ऐसे ही मित्र के साथ फिल्मों की चर्चा के दौरान आने वाली फिल्म फात्सो के प्रसंग में चड्ढी की चर्चा शुरू हो गयी .दरअसल इस फिल्म का नायक चड्ढी नहीं पहनता .फिर तो चड्ढी को लेकर मित्र ने चटखारे लेकर और भी बातें करनी शुरू की ...याद है एक ब्लागर ने किस तरह ब्लागजगत में यह कह कर धमाका कर दिया था कि वे इस इह लोक में महज पति की चड्ढी धोने के लिए ही नहीं अवतरित हुईं है ...हाँ हाँ भला उन्हें कौन भुला सकता है, आज वे बिना चड्ढी धोये जीवन को सार्थकता के नए आयाम दे रही हैं ...फिर तो एक वृहद् चड्ढी चर्चा ही शुरू हो गयी .आस पास के जो लोग इधर ही कान लगाये थे थोडा और पास खिसक आये ...
...गुलजार के चड्ढी लगाव पर चर्चा हुयी ..क्या गाना था वो भी ..चड्ढी पहन के फूल खिला है ..बच्चों के साथ बड़े भी लहालोट हो जाते थे यह गीत सुन कर ..तब भी यही लगता था कि चड्ढी निश्चय ही फूल जैसे बच्चों की ही ड्रेस हो सकती है . इन्नोसेंट प्यारे बच्चे चड्ढी में और भी कितने प्यारे लगने लगते हैं ..मगर नाश हो इन नासपीटों होजरी उद्योग वालों का जिन्होंने विज्ञापन के चलते चड्ढी को युवाओं का भी ड्रेस -अन्तःवस्त्र बना दिया और उसके साथ कुछ रोमांटिसिज्म भी जोड़ दी -नए प्रतीक भी गढ़ लिए गए ...मुओ ने इस बचपने को यौनाकर्षण से भी जोड़ दिया ...अगर तुम वह वाली चड्ढी पहनोगे तो वह तुम्हारे पास खिंची चली आयेगी -हुंह ऐसा भी होता है भला? मगर चड्ढी उद्योग परवान चढ़ता गया ..नारियों ने अपने लिए गुलाबी रंग चुन कर इस रंग को भी एक फुरफुरी झुर्झुरीनुमा संवेदना से जोड़ दिया -पिछले दिनों एक चड्ढी अभियान दरअसल इसी संवेदना की एक निगेटिव पब्लिसिटी ही तो थी:) किसी राम सेना को इस चड्ढी अभियान में पूरी तरह गुलाबी बना दिया गया था ....
हमारे यहाँ गाँव गिराव में तो बच्चे ही चड्ढी पहनते आये हैं ..बड़े हुए तो लंगोट ढाल ली ..कहते हैं लंगोट और ब्रह्मचर्य में एक घनिष्ठ रिश्ता है ...अगर बात इधर मुडी तो तगड़ा विषयांतर हो जायेगा ...इसलिए अभी यह चड्ढी चर्चा पूरी हो जाने दीजिये, लंगोट महात्म्य फिर कभी ..मैंने तो कभी पहनी नहीं किसी लंगोटधारी से पूंछ पछोर कर ही कुछ बता पाऊंगा ...वैसे भी लंगोट मुझे हमेशा सांप की प्रतीति कराती है ...जाहिर है लंगोट से डर लगता है ....तो हाँ ..चड्ढी .....गाँव में अभी भी बहुत से लोग चड्ढी नहीं पहनते ....यह नागर सभ्यता की देन है. हाँ नेकर गावों में जरुर पहना जाता है जिसे जन्घियाँ भी कहते हैं ...मगर वह एक बहिर्वस्त्र है अंतरवस्त्र नहीं -हाँ कुछ उजबक किस्म के लोग जन्घियाँ के ऊपर पायजामा ,पैंट पहन कर अपनी समृद्धता का बेजा प्रदर्शन भी करते हैं -ऐसे लोग मुझे अच्छे नहीं लगते (याद दिला दूं चल रही चड्ढी चर्चा में ज्यादा हिस्सेदारी मेरे मित्र की है इसलिए जिस भी वक्तव्य के बारे में तनिक भी शंका हो उसे मेरे मित्र का माना जाय) गाँव की गोरियाँ भी अमूमन अन्तःवस्त्र नहीं पहनती ...एक ग्राम्य पंचायत में अभी खुलासा हुआ कि एक ग्राम्या को उसका शहरी हसबैंड जबरदस्ती चड्ढी पहनने को कहता है ...पञ्च लोग गरजे ..अबे कलुआ ऐसा काहें करता है बे ....उसने बहुत झेंप झांप के बताया कि यह फार्मूला अपनाने से उसे जोर का कुछ कुछ होता है ...मगर उस ग्राम्या को यही ऐतराज था ..मामला तलाक पर जा पहुंचा था -मुझे लगता है ग्राम्या होशियार थी ..उसे भी रोज रोज चड्ढी साफ़ करने की मुसीबत से छुटकारा चाहिए था .....
जाहिर है यह चड्ढी संस्कृति बहुत गहरे घुस गयी है हमारे जीवन में ...एक मित्र दंपत्ति को जब शादी के कई साल बाद भी संतान की प्राप्ति नहीं हुयी तो .ओझाई सोखाई शुरू हुयी ...कहाँ कहाँ नहीं गए बिचारे, कौन कौन सा नेम व्रत नहीं किया ..किसकी मिन्नतें नहीं हुईं, देवी औलिया दरगाह सब जगहं शीश नवाया ..मगर संतान नहीं हुयी ..एक काबिल डाक्टर ने जांच परख की तो मित्र से कहा कि अब से चड्ढी पहनना छोडो ..बच्चा हो जाएगा ...आश्चर्यों का आश्चर्य दम्पत्ति को अगले वर्ष ही बच्चा नसीब हो गया ....मगर कैसे? डाक्टर ने बताया कि लगातार चड्ढी पहनने से स्पर्म काउंट घट गया था - यह भी कि पुरुष जननांग के पास एक ख़ास स्थिर तापक्रम शुक्राणुओं को सक्रिय समर्थ रहने के लिए आवश्यक है ....मेरे मित्र ने तबसे चड्ढी ऐसी उतार फेंकी कि फिर आज तक नहीं पहनी .कई होनहार बच्चों के गर्वित पिता हैं ..और चड्ढी न पहनने की कई सहूलियतों का भी वर्णन करते नहीं अघाते ...
अभी तो विराम मगर फिर कभी शेष चड्ढी कथा .....
सुना है शेफ अली खां ने जब से चड्ढी का विज्ञापन करना शुरू किया उसके महिला मित्रों ने उससे किनारा कर लिया:)
जवाब देंहटाएंमैंने तो बचपन से लेकर आजतक चड्ढी-लंगोट सब धारण किया है.हाँ,लंगोट की एक विशेष अवस्था होती है और वह कौमार्य या ब्रह्मचर्य को बचाने में अहम भूमिका अदा करता है.विवाह के बाद लंगोट वैसे ही उतर जाता है !
जवाब देंहटाएंहम अपने बचपन में गाँव में आठ-नौ साल की अवस्था तक बिना चड्ढी के ही घर-बाहर घुमते थे और इस बात का ज़्यादा नोटिस नहीं लिया जाता था.शहरी-जीवन में यह सब अटपटा लगता है.
..आपने कभी लंगोट नहीं धारण किया इसीलिए आपका लंगोट कच्चा है क्या ?
@संतोष जी ,
जवाब देंहटाएंमैं लंगोट अल्पज्ञ हूँ -इसलिए लंगोट संस्कृति के आप सरीखे भीष्म पितामहों से ही सीखना होगा कि ये कच्ची पक्की लंगोट क्या होती है ?:)
यह चड्डी पुराण भी खूब रही!
जवाब देंहटाएंव्यक्तिगत से सार्वजनिक होती इसकी यात्रा..
जवाब देंहटाएंचड्ढी बिन खेला किया, आठ साल तक बाल ।
जवाब देंहटाएंशीतल मंद समीर से, अंग-अंग खुशहाल ।
अंग-अंग खुशहाल, जांघिया फिर जो पा ली।
हुवे अधिक जब तंग, लंगोटी ढीली ढाली ।
चड्ढी का खटराग, बैठ ना पावे खुड्डी ।
घट जावें इ'स्पर्म, बिगाड़े सेहत चड्ढी ।।
तबसे चड्ढी ऐसी उतार फेंकी कि फिर आज तक नहीं पहनी .कई होनहार बच्चों के गर्वित पिता हैं ..और चड्ढी न पहनने की कई सहूलियतों का भी वर्णन करते नहीं अघाते
जवाब देंहटाएंहा हा हा जोरदार चड्डी कथा .... आभार
chaddhi puraan ke poora hone ka intezaar rahegaa!!!
जवाब देंहटाएंचड्ढा साहब ये पोस्ट पढ़ कर नाराज़ न हो जाए...
जवाब देंहटाएं
जय हिंद...
balak ke liye manoranjak post....cha
जवाब देंहटाएंkuch navin jankari....
on the record 'talak tak ki naubat aane bali bat pe bahut der tak hasin
aayaa'
off the record 'apan log to harmon me
vadlaw aane se pahle tak, pokhar me
nahane se pahle aur bad tak digamber
hi bane rahte the....'
bakiya, chadhi me balak bakai phool
se lagte rahte hain...
pranam.
@खुशदीप जी ,
जवाब देंहटाएंमक्खन ने कभी चड्ढा साहब की चड्ढी ओह सारी उनसे मुलाक़ात नहीं कराई :)
चड्ढा साहब का क्या करोगे ....??
जवाब देंहटाएंमस्त राप्चिक पोस्ट है :)
जवाब देंहटाएंगजब !!!
चड्डी पहनने न पहनने को लेकर गाँव गिरांव में खूब हंसी ठट्ठा चलता है। मेरी एक बार जब अखबारों में आया था कि बांस के रेशों से बना इकोफ्रेण्डली अंडरवियर इंग्लैंड में बनाया गया है और जिसकी भारतीय रूपये में कीमत ढाई हजार पर पीस है तो मुझे चुहल सूझी और पोस्ट भी लिख दिया - बंसवारी वाला अंडरवियर। जिसका एक कैरेक्टर धोती के अंदर चड्डी नहीं पहनता और उसके इस पर्यावरण प्रेम पर ढाई हजार तो क्या ढाई रूपये तक का खर्च नहीं आता :)
आपकी इस तरह की पोस्ट को वन्स मोर मांगता :) :)
गुरुदेव जय हो !!!
जवाब देंहटाएंचड्ढी पुराण सुनाने का प्रारंभ कर आपने मानवजाति पे उद्धार करने का काम "स्टार्ट" किया है :) :) :)
आजकल जींस नीचे खिसकती जा रही है और चड्ढी ऊपर, चड्ढी का लेबल दिखाने का ट्रेंड है मार्केट में !!! और जब लेबल दिखता है तो उसके ब्रांड का पता चलता है और ब्रांड से स्टेटस का आइडिया लग जाता है, चड्ढी स्टेटस सिम्बल हो गयी है :) :) :)
चड्ढी के साथ लंगोट आदि पर आप प्रकाश डालेंगे "एक चड्ढी कथा पार्ट-२" में, ऐसा हमारा विश्वास है और हमारी डिमांड भी :) :) :)
सनीचर का बस चले तो चड्डी को राष्ट्रीय पोशाक घोषित करा दे।
जवाब देंहटाएंगाँव वाले कभी चड्ढी नहीं पहनते . शायद इसीलिए हमारी जनसँख्या इतनी बढ़ गई है :)
जवाब देंहटाएंवैसे मास्टर की घरवाली मास्टरनी कहलाती है .
अब हम का बोले , हमरी हिंदी ठीक न है जी .:):):):)
जवाब देंहटाएंपंडित जी!! घोर असहमति.. (वैसे आपने पहले ही डिस्क्लेमर ठोंक दिया है कि असहमति वाली बात आपके दोस्त की और सहमति वाली सब बात आपकी).. आपने चड्डी (ये 'ढ' हमने कभी नहीं सुना) को आतंरिक वस्त्र कैसे डिक्लेयर कर दिया... विश्व के सभी सुपरहीरोज इसे पजामें के ऊपर पहनते हैं.. फैंटम, मैन्ड्रेक, सुपरमैन, बैटमैन आदि आदि!!
जवाब देंहटाएंअतः इस वस्त्र की महिमा अपरम्पार है!!
चड्ढी पर इतना कुछ और इतने रोचक ढंग से लिखा जा सकता है ..
जवाब देंहटाएंलाजवाब!
शेष चड्ढी कथा ...या चड्ढी शेष कथा?
जवाब देंहटाएंआचार्य का हस्तक्षेप वांछनीय है.अगर एलर्जी आउट ऑफ़ कंट्रोल होने का रिस्क ना हो, तभी... :)
रोचक कथा।
जवाब देंहटाएंचड्ढी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये पहने।
अंतःवस्त्रों पर कभी पढ़ा एक गंभीर और अंतरंग लेख, (शायद डॉम मॉरेस का) याद आने लगा. सुझाव यह भी कि प्रोस्टेट पीडि़तों का जिक्र शामिल कर लें.
जवाब देंहटाएं@संजय: आचार्य जी अखंड पतित्व व्रत ले चुके हैं ...चड्ढी निकला के :)
जवाब देंहटाएंअब दुनियादारी में नहीं फंसेगे :)
चड्ढी की अंतर्कथा अच्छी है ..
जवाब देंहटाएंशेषांक में किसी ब्रांड का जिक्र भी होगा क्या ...
@संतोष जी, क्या कर दिया आपने - सरे बजारे. डॉ साहेब से ही पूछ बैठे- कि आपका लंगोट कच्चा है क्या, वैसे हम लंगोट से पक्के हैं, टचवूड :)
जवाब देंहटाएंकिसी से इंटरव्यू में जब पूछा गया कि व्हाट इज युअर फादर नेम? तो उसने बताया-जी, पिताजी का नाम है सुंदरलाल चडढा। इंटरव्यू लेने वाले ने डपटकर -अंग्रेजी में जवाब दीजिये। तो उन साहब का जवाब - प्रेटि रेड अंडरवियर (सुंदर लाल )
जवाब देंहटाएंI warn those young ones boys not to use langot.it makes man impotent..na-mard.
जवाब देंहटाएंहाँ भाई साहब ORCHITIS(INFLAMATION OF ONE OR BOTH TESTICLES CAUSED BY INFECTION) वालों को आज भी लंगोट पहनना पडेगा ..हाँ अन्डकोशों का तापमान शेष शरीर से २ सेल्सियस कम रहना अच्छा माना जाता है .लंगोट और लैपटॉप को गोद में लेके काम करना स्पर्म का नाश करता है काउंट कम करता है शुक्राणु के .
जवाब देंहटाएंबाल गोपाल क्या करें -डाइपर उनकी ऐसी की तैसी किये रहता है .रेशिज़ फिर रेशिज़ के निवारण के लिए क्रीम .लेकिन महिलाओं को चोली ज़रूर पहननी चाहिए .वरना डिलीवरी में दिक्कत आ सकती है बहरहाल चोली सूती होनी चाहिए .
लंगोट का पक्का होना अब मुहावरा नहीं रहा .अब इसकी प्रासंगिकता भी नहीं है .सरकार कहती है कंडोम एक फायदे अनेक .अब सरकार की बात तो माननी ही पड़ेगी .चड्ढी के बारे में सरकार से पूछना पडेगा .
@शुक्रिया रविकर जी!
जवाब देंहटाएंओहो.. रोचक चर्चाय...
जवाब देंहटाएं