वर्धा में महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय के तत्वावधान में ब्लागिंग पर एक और सेमीनार ( 2 0 -2 1 सितम्बर, 2013) का बिगुल बज चुका है। ब्लागरों से मौलिक और अभिनव विषयों के प्रस्ताव मांगे गए हैं जिन्हें एक कमेटी के सामने रखा जायेगा और उसी आधार पर प्रतिभागियों का चयन होगा . ऐसा इसलिए किया गया है क्योकि प्रतिभागियों के चयन को लेकर प्रायः हो हल्ला मचता रहा है। मुझे कोई आश्चर्य नहीं कि अब प्रतिभागियों की संख्या में बड़ी गिरावट आ जायेगी . लोग ऐसे मामलों में यहाँ प्रायः गंभीर नहीं है -सब चाहते हैं उन्हें बस ससम्मान आमंत्रित कर लिया जाय और किसी सत्र में कुर्सी आफर कर दी जाय . किसी भी सेमीनार आयोजन के नियम कायदे होते हैं . यहीं नहीं, पूरी दुनिया में ऐसा है -मगर हिन्दी के ब्लागर ऐसे किसी अनुशासन को नहीं मानते हैं . जाहिर है अभी भी इस सेमीनार के संयोजक सिद्धार्थ जी के पास ठोस प्रस्तावों की कमी होगी .
मुझे लगता है ऐसे आयोजनों में हम जैसे पुरायटों और गुरु घंटालों के बजाय नई पीढी के प्रतिभावान ब्लागरों को भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए . उन्हें सीखने की जरुरत ज्यादा है -उनमें विचार परिवर्तन , दृष्टिकोण शैथिल्य की गुंजायश भी ज्यादा है . उनके पूर्वाग्रहों को उपयुक्त परिवेश से दूर करने की संभावनाएं और इस तरह दृष्टिकोण को व्यापक फलक देने के अवसर अधिक हैं . मेरी यह पोस्ट उन्ही के लिए है . अनुरोध सभी से है कि कृपया इस पोस्ट की चर्चा अपने संपर्क के नए ब्लागरों से जरुर करें . और अगर आपके यहाँ पांच वर्ष से अधिक का समय हो चुका है तो खुद के बजाय किसी नए संभावनाशील ब्लॉगर को सेमीनार में जाने को ज्यादा प्रोत्साहित करें . मैंने कुछ नए ब्लागरों से बात की है . मगर यह इतना आसान भी नहीं है . नए ब्लागरों का भी अपना एक एट्टीच्यूड होता है और पुरानी पीढी के प्रति उनकी कई वाजिब शंकाएं और अविश्वास होते हैं . और उन्हें मदद भी चाहिए . गाईडेंस भी चाहिए .
नए ब्लागरों तक अगर मेरी बात पहुँच जाए यो सबसे पहले वे इसकी परवाह किये कि उनका प्रस्ताव सेमीनार के लिए स्वीकृत हो पायेगा या नहीं अपना स्लीपर श्रेणी का रिजर्वेशन तो करा ही लें -क्योंकि अब समय बहुत कम बचा है . अगर उनका प्रस्ताव सम्मिलित हो भी गया तो बहुत संभव है उन्हें जाने का टिकट ही न मिल पाए . और न हुआ तो स्लीपर क्लास के टिकट कैंसिल कराने में कोई ज्यादा आर्थिक नुक्सान नहीं है . अगर उनके पास कनफर्म्ड टिकट है तो प्रस्ताव स्वीकृत होने पर बल्ले बल्ले. कभी भी किसी सेमीनार में जाने का मकसद कुछ सीखना होना चाहिए न कि विचार आरोपण . यह संकल्प लेकर ही जाना चाहिए .
मुझे लगता है ऐसे आयोजनों में हम जैसे पुरायटों और गुरु घंटालों के बजाय नई पीढी के प्रतिभावान ब्लागरों को भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए . उन्हें सीखने की जरुरत ज्यादा है -उनमें विचार परिवर्तन , दृष्टिकोण शैथिल्य की गुंजायश भी ज्यादा है . उनके पूर्वाग्रहों को उपयुक्त परिवेश से दूर करने की संभावनाएं और इस तरह दृष्टिकोण को व्यापक फलक देने के अवसर अधिक हैं . मेरी यह पोस्ट उन्ही के लिए है . अनुरोध सभी से है कि कृपया इस पोस्ट की चर्चा अपने संपर्क के नए ब्लागरों से जरुर करें . और अगर आपके यहाँ पांच वर्ष से अधिक का समय हो चुका है तो खुद के बजाय किसी नए संभावनाशील ब्लॉगर को सेमीनार में जाने को ज्यादा प्रोत्साहित करें . मैंने कुछ नए ब्लागरों से बात की है . मगर यह इतना आसान भी नहीं है . नए ब्लागरों का भी अपना एक एट्टीच्यूड होता है और पुरानी पीढी के प्रति उनकी कई वाजिब शंकाएं और अविश्वास होते हैं . और उन्हें मदद भी चाहिए . गाईडेंस भी चाहिए .
नए ब्लागरों तक अगर मेरी बात पहुँच जाए यो सबसे पहले वे इसकी परवाह किये कि उनका प्रस्ताव सेमीनार के लिए स्वीकृत हो पायेगा या नहीं अपना स्लीपर श्रेणी का रिजर्वेशन तो करा ही लें -क्योंकि अब समय बहुत कम बचा है . अगर उनका प्रस्ताव सम्मिलित हो भी गया तो बहुत संभव है उन्हें जाने का टिकट ही न मिल पाए . और न हुआ तो स्लीपर क्लास के टिकट कैंसिल कराने में कोई ज्यादा आर्थिक नुक्सान नहीं है . अगर उनके पास कनफर्म्ड टिकट है तो प्रस्ताव स्वीकृत होने पर बल्ले बल्ले. कभी भी किसी सेमीनार में जाने का मकसद कुछ सीखना होना चाहिए न कि विचार आरोपण . यह संकल्प लेकर ही जाना चाहिए .
अब सवाल है कि विषय प्रस्ताव क्या हो? बहुत से विषय हैं . मगर आपको तो कुछ मौलिक सोचना है .हिन्दी ब्लागिंग की यात्रा कथा दशक पुरानी हो चुकी है . हम पुरायटों को लगता है कि जो उत्साह शुरू में था अब उसकी तुलना में ब्लागिंग में आधा उत्साह भी नहीं रहा . तो क्या हिन्दी ब्लागिंग चुक चुकी है? साहित्य के लोग पहले ही इस विधा का उपहास उड़ा रहे थे! क्या उनकी फब्तियां सच हो रही हैं? क्या सचमुच ब्लागिंग दोयम दर्जे का साहित्य है या यह साहित्य है ही नहीं? या यह कोई विधा ही नहीं है बस एक माध्यम भर है? क्या पारम्परिक साहित्य की विधाओं के लिए ब्लागिंग में कोई स्कोप नहीं है? मगर लगता तो ऐसा नहीं है -कवितायें तो यहाँ खूब फल फूल रही हैं . मैंने पिछले दिनों बहुत अच्छी कवितायें पढी हैं . मगर ज्यादातर कूड़ा करकट ही हैं यह बात भी सही है . मगर ऐसे आकलन का नजरिया भी सापेक्ष / विषयनिष्ठता लिए हो सकता है. .
तकनीक की ब्लागिंग/ब्लागिंग की तकनीक और अन्यान्य विषयों पर कंटेंट आधारित पोस्ट में आपकी अभिरुचि क्या है? आपको ब्लागिंग में क्या समस्यायें दिखती हैं? क्या ब्लागिंग सचमुच अभिव्यक्ति का एक खुला माध्यम है? इस पर नियंत्रण होना चाहिए क्या ? अगर हाँ तो उस नियंत्रण की सीमाए क्या होनी चाहिए? क्या आप इसे एक सशक्त वैकल्पिक मीडिया के रूप में उभरता देख रहे हैं या फिर यह हाशिये पर ही रह जाएगी? वैयक्तिक अभिव्यक्ति बनाम सामूहिक अभिव्यक्ति में आप इसे किस रूप में अधिक समाजोपयोगी पाते हैं -ब्लागिंग के सामजिक सरोकार क्या हो सकते हैं? यह किस तरह समाज के किन किन पहलुओं को लाभान्वित कर सकता है . यह क्या पारम्परिक मीडिया की कभी बराबरी कर पायेगा ? उनके सामने सीना ठोक खड़ा हो सकेगा? क्या यह नागरिक पत्रकारिता के रूप में सशक्त बन पायेगा? ब्लागिंग को कैसे करियर के रूप में विकसित किया जा सकता है?युवाओं के सामने करियर एक बड़ा प्रश्न है? क्या इस रचनात्मक विधा को अर्थोपाजन से जोड़ कर देखा भी जाना चाहिए?
क्या कहा आपको इनमें से कोई सवाल रुचिकर नहीं लग रहा है? तो अपना कोई अभिनव प्रस्ताव दीजिये न? हाँ ऊपर तो एक झलक भर है -वस्तुतः ब्लागिंग का फलक अभी भी बहुत कुछ अनदेखा /वर्जिन ही है!बहुत संभावनाएं हैं! कोई भी पहलू आपको प्रेरित कर सकता है और आप अपना प्रस्ताव भेज सकते हैं। बाकी विवरण यहाँ और यहाँ देख ही सकते हैं! अगर अभी भी आपको कोई विषय समझ में नहीं आया तो शायद आप अभी ऐसे किसी सेमिनार में प्रतिभाग के योग्य नहीं हुए! और यह पोस्ट आपको कुछ भी प्रोत्साहित कर गयी है तो स्वागत है आपका ! आपसे वर्धा में मुलाक़ात होगी अगर चयन समिति ने मेरे भेजे विषय को अनुमोदित कर दिया . मैंने अपना विषय प्रस्ताव पहले ही भेज दिया है - ब्लागिंग: माध्यम बनाम विधा और साईंस ब्लागिंग पर भी एक दो दिन में एक प्रस्ताव भेजने वाला हूँ ! मतलब जाने की सम्भावना को अपनी ओर से दुगुनी कर चुका हूँ! बाकी आयोजकों की मर्जी!
आशा है कंट्रोवर्सी पर नकेल लगेगी
जवाब देंहटाएंआप ऐसी दिल बैठाने वाली बात क्यों कर रहे हैं? कन्ट्रोवर्सी को आने मना तो नहीं किया गया है आयोजकों द्वारा। :)
हटाएंकन्ट्रोवर्सी को आने से मना तो नहीं किया गया है...
हटाएंशुभकामनायें आपको ..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं काहें की सतीश भाई ?
हटाएं@ मतलब जाने की सम्भावना को अपनी ओर से दुगुनी कर चुका हूँ! बाकी आयोजकों की मर्जी!
हटाएंआपको निमंत्रण मिले अतः शुभकामनायें अरविन्द भाई !
हटाएंआप नहीं चल रहे क्या ? ऐसा गज़ब न करिए !
हटाएंआपने नये ब्लॉगरों को काफी लीड (सूत्र) थमा दिए हैं।
जवाब देंहटाएंमैं एक बात की ओर ध्यान दिला दूँ कि यह सेमिनार केवल ब्लॉग पर नहीं है बल्कि इंटरनेट पर अभिव्यक्ति के लिए प्रयोग की जा रही तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी हिंदी माध्यम की अभिव्यक्ति के संबंध में चर्चा करने के लिए आयोजित किया जा रहा है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की तरह ब्लागिंग एक मंच बन गया है जहां कोई हाई कमान नहीं है यह अच्छी बात है आगे बढ़ने के लिए हाय हल्ला और विमत भी ज़रूरी है। पब्लिसिटी सबको चाहिए वर्धा हो या सरदा। ॐ शान्ति
जवाब देंहटाएंअद्यतन करने के लिए आभार। सद्य -स्नाताएं साड़ी आपके पास रहतीं हैं। बढ़िया अपडेट।
जवाब देंहटाएंआप हमें आने को उकसा रहे हैं कि मना कर रहे हैं, हम किस श्रेणी में आते हैं, प्रभो?
जवाब देंहटाएंमैं तो आपसे पहले ही अनुरोध कर चुका हूँ।
हटाएंप्रवीण जी आपका पहुंचना तो फाइनल मान रहा हूँ
हटाएंहार्दिक बधाईयां और अनंत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ताऊ आप काहें पिछड़ रहे हैं ?
हटाएंप्रतिभागियों की संख्या कम होगी तो गुणवत्ता क हिसाब से शायद बेहतर ही होगा। गंभीर ब्लॉगर्स बहुत हैं भी नहीं। विश्वास है इस महामंथन से कुछ अच्छा निकल कर आयेगी। विस्तृत रिपोर्ट्स की बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंआपकी संभावनाओं पर आयोजकों की मर्जी.., सिद्धार्थ जी महती जिम्मेदारी का ईशारा कर ही चुके हैं:) सतीश भाईजी शुभकामनायें दे चुके हैं, मैं बधाई देता हूँ।
आप भी न चलिए न -क्या है रखा है दो टकिया नौकरी में :-)
हटाएंहमारी ओर से भी बधाई स्वीकारिए!
हटाएंसही है ..
हटाएंआभार संजय सर !
ढेर जोगी मठ उजाड़ :)
हटाएंकम है तो बेहतर है.
Aanekee ichha to rahegee aage bhagwanki marzi!
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतीक्षा रहेगी
हटाएंऐसे आयोजनों से ब्लागिंग और समृद्ध होगी, जो भाग ले रहे हैं उन्हें पूरी तैयारी से अपनी बात रखनी चाहिए और अगर दूसरों का अनुभव भी वह वहाँ शेयर करें तो भी अच्छा होगा क्योंकि मैं तीन सालों में देखा है यह माध्यम लगातार दरकता जा रहा है जबकि फेसबुक में लिखने वालों की नई प्रजाति खड़ी हुई है। ऐसे बौद्धिक और लोकप्रिय मंचों में अगर ब्लागिंग के पक्ष में आवाज उठे तो इसकी बेहतर तस्वीर बनेगी।
जवाब देंहटाएंअब आप भी कन्नी काट रहे हैं क्या ?
हटाएंआप हमारी प्रतिनिधि आवाज हैं
हटाएंमेरी भी ...
हटाएं:)
ये तो सब टाल मटोल के फिकरे हैं :-(
हटाएंअच्छी पहल, हम भी अपने विषय ज़रूर देंगे। वैसे,,, अपने विषय हम कहा भेजें?? :)
जवाब देंहटाएंनये लेख : ट्विटर पर "रिपोर्ट एब्यूज" बटन, फेसबुक से ईनाम और द्वितीय विश्वयुद्ध से जुड़े ख़ुफ़िया दस्तावेज हुए ऑनलाइन।
जन्म दिवस : किशोर कुमार
sstwardha@gmail.com) पर प्रेषित कीजिए।
हटाएंबढिया। अग्रिम बधाईयाँ :)
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ जी को और सभी आयोजकों / participants को शुभकामनायें। :)
अब आप क्यों शुभ सन्देश दे रही हैं -चलना है न!
हटाएंआदरणीय सर्व प्रथम आपको हार्दिक बधाई आप अपने जाने की सम्भावना अपनी ओर से दोगुनी कर चुके हैं, आपका चिंतन बिलकुल सटीक एवं सत्य है. जहाँ तक आप नए ब्लॉगर की है तो आदरणीय नए ब्लॉग अब हैं कहाँ दो चार दिन ब्लॉग्गिंग करते हैं और फिर उन्हें फेसबुक अपनी ओर खींच ले जाता है और ब्लॉग्गिंग समाप्त. नए रचनाकारों को ब्लॉग से कहीं अधिक फेसबुक लुभावना लगता है आखिर क्यों?
जवाब देंहटाएंक्या केवल इसलिए क्यूंकि फेसबुक पर लाइक, बहुत अच्छे, बहुत सुन्दर, बहुत खूब जैसी टिप्पणियां और गपशप करने को मिल जाता है?
सादर
इसी विषय पर चर्चा के लिए वर्धा चलिए न!
हटाएंब्लॉग बनाम फेसबुक
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंकोशिश रहेगी आदरणीय यदि कोई अवरोध उत्पन्न न हुआ.
हटाएंकरें हम भी कोशिश ?
जवाब देंहटाएंक्यों नहीं ,जरुर
हटाएंbadhai
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा.
जवाब देंहटाएंसफल आयोजन हेतु शुभकामनाएँ.रिपोर्ट की प्रतीक्षा रहेगी.
सफल आयोजन के लिए अग्रिम बधाईयाँ और सभी को शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंआप क्यों नहीं चल रहीं?
हटाएंहिंदी ब्लॉगिंग का भविष्य उज्जवल हो.
जवाब देंहटाएंआयोजन बेहतरीन हो ,बहुत शुभकमनाएं!
आप भी नहीं चल रहीं ? :-(
हटाएं
जवाब देंहटाएंमिश्र जी ,इस प्रकार का आयोजन तो विचारों के आदान प्रदान के लिए अच्छा है ,अगर पूरा कार्यक्रम का रूप रेखा बता दिया जाय तो सफलता की उम्मीद बढ़ जाती है - अग्रिम सुभ कामनाएं
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latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंसीधी बात - आने जाने का खर्च मिले तो हम आने को तैयार हैं :)
जवाब देंहटाएंअपने विचार और व्यय प्रस्ताव सिद्धार्थ जी को उपलब्ध करा दीजिये! आपके नेटिव स्थान से थ्री ऐ सी में आना जाना तो हम संस्तुत कर सकते हैं ! :-)
हटाएंउम्मीद है सेमिनार से ब्लॉगिंग की गुणवत्ता में और सुधार आये.
जवाब देंहटाएंआपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
चल रहा हूँ।
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