बच्चों को यौन शिक्षा का अर्थ क्या है? यह अनिवार्य क्यों होना चाहिए? और जिन बच्चों को यौन शिक्षा नहीं दी गयी मतलब आज और कल तक की पूर्ववत प्रौढ़ पीढी, तो उनका यौन जीवन निर्वाह कैसे हुआ या हो रहा है? ये कई ऐसे सवाल हैं जो किसी के भी जेहन में उठ सकते हैं .मगर मुश्किल यह है कि सेक्स पर चर्चा एक उपेक्षित और सामजिक रूप से वर्जित विषय है ..नैतिकता और संस्कार के सवाल उठने लगते हैं .भारत में तो सेक्स एक बड़ा वर्जित शब्द ही नहीं एक वर्जित कर्म भी है .कुछ वर्जना तो प्रकृति प्रदत्त है -जैवीय सृजन की गतिविधि किसी भी भांति बाधित न हो इसलिए यहाँ कुछ तो आवरण में है ,गोपन है और निजता की जरुरत होती है .बाकी सृजन की इस मूल प्रेरणा को लेकर प्रकृति का अपना ताम झाम है -सेक्स एक सहज बोध है .बहुत कुछ अपने आप समझ आ जाता है .किशोरावस्था की शुरुआत ही 'द्वितीयक लैंगिक लक्षणों' से शुरू हो जाती है मगर लैंगिक भावना बचपन से ही जाहिर होने लगती है ...बच्चे तक भी खेल खेल में लैंगिक बोध से गुजरते हैं -" तुम अपना दिखाओ मैं अपना दिखाता हूँ" जैसे खेल बच्चों में प्रिय हैं . यहाँ किसी यौन शिक्षा की जरुरत नहीं है .प्रकृति खुद उन्हें राह दिखाती है . व्यवहार वैज्ञानिकों ने इन गतिविधियों को " इक्स्प्लोरेटरी एक्टिवीटीज " -खोज बीन/जिज्ञासु गतिवधियां कहा है . बच्चे तक समझने लगते हैं कि उनके अंगों में फर्क है . अरे यह तो लडकी है -देखो वह लड़का है!
अब तक तो सब कुछ ठीक ठाक रहता है मगर किशोरावस्था तक आते आते मामला गंभीर होने लगता है ..अब समय होता है द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के प्रगट होने का ...मूछें निकलना ,आवाज भारी होना और यौनांग पर बाल उगना ऐसे लक्षण हैं जिनसे बच्चों में कुछ घबराहट सी होनी शुरू होती है और लड़कियों में उभार तथा मेंसेस का आरम्भ उनकी मुसीबत बनती है ...यही वह अवसर है जब बच्चों को सही यौन शिक्षा दी जानी चाहिए -मगर होता उल्टा है ..प्रौढ़ों से उन्हें सहज व्यवहार के बजाय डांटना डपटना झेलना पड़ता है ...इसे देखो अभी से इस नालायक की मूंछे निकलने लगीं ....और तो और एक पिता के मुंह से बेटा जब यह कठोर वचन सुनता है, उसका दिल बैठ जाता है ...कुछ जरुर गलत है ....कुंठा का पहला अनुभव उसे होता है ..माँ भी अपनी बेटी को जब उसके उभारों और मेंसेस के प्रथम अनुभव के समय सहानुभूति के बजाय तरह तरह के कटु वचन बोलने लगती है तो उसे लगता है कि उसे जीना ही नहीं चाहिए ...यहाँ यौन शिक्षा की किसे ज्यादा जरुरत है?
द्वितीयक लैंगिक पहचानों के उभरने के साथ ही दो मुख्य यौन रसायन -टेस्टोस्टेरान और इस्ट्रोजेन का उत्पादन मस्तिष्क शुरू करता है -यह वही अवसर है जब विपरीत लिंग के प्रति जबरदस्त आकर्षण होता है . दिन रात की बेचैनी ,चेहरे पर हवाईयां ....चोरी छिपे कुछ वारदातें ....लड़कों ही नहीं लड़कियों में भी जीवन के पहले क्रश का अनुभव इसी समय होता है -कोई बेहद अच्छा लगने लगता है ,किसी के साथ हर पल छिन रहने का जी चाहता है ...लड़के या लडकी दोनों की यही हालत होती है और यह बेहद सामान्य बात है -यहाँ उन्हें सहानुभूति और सही सलाह मिलनी चाहिए मगर होता उल्टा है -माँ बाप अभिभावकों की डांट डपट शुरू हो जाती है ....और यह अपने वीभत्स रूप में खाप पद्धतियों तक जा पहुँचती है ....
और यही पहला वक्त होता है जब शुरू होता है प्रौढ़ों द्वारा यौन शोषण -लड़का या लडकी, यह ज्यादती दोनों के हिस्से में है . जान पहचान केलोग , सगे रिश्तेदार तक भी बेजा हरकते करते हैं ....जहां एक प्रौढ़ को जिम्मेदारी निभानी है वहीं वह बिकुल ही गैर जिम्मेदाराना हरकत करता है -यहाँ फिर से प्रौढ़ों को ही यौन शिक्षा की जरुरत है .. यही यह वक्त होता है कि माँ बाप खुद अपने बच्चों को कई जरुरी बातें पूरी सहानुभूति और अपने प्रति उनमें भरोसा देकर समझा सकते हैं ...यौनानुभव के साथ जो जरुरी सावधानियां ,.प्रसव /जन्म निरोध ,यौन रोगों और एड्स की संभावना आदि का ककहरा यहीं से शुरू होना चाहिए ...और यह भी कि यौन संसर्ग के प्रति एक सकारात्मक सोच की प्राथमिक कक्षा भी यहीं से शुरू होती है . यह बात यहीं से समझाई जानी चाहिए कि यह सहज बात है ,प्राकृतिक है मगर कुछ सावधानियाँ भी अपेक्षित है -सेक्स कतई घृणित नहीं है ...गंदी चीज नहीं है -क्योकि यहीं से गलत पाठ आगे की ज़िंदगी को प्रभावित कर सकता है -एक मेरे स्वजन हैं उनकी मर्मान्तक पीड़ा है कि एक तो उनकी सहचरी घनिष्ठ क्षणों के लिए तैयार नहीं होती हैं और अगर किसी तरह तैयार भी होती हैं तो जाड़े की ठिठुरन भरी रात ही क्यों न हो बालों को खोलकर देर तक नहाती हैं .....ऐसे व्यवहार दरअसल कुंठित यौन व्यवहार का ही एक उदाहरण है ..
यह यौन -कथा अभी बहुत बाकी है ... -:)
सही कहा आपने !!!
जवाब देंहटाएंसही |
जवाब देंहटाएंमुख्यत: अभिभावक इस मनोविज्ञान से अनभिग्य है-
और व्यर्थ की डांट-डपट करते रहते हैं -
आभार ||
abhar
जवाब देंहटाएंpranam.
...वैसे मैं इस तरह की औपचारिक शिक्षा के समर्थन में नहीं हूँ,खासकर बच्चों में,क्योंकि यह पारंपरिक रूप से अपने-आप नई पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती है.हम लोगों को बचपन में किसी बड़े ने कुछ नहीं बताया,न ही विवाह के समय भी.कुछ चीज़ें जान गए थे तो कुछ मामले में अनाड़ी रहे.अब सोचता हूँ तो लगता है कि कई बातें हम नहीं जानते थे,पर यह सब भारतीय-संस्कृति के हिसाब से ठीक ही है.यौन-विषयों को थोड़ा परदेदारी की ज़रूरत तो है ही.
जवाब देंहटाएंअब जब हम प्रौढ़ हो गए हैं तो व्यावहारिक तो नहीं हाँ,आपसी बोल-चाल में सेक्स ही सबसे रंजक विषय लगता है.इसका मतलब यही नहीं कि इस तरह के लोग बीमार या 'ठरकी' हैं !
@संतोष जी अभी आगे आगे पढ़ते जाईये ...बहुत कुछ बाकी है ....
हटाएंयौन सम्बन्ध बनाना अगर घृणित कर्म है तो पृथ्वी पर सभी जीव-जंतु गंदगी की ही पैदाइश हैं.
जवाब देंहटाएंबदलती उम्र के साथ बदलाव आना स्वाभाविक है और उसी हिसाब से बात-व्यवहार भी होना जरूरी है मसलन विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण। यदि यह आकर्षण न हो किशोरावस्था में तो लैंगिक दुश्वारियां सामने आती हैं - समलैंगिकता कुछ उसी तरह की सामाजिक व्याधि है।
जवाब देंहटाएंखैर, बात केवल आकर्षण तक हो तो ठीक समझा भी जा सकता है लेकिन कई बार यह प्रति-आकर्षण घातक भी हो जाता है। ऐसे में बच्चों को सही मार्गदर्शन देना भी जरूरी है लेकिन हिचकिचाहट और क्या कैसे बताया जाय में बात उलझ कर रह जाती है। एक बात ये भी है कि आजकल बच्चों को ज्यादा समझाने के जरूरत नहीं पड़ती। वे नेट या तमाम रिसोर्सेस से इनके बारे में जानकारीयां लिये ही रहते हैं। उन्हें नासमझ समझना थोड़ी ज्यादती होगी।
कहा भी गया है कि हर अगली पीढी अपनी पिछली पिढ़ी से ज्यादा स्मार्ट होती है :)
एक बेहद संवेदनशील विषय पर दिलचस्प पोस्ट ! बढ़िया।
@हिचकिचाहट वाली बात स्वाभाविक है ..बात कैसे कही जाय यहाँ भी प्रोफेसनल्स की जरुरत है प्रौढ़ों को समझाने के लिए ...
हटाएंइस विषय पर जितनी चर्चा होनी चाहिये होती नहीं है। वर्तमान भारतीय बुजुर्गवा पिढ़ी एक अजीब से भंवर में फँसी है, वह प्राचीन भारतीय परंपराये भूल चुकी, जिसमें नगरवधु जैसा सम्मानित पद होता था। यौन शिक्षा नगरवधु के जिम्मे होती थी।
जवाब देंहटाएं@आशीष जी बड़े मार्के की बात कही आपने (जैसा कि आप हमेशा करते ही हैं ) मगर आज नगर वधुएँ तो हैं मगर उनके काम का निचला स्तर हो गया है .....
हटाएंमेरी जानकारी में प्रोढ़ और बुजर्ग योन को गंदा तो नहीं मानते पर वे इसे जीवन के एकमात्र मुख्य केन्द्रबिन्दु की तरह चर्चा में नहीं देखना चाहते। इसे खुल्ला चर्चा का विषय नहीं बनाना चाहते, उनका अनुभव कहता है दुनिया में हजारों काम है योन के सिवा।
जवाब देंहटाएंकोई भी नहीं जानता कि कौनसा समय ठीक है बच्चों को समग्र यथार्थ जानकारी देने के लिए। फिर बच्चों के बौद्धिक स्तर में भी अन्तर रहता है जिसे परखा नहीं जा सकता। असमय जानकारी जिज्ञासा और प्रतिपूर्ति के एक चक्र के निर्माण का संयोग बन सकती है, माता पिता शायद इसी बात से डरते है। अन्यथा वे ही माता-पिता अपनी नवविवाहित संतानों के लिए उमंग से उन्हें एकांत देना, उनके कमरे में दूध व गरिष्ट खाद्य का इन्तजाम करना, बच्चों के देर से उठने पर कोई शिकायत न करना? क्या कहीं योन सम्बंधो से घृणा प्रदर्शित होती है?
यह एक ऐसी प्राकृतिक विधि है जिसमें 90% लोग बिना शिक्षा के सहज ही पार कर लेते है। 10% होते होगें जिनमें अज्ञानतावश कुंठाए पैदा हो। पर उनकी पहचान कर उन्हें पूर्व में ही शिक्षित कर पाना बड़ा असम्भव सा है। और फिर 10% के लिए 90% की समझपूर्वक की मर्यादाओं के पर्दे खोल देना कहां तक उचित है।
समस्याओं पर चिंतन जरूरी है पर इस विषय को इस तरह भी चर्चित नहीं होना चाहिए कि जैसे जीवन का यही मात्र लक्ष्य हो।
सतीश पंचम जी नें इन शब्दों में वास्तविक समस्या इंगित की…"ऐसे में बच्चों को सही मार्गदर्शन देना भी जरूरी है लेकिन हिचकिचाहट और क्या कैसे बताया जाय में बात उलझ कर रह जाती है।"
वास्तव में जानकारी देने के उस संवाद का कंटेंट क्या हो? शब्दों को किस तरह प्रस्तुत किया जाय कि वे शब्द बच्चों द्वारा उसी अर्थ में अंगीकार हो, और उसका प्रभाव बच्चों के लिए कल्याणकारी हो।
@सुज्ञ जी ,आपने महत्वपूर्ण बिंदु उठाये हैं ....मगर सेक्स जीवन का एक वह पहलू है जिससे मनुष्य के जीवन के अनेक पर्फार्मेंसेज जुड़े हैं ...इसे गंभीरता से लेना होगा !
हटाएंपंडित जी!
जवाब देंहटाएंआदिकाल में और आज भी जहाँ आदिम संस्कृति है जब लोग नग्न रहते थे तो इतनी विकृतियाँ नहीं थीं इस विषय को लेकर.. ओशो भी कहते हैं कि यदि चौदह वर्ष की अवस्था तक बच्चों नग्न रहने की आदत डाल दी जाए तो स्वाभाविक रूप से उनके अंदर यौन भावनाओं का विकास होता है.. आज के सभी समाज में संभव नहीं.. तो विकृति झेलना ही पड़ेगी..
आपका वैज्ञानिक विश्लेषण बड़ा कीमती है!! आभार!!
@सलिल जी ,बस बने रहिये आगे की राह बड़ी दुर्गम लग रही है ...
हटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
--
संविधान निर्माता बाबा सहिब भीमराव अम्बेदकर के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
आपका-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सही, सार्थक विश्लेषण ...
जवाब देंहटाएंनेक सलाह
गुड और बेड कोंटेक्ट अच्छे और बुरे स्पर्श का फर्क बालकों को भी बताया जाना चाहिए .यौन कुंठा से उपजतें हैं चाइल्ड सेक्स एब्यूज के मामले .यह बात सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है .इस दौर में सारी दुनिया में बालक ,किशोर किशोरियां यौन शिक्षा के अभाव में सेक्स्युअल एब्यूज झेल रहें हैं ,आगे चलके मनो -रोगों की भी ये मामले वजह बन सकतें हैं .सी सी टी वी बाथ रूम्स में इसीलिए फिट किये जा रहें हैं माल्स के .स्कूल -कोलिज के .
जवाब देंहटाएंहम तो नाबालिग उम्र से ही मास्टर्स-जानसन के प्रशंसक रहे.
जवाब देंहटाएंऔर अभी भी हैं, बाद में ''द सेकण्ड सेक्स'' का नाम जुड़ गया, इसके साथ. बड़े सेक्स पंडित तो गुजरे ही होंगे इनसे, लेकिन वे इन्हें दुहरा लें तो फायदा ही होगा.
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
8 व 10 कक्षा के विज्ञान पाठ्य पुस्तक में पूरा पाठ है कमी यह है की 8 में समझने की उम्र कम है और 10 तक जो होना है हो लेता है वैसे कक्षा 9 सही समय है वहाँ जीवों का वर्गीकरण पढते हैं किशोर ...
जवाब देंहटाएंयौन शिक्षा अलग से विषय होना चाहिए स्कूल स्तर पर
अच्छा मुद्दा उठाया जी आपने ..
धन्यवाद
अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंये कमेन्ट इस पोस्ट के टाइटल पर है , हो सका तो बाद में पोस्ट से भी निपट लेंगे !
प्रौढ़ बोले तो लगभग गुजर चुकी बहार ! पकी हुई फसल ! टपकते हुए आम ! पिलपिले बेर ! आधे पीले पत्ते ! किशमिश हो चले अंगूर ! अंकुर छोड़ चुके आलू ! सूखने की कगार पर खड़े गन्ने ! क्या फायदा इन पर दांव लगाने से ! यौन संपर्कों में गैर जिम्मेदारों की एक पीढ़ी ऐसे ही गुज़र जाये तो क्या ?
दांव लगाना ही है तो उनपे लगाया जाये जो अभी बच्चे हैं पर आगे उनका ज़माना है ! पूरी उम्र पड़ी है , भोगने के लिए जिनकी ! पहले से पता रहेगा तो कोई चूक ना होगी :)
बहरहाल बच्चों पे दांव लगाने से आपका कहा भी पूरा हो जायेगा क्योंकि एक ना एक रोज एक रोज उन्हें भी प्रौढ़ होना ही है :)
@अली भाई ,
हटाएंमेरा कंसर्न प्रौढ़ों यानी आपके या मेरे यौन परफार्मेंस का कतई नहीं है -अब अंत में क्या ख़ाक मुसलमां होंगें ?
यह उन्हें इसलिए दिया जाना जरुरी है ताकि अगली पढी का जीवन नारकीय होने से बच सके ....
यहाँ प्रौढ़ों को हर तरह की शिक्षा की जरुरत है! कुछ अपूर्ण उदाहरण:
जवाब देंहटाएं1. रिश्वत और दहेज के बिना जीवन जीने की शिक्षा,
2. मतभेद का आदर करने की शिक्षा,
3. अपने को सदा संत और विरोधी को विलेन न बताने की शिक्षा,
4. बच्चों के कान न मरोड़ने की शिक्षा,
5. आरक्षण के नाम पर ट्रेनें न रोकने की शिक्षा,
6. बात को समझे बिना बात-बेबात बेतुके फ़तवे न देने की शिक्षा
7. विविधता का आदर करने की शिक्षा
8. नागरिक कर्तव्यों के निर्वाह की शिक्षा
... और भी ग़म हैं ज़माने में ...
@अनुराग जी ,
हटाएंभाई वाह ,एक एक हिदायतें गाँठ बाँध लेने की हैं ....
इतने खुलेपन को तो मैं भी सही मानती हूँ की बच्चे किसी भी तरह शोषण का शिकार न हों...... बच्चों के साथ होने वाला यह दुर्व्यवहार हमारे समाज पर कलंक के समान है..... कई महत्वपूर्ण बिंदु लिए आलेख ...
जवाब देंहटाएंनवभारत पर भी आपके ब्लॉग की निरंतर चर्चा है .सार्थक लिनक्स भेजने के लिए शुक्रिया .बाल यौन शोषण का मुद्दा गंभीर है .माँ बाप ही इशारे से समझा सकतें हैं बुनियादी बचावी पाठ .
जवाब देंहटाएंNice post.
जवाब देंहटाएंएक संजीदा नसीहत ,
इंसान ग़लतियों से भी सीखता है और सीखकर भी ग़लती करता है।
यौन विषय भी एक ऐसा ही विषय है कि इसमें ग़लतियां होने की और पांव फिसलने की संभावना बहुत है यानि कि डगर पनघट की कठिन बहुत है। कठिन होने के बावजूद लोग न सिर्फ़ इस पर चलते हैं बल्कि सरपट दौड़ते हैं।
इसी भागदौड़ में लोग बाग ठोकर खाकर गिर रहे हैं . इस समय हिंदी ब्लॉग जगत का ढर्रा यही है।
ऐसा लगता है की इस देश में जवानों से ज़्यादा बूढों को यौन शिक्षा देने की ज्यादा जरुरत है.
"यौन शिक्षा देता है बड़ा ब्लॉगर":
http://tobeabigblogger.blogspot.com/2012/04/blog-post.html
काफी जरूरी बात पर चर्चा शुरू किया अपने.
जवाब देंहटाएंसेक्स शिक्षा जरूरी नहीं की स्कूल में हो पर अपने घर में सही सामने देखते ही वयस्कों को इसकी जरूरत समझते हुए देनी चाहिए.
एक जानकारी की बात मैं भी बता दूं विशेषकर किशोरों के लिए. दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में चौथी या पांचवी मंजिल पे किशोरों के लिए काउंसलिंग की जाती है और किशोर अपने असमंजस का समाधान पा सकते हैं और क्या करें या क्या ना करें आदि भ्रांतियों से बच सकते हैं..
शीघ्र अपने देश लौटने वाला हूँ....
व्यस्तता के कारण इतने दिनों ब्लॉग से दूर रहा.
नयी रचना समर्पित करता हूँ. उम्मीद है पुनः स्नेह से पूरित करेंगे.
राजेश नचिकेता.
http://swarnakshar.blogspot.ca/
यदि हम स्वयं कोई प्रारूप नहीं निर्धारित करेंगे तो कौन करेगा।
जवाब देंहटाएंलगता है अब हम समझने के लायक नहीं रहे!
जवाब देंहटाएंबच्चों को यौन शिक्षा का अर्थ क्या है? यह अनिवार्य क्यों होना चाहिए? और जिन बच्चों को यौन शिक्षा नहीं दी गयी मतलब आज और कल तक की पूर्ववत प्रौढ़ पीढी, तो उनका यौन जीवन निर्वाह कैसे हुआ या हो रहा है?
जवाब देंहटाएं.असल सवाल यह है इस उल्लेखित पीढ़ी का यौन शोषण कितना हुआ ?क्यों हुआ ?और आइन्दा के लिए इसे कैसे रोका जाए .आंकडें गवाह हैं -आलमी स्तर पर नाबालिगों के यौन शोषण के पीछे अपनों का ही ,बहुत परिचित लोगों का ही हाथ होता है .इनसे बचा कैसे जाए ?बचाया कैसे जाए आइन्दा के लिए नौनिहालों को .
जहां जहां नासमझी है, वहां वहां शिक्षा की जरूरत है।
जवाब देंहटाएंबच्चों को शिक्षा दिये जाने पर भड़कना भी गलत है। प्रौढ़ों को इस बात के लिए शिक्षित तो किया ही जाना चाहिए कि यौन शिक्षा जरूरी है। यदि हम अपने बच्चों को सही शिक्षा नहीं दे पा रहे, अनाप शनाप ग्रंथी भरे चले जा रहे हैं तो स्कूल में गुरूजी को बताना ही पड़ेगा कि सही बात है क्या ? अब गुरूजी को ही सही बात नहीं मालूम तो सबसे पहले उनको ही शिक्षित किये जाने की जरूरत है। सभी स्तर से शिक्षित करने और शिक्षित होने की आवश्यकता है। इन सबके बीच एक मूल प्रश्न है कि वास्तव में सही है क्या? सही की खोज करते वक्त हमे अपने सामाजिक परिवेश को भी नहीं भूलना चाहिए। हमारे राष्ट्र की जनता दोहरी शिक्षा ग्रहण करती है। एक तरफ वे संपन्न लोग हैं जो अपने बच्चों को महंगे साधन संपन्न इंगलिश स्कूलों में पढ़ाते हैं दूसरी तरफ वे लोग हैं जो मुश्किल से अपने बच्चों को स्कूल इसलिए भेज रहे हैं कि वहां दोपहर का खाना मिल जाता है। दोनो बच्चों के एक ही पलड़े में तौल कर शिक्षित करने से मामला बिगड़ जायेगा। यह तो वही बात हुई कि गिनती आती नहीं और गुणा भाग सिखाने लगे। यह समस्या इसलिए भी बड़ी हो चली है कि हमारे देश में अभी तक सभी साक्षर नहीं हुए।
जनसंख्या नियंत्रण पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा। बहुत सी समस्याएं तो जनसंख्या विस्फोट का परिणाम है।
यौन शिक्षा से यदि जनसंख्या नियंत्रण पर बल मिले तो यह शिक्षा और भी लाभकारी हो जाय।
बहुत कुछ जो बाकी है ..निस्संदेह सार्थक होगा..रोचक भी..
जवाब देंहटाएंअरविंद जी, सत्य वचन...
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दो साल पहले इसी मुद्दे पर बड़ा हिचकते हुए ये लेख लिखा था- बच्चे आप से कुछ बोल्ड पूछें, तो क्या जवाब दें
@Rahul Singhji
मास्टर्स-जानसन की तरह किशोरावस्था में भारत के ही डा प्रकाश कोठारी के लेख पढ़ने से दिमाग की बहुत सी बंद खिड़कियां खुली थीं...
जय हिंद...
प्रकृति ही सबसे बड़ी गुरु है जो स्वयं सब सिखा देती है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन आधुनिक विकास के साथ पनपते अनेक रोगों से सम्बंधित ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है ।
वैसे यौन शिक्षा बड़ा कठिन विषय है ।
वीरूभाई नें सच कहा-"आंकडें गवाह हैं -आलमी स्तर पर नाबालिगों के यौन शोषण के पीछे अपनों का ही ,बहुत परिचित लोगों का ही हाथ होता है .इनसे बचा कैसे जाए ?"
जवाब देंहटाएंबात भी सही है बच्चों किशोरों के लैगिक शोषण में निकट सम्बंधी, परिचित और कई बार तो शिक्षकों का हाथ उजागर होता है और यौन शिक्षा का दारोमदार भी इन पर निर्भर है।
प्रोफेसनल काउंसलिंग सर्वांग निरापद और यथेष्ठ सफल हो जरूरी नहीं।
आपके अगले अंक की आतुरता से प्रतीक्षा है, क्या निदान प्रस्तावित करते है?
डॉ .दाराल इससे पहले के प्रकृति आपको कुछ सीखने बूझने का मौक़ा दे 'पोर्न 'बीच में आजाता है .एमएमएस आ जातें हैं .औरत को एक जींस की तरह परोसना उसका वस्तुकरण करते चलना उसे यौन चिन्ह और उसके यौनांगों को चिन्हित करते चलना जिस वक्त की देन है उस वक्त में बालकों को इसके निहित खतरे आज नहीं बताये जायेंगे तब कब बतलाये जायेंगे . दोश्त के घर का खाना ,पूरी तवज्जो मिलना पूरे वक्त पढ़ना और लिखना ऊर्जित रखता है .एक ड्रिंक का भी दस्तूर रहता है .
जवाब देंहटाएंमासूमों को यौन शोषण से बचाने की अपील के साथ तो ठीक है , वरना तो दुनिया में इससे अधिक गहन विमर्श के कई कार्य है . ये प्रौढ़ कभी फुर्सत के लम्हे किसी टी बी अथवा कैंसर चिकित्सालय , वृद्धाश्रम या अनाथालय में गुजार कर देखें !
जवाब देंहटाएंइन दिनों दिल्ली मेट्रो के स्टेशनों के टीवी पर एक विज्ञापन दिखाया जा रहा है जिसमें बताया गया है कि लगभग 53 प्रतिशत बच्चे यौन-उत्पीड़न का शिकार होते हैं। अब यह चाहे बच्चियों की अनभिज्ञता का परिणाम हो,कमज़ोरी का हो या कि बड़ों की यौन-कुंठा का,मगर समस्या तो है। युवतियों ने भी कई सर्वेक्षणों में कहा है कि उन्हें युवाओं से ज्यादा डर बुजुर्गों से रहता है जो बेटा-बेटा कहकर भीड़-भाड़ वाली जगह में कंधे पर हाथ रख देते हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट को ब्लॉगर्स मीट वीकली 39 में देखा जा रहा है।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ लिंक प्रेषित है
http://hbfint.blogspot.com/2012/04/39-nirmal-baba-ki-tisri-aankh.html
आगे की कथा का इंतजार है। :)
जवाब देंहटाएंjaruri shiksha ke abhav mein yuva varg mein vikrat mansiktayen janm le rahi hai aur iske udaharan to har jagah mil hi jate hai..sarthak lekh
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