यह सचमुच हैरान करने वाली बात है कि हमारे आदि पूर्वजों ने भी कभी अन्तरिक्ष में एक शहर बसाने का सपना देखा था ....इस बारे में मय दानव और उसके द्वारा बसाए गए त्रिपुर नामक अन्तरिक्ष की कथा बड़ी रोचक है ..मय एक मायावी दानव था मगर हर तरह के छल प्रपंच और माया के विस्तार के बावजूद भी वह देवताओं से युद्ध में पराजित हो गया था ...उसने घोर तप किया और ब्रह्मा से अन्तरिक्ष में नगर बसाने का वरदान मांग लिया ....और फिर उसने त्रिपुर नामका अन्तरिक्ष शहर बनाया .जैसा कि नाम से जाहिर है त्रिपुर तीन छोटे शहरों को मिलाकर बनाया गया था जिनके नाम थे-अयसपुर,रजतपुर और सुवर्ण नगर ...इन सभी शहरों की अपनी विशेषताएं थीं ,जैसे अयसपुर यानि लौहपुर मजबूती के कारण ,रुपहली आभा वाला रजतपुर और सोने सा दिखने वाला सुवर्णपुर अपनी चमक के कारण विख्यात हुआ ..इन सभी नगरों में बहुमंजिली इमारतें ,सड़कें, तालाब,बाग़ , झरने, तरह तरह के पशु पक्षी और वृक्ष सभी तो थे .एक नगर से दूसरे नगर तक की हवाई यात्रा के लिए विमान भी थे...पुराकथा के मुताबिक़ ये तीनों नगर धरती से सौ योजन की दूरी पर एक तारे सदृश दिखते थे.....मय राक्षस अपने बन्धु बांधवों के साथ यहाँ विलासपूर्वक रहता था, मगर एक बार शंकर के कुपित हो जाने पर उनके द्वारा इन नगरों को भस्म कर दिया गया .....शंकर का एक नाम इसलिए ही त्रिपुरारि है!
एक ऐसी ही कथा त्रिशंकु की भी है जिसे विश्वामित्र ने अपने तपोबल से सीधे स्वर्ग भेज दिया था ....चूंकि धरती से सशरीर स्वर्ग की यात्रा दैविक नियम के अनुकूल नहीं थी /है अतः इंद्र ने उसे स्वर्ग द्वार से ही नीचे ढकेल दिया . बिचारा त्रिशंकु औधे मुंह नीचे गिरने लगा ..उसकी आर्तनाद से विश्वामित्र ने कुपित हो उसे बीच में ही रोक दिया ...पौराणिक मान्यता के अनुसार आज भी औधे मुंह त्रिशंकु वहीं धरती और स्वर्ग की देहरी -अधर में लटका हुआ है ..उसके मुंह से निकली लार से कर्मनाशा नदी की निर्मिति हुई है ....
अन्तरिक्ष में नगर बसाने की सोच केवल एक कपोल कल्पना भर ही नहीं रह गयी ....आज हम सभी जानते हैं कि अन्तरिक्ष स्पेस स्टेशन एक हकीकत है और अन्तरिक्ष में गतिमान है ....यह एक कृत्रिम उपग्रह की तरह अन्तरिक्ष की एक निचली कक्षा में स्थापित है .और धरती से नंगी आँखों से देखा जा सकता है . इसमें दो चार अन्तरिक्ष वासी निवास भी कर सकते हैं,बल्कि रूसी और अमेरिकी अन्तरिक्ष यात्री वाहना रुकते भी रहे हैं . .आज अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों के पास ऐसे अन्तरिक्ष के रैन बसेरों ,होटलों के ब्लू प्रिंट मौजूद हैं जहाँ लोग सैर सपाटे के लिए ,हनीमून के लिए जा सकते हैं ...अन्तरिक्ष के पर्यटन उद्योग का एक भरा पूरा स्वरुप अंगडाई लेने लगा है.
प्रसिद्ध इतालवी -फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ लुयिओस लाग्रेंज ने १७७२ में गणितीय आधार पर यह साबित किया कि सूर्य ,धरती और चन्द्रमा के गुरुत्व के मध्य एक ऐसा बिंदु है जहां गुरुत्वाकर्षण बल नगण्य है यानि वहां कोई भी वस्तु स्थापित हो तो स्थिर रहेगा ..इन्हें आज लाग्रेजियन बिंदुकहा जाता है और उन्ही गुरुत्व हीन स्थानों में ही भविष्य की अन्तरिक्ष बस्तियों के बसाए जाने की कवायद है . क्या यह रोचक नहीं कि हमारे पुराणकारों की कल्पनाएँ अब उपयुक्त प्रौद्योगिकी के विकास के चलते साकार होने लगी हैं ....कितना अच्छा हो यदि भविष्य की किसी अन्तरिक्ष बस्ती का नाम त्रिपुर या त्रिशंकु रखा जाता ....
अन्तरिक्ष स्पेश स्टेशन अब एक हकीकत है
प्रसिद्ध विज्ञान कथाकार आर्थर सी क्लार्क ने १९४५ मे एक लेख लिखा था जिसमे यह दर्शाया गया था कि यदि अन्तरिक्ष की भू स्थिर कक्षाओं मे उपग्रहों को स्थापित कर उनसे संचार संवहन कराया जाय तो समूची दुनिया मे एक साथ ही सहजता से संचार स्थापित हो सकता है .यद्यपि उन्होंने इस युक्ति को पेटेंट नही कराया मगर उनका यह स्वप्न जल्दी ही साकार हुआ और एक दशक बीतते बीतते पहला संचार उपग्रह धरती के भू स्थिर कक्षा मे स्थापित कर दिया गया . आज अंतर्जाल पर हमारी गतिशीलता इन्ही संचार उपग्रहों की ही देन है ..क्लार्क ने 1940 में यह भी घोषणा की थी कि मनुष्य सन १९८० के दशक तक तक चांद पर जा पहुंचेगा, चालीस के दशक में मनुष्य के चांद पर पहुंच जाने की कल्पना प्रस्तुत करने पर लोगों ने उनका उपहास किया,1969 में ही अमरीकी नागरिक नील आर्मस्ट्रांग ने आखिर चांद पर कदम रख ही दिए .तब अमरीका ने क्लार्क की सराहना करते हुए कहा था कि उन्होंने हमें चांद पर जाने के लिए बौद्विक रूप से प्रेरित किया.
शायद वह दिन अब बहुत दूर नहीं,मतलब अगले सौ पचास वर्षों में ही मंगल पर होगा निस दिन मंगल और चाँद पर हम बनायेगें इक आशियाँ ....और हमारे पुराण -मनीषियों की संकल्पनाएँ साकार हो उठेंगी .....
ऐसी कहानियां हम बचपन से सुनते आ रहे हैं.प्राचीनकाल से लेकर आज तक चन्द्रमा तो जैसे हमारे परिवार का अंग रहा है,उसे चंदामामा यूँ ही नहीं कहते रहे हैं.
जवाब देंहटाएंमंगल और चन्द्रमा पर बसने का स्वप्न ज़रूर पूरा होगा,अफ़सोस हम न होंगे !
मंगल पर मंगल मनाने में तो पांच सौ साल लगेंगे । तब तक क्यों न जंगल में मंगल मनाया जाए । :)
जवाब देंहटाएंएक दिन मंगल पर जरुर मंगल मनाया जाएगा!...रोचक कहानी!...आभार!
जवाब देंहटाएंवाह भाई वाह
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ||
बहुत बहुत बधाई ||
science कि तरक्की देखकर कुछ भी असंभव नहीं लगता ....
जवाब देंहटाएंतेरी महफ़िल में लेकिन हम ना होंगे !
जवाब देंहटाएंउस स्थान का नाम त्रिशंकु बिन्दु रख देना चाहिये
जवाब देंहटाएंमन्त्र-शक्ति से था बसा, पहले त्रिपुर-स्थान ।
जवाब देंहटाएंलटक गए त्रिशंकु भी, इंद्र रहे रिसियान ।
इंद्र रहे रिसियान, हुए क्रोधित त्रिपुरारी ।
मय दानव का मान, मिटाई कृतियाँ सारी ।
बसते नगर महान, आज फिर तंत्र-शक्ति से ।
पर पहले संसार, सधा था मन्त्र-शक्ति से ।।
दुनिया की हर सभ्यता में इस तरह की या इसके आसपास कल्पनायें की गयीं। सब अलग-अलग तरह से कुछ कम ज्यादा सार्थक हो रहीं हैं। आज भी न जाने कितनी कल्पनायें हम करते हैं। देखिये आगे क्या होता है।
जवाब देंहटाएंbahut khoobasoorat pravishti.
जवाब देंहटाएंअवैज्ञानिक कथाओं/लोकोक्तियों/किम्वादंतियों को आपने जिस प्रकार वैज्ञानिक तथ्य से प्रमाणित किया है वह सचमुच अविश्वास का यथार्थ में परिणत होना है!! मंगल ग्रह के साथ तो हम लोगों का बचपन का नाता है!! कोमिक्स में भी एलियन मंगल से ही आते थे!!
जवाब देंहटाएंभविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, क्या पता!!
हमारा नंबर कब आएगा ...??
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें हम दोनों को
चाँद पर इक छोटा सा घर हो, और चाँद सा हमसफ़र हो :)
जवाब देंहटाएंआसमान में उड़ते फिरे दोनों - कोई ऐसा मंगल सु-अवसर हो .....
बढिया जानकारी मिली। किसी दिन यह सपना भी साकार हो सकता है!
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी.... वैसे दराल साहब की बात एकदम सही है.....
जवाब देंहटाएंसर जी बहुत सुन्दर पौराणिक विवेचन आधुनिक संदर्भ में |
जवाब देंहटाएंआज शुक्रवार
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति ||
charchamanch.blogspot.com
कौन जाने कहानी कथाओं की तरह अभी भी वहां कोई बस्ती हो , जहाँ से एलियन इस धरती पर आते हैं ...
जवाब देंहटाएंजिस तरह पुरानी कल्पनाएँ साकार हो रही है , यह भी साकार हो ही सकती है ...
चाँद पर प्लाट ख़रीदे बेचे भी जाने लगे हैं !!
रोचक आलेख !
बहुत ही सुन्दर आलेख. हमारे पूर्वजों की कल्पनाएँ (?) एक के बाद एक साकार होती जा रही हैं. हम खूब सपने देखें और खुश रहें.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर जानकारी भरा आलेख
जवाब देंहटाएंजब तक सामने नहीं आता तभी तक रहस्य रहता है .... आने वाली पीढ़ियाँ शायद मंगल पर मंगल करें
जवाब देंहटाएंEK BLOG MEET HO JAI CHAND PAR????
जवाब देंहटाएंPRANAM.
धरती (भू -लोक ) आकाश (पर - लोक ,परा - लोक ) ,पाताल की अवधारणा हम अपने पुरखों से सुनते आयें हैं .मनुष्य होमो--सेपियन )भू -लोक (मृत्यु लोक )वासी है .राक्षस पाताल लोक वासी तथा देवता एलियंस हैं आकाश (कथित स्वर्ग लोक ) वासी हैं .
जवाब देंहटाएंप्रोजेक्ट सेटी (सर्च फॉर एक्स्ट्रा -टेरिस्ट्रियल इंटेलिजेंस ) भौमेतर बुद्धिमान प्राणियों की खोज आज विज्ञान का एक बड़ा मसला है .उड़न तश्तरियों की तरह .
सृष्टि में कोई वन लेक मिलियन मिलियन मिलियन (टेन टू दी पावर २३) स्टार्स हैं .यानी एक आगे २३ बिंदियाँ आप जड़ दें .तब जो अंक आये उसके बराबर सितारें हैं सृष्टि में .
अब यदि हरेक हज़ार के पीछे एक sitaare के ग्रह mandal पर भी जीवन है तब ऐसे अनेक ग्रह is सृष्टि में मौजूद हैं जहां जीवन हैं बुद्धिमान प्राणी रहतें हैं .हो सकता है विकसित नगरियाँ भी हों .
पाताल में द्वारका नगरी खोज ली गई है .आप सभी जानते होंगें .
लोहा सितारों की एटमी भट्टी में बनने वाला वह तत्व है जो end product है और सितारों की chemical factory में बनता है .uttrottar halke tatvon (progressively ligher elements) के फ्यूज़न से .कुछ सितारों की अंतिम प्रावस्था में चांदी तथा कुछ और की अंतिम प्रावस्था में सोना jaise bhaari तत्व भी banten honge . .यानी रजत और स्वर्ण नगरियाँ भी हो सकतीं हैं .
अरविन्द जी ने बड़ी रोचक श्रृंखला आगे बढ़ाई है .बहुत सटीक विश्लेषण प्रधान .
zaahir है विज्ञान kathaaon के beez पौराणिक ग्रंथों में यहाँ वहां bikhre huen हैं .gaalib saahab kahaa karte the -
मंजिल एक और बुलंदियों पे बना लेते ,काश के अर्स (आसमान ) से परे होता मकान अपना .
कितनी ख़ुशी होती है जब हम अपने बच्चों को वेद-पुराण में वर्णित ऐसी अविश्वसनीय कहानियों को वैज्ञानिक प्रमाण देते हुए बताते हैं.. जो उनकी कल्पनाओं को भी एक उड़ान ही देती है . वैज्ञानिक धरातल पर..
जवाब देंहटाएं