इन्डिब्लागर से मेलबाक्स में प्रायः आने वाले मेल का मजमून एक दिन अलग सा था -इन्डिब्लागर पुरस्कारों के लिए ब्लॉग आमंत्रण की घोषणा की गयी थी .वैसे मैं खुद को पुरस्कार सम्मान के लिए कभी नामांकित नहीं करता और इसका कारण कोई दंभ इत्यादि नहीं बल्कि काम करते जाने को ज्यादा महत्वपूर्ण मानता आया हूँ. मगर उस दिन कुछ तो जरुर मन में विचलन सा हुआ और मैंने सीधे साईंस से जुड़े वर्गों को ढूंढ कर अपने एक ब्लॉग साईब्लाग को नामांकित कर दिया और फिर भूल गया -कोई प्रमोशन वगैरह भी नहीं किया .वैसे भी मेरे इस ब्लॉग का इंडीरैंक 58 पर आ पहुंचा है जबकि क्वचिदन्यतोपि का 82 है . बुद्धिमानी तो यह थी कि मैं क्वचिदन्यतोपि को नामंकित करता मगर मन में चूंकि हमेशा विज्ञान संचार का भूत सवार रहता है अतः साईब्लाग का नामांकन करके मन को संतुष्ट कर लिया . बीच बीच में एकाध मित्रों के अनुरोध आये तो जाकर उनकी सिफारिश भी कर दी -निःस्वार्थ और निरपेक्ष। एक मित्राणी ब्लॉगर ने तो यह भी फिकरा कसा कि जहाँ आप और अनुराग शर्मा जी जैसे धुरंधर नामित हों वहां और किसकी दाल गलेगी? -मैंने निर्विकार भाव से यह ताना भी सुन लिया -बाद में देखा कि देवि ने अपना भी ब्लॉग नामंकित कर दिया है :-) हाँ यह नहीं देखा कि अनुराग जी ने अपना कोई ब्लॉग नामांकित किया है या नहीं . वैसे तब मन में यह बात भी आयी थी चलो अनुराग जी ने अगर कोई ब्लॉग नामांकित किया है तो मेरा भी औचित्य सिद्ध हो गया और मन में कहीं छिपा एक अपराध बोध सा भी कम हो गया। बाद में तो कई अन्य सम्मानित ब्लागरों के नामांकन से अपराध बोध बिलकुल ही उड़न छू हो गया। इन्डिब्लॉगर वालों के प्रति एक सम्मान का भाव भी जगा और अब भी है कि ये ब्लागिंग को बढ़ाने के लिए कितना श्रमशील हैं। बहरहाल बात आयी गयी हो गईं.
अभी उस दिन जब पुरस्कार परिणाम आये तो बड़ी मजेदार बात हुई -खुशदीप जी जिन्हें सम्मान शब्द से ही घोषित घृणा रही है इन्डिब्लागर से सम्मानित/पुरस्कृत हो गए थे . अब उन्होंने अपना नामांकन तो किया ही होगा न? परिकल्पना सम्मान को तमाम धरहरिया (Persuasion) और चिरौरी के बाद भी ठुकरा देने वाले और अभी अभी ताऊ टी वी पर सम्मान शब्द से चिढ होने का उद्घोष करने वाले अपने खुशदीप भाई अब सम्मान की वरमाला पहन चुके थे! खुशदीप भाई मुझ पर नाराज होने के बजाय उन कारणों को जरुर बताने का कष्ट करेगें जिसने उन्हें इस सम्मान को सम्मानित करने का फैसला लेने को प्रेरित किया था. या फिर मेरी ही तरह यह एक क्षण के मन विचलन से हुआ यह उनका भी एक प्यारा सा गुनाह था :-) यह बात कोई और ब्लॉग जगत में उनसे पूछे या न पूछे मगर मैं इसकी धृष्टता जरुर कर रहा हूँ । क्षमायाचना के साथ यह भी कहना चाहता हूँ कि उनके बारे में लोगों के मन में कोई दुराव न रहे इसलिए यह अप्रिय निर्णय लेना पड़ा ।
हिन्दी को रीजनल लैंग्वेज तक ही दिखाने की मानसिकता?
बहरहाल यह पोस्ट इस मुद्दे पर लिखी नहीं जा रही। मामला तो दूसरा है जो बहुत गंभीर है। खुशदीप जी के साथ एक शाम मेरे नाम वाले मनीष जी का ब्लॉग है जो पुरस्कृत हुआ है। देशनामा के साथ यह भी मेरी पसंद का ब्लॉग है, मैंने इन दोनों ब्लागरों को तुरंत बधाई दी मगर सहसा एक बात मुझे खटक गयी। मनीष जी ने अपना ब्लॉग एक ऐसी कटेगरी में नामित किया था जो मेरी नज़र में आया ही नहीं था। यह कटेगरी इन्डिब्लॉगर वालों के एक अजीव सी सोच का परिणाम है जो आज भी जानबूझ कर हिन्दी को निचले स्तर पर रखने को उद्यत रहती है -रीजनल लैंग्वेज कटेगरी में हिन्दी को रखा गया था । मनीष जी ने अपना ब्लॉग इसी कटेगरी में नामांकित कर दिया। हालांकि हिन्दी कई प्रान्तों की आंचलिक राजभाषा भी है किन्तु उसका असली या मुख्य स्टेटस पूरे भारत संघ की राजभाषा का है. यह भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाले भाषा (लिंगुआ फ्रैन्का) तो है ही यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में छठवें नंबर पर है. मैं सभी भाषाओं का सम्मान करता हूँ -अंग्रेजी विश्व की खूबसूरत भाषाओं में से एक है। और भारत में संवैधानिक रूप से भी हिन्दी और अंग्रेजी को समान दर्जा दिया गया है और पूरे भारतीय यूनियन की दोनों ही राजभाषायें है। मगर खामी हमारी गुलामी की सोच उस अंग्रेजियत की है जो हिन्दी को अंग्रेजी के सामने अपमानित करती आयी है निरंतर पददलित करती रही है। यह आपत्तिजनक है. हमें निरंतर इस प्रवृत्ति का विरोध करना चाहिए। खुशदीप जी और मनीष जी का आह्वान करूँगा कि हिन्दी के अपमान की इस प्रवृत्ति के विरोध में वे सम्मान सहित इस पुरस्कार को लौटा दें -खुशदीप भाई, कोई सम्मान लेने से छोटा नहीं हो जाता बल्कि बड़े सम्मान को लौटा कर और भी बड़ा बन जाता है।और इन्डिब्लागर का यह सम्मान कोई इतना बड़ा भी नहीं है यह आप स्वयं यहाँ कह रहे हैं(अरविंद जी फिक्र मत कीजिए इस अवार्ड मे मिलना-विलना कुछ नहीं है।) तो लौटाईये इसे और उन्हें एक सन्देश दीजिये।
टुच्ची राजनीति और हमारे नेताओं की कमजोर इच्छाशक्ति के चलते हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई.राष्ट्रभाषा सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है।किसी भी देश की विभिन्न भाषाओं में से कोई एक अपने गुण-गौरव, साहित्यिक अभिवृद्धि, जन-सामान्य में अधिक प्रचलन / लोकप्रियता आदि के आधार पर राजकार्य के लिए भी चुन ली जाती है और उसे राजभाषा के रूप में या राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाता है। वह अधिकाधिक लोगों द्वारा बोली और समझी जाने वाली भाषा होती है। प्राय: राष्ट्रभाषा ही किसी देश की राजभाषा होती है जो यहाँ हिन्दी है ।यह जन जन की भाषा है -इसका अपमान कोई भी सच्चा राष्ट्रवादी कैसे सहन कर सकता है। आगे भी पुरस्कार दाता भामाशाहों से गुजारिश होगी कि वे पहले हिन्दी को अपनी घोषित श्रेणियों में सम्मानजनक स्थान दें जिसकी वह हकदार है। हाँ बंगला या कन्नड़, तेलगू आदि भाषाओं को भी पृथक श्रेणी देने में कोई गुरेज नहीं क्योंकि की ये भी हमारी प्यारी और समृद्ध भषाएँ हैं मगर हिंदी को मात्र एक प्रांतीय भाषा के रूप में ही प्रदर्शित करने की सोच स्वीकार्य नहीं है। संविधान की आठवीं अनुसूची का तर्क कब तक चलता रहेगा -यह पूरे देश की राजभाषा है यह तथ्य पीलियाग्रस्त आँखों को नहीं दिखता? आह्वान है हिन्दी ब्लॉगर अपना विरोध अवश्य दर्ज करें और आगे से ऐसे कुचक्रों से सावधान रहें।
प्रत्येक 'पुरस्कार' में किसी न किसी का 'तिरस्कार' शामिल रहता है ....यह प्रत्येक पुरस्कार की सत्यता है ।
जवाब देंहटाएंकौन किसका पुरस्कार लेना चाहे , और किसे उपयुक्त पाए यह उसका व्यक्तिगत मामला है ,आपकी प्रतिक्रिया आश्चर्यजनक है ! मैंने अपने लिखे कूड़े के लिए,यहाँ नामांकन खुद किया था ..इसका अर्थ अनर्थ दुसरे क्यों लगाएं ??
जवाब देंहटाएंकभी कभी आपके लेख व्यक्तिगत हो जाते हैं ऐसे में आप जैसा मस्त व्यक्ति वैमनस्यता जैसा झुकाव रखे तो कष्ट होता है ! मैं आपका प्रसंशक हूँ तथापि दुखी हूँ !
मुझे ख़ुशी है कि खुद रविन्द्र प्रभात ने ऐसे लेख कभी नहीं लिखे ,
सतीश जी ,
हटाएंचलिए मैं व्यक्तिगत हो गया मगर आप भी वही हो गए
मुद्दे पर बोलिए .
1 -व्यक्तिगत कैसे यहाँ सभी सार्वजनिक मामले हैं?
हटाएं2 -अब आपको वैमनस्यता की बू कैसे आ रही है ?
मित्रता धर्म निभाईये मगर मुद्दे को हल्का मत कीजिये
सभी सांत्वना देते आकर
हटाएंजहाँ लेखनी,रोती पाए !
आहत मानस होता घायल
सच्चाई पहचान न पाए !
ऎसी ज़ज्बाती ग़ज़लों को , ढूंढें अवसरवादी मीत !
मौकों का फायदा उठाने, दरवाजे पर तत्पर गीत !
पद,प्रतिष्ठा,प्रसंशा, पैसा और प्रसिद्धि कौन नहीं प्राप्त करना चाहता, यह मानव स्वभाव मैं आता है. यह अलग बात है, कि कुछ लोग महज दिखावे के लिए ना नुकर करते हैं . या फिर भेडिया की तरह स्वार्थ पर नैतिकता का छद्म आवरण ओढकर रहने के आदी होते हैं. जहां तक खुशदीप भाई का प्रश्न है तो व्यक्तिगत तौर पर वे एक अच्छे व्यक्तित्व के मालिक हैं, किन्तु आभासी दुनिया की फिसलन मैं कभी-कभी वे फिसल जाते हैं. यह भी मानवीय स्वभाव का एक हिसा है.
जवाब देंहटाएंवैसे खुशदीप भाई ने परिकल्पना सम्मान को कभी नहीं ठुकराया था, क्योंकि वे सम्मान ठुकराए होते तो सार्वजनिक मंच से प्रसन्न चित होकर सम्मान ग्रहण नहीं करते . फोटो नहीं खिंचवाते. सम्मान ग्रहण करने के बाद जब उन्हें रोजी-रोटी पर आंच आते दिखाई दी तो उन्होंने कार्यक्रम के संचालन पर अपनी आपत्ति दर्ज की, न कि सम्मान पर.
जहां तक पुरस्कार के लिए अपने आप को स्वयं नोमिनेट करने का प्रश्न है तो मैं कभी भी इसे स्वस्थ परम्परा नहीं माना और न कभी मानूंगा. कहीं न कहीं सम्मान की चाहत खुशदीप भाई को भी है. पहले बोब्स पुरस्कार फिर इंडी ब्लोगर के लिए उन्होंने स्वयं को नामित करके यह सिद्ध कर दिया है . यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें अपने भाईयों से सम्मान लेना पसंद नहीं, किन्तु उनसे सम्मान लेना पसंद है जो उनकी मातृभाषा को क्षेत्रीय भाषा मानकर सम्मान दे रहा हो. मुबारक हो भाई . बोब्स पुरस्कार नहीं मिला कोई बात नहीं मगर कुछ तो मिला . मुबारक हो भाई,बहुत-बहुत मुबारक हो इंडी ब्लोगर सम्मान .
मुद्दे दो हैं,एक नैतिकता का और दूसरा तकनीकी।
जवाब देंहटाएंनैतिकता के मामले में मैं कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि यह स्वयं वह व्यक्ति ही अपने लिए निर्धारित करता या मानता है। यदि उसे ऐसा कुछ भी नहीं खटकता तो यह उसका अपना मापदंड है। इसकी समीक्षा प्रबुद्ध और नैतिक लोग ही कर सकते हैं।
दूसरी बात जो तकनीकी रूप से सामने आई है वह बेहद चिंतनीय है। हिंदी का अपमान कोई और नहीं उसी की संतानें कर रही हैं। इस काम को अब सम्मानों या पुरस्कारों के आवरण से आकर्षक बना दिया गया है,जिसमें कई बड़े धुरंधर चित्त हो जाते हैं। दरअसल यही आपकी नैतिकता का पैमाना भी तय हो जाता है।
सम्मान और पुरस्कार आजकल गंभीरता से काम करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते वरन एक सनसनी सी पैदा करते हैं।
ऐसे सम्मानों को लौटाने की मांग भी ठीक नहीं है इससे उस सम्मानकर्ता को वैधता मिलती है।
दुःख की बात है कि स्खलित होते हुए समय में गिने-चुने लोग भी अपने को स्खलन से बचा नहीं पा रहे हैं।
अच्छा होता कि यह ज्ञान पहले आता।
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी और मनीष जी का आह्वान करूँगा कि हिन्दी के अपमान की इस प्रवृत्ति के विरोध में वे सम्मान सहित इस पुरस्कार को लौटा दें
वे भले आदमी क्या करते हैं यह उनके ऊपर छोड़ दिया जाये। इस तरह के आह्वान से उनको असमंजस में डालने के बजाय आह्वान करने वाले लोग इंडीब्लॉगर का विरोध का करके वहां से अपने ब्लॉग-स्लॉग हटाने की बात सोचें।
बड़े मुद्दे की बात को दो साथियों को असमंजस में डालने वाली पोस्ट लिखना - जमी नहीं बात वैज्ञानिक चेतना सम्पन्न ब्लॉगर जी।
अनूप जी मित्रों और समान धर्मियों से ही अपील की जाती है -इसमें अगर असमंजस है भी तो दिल की आवाज़ सुने ..मगर व्यंग चेतना से लैस लोग क्यों असमंजस में दिख रहे ? :-)
हटाएं(:(:(:
हटाएंpranam.
अरे! रात गई बात गई
जवाब देंहटाएंअब तो अगला सम्मान देखिए अमिताभ बच्चन के पहले अड्डे BlogAdda.com पर :-D
बड़े बेगैरत निकले -रात बिताई जिसके साथ हुई सुबह तो छोड़ चले ? :-)
हटाएंहा हा हा
जवाब देंहटाएंनिभा ना पाए वो साथ, तो का कीजै
मुझे केवल 'एक रात' पर उज्र है -कुछ और रातें तो बितायी होतीं
हटाएंयह तो बड़ी नाईंसाफी है !
सम्मान किसको मिले और किसको नहीं इस पचड़े में पड़नें की बजाय जो गंभीर मुद्दा आपनें हिंदी को क्षेत्रीय भाषा की श्रेणी में रखने को लेकर उठाया है उसमें हम भी आपका समर्थन करते हैं और इंडीब्लोगर वालों से आशा भी करते हैं कि इस पर वो अपनी सफाई देंगे !
जवाब देंहटाएंएक गीत की चार लाइन याद आ रही है। लिखा था कभी...
जवाब देंहटाएंजब भी मिलता है सम्मान
डरता भीतर का इन्सान
क्या तूने
रूप बनाया है?
क्या तूने
झूठ सुनाया है?
यदि वह "मित्राणि" जिसने यह कहा था कि जहां आप और अनुराग जी हों वहां किसकी दाल गलेगी? से मुझे इंगित किया गया है, तो याद दिला दूँ कि, उसी समय , मैं ने यह भी कहा था कि मैंने अपने ब्लॉग को भी नामांकित किया है। बल्कि फेसबुक स्टेटस पर कम से कम तीन बार मैंने इस नामांकन का जिक्र किया।
जवाब देंहटाएंमुझे सचमुच लगता है की अनुराग जी और आप जैसे बड़के ब्लोगर्स के साथ नामांकित होने के भी शायद मैं लायक नही हूँ। लेकिन बस अपने बहुत अच्छे मित्र ने इन्डिब्लोगर के बारे में बताया था तो मन था नोमिनेट करून खुद अपना ब्लॉग भी। यह बात और है कि वे बेस्ट फ्रेंड मुझे अपना दोस्त होने लायक भी मानते हों या नही। :)
यदि वे मित्राणी कोई और हैं तो यह कहने के लिए माफ़ी चाहती हूँ। किन्तु मेरे लिए सार्वजनिक मंच पर ही ऐसी कोई भी बात क्लियर होना आवश्यक रहता है।
रही बात इन्डीब्लोगरवालों की तो नामांकन की शर्तों में यही था कि कोई वोटिंग आदि नही बल्कि jury decision is final.
हाँ यह मुझे भी लगा कि हिंदी श्रेणी में सिर्फ दो तीन ही अवार्ड घोषित होना अपमानजनक सा था। शायद सिर्फ हिंदी ब्लोग्स के ही लिए पुरस्कार आयोजित होते तो ही ठीक से समझ आता कुछ। मुझे नहीं लगता कि ज्यूरी मेम्बरान ने हिंदी के सारे ब्लॉग पढ़े भी होंगे। यह बात पहले ही क्लियर होती कि ऐसा होगा तो कई लोग अपने ब्लॉग शायद नामांकित ही नहीं करते।
"मुझे सचमुच लगता है की अनुराग जी और आप जैसे बड़के ब्लोगर्स के साथ नामांकित होने के भी शायद मैं लायक नही हूँ।"
हटाएंशिल्पा जी ,
एक बात फाईनली सुन लीजिये -यहाँ कोई भी छुटका बड़का ब्लॉगर नहीं है .
सभी ब्लॉगर हैं बस -और मैं तो बराबर की मित्रता की कद्र करता हूँ !
व्यक्ति पूजा को नापसंद करता हूँ ! इसलिए कितने कथित बड़के ब्लागरों
की पूंछे कुतर डाली है ! विघ्न विनाशक की कृपा से !
:) धनबाद है जी।
हटाएंव्यक्ति पूजा मैं करती नही। यह गलतफहमी कई लोगों को हो जाती है मेरे बारे में।
Nope
i respect talent when i see it and say so to the whole world. INCLUDING the person i see blessed with it :) unfortunately it is misunderstood as being व्यक्ति पूजा। which it is actually not.
पुरस्कार लेने में खटका यह भी है कि भारत-रत्न की तरह कोई उसे वापिस लेने की माँग न कर दे :)
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसम्मान मिलना एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमे सम्मान मिलने वाले को निश्चित ही ख़ुशी होती है और न मिलने वाले को क्षोभ / ईर्ष्या / जलन. ( कोई माने या न माने ). स्वयं को नामित करना गलत नहीं होता। अक्सर यह तरीका अपनाया जाता है. लेकिन अस्वीकार करना स्वयं का निर्णय होता है. हिंदी को क्षेत्रीय भाषा का दर्ज़ा देना हिंदी का अपमान है.
आप सही कहे डॉ साब.....लेकिन क्षोभ उसी को होता है जो उम्मीदवार रहा हो !
हटाएं
हटाएंआपका मतलब --- जो उम्मीद से रहा हो ! :)
डाकटर साहब जुमला ग्रैमीटकली गलत है
हटाएंउम्मीद से रही होना चाहिए :-)
किसी ने कहा नोमिनेट कर दो , रैंकिंग भी ठीक ठाक थी तो नोमिनेट कर दिया , सम्मान पाने /मिलने जैसी कोई भावना या इन्तजार था ही नहीं ,इसके तकनीकि पक्ष पर ध्यान ही नहीं दिया !
जवाब देंहटाएं@ हाँ यह मुझे भी लगा कि हिंदी श्रेणी में सिर्फ दो तीन ही अवार्ड घोषित होना अपमानजनक सा था। शायद सिर्फ हिंदी ब्लोग्स के ही लिए पुरस्कार आयोजित होते तो ही ठीक से समझ आता कुछ। मुझे नहीं लगता कि ज्यूरी मेम्बरान ने हिंदी के सारे ब्लॉग पढ़े भी होंगे। यह बात पहले ही क्लियर होती कि ऐसा होगा तो कई लोग अपने ब्लॉग शायद नामांकित ही नहीं करते।
शिल्पा जी से सहमत !!
आभार वाणी डियर ।
हटाएंअक्सर आप और मैं एक दुसरे से सहमत ही रहते हैं। :)
और हम आप दोनों की असहमतियों से सहमत हो लेते हैं :-)
हटाएंवैसे यह ranking होती क्या है? आप कह रही हैं कि रैंकिंग ठीक ठाक थी। मिश्र सर भी साईं ब्लॉग व् क्वचिद अन्यतो अपि की रैंकिंग के बारे में कह रहे हैं।
हटाएंsorry if i seem too ignorant by asking that. but i just want to know what it is.
वाणी जी की पहली अपार्च्यूनिटी कि वे इस पृच्छा का जवाब दें! कारण आप दोनों में सहज संवाद है .... नहीं देतीं तो मैं देता हूँ !
हटाएंsir
हटाएंआप से भी सहज संवाद ह है :)
इन्डिब्लागर वाले ब्लागों को सौ के पैमाने पर रैंक देते हैं .....अस्सी के ऊपर ब्लॉग रैंकिंग अच्छी मानी जाती है -यह कई प्रतिमानों जैसे नियमितता आदि पर निर्भर होता है -
हटाएंयह देखें
http://www.indiblogger.in/languagesearch.php?lang=hindi
thanks sir - thanks for telling me about this :)
हटाएंok - so that means 100 is the best? 100 is better than 90 which in turn is better than 80 and so on?
found this too
हटाएंhttp://www.indiblogger.in/indirank/
इमानदारी से हमको इस तरह की कुछ भी बात समझ नही आती और संदर्भ भी पता नही हैं, हां यदि किसी को सम्मान वगैरह चाहिये तो हम जुगाड करवा सकते हैं, फ़ीस चुकानी होगी.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
वैसे इंडिब्लॉगर एक प्राईवेट कंपनी है और दक्षिण भारतीय लोग ही इसे चलाते हैं, तो शायद यह भी हिन्दी को ज्यादा मान्यता ना देने का एक कारण हो । यह कंपनी चैन्नई से चलती है, हाँ अब कई जगह इनके मार्केटिंग के लोग उपलब्ध हैं.. अब जैसा कि सर्वविदित है कि तमिलनाडु में तमिल के अलावा सभी भाषाओं को तिरस्कृत किया जाता है, यह भी एक मुख्य कारण हो सकता है ।
जवाब देंहटाएंगरजमंद कौन है, ब्लॉगर या इंडीब्लॉगर? ये विश्लेषण हर ब्लॉगर करे तो शायद इससे अपनी स्थिति ज्यादा स्पष्टता से पता चल जायेगी।
जवाब देंहटाएंi did not understand the q sanjay ji?
हटाएंkis cheez kee garaz kise hai / hogi / honi chaahiye??
शिल्पा जी, अरविंद जी की अपील के संबंध में मैंने ऐसा कहा था। मेरा मानना है कि जब तक हमारे लिये निजी सम्मान\ईनाम\रैंकिंग\लोकप्रियता पहली प्राथमिकता रहेगी, हम इंडिब्लॉगर जैसों की बातों का विरोध प्रभावी तरीके से नहीं कर सकते। हम इसी बात से धन्य होते रहेंगे कि हमारा नाम हुआ। जबकि देखा जाये तो इतनी संख्या में हिन्दीभाषी हैं तो गरज खुद इंडिब्लॉगर को होनी चाहिये कि सही श्रेणी में हिन्दी को रखकर हमारी भावनाओं का सम्मान करता।
हटाएंअब समझी। वैसे भी मैं कई बार यह कहती हूँ। मुझे बात हिंट्स से समझ नही आती। जब समझ नही आती तो क्लेरिफिकेशन पूछती हूँ और मूर्ख दिखती हूँ :( :(
हटाएंलेकिन समझ में न आये और न पूछूं तो खाना हजम नही होता तो पूछना पड़ता है :) मेरे कई मित्रों को यह शिकायत रहती है कि मुझे बातें जल्दी समझ नही आती। क्या कीजे?
ऐसा नहीं है शिल्पा बहन, पूछने से कोई मूर्ख नहीं दिखता बल्कि संजीदा दिखता है।
हटाएंthanks :)
हटाएंमैं भी यही हिंदी भाषा को क्षेत्रीय भाषा की श्रेणी में रखे जाने के विरोध में हूँ.
जवाब देंहटाएंऔर किसी भी पुरस्कार के लिए अपने आप को स्वयं नामांकित करना भी एक अच्छी परम्परा नहीं मानती.
मेरे विचार में उनके यहाँ जितने हिंदी भाषा के रजिस्टर्ड ब्लॉग हैं,जिनकी प्रतियोगिता शूर होने से पूर्व महीने में रेंकिंग ८० से ऊपर है उसके आधार पर ब्लॉग छाँटते और पढ़ते फिर निर्णय ले लेते .
[खैर,मैने अपना कोई ब्लॉग नामांकित नहीं किया था.]
बड़े लोग बड़ी बात.. मैं कुछ न बोलूँगा..
जवाब देंहटाएंऔर रही बात हिन्दी को क्षेत्रीय भाषा मानने की तो ये अंग्रेजी वाले ब्लॉग एग्रीगेटर ऐसा मानके चलते हैं कि हिन्दी में ब्लॉग तो वही लिखते हैं जिन्हें अंग्रेजी कायदे से नहीं आती.. :)
जवाब देंहटाएंहिंदी को वर्नाकुलर लेंग्विजज में से इक कहने वाले इस देश एम् और भी गणतंत्री मूषक राज हैं गोबर गणेश हैं एक ढूंढोगे हजार मिलेंगें।
हिन्दी को क्षेत्रीय भाषा की श्रेणी दिये जाने का हम पुरजोर विरोध करते हैं।
जवाब देंहटाएंबाई द वे... इंडीब्लॉगर है क्या?
है कोई बला ।
हटाएंहिन्दी भाषा का अपमान पूरे देश का अपमान है और अपमान के लहजे में सम्मान ग्राह्य कैसे हो सकता है ? वैसे बावन अक्षर वाली, [ मात्राओं वाली ] विविध अँग-प्रत्यँगों वाली भाषा पर, छब्बीस अक्षर वाली [ मात्रा-विहीन ] बिना हाथ-पैरों वाली भाषा आज भी राज कर रही है, यह हमारे लिए बेहद अपमान-जनक और डूब मरने वाली बात है । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कहा है- " निज भाषा उन्नति अहै निज उन्नति को मूल । बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को शूल ।"
जवाब देंहटाएंवैसे बात बात में आपकी असली बात तो रह ही गयी।
जवाब देंहटाएंसच कह रहे हैं आप - हिंदी भाषा केटेगरी मैंने भी रखी थी लेकिन यह नहीं देखा था कि हैडिंग रीजनल लैंग्वेजेज है। अभी देखा।
मेरी आपत्ति भी दर्ज हो इस पर तो।
भाई लोगों कोई ये तो बता दो कि ये कैसे पता पड़ता है कि कौन सा ब्लाग अच्छा है कौन सा खराब ?मेरे भी दो ब्लाग है इसलिए पूछ रहा हूँ ..
जवाब देंहटाएंब्लागिंग में आजकल कई लोग पुरस्कार बाट रहें है ..
भाई लोगों साथ में यह भी बता दो कि पुरस्कार लेने के लिए क्या करना पड़ता है या क्या करना पड़ेगा .
डॉ साहेब वैसे तो आजकल आपत्ति करना भी विपत्ति लेने के जैसा है, फिर भी आपत्ति दर्ज करने की ये विपत्ति हम लेने को तैयार हैं.:)
जवाब देंहटाएंहम ये भी कहना चाहते हैं, यहाँ आप इंडीब्लोग्गर को रो रहे हैं, जबकि हिन्दुस्तान में हिंदी में बात करना, हिंदी में लिखना, यहाँ तक कि हिंदी में सोचना भी 'क्षेत्रीय' ही माना जाता है.। अपने आस-पास ही देख लीजियेगा, हिंदी की कितनी पूछ है.। फिर जैसा कि विवेक जी ने बताया इंडी ब्लोग्गर तो दक्षिण भारत का एक प्राईवेट वेबसाईट है, जब देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन महानुभाव जन हिंदी को न आदर देते हैं, न ही हिंदी बोलने, पढने की तमीज रखते हैं तो फिर हिंदी को दोयम दर्ज़ा मिलना ही है.।
इन सभी बातों से इतर, मैं, इंडीब्लॉगर द्वारा हिंदी को, क्षेत्रीय भाषा की श्रेणी में रखने का पुरजोर विरोध करती हूँ
चलिए ये पता चला कि हिंदी क्षेत्रीय भाषा है. ज्ञानवर्धन हुआ! वैसे मुझे यहाँ रहकर इस बात का बहुत पहले पता चल चुका था कि अपनी मिटटी पर पोषित कई लोग संकीर्णता और कुंठा से इतने ग्रसित हैं कि है देश के बारे में उनकी लिए घोर देशविरोधी वाले ख़याल हैं. ऐसे लोगों को देख कर यही कहता हूँ कि कौन कहता है "ब्रेन ड्रेन" हुआ है. बल्कि देश का कचरा साफ़ हुआ है.
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग का असली सुख तो लेखन में है, सम्मान और हिन्दी का स्थान तभी अच्छे लगेंगे जब हम सतत लिखेंगे। हिन्दी को औरों से स्थान माँगने की क्या आवश्यकता?
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगों का मंथन करते करते हम पहुँच गए पुरस्कारों पर चल रही इस बहस के बीच। लगा, लगे हाथ अपनी बात भी कह दें।
जवाब देंहटाएंहम ITB की 'सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी' पिछले साल से प्रकाशित कर रहे हैं और हमें हिन्दी के श्रेष्ठ ब्लॉगों को इस डाइरैक्टरी में सम्मिलित करने का सौभाग्य मिला है। जो भी ब्लॉग कंटैंट आदि के हमारे मानदंडों पर खरे उतरते हैं, उनको इसमें सम्मिलित करना हम अपना धर्म समझते हें। अब हम इस संकलन के कार्य के अंतिम पड़ाव में हैं और ज़्यादा ब्लॉग इसमें नहीं जोड़ पाएंगे। फिर भी, अगर कोई उत्तम ब्लॉग पिछले संकलन में छूट गया हो तो इस ईमेल पर जल्दी ही सूचित करें, ताकि हम उन ब्लॉगों को इस डाइरैक्टरी में जोड़ कर इसका सम्मान बढ़ाएँ। प्रसंगवश यह बताना ज़रूरी है की हम पुरस्कार देने की स्थिति में नहीं हैं।
सादर,
आईटीबी टीम
ईमेल: kpnd2008@gmail.com
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