भारत ने अंतर महाद्वीपीय मिसाइल अग्नि-5 के प्रक्षेपण के साथ ही सैन्य क्षमता के लिहाज से पूरी दुनिया में एक गौरवभरा मुकाम हासिल कर लिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक एंटी मिसाइल की भी मारक क्षमता लिए हुए है - यानी दुश्मन की मिसाइल को लक्ष्य पर पहुंचने के पहले ही उसे मार्ग में ही नष्ट करने की क्षमता...एक ऐसे युद्ध में पारंगत होने की क्षमता जिसका रोमांचपूर्ण विवरण हमें महाभारत और रामायण की युद्ध कथाओं में देखने को मिलता है. आज जब टेक्नोलॉजी का विकास हो गया है तो हम अपने पुराणकारों द्वारा कल्पित के कितने ही युद्ध तकनीकों को साकार कर रहे हैं. दैत्यों द्वारा संधान किये कितने ही आयुध, अस्त्र शस्त्र वायुमार्ग में ही देवताओं द्वारा विनष्ट कर दिए जाते थे...आज की गाईडेड मिसाइल्स और एंटी बैलिस्टिक मिसाइल्स हमारी उसी पौराणिक सोच का साक्षात नमूना है .
हमारे पुराण युद्ध के अनेक कला कौशलों, अनेक तरह के आयुध-अस्त्र शस्त्र के रोमांचपूर्ण विवरणों से भरे पड़े हैं. आज के सैन्य सुरक्षा वैज्ञानिक उनसे कई सूझें ले सकते हैं. कृष्ण का सुदर्शन चक्र गाइडेड मिसाइल की ही तरह तो काम करता है - दुश्मन का काम तमाम किया फिर वापस अपने स्वामी के पास. भगवान राम के बाण दुश्मन का बाल बांका करके वापस अपने तरकश में आ जाते थे. यह अस्त्र शस्त्रों के उपयोग-प्रबंध की कितनी उपयुक्त सूझ है। कम खर्च बाला नशी...मतलब कम ही अस्त्र में किला फतह। अम्बार लगाने की जरुरत नहीं। कम ही अस्त्र हों पर अचूक और कारगर हों!कितने दूर की कौड़ी ले आये थे पुराणकार...आज जब हमारे पास प्रौद्योगिकी है तो हम उन विचारों को मूर्त रूप दे रहे हैं. मगर अभी भी हम पुराणों में वर्णित अनेक युद्ध कौशल और अस्त्र शस्त्रों को अमली जामा नहीं पहना पाए हैं।यद्यपि आज हमारे पास ब्रह्मास्त्र या नारायणास्त्र के आधुनिक स्वरुप- नाभकीय बम मौजूद हैं, जिनके इस्तेमाल से कुछ उसी तरह का दृश्य साकार हो उठता है जैसा पुराणों में दर्शित है -भीषण चमक ,आवाज ,भूकंप और पल भर में सब कुछ स्वाहा .मगर एसे भीषण और दुर्धर्ष आयुधों के आम इस्तेमाल पर तब भी प्रतिबन्ध थे -उनका महज मन मौज के रूप में इस्तेमाल वर्जित था - बस बेहद अपरिहार्य दशा में वे चलाए जा सकते थे...एक बड़ी रोचक कथा इस बारे में महाभारत में मौजूद है -आइए, संक्षेप में फिर उसकी स्मृति ताजा कर लें...
महाभारत के सौप्तिक पर्व में अश्वत्थामा के एक क्रूर कर्म का उल्लेख है कि किस तरह उसने द्रौपदी के पुत्रों की नृशंस हत्या कर दी थी। दुर्योधन की अंतिम इच्छा को पूरा करने के चक्कर में उसने भ्रम वश पांचों पांडवों का सर काटने के बजाय मुंह ढंक कर सोये उनके बच्चों का सर काट लिया था। और यह दुष्कृत्य करके वह गंगा के किनारे एक निर्जन स्थल पर छुपा था। मर्माहत और क्रोध की ज्वाला से भरे पांडवों ने उसके वध का निश्चय किया। मगर यह इतना आसान नहीं था। उसके पास ब्रह्मास्त्र था. जो डर था वही हुआ। अस्त्र शस्त्र से लैस ललकारते हुए पांडवों को अपनी ओर आते देख मृत्युभय से उसने ब्रह्मास्त्र चला ही तो दिया। पांडवों के तारणहार श्री कृष्ण ने तत्काल ब्रह्मास्त्र की काट की युक्ति सुझाई, "ब्रह्मास्त्र के कोप से बचने के लिए सब आत्म समर्पण की मुद्रा में आ जाएं। रथों से उतर पड़ें और अर्जुन तुम ब्रह्मास्त्र की काट के लिए ब्रह्मास्त्र का ही संधान करो।" अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र चला दिया। प्रलयंकारी दृश्य उपस्थित हो गया। अग्नि की विशाल ज्वालाएं निकलने लगीं, आसमान से उल्कापात आरम्भ हो गया। प्रचंड वायु चल पड़ी...धरती डोलने लगी...हाहाकार मच गया...पर्वत गिरने लगे...नदियां बाहर उमड़ पडीं...यह भीषण दृश्य देख महर्षि व्यास और नारद तत्क्षण वहां उपस्थित हुए और जवाबदेही चाही कि, " प्राणी मात्र के अस्तित्व को नष्ट करने की क्षमता वाले इन महान अनिष्टकारी अस्त्रों का प्रयोग क्यों किया गया?" अर्जुन विनम्र हुए और अपने ब्रह्मास्त्र को वापस बुलाने का यत्न इस आशंका के साथ किया कि तब तो अश्वत्थामा का ब्रह्मास्त्र हमें ख़त्म कर देगा।" उन्होंने कहा कि उन्हें अपने बचाव में ब्रह्मास्त्र का संधान करना पड़ा क्योकि अश्वत्थामा ने इसे पहले ही चला दिया था...अन्ततोगत्वा अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र का प्रभाव उत्तरा के गर्भ पर पड़ा। मगर कृष्ण की महिमा से उत्तरा के गर्भ की रक्षा हुई और राजा परीक्षित जन्मे।यह दृष्टांत भयंकर अनिष्टकारी आयुधों के जवाब में प्रति संहारक आयुध के इस्तेमाल की अपरिहार्यता का संकेत करता है। राहत की बात है कि अब भारत भी ऐसे प्रति संहारक अस्त्रों की क्षमता से युक्त है।
माया युद्ध?
हमारे पुराणों में वर्णित अभी कई युद्ध कला कौशल हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत ही हैं, जैसे मय दानव और मेघनाथ के द्वारा संचालित माया युद्ध जिसमें भीषण की युद्ध की प्रतीति भर थी और डर कर दुश्मन आत्म समर्पण के लिए मजबूर हो जाता था। कैसी युद्ध रणनीति थी वह जहां कोई वास्तविक हानि नहीं थी...बस ऐसे भयावह दृश्य होते थे कि प्रतिपक्षी दहशत में आ जाता था - मेघनाथ ने जब माया का विस्तार किया तो राम की सेना ने एक नहीं अनेक मेघनाथ देखे। राम और लक्ष्मण को मृत देखा। यह आभासी युद्ध तब ही ख़त्म हुआ जब राम ने अपने मायारोधी बाणों से उनका प्रभाव ख़त्म कर दिया। ऐसे माया-मायावी युद्ध की तकनीक क्या कभी विकसित हो सकेगी। यह टेक्नॉलजी और सैन्य आयुध विशेषज्ञों के लिए एक चुनौती है।
वाह! एक से बढ़कर एक बढ़िया बढ़िया आलेख आपके ब्लॉग में पढ़ने को मिल रहे हैं आजकल। लगता है आप फुर्सत में हैं।:)
जवाब देंहटाएंजब दुनियाँ नष्ट हो जायेगी और पुनः सृष्टि का शुरूआत होगी तब नये पुराणकार आज के आधुनिक हथियारों की चर्चा भी कुछ ऐसे ही अंदाज मे करेंगे। जैसा कि हमारे पुराणो मे किया गया है। इससे यह संभावना भी व्यक्त की जा सकती है कि कभी धरती मे ऐसे हथियार मौजूद रहे ही होंगे।
ऐसी कथाएं तब तक ही मिथक लगती हैं जब तक आज का विज्ञान वहाँ तक नहीं पहुँच जाता.निश्चित ही तब के विज्ञान से आज का विज्ञान अभी भी बहुत पीछे है.
जवाब देंहटाएं...एक कथा यह भी है कि जब भगवन राम लंका-विजय कर अयोध्या लौटे थे तो जो भी उनसे मिल रहा था,उसे लग रहा था कि वही सबसे पहले भगवान राम से मिल रहा है.आज हम क्लोन बनाकर वही सब करने की कोशिश कर रहे हैं,पहले यही बात हम अतिशयोक्ति में मानते !
"निश्चित ही तब के विज्ञान से आज का विज्ञान अभी भी बहुत पीछे है."
जवाब देंहटाएंकाहें बुडबकई बतिया रहे हैं -तब आज की प्रौद्योगिकी कहाँ थी ?
हम मजाक नहीं कर रहे हैं,कई क्षेत्रों में तब की प्रौद्योगिकी आज से काफ़ी आगे रही.मुश्किल यही रही कि कोई अभिलेख मौजूद नहीं हैं,सुनी-सुनाई बातें हैं,पर धीरे-धीरे हम उन तक पहुँच रहे हैं !
जवाब देंहटाएंsamayik vishaya ko pouranik akhayano
जवाब देंहटाएंke sandarbh me ud-bodhan katha ke madhayam se, ruchikar laga....
pranam.
कल ही विचार कर रहा था की विज्ञानं से विकास पिछले २००-२५० वर्ष में ही हुआ है . इससे पहले जीवन कैसा होता होगा ! आबादी कितनी कम रही होगी ! वास्तविक प्रमाण भी २०००-२५०० वर्षों तक का ही मिलता है . इससे पहले के जीवन की बस पौराणिक गाथाएं ही सुनने को मिलती हैं जिनका कोई ठोस प्रमाण नहीं .
जवाब देंहटाएंकहीं यह हमारे पूर्वजों की कल्पना शक्ति ही तो नहीं थी . वर्ना आज जो परमाणु शक्ति मौजूद है , वह किसी एक व्यक्ति के बस में नहीं , जबकि जैसा की आपने भी बताया उस समय शक्ति एक व्यक्ति विशेष के पास होती थी चाहे वो अर्जुन हो श्री कृष्ण जी या श्री राम .
अग्नि ५ पर चीन को ज़रूर दस्त लग गए हैं और अब वह खिसियाई बिल्ली की तरह खम्बा नोंच रहा है .
आज जब हमारे पास प्रौद्योगिकी है तो हम उन विचारों को मूर्त रूप दे रहे हैं.
जवाब देंहटाएंयक़ीनन हर समय की कुछ तकनीक रही ही है..... समय के साथ सब कुछ विश्वसनीय भी लगने लगता है.....
दुनिया के बड़े से बड़े आविष्कार किसी न किसी पागल, असंभव, अविश्वसनीय सोंच का ही परिणाम रहे हैं.. हम आज हंस लें, कह लें कि तब की तकनीक आज के मुकाबले अ-तकनीक थी.. लेकिन उनकी कल्पना हमारी उपलब्धि तो रही ही है..
जवाब देंहटाएंराईट बंधुओं के बाप पादरी थे.. और बच्चों की जिज्ञासा को परमात्मा से लड़ाई मान रहे थे.. सच हुआ न एक दिन!!
आपकी यह श्रृंखला कल की कल्पना को आज के यथार्थ में देखने का अवसर प्रदान कर रही है!!
purane vaqt ki takneeki jaankari is vaqt se kahi jyaada lagti hai aaj ke yug me jo hathiyaar aate hain unka jikre puraano me pahle se hi maujood hai aapka kahna bilkul baajif hai puraano me jo udan khataule hote the unka aadhunik roop hi hai halicoptor.aapka aalekh bahut achcha laga.
जवाब देंहटाएंआधुनिक अस्त्र-शस्त्र को पौराणिक संदर्भ से जोड़कर आपने एक गंभीर आलेख प्रस्तुत किया है। विज्ञान के सामने कुछ भी असंभव नहीं है, ऐसा मेरा मानना है।
जवाब देंहटाएंकोई भी कल्पनाएं भी अगर होती है तो उन्हें साकार करने के प्रयत्न भी वश्य होते है। यह अबतक मात्र कल्पना रहकर नहीं बच सकता। कोई तो ऐसी प्रौद्योगिकी विकसित की गई होगी जिसके भौतिक अवशेष भी उपलब्ध न हो। कुछ तो ठोस है!!
जवाब देंहटाएंपरिकल्पनायें रास्ता दिखाती हैं इनसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी समृद्ध होते हैं ! ...पर अपने संतोष जी यहां पर उल्टी धार बहा रहे हैं जबकि मेरे ब्लॉग पे इसके ठीक विपरीत तर्क दे रहे थे :)
जवाब देंहटाएंभविष्य भूत की ओर अग्रसर है..
जवाब देंहटाएंI'm sure we would not have had men on the Moon if it had not been for Wells and Verne and the people who write about this and made people think about it. I'm rather proud of the fact that I know several astronauts who became astronauts through reading my books.
जवाब देंहटाएंArthur C. Clarke, Address to US Congress, 1975
जब शून्य का आविष्कार हुआ था वहां पश्चिम में जंगली कबीले होते थे…. वर्त्तमान में पश्चिम में विज्ञान फतांसी से प्रेरणा लेकर उसे मूर्त रूप में ढाला जाता है, जूल्स कि कल्पना १९६१ में साकार होती है… लेकिन हम वर्त्तमान में चमत्कारी बाबा पैदा करते है….. अब हम गैलीलियो, डार्विन, न्यूटन, भास्कर, आर्यभट पैदा नहीं करते …. चमत्कार को नमस्कार करते है… और कहते है कि हमारे पूर्वजो ने ने यह किया था, वह किया था……. पश्चिमी संस्कृति को गालीया देते, उसकी बुराइया निकालते नहीं थकते… आखिर हमारी संस्कृति आध्यात्मिक है, माया मोह से परे है….
कभी न कभी उन अस्त्रों का भी फिर से आविर्भाव हो जाएगा .... अभी इंसान पहुँच नहीं पाया है उस वैज्ञानिक दृष्टिकोण तक ... इसी लिए ये सब मिथक लगते हैं ॥ अच्छा लेख
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जवाब देंहटाएंआपका इस खूबसूरत सामयिक लेख के लिए मुबारकबाद भाई जी ...
उस जमाने का ब्रह्मास्त्र, शायद आज का न्यूक्लियर बम ही है, एक बार छोड़े जाने के बाद तबाही तय है, ऐसी तबाही जिसके प्रभाव से मानव तो क्या, धरती भी बरसों तक अन्न उपजाने की सोंच भी नहीं पाती !
निस्संदेह हमारा देश आई सी बी एम् की प्रक्षेपण क्षमता पाकर, बेहद शक्तिशालीदेशों की कतार में खड़ा हैं, फुसफुसाहटें बताती हैं कि आने वाला समय सूर्या मिसाइल का है जिसकी मारक क्षमता १००००-१६००० किलो मीटर तक की होगी, कहते हैं कि देश का रक्षा शोध विकास संगठन किसी भी दिन, अग्नि ५ की तरह इसकी भी घोषणा करेगा !
हमारे सैन्य मुकुट में लगे हीरों में से कुछ निम्न हैं ...गौर करियेगा
-न्यूक्लियर पॉवर युक्त सबमैरीन जो कि एटोमिक मिसाइल छोड़ सकने में शक्ति संपन्न हैं, इसी साल बड़े में शामिल हो चुकी हैं !
-एयर क्राफ्ट कैरियर विक्रमादित्य इस साल के अंत में सेना में शामिल हो जाएगा ! अपुष्ट समाचारों के अनुसार देश में स्वदेशी एयर क्राफ्ट कैरियर बनाने का कार्य शुरू हो चुका है !
-न्यूक्लियर मिसाइल एवं बम ले जाने की क्षमता वाले सुखोई, मिराज, मिग २९ जैसे आधुनिक प्लेन युद्ध के मैदान में विनाश कालीन द्रश्य उपस्थित करने में सक्षम हैं ..
मगर आइये हम सब दुआ करें कि ये ब्रह्मास्त्र कभी प्रयोग में न लाये जाएँ !
आभार बढ़िया लेख के लिए !
आप सभी के विचार प्रिय लगे -मगर यहाँ सोच के दो खेमे साफ़ दिखते हैं -एक वह जो यह मानता है कि प्राचीन काल में हम सब ज्ञान विज्ञान प्रौद्योगिकी से समृद्ध थे और आज की प्रौद्योगिकी उस स्तर को छू तक नहीं पायी है ..और दूसरा चिंतन वर्ग जिसके साथ मैं हूँ वह यह मानता है कि नयी दूर की कौड़ी लाने वाली आईडिया कुछ कम महत्त्व की नहीं है अब चूंकि प्रौद्योगिकी का उत्तरोत्तर विकास हुआ है तो पत्थर युग में कहाँ से विमान आदि रहे होंगे ,अस्स्त्र शस्त्र रहे होंगे ...! हमारे आदि मनीषियों ने जो नये नए आईडिया दिए वे कम महत्वपूर्ण नहीं हैं ...इसका श्रेय तो उनको डंके की चोट पर है ....हाँ मगर आज के प्रौद्योगिकीविद को यह श्रेय है कि उन्होंने उन असंभव सी लगने वाली जुगतों को साकार कर दिखाया और कितनी साकार होने की राह में हैं !
जवाब देंहटाएंमैं यह श्रृखला इस बात पर ही आपका ध्यान आकर्षित करने -अप्रीसियेट करने के लिए लिख रहा हूँ ....
बहुत आभार आप सभी का कि आप सभी इस श्रृखला में मेरे साथ है और निरंतर उत्साह वर्द्धन कर रहे हैं !
बाकी अली भाई का सवाल अनुत्तरित है ,संतोष जी अब बोलिए -ये एक ही दिमाग में दो मानदंड कैसे ?
@अब चूंकि प्रौद्योगिकी का उत्तरोत्तर विकास हुआ है तो पत्थर युग में कहाँ से विमान आदि रहे होंगे ,अस्स्त्र शस्त्र रहे होंगे ...!
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी,
आपकी बात तो सही है किन्तु जबतक प्रौद्योगिकी की हमारी शोध धात्विक अभियांत्रिकी (मेटल बेस इन्जीनियरिंग) की सीमा के सर्कल से बाहर नहीं जाती, हम किसी विशिष्ट प्रौद्योगिकी की आज कल्पना तक नहीं कर सकते। और न ही प्रारम्भ करने के सूत्र या अवशेष हमारे समक्ष है।
वाह इतिहास से वर्तमान तक...कहीं न कहीं कोई सत्य तो इन मिथकों में भी होता ही होगा.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आलेख.
ये मिथ ये पुराण बस यूं ही नहीं है .जहां तहां प्रमाण फैले हैं कहीं बाण गंगा है (जम्मू कश्मीर ) कहीं रामसेतु ,कुरुक्षेत्र की मिटटी की तो रेडियो कार्बन डेटिंग भी की जा चुकी है तब भी कुछ लोग महाभारत को एक कबीलाई युद्ध बतलातें हैं तो कुछ मिथ .
जवाब देंहटाएंनवीनतम तकनीक पौराणिक कल्पनाओं को साकार कर रही है , या पौराणिक काल में उन्नत प्रौद्योगिकी का नए सिरे से परिचय हो रहा है , बहस की बहुत गुंजाईश है ! फिलहाल इस बात से खुश हो लेते हैं कि देश में तमाम विपरीत हालातों के बावजूद अनुसंधानकर्ता ख़ामोशी से अपने काम में लगे हैं और नए कीर्तिमान बना रहे हैं !
जवाब देंहटाएंसद्दाम हुसैन के वेपंस ऑफ़ मास डेस्ट्रक्शन भी मायावी ही थे शायद तभी अस्त्र पर्यवेक्षकों को कभी दिखाई नहीं दिये।
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट को पढ़ कर कईयों को पता लग गया होगा कि कौन बेहतर था
जवाब देंहटाएंस्टील्थ विमान और राडारों को चकमा देके निकल जाने वाले तैयारे (फाइटर प्लेन )मायावी युद्ध के ही औज़ार हैं .विष कन्याएं पहला जैविक अश्त्र रहा होगा .आज जैविक मब की बात आम है .न्युत्रोंन बम रणनीतिक अश्त्र बना हुआ है .बूम्रांग का विचार तब भी था अब भी है .अब मारक है तब कल्पित था .मायावी रावण कितने रूप धरे था आज के नेताओं सा .
जवाब देंहटाएंdefinitely it will..
जवाब देंहटाएंartificial intelligence is progressing day by day !!
both possibilities exist. either our ancestors were very very advanced technically - or people with a great caliber for scientific fiction existed among our writers. in either case it proves a great richness about our country's history
जवाब देंहटाएंविज्ञान जब परम स्थिति को उपलब्ध होता है तो अनंत परमाणु ही रह जाता है .. सुना है अदृश्य होने के लिए भी रिसर्च जारी है . तब शायद माया-युद्ध भी संभव हो..
जवाब देंहटाएंJ
जवाब देंहटाएंJ
जवाब देंहटाएंPlease observe the blending of science and spirituality in the chariothe building by Lord vishwakarma four ved as we're four wheels the sun and the moon were drivers religion was the force etc etc 12000 shilp shashtra were written by vishwakarma known to be the ultimate reality behind all what happens we do recognize the fifth veds pranavigation veds that narrates the science of interconnection of matter and energy note that the energy is not only physical but also includes spiritual ones also our classical sanskrit heritage is full of such rvidences
जवाब देंहटाएंPranav ved for pranavigation
हटाएंInterconnection for interconnection
Evidences for rvidences
Pl correct
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