    The sense and gratitude for being human should never be cursed only on gender basis.except for honouring some differences in hypothalamic reactions and inherent instincts typical to both the genders,
    I'm happy that one more like minded person exists in the Hindi Blog-World, whofor some reasons chose to be isolated and ambiguous, if not in self-exile !
    I am happy, that you are here..
    Best wishes
    amar

    जवाब देंहटाएं

  74. Continued from :
    कुछ और भी लिखने का मन है, किन्तु चलूँ.. ..

    @ दिव्या aka Zeal Zen
    Till now I kept my words chewing as I thought it unneccessary to react upon comments from a person incognito. But I could not hold myself anymore.. since your balanced answer to Rachna Di has exhilarating surprises for many.

    This had been my concern too, as throughout life I nurtured the notion that mere few differences in physiology and anotomy of the both genders, do not / should not put apart the the intelligentia within human cranium . The difference in gender of a person is just a biological accident.. x overcoming y.. and vice versa.
    The sense and gratitude for being human should never be cursed only on gender basis.except for honouring some differences in hypothalamic reactions and inherent instincts typical to both the genders,

    I'm happy that one more like minded person exists in the Hindi Blog-World.. who, for some reasons chose to be isolated and ambiguous, if not in self-exile !

    I am happy, that you are here..
    Best wishes
    amar

    जवाब देंहटाएं

  75. Ref:
    If someone disrespected a woman blogger because she is not writing what is acceptable to society then we need to raise our voice in toto against them

    @ Rachna Ji

    Yes, you certainly should, but..
    It should look logical just not kintergarden hue and cry, abuses and curses
    Cursing God for creating men and cursing yourself for being women.

    The world exists beyond Sari and Jeans..identifying anyone by gender at any discussion forum is ridiculous,
    Rather than to meliorate, why should we pull each other to medival references to overpower each other?

    जवाब देंहटाएं
  76. (डॉ अमर कुमार उवाच ..)
    वाह ! दोनों डाक्टर एक हो लिये !
    अब हम जैसो का अहम् कैसे बचेगा और गुजर बसर कैसे होगा ?
    दोनों की भाषा पर पकड़ तो देखिये
    दैया रे कैसी चेस्ट अंगरेजी है ,पढ़कर कलेजा कांप गया (मजा आ गया )वाह रे दागदार उफ़ डागडर!

    जवाब देंहटाएं
  77. It should look logical just not kintergarden hue and cry,

    Dear Dr Amar
    Many times what is illogical to one is the most logical to others and lest not forget many people dont grow up in mind they remain in kintergarden always and to make them understand its important to realte to them in a language THAT THEY UNDERSTAND

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  78. and yes there are woman who curse being a woman but WHY ?? because society in general thinks woman need to earn a mans respect as divya says where as i belive none needs to earn respect we need to learn to respect all irrespective of cast and creed but till it happens the crusade like NAARI and Chokher Bali will continue

    जवाब देंहटाएं
  79. Respected Rachna ji,

    Due to torrential rains here,the connection was down and hence the delay in reply.

    Naari and Chokherbali blogs are indeed wonderful blogs and it's significance cannot lessen by an iota even with the passage of time. I have many times admired and commented on the blogs there.

    Regarding respect, i would like to say...Yes, It is something which is earned by our words and actions. We must learn the art to give and earn respect. Without earning respect we cannot get the listening ears. And without giving respect, again we cannot get a patient hearing. So in my humble opinion 'Respect' is indeed a very important factor which bridges the gap between people, irrespective of gender.

    Being a woman i cannot take all women as for-granted, nor all men will be in my favor. Million factors work in such situations. One such factor is matching frequency of the two. Two people come close when we find something in common. It doesn't mean , others are wrong. Others are just different from us.So we must respect each and everyone's opinion. By being stern at some points we cannot convince anyone.A little flexibility is always required.

    To progress in any relationship is an art, more or less like 'kite flying'...[kab kitna kheenchna hai aur kitni dheel deni hai]

    Let me here quote Rahim Daas ji-

    "Rahiman dhaga prem ka, mat todo chatkaay, toote se fir na jude, jude gaanth pad jaye"

    In modern ways..."Wo afsana jise anjaam tak lana na ho mumkin, usse ek khoobsurat mod dekar chhodna achha "

    In simple words if a relationship reaches its end...it should be ended amicably, leaving behind no scars on the two. This way a person doesn't become judgmental about the opposite gender and condemns the whole lot. Instead he/she blames the circumstances , and not the gender.

    While talking, interacting, writing, reading, thinking....One has to be unbiased always and above all with a healthy feeling of 'Respect' for the opponent by giving him/her the benefit of doubt regarding one's experiences,upbringing,family circumstances and the company he keeps.

    To remove gender bias and bring equality , we ought to give respect to men to get it in return.

    By humiliating half of human species on earth, we can never succeed in getting out position, recognition and respect in society. [ Same applies to men folk as well.]

    We cannot appease or convince the whole lot. Only a small percentage of people will agree with me here. This is called the 'matching wave length' , which is independent of gender.

    Discussions are of two types-

    1-Friendly discussions
    2-Hostile discussions

    I go by the former one wherein i value the opinion of everyone and i try to keep my views in a humble way. Respect towards everyone is the foremost factor to allow a peaceful/friendly and futile discussion.

    Otherwise the posts and discussions end up in total trash.

    Regards,
    Divya

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  80. अरविन्द जी,

    Zeal की यहाँ आईं टिप्पणियों का ही भावानुवाद हो जाए तो अरसे से व्यक्ति विशेष द्वारा घोली जा रही कड़वाहट कुछ कम हो!

    बहुत ही सुलझी हुई अभिव्यक्तियाँ है Zeal द्वारा

    Three Cheers for Divya!

    जवाब देंहटाएं
  81. Respected Amar ji,

    Thanks for your generous comments. I'm feeling honored.

    Regarding my profile and myself a person incognito-

    Resons for me not having my profile here are following-

    1-I don't see any utility of my profile.

    2-just few information about me cannot reveal the actual me.

    3-A beautiful pic of mine in the profile can give strokes to many [jesting]

    4-I am , not a celeb so my profile won't interest to people.

    5-At times the profile appears bigger than the person in actual.

    6-Profile information impacts the reader's mind.I want to impact readers by my thinking/views through comments.

    7-I feel, neither my profile , nor my pic can help the society to grow and prosper, but certainly my thinking and efforts can bring the desirable change in society , no matter how small it will be.

    8- All the bloggers here have a profile. I never felt like going through the profiles. I love reading their minds instead. I love commenting on topics, never on the person. I read and know a person by what he writes and not by his/her eloquent profile.

    9-By not having a profile here i find it easy -
    -to remain unbiased
    -to keep my ego in check
    -to write comments fiercely and fearlessly
    -to opine candidly

    10-My profile keeps changing with colourful medals [winks]. Being a lazy lady i hate to update everytime.

    Amar ji, It's a pleasure for all us that you finally decided to comment on a 'Benami's comment.

    I feel hurt when someone calls me 'Benaami'.I am not benami. I am just one like you all.

    A small introduction of mine....

    proper noun-Divya
    common noun-woman
    species-Human being.[Homosepians]
    Actual me- My thinking, which is reflected in my comments.

    An appeal to everyone- Know me by my views. Just accept me the way i am ! with all my virtues and vices.
    -
    I feel hurt when i am addressed as Benami. I want people to identify me as a proud Indian who is very emotional and caring.

    Regards,
    Divya alias zeal

    PS- thanks to you again for the welcoming gesture and warm wishes.
    .

    जवाब देंहटाएं
  82. ठन्ड रख सरदारा(यह आफेन्डिंग तो नहीं पाबला जी ? !) अभी तो बहुत कुछ शेष है -उपन्यास ही पूरा बाकी है !

    जवाब देंहटाएं
  83. Arvind ji,

    apna ek comment swayam hi yahan post kar rahi hun. It is from Satish Pancham ji's blog- "Chitralekha'
    ............................

    .
    Respected Satish Pancham ji,

    @-पुरूष होने भर से कलात्मकता सराहे जाने पर तोहमत लगाना कहां तक उचित है ? ..

    I expressed my views. Kindly do not take it as an accusation ( Tohmat )

    My respectable sisters here have no objection on the pic, so kindly don't bring gender bias here. The kalatmak-pic is accepted equally by both the genders.

    @-बामियान में बुद्ध की मूर्ति इसलिए ढहा दी क्योंकि अब वहां बौद्ध धर्म प्रासंगिक नहीं रह गया है...मूर्ति पूजा हेय है..आदि आदि।

    We are talking about revealing pics of woman, not about Lord Buddha. Let's not get distracted from the topic. Ye 'vishayantar' hai.

    @-यह चित्र भी उसी चित्रलेखा फिल्म का है जिसमें रंगभवन दिखाया गया है।

    The pic was suitable and required there to give the complete effect of 'Rang-bhawan' in the movie, But we do not need it here in the post. Such small changes can gradually bring small changes in the society , which is the need of the ERA.

    @-लेकिन क्या कला को काट कर अलग कर दिया जाय।

    I am not against any sort of art but but seeing art in a revealing pic of a woman is highly objectionable.

    I admire the art in the painting-- "Monalisa"
    The smile dancing on her lips is so mesmerizing.
    Such kind of art should be encouraged.

    @-अगर मंटो सामाजिकता के नाम पर, अश्लीलता के नाम पर बच बच कर लेखन करते तो क्या वह असर उनकी लेखनी में आता जो वह खुलकर लिखने के कारण ला पाए ?

    This is the marketing strategy. Indeed a director/producer/writer needs some spice to maket his/her product. And nothing can be a better spice than such pics.

    @-फिर हममें और तालीबानियों में क्या फर्क रह जायगा।

    Just because i objected on a pic on your post i am accused to be a Talibani?

    'Jhansi ki Rani ' keh diya hota !

    Regards,
    Divya

    जवाब देंहटाएं
  84. zeal said...

    I find it funny when males try to preach women, how to live, behave and survive. Why don't they mind their own business?

    lagta hain jaise khud to doodh ke dhule hue hon?
    May 23, 2010 3:57 PM

    http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2010/05/blog-post_23.html#comments

    Dr mishra please go ahead and do the translation so that people really understand what she is saying . its fruitless to say you admire someone without understanding what she is saying . i am sure those who are accusing someone for venom spreading might understand that venom cures as well

    जवाब देंहटाएं
  85. @Rachna ji ,
    I am minutely following the developments and discussion and shall do the needful at right time....
    thanks for suggestion!
    arvind

    Divya ji ,
    A sought after annotation indeed as I am interested in bringing out an anthology of your precious comments in Hindi ..I WOULD TRANSLATE THEM as and when i get some breathing space..am already a crying soul owing to an unending load of works...such creative pursuits demand a level of tranquility /peace of mind.

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  86. नुक्कड़ पर छपी मेरी एक पोस्ट पर zeal का कमेन्ट :- zeal ने कहा…

    Dukhad ghatna !

    May their soul rest in peace

    June 08, 2010 5:08 PM

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  87. kya raja arvind, jab tum zeal urf divya ka gungaan karte hue ye post likh rahe the tab kya tumhe yah ehsas tha ki aage chal kar ye hi zeal urf divya tumhara band bajaa sakti hai...?

    जवाब देंहटाएं
  88. ....ओह,अब इस पोस्ट को तब मैं बांच रहा हूँ,जब इस पोस्ट की नायिका किसी दूर छोर पर है और उसके प्रशंसक बिलकुल उलट वाले छोर पर !
    अब गंगा से इतना पानी बह चुका है कि वह पतितपावनी से सूखी झील बन गई है.आखिर ऐसा क्यों होता है कि किसी के प्रति हमारा द्रष्टिकोण ३६० डिग्री घूम जाता है.
    हालाँकि,तब भी कुछ दूर-द्रष्टि रखने वालों ने अलग बटन दबाया था,पर तब उनको ललकारा और नकारा गया.
    महाराज,आपसे और कितनी चूकें हुई हैं इस ब्लॉग-जीवन में ?
    बड़े-बड़े महारथियों का आकलन समय ने ध्वस्त कर दिया.

    मैं कहता हूँ,किसी को पढ़ना ,वह भी नारी को,इत्ता आसान कभी नहीं रहा !

    जवाब देंहटाएं
  89. संतोष त्रिवेदी जी,
    हर धान बाइस पसेरी नहीं होता लेकिन कुछ लोग कभी नहीं बदलते। इतना तय है कि कई जोड़ आँखें तब भी खुली रहती थीं।
    :)

    दुखिया दास कबीर है जागे और रोवे ...

    जवाब देंहटाएं
  90. ओह ! तो कभी आप भी दीवाने थे .
    कहीं आज की पोस्ट में यादें --वही तो नहीं :)

    जवाब देंहटाएं
  91. आपने भी जायका बेमजा कर दिया डाक्टर साहब ! अजी तोबा कीजिये!

    जवाब देंहटाएं
  92. In thаt locatiоn are diffеrent leѵels
    аnԁ it put hands on a Peculiar Gеorgе clock.
    The first participаnt to to the full manufaсture a
    Wonder is gаrb Up, Сoffeegirldressup, Beach raiment Up,
    Wedԁing gaгb Uρ and manу more.
    Іmproves theiг CгeativitуAs you can see, Loose
    game
    to plant it, anԁ users get еxtгa sun by planting sunfloweгs.
    Foг ехamрle sunflower 50 points of Ѕunlight
    Spaniѕh Οnly becаuse of acting Dora thе Adventurer gameѕ and watching Dora
    the Adventurеr TV shows.

    जवाब देंहटाएं

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