अयोध्या फैसले पर छद्म धर्म निरपेक्षी बुद्धिजीवियों का ढार ढार आंसू बहाना जारी है ....मैं कल परसों से ही इनके कारनामों को यहाँ देख पढ़ रहा हूँ -यथा संभव मैंने अपना प्रतिवाद उनके ब्लागों पर जाकर दर्ज किया है ....मगर अब उनका रुदन तेज हो रहा है ..कई रक्तबीजी उठ उठ प्रलाप कर रहे हैं ...एक अरविन्द अशेष या शेष कोई जनसत्ता में हैं वे भी अपनी काबिलियत का एक बड़ा पोस्टर मोहल्ला पर लगाकर न्यायाधीशों को कोस रहे हैं ....एक कलकत्ता विश्वविद्यालय में कल तक या आज भी प्रोफ़ेसर रहे जगदीश्वर चतुर्वेदी जी विद्वान् न्यायाधीशों से भी बड़े विद्वान् कहलाये जाने की होड़ में हैं ....मैंने उनकी व्यथा पढी है कुछ जवाब देने की कोशिश की है ....ये लोग बड़े अधिकारी और विभागी विद्वान् लोग हैं ..इनका जवाब देना विद्वानों के लिए भी मुश्किल का काम है ..मगर हम जैसे गैर विद्वान् ऐसी कोई गफलत नहीं पालते और जल्दी ही मामले का निपटारा कर देते हैं -यही असली ब्लागीय चरित्र भी है .क्लैव्यता मत पालो ..बोल डालो जो मन में है .....आप इस पूरे मसले को पढने में रूचि ले सकते हैं बशर्ते कविताओं के तमाम ब्लॉग पर एक दिन टिप्पणियों को मुल्तवी कर दें तब ..आखिर देश के भविष्य का सवाल है ...
जगदीश्वर चतुर्वेदी जी
फैसला हो चुका है ,आप जैसे अतिशय बौद्धिकता से संतप्त छद्म धर्म निरपेक्षी अब इसमें मीन मेख निकाल रहे हैं ....मगर यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट जाय ही क्यों ?
क्या आप समझते हैं कि जिन बिन्दुओं की ओर आप इशारा कर रहे हैं उन पर न्यायाधीशों ने ध्यान नहीं दिया ,क्या वे अधकचरे ज्ञान के मूर्ख लोग थे ? क्या इतिहास विज्ञान है ? भारतीय इतिहासकारों जैसे भ्रमित ,सामान्य विवेक से पैदल दुनियां में कहीं और इतिहासविद नहीं मिलेगें ! भारत भूमि पर पहले से हर जगह मंदिर ही हैं -इस्लाम का आगमन हिन्दू परम्पराओं के सदियों बाद की बात है ....भारत के पुरातत्व विभाग के पहले भी तकनीकी ज्ञान से यह पता चल चुका था कि जमीन के भीतर कोई विशाल संरचना अस्तित्व में है ....और उसका शिल्पगत ढांचा मंदिर सरीखा है ...विद्वान् न्यायाधीशों ,यहाँ तक कि जनाब एस यू खान ने भी ऐसी संरचना के ऊपर मस्जिद बनाए जाने को इस्लाम विरुद्ध माना ....हाँ विद्वान् न्यायाधीश इस भौतिक तथ्य से भी ऊपर दार्शनिक /आध्यात्मिक विचार बिंदु तक इस सवाल को ले गए और उसे आस्था से जोड़ा ,मानवीय चेतना से जोड़ा -यह कहा कि दिव्य शक्तियां सर्वकालिक और सार्वभौमिक हैं ....जहाँ इनका आह्वान हो जाय वे निराकार और साकार दोनों रूपों में अनुभव गम्य हो सकती हैं -उन्होंने नितांत विज्ञानगत भौतिकता के ऊपर भी जाकर दार्शनिकता का उदबोधन किया ..मुझसे भी निर्णय को समझने में तत्क्षण संकीर्ण भूल हुयी थी -व्यापकता से सोचने में न्यायाधीशों के विवेक को सलाम करने को मन हुआ ....जी हाँ इसके सकारात्मक परिणाम अवश्य होंगें तो होने दीजिये न आप लोग क्यों ढार ढार रोये जा रहे हैं और अपने रुदन से घडियालों को भी मात देने पर उतारू हैं .
सत्य क्या है इसकी कभी प्रतीति आपको हुयी है ? फिर परम सत्य की तो बात ही छोडिये .सुनिए चतुर्वेदी जी राम सत्य हैं ..मोटी बुद्धि का आदमी भी यह जानता है ,हिन्दू मुस्लिम सब यह जानते हैं ...राम को सत्य साबित करना इस देश में एक अहमकाना प्रस्ताव है ....प्रखर समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया भी यह मानते हैं की यह सवाल ही अपने में बेहूदा है ..आप जन जन के मस्तिष्क और दिलों में झांकें .....राम आज से नहीं हजारों साल से विद्यमान हैं ....जैसा कि विद्वान् न्यायाधीशों ने कहा ..वे हर जगह है और उस जगहं तो अवश्य ही जहाँ उनका पूजन हजार वर्षों से हो रहा है ....राम कैसे इस देश से तिरोहित हो सकते हैं ...यहाँ चप्पा चप्पा और बच्चा बच्चा राम का है ....दरअसल आप लोगों के साथ दिक्कत यही है की सारी उम्र एक ख़ास सोच और किताबों के साथ बिता दी और दृष्टि का पूर्ण परिपाक / परिष्कार नहीं हो पाया ..अध्ययन में भी रिक्तता और सोच के स्तर में भी -आप पर और आप जैसों पर भारतीय मनीषा केवल अफ़सोस करती आयी है .
जी हाँ अब न्यायाधीश वह सब कर के रहेगें जो इस देश का चिर भ्रमित इतिहासकार , आप सरीखे छद्म बुद्धिजीवी ,और सामाजिक सरोकारों से कोसो दूर कुंठित वैज्ञानिक नहीं करते आये हैं ...यह फैसला पूरी तरह तर्कशील और सुचिंतित है और मानवीय भी है ,दृष्टि की व्यापकता लिए हुए हैं -यह कहीं से भी संकीर्ण नहीं है ....यही कारण है पूरे विश्व ने इसे शांत और सयंमित होकर कर सुना -संगीनों के साए जन आक्रोशों को नहीं रोक सकते -अतीत के कई उदाहरण हमारे सामने हैं .
आप सरीखे लोग अदालत की अवमानना के साथ साथ हिन्दू मुस्लिम भावनाओं को भड़का रहे हैं -सदियों /दशकों पुराना जो मामला हल होने के कगार पर है उसे और उलझा देना चाह रहे हैं ...आखिर भारत के बुद्धिजीवी कब अपने सामजिक निसंगता के ढपोरशंखी शुतुरमुर्गी सोच ग्रंथि से उबरेगें ?
फैसला हो चुका है ,आप जैसे अतिशय बौद्धिकता से संतप्त छद्म धर्म निरपेक्षी अब इसमें मीन मेख निकाल रहे हैं ....मगर यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट जाय ही क्यों ?
क्या आप समझते हैं कि जिन बिन्दुओं की ओर आप इशारा कर रहे हैं उन पर न्यायाधीशों ने ध्यान नहीं दिया ,क्या वे अधकचरे ज्ञान के मूर्ख लोग थे ? क्या इतिहास विज्ञान है ? भारतीय इतिहासकारों जैसे भ्रमित ,सामान्य विवेक से पैदल दुनियां में कहीं और इतिहासविद नहीं मिलेगें ! भारत भूमि पर पहले से हर जगह मंदिर ही हैं -इस्लाम का आगमन हिन्दू परम्पराओं के सदियों बाद की बात है ....भारत के पुरातत्व विभाग के पहले भी तकनीकी ज्ञान से यह पता चल चुका था कि जमीन के भीतर कोई विशाल संरचना अस्तित्व में है ....और उसका शिल्पगत ढांचा मंदिर सरीखा है ...विद्वान् न्यायाधीशों ,यहाँ तक कि जनाब एस यू खान ने भी ऐसी संरचना के ऊपर मस्जिद बनाए जाने को इस्लाम विरुद्ध माना ....हाँ विद्वान् न्यायाधीश इस भौतिक तथ्य से भी ऊपर दार्शनिक /आध्यात्मिक विचार बिंदु तक इस सवाल को ले गए और उसे आस्था से जोड़ा ,मानवीय चेतना से जोड़ा -यह कहा कि दिव्य शक्तियां सर्वकालिक और सार्वभौमिक हैं ....जहाँ इनका आह्वान हो जाय वे निराकार और साकार दोनों रूपों में अनुभव गम्य हो सकती हैं -उन्होंने नितांत विज्ञानगत भौतिकता के ऊपर भी जाकर दार्शनिकता का उदबोधन किया ..मुझसे भी निर्णय को समझने में तत्क्षण संकीर्ण भूल हुयी थी -व्यापकता से सोचने में न्यायाधीशों के विवेक को सलाम करने को मन हुआ ....जी हाँ इसके सकारात्मक परिणाम अवश्य होंगें तो होने दीजिये न आप लोग क्यों ढार ढार रोये जा रहे हैं और अपने रुदन से घडियालों को भी मात देने पर उतारू हैं .
सत्य क्या है इसकी कभी प्रतीति आपको हुयी है ? फिर परम सत्य की तो बात ही छोडिये .सुनिए चतुर्वेदी जी राम सत्य हैं ..मोटी बुद्धि का आदमी भी यह जानता है ,हिन्दू मुस्लिम सब यह जानते हैं ...राम को सत्य साबित करना इस देश में एक अहमकाना प्रस्ताव है ....प्रखर समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया भी यह मानते हैं की यह सवाल ही अपने में बेहूदा है ..आप जन जन के मस्तिष्क और दिलों में झांकें .....राम आज से नहीं हजारों साल से विद्यमान हैं ....जैसा कि विद्वान् न्यायाधीशों ने कहा ..वे हर जगह है और उस जगहं तो अवश्य ही जहाँ उनका पूजन हजार वर्षों से हो रहा है ....राम कैसे इस देश से तिरोहित हो सकते हैं ...यहाँ चप्पा चप्पा और बच्चा बच्चा राम का है ....दरअसल आप लोगों के साथ दिक्कत यही है की सारी उम्र एक ख़ास सोच और किताबों के साथ बिता दी और दृष्टि का पूर्ण परिपाक / परिष्कार नहीं हो पाया ..अध्ययन में भी रिक्तता और सोच के स्तर में भी -आप पर और आप जैसों पर भारतीय मनीषा केवल अफ़सोस करती आयी है .
जी हाँ अब न्यायाधीश वह सब कर के रहेगें जो इस देश का चिर भ्रमित इतिहासकार , आप सरीखे छद्म बुद्धिजीवी ,और सामाजिक सरोकारों से कोसो दूर कुंठित वैज्ञानिक नहीं करते आये हैं ...यह फैसला पूरी तरह तर्कशील और सुचिंतित है और मानवीय भी है ,दृष्टि की व्यापकता लिए हुए हैं -यह कहीं से भी संकीर्ण नहीं है ....यही कारण है पूरे विश्व ने इसे शांत और सयंमित होकर कर सुना -संगीनों के साए जन आक्रोशों को नहीं रोक सकते -अतीत के कई उदाहरण हमारे सामने हैं .
आप सरीखे लोग अदालत की अवमानना के साथ साथ हिन्दू मुस्लिम भावनाओं को भड़का रहे हैं -सदियों /दशकों पुराना जो मामला हल होने के कगार पर है उसे और उलझा देना चाह रहे हैं ...आखिर भारत के बुद्धिजीवी कब अपने सामजिक निसंगता के ढपोरशंखी शुतुरमुर्गी सोच ग्रंथि से उबरेगें ?
आज समय का तकाजा है मुसलमान भाई इन दुरभिसंधियों को पहचाने ओर विशाल हृदयता का परिचय देते हुए राम का मंदिर बनाए जाने की सहर्ष अनुमति दें ताकि आम हिन्दू जो सहज ही संस्कारों से भोला भाला ओर उदारमना होता है आगे बढ कर उसी परिसर में ही एक इबादतगाह बनाए जाने में मदद करे ..यह साहचर्य ओर सद्भाव की एक मिसाल होगी ...इतिहास ऐसे मौके बार बार नहीं देता ..अगर अब चूके तो आने वाली पीढियां आपको और कौम को भी माफ़ नहीं करेगी ...चन्द सिरफिरों के कारण हम अपने बच्चों की अमानत में खयानत नहीं कर सकते ....
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शायद बुद्धिजीवी होना ही समस्या की जड़ है !!.....और उनकी निश्चित रूप से वह इस समस्या से ऊपर कहीं और दृष्टि लगी हुई है !!
जवाब देंहटाएंयह भी देखें!
सही पहलू सब जानते हैं :)
जवाब देंहटाएंफिर भी ... ये चर्चा बहुत बड़ी है ..पढेंगे आराम से
इससे दूसरा द्रष्टिकोण भी पता चल जायेगा :)
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसूर्य खिल गया निर्णय का जब, फिर भी चढ़ी उदासी है,
जवाब देंहटाएंबहने दें अँसुधार, समय की सरयू कब से प्यासी है।
आपसे समहत ।
जवाब देंहटाएंराम भारतवासियों के रोम रोम में बसा है । उसके अस्तित्त्व पर कोई भेद हो ही नहीं सकता ।
राम के नाम पर राजनीति सही नहीं ।
पिछले दो-तीन दिनों में कुछ स्यूडो-सेकुलरों की पोस्ट्स मैंने सरसरी तौर पर देखी हैं. पढ़ने लायक तो ये लोग कभी होते ही नहीं हैं, तो ऐसी जेहमत नहीं उठायी.
जवाब देंहटाएंलेकिन मैंने एक बार फ़िर पाया कि राष्ट्रवादी लोग अपनी टिप्पणियों समेत वहां मौजूद हैं. ये बात हमेशा हैरान करती है. राष्ट्रवादियों को क्या बात मजबूर करती है कि इन बदबूदार डस्टबिन्स में जाकर झांकने के लिये?
कमाल है कि एक कोने में पड़े गंधाते इन कचड़ा पर्वतों को कुरेदने और इनकी गंद तक आम पाठक को पहुंचाने का रास्ता वास्तव में इनके विरोधी ही देते हैं. राष्ट्रवादी लोग इनकी ओर से मुंह फ़ेर लें और पूरी तरह अवहेलना करें तो इस कचड़ा मार्केट को सूखते देर नहीं लगेगी. मगर अफ़सोस कि ऐसा होता नहीं है.
इस मामले में स्वयं इन लम्पटों से सीख लेने की जरूरत है. कितनी बार आप किसी राष्ट्रवादी विचारक के ब्लॉग पर इन स्यूडो-सेकुलरों की उपस्थिति नोट करते हैं? एक सोची-समझी रणनीति है इनकी लेकिन राष्ट्रवादी समझ नहीं पाते.
भाड़ में जाने दीजिये इन्हें. आप तो अपनी कहिये.
हर हिन्दुस्तानी में राम राम है इसी लिए उदार है ...पर राम के नाम पर राजनीति करने वाले लोगों को क्या कहें ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमिश्र जी बहुत बहुत साधुवाद. - अपने अभी मात्र
जवाब देंहटाएंजगदीश्वर चतुर्वेदी जी का यही लेख पढ़ पाए हैं. इनके बाकी लेख पढ़ का इनके चरित्र, इनके नाम, और इनकी राष्ट्रीय पर ही प्रशन चिन्ह लग जाता है.
अरविन्द जी कृपया आप Ghost Buster जी की प्रतिक्रिया कम से कम दस बार पढ़ें !
जवाब देंहटाएंआपकी विद्वता के कायल होने के बावजूद आपसे शिकायत ही यही है कि आप नकारात्मक चीजों की तरफ बहुत शीघ्र उन्मुख होते हैं ! इस तरह से अनचाहे ही ऐसे लोगों को प्रोत्साहन भी मिलता है और प्रचार भी !
सबको मालुम है कि इस समय कम्युनिष्टों के पिछवाड़े में पेट्रोल घुसा हुआ है और बिलबिलाते हुए घूम रहे हैं ! कल तक यही तोताचश्म लोग अदालत का सम्मान करने की नसीहतें देते घूम रहे थे.... आज ये अदालत की अवमानना कर रहे हैं !
मैं तो चाहता हूँ मंदिर से पहले इन जैसे लोगों की जांच और शोध होनी चाहिए थी कि आखिर ये किस 'मेटल' के बने हैं !
मेरा सोचना थोड़ा अलग है. मुझे लगता है कि मंदिर-मस्जिद दोनों बने से अच्छा था कि ना मंदिर बने ना मस्जिद, उस विवादित भूमि का सरकार द्वारा अधिग्रहण कर लिया जाता. पर माननीय न्यायालय का निर्णय है, उसका सम्मान करना चाहिए. असंतुष्ट पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में जाने के लिए स्वतन्त्र है.
जवाब देंहटाएंखैर, जैसी गाली-गलौज यहाँ हो रही हो, वहाँ कुछ कहना खुद को भी उसी श्रेणी में ले आना होगा... आपको बेनामी कमेन्ट मिटा देना चाहिए...
लाल चश्मे से देखने वाले कभी राष्ट्र वादी हो ही नहीं सकते , इतिहास गवाह है
जवाब देंहटाएंजब तक ये भारतभूमी ऎसे छद्म बुद्धीजीवियों और इस प्रकार की विचारधाराओं को पराश्रय देती रहेगी, तब तक धर्मनिरपेक्ष राज्य की हजारों-हजार वर्ष पुरानी परम्परा वाला, उदात्त और मनुष्य जाति-मात्र को खुला महान देश, इसी प्रकार शुद्ध धार्मिक-साम्प्रदायिक अंतर्कलहों का विशाल बाजार बनाया जाता रहेगा.
जवाब देंहटाएंऎसे लोगों के रहते किसी भी न्यायालय का कोई फैसला हिन्दू-मुसलमान के चित्त को एक नहीं कर पाएगा...सिर्फ और सिर्फ इन दुर्बुद्धिजीवियों के चलते....आज हिन्दुओं में भी जो साम्प्रदायिकता की बढोतरी देखने को मिलने लगी है, उसके पीछे भी कारण यही लोग हैं..... बाकी इन लोगों (कम्यूनिस्टों) के पल्ले अब रह ही क्या गया है...पूरी तरह से हाशिये पर धकेल दिए गए ये लोग अल्पसंख्यकों(इस्लाम)के मोहरे चलते चलते, वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त को लात मारकर आज ये जातिसंघर्ष में ही अपने लिए सम्भावनाऎं खोजने में लगे हैं. लेकिन ये लोग नहीं जानते कि "राम" अब सिर्फ एक नाम भर नहीं रह गया है....वो पूरी तरह से "रामबाण" की शक्ल ले चुका है.....छूटा तो फिर बचना असम्भव हैं!!!
आज हम सब को इन ऊल्लू के पट्ठो की सारी चाल समझनी चाहिये जो अपना नाम, अपनी रोटियां ओर अपनी वोटो के लिये हमे आपस मै लडवा कर खुद ऎश करते है ओर हमे भुखे मरने पर मजवुर करते है, तो आओ सब मिल कर सब से पहले इन लोगो के ही पत्ते काटे ओर मिल जुल कर रहे,जहां एकता होगी वहां खुशहाली भी जरुर आयेगी, वेसे इन बुद्धिजीवी से गांव के अनपढ बुजुर्ग ही भले जो अपने अनुभवो से हम सब को सही रास्ता दिखाते है
जवाब देंहटाएंराम के अस्तित्व लो ललकारना .... कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों को शुक्र मनाना चाहिए की वो राम द्वारा परिपालित समाज में हैं .... तभी इतना बोल भी पा रहे हैं .... अन्यथा ...
जवाब देंहटाएंअभी अभी अज़दक पर देशज भाषा में एक चिट्ठी पढ़ कर आ रहा हूँ....और मूड़ कुछ कुछ उसी अंदाज में बन गया है।
जवाब देंहटाएंलेकिन आप ने बात ही ऐसी छेड़ दी कि मूड़ गडबडा गया। वैसे बात आप सही कहे हैं। इन वामपंथियों के बारे में इतना जरूर कहूंगा कि इनकी एक पॉलिसी चलती है-
जब पावर में रहो तो नाक में दम किए रहो....जब पावर में न रहो तो हर एक बात में नाक घुसेडे रहो.....और जब नाक घायल हो जाय तो नककट्टे बने बिलबिलाते रहो कि हम तो जनता के लिए ही नाक कटवाए।
यह बात केवल वामपंथीयो के लिए ही नहीं...बाकी सभी पार्टियों पर भी लागू होती है लेकिन वामपंथियों के मामले में एक बात एक्सट्रा इसलिए है क्योंकि यह नाक के साथ साथ अपना मगज भी कटाते रहते हैं कि कहीं ज्यादा बढ़ न जाय।
पहले मैं वामपंथियों को भारतीय राजनीति में बाकी पार्टीयों के मुकाबले कुछ अकल वाला मानता था..लेकिन यह बाद में पता चला कि उनका अकिल छांटा हुआ अकिल है....ज्यादा बढ़ने नहीं दिया जाता....बोनसाईकरण कर दिया जाता है मगज का कि इतने में ही सोचना है इससे ज्यादा नहीं।
आपके लेख में मैंने अपने ही विचारों को पाया | फैसले के पहले सभी पक्ष,सभी राजनीतिक दल और सभी बुद्धिजीवी उच्च न्यायालय के फैसले को मानने की बात कर रहे थे | अपनी पसंद का फैसला न आने पर अब कुछ और कह रहे हैं | आपके लेख में मैंने अपने ही विचारों को पाया | फैसले के पहले सभी पक्ष,सभी राजनीतिक दल और सभी बुद्धिजीवी उच्च न्यायालय के फैसले को मानने की बात कर रहे थे | अपनी पसंद का फैसला न आने पर अब कुछ और कह रहे हैं | एक विशिष्ट सोच के बुद्धिजीवी तो देशद्रोही होने की हद तक बायस्ड हैं |
जवाब देंहटाएंpehli baar aapke blog par aaya hoon aur samay ke abhaw mwin english mein hi type kar raha hoon.... maafi chahunga...
जवाब देंहटाएंyahan ka pata diya mujhe google ne..
ethereal_infinia yaani ki mr arth desai ji ko dhoonda to yahan bhej diya gaya google ke dwara aapki 9th april waali post par....
khair yeh bahut achha lekha hai aapka....
yun hi likhte rahein aage se aapke blog par aata rahoonga...
aabhaar...
idhar bhi padharein...
http://i555.blogspot.com/
बात नकटों और मगजकटों तह आ पहुँची है। अब हम का कहूँ?
जवाब देंहटाएंमाट्साब, भूत भंजक और सतीश जी से सहमत हूँ। मुक्ति जी ने मन्दिर मस्जिद एक ही जगह होने का विरोध कर मेरी सोच को सहारा दिया है। उससे आगे यह कहना है कि अधिग्रहण के बाद सरकार सोमनाथ मन्दिर की तर्ज पर वहाँ मन्दिर बना दे।
देखिए पत्थर राह में हो तो उसे तोड़ कर हटा दिया जाता है, उस पर सिर नहीं पटका जाता। जनता यह काम करती रहेगी। बस उसकी याददाश्त को ताज़ा रखे रहना होगा।
आप ने मोर्चा लेकर ठीक ही किया। सेकुलरी घुट्टी पीकर अस्पताल, स्कूल वगैरह की बात करने वालों को कुछ तो अक्ल आएगी।
इस्लामी ज़िहादी हुए या वामपंथी, इनके सुर ताल हमेशा उल्टे और विरोधी रहे हैं। और तो और अहमदी, शहाबुद्दीन सरीखों को पढ़ सुन कर यह पुख्ता सा हो चला है कि ये अपनी हठधर्मिता दिखाएँगे ही, चाहे कितने भी शिक्षित हों या उदार परिवेश में रह रहे हों।
इनसे किसी भी तरह की सदाशयता की आशा करना बेकार है। अभी समर शेष है। प्रतीक्षा कीजिए।
@ . कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों को शुक्र मनाना चाहिए की वो राम द्वारा परिपालित समाज में हैं .... तभी इतना बोल भी पा रहे हैं .... अन्यथा ...
जवाब देंहटाएंदिगम्बर नासवा जी ने क्या खूब बात कही है!
लेकिन कभी कभी प्रतिरोध बहुत आवश्यक हो जाता है नहीं तो कुत्ते भौंकना छोड़ कर मुँह चाटने लगते हैं।
वामपंथ याने उल्टी सोच । इन जैसे लोगों को ऐसी छूट और किस देश और काल में मिली है की नाम तो आप अपना हिन्दू रखो और हिंदुओं को ही गरियाओ ।यह इस हिन्दू बहुल राज्य में ही संबहव है ।
जवाब देंहटाएंएक मुहिम प्रारम्भ होनी चाहिए की जो छद्म हिन्दू नाम धारी है वे अपना कोई और नाम रखें जिससे उनकी उचित पहचान हो सके । आशा है हिन्दू संस्थाएं इस पर भी ध्यान देंगी ।
कहीं मैंने एक लंबी सूची पढ़ी है जिसमे बड़े बड़े लोगों का नाम है जो सुनने में तो हिन्दू लगता है लेकिन उनका धर्म हिन्दू नहीं है । प्रणव (जेम्स) रॉय, अरुंधति रॉय, आनंद शर्मा ।
ये नाम तो अपना जगदीश्वर रखे हैं जिसका संबंध राम से है और राम का ही विरोध !! महान ??
आदरणीय अरविंद जी
जवाब देंहटाएंदेखिए , खिसियाई बिल्लियां खम्भे नोचती ही आई हैं
नई बात नहीं । ऐसा श्वान रुदन ब्लॉग जगत में जगह जगह देखा है । हराम का खाने के अभ्यस्तों के यहां ही हरामखोरों का हिस्सा - पानी तय होता है । ये जब हक़ की बात करते हैं तो उसमें येन केन प्रकारेण कैसे भी अपनी उदर पूर्ति लक्ष्य होता है न कि हक़ माने न्याय सम्मत अपने हिस्से का अधिकार
यही इन जूठन खाने वालों के साथ है ।
बेहतर है कि इनके ठिकानों पर जा'कर कुछ न कहा जाये ।
जगदीश्वर चतुर्वेदी जी के अयोध्या फैसले पर विचार और मेरा प्रतिवाद
जवाब देंहटाएंकामरेड चतुर्वेदी इतने भोले भी नहीं हैं कि अपने कुतर्कों की दरारें न पहचानते हों - झूठ फैलाना उनकी सैद्धांतिक मजबूरी हो सकती है।
छद्म धर्म निरपेक्षी बुद्धिजीवियों का ढार ढार आंसू बहाना
कम्युनिस्ट तो परिभाषानुसार धर्म-विरोधी होने चाहिये, अगर वे धर्म-निरपेक्ष (या इसलाम-परस्त) होने का ढोंग रचाने लगें तो यह ढोंग ही अपने आप में उनकी असलियत खोलने के लिये काफी है।
क्या कहा जाए अब ...
जवाब देंहटाएंदेश के हर नागरिक को संतुलित सोच की जरुरत है ...मगर संतुलित बने कैसे ...!
अयोध्या पर आये निर्णय पर कुकुरभुक्क में अधिकांश वे लोग सम्मिलित है जो चोरी-छिपे या खुले आम एन जी ओ चला रहे हैं और पैसे देनें वालों की चाकरी कर रहे हैं। इस देश में एन जी ओ’स की ओट में अत्यंत देश और हिन्दू समाज विरोधी भांति-भांति के पाप बोये जा रहे हैं। अरविंद जी को स्पष्ट सत्य कहनें के लिए ह्रदय से बधाई।
जवाब देंहटाएंधीरज धरें !
जवाब देंहटाएंIt's a brilliant logical rebuttal Arvindji :-)) Hats off :-))
जवाब देंहटाएंUnless the Hindu community wakes up from slumber of ignorance and learns to offer logical explanations in this aggressive fashion ,the blockheads from JNU and other institutions will keep on barking like a mad dog..
There is a reason why these fucking bastards from these institutions have gained grounds.(Sorry ! I never use hardcore expressions but then it's demand of time.)It's because we Hindus never learnt the art to offer logical rebuttals in an aggressive way.We remained confined to our drying rooms treating ourselves to be cultured creatures.No wonder we have developed the art of seeing cowardice as a positive gesture!!!
One thing more the government should shut down institutions like JNU.What's the need of these acamedicians from such institutions if all they have learnt is to offer distorted image of the past ? Whatever be the issue,they lose not time to offer perverse logic? Or should I come to infer that the role of an intellectual or an academician is to create a problem where none exists ?
Arvind K.Pandey
http://indowaves.instablogs.com/
good post....
जवाब देंहटाएंthank you arvind bhaijee....
girjesh bhai ki tippni apni lag rahi
hai ..... shesh .... samar hai.
pranam.
मिश्रा जी ... बहुत ही अच्छी पोस्ट ... कई विषयों पर सोचने पे मजबूर करती है ... ये समय बेहद नाज़ुक है ... इतना ही कहूँगी की जितना हो सके उतने चुप रहा जाए ... ये press conferences , सियासत बाज़ी कभी भी चिंगारी को हवा दे सकती है ...shubhkamnayein
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द पाण्डेय,'There is a reason why these fucking bastards from these institutions have gained grounds.(Sorry ! I never use hardcore expressions but then it's demand of time.)It's because we Hindus never learnt the art to offer logical rebuttals in an aggressive way."
जवाब देंहटाएंजे.एन.यू. वालों को इतनी खूबसूरत गालियाँ देने के लिए धन्यवाद!
हमारे देश की सबसे बड़ी विडम्बना ही यही है कि यहाँ स्वस्थ बहस की गुंजाइश ही नहीं है. और देखिये तो आम हिंदू कितना सहिष्णु होता है कि थोड़े से ही तर्क-वितर्क के बाद तुरंत गाली-गलौज पर उतर आता है.
ऊपर से लेकर नीचे तक की टिप्पणियों पर एक नज़र डालने पर ये समझ में आता है कि ये हिंदुओं की कृपा है कि वे मुसलमानों को इस देश में रहने दे रहे हैं, नहीं तो कबका मारकर भगा देते. और ये भी कि देश में हम जे.एन.यू. वाले बुद्धिजीवी लोग बोल ही बेचारे इसीलिये पा रहे हैं कि हिंदू इतना सहिष्णु होता है कि बोलने देता है... इतना सहिष्णु कि किसी के तर्क करने पर तुरंत उसे बास्टर्ड बना देता है.
इतना बड़ा देश, इतनी जनसंख्या, तो जाहिर सी बात है कि पागलों की भी भरमार होगी। किसी को अपने विचार व्यक्त करने से रोका भी नहीं जा सकता, सो जाहिर है कि भाषणों में ही सही, जूतम पैजार चलती रहेगी। समझदारी इसी में है कि फालतू बातों पर ध्यान न दिया जाए और अपने काम से काम रखा जाए।
जवाब देंहटाएं................
.....ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
han sach kaha aapne kuch tathakathit ua swakatthit buddhijeevion ka ek varg hai jinka liye 24 ghante kisi na kisi samsya pe aansuu bahana fashion hai ...aur samsya nahi milti hai to dhoondh ke aansu bahate hain ...khair... jo bhi faisla kiya gaya jo bhi tarq diye gaye unak main samman karta hun ..han humare muslim bhaiyon ke sangathan ne laakhon rpsye mandir nirmaan me daan karne kee peshkash kee hai ..ab koi kahe in buddhijeeviyon ko ki humare musalman bhaiyon se hi sabak len aur saurahrd banaye rakhne me madad karen
जवाब देंहटाएंहमारी राजनीती किसी भी राष्ट्रवादिता या संवेदनशीलता से परे है..इसमें कोई शक ही नहीं है.
जवाब देंहटाएंmein 100% sehmat hu aapse
जवाब देंहटाएंhttp://liberalflorence.blogspot.com/
हमारी आस्था किसी एक विचारधारा से बधं जाती है और फिर ताउम्र हम उस विचारधारा से।
जवाब देंहटाएंपर इस पूरी प्रक्रिया में,"आस्था" ही तो महत्वपूर्ण होती है?
" ..यह साहचर्य ओर सद्भाव की एक मिसाल होगी ...इतिहास ऐसे मौके बार बार नहीं देता ..अगर अब चूके तो आने वाली पीढियां आपको और कौम को भी माफ़ नहीं करेगी ...चन्द सिरफिरों के कारण हम अपने बच्चों की अमानत में खयानत नहीं कर सकते ...."
जवाब देंहटाएंबढ़िया बात कही आपने निस्संदेह बेमिसाल सद्भाव का माहौल बनेगा ! शुभकामनायें !
@अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंतनिक कूल डाउन ...इतना फ़रिया के बात बोलने की बिना भी बात समझ आती है ..
जैसे काबुल में सभी घोड़े नहीं होते हैं वैसे इस देश के कई शिक्षा संस्थानों में भी सभी गधे ही नहीं हैं
कुछ उच्चैश्रवा घोड़े भी हैं ,कम से कम उनका तो अपमान न करे .
इन लोगों को वह साक्ष्य क्यों नहीं दिख रहा है जिसे वैज्ञानिकों ने इन्हें दिखाया है -ये बार बार मस्जिद मस्जिद क्यों कह रहे हैं ..
हिन्दुओं -बौद्धों में हमेशा से ऐसे ही लोग रहे हैं जिनके चलते यह देश हजार वर्ष गुलाम रहा ,,उधर आक्रान्ता टूटे पड रहे थे और बौद्ध भिक्षु निसंग हकर बुद्धं शरणम गच्छ बुद्धं शरणम गच्छकहते हुए जंगलों की ऑर रुख कर रहे थे ...
इतिहास इसलिए ही खुद को दुहराता है कि लोग उससे सीख नहीं होते ...
एक मस्जिद का ढांचा जो कभी वस्तुतः कभी मस्जिद रही ही नहीं पर इतनी हाय तोबा -मुस्लिमों से बढाकर हिन्दुओं में ?
हैरत की बात है -मेरा तो खुद का जीन खुमैनी परिवार का है(जीनोग्रैफी ने साबित किया है http://indianscifiarvind.blogspot.com/2008/06/blog-post_25.html ) मगर अपने संस्कारों से मैं हिन्दू हूँ -क्षद्म हिन्दू नहीं ,निखालिस २४ कैरेट हिन्दू ......तो मैं अपने आराध्यों अपनी पूजा पद्धति से क्यों समझौता करून जब अगला सुनने को तैयार नहीं -यहाँ तो एक तिहाई जमीन हम दे ही रहे हैं ....मालूम है सुई की नोक के बराबर जमीन न मिलने से यहाँ महाभारत भी हो चुका है .......
जो लोग मस्जिद मस्जिद चिल्ला रहे हैं उन्हें बी बी सी की इस रिपोर्ट को भी पढना चाहिए ...
http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2010/10/101002_asi_gallery_mb.shtml
.
मुझे तो आपके द्वारा विध्वंसकारी सोच रखने वाले बुध्दिजीवियों को महत्व देना ही खल रहा है। जो अपनी बात रखने के लिए मोहन भागवत जी की तश्वीर लगाते हैं, वाजपेयी जी का गुणगान करते हैं और हिन्दू विरोधी बात करने वाले को ही धर्मनिरपेक्ष मानते हैं। जब तक वाजपेयी जी समझाते रहे नहीं समझे अब माननीय उच्च न्यायालय ने फैसला उनके विचारों के विपरीत सुना दिया तो सर्वोच्च न्यायालय में जाने के बजाय माननीय उच्चन्यायालय को ही कानून की पाठ पढ़ाना शुरू कर दिए। इन्हें तो इनके विद्यार्थी ही ठीक करेंगे..आप क्यों महत्व देते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि ये विद्वान जजों को भी R.S.S. का समर्थक कह दें।
जवाब देंहटाएंये यहाँ भी हैं http://www.pravakta.com/?p=13876
जवाब देंहटाएं@आपसे शिकायत ही यही है कि आप नकारात्मक चीजों की तरफ बहुत शीघ्र उन्मुख होते हैं !
जवाब देंहटाएंमैं इस बात से असहमत हूँ ... मेरी नजरों में ऐसी पोस्ट [इस पोस्ट की बात कर रहा हूँ] जरूरी होती है
आभार आपका :)
प्रवक्ता(http://www.pravakta.com/?p=13876) पर चतुर्वेदी जी के लेख पर मेरी टिप्पणी ...
जवाब देंहटाएंहैरत है कि क्या यह वही कलकत्ता विश्वविद्यालय है जहाँ से कल्याणमल लोढा और आचार्य विष्णुकांत शास्त्री जैसे मनीषी समाज सेवा को कभी आगे बढे थे और अब वहीं अधकचरे ज्ञान वाले पण्डे पहुंच गए हैं!जो अपनी वक्तृता और वाचालता से तथ्यों की उपेक्षा कर नयी नई स्थापनाएं देते रहने और स्व प्रासंगिकता बनाए रहने का चस्का रहता है -पूरी की पूरी मस्जिद एक मंदिर तोड़ तामीर कर दी गयी ..और इन अंधों को यह नहीं दिख रहा ..घडियाली आंसू बहाये जा रहे हैं -दोनों कौमे ऐसे क्षद्माचारियों से दूर रहें ,तभी देश में अमन चैन कायम हो सकता है ......प्रवक्ता वाले बन्धु भी यह सुन लें कि ऐसे लोगों का लेख केवल इसलिए मत लें कि वे नाम भर के बड़े विश्वविद्यालयों में आसीन हैं -ये सब विभागीय विद्वान् हैं देश की जनता के खून पसीने से टैक्स का ७० -८० हजार हर महीने पार कर रहे हैं -आर्म चेयर पर बैठ फतवे जारी करते रहते हैं -जिस दिन इनकी पोल खुलेगी -ये भी लखेद लखेद के मारे जायेगें .....अब हिन्दुस्तान बदल गया है -सावन के अंधों को दीखता नहीं यह !
हर तरफ राजनीति...राम के नाम पर भी.
जवाब देंहटाएं________________
'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .
@arvind mishra जी
जवाब देंहटाएंकहीं इनकी ये मजबूरी तो नहीं जो ये बोल रहे हैं क्योंकि रहना तो इनको कोलकाता में है ?
अरविन्द जी आप से हज़ार बार सहमत .
जवाब देंहटाएं@ ghost buster जी से एक निवेदन .पहले मैं भी आप ही की तरह सोचता था .लेकिन जब कुत्तों की कुकुरहावं बर्दाश्त के बाहर हो जाये तो ' सिंहनाद ' जरूरी हो जाता है .
और कोई इन जगदीश्वर जी से पूछे की अपने जन्मस्थल को चिन्हित कर सकते हैं ?
उस ' जगदीश्वर ' के जन्मस्थान को चिन्हित करने की जरूरत नहीं है .इस देश के रोम रोम में कण कण में बसता है .इसलिए इस देश की आस्था जहां भी समझे वही , उसका जन्मस्थान है . और सिर्फ वही वही ' रामभूमि ' नहीं पूरा देश रामभूमि है .
हम किसी व्यक्ति जो खुद को मसीहा कहे उस से उसकी मसीहाई का लाईसेंस नहीं मांगते और ये भी नहीं पूछते की जनाब आपका ऊपरवाले से कब और कैसे संवाद हुआ था क्योंकि हमारे संस्कारों ने हमें ' अहम् ब्रम्हास्मि ' का उपदेश दिया है बसर्ते हम खुद को वैसा बना पायें .इस देश में पैगम्बर नहीं ' ब्रम्ह ' के जन्म होने की परंपरा है . राम ' ब्रम्ह ' हैं इस धरती भर के सिर्फ उसके एक टुकड़े भर के नहीं .
इस बहाने प्रो. चतुवेदी को टी आर पी मिला :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंI am a proud student of JNU, arvind pandey jee. and even more proud of University of Allahabad where i was before joining JNU. let me inform you that it is not only you who wants to shut this school of fucking intellectual bastards down! There was someone called Pravin Togadiya as well..
जवाब देंहटाएंJust that, please enlighten me that which school of ' fucking intellectual bastards' do you come from? Or, should I ask in your cultural language, bauddhik haramayion ke kis vidyalay se aapka rishta hai vipravatuk?
शुक्रिया सिंह साहब,आपका आगमन और विचार बहुत अच्छे लगे ....कम से कम आपने तो मेरी मनस्थिति को समझा :)
जवाब देंहटाएं@समीर ,
जवाब देंहटाएंचलिए एक बटुक से तो आपने बराबरी कर ली ...
अब चूंकि आपने बटुकद्वय की बात की है तो मुझे भी अपना पक्ष तो रखना पड़ेगा ..
मैं इलाहबाद विश्वविद्यालय से १९८३ में प्राणी विज्ञान से पी एच डी हूँ ....अब अगर आप इलाहाबादी अकादमियां का कल्चर
अप संस्कृति के प्रभाव में भूले न हों तो आप खुद से मेरा सम्बन्ध जोड़ घटा सकते हैं ...
मैने अरविन्द पांडे की यथा इंगित टिप्पणी -अंश नहीं हटाया है और आपने देखा है कई लोग इस आक्रोश से सहमत भी हैं ...
आप इन कारणों की तलाश करें जिनसे ऐसे आक्रोश उपज रहे हैं ..मैं अरविन्द पांडे या आपकी शब्दावली का प्रयोग नहीं करना चाहता क्योकि बिना उसके भी बातें प्रभावी तौर पर कही जा सकती हैं ....मगर इच्छा तो है ..
मगर ताकीद कर दूं की कृपाकर ऐसी भाषा शैली से आप लोग बाज आयें नहीं तो यह पोस्ट एक अप्रिय याद बन जायेगी ...
मुझे और कुछ नहीं कहना है काफी पहले कह चुका हूँ !
ओह सारी ,
जवाब देंहटाएंसमीर नहीं समर -यथा नामो तथा गुणः :)
जो लोग आध्यात्म को सिरे से खारिज़ करते है। धर्म को अफ़िम मानते है। वे किसी के घरेलू(धार्मिक)मामलों में टांग इस दुर्भावना से अडाते है,ताकि कोई साम्प्रदायिक लडाई बंद न हो,और ये कह सकें देखो धर्म लडना ही सिखाता है। मामला सुलट जाना इन्हें रास नहिं आ रहा। वामपंथियो की यही चाल हिंदु मुस्लिम व सभी धर्म समझ ले तो भारत में भी इनका दाना पानी बंद हो जाय।
जवाब देंहटाएंAkshita (Pakhi) bahut dukhi hai. Uska dhyaan diya jaay!!
जवाब देंहटाएंअरविन्द मिश्र जी---
जवाब देंहटाएंउसी विश्विद्यलय से १९९६ से २००२ तक रिश्ता रहा, ताराचंद छात्रावास की उप'जातीय' पहचान के साथ. अन्तःवासी था तो आप समझ सकते हैं की रैगिंग भी दी होगी और वरिष्ठों के साथ क्या रिश्ता रहा होगा.. आपसे भी वही 'सर' वाला रिश्ता है.. पूरे सम्मान के साथ..
पर अरविन्द सर, मेरी टिप्पड़ी में कहाँ कोई 'अप्रिय' लगने वाली बात है? मैंने तो बस अरविन्द पाण्डेय जी के शब्द दोहरा दियें हैं.. और स्वीकार कर लिया है. बस ये पूछा है की सर हम तो जेनयू वाले 'वो' हैं.. आप अपना भी बता दें..
आदेश दें सर, आप एक तो सीनिअर वो भी इलाहाबादी सीनिअर हैं, बिना एक सवाल पूछे टिप्पड़ी वापस ले के माफ़ी भी मांग लूँगा सर.
पर सच बताएं, की क्या मैंने कोई गलत शब्द, गलत भाषा प्रयोग की है? मैंने तो सिर्फ उनके शब्द दोहराए है.. गोरख पण्डे वाले अंदाज में.. और वैसे भी सर, 'मुक्ति' के अलावा कहाँ किसने virodh किया?? तो इस इलाहाबादी/जेनयू वाले को अपना एक सदा सवाल पूछने की अनुमति तो होनी चाहिए सर!
पर आदेश करें, आप को अप्रिय लगा तो डिलीट करने में एक सेकण्ड नहीं लगाऊंगा सर.
देश को नयी विश्वविद्यालयीय जातियाँ मुबारक हों। बहुत अच्छा लग रहा था कि बहस पर स्वस्थ बहस चल रही है, पर लिंक पकड़ कर यहाँ आया तो देखा सबने अपने सम्बद्ध विश्वविद्यालयों की छवि भली भाँति धोकर रख दी है। बहस तो किसी भी स्तर पर नहीं है।
जवाब देंहटाएंगालियाँ सबने सीखी ही होंगी,बोलनी भी आती होंगी और सुनने में क्रोध भी आता होगा। परमहंसीय व्यक्तित्व हो पाना कठिन है आज कल।
मेरी सबसे विनम्र विनती है कि सार्वजनिक मंचों पर अपना वह व्यक्तित्व न दिखायें जो लोगों को हज़म न हो सके।
समर ,
जवाब देंहटाएंस्वागत ,
मैं ८१ से ८३ तक ताराचंद के 6th ब्लाक के तीसरे तल कमरा नंबर ५६ में रहा --मजा आ गया ...
:) क्या कहने मुलाकातें भी कैसी होती हैं ..अब तो यार सात खून माफ़ ! करो न कोई क़त्ल :)
अरविन्द /समर
जवाब देंहटाएंअप दोनों ही मेरे प्रिय हैं ,लड़ाई झगडे नहीं ,बस बंद अभी , तुरंत !
मजा आ गया सर... मेरा पहला पता था ताराचंद ५/८. फिर मैं ४/१८ में चला गया था सर. वहीँ रहा २००२ में जेनयू आने तक...
जवाब देंहटाएंजगदीश्वर चतुर्वेदी जी की आँखों पर वामपंथी चश्मा चढ़ा है , इसलिए उनकी कोई गलती नहीं उन्हें ऐसा ही दिखेगा और वे ऐसे ही बेतुकी बातें लिखते रहेंगे |
जवाब देंहटाएंवाह ,चलिए गिले शिकवे छोड़ते हैं फिर ,देखिये प्रवीण जी भी क्या कह रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंइतनी मुद्दत बाद मिले हो -कोई हम छात्रावासी तो मिला -हम सारे मसलों को मिल बैठकर सुलझा लेगें !
सुलझा क्या लेंगे सर? आप तो बस आदेश करें. मैं वैसे भी मार्क्सवादी लेनिनवादी इलाहाबादी हूँ.. आप का आदेश पार्टी लाइन के अन्दर रहा तो ठीक नहीं तो ९० डिग्री पे झुक के सजा का इन्तेजार कर लूंगा... :)
जवाब देंहटाएंहा हा ......एक युग खंड याद आया और आँखों के कोर भी कुछ नम हो आये ....हम अपना वाद क्यों नहीं चलाते ..खुद राहुल सांकृत्यायन क्यों नहीं बनते ..
जवाब देंहटाएंआत्मदीपो भव !
शुभ रात्रि !
Arvind sir, abhi aap varansi me hain ye to dekh liya. Kya kar rahe hain wahan? Aur kin chhatrawasiyon se sampark me hain? aap aaye nahi the TC alumni meet me. nahee to aapse milne ka awsar mil jata. Dhanya hota main. Par khair..
जवाब देंहटाएं"मार्क्सवादी लेनिनवादी इलाहाबादी हूँ" !! ??
जवाब देंहटाएं@डॉ महेश सिन्हा
जवाब देंहटाएंइलाहाबादी या इलाहावादी ??
@प्रवीण जी
जवाब देंहटाएंसंदर्भ यहाँ है
Samar has left a new comment on the post "नया जमाना वाले जगदीश्वर चतुर्वेदी जी के अयोध्या फ...":
सुलझा क्या लेंगे सर? आप तो बस आदेश करें. मैं वैसे भी मार्क्सवादी लेनिनवादी इलाहाबादी हूँ.. आप का आदेश पार्टी लाइन के अन्दर रहा तो ठीक नहीं तो ९० डिग्री पे झुक के सजा का इन्तेजार कर लूंगा... :)
@डॉ महेश सिन्हा
जवाब देंहटाएंसन्दर्भ समझकर ही पूँछ रहा हूँ ...ज़रा फिर से पढ़ें ....वाद? ....और वादी?
इलाहाबादी या इलाहावादी ??
ये तो जिसने लिखा है वही समझा सकता है । मुझे तो कोई साम्ञ्जस्य नहीं दिखा । अब ये तो इलाहाबादी ही बता सकते हैं की वे कबसे मार्क्सवादी लेनिनवादी हैं
जवाब देंहटाएंइन लोगों के साथ दिक्कत यही है की सारी उम्र एक ख़ास सोच और किताबों के साथ बिता दी और दृष्टि का पूर्ण परिपाक / परिष्कार नहीं हो पाया
जवाब देंहटाएंहालांकि अभी इस अदालती फ़ैसले पर कुछ भी नहीं लिख पाया हूं और सच कहूं तो अभी तो उस फ़ैसले को ठीक से देखा भी नहीं है , फ़िर जिस फ़ैसले पर पहुंचने में अदालत ने साठ साल का समय लिया उसे समझने में जगदीश्वर जी और उन जैसे ,शायद हम जैसे लोग भी हो सकते हैं ,पूरी तरह समझ लेने का दावा करके खुद को ही बहला भर सकते हैं । हां जहां तक राम के अस्तित्व की बात है तो मुझे खुशी है कि मैं भी उस जमात में शामिल हूं जो मानता है कि ..राम को नहीं नकारा जा सकता ....कम से कम भारत में तो नहीं ही ...और हां एक आखिरी बात ....किसी बिंदु पर कुछ सोच कर बस चंद पंक्तियों में उसकी छीछालेदारी कर देना हमेशा से ही सबसे आसान काम रहा है .....और यही हो रहा है
जवाब देंहटाएं@ महेश सिन्हा-- सामंजस्य नहीं दिखा सिन्हा जी क्यूंकि सामंजस्य ही नहीं... वैसे पढ़ते लिखते हो 'बहुवचन' नमक हिंदी विश्विद्यालय वर्धा की पत्रिका का एक अंक देख लें.. उसमे मार्क्सवादी लेनिनवादी इलाहाबादियों पर कुछ अच्छे संस्मरण हैं.
जवाब देंहटाएंऔर हाँ, ये ४५ डिग्री वगैरह इलाहाबाद के छात्रावासों की उपसंस्कृति का हिस्सा हैं, वो शायद आपको समझ आएगा भी नहीं.
१९९६ में एक वामपंथी छात्र संघठन से जुड़ा था, तब से मार्क्सवादी लेनिनवादी हूँ..
अजी ये कोई जगदीश्वर चतुर्वेदी नहीं है, किसी और की प्रोफाइल हैक करके भांड ही भोपू बजा रहे है. और जो फैसला मस्जिद के पक्ष में आ जाता तब देखते आप कैसे सेक्युलर औलादें भारत की जीत, न्यायपालिका की निष्पक्षता की विरुदावलियाँ गाती फिरतीं.
जवाब देंहटाएंअपने आपको धर्मनिरपेक्ष कहने वाले लोग पागल कुक्कुर के काटे हुए मरीज है जिन्हें स्वच्छ पानी से डर लगता है.
और यह जो उस जगह पर स्कूल, अस्पताल, पार्क बनाने की बातें करने वाले क्या अपने घर के आगे रोड चौड़ी करने के लिए अपने घर की दो-तीन फीट की जगह भी देने के लिए सहज राजी हो जायेंगे क्या???? और हो जायेंगे क्यों छोड़ देनी चहिये थी अब तक तो !!!!!!!!!!!!११
मिश्र जी बहुत बढ़िया जवाब दिया है आपने चतुर्वेदी जी को… अयोध्या निर्णय के बाद सारे वामपंथी और सेकुलर लेखक और बुद्धिजीवी कुण्ठा से ग्रस्त हो गये हैं… प्रवक्ता पर पहले मैंने एक सवाल डाला था और बाद में एक पोस्ट में भी वही सवाल दोहराया था कि - किसी लुटेरे आक्रमणकारी द्वारा बनवाई गई मस्जिद वैध कैसे हो गई? का जवाब मुझे अभी तक किसी ने नहीं दिया है…
जवाब देंहटाएंमैंने इसीलिये इस सवाल को आगे बढ़ाते हुए चतुर्वेदी जी और शेष जी से पूछा था कि यदि कसाब ताज होटल पर 300 साल कब्जा कायम रखे तो क्या ताज होटल को मस्जिद में बदला जा सकता है? इसका भी कोई जवाब नहीं दिया उन्होंने…
मन्दिर नहीं था, मन्दिर नहीं था, मन्दिर नहीं था… का भजन गाते फ़िर रहे हैं लेकिन ये नहीं बताते कि बाबर के आने से पहले उस जगह पर क्या था? खाली जमीन भी होगी तब भी अवैध कब्जा तो एक लुटेरे की गैंग ने किया था… तो भारत के मुस्लिम इस अवैध मस्जिद को सीने से चिपकाये क्यों घूम रहे हैं?
आपने भी चतुर्वेदी जी को उचित जवाब दिया है… आपको साधुवाद… एक खतरा भी है कि - कहीं आपको "साम्प्रदायिक" न समझ लिया जाये… :) :) :)
भाई अमित शर्मा जी,
जवाब देंहटाएंस्कूल-पार्क और अस्पताल बनाने की शुरुआत तो दिल्ली में शान्तिवन, शक्ति स्थल, वीर भूमि आदि से करना चाहिये, जहाँ करोड़ों अरबों की ज़मीन पर फ़र्जी कब्जा जमाया गया है…
खासकर नेहरु की कब्र(?) के पास तो चाउ-एन-लाई का मेमोरियल बनाना चाहिये… जो कि बाबर की तरह ही एक आक्रान्ता था और अभी भी अरुणाचल प्रदेश तथा अक्साई चीन का कुछ हिस्सा दबाये बैठा है… :) :) :)
@समर
जवाब देंहटाएंचलो कोई तो है जो ये स्वीकार करता है की उसकी समझ कोई समझ नहीं सकता ।
आप का आदेश पार्टी लाइन के अन्दर रहा तो ठीक नहीं तो ९० डिग्री पे झुक के सजा का इन्तेजार कर लूंगा... :)
5 October 2010 21:07
और हाँ, ये ४५ डिग्री वगैरह इलाहाबाद के छात्रावासों की उपसंस्कृति का हिस्सा हैं, वो शायद आपको समझ आएगा भी नहीं.
कुछ लोगों को ऊल-जलूल बातें करना बुद्धिजीवी बने रहने के लिए जरूरी लगता है. उनकी बातों पर कुछ कहने के बजाय मुस्कुरा देना काफ़ी होता है.
जवाब देंहटाएंएक बात और याद रखें; ऐसा बिलकुल नहीं है कि वे जो सोचते हैं वही कहते हैं. अरे भाई, देश भर में इतनी सारी अकादमियां, संस्थान बिखरे पड़े हैं. उनके इतने सारे पद हैं, आए दिन होने वाले सेमिनार है, नियुक्तियों में एक्सपर्टों की दरकार है.... यह सब पाने के लिए धर्मनिरपेक्ष दिखना ज़रूरी है. और यह तब तक कहां संभव है, जब तक कि ....
@mahesh ji--
जवाब देंहटाएंआप बस थोडा सा गलत समझ गए. मैंने ये नहीं कहा की आप मेरी बात नहीं समझेंगे.. मैंने कहा की आप वह छात्रावासीय उपसंस्कृति नहीं समझेंगे जो इलाहाबाद की है.. जैसे मैं नहीं समझूंगा की रायपुर के छात्रावासों में क्या संस्कृति है.
और दूसरी बात, इलाहाबद में सीनिअर का मतलब सिनिअर होता था.. भगवान्.. जो कह दे सब सही.. मानना ही होता था.. मैंने सम्मान वाला हिस्सा मान लिया था, अंध अनुसरण वाला नहीं. इसीलिए किसी वरिष्ठ की कोई बात गलत लगती थी तो विरोध करता था और फिर ४५ डिग्री पर झुक जाता था.. सजा के लिए.(अक्सर मुर्गा बनना होता था, पर कभी कभी दंड बैठक भी).
तो बस सन्दर्भ यही था साहब.
बहुत ही अछे विचार है आपके!!!
जवाब देंहटाएंvoid main(void)
{
if(RSS=SIMI)
{
then day=night;
black=white;
good=bad;
Congress=honesty;
you=sensibility;
}
else
{
print_r("TEP STOP!!! EHEHE! We are not secular");
}
return "ZERO";
}
बहुत ही अछे विचार है आपके!!!
जवाब देंहटाएंvoid main(void)
{
if(RSS=SIMI)
{
then day=night;
black=white;
good=bad;
Congress=honesty;
you=sensibility;
}
else
{
print_r("TEP STOP!!! EHEHE! We are not secular");
}
return "ZERO";
}
@Arvind Mishraji
जवाब देंहटाएंI appreciate the way you have taken note of my remarks on your post.At least,you bothered to trace the cause of such outburst.Believe me I am more hurt when I deliver such a remark.It's rarest of rare case for me.Whether the concerned souls were affected or not ,I am definitely theone who is most affected. May be the roots of such remark lies in the words of Nandanji :किसी नागवार गुजरती चीज पर मेरा तड़प कर चौक जाना ,उबलकर फट पड़ना या छटपटाना मेरी कमजोरी नहीं है मै जिंदा हू इसका घोषणापत्र है “
A reader on your post has strongly reacted to my usage of such a harsh term for the JNU scholars.I didn't find it fit and proper to post an explanation on your post.A separate explanation as an article : सेकुलर आत्मा को पत्र: जो राम से जुडी बात करते है वे असल बास्टर्ड होते है !!!! " has been posted on wordpress.Have a look at this article.I never thought that part two of Ayodhya's Hindi article would attain this shape.I was busy giving shape to another article in English on the same issue exploring the verdict from purely legal perspective but the strange turn of events led to this present Hindi article.
Link : wp.me/pTpgO-1Q
You have rightly pointed out that there is no need for me to paint all the acamedicains of JNU in one colur.True,doing so will be a logical fallacy of serious type wherein on the basis of few you enter into universalization !!!!!However,having said that, I should point out just two examples to highlight the nefarious designs of JNU professors.It's really strange that when Naxalites brutally murderded the policemen at Dantevada some months ago,there was celebration going on in some corner of the JNU amidst slogans like " 'India murdabad, Maovad zindabad' ..Great Act !Such by products will shape the future of India in big way the Karat way !!! Great Freedom Inside India's premier Central University !!!
**************
@Arvind Mishraji
जवाब देंहटाएंI appreciate the way you have taken note of my remarks on your post.At least,you bothered to trace the cause of such outburst.Believe me I am more hurt when I deliver such a remark.It's rarest of rare case for me.Whether the concerned souls were affected or not ,I am definitely theone who is most affected. May be the roots of such remark lies in the words of Nandanji :किसी नागवार गुजरती चीज पर मेरा तड़प कर चौक जाना ,उबलकर फट पड़ना या छटपटाना मेरी कमजोरी नहीं है मै जिंदा हू इसका घोषणापत्र है “
A reader on your post has strongly reacted to my usage of such a harsh term for the JNU scholars.I didn't find it fit and proper to post an explanation on your post.A separate explanation as an article : सेकुलर आत्मा को पत्र: जो राम से जुडी बात करते है वे असल बास्टर्ड होते है !!!! " has been posted on wordpress.Have a look at this article.I never thought that part two of Ayodhya's Hindi article would attain this shape.I was busy giving shape to another article in English on the same issue exploring the verdict from purely legal perspective but the strange turn of events led to this present Hindi article.
Link : wp.me/pTpgO-1Q
You have rightly pointed out that there is no need for me to paint all the acamedicains of JNU in one colur.True,doing so will be a logical fallacy of serious type wherein on the basis of few you enter into universalization !!!!!However,having said that, I should point out just two examples to highlight the nefarious designs of JNU professors.It's really strange that when Naxalites brutally murderded the policemen at Dantevada some months ago,there was celebration going on in some corner of the JNU amidst slogans like " 'India murdabad, Maovad zindabad' ..Great Act !Such by products will shape the future of India in big way the Karat way !!! Great Freedom Inside India's premier Central University !!!
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@Arvind Mishraji
जवाब देंहटाएंI appreciate the way you have taken note of my remarks on your post.At least,you bothered to trace the cause of such outburst.Believe me I am more hurt when I deliver such a remark.It's rarest of rare case for me.Whether the concerned souls were affected or not ,I am definitely theone who is most affected. May be the roots of such remark lies in the words of Nandanji :किसी नागवार गुजरती चीज पर मेरा तड़प कर चौक जाना ,उबलकर फट पड़ना या छटपटाना मेरी कमजोरी नहीं है मै जिंदा हू इसका घोषणापत्र है “
A reader on your post has strongly reacted to my usage of such a harsh term for the JNU scholars.I didn't find it fit and proper to post an explanation on your post.A separate explanation as an article : सेकुलर आत्मा को पत्र: जो राम से जुडी बात करते है वे असल बास्टर्ड होते है !!!! " has been posted on wordpress.Have a look at this article.I never thought that part two of Ayodhya's Hindi article would attain this shape.I was busy giving shape to another article in English on the same issue exploring the verdict from purely legal perspective but the strange turn of events led to this present Hindi article.
Link : wp.me/pTpgO-1Q
You have rightly pointed out that there is no need for me to paint all the acamedicains of JNU in one colur.True,doing so will be a logical fallacy of serious type wherein on the basis of few you enter into universalization !!!!!However,having said that, I should point out just two examples to highlight the nefarious designs of JNU professors.It's really strange that when Naxalites brutally murderded the policemen at Dantevada some months ago,there was celebration going on in some corner of the JNU amidst slogans like " 'India murdabad, Maovad zindabad' ..Great Act !Such by products will shape the future of India in big way the Karat way !!! Great Freedom Inside India's premier Central University !!!
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Part II Of My Comment
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In December 1990, the leading JNU historians and several allied scholars, followed by the herd of secularist pen-pushers in the Indian press, have tried to raise suspicions against the professional honesty of Prof. B B Lal and Dr. S P Gupta, the archaeologists who have unearthed evidence for the existence of a Hindu temple at the Babri Masjid site. Rebuttals by these two and a number of other archaeologists have received minimal coverage in the secularist press.
I have been thinking of the behavior of our Marxist friends and historians, their unprovoked slander campaign against many collegues, hurling abuses and convicting anyone and everyone even before the charges could be framed and proved. Their latest target is so sober and highly respected a person as Prof. B B Lal, who has all his life never involved himself in petty politics or in the groupism so favorite a sport among the so-called Marxist intellectuals of this country. But then slander is a well-practised art among the Marxists.”
(source: Negationism in India - By Koenraad Elst p. 37 - 41).
"Whites appoint Indian proxies to let them pull strings from behind the scenes, but through such intermediaries, they impose their epistemologies, institutional controls, awards and rewards, all in the name of universal thought. "
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"Rao had set up an Ayodhya cell in his office, headed by Naresh Chandra. In an interview to this reporter in October 1992, Chandra was strongly critical of the attempts made by a team of Jawaharlal Nehru University (JNU) professors to prove historically that Ram was not born in Ayodhya. “Progressive historians (like Romila Thapar, S Gopal and others) are more keen to present their modern, secular credentials.They want to sound superior and informed, but we find their writings opinionated and argumentative.”
He added: “We would be rejecting history if we were to say that for the last 400 years (since Mir Baqi, a Shia from Iran, built a mosque at the disputed site), Hindus and Muslims have been living happily and sharing the same building for puja and namaz. There has obviously been a temple here. Whether it belonged to Ram or someone else, we don’t know because there isn’t enough data. But the fact is there have been bitter conflicts over this place, and we cannot brush this aside, as the JNU professors have done.”
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Arvind K.Pandey
http://indowaves.instablogs.com
@Arvind
जवाब देंहटाएंप्रसिद्ध साईंस फिक्शन उपन्यास द ब्रेव न्यू वर्ल्ड में लोगों को एक ख़ास विचारधारा की ओर उन्मुख करने के लिए प्रयोगों का जिक्र था ....बचपन में जैसे ही बच्चा गुलाब की ओर उन्मुख होता था उसे बिजली का शाक दिया जाता था ,धर्मपुस्तक उठाता था तो भी शाक ..दास कैपिटल उठाता था तो मीठा चाकलेट -कहने का मतलब विज्ञान कथाओं में ऐसे भविष्य की परिकल्पना पहले ही कर ली गयी थी जिसमें ख़ास वातावरण से लोगों की सोच बदला दी जाय -मनो विज्ञान में ऐसे प्रयोगों को कंडीशंड रिफ्लेक्स कहते हैं .....जार्ज आर्वेल ने इसलिए अनिमल फार्म में एक जुमला उछाला था कि सब जानवर समान होते हैं मगर कुछ ज्यादा समान होते हैं ....ऐसे ही कुछ ज्यादा समान लोग लगता है देश के बड़े विश्वविद्याय में पलते हैं .मुझे भी यह सच लगने लगा है अन्यथा संस्कृत साहित्य अध्येता विदुषी का इतना विचार परिवर्तन मेरे लिए भी असहज है -मगर मैं इस वैचारिक द्वंद्व को नितांत वैयक्तिकता का पुट नहीं देना चाहता ...क्योंकि मैं इस शाश्वत विचार में विश्वास रखता हूँ -वादे वादे जायते तत्व बोधः ...
हमें इंतज़ार करना होगा सदबुद्धि की पुनः प्रतिष्ठा का .....
मेरे कुछ स्पष्ट विचार हैं -बाबरी मस्जिद का अधोपतन भारतीय शौर्य का उन्नयन था ....एक राष्ट्रीय शर्म का प्रतिकार !
बहुचर्चित जगह रामजन्मभूमि है इसमें क्यों इतना सवाल? राम जन्मभूमि अयोध्या में ही तो होगी ..हम मक्का मदीना में तो नहीं कह रहे ....
काशी विश्वनाथ मंदिर का आधार कोई भी जाकर देखे श्रृंगार गौरी की पूजा होती आयी है और वहां हिन्दू मान्यताओं के चित्र हैं ..
मैं ऐसी सरकार चाहता हूँ जो ऐसे सभी मस्जिदों को विस्थापित करके वहां की मूल संरचना के अनुसार मंदिर निर्माण करे ...और इस अनुष्ठान के आरम्भ में किसी छद्म धर्म निरपेक्षी की रक्त बलि दे मगर खबरदार उसमें मेरा कोई मित्र न हो {हा हा :)
}
अरविन्द जी आपने जोरदार लिखा है मगर मेरी बात मानिए व्यक्तिगत सम्बन्धों की बलि मत दीजिए --आप ही सोचिये भला की ऐसे ही बलि देते जायेगें तो फिर असली बलि के वक्त ये कहाँ मिलेगें :)
इंतज़ार करो देखो ..जैसा राव साहब ने किया था .आपने प्रधान मंत्री जी ने ..मरणोपरांत बार बार हैट्स आफ !
देखिये, यह राजनीति कब बंद होती है....
जवाब देंहटाएं__________________________
"शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...
कानून का पालन और न्यायपालिका के प्रति हमें श्रद्धा रखनी चाहिए....यही संविधान सम्मत है और न्याय सम्मत भी.....!
जवाब देंहटाएंइंडिया टुडे का संपादकीय पूर्वानुमान सही निकला. फैसले के बाद सिर्फ फैसले की खबर आई और कोई खबर नहीं. कुछ अगले दिन तक का भी इंतजार करते रहे. बहुतों की उम्मीदों पर पानी फिरा. इस बार लगा कि वास्तव में no news is good news होता है.
जवाब देंहटाएंासल मे इन लोगों के साथ समस्या ही यही है कि ये साधन को ही साध्य समझने लगते हैं । आज धार्मिक होने से पहले अध्यात्मिक होना जरूरी है। जब ैन लोगों को ये बात समझ आ जायेगी या इसमे फर्क नज़र आयेगा तभी इन्हें इन्सानियत भाईचारे और और प्रेम भाव का महत्व पता चलेगा। देश मे कितने मन्दिर हैं जिनकी दुर्दशा देख कर दुख होता है पहले जो है उसका कूडा तो साफ करें बाकी तो बाद मे देखा जायेगा। आपने सही कहा है राम तो हमारे रोम रोम मे है बस अपने अन्दर झाँकने की जरूरत है उनका भरत के लिये त्याग याद रखने की जरूरत है। क्या राम का चरित्र धारण किये बिना राम को पाने की लालसा राम को पा लेगी?कदापि नही। राम ही इनको बुद्धी दे। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही कहा है१ मैं आपकी बातों से सहमत हूँ! देखते हैं आख़िर ये राजनीती कब तक यूँही चलती रहेगी!
जवाब देंहटाएंबेशक 'स्यूडो-सेकुलरों ने ही देश का सब से अधिक नुक्सान किया है.
जवाब देंहटाएं-एक आम भारतीय नागरिक ने शांति और सुलह के इस फैसले को स्वीकार किया है.
I agree with the verdict and many people are in relief now..
जवाब देंहटाएंनवरात्रा स्थापना के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंजी अरविन्द जी इन बड़े लोगों का प्रभुत्व तो इस कदर हावी है कि किसी भी तरह ज्ञान से निकलना ही नहीं चाहते .....
जवाब देंहटाएंइनके ज्ञान के आगे तो हम भी बौने हो जाते हैं .....
ज्ञान इनका शब्दकोश इनके .....
और क्या कहूँ मैं तो भुक्तभोगी हूँ .....
जो निर्णय आया है वो शिरोधार्य होना चाहिए -
जवाब देंहटाएं१. न्यायधीशों ने एक दिन में ये निर्णय नहीं सुनाया , कई साल लगे, कई न्यायधीश बदले
२. हर धर्म के न्यायधीश इस मुकदमें में शामिल रहे , हाल ही में निर्णय सुनाये जाने के समय भी एक मुस्लिम न्यायधीश इस संघपीठ के सदस्य थे
३. भारत में धर्म निरपेक्षता की परिभाषा को हर कोई अपने आप से ढालता रहता है और ये बुद्धिजीवी हमेशा अंग्रेजों वाली मानसिकता के द्योतक बन कभी दिल का निर्णय सुनाने को राजी ही नहीं होते
४. अगर बुद्धिजीवी इतने ही देश के लिए संवेदना शील है तो फिर इनको पता होना चाहिए कि जब राम की मूर्ति गर्भ गृह में रखी गयी थी, जब मस्जिद टूटी थी और जब निर्णय आया है - हर समय कांग्रेस ही केंद्र में थी जो धर्म निरपेक्षता की जैसे भारत में पहरेदार हो !
५. राहुल गांधी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सिमी से तुलना जिन बुद्धिजीवियों को भाता है क्या वे निरपेक्ष हो सकते हैं ?
ये सब पढ़े लिखे लोग जमीनी हकीकत से दूर अपने आप को विद्वान और मोडर्न साबित करने के चक्कर में अपनी खुद की मौलिकता भी कायम नहीं रख पाते !!
Babli ji se sahmat.
जवाब देंहटाएंYah raajneeti kab tak chalegi?
पुरुषोत्तम श्रीराम जी सब के दिल में बसे है... और सहृदय उदार हमारे राम भगवान् के नाम से चल रही राजनीति ठीक नहीं... और न्यायसंगत जो फैसला मिला है उसको स्वीकारना ही सही है... पर यहाँ तो चैन से कोई जीता नहीं... ना चैन से जीने देता है.. अब उस पर कई लोग मदभेद की हवा से आग को साम्प्रदायिकता की आग को दहकाने का प्रयास कर रहे है... हम सब को एक मत हो कर कोर्ट न्याय को मानना चाहिए नहीं तो ये आग जाने कितनो के घरो को बर्बाद भी कर सकती है..
जवाब देंहटाएंमेरा तो माना यही थी की वहा पर कोई अस्पताल, कोई विद्यालय, कोई सराय खोली जाती जो सभी धर्मो को जातियों को नहीं... मानवता कोई सिंचित करती .. और यह एक दान के रूप में स्वीकार ही कर लिया जाता..मानवता की सेवा के लिए..