आज गंगा को लेकर जन मानस जितना आंदोलित है शायद पहले कभी नहीं था। साधु संत ही नहीं आम जन भी अब गंगा की दारुण दशा को देख सड़कों पर आ गए हैं। लोग आमरण अनशन पर आमादा हैं। मगर गंगा के मुद्दे पर आज भावुकता के बजाय व्यावहारिक और गंभीर विमर्श की जरुरत है। आज गंगा की जो दुर्दशा है क्या उसे दूर कर एक बार फिर पतित पावनी कही जाने वाली इस नदी को पहले की स्थिति में लाया जा सकता है?
गोमुख से निकलने के बाद जो गंगा का सबसे बड़ा कैदखाना है वह टिहरी जलाशय है। पुराण कहते हैं कि गंगा के धरती पर अवतरण के पहले उन्हें शिव की जटाओं में लुप्त हो जाना पड़ा था और वहां से बिना राजा भागीरथ के प्रयास के गंगा मुक्त नहीं हो सकीं थीं। संभवतः पुराणकार ने हिमशैलों की भूलभुलैयों को शिव की जटाओं की उपमा दी थी और उनसे गंगा को मैदानी भाग में लाने का काम निश्चय ही बड़ा दुष्कर था जिसे अदम्य जिजीविषा और संकल्प के धनी तत्कालीन राजा भागीरथ ने साकार किया। गंगा मैदानों में प्रवाहित हो गईं। आज टिहरी बांध के 75 किलोमीटर के विशाल विस्तार में हमने गंगा को एक बार फिर कैद कर लिया है।...यह बांध 265 मीटर ऊंचा है। इसके बन जाने से पुराना टिहरी शहर भी डूब क्षेत्र में आ गया। यह विकास और विनाश के बीच के द्वंद्व का एक अजब मंजर है।
पंडित नेहरू ने कहा था कि नदियों पर बनने वाले बांध आधुनिक भारत के मंदिर होंगें। मगर आज ऐसे ही एक मंदिर ने गंगा के अस्तित्व को ही मानो लील लिया है। टेहरी जलाशय से दिल्ली तक पानी और बिजली की आपूर्ति होती है। यह भारत के बड़े पनबिजली परियोजनाओं में से एक है। मगर इसकी कीमत क्या हम गंगा के विलुप्तिकरण से चुकाएंगे? आज पर्यावरण विद ऐसे सवाल अगर पूछ रहे हैं तो यह बिल्कुल लाजिमी है।
यहीं बात आती है छोटे बांध बनाम दैत्याकार बांधों के प्राथमिकता की जो हम आज तक तय नहीं कर पाए हैं। गंगा को अगर बचाना है तो क्या हमें टिहरी बांध को तोड़ना होगा? फिर दिल्ली के हर व्यक्ति की 250 लीटर प्रति व्यक्ति की पानी की खपत कहां से पूरी होगी? बिजली की जरुरत कहां से पूरी होगी? आज हमारे पास क्या विकल्प है? यमुना पहले से ही दिल्ली में मृतप्राय हो चुकी हैं।
यहीं बात आती है छोटे बांध बनाम दैत्याकार बांधों के प्राथमिकता की जो हम आज तक तय नहीं कर पाए हैं। गंगा को अगर बचाना है तो क्या हमें टिहरी बांध को तोड़ना होगा? फिर दिल्ली के हर व्यक्ति की 250 लीटर प्रति व्यक्ति की पानी की खपत कहां से पूरी होगी? बिजली की जरुरत कहां से पूरी होगी? आज हमारे पास क्या विकल्प है? यमुना पहले से ही दिल्ली में मृतप्राय हो चुकी हैं।
टिहरी बाँध: फिर से कैद हुईं गंगा
कानपुर में आकर गंगा का प्रवाह और पानी काफी घटा रहता है और उसमें भी कुछ प्रमुख नहरें सिचाई के लिए निकाली गई हैं जिससे पानी और कम हो रहता है। फिर कानपुर का विश्वप्रसिद्ध चमड़ा उद्योग पूरी तरह से गंगा के ही भरोसे है। वहां से पानी लेने के बाद भारी धात्विक तत्वों- क्रोमियम युक्त उत्प्रवाह यानी गन्दा पानी गंगा में ही गिरता है। यहां की 400 से भी ऊपर टैनेरी यानि चर्म शोधक संयंत्र लगभग तीन करोड़ लीटर उत्प्रवाहित गंदा जल रोज गंगा में उड़ेल रही है। और आज भी गंदे जल का प्रबंध यहां समुचित तरीके से नहीं हो पा रहा है।
इलाहाबाद तक आते आते गंगा मृतप्राय हो रहती हैं। हां यहां यमुना जो कि अपने चम्बल सरीखी सहायक नदियों से कुछ जीवंत हुई रहती हैं, गंगा में नया प्राण फूंकती हैं। मगर वहां की सीवर- मल जल प्रणाली के दुरुस्त न होने और फिर बनारस में भी सीवर व्यवस्था के ठीक काम न करने से गंगा मल जल में तब्दील होती हैं। कभी यहां के पानी में बैक्टेरियोफेज यानि रोगाणुओं के भक्षक बड़े जीवाणु मिलते थे मगर प्रदूषण के स्तर के बढ़ जाने से वे भी अब लगभग नदारद हैं।बात साफ़ है गंगा को अब बिना टिहरी का विकल्प ढूंढें। कानपुर के चमड़ा उद्योग के विस्थापन, इलाहाबाद-वाराणसी के मल जल शोधन की कारगर व्यवस्था और अन्य शहरों में भी गंगा-आश्रित उद्योगों में कमी लाए पुनर्जीवित करना मात्र दिवा स्वप्न देखना है। एक आशा नदियों को जोड़कर जलागम को और बढ़ाना है, मगर उसके असार भी निकट भविष्य में नहीं दिख रहे हैं।
फिर कैसे गंगा का उद्धार हो सकेगा? कोटि कोटि जनों की तारणहार गंगा आज खुद अपने त्राण का मार्ग देख रही है।
। एक आशा नदियों को जोड़कर जलागम को और बढ़ाना है, मगर उसके असार भी निकट भविष्य में नहीं दिख रहे हैं।
जवाब देंहटाएंफिर कैसे गंगा का उद्धार हो सकेगा? कोटि कोटि जनों की तारणहार गंगा आज खुद अपने त्राण का मार्ग देख रही है।
यथार्थ अवलोकित करता ,गहन चिंतन से भरा ...सारगर्भित आलेख ...!इसी प्रकार के मुद्दों से हमें सतत जुड़े रहना चाहिए .....प्रयासरत रहना चाहिए ....कुछ जागरूकता बढ़े जन मानस में ...कुछ तो हल निकले ....कुछ हमारा भी योगदान हो ....!!
प्रयासरत रहें शुभकामनायें ....!!
विचारोत्तेजक आलेख. दशकों पहले गार्लेंड केनाल पर खूब चर्चाएँ हुयी थीं परन्तु कोई पहल नहीं हुई. यह विकल्प अभी भी उपलब्ध है.
जवाब देंहटाएंविचारणीय चिंतन ..... व्यथित करती है गंगाजी की यह स्थिति
जवाब देंहटाएंबारी-बारी से मरती जा रही नदियां, हालात आतंकित कर देने वाले है.
जवाब देंहटाएंगंगा की यह स्थिती व्यथित करती है।
जवाब देंहटाएंगंगा की बदहाली के लिए टिहरी डेम को जिम्मेदार नही ठराया जा सकता . बल्कि इसके बनने से करोड़ों लोगों को फायदा ही हो रहा है . टिहरी शहर को भी विस्थापित कर नया टिहरी बनाया गया है जो काफी परिपूर्ण है अपने आप में .
जवाब देंहटाएंगंगा को हम नागरिकों ने ही बर्बाद किया है . कुछ गैर जिम्मेदारी है सरकार की जो आँख मूंदे बैठी है . प्लेन्स में गन्दा नाला बन गई है गंगा .
हरिद्वार की गंगा के दर्शन जल्दी ही कराएँगे आपको . :)
गंगा, बहती हो क्यों।
जवाब देंहटाएंजल की कमी दूर करने के उपायों पर विचार हम सबको करना चाहिए , अगर समय रहते न चेते तो यह मानव समाज के लिये घातक होगा ....
जवाब देंहटाएंबढ़िया मनन योग्य लेख,
आपका आभार !
meri tippani kahan gayi ...?spam me dekhen please ......
जवाब देंहटाएंbahut achchha likha hai ...
prayas jari rakhen ,
Shubhkamnayen .
विचारणीय आलेख ..
जवाब देंहटाएंक्या किया जाए ? बड़ी चिंताजनक स्थिति है - परन्तु बस यह भर कह कर हम अपने काम में लग जाते हैं :(
जवाब देंहटाएंपर - करें क्या ?
फिर गई स्पैम में .
जवाब देंहटाएंगंगा तेरा पानी निर्मल झर-झर बहता जाए ... अब तो हम गीतों में ही सुन सकते हैं और विद्यापति जी अगर होते तो क्या फिर लिख पाते .. बड़ सुख सार पौल तुअ तीरे।
जवाब देंहटाएंगंगा प्रदूषण पर अस्सी के दशक में चार साल काम किया था। तब ही हालात चिंताजनक थे तो आज तो ...?
एक अच्छी, सामयिक और विचरणिय पोस्ट।
संतुलित और विमर्श के लिए आमंत्रित करती पोस्ट है। लेकिन क्षमा करें, मुझे यह सतुंलन अच्छा नहीं लगा। आपने लिखा .. भावुकता के बजाय..बस यहीं मेरा विरोध है। मैं इस सवाल पर भाउकता त्याग ही नहीं सकता। माँ गंगा की मुक्ति किसी भी कीमत पर चाहता हूँ। इसके लिए हजार टिहरी बांध कुर्बान। कोई तर्क सुनने या समझने की शक्ति नहीं है मु्झमे। तुम्हे बिजली चाहिए तो परमाणु समझौते करो। अणु बिजली पैदा करो। मुझे तो बस निर्मल गंगा चाहिए। मुक्त करो गंगा.. चाहे उड़ाना पड़े बांध। आओ देश के वैज्ञानिकों ! कुछ करो..निकालो समाधान...आओ राष्ट्र के कर्णधारों..! कुछ करो...निकालो समाधान। हम अपनी माँ को तिल तिल मरते नहीं देख सकते। अवसर रहते यदि तुम सब ने समाधान नहीं निकाला तो अनर्थ होना तय है। इसके लिए माँ गंगा के भाउक पुत्रों पर कोई इल्जाम न धरना। इसके लिए तुम सब जिम्मेदार होगे।
जवाब देंहटाएं@देवेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंआपकी भावना समझ सकता हूँ -मगर देखिये न डॉ दराल साहब आपसे बिल्कुल भिन्न विचार रखते हैं -
मैं भी इसी मत का हूँ कि टिहरी से गंगा को मुक्त कर दिया जाय ...मगर यह कैसे होगा उन सारे पहलुओं पर विचार करना होगा ! वैसे टिहरी जैसे दैत्य के निर्माण से लोकल परिवेश का महाविनाश तो हो चुका,वर्षा जल के कुदरती सोते बंद हो गए हैं .वैसे भी यह भूकंप क्षेत्र में है ..दुःख यही है कि भारत में नियोजन और निर्माण के कर्णधार पर्यावरण विशेषज्ञों के नहीं सुनते ..और बड़े निर्माण कार्यों के अपने निहितार्थ और गठजोड़ भी तो होते हैं ...भ्रष्टाचार की एक समान्तर गंगा भी यहाँ बहती है .....
मुझे डा0साहब की बातें समझ में नहीं आ रहीं। मेरी भावना डाक्टर साहब तक पहुँचे। मैने गंगा की गोदी में होश संभाला है। स्कूल से भाग कर घाटों में तैराकी करी है। घंटो सोता रहा हूँ गंगा की धार में। एक समय था जब नदी के पाट इतने चौड़े हुआ करते थे कि मैं अपनी जवानी में उसे तैर कर पार करते.करते पूरी तरह थक जाता था। आज गंगा को देख कर लगता है ..चार हाथ दूर ही तो है दूसरा किनारा ! कुछ कर नहीं पाता..बस मूक हो देखता रहता हूँ। आज भी दफ्तर से लौटते वक्त दशाश्वमेध घाट से अस्सी तक अकेले, किनारे-किनारे गंगा को निहारता लौटा हूँ। सभी प्रकार के व्यवसायी दिखे घाट किनारे । ताम-झाम, यात्री-नावें और दिखे मेरे जैसे भाउक पुत्र जो छलांग लगा रहे थे गंगा जी में..छपाक..! छपाक ! खेल रहे थे माँ की गोद में। मौन गंगा पुकार रही थीं.. जब मैं ही ना रहूँगी तो क्या शेष रहेंगे तु्म्हारे ये कारोबार ? शेष रहोगे तुम ? आखिर कब चेतोगे मेरे बच्चों ?
जवाब देंहटाएंपंडित जी,
जवाब देंहटाएंपहले भी कहा है और आज भी कहता हूँ कि गंगा को तो हम अपनी माता के तौर पर देखते हैं.. अपने प्रोफाइल में भी लिखा है (बतर्ज राही मासूम रजा)कि मैं तीन माओं का बेटा हूँ.. और एक गंगा माँ है.. जन्म से मृत्यु तक उसी ने अपनी गोड में जगह दी है..
कॉलेज/यूनिवर्सिटी में गंगा में घंटों पैर लटकाकर बैठना.. फिर बीच में एक टापू निकल आया और फिर गंगा गायब.. अफ़सोस होता है.. अब इसे भावनात्मक जुड़ाव कहे कोई या कुछ भी!! मन को छू गया आपका आह्वान!!
गंगा केवल एक भौगोलिक पहचान भर नहीं है.यह हमारी सांस्कृतिक और पुरातन विरासत का अभिन्न हिस्सा और गवाह रही है.इस अर्थ में गंगा मैया हमारे राष्ट्र-परिवार को कई पीढ़ियों से हमें अपने आशीर्वाद और प्रसाद से लाभान्वित कर रही हैं.
जवाब देंहटाएंगंगा का बचना ,हमारा अपना बचना है,यही एक छोटा सन्देश बड़ा अर्थ रखता है.इसे सभी को समझना होगा.
...और हाँ,अबकी वाला फॉण्ट अच्छा मारा है,ऐसे ही लुक रखना ,बढ़िया है !
गंगा पर बात करते जमाना बीता , अब तक सिर्फ बातें ही हुई ....
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक देश के लोगो की संवेदनहीनता अपनी माँ को ही लीलने में लगी है , इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है !
विचारणीय आलेख !
अब तो डैम के टूटने से भी विनाश की आशंका है ... सार्थक चिंतन
जवाब देंहटाएंवाकई ! चिंतित होना लाजिमी है .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी , मैं पाण्डे जी की भावनाओं की कद्र करता हूँ . लेकिन मेरा यह कहना है की सिर्फ भावनाओं पर देश नहीं चला करते . टिहरी डेम बनाने का सरकार का फैसला सर्वथा अनुचित नहीं था . पूर्ण विरोध के बावजूद इसे बनाया गया था . अब कैसे तोड़ सकते हैं . यह तो वही होगा की पहले आदर्श सोसायटी बन जाने दो , फिर तोड़ कर करोड़ों का नुकसान होने दो . यदि बनने से पहले ही अंतिम निर्णय ले लिया जाए तो ये सब झंझट बच सकते हैं .
जवाब देंहटाएंगंगा को बर्बाद किस ने किया है-- हम और आप ने . १९९६ में डोडी ताल से ट्रेकिंक कर लौटते समय गंगा घाट पर गए थे हृषिकेश में . आश्रम की ओर घाट किनारे जाकर ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी शौचालय में आ गए हों . कूड़े के ढेर देखकर और लोगों को टॉयलेट करते देख कर अपना तो सारा विश्वास उसी दिन उठ गया था .
इक्कीसवीं सदी में लोगों को बिजली पानी चाहिए , न की चौड़े घाट . काम तो कम चौड़े लेकिन साफ सुथरे घाट से भी चल जायेगा जैसे हरिद्वार में .
अगली पोस्ट इसी पर पढना मत भूलियेगा --हर की पौड़ी का आँखों देखा हाल .
यहाँ दिल्ली में यमुना को साफ करने के लिए सरकार करोड़ों खर्च कर चुकी है . सारे यमुना पुलों पर लोहे की ऊंची ऊंची बाड़ लगाई गई है ताकि लोग फूल आदि यमुना में न बहायें . लेकिन दिल्ली के धर्म भीरु लोग किसी भी कार्यक्रम के बाद बचे हुए फूल , हवन सामग्री , राख आदि यमुना में बहाने के लिए आते हैं , गाड़ी रोकते हैं और बाड़ के ऊपर से उछाल कर यमुना में डाल देते हैं . अब तो हद ही हो गई जब देखा की जगह जगह बाड़ को काटकर अनाधिकृत खिड़की बना दी गई हैं . और मूर्तियों की तो क्या कहें .
जवाब देंहटाएंयानि सरकार के सारे प्रयास गए पानी में .
कोटि कोटि जनों की तारणहार गंगा आज खुद अपने त्राण का मार्ग देख रही है।
जवाब देंहटाएंAgree.
गंगा भाषण में हमारी माँ है गंगा मैया है और व्यवहार में रखैल .एक वक्त था जब इसमें घुलित ऑक्सीजन गंगा जल को सड़ने से बचाए रहती थी . अब बेक्तीरियो फेज नदारद हैं .गंगा के प्रति जन रवैया बदले .पानी की किल्लत इस नज़रिए के बने रहने की बड़ी वजह है .कर्म काण्ड भी गंगा की ऐसी तैसी किए हैं .सब कुछ गंगा में विसर्जित जब की इस विसर्जन (तेल रिसाव ,हर तरह का एटमी कचरा गहरे में दफ़्न करते जाना ) से गंगा क्या सागर भी आजिज़ आ चुका है.
जवाब देंहटाएंजानकारी :लेटेन्ट ऑटो -इम्यून डायबिटीज़ इन एडल्ट्स
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
पागलों की तरह डैम तोड़ने को नहीं कह रहा हूँ कि सर्वनाश हो जाय। डैम को बिना तोड़े भी गंगा को मुक्त किया जा सकता है। हम आप जो भी दोषी हों उनको समझा बुझाकर नहीं तो दंड देकर सुधारा जा सकता है। कर्माकाण्ड से ही गंगा को नुकसान हो रहा है तो कर्मकाण्डियों को विद्युत शवदाह गृह का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। उद्योग के कचरे गंगा मे गिराये जा रहे हैं तो उसे अपराध मान कर रोकना चाहिए। कहने का आशय यह कि चाहे जैसे हो, चाहे हमे जो भी कीमत चुकानी पड़े गंगा को बचाना होगा। जन जन तक यह संदेश जाना चाहिए कि नदियों से ही हमारी अस्तित्व है। गंगा राष्ट्रीय नदी घोषित हो चुकी है तो राष्ट्रीय सोच, राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए। जो सर्वोत्तम और लोक कल्याणकारी हो वह किया जाना चाहिए। बस देखते रहने से, लोगों को मनमानी करने देते रहने से तो काम चलने वाला नहीं।
जवाब देंहटाएंfully agreed .
जवाब देंहटाएं