ब्लॉग जगत में देखा देखी कभी कभार मुझे भी कविताई का शौक चर्राता है :-) वैसे बार बार कहता रहा हूँ कवि कर्म बहुत ही दुष्कर और दुस्तर है। आशा है इस नईं कविता को आप झेल लेंगें! :-) :-)
अभिलाषा
क्या हुआ जो प्रौढ़ता ने
पलक पावड़ें आ बिछाए
विगत की जीवन्तता है
आज भी मन को रमाये
कामनाएं जीवन क्षितिज पर
आज भी दिप दिप दमकती
स्वर्णरेखी इच्छाएं हैं अनगिन
रात दिन अब भी मचलती
चित तो अब भी है चंचल
किन्तु हुआ है तन अचंचल
इनके समंजन का आ बने
अब कोई तो नवीन संबल
कितनी साधें और साधनाएँ
क्या रहेगीं चिर अधूरी
पल छिन घट रही है
जब जीवन डोर की दूरी
काल का पहिया थमे
रुक जाए यह द्रुतगामी समय
कर सकूं संकल्प पूरे
जो कभी लिए मैंने अभय
आह्वान है यह समूची संसृति
और सृष्टि से निरंतर
कुछ मंद हो यह जगत गति
और समय जाए ठहर
पलक पावड़ें आ बिछाए
विगत की जीवन्तता है
आज भी मन को रमाये
कामनाएं जीवन क्षितिज पर
आज भी दिप दिप दमकती
स्वर्णरेखी इच्छाएं हैं अनगिन
रात दिन अब भी मचलती
चित तो अब भी है चंचल
किन्तु हुआ है तन अचंचल
इनके समंजन का आ बने
अब कोई तो नवीन संबल
कितनी साधें और साधनाएँ
क्या रहेगीं चिर अधूरी
पल छिन घट रही है
जब जीवन डोर की दूरी
काल का पहिया थमे
रुक जाए यह द्रुतगामी समय
कर सकूं संकल्प पूरे
जो कभी लिए मैंने अभय
आह्वान है यह समूची संसृति
और सृष्टि से निरंतर
कुछ मंद हो यह जगत गति
और समय जाए ठहर
रस भाव और वर्ण मात्रा की त्रुटियों की और पारंगत जन ध्यान दिलाकर ठीक करायेगें यह अनुरोध भी है.
कवि के रूप में आपको पढ़ना बहुत अच्छा लगा. सीधे दिल से निकले भाव बहुत प्यारे हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,,,आपका कविताई करना अच्छा लगा ,,
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
जब सीधे दिल से लिखोगे कविता होगी,बनाने से नहीं बनती।
जवाब देंहटाएं.
.
शुभकामनायें :)
शिष्य की सलाह उचित और सामयिक है , गौर करियेगा ..
हटाएंबढती उम्र , कचोटता मन पर मन की भावनाएं तो सच्ची ही लग रही , मगर कविताई ठीक ठाक ही है !
जवाब देंहटाएंफेसबुक पर तो आपने लिखा कि यह जम नहीं रही और ईहाँ ठीक ठाक ?
हटाएंमतलब एक ही है, यहाँ थोड़ी ज्यादा विनम्रता से लिखा है कि जम नहीं रही !
हटाएं:-)
हटाएंहम तो दोनों जहाँ तारीफ़ करेंगे....
भला इसमी बुरा क्या है??
सहज अभिव्यक्ति...
बस पावंडे की जगह क्या "पांवड़े" नहीं होगा चाहिए ??
सादर
अनु
कर दिया पावड़ें -शुक्रिया !
हटाएंबड़ी सूक्ष्म दृष्टि है आपकी :-)
:) honesty. best policy . :)
हटाएं(:(:(:
हटाएंpranam
जवाब देंहटाएंअजी क्या रखा है छंद में असल बात है भाव रस और राग जो भरपूर है रचना में। छंद मुक्त छंद निर्बंध निराला पर कौन ऊंगली उठा पाया है। लोग तो कई गद्य भी कविता मय कविता से ज्यादा गति और भाव लिए लिखते हैं। सुन्दर रचना है बाकी छ्न्दाचार्य जाने। मैं क्या जानूं ?ॐ शान्ति
वैसे कविता के भाव अच्छे हैं !
जवाब देंहटाएंप्रयास सफल होंगे
जवाब देंहटाएंक्या हुआ जो प्रौढ़ता ने,पलक पावंडे आ बिछाए
विगत की जीवन्तता है आज भी मन को रमाये
कामनाएं क्षितिज पर अब भी दमकती नज़र आयें
अनगिनत इच्छाएं ऎसी, जो ह्रदय से जा न पायें
चित्त तो चंचल है, मगर तन साथ दे पाता नहीं !
इनके सामंजस्य का संबल,कोई दिखला न पाए !
कितनी साधें, साधनाएँ हैं अभी तक भी अधूरी
किन्तु जीवन डोर कम है,तड़प पूरी कर न पायें !
कर सकूं संकल्प पूरे, हाय जो मैंने लिए थे !
काश बीते दिन जवानी के, दुबारा लौट आयें !
आह्वान है यह समूची सृष्टि से करता निरंतर
मंद हो जाए गति औ समय बापस लौट आये !
कृपया ध्यान दें :
मेरी रचनाएं मौलिक व अनपढ़ हैं , इनका बाज़ार में बताई गयी किसी साहित्य शिल्प, विधा और शैली से कोई लेना देना नहीं ये उन्मुक्त है और उन्मुक्त मन से इनका आनंद लें !
आपके सिद्धहस्तों ने कविता को और भी लावण्य दे दिया है बस जवानी को यौवन करना ज्यादा उपयुक्त होगा !
हटाएंचित्त चंचल है, मगर तन साथ दे पाता नहीं !
जवाब देंहटाएंइनके सामंजस्य का संबल,कोई दिखला न पाए !
कविताई की शुरुआत में एक कविता अभिलाषा नाम से ही लिखी थी ...नज़र है !!
जवाब देंहटाएंचले सावन की मस्त बहार
हवा में उठती एक सुगंध,
कि मौसम दिल पर करता चोट
हमारे दिल में उठे हिलोर,
किन्ही सुन्दर नैनों से घायल होने का मन करता है !
किसी चितवन की मीठी धार
किसी के ओठों की मुस्कान
ह्रदय में उठते मीठे भाव
देख के बिखरे काले केश
किसी के दिल की गहरी थाह नापने का दिल करता है !
किसी के मुख से झरता गान
घोलता कानों में मधुपान,
ह्रदय की बेचैनी , बढ़ जाए
जान कर स्वीकृति का संकेत
कहीं से लेकर मीठा दर्द, तड़पने का दिल करता है !
कहीं नूपुर की वह झंकार ,
कहीं कंगन की मीठी मार
किन्ही नयनों से छूटा तीर
ह्रदय में चोट करे, गंभीर !
कसकते दिल के गहरे घाव दिखाने का दिल करता है !
झुकाकर नयन करें संकेत ,
किसी के मौन ह्रदय की थाह
किसी को दे डालो विश्वास
कहीं पूरे कर लो अरमान !
किसी की चौखट पर अरमान लुटाने का दिल करता है !
क्या कहने -आनंद आ गया !
हटाएंगज़ब है! बहुत सुन्दर।
हटाएंआनंद दायक।
हटाएंजो मन में था शब्दों में ढला....
जवाब देंहटाएंपढ़कर अच्छा लगा .....
accha laga is kavita ko padhna :) pryaas dil se ho to likhe shbad khubsurat hote hain
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक चेतना संपन्न डॉ अरविन्द मिसिर को कविताई का शौक चर्राया तो झेला दिहिन अपने विगत की जीवन्तता । अच्छा किया कि कविता के मोहर में मोहर प्रौढ़ता की ही लगी है। कवीता बांचकर कोई सोच सकता है कि जब प्रौढ़ के यहां इत्ती "अनगिन स्वर्णरेखी इच्छाएं" मचल रही हैं तो जवानी के काउंटर पर एकदम मामला एम्मी एम्मी होगा।
जवाब देंहटाएंhttp://chitthacharcha.blogspot.in/2013/08/blog-post.html
ऐसा मालूम होता है आप ने कविता नहीं लिखी बल्कि दर्पण में आप के अक्स ने कविता लिख भेजी है!कुछ- कुछ कन्फेशन सा प्रतीत हो रही है.
जवाब देंहटाएंकविता लिखना अगर 'दुष्कर्म' होता तो अंतर्जाल की बरसात में कुकरमुत्ते की तरह जगह -जगह न उगे होते.--'वाह-वाही' के लिए फेसबुक में तो फेस अधिक बुक कम देखी जाती है.
हाँ ,साहित्य की नज़र में अच्छी कविता के अलग मापदंड हैं.
मैं तो यही कहूंगी कि बहुत खूब! बहुत सुन्दर और सार्थक भाव- अभिव्यक्ति.
सतीश जी को हमेशा आप की कविताओं से प्रेरणा मिल जाती है तुरंत नयी कविता लिखनी की,[पिछली कविताई पोस्ट पर भी ध्यान दें]
इसे अपनी रचना की सार्थकता समझिये.
@लिखनी..को लिखने* पढ़ें.
हटाएं-----
और मुझे लगा ऊपर लिखी कविता'अभिलाषा 'सतीश जी ने अभी लिखी है..लेकिन वह तो उनके लेखन के शुरूआती दौर की कविता है...
@अल्पना वर्मा ,
हटाएंअरविन्द जी के भाव बेहतरीन हैं जिन्हें महसूस कर कविता अपने आप बन जाती है , कविता लेखन की प्राथमिक आवश्यकता अच्छे भाव हैं जो मन को छू जाती है फिर सब आसान हो जाता है !
अल्पना जी,
हटाएंदृष्टि की जिस गहनता से आप विषय को देखती हैं और पूरे परिप्रेक्ष्य में अपने विचार रखती हैं मुझे हमेशा प्रभावित और प्रेरित भी करता रहा है -ऐसे ही ब्लॉग विदुषी तो कहा नहीं था आपको !
अपने संभवतः दुष्कर लिखना चाहा और वह दुष्कर्म हो गया है! मैंने कविता को दुष्कर कहा है दुष्कर्म नहीं!
जहाँ तक सतीश जी का संदर्भ है हे गाड गिफ्टेड गीतकार हैं -भावों को गेयता देना तो कोई उनसे सीखे !
आपने प्रोत्साहन दिया जिसकी जरुरत भी थी /है बहुत आभार आपका!
:)..@ त्रुटि सुधार हेतु शुक्रिया..वह शब्द 'दुष्कर' ही पड़ा जाए दुष्कर्म' नहीं..क्षमा चाहती हूँ.
हटाएंअच्छा हुआ आप ने त्रुटि की ओर ध्यान दिलाया अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता !
उस वाक्य में कवि/कवयित्री शब्द भी लिखना छूट गया.
..................
सतीश जी गीत गिफ्टेड गीतकार हैं.सहमत.
ओहो ...ऊपर की पंक्तियों में 'पड़ा' की जगह 'पढ़ा'.पढ़ा जाए..लगता है अब रीडिंग चश्मा लगाना ही पड़ेगा!
हटाएं
जवाब देंहटाएंहाय ! तन और मन में जब तालमेल बिगड़ने लगे तो समझो यौवन अब कविता के लायक ही रह गया है ! :)
मनोभावों को ईमानदारी से शब्दों में उतारा है. सुन्दर प्रयास है.
अभी तो यह झेलिए...
जवाब देंहटाएंचित तो अब भी है चंचल किन्तु तन अचंचल ..
इसके स्थान पर....
चित्त तो अब भी है चंचल किन्तु तन चित पड़ा है।
दुनियाँ का शायद ही कोई लेखक ऐसा हो जिसके हृदय में कवि का जन्म न हुआ हो।
जवाब देंहटाएंमाया तृष्णा न मरी मर मर गए शरीर
जवाब देंहटाएंमाया तू न गई मेरे मन से
जवाब देंहटाएंअब की बार ऐसा न हो जाये
जवाब देंहटाएंकेशव केसन अस करी जौ अरी हूं न कराही
चन्द्र बदन मृगलोचनि बाबा कहि कही जाहीं
मानता कोई नहीं पर यह कष्ट तो सबको रहता है ... :)
हटाएंकविता दुरुस्त है। वाक्य तोड़ दिये जाँय तो आज के हिसाब की कविता में यह काफी ऊपर खड़ी हो..बात गीत लिखने की हो तो अलग है।
जवाब देंहटाएंमन की गति को अपना माने,
जवाब देंहटाएंबने ब्रॉनियन घूम रहे सब।
आपने सही कहा हिमांशु -मेरे मन में भी यह विचार आया था -
जवाब देंहटाएंचलिए मैं तोड़ता हूँ ... अब भले ही लोग कहें कि साहित्य में भी तोड़ फोड़ :-)
"कृपया ध्यान दें :
जवाब देंहटाएंमेरी रचनाएं मौलिक व अनपढ़ हैं , इनका बाज़ार में बताई गयी किसी साहित्य शिल्प, विधा और शैली से कोई लेना देना नहीं ये उन्मुक्त है और उन्मुक्त मन से इनका आनंद लें !"
सुप्रिया सक्सेना साहब -मेरी रचनाएं मौलिक और अन गढ़ कर लें (अन पढ़ या अ -पढ़ नहीं ).
अरविन्द भाई -
वियोगी होगा पहला कवि , आह से निकला होगा गान ,
निकल कर अधरों से चुपचाप ,बही होगी कविता अनजान।
नर क्रोंच पक्षी के बहेलिया द्वारा वध के बाद मादा क्रोंच का विलाप देख बाल्मीक के कमल मुख से स्वत : ही एक श्लोक निकला था जिसे दुनिया की पहली कविता समझा गया है।
ऊपर की पंक्तियाँ उसका हिंदी में तर्ज़ुमा हैं।
आपकी रचना बहुत ऊंचे पाए की है। कविता कोई टी शर्त या पेंट नहीं है जिसके जमने न जमने का सवाल खड़ा हो।फिर बाहर तो शब्द ही होते हैं कविता तो अन्दर होती है। अर्थ भी उसके हमारे अन्दर ही होतें हैं। किसी में होते हैं किसी में नहीं। सब संजोग की बातें हैं।
वीरू भाई
हटाएंजब तक आप जैसे गुणग्राही और सहज ह्रदय हैं मुझ जैसों का हौसला कायम रहेगा !
@ शब्द और कविता के अर्थ हमारे अन्दर होते हैं ,
हटाएंअर्थ नहीं समझा हो ऐसा तो है नहीं , जैसा कि टिप्पणी में लिखा है " मन के भाव सच्चे ही लगे ".
कविता में नहीं जमी तो नहीं जमी , कई बार अनगढ़ भी जम जाती है! यूँ भी मैं कोई काव्य आलोचक हूँ नहीं , जो सहज प्रतिक्रिया थी ,वही व्यक्त हुई। पसंद अपनी -अपनी, सहज अपना -अपना
सादर !
हमने तो आपसे स्पष्टीकरण माँगा नहीं वाणी जी
हटाएंअपनी अपनी रूचि और समझ होती है किसी को
कोई रचना खराब लगती है तो दूसरे को बहतरीन
वैसे भी कवि विवेक एक नहिं मोरे ...........
आपने स्पष्टवादिता दिखाई जो मुझे पसंद है
" मा निषाद ! प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती समा:।यत् क्रौञ्चमिथुनादेकं अवधीः काममोहितम् ॥" आदि काव्य । "क्रौञ्च के इस मुग्ध जोडे से किया हत एक । तू न पाएगा प्रतिष्ठा व्याध वर्ष अनेक ॥"-महादेवी वर्मा
हटाएं@कर सकूं संकल्प पूरे
जवाब देंहटाएंजो कभी लिए मैंने अभय
आह्वान है यह समूची संसृति
और सृष्टि से निरंतर
कुछ मंद हो यह जगत गति
और समय जाए ठहर
काश की ऐसा होता,
बहुत सुन्दर रचना है !
आभार सुमन जी
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की ६०० वीं बुलेटिन कभी खुशी - कभी ग़म: 600 वीं ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया टिपण्णी -देव।
जवाब देंहटाएंवस्तुतः कविता में रसानुभूति होना चाहिए भले ही उसमें अलंकार अथवा छन्द हों या न हों । आपने सुन्दर ढंग से अपनी भावाभिव्यक्ति दी है, मुझे अच्छी लगी । लिखते रहिये ।
जवाब देंहटाएं