कितने परवाने जले राज़ ये पाने के लिए
यह शमा क्या जाने परवाने की मुहब्बत को,
जो उससे इश्क कर कर उससे ही जलते हैं।
ये न जाने कब से शमा और परवाने के बीच के इस अबूझ रिश्ते को समझने की कोशिशें जारी हैं -उर्दू शायरी ने इस सम्बन्ध को न जाने कितने कितने तरीकों से व्यक्त किया है ....देश के ज्यादातर भागों में यह बरसात का मौसम है-कीट पतंगों का मौसम है ..शाम को आपने दरवाजे ठीक से बंद नहीं किये या फिर जलते कंदीलों या बल्बों को बुझाया नहीं तो तो परवानों का हुजूम आपके चौखट तक ही नहीं लिविंग रूम तक भी बेहिचक आने को तैयार है ...आखिर शमा और परवाने के बीच का यह कैसा रिश्ता है जिसे शायर कवि भी अपनी अपनी तरह से परिभाषित करते रहे ...
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यह मौसम कई कीट पतंगों के प्रणय संसर्ग का है और यही वक्त है अनेक चिड़ियों के घोसलों में चीं चीं करते उनके नन्हे चूजों की देख भाल का ..अब यह कुदरत की व्यवस्था है जो इसी समय ढेर सारे कीट पतंगे मौजूद
हैं इन चिचियाते उदार पिशाचों की भूख शांत करने के लिए ... यहाँ तक तो ठीक है मगर ये पतंगें रोशनी की ओर इस तरह भागे क्यों चले आते हैं?अभी भी इस विषय पर शोध चल रहे हैं और कीट वैज्ञानिकों के कई विचार सामने आये हैं ...
सबसे हैरत अंगेज बात तो यह सामने आयी है कि परवाने शमा से दूर भागते हैं न कि वे उसकी ओर खिंचे चले आते हैं ....दरअसल वे केवल सूरज और चाँद के प्रकाश स्रोत के सहारे अपना प्रणय स्थल ढूंढना चाहते हैं ...ज्यादातर चाँद की रोशनी के सहारे ....वे चाँद की रोशनी में अपने एक ख़ास कोण में आगे बढ़ते हैं ....और मिलन/अभिसार स्थल तक पहुँचने में कामयाब होते हैं ..मगर कृत्रिम रोशनी -मोमबत्ती (पारम्परिक शमा ) या बल्ब का प्रकाश उन्हें मतिभ्रम कर देता है और वे ऐसे प्रकाश स्रोत के इर्द गिर्द भ्रमित होकर घूमते रहते हैं ....एक वैज्ञानिक शोध दल का कहना है कि ये दरअसल प्रकाश नहीं उसके इर्द गिर्द के अंधियारे का रुख करना चाहते हैं मगर आस पास का प्रकाश उन्हें चुधिया देता है और अंततः वे प्रकाश स्रोत में ही गिर कर अपनी जान दे दते हैं ..हाँ दूर से तो वे इन कृत्रिम प्रकाश स्रोतों को चाँद ही समझ कर उस ओर मुखातिब हो उठते हैं ....अब बरसात की अधिकांश रातों में छाई बदली चांद को वैसे ही छुपाये रखती है ..
अब इश्क के मारे बिचारे शायरों को तो अपने उलाहने के लिए बस यही जलती शमा और उसमें आ आ कर फ़ना होते परवाने ही सबसे सटीक लगे और इन्हें लेकर कितनी ही शेरो शायरी वजूद में आती गयी ....भला उन्हें कहाँ पता लग पाया कि परवाने तो शमा से दूर भागते हैं... मगर बिचारे भाग नहीं पाते और उसमें ही गिर कर ख़ाक होने की उनकी नियति है ..काश इस तथ्य का पता शायरों को होता तो उर्दू शायरी का रुख कुछ और ही होता ...मंशा और ही होती .....बहरहाल हिन्दी ब्लॉग जगत में गजलकारों /गुलूकारों की कोई कमीं नहीं और कोई देर भी नहीं हुयी अभी तो ..यह वक्त बरसात का है ..परवानों का है और जलती हुयी कितनी हसीन शमाओं का है ---उर्दू शायरी का एक नया तेवर अपनी बाट जोह रहा है ....मौका है मौसम है और दस्तूर भी है फिर इंतज़ार किस बात का ...तो हो जाय न एक फडकता हुआ शेर ......
दावात्याग :ऊपर के शेर मेरे नहीं हैं ..स्रोत पता हो तो जानकारी दीजिये!
प्रणय स्थल की खोज में बेचारे परवाने मक़तल (बलिदान स्थल) तक चले आते हैं.. धन्य है उनका बलिदान, जो झूठा ही सही कई शायरों को रोटी प्रदान कर गया.. आपके द्वारा उल्लेख किये गए शेर के शायर का नाम ढूंढें न मिला.. शायद वही हों जिन्होंने लिखा था:
जवाब देंहटाएंलिखता हूँ खत खून से, स्याही न समझना
मारता हूँ तेरी याद में, ज़िंदा न समझना!
क्यों खत लिखते हो खून से क्या तुम्हारे पास स्याही नहीं।
हटाएंक्यों मरते हो उसकी याद में क्या तुम्हारे पास लुगाई नहीं।
जल जाने को,
जवाब देंहटाएंमर जाने को।
@आप भी न सलिल जी ..:).
जवाब देंहटाएंबेकसूर मुझको इस शमा ने अंधा कर दिया
जवाब देंहटाएंवरना निकला था मैं भी वस्ल की तलाश में।
@वाह दिनेश जी वाह ..खूब सहजता से उभरा है यह शेर ...
जवाब देंहटाएंआप द्वारा दी गयी जानकारी... कि, " वे केवल सूरज और चाँद के प्रकाश स्रोत के सहारे अपना प्रणय स्थल ढूंढना चाहते हैं ...ज्यादातर चाँद की रोशनी के सहारे ....वे चाँद की रोशनी में अपने एक ख़ास कोण में आगे बढ़ते हैं ....और मिलन/अभिसार स्थल तक पहुँचने में कामयाब होते हैं ..मगर कृत्रिम रोशनी उन्हें मतिभ्रमित कर देती है ! " स्वयँ मेरे लिये भी नया है ।
जवाब देंहटाएंअब बताइये कि भला.... मय और मैखाने की खुशफ़हमियों में जीने वाले शायर ग़र इतनी समझ रखते कि इस तरह के नाकाम जाँनिसारी को मोहब्बत नहीं कहा जा सकता... तो उन पर शायर होने का तोहमत ही क्यों लगता ?
@यही तो डाक्टर साहब ...
जवाब देंहटाएंअच्छा है पंडिज्जी , सैकडों साल से शायरी में जिसे रोशनी के प्रति समर्पण माना जाता था वह अन्धेरे के भ्रम men paglaana nikalaa !!!!!!
जवाब देंहटाएंBechare parwane! Bemaut maare jate hain!
जवाब देंहटाएं@.. मगर बिचारे भाग नहीं पाते और उसमें ही गिर कर ख़ाक होने की उनकी नियति है ..
जवाब देंहटाएं-----खाक हो जायेंगे हम तुझको खबर होने तक.
अब बेचारे शायर को किसी की मौत या प्रेम प्रसंग से कुछ लिखने को मिल जाये तो उसका क्या दोष ?
जवाब देंहटाएंrochak laga aapko padhna.aabhar
जवाब देंहटाएंएक शेर अर्ज़ है ...
जवाब देंहटाएंख़त कबूतर किस तरह ले जाए बामे यार पर ?
पर कतरने को लगी हों, कैंचियाँ दीवार पर !
ख़त कबूतर इस तरह ले जाए, बामे यार पर,
ख़त का मजमूँ हो परों, पर कटें, दीवार पर !
सो अरसे से भाई लोग शहीद होते रहे हैं इस दीवानगी पर ! आपका क्या हाल है ??
अच्छी और नई जानकारी.....
जवाब देंहटाएंये भूतनी के परवाने केवल नर होते हैं या मादाएं भी ऐसी ही बुद्धिभ्रष्ट होती हैं :-)
जवाब देंहटाएंपतंगों को मतिभ्रम होता है .... मतलब कि
जवाब देंहटाएंपतंगों में मति विद्यमान रहती है.
दूसरी बात, पतंग जी बल्ब को सूर्य समझकर इसलिये मिलते हैं कि संस्कृत में सूर्य को भी 'पतंग' ही कहते हैं. और वे चमकते हुए 'पतंग' को अपनी पहुँच में देखकर बहुत खुश होते हैं. .. यही उनका मतिभ्रम है.
परवानो की नियती ही यही है...वर्ना वो शमा क्या बुझे,जिसे रोशन खुदा करे.:)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपरवाने की मौत पर शमा रोती है
जवाब देंहटाएंउसकी हर अश्क की बूंद परवाने के लिए होती है
परवाना शमा का दीवाना होता है
और उसकी मौत शमा से ही होती है ...
अभी तक यही भ्रम था कि परवाना उस रोशनी की ओर लपकता है ... आगे से थोड़ा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिखने का प्रयास किया जायेगा :)
ये तो कुछ यूँ हो गया कि शायर क्या जाने परवाने का दर्द.
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक दृष्टिकोण कुछ भी हो , शायर तो अपनी ही लिखेगा ....शमा- परवाने पर लिखे या चाँद और चकोर पर !
जवाब देंहटाएंपतंगों के फ़ना होने के नए कारणों की जानकारी हुई !
वैज्ञानिकों में शायरोंमे यही तो फर्क है
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक हर बात में कारण ढूंडते है और शायर जीवन !
फ़ना होते परवाने की हालत तो,सभी ने देख लिये
जलती हुई शमा की हालत किसीको क्या मालूम !
achhi lagi post...
अब गूगल या फिर कोई और , पतंगा उर्फ परवाना ट्रांस्लिटेरियन सर्विस शुरू करे तो राज़ फाश हो !
जवाब देंहटाएंन तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावकः
जवाब देंहटाएंयद्गत्वा न निवर्तंते तद्धामम परमं ममः
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और शायरों के मंतव्य दोनो ही सही है।
जवाब देंहटाएं'यह इश्क़ मतिभ्रम पैदा करता ही है'
कीट परवाना तो बेचारा गलतफहमी में मारा जाता है । लेकिन मनुष्य की देह धारण किये जो परवाने होते हैं वो तो जान बूझ कर कुँए में कूद जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंऐसे सड़क छाप मजनूं भी अंत में शायर ही बनते हैं ।
वैज्ञानिकों ओर शायरों के नज़रिए में उतना ही अंतर रहता है जितना तर्क और तर्कहीन .
जवाब देंहटाएंदोनों की सोच ही विपरीत दिशा में रहती है.इस नयी शोध को वे नहीं मानने वाले.
कितनी रोचक है कवि की क्ल्पना और कितनी नीरस है वैज्ञानिक खोज :)
जवाब देंहटाएंभ्रम पर दुनिया कायम है.
जवाब देंहटाएं"इनकी जान गई;
आपकी शायरी ठहरी"
कैसी त्रासद विडंबना है.
कितने परवाने जले राज ये पाने के लिए ,
जवाब देंहटाएंशम्मा जलने के लिए है या जलाने के लिए ।
बहर-सूरत इस सवाल का ज़वाब तो शम्मा के ही पास है .बे -चारा परवाना क्या जाने ।
महफ़िल में जल उठी शमा ,परवाने के लिए ,
प्रीत बनी है दुनिया में मिट(मर ) जाने के लिए .
लेखक ने शीर्षक की विज्ञान सम्मत पुष्टि की है .शैर की भी .और हकीकत की भी .
मोहब्बत में नहीं है फर्क ,मरने और ज़ीने का ,
उसी को देख के जीतें हैं जिस काफिर पे दम निकले .
भाई साहब यह अलग किस्म का "ओप्टिकल इल्यूज़न है "इश्क में पतंगे की क्या बिसात आदमी भी अंधा हो जाता है .इसीलिए तो कहा गया -
जवाब देंहटाएंइश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया ,
वरना आदमी हम भी थे काम के .
शोध तो जारी ही रहेंगे, शायद कल शायरों के हक में फैसला सुना दें.
जवाब देंहटाएंदिवेदी जी का शेर भी लाजवाब है। अर्विन्द जी चलने दीजिये इस शायरी मे जो रस है वो सच जानने के बाद नही रहेगा। शब्दों के खेल मे खेलने दीजिये लोगों को। शुभकामनायें\
जवाब देंहटाएंनायब,बेहतरीन तथ्यपरक जानकारी दी है.संभवतः मेरे अवचेतन को बेहतर जवाब भी .अब तक उलझी हुई थी .अच्छा लगा पोस्ट.
जवाब देंहटाएंAapke bhi parvane kam nahi hai
जवाब देंहटाएंSir, is thatya ko pyar see jora ja skta hee log sochte Kuch aur Hein par unki matibhramit ho jati hee ...
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