कल ठीक ठाक अयोध्या फैसले के आने के बाद की फ़िक्र यह थी कि वाराणसी और देश के सभी हिस्सों में सब कुछ अमन चैन से बीत जाय ..और सुबह ४ बजे उठकर मैंने टीवी पर जब ख़बरों का जायजा लिया तो जान में जान आई ..उभयपक्षों ने सचमुच संयम और सौहार्द से फैसले को लिया ,कहीं कोई वैमनस्य नहीं दिखा -फैसला भी बहुत सुविचारित और विवेकपूर्ण रहा -बिल्कुल धर्मनिरपेक्ष और सांस्कृतिक सोच के मुताबिक़ ...अब अगर किसी भी पक्ष को यह फैसला मंजूर नहीं है तो यही माना जाएगा कि कुछ निहित भावनाओं और स्वार्थ के वशीभूत लोग इस मामले को लटकाना चाहते हैं .
विद्वान् न्यायाधीशों के बहुमत के इस निर्णय से बहुत से हिन्दू इत्तेफाक रखते हैं कि विवादित परिसर का एक हिस्सा मुसलमानों को दे देने में कोई हर्ज नहीं है ..वे इस बटवारे के लिए तैयार हैं -इतिहास के एक बड़े बंटवारे के बाद यह तो एक छोटा सा बंटवारा है ...हिन्दू भाई बंटवारे की परिस्थितयों से खासे परिचित हैं .....आये दिन भाई भाई का बंटवारा और आंगन में उठती दीवालों के वे चश्मदीद होते रहते हैं ....अगर गंगा जमुनी संस्कृति को बनाए रखना है तो ऐसे मजबूरी के बंटवारे भी किये जाने में कोई परेशानी नहीं है. हम तैयार हैं ....
हाँ निर्णय का एक पेंच मेरी समझ में नहीं आ रहा है जब भारतीय पुरातत्व के सर्वेक्षण ने निर्विवाद तौर पर यह साबित कर दिया था कि विवादित स्थल के नीचे एक मंदिर के अवशेष हैं तो फिर आस्था का सवाल न्यायाधीशों ने क्यों सर्वोच्च माना ? फिर तो देर सवेर काशी और मथुरा का मामला भी उठेगा ..काशी में मैंने खुद देखा है कि मस्जिद का आधार हिन्दू मंदिर है और वहां आज भी श्रृंगार गौरी की पूजा के लिए लोग कटिबद्ध होते हैं मगर उन्हें रोका जाता है ...ताकि शांति भंग न हो ....क्या अब विश्व हिन्दू परिषद् यह नारा लगाएगा कि अब अयोध्या हुई हमारी काशी मथुरा की है बारी ..दरअसल जहाँ जहां मंदिर अवशेषों पर मस्जिदें बनी हैं उस पर अयोध्या का यह फैसला नजीर बनेगा -हाँ बगल में एक मस्जिद की जमीन भी मुहैया करने की पेशकश को लोगों को इसी तरह मान लेना चाहिए ...आखिर हिन्दू और मुसलमान पहले भारतीय हैं और हमें साथ साथ रहना है तो मेल जोल से रहना ही जरूरी है ...
अगर यह फैसला सुप्रीम कोर्ट में चैलेन्ज किया जाता है तो मेरी समझ से दोनों कौमों के लिए एक दुर्भाग्य होगा ..आज मुस्लिम भाईयों को उदारता दिखाने का एक बड़ा मौका हाथ लग गया है और उन्हें चूकना नहीं चाहिए .अदालत का फैसला हम सभी को शिरोधार्य होना चाहिए .....नहीं तो विवाद की जड़ें गहरी होती जायेगीं और हमारी नई पीढियां भी एक विषाक्त माहौल में जीने को अभिशप्त होती जायेगीं ...मुझे नहीं लगता कि इस बहुत ही विचारपूर्ण और तार्किक फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय कोई रोक लगायेगा ..हाँ सुनवाई तो कर ही सकता है ....फैसले पर अमल की कार्यवाही निर्धारित समयानुसार आरम्भ करने में सरकारों को देर नहीं लगाना चाहिए ....
@निर्णय का एक पेंच मेरी समझ में नहीं आ रहा है जब भारतीय पुरातत्व के सर्वेक्षण ने निर्विवाद तौर पर यह साबित कर दिया था कि विवादित स्थल के नीचे एक मंदिर के अवशेष हैं तो फिर आस्था का सवाल न्यायाधीशों ने क्यों सर्वोच्च माना ?
जवाब देंहटाएंयही मैं भी सोच रहा हूँ , सच की होती है ये तो सुना था पर अधूरी क्यों ???
सुधार
जवाब देंहटाएं*यही मैं भी सोच रहा हूँ , "सच की जीत होती है" ये तो सुना था पर अधूरी क्यों ???
लगता है ये प्रश्न सदैव अनुत्तरित ही रहेगा
आप ने जो प्रश्न उठाया है वह मेरी ऊपरी मंजिल में भी कल शाम से कुलबुला रहा है। निर्णय बहुत लंबा है। उसे पढ़ने पर ही उत्तर दिया जा सकता है। पर निर्णय पढ़ने में कई दिन लग जाएंगे।
जवाब देंहटाएंकोई टिप्पणी नहीं। मज़हबी हठधर्मिता और ज़मात के बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रियाएँ पढ़ कर/देख कर मस्तक का घाव लिए दुर्गन्ध फैलाता अमर अश्वत्थामा याद आया है।
जवाब देंहटाएं@ पुरातात्विक साक्ष्यों के बावजूद आस्था का आधार - यह देश अभिशप्त है।
प्रश्न तो जायज ही हैं| जय राम जी की!
जवाब देंहटाएंजब भारतीय पुरातत्व के सर्वेक्षण ने निर्विवाद तौर पर यह साबित कर दिया था कि विवादित स्थल के नीचे एक मंदिर के अवशेष हैं तो फिर आस्था का सवाल न्यायाधीशों ने क्यों सर्वोच्च माना ?
जवाब देंहटाएं...सही प्रश्न। इसके बाद कृपा कैसी!
जब भारतीय पुरातत्व के सर्वेक्षण ने निर्विवाद तौर पर यह साबित कर दिया था कि विवादित स्थल के नीचे एक मंदिर के अवशेष हैं तो फिर आस्था का सवाल न्यायाधीशों ने क्यों सर्वोच्च माना ?
जवाब देंहटाएं...सही प्रश्न। इसके बाद कृपा कैसी!
"जहाँ जहां मंदिर अवशेषों पर मस्जिदें बनी हैं उस पर अयोध्या का यह फैसला नजीर बनेगा" इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
जवाब देंहटाएंसमझ बूझ का निर्णय है, इसे स्वीकार कर ही विकास के पथ पर बढ़ चलें।
जवाब देंहटाएं"आज मुस्लिम भाईयों को उदारता दिखाने का एक बड़ा मौका हाथ लग गया है"
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक कहा आपने, इससे आपस में प्यार और सम्मान बढेगा और बाहर वाले मुंह की खायेंगे !
अयोध्या मसले से जुड़े सभी लेखों में मैंने अपने दिल कि यही बात टिप्पणी रूप में प्रकाशित कि है कि उच्च न्यायलय के फैसले के बाद अब भारतीय मुसलमानों के पास सुनहरा मौका है ये दिखाने का कि इस्लाम में सिर्फ मंदिर तोड़े नहीं जाते बल्कि बनाये भी जाते हैं. इस मुद्दे को यहीं ख़त्म कर देना चाहिए और इस आगे ना लेजाकर सारी भूमि हिन्दू संगठनों को राम मंदिर के निर्माण के लिए दे देनी चाहिए. अफगानिस्तान में तालिबानों द्वारा बामियान बुद्ध कि मूर्ति तोड़े जाने से इस्लाम पर जो धब्बा लगा है उसे मिटने का ये सुनहरी अवसर है. विवादित स्थल पर मदिर था ये बात उच्च न्यायलय के तीनों न्यायधीशों ने स्वीकार कि है.
जवाब देंहटाएंहाँ मैं ये भी कहना चाहता हूँ कि विश्व हिन्दू परिषद् को भी इस मामले को मथुरा और कशी कि ओर नहीं ले कर जाना चाहिए. जो हुआ वो हो चुका अब धर्म पर राजनीती ख़त्म कर भ्रष्टाचार पर आधारित राजनीती या इस राष्ट्र के तुकाने करने वाले लोगों के विरुद्ध एक धर्म युद्ध या जेहाद सभी को मिल कर लड़नी चाहिए.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के साक्ष्यो के आधार पर फैसला में धार्मिक भावनावो के तूफान को ना उमड़ने देने का भी ध्यान रखा गया है .
जवाब देंहटाएंsarbdharm sambhav.....
जवाब देंहटाएंbasudhaiv kutumbkam...
hindu muslim bhai..bhai....
sirf ek nara nahi hai....
to.....
dono pakshon ko manniya adalt ke
phaisle manya hone chahiye......
jo paksh abmanna karta ho ooske hisse
bhi doosre paksh ko de dene chahiye..
pranam
आज इतने समय बाद जो फैसला सुनाया गया और सब इसका स्वागत कर रहे हैं ..यही बात वी० पी० सिंह सरकार जब थी तब सुझाई गयी थी ...पर तब किसी को मान्य नहीं हुयी थी ..शायद इतने दिनों तक इससे होने वाली हानि से सब परिचित हो चुके हैं ..और मन शांत कर चुके हैं ...आगे इस तरह का कोई विवाद न उठे यही कामना है ...कशी मथुरा पर सौहार्द बना रहे ..
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंबदलते परिवेश में अनुवादकों की भूमिका, मनोज कुमार,की प्रस्तुति राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
इस एतिहासिक निर्णय के तीन हिस्से हैं :
जवाब देंहटाएंराम जन्म की आस्था पर: निर्विवाद सत्य
भूमि पर : भाईयों के बीच बंटवारा
इतिहास पर : भूल जाओ और आगे बढ़ो।
समझदारी भरा फैसला है ...समझदारी से ही मानना चाहिए.
जवाब देंहटाएंये आस्था वाला पेंच मेरी समझ से भी बाहर है. मस्जिद, किसी हिन्दू धार्मिक स्थल के अवशेषों पर बनी थी, भले ही उसे तोड़ा गया हो या नहीं, ये पुरातात्विक साक्ष्यों से पूरी तरह स्पष्ट हो गया था, फिर ये आस्था की बात क्यों की गयी... हो सकता है सद्भाव बनाए रखने के लिए...
जवाब देंहटाएंआपने खरी बात लिखी है.
जवाब देंहटाएंपर अभी तक सभी लोग "कोर्ट का निर्णय स्वीकार्य होगा" बोल रहे थे............ अब सांप सूंघ गया है. देश देख रहा है........ शर्मनिरपेक्ष एक बार फिर खेल दिखाएँगे.
जय राम जी की.
आखिर में घूम फिरकर पहुंचे तो १९४९ में ही , फिर जरुरत क्या थी ९१-९२ से लेकर २६/११ तक करने की ?
जवाब देंहटाएंअब भारतीय मुसलमानों के पास सुनहरा मौका है ये दिखाने का कि इस्लाम में सिर्फ मंदिर तोड़े नहीं जाते बल्कि बनाये भी जाते हैं.
जवाब देंहटाएंहिन्दू मुस्लिम साथ साथ ही रहें --इसी में सब का भला है ।
जवाब देंहटाएं'समझ बूझ का निर्णय है, इसे स्वीकार कर ही विकास के पथ पर बढ़ चलें।'
जवाब देंहटाएं'समझदारी भरा फैसला है ...समझदारी से ही मानना चाहिए.'
'हिन्दू मुस्लिम साथ साथ ही रहें --इसी में सब का भला है।'
अरविन्द भाई कुछ लोगो की फ़ितरत तो मृत्युपरन्त नही बदलती। फ़िर भी आशा है कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला भी यही आ जाने के बावजूद अमन चैन की ऎसी ही रात नसीब हो।
जवाब देंहटाएंअमन चैन से राजनैतिक रोटियाँ तो नहीं सिक पाती हैं
जवाब देंहटाएंआखिर भाइयों के बीच बँटवारा होइये गया,अब दुनो फरीक चैन से रहेंगे, उम्मीद करना चहिये..
जवाब देंहटाएंजो हुया अच्छा हुया और जो होप्प्गा वो भी अच्छा होगा इसी उमीद के साथ शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंमाना कि निर्णय को सभी पक्षों नें स्वागतयोग्य माना है..हर कोई इस से सहमत होता भी दिखाई पड रहा है...लेकिन न जाने क्यों ये "सहमति" कुछ खटक सी रही है...मन कहता है कि अभी इस निर्णय को लेकर कौव्वा रौर्र मचना बाकी है. जो लोग अभी अपने अपने दडबों में घुसे बैठे हैं..कुछ दिनों में ही हुव्वाँ हुव्वाँ करते निकलने लगेंगें......
जवाब देंहटाएंशाही इमाम ने आज शाम को बता दिया है कि उन्हें फैसला मंजूर नहीं। सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की तैयारी है। इसलिए अभी बहुत आशावादी बनकर खुशियाँ मनाने की जरूरत नहीं है। राजनीति अब अपना विकृत चेहरा धीरे-धीरे दिखाएगी। अभी बहुत कुछ देखना बाकी है।
जवाब देंहटाएंजाने क्यों मैं अभी खुश नहीं हो पा रहा हूँ। शायद गिरिजेश जी की बात ज्यादा सही है।
समझदारी भरा फैसला है ...समझदारी से ही मानना चाहिए.
जवाब देंहटाएंमेरे ख्याल् मे अब एक कानुन बने कि जिस किसी भी धर्म का कोई भी खंडर है, जहां कोई पुजा पाठ, या नमाज या कोई ऎसी ही बात ना होती हो जो कई सालो से विवाद से भी दुर है उसे सरकारी सम्पंती मान कर तोड दिया जाये ताकि भविष्या मै कोई भी ऎसा विवाद फ़िर से ना उठे, वर्ना हर साल किसी ना किसी खंडर हो ले कर हम आपस मै लडते रहेगे
जवाब देंहटाएंकल फैसला सुना ...लगा कि माननीय न्यायालय नें जो बेहतर था वो कर दिखाया ! सोचा आपको शुभकामनायें दे आयें पर यहां आकर पता चला कि फैसला सुनाते हुए माननीय न्यायालय नें साक्ष्य की प्राथमिकतायें आस्था के बाद पुरातत्व के क्रम में तय की हैं !...पर कैसे ?...और क्यों ? ये पेंच तो वे ही सुलझा सकते हैं या फिर दिनेश राय द्विवेदी जी फैसला पढकर समझायें !
जवाब देंहटाएंप्रकरण के डिटेल्स पता नहीं इसलिए कोई अभिमत दूं यह उचित नहीं होगा ! फिलहाल एक ही त्वरित प्रतिक्रिया बनती है...आप सभी को शुभकामनायें !
Achha hai na Bau Ji!
जवाब देंहटाएंIndia has indeed moved on!!!
My peace prevail!
Ashish
निराशा के बाद फिर एक आशा ...कुछ तो अच्छा हुआ ही ...!
जवाब देंहटाएंबहुत से हिन्दू इत्तेफाक रखते हैं कि विवादित परिसर का एक हिस्सा मुसलमानों को दे देने में कोई हर्ज नहीं है ..वे इस बटवारे के लिए तैयार हैं -इतिहास के एक बड़े बंटवारे के बाद यह तो एक छोटा सा बंटवारा है ...हिन्दू भाई बंटवारे की परिस्थितयों से खासे परिचित हैं .....आये दिन भाई भाई का बंटवारा और आंगन में उठती दीवालों के वे चश्मदीद होते रहते हैं ....अगर गंगा जमुनी संस्कृति को बनाए रखना है तो ऐसे मजबूरी के बंटवारे भी किये जाने में कोई
जवाब देंहटाएंपरेशानी नहीं है.
आपकी बात सही है पर गौर करें पहले के बटवारे का दंश और कश्मीर रूपी साइड इफेक्ट हम आज तक झेल रहे हैं, फोड़े का इलाज नस्तर से ही होता है, मरहम से नहीं.......
चन्द्र मोहन गुप्त
@मौके की नजाकत को देखते हुए हमें कुछ नरम होना होगा चंद्रमोहन जी ..हमारी पहली प्राथमिकता वहां मंदिर निर्माण की होनी चाहिए ..माननीय न्यायाधीशों ने सब पहलुओं पर विचार किया है
जवाब देंहटाएंअली भाई आपको भी शुभकामनाएं !बंटवारें में आप भी तो फायदेमंद हुए हैं
जवाब देंहटाएंमेरे लिए यह दिन, भारतीय होने पर गर्व करने का दिन था कि आज हम किसी के बहकावे में नहीं आए, किसी ने कहीं कोई बलवा नहीं किया, किसी ने किसी का जान नहीं ली.... मेरे देश को किसी की नज़र न लगे.
जवाब देंहटाएं` बगल में एक मस्जिद की जमीन भी मुहैया करने की पेशकश....’
जवाब देंहटाएंअब तो धर्म के नाम पर लड़ना छोडो :)
@ अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंमेरी सोच कुछ और है ! मैं इस मसले में दो में से एक क़तई नहीं था ! ख्वाहिश इतनी कि दोनों लड़ना बंद कर दें ! शायद यही फ़ायदा हो जाये मुझे ?
बहुत बहुत शुक्रिया! अब मैंने "उससे" के जगह "उनसे" कर दिया है!
जवाब देंहटाएंजो फैसला हुआ है वो अच्छा ही हुआ है चाहे देर से क्यूँ न हुआ हो! मेरा ये मानना है कि अब आगे भी सब अच्छा ही होगा! बढ़िया पोस्ट!