यह एक चुराया हुआ शीर्षक है जिसे एक सम्मानित टिप्पणीकार की एक टिप्पणी से मैंने उड़ाया है. वैसे सम्मानित टिप्पणीकार ज्यादातर एक ही चिट्ठे पर अपने विचार पुष्प बिखेरते पाए जाते हैं. मुझे क्या ,मगर बात अब बर्दाश्त के बाहर जा रही है!
समाज के प्रबुद्ध बुजुर्ग से अपेक्षा रहती है कि वह समाज का पथ प्रदर्शन करें - संस्कृत की एक कहावत है कि वह समाज गर्त में जा गिरता है जहां बुजुर्ग सम्मानित नहीं हैं -जाहिर है बुजुर्ग से भी यही उम्मीद रहती है कि वह अपनी इस इमेज की रक्षा करे.हाँ आज इस चुराई शीर्षक टिप्पणी से मन जरुर शांत हुआ है.कई ऐसे चिट्ठाकार हैं जिनका चिटठा बस अन्धविश्वास परसते रहे हैं. मुझे ऐसी गतिविधियाँ बहुत नापसंद हैं -कारण वही वैज्ञानिक नजरिये के प्रसार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता है
..अब आत्मा के वजूद पर निरे बेसिर पैर की बातें कई जगहं दिख रही है. हिन्दू धर्म दर्शन की हंसी जब दुनिया में उडाई जाती है ,ऐसे विचारक ही उसके जिम्मेदार हैं .
विज्ञान की पद्धति आत्मा का अस्तित्व नहीं स्वीकारती -अतः जब डाकटर ,इंजीनियर ऐसी बात करते हैं तब साबित करते हैं कि उनकी शिक्षा पर संसाधन जाया हुए -भारत ही दुनिया का वह सिरमौर देश है जिसकी एक सुस्पष्ट विज्ञान नीति है.जिसकी संरचना पंडित नेहरू ने की थी -कई चिट्ठे इस विज्ञान नीति की धज्जियां उड़ा रहे हैं ,जाहिर है यह कडवी घूंट अब बर्दाश्त के बाहर है -चिंतनीय यह भी है कि कई स्वनामधन्य चिट्ठेकार /टिप्पणीकार सारा आचार विचार त्याग ऐसे प्रतिगामी प्रयास के उत्साह वर्धन में हैं अन्यत्र चिट्ठे उनके उत्साह वर्धन से वंचित रह रहे हैं.
मन संतप्त हुआ और आपसे यह साझा करके ...अपनी जिम्मेदारी की इति मान रहा हूँ- अन्यथा मेरी आत्मा मुझे धिक्कारती रहती -आत्मा का अर्थ संचेतना ,विवेक बस और कुछ नहीं !
लिंक भी देते तो बात पूरी समझ में आती। अभी तो बस अनुमान लगाना पड़ रहा है जिसमें हम कच्चे साबित हो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंमैं भी आजकल बहुत कठिनाई का अनुभव कर रहा हूँ। टिपियाने में नहीं, पोस्ट लिखने में।
जवाब देंहटाएंभगवद्गीता का पाठ करें आर्य!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबस सिर खुजाते ही बन पड़ रहा है.. इससे ज्यादा कुछ नहीं
जवाब देंहटाएं....आस्था और अंधविश्वास के बीच बड़ा बारीक सा फर्क है, संभल कर चलना पड़ता है। विरोध नहीं कर सकते तो एक काम सहजता से कर सकते हैं कि अंधविश्वास को प्रोत्साहित न करें।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंविषय चुनने की आज़ादी पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाऊँगा ।
हालाँकि इससे सँदर्भग्रँथों के मेरे पठन का दायरा विस्तृत एवँ चुनौतीपूर्ण होता जाता है, पर इसके साथ ही अन्य चिट्ठों पर न पहुँच पाने का अपराधबोध भी होता है । प्रोत्साहन का अपना महत्व तो है ही, पर जब बहस, बतकही, चर्चा, विमर्श में फ़र्क ही न दिखे और माहौल मुर्ग़ों की लड़ाई जैसा बन जाये, तो ऎसे दानों को न चुगना ही श्रेयष्कर है । अनायास ही टिप्प्पणी बक्सों में जुलाहों की लट्ठमलट्ठा का आरँभ होते देख मैं स्वयँ ही सँतप्त हूँ । ब्लॉगजगत के कतिपय चिकने चुपड़े शिखँडी चरित्र यदि इसका लाभ लेने की फ़िराक़ में घी का डिब्बा हाथ में लिये मुस्तैद हों, तो फिर राम ही राख्यै ।
तुर्रा यह कि ऎसे ज्ञानीजन टिप्पणी देने के उत्साह में, टिप्पड़ी लिख कर उनके दरवाज़े गिरा जाते हैं ।
त्रिपाठी जी की टिप्पणी मेरी भी समझी जाये…
जवाब देंहटाएंखुलकर बतायें साहब, तो कुछ पल्ले पड़े हमारे…
गीता का द्वितीय अध्याय पढ़ने के बाद भी क्या कोई संशय रहता है, बहस के लिये।
जवाब देंहटाएंमिश्रा जी आप नाहक ही परेशान हैं. ब्लॉग अपने दिल कि बात कहने का जरिया है जहाँ पर कोई भी अपने दिल में आ रहे विचार दूसरों से बाट सकता है. आप अपनी सहमती या असहमति भी वही टिप्पणी रूप में भी दे सकते हैं. दुसरे ब्लोग्गेर्स कि चिंता ना करें. सभी ब्लॉगर बालिग हैं और कोई भी किसी और के बरगलाने में नहीं आ सकता. अगर आपको लगता है कि लोग मौज ले रहे हैं तो लेने दें काहे जलाते हैं भाई . आप भी कोई अच्छा सा ब्लॉग तलाश कर टिप्पणी देने के मजे लें. कोई रोक है क्या.
जवाब देंहटाएंयहाँ पर दिव्या जी के ब्लॉग कि बात हो रही है.
जवाब देंहटाएंजो भी हो,प्रिंट मीडिया के नेपथ्य में चले जाने के बाद ब्लॉग जगत अध्ययन-मनन प्रेमियों के लिए एक अच्छा मंच साबित हो रहा है, धीरे-धीरे इसमें गंभीरता भी आने लगेगी।
जवाब देंहटाएंजे बात गिरिजेश जी ,इसी मनः स्थिति में मैं स्वयम भी हूँ उबरने के प्रयास में ही यह चिट्ठी
जवाब देंहटाएंडॉ अमर जी ,सत्य के साथ रहें जैसा जीवन भर रहते आये हैं अन्यथा इतिहास बहुत बेरहम है ,,जानते हैं आप विज्ञ मानुष हैं
संदर्भ प्रसंग से नावाकिफ बन्धु बांधवी जागरूक नहीं हैं ! मैं नाम नहीं इंगित करूँगा ! न समझे वह अनाडी है !!!!
वैसे भी मुझे व्यक्ति से नहीं प्रवृत्ति से ही कहना सुनना है व्यक्ति गौण हैं ,प्रवृत्तियां नहीं
प्रवीण जी ,
गीता अपनी जगह दुरुस्त है गड़बड़ समझ की है
हर महान- साधारण मनुष्य की गीता की समझ अपनी अपनी है और यही इस ग्रन्थ की विशेषता है
गीता का प्रतिपाद्य मेरे विचार से आत्माभिमान से परे रहने का है
हम सभी निमित्त मात्र हैं
देह नश्वर है पाहे यह स्वीकार करें -बाकी क्या है कौन जानता है
@अब कौन कहेगा कि आप विचार शून्य हैं :) आपकी जागरूकता अनुकरणीय है !
जवाब देंहटाएंपंडित जी!हमारी तरफ से तो निदा साहब का यह शेर दर्ज़ करेंः
जवाब देंहटाएंकभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है
आपकी छटपटाहट विचारणीय है
जवाब देंहटाएं@इंजीनियर बन्धु और आप सभी से निवेदन !
जवाब देंहटाएंइसी देश में ही कभी बुद्ध का उपदेश था -
किसी बात पर महज इस खातिर विश्वास मत करिए की आपके गुरु ने कही है
खुद करके देखिये
शंकर ने भी प्रत्यक्ष प्रमाण का महत्व स्थापित किया -पंडित कहते रहें अग्नि ठंडक नहीं पहुंचाती
फिर समर्थ जिम्मेदार जन का जयकारा ?
@पाब जी कौन विचारेगा
जवाब देंहटाएंवाह भगवन ..
जवाब देंहटाएंयहाँ क्या और वहाँ साईबाबा ब्लॉग पर खुदेही पक्षी दर्शन से पाप पुण्य कमा और स्वर्ग दिला रहे है लोगन को ....
ई का भाई ...हमको ना समझ आयो
@अनाम बाबू/बीबी यही है समझ समझ का फेर
जवाब देंहटाएंसरस्वती की प्रेरणा सभी कहाँ पा पाते हैं :)
1.5/10
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट को समझने के लिए दो-चार उस्ताद और बुलाने पड़ेंगे .... कहीं यह किसी तरह की ईर्ष्या से उपजी पोस्ट तो नहीं ?
बहरहाल यह एक प्लेटफार्म है जहाँ आप अपने विचार आदान-प्रदान करते हैं. आप भी स्वतंत्र हैं
पंडित जी... बशीर साहब के तीन शेरः
जवाब देंहटाएंसर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा.
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा.
मैं ख़ुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तो
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा.
सब उसी के हैं हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आसमाँ
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा.
माफ़ कीजिये मिश्रा जी...जिन बुजुर्ग की आप बात कर रहे हैं उनसे अच्छा पाठक मैंने तो आज तक नहीं देखा..
जवाब देंहटाएंखैर आप जो समझें...ऐसे पढने वाले आपको कम ही मिलेंगे जिनका अपना कोई ब्लॉग नहीं अपना कोई मित्र नहीं फिर भी वो जितना हो सके उतने ब्लॉग पर जाते हैं पोस्ट पढ़ते हैं और सार्थक टिप्पणी करते हैं....उनकी टिप्पणी केवल attendence marker नहीं होती..
जैसे बढ़िया है, उत्तम है,ख़ूबसूरत रचना, बधाई स्वीकार करें वगैरह वगैरह ......
बहुत सारे लोग तो पोस्ट की एक पंक्ति भी नहीं पढ़ते और टिपिया के निकल लेते हैं....
अगर प्रमाण चाहिए तो इन दोनों लिंक पर जाकर पोस्ट पढ़ें और फिर टिप्पणियों को..... और बताएं की सच्चा पाठक कौन है????
http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_17.html ......
http://sunhariyadein.blogspot.com/2010/10/blog-post_18.html
कहीं सुना था-- दुनिया ने अपनी श्रेष्ठ मेधा का प्रयोग कर कम्प्यूटर बनाया और हमने उसपर सबसे पहले कुंडली बनायीं!! यह विज्ञान-नीति से अधिक लहान-नीति का प्रश्न है. विज्ञान-चेता मनस का खौखियाना स्वाभाविक है.
जवाब देंहटाएंआत्मा के विषय में आपके विचार पढ़कर हर्ष हुआ. आपकी गीता की व्याख्या से भी सहमत हूँ. परलोक और आत्मा-परमात्मा की बात करके तो हमारा देश बर्बाद हो गया. परिणामतः जब पश्चिम के देश उद्बोधन के प्रकाश में नयी-नयी खोजें कर रहे थे, हम भक्ति में डूबे थे, मोक्ष की तलाश में...जब वहाँ राजनीति के सिद्धांतों पर वाद-विवाद हो रहा था, हम अंग्रेजों से लड़ने में व्यस्त थे.
जवाब देंहटाएंमेरे विचार से धर्म, आस्था, भक्ति आदि व्यक्ति के अपने व्यक्तिगत विश्वास के विषय हैं, इन पर बहस करना बेकार है. ना कोई आपके कहने से आत्मा में विश्वास करने लगेगा और ना ही तर्क करने से उसका मोहभंग होगा. बहस उन विषयों पर अपेक्षित होती है, जो सामाजिक सरोकार से जुड़े हैं...
शेष तो आप खुद ही कहते हैं "मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना"
प्रकरण स्पष्ट नहीं हो पाया. वैसे ही बहुत कम ब्लॉग पर जाता हूँ आजकल. लिंक भेजिए तो कुछ पता चले.
जवाब देंहटाएंआप भी खुल कर नहीं कहेंगे तो कौन कहेगा भला?
जवाब देंहटाएं१. बिना नाम बताये तो विश्लेषण करना मेरे बस की बात नहीं !
जवाब देंहटाएं२. सबको अपने तरीके से अपनी बात कहने का हक है - एक मौलिक पैमाने पर
३. अगर आपको कुछ कहना है तो छिपाने की क्या जरूरत
४. इन बातों में उर्जा खर्च करना समय की बर्बादी है
५. ये सब मेरी बातें विषय की पूर्ण जानकारी न होने के कारण अतार्किक भी हो सकती हैं !
पता नहीं आप किस ब्लॉग की बात कर रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंआत्मा- संचेतना और विवेक..यही होना चाहिए!
प्रिय पाठक गण,
जवाब देंहटाएंइस चिट्ठी में महज यह मुद्दा उठाया गया है कि बड़े बुजुर्ग अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभायें मात्र जयकारे और ठकुर सुहाती से बाज आयें -अनुचित बात का बढ़ावा कमेंट्स के जरिये न करें
आत्मा परमात्मा की बातें अगर तर्कसम्मत नहीं है और उनका विवेचन बुद्धिगम्य नहीं है तब वे त्याज्य हैं
.
जवाब देंहटाएं.
.
नाहक ही इतना चिंतित हैं आप, देव !
अंतर्जाल सबके लिये खुला है...दुनिया भी वैसी ही होनी चाहिये... सब चलता है... चलना भी चाहिये... चलने दीजिये... आनंद लीजिये इस सब का...
मैं तो लेता हूँ...
मेरी आज की यह पोस्ट इसी 'आत्मिक' आनंद से उपजी है...
आभार!
...
अभिषेक जी ,
जवाब देंहटाएंचिट्ठी पढने का आभार ,
टिप्पणियाँ ध्यान से पढ़ें :)
समीर भाई ,
सबसे उजड्ड हमी हैं क्या भाई ?
चुकौती तेल वाला दिया देखे हैं ओकरा बारे मा सोचिये औ बाबा विश्वनाथ की जै किजीये !
जवाब देंहटाएंइहाँ तो ब्लग जगत के कामनवेल्थ खिलैईया कलमाडीया बाबू आपै आप कच्चे होए गये महराज !
जवाब देंहटाएंउ विश्व्नाथावा झील म नहाये के चाही तो आप काहे परेशान बा ?
जवाब देंहटाएंरजनीकांत भाई ,
जवाब देंहटाएंआपने दुखती नब्ज ही टीप दी जैसे ,
अब बतायें ऐसे ऊंट पटांग प्रसंग पर एक विज्ञान प्रेमी खौखियाये नहीं तब और का करे ?
@सम वेदना -
मत झंकृत कर भाई रे मर जायेगें :)
सुना भी है जानता भी हूं पर झूठ मूठ में नासमझ या अनजान बनने की कोशिश नहीं करूँगा...अच्छा या बुरा , सही या गलत जो भी हो रहा हो वहाँ पर उससे मुझे क्या लेना देना ? अगर मैं अपने ब्लॉग मे अपनी मर्जी की पोस्ट डालने के लिए स्वतंत्र हूं तो वे भी !
जवाब देंहटाएंबिलकुल ऐसे ही बाल / युवा / वृद्ध टिप्पणीकार का भी अधिकार है कि वो कहाँ जाये ? निंदा करे की आलोचना , स्तुति करे की चाटुकारिता ? उसका अपना अधिकार उसका अपना सुख !
अब देखिये ना आपके और मित्रों जैसा मासूम ना बन कर भी कितनी निरापद टिप्पणी लिखी है मैंने :)
सन्दर्भ न जानते हुए भी टिप्पणी कर रहा हूँ ...
जवाब देंहटाएंटिप्पणी कर्ता का यह दायित्व है कि गलत लेखों पर वाह वाही न करे! सहमत हूँ और ध्यान रखूंगा
कुछ लोग टिप्पणी को अपनी लोकप्रियता के औजार के रूप में मानते हैं, और उसका उपयोग उसी प्रकार करना चाहते हैं !इन टिप्पणियों का स्वाभाविक उपयोग लोगों का ध्यान आकर्षण करना होता है !
अफ़सोस है कि अनजाने और जल्दवाजी में , ईमानदार लोग भी बेईमानों को भी प्रोत्साहित करते हैं ! बड़े बनने की दौड़ में, आगे बढ़ने का प्रयत्न करते देख, इन लोगों के लिए मुस्कराइए और हो सके तो ताली बजाइए !
विद्वान् पाठकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है मुझे भरोसा है कि वे आसानी से सही गलत की पहचान कर लेंगे ...
हार्दिक शुभकामनायें !
मिश्र जी,
जवाब देंहटाएंकोई लोग अन्धविश्वास फैला रहे हैं, कोई आदर्श नायकों के बारे में फूहड़ चुटकुले और कोई इतिहास के बारे में भ्रामक जानकारी| मैं तो ऐसे चिट्ठों पर जाने से ही बच रहा हूँ| आपको भी यही कहूँगा की यदि आप विज्ञान का प्रसार करना चाहते हैं तो आपके ब्लॉग तो हैं ही| दूसरे क्या करते हैं उस पर हम चिंता से ज़्यादा और क्या कर सकते हैं?
पंगा फिर से ? :)
जवाब देंहटाएंप्रसंशनीय पोस्ट . बधाई !
जवाब देंहटाएंवाह ! आंखों पर पट्टी बांधे घेरे में गोल-गोल घूमती आपकी पोस्ट और वैसी ही उसकी टिप्पणियां...बस यही देखने दोबारा आया था :) बहरहाल, टिप्पणियों के जवाब में आपने जो शेर लिखे वे पसंद आए...(और समझ भी आए)
जवाब देंहटाएंआदरणीय मिश्रा जी ... अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ़ कर ... आप सब विद्वानों के बीच ज्यादा नहीं बोल सकती ... सिर्फ इतना कहूँगी की हर व्यक्ति को आपनी ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए खासकर तब जब उसका व्यक्तित्व और लोगों पर प्रभाव डालता हो ...
जवाब देंहटाएंअब देखिये ना आपको दो दो लिंक दिए...आपने लगता है पढ़ा ही नहीं..खैर...उस्ताद जी ने सही कहा..आपकी यह पोस्ट इर्ष्या का ही परिणाम लगती है....और जहाँ तक रही आपके विज्ञान से जुड़े रहने की बात तो मैं भी विज्ञान से जुड़ा हूँ और वो बुजुर्ग भी...
जवाब देंहटाएंकिसी का यूँ मजाक उड़ाना आपको शोभा नहीं देता...
श्री बी एस पाबला जी से सहमत ।
जवाब देंहटाएंश्री समीर जी से भी सहमत ।
शेखर सुमन ,
जवाब देंहटाएंमैं विद्वता पर कटाक्ष नहीं कर रहा विद्वता के अधोपतन पर जरूर दुःख है!
जीवन में बहुत कुछ शोभनीय नहीं रह जाता क्योकि आपको अपने दायित्व पूरे करने होते हैं
बहरहाल पर दुःख कातरता का आपका जज्बा सलाम करने के काबिल है ,,बस वही साफ्ट टार्गेट मत बनें ..
आपकी दूसरी टिप्पणी हरि प्रेरित है ...
और लिंक देखकर क्या करूंगा ! मैं बहुत कुछ देखदाख कर ही पोस्ट लिखता हूँ ,,
आप कुछ उन चाँद भाग्यशालियों में से हैं जिन्हें भगवत कृपा पात्र है पाकी ९९ प्रतिशत इससे मरहूम हैं
मुझे उनकी चिंता है ...
कहीं आप भी तो अर्थ देसाई नतमस्तक चरणस्पर्श का ही अनुसरण नहीं कर रहे ...
कुछ याद आया हमारा आपका संवाद ...यह सत्योदघाटन का प्रथम पुष्प है
अगले में नत मस्तक जी का इतिहास भूगोल खंगाला जाएगा ! बस आप तो देखते रहिये ...
जवाब देंहटाएंमुक्ति के टीपिया हो
लूट लिहलस बजरिया
पूर्ण होशो-हवास सहित हमारे मुँह से यही निकला ।
नॉनज़ेन्डर बॉयस्ड मोड में मुक्ति की टिप्पणी विषय प्रासँगिक लगी सो, यहाँ टीप दिया !
डॉ .अमर कुमार
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही उचारा आपने ..आखिर मुक्ति तो मुक्ति ही है न और वे आखिर मुक्ति हों भी क्यों न ?
मित्र किसकी हैं :) ?
मुक्ति
जवाब देंहटाएंविश्व साहित्य जगत में तहलका मचा देने वाली साईंस फिक्शन कृति ब्रेव न्यू वर्ल्ड के लेखक आल्डूअस हक्सले साहब बनारस आये थे १९३० के आस पास -
गंगा में मोक्ष की अभिलाषा लिए लोगों को डुबकी लगाते देख उनका चिन्तक मन क्लांत हो गया ..उन्होंने आगे लिखा -
"भारतीयों ने जीवन के संघर्ष से मुंह मोड़ काल्पनिक सत्ताओं का सृजन कर लिया -आत्मा परमात्मा और मोक्ष जैसी धारणाएं इसी का परिणाम है !"
श्रद्धा ,विश्वास तभी तक अनुमन्य हैं जब तक मनुष्यता को कोई हानि न पहुंचे ....मनुष्य की अस्मिता से कोई समझौता नहीं !
आज धर्म और तद्जनित व्याख्याएं मनुष्य को अकर्मण्यता ,बेबसी और भुखमरी के द्वार पर ला खड़ी करने को उद्यत हैं ...
ऐसे में बुजुर्गों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है -यह पोस्ट इसी विचार स्फुलिंग से उपजी है ..
आपकी टिप्पणी की प्रशंसा डॉ.अमर कुमार जैसे बहु रेड जन कर रहे हैं -कितना अच्छा है न ?
संतति और मित्र की प्रशंसा कितनी सुखकर लगती है न !
मोम के रिश्ते हैं गर्मी से पिघल जाएँगे
जवाब देंहटाएंधूप के शहर मे इन “आज़ेर” ये तमाशा ना करो
इससे ज्यादा कहें
राम राम जी
मुझे लगता है कि व्यक्ति के संस्कार बनाने में उसकी शिक्षा-दीक्षा और पारिवारिक माहौल के साथ-साथ उसके जींस (मुझे भी उदाहरण स्वरूप देखा जा सकता है) भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शायद इसीलिए किसी की सोच को बदला जाना लगभग असम्भव सा होता है। आप लाख तर्क दीजिए, लाख प्रमाण दीजिए, पर सामने वाला अपने विश्वास से नहीं डिगता।
जवाब देंहटाएंयहाँ पर यह प्रश्न भी उपजता है कि इस तरह के जींस के नियंत्रण (अगर इस थ्योरी पर विश्वास किया जाए, तो) के लिए क्या खोज की जानी चाहिए?
जहाँ तक मैं पहचान पा रहा हूँ, अभी तक उस व्यक्ति ने अपने नाम से यहाँ पर कमेंट नहीं किया है। क्या मैं सही जा रहा हूँ?
मन संतप्त हुआ और आपसे यह साझा करके ...अपनी जिम्मेदारी की इति मान रहा हूँ- अन्यथा मेरी आत्मा मुझे धिक्कारती रहती -आत्मा का अर्थ संचेतना ,विवेक बस और कुछ नहीं
जवाब देंहटाएंbhai pandit ji yeh vicharo ka manch hai aakhara nahi ----
हमारे लिये लिखा है क्या?
जवाब देंहटाएंमैं भी आजकल बहुत कठिनाई का अनुभव कर रहा हूँ। टिपियाने में भी, पोस्ट लिखने में।
मैं अपने विचारों को हमेशा आपकी सोच के मुताबिक़ पाता रहा हूँ ... इसीलिए आपके लेखन का प्रशंसक भी हूँ. किन्तु आपका यह अंदाज जरा भी नहीं सुहाता !
जवाब देंहटाएंअगले ने नहला फेंका है आप दहला फेंकिये. आपके पास तो एक से एक ट्रंप कार्ड पहले से सजे रखे हैं .....कउने दिन की खातिर ?
यू विलाप काहे ?
श्रद्धा ,विश्वास तभी तक अनुमन्य हैं जब तक मनुष्यता को कोई हानि न पहुंचे ....मनुष्य की अस्मिता से कोई समझौता नहीं !
जवाब देंहटाएंआज धर्म और तद्जनित व्याख्याएं मनुष्य को अकर्मण्यता ,बेबसी और भुखमरी के द्वार पर ला खड़ी करने को उद्यत हैं ...
सहमत !!
श्रद्धा ,विश्वास तभी तक अनुमन्य हैं जब तक मनुष्यता को कोई हानि न पहुंचे ....मनुष्य की अस्मिता से कोई समझौता नहीं !
जवाब देंहटाएंआज धर्म और तद्जनित व्याख्याएं मनुष्य को अकर्मण्यता ,बेबसी और भुखमरी के द्वार पर ला खड़ी करने को उद्यत हैं ...
सहमत !!
वादे वादे जायते तत्व बोध....:)
जवाब देंहटाएंदिलेनादान तुझे हुआ क्या है
जवाब देंहटाएंडॊक्टर इस मर्ज़ की दवा क्या है??????????? :)
चिट्ठालेखन का उद्देश्य सकारात्मक विचारों को प्रोत्साहन देना ही होना चाहिए, अन्यथा ऐसे चिंतकों के लिए तो 'इंडिया टीवी' तो है ही. प्रकांत जी से भी सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और शानदार पोस्ट! बधाई!
जवाब देंहटाएंoh Arvind darling why are you feeling these type of things? get them lost and be happy, if some thing serious please tell me dear.
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंकिन्ही शेखर बाबू को आपनें जो टिपियाया उसे जस का तस चेंप रहा हूं ज़रा गौर फरमाइयेगा ...
"आप कुछ उन चाँद भाग्यशालियों में से हैं जिन्हें भगवत कृपा पात्र है पाकी ९९ प्रतिशत इससे मरहूम हैं"
अब अगर आप अनुमति दें तो मैं मरहूम(स्वर्गीय) को महरूम(वंचित)पढ़ना चाहूँगा क्योंकि बाकी के ९९ प्रतिशत में इस बंदे को भी आपनें गिना ही होगा :)
"" समाज के प्रबुद्ध बुजुर्ग से अपेक्षा रहती है कि वह समाज का पथ प्रदर्शन करें ...""
जवाब देंहटाएंइस विचार से काफी हद तक सहमत हूँ ... इतना सब पढ़ने के बाद मुश्किल से टीप दे पा रहा हूँ ... आभार
बड़ी मुश्किल से आपकी पोस्ट के लायक एक फोटो का जुगाड़ किया है ...इसे सबूत मानियेगा कि मेरे पास एक अदद आत्मा तो थी पर वो मैंने अपने शिष्य के सन्यस्त होते समय दान कर दी :)
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी , किसी की धोती खींच रहे हे? पता तो चले....
जवाब देंहटाएंबात तो कुछ हद तक सच है कि जब किसी का व्यक्तित्व दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता रखता हो तो उस शख्स का दायित्व बढ़ जाता है कि कुछ बातों पर खुद से ही नियंत्रण रखे ताकि खुद से सही होने के बावजूद बाकियों में गलत संदेश न जाय।
जवाब देंहटाएं@महरूम ही है भाई !दुरुस्त बात !
जवाब देंहटाएं@प्रकाश जी ,
प्रजातंत्र में अपनी बात कहने का हक़ है और प्रतिकार का आधिकार भी
@ज्ञान जी ,नहीं यह आपसे सम्बन्धित नहीं है पर जिससे है वह आपसे दूर नहीं
@सी एम् -आप मीठे चुटकीबाज हैं :)
@हाय मुन्नी!
यहाँ तो कोई बात है. पर है क्या...पता नहीं चल पा रहा.
जवाब देंहटाएं______________________
'पाखी की दुनिया' में पाखी की इक और ड्राइंग...
It takes me by surprise when you say the "bujurg " blogger . Every blogger is just a blogger .
जवाब देंहटाएंU are 54 + and you are also an old person if we go by indian standards
.
All this is just crap because it has a "background" you want to feel you are young which you no more are . You have a daughter who U will marry in couple of years and it will mean that you will be a father in law and then if god willing she gives birth to a child in another year then within a span of 4 years you will be a nana or grand father
Its bad manners to classify bloggers into age bracket and then target them . You have a difference of opinion with someone voice it but dont be jealous / envious if you are not getting attention now from the lady and some one less is being called the respected so and so there
If you have lost respect then try to regain that respect rather than trying to show disrespect to someone who is being respected now
less=else
जवाब देंहटाएंNA..NA...NA
जवाब देंहटाएंYAHAN IS STAR KA POST NAHI CHALEGA...
BAAT CHAHE APKE NAZARIYE SE KITNA
BHI SAHI KYUN NA HO.....(KASHMA SAHIT)
PRANAM.
Dear Anon,
जवाब देंहटाएंParadise lost is lost,no wish to regain it :)
You are misinformed or have a poor mathematical skill as I am not of 54 + but of 35 ie in my prime youth
Don't jump on conclusions ,am not jealous to any body.-
I have raised a pertinent issue and that should be taken in that context only.
लगता हैं बाल विवाह हुआ होगा आप का क्युकी " अभी कुछ ही दिन बीते जब प्रियेषा कौमुदी मिश्र (बेटी जो दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययनरत है )" आप के ब्लॉग पर पढ़ा था । सो अगर बिटिया रानी १८ वर्ष कि भी हैं और आप ३५ के तो १७ वर्ष मे आप को पिता बनने का सुख प्राप्त होगया होगा । अब हमारी अरिथमेटिक इतनी भी कमजोर नहीं हैं ।
जवाब देंहटाएंहा हा हा ठीक है कमजोर मैथ नहीं ,कुछ और जरूर कमजोर है :) ये दुनियां से सेन्स आफ ह्यूमर कहाँ गया भाई/माई !
जवाब देंहटाएंसंदर्भ प्रसंग से नावाकिफ बन्धु बांधवी जागरूक नहीं हैं ! मैं नाम नहीं इंगित करूँगा ! न समझे वह अनाडी है !!!!
जवाब देंहटाएंसही मे हम सब से बडे अनाडी हैं। कुछ नही समझे किस की बात हो रही है। शुभकामनायें।
अब मैं क्या कहूं, यूँ शब्दों के जाल बुनना मुझे तो आता नहीं आपसे उम्र में काफी छोटा हूँ लेकिन एक सीधी और सरल बात है कि आप काफी परेशान लग रहे हैं...खैर हटाईये इन बातों को आप अपने आपको जवान मानते हैं ख़ुशी की बात है...उम्मीद करता हूँ अगली बार कोई सार्थक पोस्ट पढने को मिलेगी...
जवाब देंहटाएंशिक्षा और उम्र का व्यक्ति की वैचारिक परिपक्वता अथवा सत्य के साक्षात्कार से स्पष्ट सम्बन्ध नहीं होता।
जवाब देंहटाएंआत्मा के अस्तित्व के बारे में विदेशों में भी कुछ प्रयोग हुए हैं और उनके नतीज़े चौंकाने वाले हैं। इससे जुड़ी कुछ तस्वीरें भी रिलीज हो चुकी हैं। दरअसल,स्वानुभूति से इतर मन अनेक प्रश्न करता है। मगर प्रश्नों का उठना सुखद है क्योंकि उत्तर की राह वहीं से शुरू होती है।
जवाब देंहटाएंमेरी उम्र ३० साल है मगर कागजों में सन १९५४ लिखा है :-(
जवाब देंहटाएंवैसे तो अपने ब्लॉग पर किसी भी विषय पर लिखने को, हर कोई स्वतंत्र है....पर जब प्रबुद्ध, बुद्धिजीवियों (यहाँ मैं किसी को बुजुर्ग नहीं कह रही ) को बेमतलब की बहस में भाग लेते देखती हूँ...तो दुख जरूर होता है कि कई जगह तो वे लोग चुपचाप पोस्ट पढ़ कर निकल जाते हैं (पता नहीं पढ़ते भी हैं या नहीं ) और कई जगह ऐसे उलझे धागों को सुलझाने में लगे होते हैं, जिसका कोई सिरा है ही नहीं.
जवाब देंहटाएंमैं खुदा का नाम लेकर लिख रहा हूँ दोस्तों
जवाब देंहटाएंलिख दिया गर कुछ गलत वह भी सही हो जाएगा
मुझे प्रसंग समझ में नहीं आया. आत्मा, परमात्मा, विश्वात्मा, आस्तिक, नास्तिक वगैरह वगैरह...सबके लिए इन्टरनेट पर जगह है. जिसे जौन कोना अच्छा लगेगा वह वहीँ धूनी रमा लेगा. बा चाहे दूकान सजा लेगा. सबको अपना-अपना देखने का हक़ है. इसके लिए क्या चिंता करना?
वैसे मुझे लगता है कि आप दूसरों को बुजुर्ग इसलिए बता रहे हैं जिससे आपको नौजवान समझा जाय..:-) मुझे लगता है कि यह पोस्ट खुद को नौजवान साबित करने के लिए लिखी है आपने. कस्सम से:-)
Arvind ji,
जवाब देंहटाएंaapko padkar sahi maynon mein lekhani ki paribhasha ka aabhas hota hai.
kripya aap hamare sanskriti sanrakshan aur sanskar pallawan abhiyan se bhi juden.
cbjainbigstar.blogspot.com
ारविन्द जी ,मेरी टिप्पणी कहाँ गयी? शायद मुझे भी कुछ कठिनाई हो रही है टिप्पणी लिख कर शायद पब्लिश पर कलिक करना ही भूल जाती हूँ। तभी तो----
जवाब देंहटाएंसस्ती लोकप्रियता की चाहत जो न करवाए.किसी विषय को कुरेदने से कोई खुद को रोक ही नहीं पाता है .
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