हेट स्टोरी एक 'पर्दाफाश फिल्म' है- जिस्म फरोशी ही नहीं यह दिल्ली 'सल्तनत' की परदे के पीछे की कई कारगुजारियों का भी पर्दाफ़ाश करती है..केवल एक इरोटिका फिल्म के रूप में इसे देखना फिल्म का अवमूल्यन है . मैंने यह फिल्म कल ही यानी तब देखी जब एक सेक्स वीडिओ की धूम फेसबुक पर मची हुयी है जिसमें एक ऊंचे ओहदे पर नियुक्ति की सिफारिश लेने के लिए शरीर के सौदे का बारह मिनट का पूरा एक्सपोजर है . इस पृष्ठभूमि में अचानक ही मुझे यह फिल्म जंच गयी -यह वह सब कुछ एक्सपोज करती है - सत्ता ,पावर, सेक्स,औद्योगिक घरानों और भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की मिली भगत,दलाली, भारी भ्रष्टाचार ,सरकारी इमदाद की लूट ,विदेशी मदद की भारी भरकम राशि की बंदरबांट ...सब कुछ! अब एक ही फिल्म में रोचक स्टोरी ,मनोरंजन ,चुटीले संवादों के साथ यह सब भी परोस उठे तो दर्शकों के जायके में इजाफा तो होगा ही ...महज कामोद्दीपन के लिए भी इस फिल्म का एक दर्शक वर्ग है मगर फिर उस दर्शक वर्ग के लिए इस फ़िल्म से कुछ ज्यादा चाहिए होता है और उसके अनेक जुगाड़ भी हैं ...ऐसा दर्शक वर्ग इस फिल्म से संतुष्ट नहीं होगा ..इस फिल्म में बोल्ड सीन कहानी की तारतम्यता के मुताबिक़ हैं ,मांग हैं -हो सकता है कहीं कहीं ज्यादा बोल्ड हो गए हों मगर फिल्म का हेतु वह नहीं है .
कहानी शुरू होती है एक जुनूनी युवा महिला पत्रकार काव्या कृष्णा के द्वारा एक औद्योगिक डील में जज को घूस देने के मामले के पर्दाफ़ाश से ..औद्योगिक घराने के उस कम्पनी का युवा सी ई ओ सिद्धार्थ पत्रकार की इस 'हरकत' को बर्दाश्त नहीं कर पाता और उसे सबक सिखाने के लिए एक न ठुकराए जा पाने वाला आफर उसके सामने रखता है ..अपनी सीमेंट कंपनी में उसे तीन गुने अधिक के वेतन पर नौकरी ....काव्या अपने दोस्त पत्रकार की अनिच्छा के बावजूद इतने आकर्षक प्रस्ताव को ठुकरा नहीं पाती ...सिद्धार्थ उसे एक सपनीली दुनियाँ में ले चल पड़ता है -महंगी घड़ी,हीरे की अंगूठी आलीशान होटल में मौज मस्ती,एक जान छिडकने वाले मैको इमेज बिजनेस टायकून का साथ -फिल्म यहाँ ज्यादातर लड़कियों द्वारा ऐसी सपनीली दुनियाँ की चाहत को इंगित करती है -ऐसे माहौल में काव्या अपने पत्रकार दोस्त जो वास्तव में उसे प्रेम करता है को भूलकर सिद्धार्थ के प्रेम पाश में बधती है और हमबिस्तर हो जाती है ..और तुरत बाद ही सिद्धार्थ उसे नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाता है -उसका फेवरिट जुमला है -"आई फक द पीपल हू फक विद मी .." असहाय स्तब्ध काव्या फिर अपनी पुरानी फुटपाथ की जिन्दगी पर लौटती है मगर अब तो उसके पास नौकरी भी नहीं है ...मगर एक संकल्प उसके मन में कौंधता है और वह प्रतिशोध की राह पर चल पड़ती है ....
फिल्म अब सिद्धार्थ और काव्या के एक दूसरे को बर्बाद कर देने के मंसूबों ,कारगुजारियों की लुकाछिपी फोकस करती है जिसमें दिल्ली दरबार के परदे के पीछे का सारा अनर्गल परत दर परत दर्शकों के सामने खुलता जाता है -औद्योगिक डील के एवज में अरबों रुपये डकारते हमारे सफेदपोश रहनुमा,नारी तन को रौंदते यौन बुभुक्षी नेता -मंत्री,हुक्मरान लोग और बदले में बड़े पदों पर होती नियुक्ति की सिफारिशें ...ताज्जुब होता है फ़िल्में कहाँ कहाँ से ला देती हैं अन्दर की कहानी ...काव्या अपने पेट में सिद्धार्थ के ही पलते भ्रूण की बिना पर उसके बिजनेस में आधा हक़ मांगती है तो उसे अपने भ्रूण ही नहीं गर्भाशय तक से हाथ धोना पड़ता है -उसका ममत्व छीन लिया जाता है ..वह और हिंस्र हो उठती है -शहर की सबसे बड़ी रंडी बनने की ट्रेनिंग लेती है -टाप काल गर्ल बन जाती है-एलान करती है कि 'अगर औरत खुद अपनी इज्ज़त बेचने पर उतारू हो जाय तो किसी भी आदमी को खरीद सकती है ' ...आखिर सिद्धार्थ को गबन और धोखाधड़ी के आरोप में जेल भिजवा कर ही वह दम लेती है -भले ही दिल्ली की सबसे बड़ी प्रास्टीच्यूट का तमगा उसे मिल उठता है ...
फिल्म का आख़िरी सीन कहानी की सहूलियत के हिसाब से है -नाटकीय है ..काव्या का मर्डर ..अंत ....एक जुझारू युवा पत्रकार का अंत ...उसका एक गलत कदम ,एक गलत निर्णय उसके सारे सपनों पर भारी पड़ा ..फ़िल्म आज के युवा वर्ग को एक गहरा सन्देश दे जाती है ......बाकी विवरण यहाँ देख सकते हैं .... एक ट्रेलर भी जो कहानी के सीक्वेंस की एक झलक देगा ..बाकी आप देखें या न देखें निर्णय आपका -खासी एडल्ट फिल्म है -अब तक की बालीवुड की सबसे एडल्ट और बोल्ड .....
भयंकर फ़िल्मी दर्शक हैं आप भी :)
जवाब देंहटाएंमुझे कुछ दिन पहले ही पता चला इस फिल्म के बारे में...लेकिन मुझे कहीं भी किसी से ये पता नहीं चल पा रहा था की फिल्म कैसी है, मुझे लगा पता नहीं फिल्म ठीक हो भी या नहीं, फिर लगा की विक्रम भट्ट की प्रोडक्सन की फिल्म है तो बोरिंग तो नहीं ही होगी..
जवाब देंहटाएंदेखने का अब मन बन रहा है मेरा भी!!
गुरूजी ,आपकी समीक्षा काफ़ी-कुछ बयाँ कर देती है इस फिल्म के बारे में.बड़ी उत्तेजक फिल्म लगती है पर अपने पीछे सन्देश भी छोड़ती है कि आगे बढ़ने की अंधी ललक हमें हर तरह से बर्बाद कर देती है.स्टोरी नई नहीं है,पर इस बहाने केवल स्त्री को 'टारगेट' करने की कोशिश की गई है,जिसका भी उद्देश्य व्यावसायिक है.स्त्री दिखती है या बिकती है,दोनों रूपों में वह हिट है,पर आखिर मरती तो वही है.
जवाब देंहटाएं...हाँ,ट्रेलर ज़रूर 'बोल्ड' बनाए गए हैं. मैं इस बात से सहमत हूँ कि यह फिल्म मनोरंजन नहीं करती. सुनते हैं कि 'विक्की डोनर' इस लिहाज़ से उम्दा फिल्म है !
शुभकामनाएं ||
जवाब देंहटाएंआभार भाई |
आप भी , पंडित जी -- कोई अवसर नहीं छोड़ते :)
जवाब देंहटाएंबेशक अत्याधिक बोल्ड फिल्म है .
देखने का मन हमारा भी है लेकिन अभी तक देख नहीं पाए .
अन्दर की बात दिल्ली में दिल्ली वालों को तो पता होती है ,हालाँकि सब को नहीं .
लेकिन अंतत : इस तरह की फिल्म देखने के पीछे बोल्ड सीन्स का ही आकर्षण होता है .
बिना सेंसर की हुयी फ़िल्म का ट्रेलर देखा है।
जवाब देंहटाएंकुछ ज्यादा ही बोल्ड लग रही है ..पर अगर विषय के साथ न्याय किया गया है तो देखना बनता है एक बार.
जवाब देंहटाएंसमीक्षा में कहानी लिखी होने से पढ़ने से कतराता हूँ.. रोज ऑफिस और घर आते-जाते पोस्टर पर नज़र पड़ती है.. सोचा था देखूंगा!!
जवाब देंहटाएंआपके पहले पैराग्राफ में ही सारी समीक्षा है.. अच्छा लग रहा है पर्दाफ़ाश!!
देखते हैं, पंडित जी!!
जो हम सच में नहीं कर सकते, उसे फ़िल्म में ही होते देखकर खुश हो लें, देखते हैं हम भी।
जवाब देंहटाएंसमीक्षा आपने सही की है। पर ...
जवाब देंहटाएंयह हजम नहीं होता कि बदला लेने के लिए कोई स्त्री अपनी देह का उपयोग करना शुरू कर देगी।
दूसरे -- फ़िल्म में डर्टी-डर्टी तो बहुत कुछ है पर यह द डर्टी पिक्चर नहीं बन सकी।
अभी तक तो नहीं देखी फिल्म..... अब सोचते है....
जवाब देंहटाएंसंतुलित व प्रभावी समीक्षा..
जवाब देंहटाएंकहानी रोचक लग रही है , आपकी समीक्षा भी !
जवाब देंहटाएंट्रेलर देख कर लगता है की फिल्म अच्छी होगी.
जवाब देंहटाएंबड़ी लाइन की हाहाकारी दिखाती फिल्म लगती है।
जवाब देंहटाएंमैंने आपकी ये पोस्ट नहीं पढ़ी है ... क्यूंकि मैंने अभी फिल्म नहीं देखी.. आपने कहानी लिखी होगी तो गड़बड़ हो जाएगी ... इसलिए मैं पहले फिल्म देखूंगी .. तब पोस्ट पढूंगी ....
जवाब देंहटाएंacha lagta hai aap se sameeksha sun ne ke baad film dekhna....aap ke liye ek alternative profession tayyar hai....film critics ;-)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन समीक्षा आभार .देखनी पड़ेगी फिल्म .
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