यह पोस्ट उन जोड़ों (पति पत्नी) के लिए हैं जिन्हें कई कारणों से,मुख्यतः आर्थिक परिस्थितियों के चलते जीवन में एकाधिक बार एक दूसरे से अलग थलग जीवन यापन के लिए मजबूर होना पड़ता है। कभी गमन फिल्म का एक गीत(ठुमरी) मुझे बहुत संवेदित कर जाता था -आ जा साँवरिया तोहे गरवा लगा लूँ, रस के भरे तोरे नैन.…। जिस पार्श्वभूमि यह ठुमरी दर्शायी गयी है उसमें जीवनयापन की विभीषिका से जूझते मुंबई पहुंचे एक ग्राम्य युवा का सामने से ट्रेनों का अपने 'मुल्क' ' की ओर विवश सा गुज़रते देखना और अपनी सद्य परिणीता पत्नी की याद का मार्मिक चित्रण है. यह ठुमरी मेरे लिए इसलिए भी यादगार बन गयी है क्योंकि मैं उन दिनों दो वर्षीय विभागीय ट्रेनिंग पर था और परिवार पैतृक निवास जौनपुर में था।मैं चाहकर भी दो वर्षों के लिए परिवार मुम्बई न ले जा सका था। भोजपुरी के कितने ही लोकगीत गीत, विरहा,कजरी आदि ऐसे ही वियोग -विछोह से ही उपजे हैं -वियोग और विरह तमाम गीतों के मूल स्थायी भाव है।
भारत की एक बड़ी त्रासदी आर्थिक संकट की भी है जिससे आधी से अधिक आबादी आज भी जूझ रही है। लोगों को इस आर्थिक संकट से उबरने के लिए रोजी रोटी की तलाश में दूर दूर तक निकलना पड़ता है इसके बावजूद कि उनका व्याह हो चुका होता है और अर्धांगिनी को छोड़ उन्हें कमाई के लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की तो यह एक आम राम कहानी है। पहले जमीदारों के कहर से भी नव विवाहित युवा गाँव से पलायन करता था और पत्नी को भगवान के भरोसे छोड़ जाता था। ऐसे तमाम कथानकों पर फ़िल्में भी बन चुकी हैं। युद्ध के लिए सैनिकों को भी यह अमानवीय विछोह की स्थिति झेलनी पड़ती है। समूचे विश्व में सीमा पर तैनात सैनिकों को यह दारुण व्यथा उठानी पड़ती है।
मुझे यह बड़ा कारुणिक लगता है। मैं इस स्पष्ट मत का हूँ कि पति पत्नी को लम्बे विछोह में नहीं रहना चाहिए। इस पहलू को हर नियोक्ता, वेलफेयर राज्य को अवश्य सोचना चाहिए। हाँ कुछ सेवाओं में यह व्यवस्था दी गयी है कि नौकरी शुदा जोड़ों को यथा संभव साथ साथ रहने दिया जाय। मगर जिनकी पत्नियां नौकरी नहीं करतीं उन्हें क्या अनिवार्यतः दूर दूर होने को अभिशप्त होना चाहिए? इस पर सरकारी व्यवस्थायें मौन है. जर्मनी में शादी करते ही वेतन परिलब्धियां बढ़ जाती हैं। पारिवारिक भत्ता स्वीकृत कर दिया जाता है। मगर यहाँ राज्य या केंद्र सरकारों में अभी भी इस व्यवस्था की दरकार है कि पत्नी/बिना नौकरी कर रही गृहिणी को साथ रखने पर अतिरिक्त/पारिवारिक भत्ता दिया जाय. यह शायद कभी विचारणीय भी नहीं रहा है . आखिर वेलफेयर स्टेट की यह कोई प्राथमिकता नहीं होने चाहिए है? बल्कि यह तो अनिवार्य होना चाहिए कि पति पत्नी साथ साथ रहें। मैंने अपने सेवाकाल में देखा है कि अनेक कर्मी बिना पत्नी को साथ रखे पूरी नौकरी काट देते हैं -बड़ा आश्चर्य भी होता है उन पर! क्या परिस्थितियाँ सचमुच ऐसी अमानवीय स्थिति को जन्म देती हैं ? फिर जीवन संगिनी का तमगा आखिर क्यों ?
यहाँ भी राम का आदर्श है-चौदह वर्ष के वनवास में वे पत्नी को साथ ले गए। जबकि परिस्थितियाँ बहुत विपरीत थीं -राजा दशरथ मरणासन्न थे.…… सीता को उनकी सास माओं से उस समय अलग कर अपने साथ ले जाना राम का सचमुच एक बड़ा ही दृढ़ निर्णय था। मगर उन्होंने लिया। राम के इस निर्णय का मेरे मन में बहुत सम्मान है. पत्नी को दूसरों के सहारे, भले ही वे अपने परिवारी जन ही क्यों न हों छोड़ जाना बहुत ही अमानवीय है। हर वो शख्स जो परिणय सूत्र में बंधा हो यथासम्भव पत्नी को अपने साथ रखना चाहिए। मेरे युवा मित्रों, सुन रहे हैं न आप? बहुत से लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो कई अन्य अप्रत्यक्ष कारणों से पत्नी को सेवाकाल में कहीं और छोड़े रहते हैं। अपने सेवाकाल में मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है और उनसे जिरह भी की है और अधिकाँश मामलों में पाया है कि पत्नी को दूर रखने के उनके आधार संतुष्ट करने वाले नहीं थे। पति पत्नी को साथ साथ रहने का एक अन्य पहलू भी है मगर उसकी चर्चा शायद इस पोस्ट की गंभीरता को कम कर देगी।
कहीं आप तो पत्नी के साथ ऐसा बर्ताव नहीं कर रहे हैं ?
अरविन्द जी हम तो ऐसा ही कर रहें हैं !!
जवाब देंहटाएंमतलब श्रीमती जी को साथ रख रहे हैं न ?
हटाएंBhai sahib jinki 4 /4 patniya hai unko kitna Bhatta degi sarkar
हटाएंअरविंद जी,
जवाब देंहटाएंहम तो विवाह के पाँच वर्ष बाद से लगभग साथ हैं। शायद ही कभी एक माह का वक्त भी एक दूसरे से दूर रह कर गुजारा हो।
हम साथ साथ हैं ..
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है यह निर्णय हर पति पत्नी पर ही छोड़ा जाना उचित है। किनकी क्या परिस्थितियाँ हैं वही बेहतर समझते हैं।
जवाब देंहटाएंहां यदि अलग रहने क निर्णय कोई भी एक पक्ष दुसरे पर थोप रहा हो तब यह ठीक नहीं। किन्तु मिल जुल करनिर्णय लिया जाए तब कोई बुराई मुझे इसमें नही लगती।
बेशक पति पत्नि का परिस्थितिवश अलग रहना कष्टदायी होता है. सबसे ज्यादा तो यह सैनिक बलों में देखने को मिलता है. जहाँ तक हो सके साथ रहना चाहिए , फिर भले ही लड़ते झगड़ते रहें।
जवाब देंहटाएंआप ने लेख में उनका ज़िक्र नहीं किया जिनके पति या पत्नी विदेश में नौकरी करते हैं!..खैर जितनी भी ट्रान्सफर वाली नौकरियाँ होती हैं उन में बच्चों की पढ़ाई के कारण या अन्य पारिवारिक कारणों से भी ऐसी स्थिति आ जाती है.आप मात्र पति-पत्नी के अलग रहने की बात कर रहे हैं, हमने तो यहाँ बच्चों को भारत में उनेक नानी या दादी की देख रेख में छोड़ कर पति पत्नी एक देश में होते हुए भी अलग- अलग शहरों में या अलग-अलग देशों में काम करते देखा है.
जवाब देंहटाएंपति का पत्नी की साथ रहना ही नहीं बल्कि पूरे परिवार का एक साथ रहना भी आज के भौतिक समय में भाग्य का आशीर्वाद है.
अपरिहार्यता और अपवाद अलग हैं -मैंने लोगों को सामान्य स्थितियों में भी ऐसी प्रवृत्तियाँ देखी हैं कि पत्नी घर में ही रहे!
हटाएंहम्म...
जवाब देंहटाएंयहां तो चालीस साल हो गये बिना नागा लठ्ठ खाते हुये, आप इसी से अंदाज लगा लिजीये.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
आदर्श स्थिति तो यही है कि पति पत्नी और बच्चे साथ साथ ही रहें. पत्नी किसी निजी कम्पनी में कार्यरत हो और पति सरकारी नौकर हो तो दुविधाएं आती हैं. वर्षों पूर्व के सामाजिक ढाँचे में पत्नी से नौकरी करवाया जाना हेय माना जाता था.
जवाब देंहटाएंपोस्ट की गंभीरता थोड़ा कम करिये। अन्य पहलू की चर्चा करिये । :)
जवाब देंहटाएंसहमत।
हटाएंहमे तो साथ रहते 42 साल हो गए है ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
जब जब जो जो होना है तब तब तो तो होता है -Man proposes God disposes.
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रासंगिक मुद्दे उठाए हैं पोस्ट में। एच आई वी -एड्स इसी ज़बरिया अलगाव की सौगात है। और
भी बहुत कुछ है।
Did Ram or rather Sita made that call? Just curious?
जवाब देंहटाएंSorry, can't type hindi on this machine.
नीरज जी महान लोगों के कृत्य ही उनके सन्देश होते हैं -वे जो आदर्श उपस्थित करते हैं वही हमें अनुसरण करना चाहिए !
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट उन जोड़ों (पति पत्नी) के लिए हैं !!
जवाब देंहटाएंठीक है , वही पढें !
मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ, परिवार सदा साथ रहना चाहिये, यह सबके विकास का प्रश्न है।
जवाब देंहटाएंपरिस्थितियाँ प्रबल होती हैं, साथ रहने और न रहने में.
जवाब देंहटाएंनिश्चित रूप से साथ रहना आवश्यक है | मुझे तो लगता है बच्चों की परवरिश भी प्रभावित होती है अगर माता पिता साथ न रहे ....
जवाब देंहटाएंअच्छा मुद्दा उठाया है - सबको सन्मति दे भगवान !
जवाब देंहटाएंचिन्तन की दिशाधारा सराहनीय है । अभी भी समाज में नारी की स्थिति दयनीय है । समर्थ होकर भी उसे निरीह बनकर जीना पडता है । यदि ऐसे सन्दर्भों को स्त्रियॉ उठाती हैं तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है । कुल मिलाकर देखें तो आज भी छोटे-बडे,अमीर-गरीब किसी भी समाज में समरसता नहीं है , यह " यक्ष-प्रश्न" है और हम सभी को अपने भीतर के युधिष्ठिर से इसका उत्तर पूछना पडेगा । मुझे इसका शीर्षक बहुत पसन्द आया, इसमें गज़ब का आकर्षण है ।
जवाब देंहटाएंlucky are the husbands whose wives go away for some time :-)
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंकुछ नौकरियों की विडंबना भी होती हैं ऐसी परिस्थितियाँ। मगर मेरे ख्याल से परिवार के लिए नौकरी से यह समझौता ‘परिवार’ नाम की संरचना को थोड़ा कमजोर भी करता है।
जवाब देंहटाएंइसीलिए अधिकतर लोग पत्नी का साथ नहीं छोड़ पाते,भले माँ-बाप छूट जांय !
जवाब देंहटाएंयह पूरी तरह उन परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि एक दंपति के लिए क्या उचित है? उनका एक साथ रहना या एक साथ न रहना।
जवाब देंहटाएंउत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में खासतौर पर संयुक्त परिवार में पति के द्वारा पत्नी को परिवार के बाकी सदस्यों के साथ छोड़ देने का प्रचलन ज्यादा रहा है। इससे उस पुरूष का अपने संयुक्त परिवार के प्रति कितना समर्पण है इस भाव का पता चलता है। खैर, अब ये प्रथा भी धीरे-धीरे कम हो रही है।
यह टिप्पणी लखनऊ से मेरी धर्मपत्नी द्वारा पोस्ट की गयी है। और नीचे वाली टिप्पणी मैंने रायबरेली से पोस्ट की है। लगभग सौ किमी. की दूरी पर रहते हुए भी हम दोनो कितने पास हैं। यह महसूस करने की चीज है।
हटाएंरचना त्रिपाठी जी,
हटाएंमैं इसी परम्परा को लक्षित करना चाह रहा था
सिद्धार्थ जी ,
हटाएंमैं कुछेक दिनों के विछोह की बात नहीं कर रहा था -वह तो जरुरी है! :-)
मैं उस प्रवृत्ति की ओर इशारा कर रहा था जिसका एक एक्सट्रीम उदाहरण आपने दिया है
और ऐसी परिस्थितियों को भी इंगित करना था जिनसे ऐसे विछोह अपरिहार्य हो उठते हैं
@ आप लोगों की जोड़ी का कहना ही क्या -चिर जीवो जोरी जुरे .....
सिद्धान्त और व्यवहार का अंतर इस मुद्दे पर पूरी तरह फिट बैठता है।
जवाब देंहटाएंसिद्धांततः पति-पत्नी होते ही हैं एक साथ रहने के लिए। शादी इसीलिए तो होती है। लेकिन व्यवहारतः जीवन को सुचारु ढंग से चलाने के लिए और व्यक्ति को अपने अन्य उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिए इस सिद्धान्त से समझौता करना पड़ता है। आपने स्वयं कई कारण गिनाये हैं।
सबसे बड़ा कारण आर्थिक ही है। यूँ तो परिवार चलाने के लिए दोनो का बराबर योगदान होता है लेकिन अर्थोपार्जन की प्राथमिक जिम्मेदारी पति पर ही परंपरागत रूप से होती है। अन्य उत्तरदायित्व जैसे घर के बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल, बच्चों की स्कूली शिक्षा, रसोईघर का प्रबन्धन, सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी, अड़ोस-पड़ोस से सामाजिक संबंध, कथा-पूजा में उपस्थिति, हैप्पी बर्थडे पार्टियॊ की लेन-देन, रिश्तेदारों के साथ मेल-जोल आवागमन, तीज-त्यौहार आदि के लिए दोनो को कार्य विभाजन करना ही पड़ता है। इस क्रम में यदि दोनो के बीच कभी-कभी भौगोलिक दूरी बन जाती है तो आश्चर्य नहीं। इसके अलावा कभी-कभी वैचारिक मतभेद भी ऐसा अनपेक्षित अलगाव पैदा कर देते हैं।
इसलिए जितने केस उतने कारण की स्थिति है। मेरे एड़ोसी गाँव में तो एक सज्जन ऐसे मिले जो शादी के छः महीने बाद ही अपनी पत्नी को घर छोड़कर बैंकाक कमाने चले गये। वहाँ पता नहीं किस बिजनेस में आगे बढ़ गये कि गाँव से जाने के चार पाँच महीने बाद पैदा हुए बेटे को पहली बार तब देख पाये जब उसकी शादी तय हो गयी। अपने बेटे के तिलकोत्सव से एक दिन पहले गाँव पधारे थे परदेसी बाबू।
आभार सिद्धार्थ जी आपने तफसील से इस विषय पर प्रकाश डाला
हटाएंशीर्षक में आपके पूछे प्रश्न का उत्तर देने की स्थिति में अभी नहीं हूँ पर मेरा तो यही मानना है कि दूरियां ना रहे तो सबसे अच्छा.
जवाब देंहटाएंअगर कोई बहुत बड़ी मजबूरी न हो तो पत्नी के साथ ही रहना चाहिए ... सुख और दुख दोनों में उससे ज्यादा साथ देने वाला कोई नहीं होता ...
जवाब देंहटाएंbehatarin wishleshan
जवाब देंहटाएंजिनके पेट भरे हुए होते है उनके द्वारा बड़ी आदर्शवादी बाते की जाती है आपके इस लेख का स्रोत क्या था यह आपने इंगित नहीं किया
जवाब देंहटाएंहो सकता है कि कुछ लोगो को इसमें विश्रांति का अनुभव भी होता हो लेकिन मै जहा रहता हूँ वहा कुछ बेटे बहू वाले कर्मचारियों को खाना बनाते या बर्तन मांजते हुए देखता हूँ तो क्षोभ होता है किक्या इस उम्र में इन्हें यही बदा था घर से एक दूसरे की दवा व स्वास्थ्य का हाल चाल लेते हुए सुनना कष्ट प्रद होता है लेकिन दो हंसो के जोड़े को बिखरने वालो की बद्दुआये ट्रांसफर करने वाले लोगो को लगाती जरूर होगी
लक्ष्मण ने जो आदर्श प्रस्तुत किया उस पर प्रकाश नहीं डाला गया है लेखक सिर्फ पत्नी नाम की माला जप रहा है
जवाब देंहटाएंक्या मॉं बाप को भूल जाएँ ,,,,,,,,,इस पर प्रकाश नहीं डाला गया है इस दुनिया में दो ही नाम बचे हैं क्या एक पति दूसरा पत्नी
जवाब देंहटाएंआपका विचार ठीक है मगर देशकाल पर निर्भर करेगा।
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