उन्मुक्त जी ने गणित विषय को लेकर अपनी यह रोचक पोस्ट लिखी तो एक श्लोक भी उधृत किया और उसका स्रोत पूछा -
श्लोक है -
यथा शिखा मयूराणां नागानां मण्यो यथा।
तथा वेदाङ्गशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्।।
जिस तरह से,
मोरों के सिर पर कलगी,
सापों के सिर में मणियां,
उसी तरह विज्ञान का सिरमौर गणित।।
अपने ब्लोगवाणी के मैथिली जी ने फौरी मदद पहुंचाई ....मगर अब उन्मुक्त जी की उत्सुकता और बढ गयी ...उन्होंने इस श्लोक के बारे में और जानकारी जाननी चाही ..मुझ नाचीज को भी किसी काबिल समझ कर उन्होंने मेल किया ...जाहिर है यह मुझसे सम्बन्धित विषय नहीं है तब आखिर मैं कैसे मदद करता ..मैंने अपनी जान छुडाने की नीयत से कुछ नामों की सिफारिश कर दी और अपने दायित्व की इतिश्री मान ली ..मगर सुवरण को खोजत फिरत वाली अपनी दीवानगी ने मुझे अपने बेतरतीब बुक शेलफ़ को खंगालने को विवश कर दिया ---रात के कुछ नीरव पल इस खोज की भेंट चढ़ गए . ..
..और मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं रही जब मैंने उक्त श्लोक के मूल स्रोत को ढूँढने में सफलता पा ली ...और अल्लसुबह पहला काम किया उन्मुक्त जी को इस खुशखबरी को मेल से भेजने का ...आप भी ज्ञान लाभ करें ....
उन्मुक्त जी ,
ज्योतिष पर अपने बुक शेल्फ को खगाला तो ये जानकारियाँ मिलीं हैं -
ज्योतिष, जो (ऋग्वेद एवं यजुर्वेद )का वेदांग है ,केवल ज्योति: शास्त्र संबंधी बातों से सम्बन्धित था .वेदांग ज्योतिष (यजुर्वेद का ,श्लोक ३,४ ) में आया है ,'वेदों की उत्पत्ति यज्ञों के प्रयोग के लिए हुई :यग्य कालानुपूर्वी हैं अर्थात वे काल के क्रम के अनुसार चलते हैं :अतः जो कालविधान शास्त्र को जानता है वह यज्ञों को भी जानता है .जिस प्रकार मयूरों के सिर पर कलंगी होती है ,नागो (सर्पों )के सिर पर मणि होती है ,उसी प्रकार गणित(ज्योतिष ) वेदांग शास्त्रों का मूर्धन्य है. " इससे प्रकट है कि उस समय गणित और ज्योतिष समानार्थी शब्द थे (संदर्भ -धर्मशास्त्र का इतिहास ,भारत रत्न ,महामहोपाध्याय ,डॉ .पांडुरंग वामन काणे ,अनुवादक -अर्जुन चौबे काश्यप ,चतुर्थ भाग ,अध्याय १४ ,हिन्दी समिति ,उत्तर प्रदेश ,प्रथम संस्करण १९७३ ,पृष्ठ ,२४४)
इससे यह इंगित होता है कि प्रश्नगत श्लोक का स्रोत यजुर्वेद है ..कालान्तर में भारतीय ज्योतिष की प्राचीनतम प्रामाणिक पुस्तक "वेदांग ज्योतिष" जो महात्मा लगध द्वारा ६०० ईशा पूर्व रची हुई है में ज्योतिष का प्रमुख विषय ही काल गणना है इसी के एक श्लोक में यह भी बताया गया है -वेदांग शास्त्रानाम ज्योतिषम (गणितं )मूर्धनि स्थितम (वेदांग में गणित ज्योतिष का स्थान सबसे ऊंचा है ...) (संदर्भ ;गुणाकर मुले ,कादम्बिनी, नवम्बर २००४,पृष्ठ, ७८-83)
ज्योतिष, जो (ऋग्वेद एवं यजुर्वेद )का वेदांग है ,केवल ज्योति: शास्त्र संबंधी बातों से सम्बन्धित था .वेदांग ज्योतिष (यजुर्वेद का ,श्लोक ३,४ ) में आया है ,'वेदों की उत्पत्ति यज्ञों के प्रयोग के लिए हुई :यग्य कालानुपूर्वी हैं अर्थात वे काल के क्रम के अनुसार चलते हैं :अतः जो कालविधान शास्त्र को जानता है वह यज्ञों को भी जानता है .जिस प्रकार मयूरों के सिर पर कलंगी होती है ,नागो (सर्पों )के सिर पर मणि होती है ,उसी प्रकार गणित(ज्योतिष ) वेदांग शास्त्रों का मूर्धन्य है. " इससे प्रकट है कि उस समय गणित और ज्योतिष समानार्थी शब्द थे (संदर्भ -धर्मशास्त्र का इतिहास ,भारत रत्न ,महामहोपाध्याय ,डॉ .पांडुरंग वामन काणे ,अनुवादक -अर्जुन चौबे काश्यप ,चतुर्थ भाग ,अध्याय १४ ,हिन्दी समिति ,उत्तर प्रदेश ,प्रथम संस्करण १९७३ ,पृष्ठ ,२४४)
इससे यह इंगित होता है कि प्रश्नगत श्लोक का स्रोत यजुर्वेद है ..कालान्तर में भारतीय ज्योतिष की प्राचीनतम प्रामाणिक पुस्तक "वेदांग ज्योतिष" जो महात्मा लगध द्वारा ६०० ईशा पूर्व रची हुई है में ज्योतिष का प्रमुख विषय ही काल गणना है इसी के एक श्लोक में यह भी बताया गया है -वेदांग शास्त्रानाम ज्योतिषम (गणितं )मूर्धनि स्थितम (वेदांग में गणित ज्योतिष का स्थान सबसे ऊंचा है ...) (संदर्भ ;गुणाकर मुले ,कादम्बिनी, नवम्बर २००४,पृष्ठ, ७८-83)
....आगे चलकर बनारस में जन्मे पंडित सुधाकर द्विवेदी (1860-1922) जो गणित ज्योतिष के प्रकांड विद्वान् थे ने लगता है कि 'याजुष ज्योतिषम " में यजुर्वेद के ऊपर वर्णित चौथे श्लोक को उधृत किया है और अनुवाद किया है !(मेरा निष्कर्ष !)
मुझे लगता है यह संक्षिप्त जानकारी सटीक और पर्याप्त है !अब तो मेरी पर्याप्त रूचि ज्योतिष में हो गयी है -मतलब गणितीय ज्योतिष के इतिहास में .दरअसल प्राचीन ज्योतिष -अस्ट्रोनोमी ही थी जैसा कि उन्मुक्त जी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है बाद में वह फलित और पोथी पत्रा में बदलती गयी और ज्ञान की एक संभावनाशील शाखा यहाँ छीछालेदर का शिकार हो गयी .... ....बहुत आभार उन्मुक्त जी...बहुत संभव है आपके इस अहैतुक स्नेह से मेरी भविष्य की कई पोस्ट का जुगाड़ हो जाय .....
पत्रा बाँच कर लोगों को भविष्य बताने वालों ने गणित से ज्योतिष नाम छीन लिया।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी!
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी, प्राचीन पुस्तकों में गणित और ज्योतिष समानार्थी ही थे. याजुष्ज्योतिष जिसमें उक्त श्लोक है, यजुर्वेद पर आधारित ज्योतिष अर्थात गणना की पुस्तक ही है.
जवाब देंहटाएंफलित ज्योतिष को अपनी इच्छानुसार दरकिनार कर दीजिये, लेकिन आप ज्योतिष को गणित के रूप मे देखेंगे तो विस्मित हो जायेंगे.
मूल स्रोत खोजने के लिये मेरी ओर से भी बधाई स्वीकार करें
This Anushtap should not be part of Yajurveda Samhita.
जवाब देंहटाएंIt is in Sanskrit not in Chhandas. The meter ,8 letters in each 'pad', is not Vedic Meter.
Congrats for 'jugad' of future posts. :)
अरविन्द जी, धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमैंने अपनी श्रृंखला ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके की चिट्ठी ज्योतिष या अन्धविश्वास लिखते समय लिखा कि
"हमारे पूर्वजों ने इन राशियों को याद करने के लिये स्वरूप दिया। पुराने समय के ज्योतिषाचार्य बहुत अच्छे खगोलशास्त्री थे। पर समय के बदलते उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि किसी व्यक्ति के पैदा होने के समय सूरज जिस राशि पर होगा, उस आकृति के गुण उस व्यक्ति के होंगे। इसी हिसाब से उन्होंने राशि फल निकालना शुरू कर दिया। हालांकि इसका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं है। यदि आप ज्योतिष को उसी के तर्क पर परखें, तो भी ज्योतिष गलत बैठती है।"
उस समय के ज्योतिष को आज के ज्योतिष से जोड़ना ठीक नहीं है। वह दूसरा था आज तो यह केवल अन्धविश्वास है। यह अलग बात है कि जैसा मैंने इस श्रृंखला की अन्तिम चिट्ठी में निष्कर्ष लिखते समय कहा कि,
" यह सब कभी कभी एक मनश्चिकित्सक (psychiatrist) की तरह काम करते हैं। आप परेशान हैं कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें। मुश्किल तो अपने समय से जायगी पर इसमें अक्सर ध्यान बंट जाता है और मुश्किल कम लगती है।"
उपर्युक्त छंद यजुर्वेद का नहीं है, मैं गिरिजेश जी की इस बात से सहमत हूँ... क्योंकि न सिर्फ इसका छंद बल्कि भाषा भी वैदिक नहीं है... वैदिक भाषा लौकिक संस्कृत से बहुत भिन्न है... आपने वेदों के मन्त्रों में देखा ही होगा...ये हो सकता है कि भाव वहाँ से लेकर ये श्लोक रचा गया हो.
जवाब देंहटाएंहाँ मैं इस बात से सहमत हूँ कि प्राचीनकाल में ज्योतिष गणनाओं पर आधारित था, इसलिए गणित उसका आवश्यक भाग था, कालान्तर में इसका अध्ययन कम होता गया, फलस्वरूप फलित ज्योतिष ने लोगों के बीच अपने पाँव जमा लिए.
आशा है कि आप गणित ज्योतिष पढेंगे तो कुछ और जानकारी मिलेगी.
फलित ज्योतिष भी हमारे ऋषि मुनियों द्वारा विकसित की गयी ज्योतिष की शाखा है .. आपलोगों के न मानने से क्या होता है ??
जवाब देंहटाएंयकीनन यजुर्वेद का श्लोक नहीं है. मैंने पूरा ग्रंथ खंगाल लिया. इतनी आसान संस्कृत में कोई भी श्लोक नहीं है वहां.
जवाब देंहटाएंआप प्रकाण्ड विद्वानों का शास्त्रार्थ पढ़कर न्यूनता/अल्पज्ञता का भाव महसूस कर रहा हूँ। लाभान्वित तो हूँ ही।
जवाब देंहटाएंयह भी जानकर अच्छा लगा कि हमारे सक्रिय ब्लॉगर अपनी पोस्ट का ‘जुगाड़’ करने के लिए कड़ी मेहनत भी कर रहे हैं।
पोस्ट और टिप्पणियाँ पढ़ कर कोई निष्कर्ष तो नहीं निकला हाँ ज्ञान वर्धन जरूर हुआ.
जवाब देंहटाएंभाई भूत भगावन ,गिरिजेश जी ,मुक्ति ,
जवाब देंहटाएंपी वी काणे ने जो लिखा मैंने उद्धृत कर दिया ... किसी
सामान्य से वैदिक साहित्य के अध्येता को यह श्लोक
काफी बाद का लगेगा ...हो सकता है मूल उदगार कुछ रहा हो
लगध ने ही श्लोक को वर्तमान रूप दिया हो और सुधाकर द्विवेदी जी ने
फिर से इसका उद्धरण दिया हो ----
मगर एक बार हमें यजुर्वेद के इंगित श्लोक को भी देख लेना चाहिए
....यजुर्वेद का श्लोक ३ और ४ (खासकर ४ ही ) क्या है जो वेदांग ज्योतिष में आया है .
अब आपका भी यह दायित्व है कि इस स्थिति को पूर्णतया स्पष्ट करें !
मेरे संग्रह में यौजुर्वेद नहीं है -पैत्रिक आवास पर है ..
शायद दिनेश राय द्विवेदी जी कुछ मदद कर सकें !
यह यजुर्वेदीय श्लोक नहीं है, ज्योतिष संबन्धित अवश्य है और लगध का है या किसी और का, इस संबन्ध में अभी सप्रमाण कुछ नहीं कह सकता, इसीलिए शुक्रवार को उन्मुक्त जी की पोस्ट पर उत्तर नहीं दे पाया था।
जवाब देंहटाएंवराहमिहिर और पुराणों के अध्येता इस पर आसानी से स्रोत बता सकते हैं, मेरे सभी ग्रंथ मेरे पास न होकर मेरे कानपुर आवास पर होने से थोड़ा कठिन है यह कार्य फ़िलहाल। फिर भी प्रयास करूँगा।
एक बात और यहाँ साथ ही कहता चलूँ - जो मैंने उन्मुक्त की पोस्ट पर भी कही थी - कि बिना पूरी तरह जाने किसी विषय को, उस के बारे में अच्छी या बुरी धारणा बना लेना - पूर्वाग्रह है। सतर्क और जिज्ञासु - ज्ञान-पिपासु को इससे बचना चाहिए।
घोस्टबस्टर जी सही स्रोत खोज कर लाये हैं कि ये श्लोक आचार्य लगध की पुस्तक वेदांगज्योतिष का है. यहां देखें
जवाब देंहटाएंमैंने वेदांगज्योतिष को देखकर पाया कि घोस्टबस्टर जी एवं अरविन्द जी की खोज भी एकदम सही है. अरविन्द जी ने तो वेदांग ज्योतिष का नाम भी लिया है.
"'वेदों की उत्पत्ति यज्ञों के प्रयोग के लिए हुई :यग्य कालानुपूर्वी हैं अर्थात वे काल के क्रम के अनुसार चलते हैं :अतः जो कालविधान शास्त्र को जानता है वह यज्ञों को भी जानता है" वाला श्लोक तीसरा है वह यह है
वेदा हि यज्ञार्थमभिप्रवृत्ता: कालानुपूर्व्या विहिताश्च यज्ञा:
तस्तादिदं कालविधान शास्त्रं, यो ज्योतिषं वेद स वेद यज्ञम्।
ओर चौथा श्लोक है.
यथा शिखा मयूराणां नागानां मण्यो यथा।
तथा वेदाङ्गशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्।
सुधाकर द्विवेदी जी की पुस्तक याजुष्ज्योतिष आचार्य लगध के वेदांगज्योतिष के दूसरे हिस्से का भाष्य प्रतीत होती है.
यूरेका यूरेका ....शुक्रिया मैथिली जी ,तय हुआ इस श्लोक का स्रोत लगध कृत वेदांग ज्योतिष ही है ....और वेदांग ज्योतिष यजुर्वेद से प्रेरित और उद्भूत है ....जिन खोजा तिन पाईयां गहरे पानी पैठ .....वादे वादे जायते तत्वबोधः.....
जवाब देंहटाएंलगता है इन दिनों भूत भगावन का(भूत भगाने का ) धंधा मंदा है तभी ज्ञान विज्ञान रस में डूब रहे हैं :)
@ अरविन्द जी
जवाब देंहटाएंअव्वल तो आलेख शीर्षक चयन पर साधुवाद...बड़ा ही दार्शनिक विचार है ये "उन्मुक्त प्रश्नों के छुपे जबाब" हम तो उलझ कर रह गये है इस रहस्यमय वाक्य से !
पोस्ट में उद्धृत प्रश्न क्या था और जबाब क्या है इस पर जब आप लोग किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाइये तो बता दीजियेगा...बाद में जुगाड़ी गयी पोस्ट्स पर टिप्पणी करने के लिए हम हैं ही :)
@आपकी जिज्ञासाओं का भी हम शमन करेगें अली सा ..आगे आगे देखिये होता है ,,अभी तो इब्तिदा है .....
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा शोध ।
जवाब देंहटाएंये चर्चा बढ़िया रही ....
जवाब देंहटाएंउपयोगी चर्चा ।
जवाब देंहटाएंवाह, काफ़ी कुछ सीखने और समझने को मिला.. एक मीनिगफ़ुल डिस्कसन को पढने के मज़े ही अलग होते है.. आप सबका आभार!!
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा ...ज्ञानवर्धन हो रहा है ...!!
जवाब देंहटाएंहिमान्शू मोहन जी, मेरी श्रृंखला ‘ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके’ के कारण मेरी अक्सर टांग खिंचायी और निन्दा होती है। अक्सर मुझे ऐसी भी टिप्पणियां मिलती हैं जो शालिनता के पर हैं।
जवाब देंहटाएंमैंने आपकी बात का जवाब यहीं लिखा था। लुछ लम्बा हो गया। इसलिये लगा कि उसे एक स्वतंत्र चिट्ठी के रूप में ही लिख कर प्रकाशित करना ठीक रहेगा। जल्द ही करूंगा।
अच्छी चर्चा ...ज्ञानवर्धन हो रहा है ...!!
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक चर्चा , मुझे जैसे अल्पज्ञ को इसका लाभ जरुर मिलेगा . लेकिन विद्वानों की अल्प उपस्थिति अखर रही है .प्रमुख रूप से सुश्री संगीता पुरी जी की.
जवाब देंहटाएंInformative post !
जवाब देंहटाएंकठिन कठिन विषयों पर शास्त्रार्थ हो रहे हैं!
जवाब देंहटाएंअपनी उपस्थिति एक श्रोता[पाठक ] की दर्ज करा दी है.
"लगता है इन दिनों भूत भगावन का(भूत भगाने का ) धंधा मंदा है तभी ज्ञान विज्ञान रस में डूब रहे हैं :)"
जवाब देंहटाएंYou are right. Recession has forced towards diversification.
"Vedang Jyotish" of Acharya Lagadh might be based on "yajurveda" but the mentioned shlok is not a part of "yajurveda". I went through all 40 chapters and examined all 1975 mantras carefully. Did not find it there.
जहाँ तक मुझे याद है यही श्लोक बहुत दिनों तक आई आई टी कानपुर के गणित विभाग की साईट पर था. पर इतना डिटेल कहाँ पता था !
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