शनिवार, 10 दिसंबर 2011

आखिर कितनी गंदी है यह 'गंदी फिल्म"?

द डर्टी फिल्म* * * * 

आप परिवार वाले हैं तो ऐसी फिल्म देखने के लिए जिगरा चाहिए....वैसे कोई जिगरा वाला भी पूरे परिवार के साथ  इस फिल्म को नहीं देख सकता ...उम्र की अधेड़ता को उघाड़ता पहला ही हाट बेड सीन बहुत आपत्तिजनक है ..कहाँ आकर फंस गए ..यही कोफ़्त हुई..मगर इस नकारात्मक सीन का एक  अलग एंगल  था जैसे  वह गौण सा हो और अभी बहुत कुछ दिखना सुनाना बाकी हो ...और यही सच भी था... अभी तो पूरी फिल्म बाकी थी ..पूरी बात अभी बाकी थी ....

मैं कहानी नहीं सुनाने जा रहा हूँ -बस एक छोर पकड़ा दूं ...एक अति साधारण परिवेश की लेकिन महत्वाकांक्षी लडकी की कहानी है जिसका आदर्श वाक्य यही है कि अहम फैसलों के लिए जिन्दगी दुबारा नहीं मिलती ..वह अपने शरीर को ही अपनी सबसे बड़ी पूजी मानकर खुद को पुरुषों के वर्चस्व और दोहरे मानदंडों वाली चकाचौध की व्यावसायिक दुनिया को समर्पित कर देती है ....और सफलता की सीढियां चढ़ती जाती है ....उसे यह मुगालता रहता है कि वह  लोगों को जो वे चाहते हैं देकर अपना मुकाम पा लेगी ...मगर विडंबना यह कि शोषण तो खुद उसी का होता है...और अंत में उसके पास केवल गंदी (पोर्न ) फिल्मों का विकल्प बचा रहता है -दैहिक भूख का बाज़ार ही ऐसा है जहाँ  मनुष्य की मनुष्यता  उससे छीन ली जाती है,  उसकी चेतना को कुंद करती  है, खुद को  खुद से अलग कर देती  है ..मैरिलिन मोनरो के साथ यही हुआ,दक्षिण की उस अभिनेत्री सिल्क  के साथ भी यही हुआ (जिस पर इस फिल्म को आधारित कहा जा रहा है ) ..... इस फिल्म की हीरोइन के किरदार ने  अंत में जब आत्महत्या कर ली  तो  यह एक दुखान्त और मार्मिक फिल्म बन जाती है ..मन संजीदा हो उठता है ....सारा गंदापन, सारी काम लोलुपता ,कामोद्दीपकता की चाह काफूर हो उठती है ...बल्कि एक क्षोभ सा भाव  ,एक कसक सी तारी हो उठती है सारे तन मन पर,पूरे वजूद पर  ......

फिल्म के कितने ही दृश्य गंदे या आपत्तिजनक भले हैं   मगर वे फिल्म का मुख्य प्रतिपाद्य /सबब नहीं बने हैं जो निर्देशक की कुशलता को बयां करते हैं ..सच कहूं तो यह निर्देशक की फिल्म है जिसने फिल्म के कंटेंट और अभिनेताओं के अभिनय को पटरी से उतरने नहीं दिया  ..हाँ इंटरवल के बाद कहीं कहीं कुछ दृश्य उबाऊ से हैं मगर यह फिल्म  का उत्तरार्ध ही है जो फिल्म के मूल मकसद को सामने ला पाने में पूरी तरह सफल साबित होता  है. फिल्म का संदेश बिलकुल लाउड एंड क्लीयर है -प्रेम जैसी उदात्त भावना सर्वोपरि है  ... देह का उत्सव मन के राग के आगे फीका है ....मानवीयता के इसी  शाश्वत पहलू की पुरजोर  प्रस्तावना और पुनरूस्थापना  करती दिखती है फिल्म और इसलिए चिर स्थाई  छाप छोड़ जाने में सफल होती है .....देह का आकर्षण ,वासना की भूख, प्रेम की एक महीन अनुभूति के आगे कितनी बौनी पड़ जाती है फिल्म ने इस पहलू को बहुत ही भावभीने और कलात्मक ढंग से उभारा है ....
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फिल्म के संवाद द्विअर्थी भले हैं मगर उनकी मार सटीक है...चुटीले हैं और दर्शकों के मुंह से वाह की आवाज बरबस निकलती है या फिर ठहाके गूंजते हैं ....विद्या बालन ने फिल्म में जान लगा दी है ....शायद उन्हें इसी फिल्म का एक डायलाग शिद्दत से याद रहा हो कि अभिनेता को धनाढ्य बनने में कई फिल्मों का योगदान होता है मगर भिखारी बनाने के लिए बस एक ही फिल्म काफी है ....इस नग्न सत्य के बाद भी परिणीता की इस गरिमायुक्त अभिनेत्री ने ऐसा चुनौती भरा रोल और वह भी पूरी ठसक के साथ किया है -यह सचमुच प्रशंसनीय है ..मैं विद्या बालन `का फैन नहीं रहा मगर उनके अभिनय का लोहा मान गया हूँ .......

फिल्म के इंटरवल तक इसे दो या ढाई स्टार देने को सोच रहा था मगर फिल्म के आधे उत्तरार्ध के बाद यह तीन में आ गयी और तेरे वास्ते मेरा इश्क सूफियाना के फिल्मांकन के साथ ही यह फिल्म चार स्टार तक जा पहुंची ..पांचवा स्टार पाने से यह फिल्म कुछ बेहद गलीज नागवार दृश्यों के चलते रह गयी जिनके बिना भी यह एक सफल व्यावसायिक फिल्म बनी रहती .....मगर फिल्म निर्माता कुछ ऐसे दर्शकों का मोह नहीं छोड़ पाए .......कुछ भी हों, फ़िल्में पैसा बनाने/कमाने  के लिए  बनायी जाती हैं केवल आदर्श ही बघारने को नहीं -फिल्म में  इस विवाद को भी लिया गया है.  मगर इस आड़ में ही आपत्तिजनक दृश्यों को परोसने की चलाकी भी दिखाई गयी  हैं ....फिल्मों में गलीज और गंदे दृश्य हो या न हों इसी विवाद को एक पात्र इमरान हाशिमी ,जो फिल्म में एक आदर्शवादी निर्देशक की भूमिका में है और फिल्म की अभिनेत्री के जरिये दिखाया गया है ...और फिल्म का यही निर्देशक फिल्म को फ्लैशबैक में सुनाता रहता है ......यह निर्देशक लगभग पूरे फिल्म में अभिनेत्री से घृणा करता है मगर आख़िरी दृश्यों में उसकी सारी घृणा प्रेम की उदात्तता से भर उठती है ..मगर तब तक अभिनेत्री सिल्क साड़ी के पारंपरिक परिधान में एक  गरिमाभरी  मौत (आत्महत्या) को अंगीकार कर उठी होती है ..कुछ अतृप्त इच्छाओं का यह सांकेतिक प्रगटन था ......आखिरी सीन में यही निर्देशक और अभिनेत्री की माँ उसकी चिता को अग्नि का स्पर्श देते दीखते हैं ..फिल्म हमारे  संस्कृति के शाश्वत मूल्यों के जयघोष के साथ समाप्त होती है ......सिफारिश ही सिफारिश है ..मगर फिर आगाह करना है -यह पारिवारिक फिल्म नहीं है ....

30 टिप्‍पणियां:

  1. फिल्म तो नहीं देखा हूं लेकिन यह गाना कई बार एफ एम पर सुन चुका हूं...टीवी पर देख चुका हूं। बहुत सुन्दर गाना बन पड़ा है।

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  2. व्यग्रता के नाम पर कुछ भी करने को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है।

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  3. हमने भी कल ही देखी भाई जी । फिल्म इतनी गन्दी नहीं है जितनी डेल्ही बेली थी । लेकिन अडल्ट तो है ही । कुछेक दृश्य असहज कर सकते हैं । कुछ संवाद द्विअर्थी नहीं बल्कि साफ रूप से अडल्ट ही हैं । फिर भी एक सत्य दिखाया गया है फिल्मों की चकाचौंध से खिंचकर अभिनेत्री बनने की चाह रखने वाली लड़कियों के लिए । सिल्क स्मिता की जिंदगी पर आधारित यह फिल्म अंत में भावुक कर देती है । विद्या बालन की एक्टिंग ग़ज़ब की लगी और सुन्दर भी । उसके किरदार से अंत में सहानुभूति होने लगती है ।
    सही कहा , पारिवारिक फिल्म नहीं है लेकिन पत्नी के साथ देखने में कोई बुराई नहीं ।

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  4. गलीज नागवार दृश्य स्टार लेने के लिए नहीं नोट लेने के लिए डाले जाते हैं न:-)

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  5. फिल्म का एक और पहलू जो मुझे दिखा वो ये भी है कि सफलता का कोई भी शोर्टकट नहीं हो सकता, फिल्म अच्छी लगी, और फिल्म को वास्तविकता की तरफ लाने के लिए कुछ दृश्यों और अटपटे वाक्य विन्यासों का उपयोग किया गया है, जिसके बाद फिल्म पारिवारिक तो नहीं बचती है|
    पूरी तरह सहमत हूँ आपकी समीक्षा से, बस "इश्क सूफियाना" गाना तो बढ़िया लगा बस फिल्म में मुझे लगा कि उसकी जगह सही नहीं थी, और गाने में "पी लूं" की स्पष्ट छाप दिखी है...

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  6. ऐसा क्‍या कुछ नहीं होता आजकल फिल्‍मों में, हां नाम डर्टी के बजाय भला सा कुछ होता है.
    फिल्‍म के पहले करन जौहर की नई फिल्‍म ओम पुरी, चन्‍द्रचूड़ सिंह वाली का ट्रेलर दिखाया गया, उसके बाद इस फिल्‍म को डर्टी कहने का औचित्‍य नहीं रह जाता.

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  7. @उम्र की अधेड़ता को उघाड़ता पहला ही हाट बेड सीन बहुत आपत्तिजनक है....वाह गुरु ! एक तरफ उस दृश्य को उम्र की अधेड़ता को उखाड़ने वाला बता रहे हो,तो दूसरी ओर आपत्तिजनक,पता नहीं आप किस छोर पर खड़े हैं.अधेड़पन की लिप्सा को यदि इससे तृप्ति मिलती है तो उस अर्थ में वह सार्थक है.

    क्या फिल्म के ट्रेलर,गाने और नाम से हमें यह अंदाज़ नहीं होता की हमें वहाँ सत्यनारायण की कथा सुनने या 'घर-द्वार' जैसी पारिवारिक फिल्म देखने को नहीं मिलेगा !

    आजकल चवन्नी-छाप फ़िल्में बन भी इसीलिए रही हैं कि निर्माता को पता है कि यही चवन्नी उसे करोड़ों कमवाएगी.यहाँ तक कि कला फ़िल्में भी थोड़ा-बहुत नंगई ,गाली-गलौज कर लेती हैं.

    यहाँ हमारी पूरी 'च्वाइस' है कि ऐसी फ़िल्में ,जिनकी समीक्षा हो चुकी है,हम देखने जाएं या न जाएं.आदर्शवाद की मांग करना बेमानी है.

    वैसे मैं भी यह सब जानते हुए कि 'बोल्ड-फिलिम' है बोल्ड होने के लिए ताक में हैं,मौका मिल जाए ,बस...!

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  8. फिल्म मैने देखी है। फिल्म देखकर उसका अंत मुझे खला। मुझे लगा कि यह बहुत बेइंसाफी है। जीतना चाहिए था सिल्क को..हार क्यों गई! फिर सोचा कि सिल्क तो वाकी हारी थी...उसी पर तो आधारित है यह फिल्म।

    फिल्म के डॉयलॉग बेहतरीन हैं। मेरी अबतक देखी अच्छी फिल्मों में यह शुमार हो चुकी है।

    जरूर देखनी चाहिए। ऐसी फिल्में बार बार नहीं बनतीं।

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  9. फिल्म देखी है ...और बिलकुल यही ख्याल हैं मेरे भी .....डर्टीनेस है पर डिग्निटी के साथ .....

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  10. बढ़िया न्यूज़ ...
    कोशिश करते हैं कि देख सकें इसे ....
    शुभकामनायें आपको !

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  11. समस्या पर बात करने या उसे प्रस्तुत करने के बहाने गन्दगी परोसना हमारे भारतीय सिनेमा की विशेषता रही है . विद्या की परिणीता देखने के बाद इस फिल्म के प्रोमोज में उसे ऐसे रूप में देखना नागवार गुजर रहा था मगर यही उन्हें एक उत्कृष्ट अभिनेत्री साबित भी करता है .
    ग्लैमर की दुनिया की उपरी चमक दमक के पीछे के गहन अँधेरे में लोंग यूँ ही गुम होते हैं , त्रासदी से लोंग कुछ सबक ले तो ही ऐसी फिल्मों की सार्थकता है .
    जूली और एक नया रिश्ता कुछ ऐसी ही फिल्मे थी मगर ये कहानियां सुखांत रही !

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  12. सटीक समीक्षा प्रस्तुत की है आपने विद्या का किरदार या किरदार में विद्या का विलोपन बरसों बरस याद रहेगा .वर्ष की सर्वोत्कृष्ट अभिनेत्री रहेंगी विद्या सिल्क बालन डर्टी पिक्चर के लिए .

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  13. Bhai sab....pranam!

    Aappke aalekh ka sheershak aur uske aage lage 4 sitarre dekh main pahle to chaunk gaya tha par post ke utrardh tak aate aate sab samajh aa gaya...

    Film ka aaklan ek sameekshak ki drushti se kiya hai...joki nisandeh prashansneey hai.. Aur main aapka abhari hun ki aapne hame parivaar ke sath yah film dekhne se bacha diya...

    Dhanyawad..

    Deepak Shukla..

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  14. देखी नहीं है
    देखनी पड़ेगी

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  15. साफ़ सन्देश है कि अति महत्वाकांक्षा का मार्मिक अंत . जैसे भंवरी देवी और सुर्ख़ियों के पीछे न जाने कितनी सिल्क स्मिता . गन्दी फिल्म की अच्छी समीक्षा ..

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  16. फिल्म के स्टिल देखकर ही समझा जाना चाहिए था कि यह कैसी फिल्म है। सिल्क स्मिता के जैसी सेक्सी नर्तकी अब तक बालीवुड भी नहीं पैदा कर सकी। शीला बाई, मुन्नी बाई और जलेबी बाई सब पानी भरती!!!!!!

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  17. fair review...
    I agree with u in music.. its good
    but few songs r placed wrongly... but who cares :P

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  18. अच्छा किया कि बता दिया कि सब के सात देखने वाली फिल्म नही है यह । तो देखेंगे कभी हम दोनो ही । गाना अच्छा है ।

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  19. फिल्म नहीं देखी पर अब देखनी होगी मिश्र जी कितना गन्दा मानते है किसको अकेले ही जायेंगे :)

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  20. निर्देशक के नाम पर तो फिल्म देखने की सोच भी रहा था. पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में स्त्रियों द्वारा सफलता के लिए शौर्टकट अपनाना उन्हें शोषित होने की ओर ले ही जाता है.

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  21. @अनु सिंह चौधरी(http://mainghumantu.blogspot.com/) ने कहा,
    रिव्यू पढ़ तो सुबह में ही लिया था, कमेन्ट करने का वक्त नहीं मिला। अपनी ज़िद पर कायम रहते हुए मैं ब्लॉग पर कमेन्ट नहीं कर रही, मेल कर रही हूं। फेयर रिव्यू, इसमें कोई शक नहीं। हालांकि मैं मानती हूं कि किसी भी वूमेन इश्यू पर आप बगैर पुरुषों की बात किए बहस नहीं कर सकते। इसी तरह ये है तो विद्या द्वारा पोट्रे की गई सिल्क की फिल्म, लेकिन इसमें सूर्या, रमाकांत और अब्राहम भी बहुत अहम किरदार निभाते हैं। जो सिल्क ने किया तो पिक्चर डर्टी हो गई, जो सूर्या की बेबाक चरित्रहीनता थी उसके बारे में कोई बात नहीं हुई। लेकिन ये फिल्म भी उसे दोगले समाज का प्रतिबिंब है जिसमें हम जीते हैं। ये एक लंबी बहस है जो एक पोस्ट में नहीं समा सकती। ये एक ऐसा मुद्दा है जिसपर मैं शायद अपने बच्चों के साथ भी इसी शिद्दत के साथ बात करूं।
    ये बहस एक फिल्म में भी नहीं समा सकती। लेकिन फिल्म ने अपनी तमाम सीमाओं के साथ एक अहम संदेश दिया है। आपका रिव्यू उसका एक अच्छा एक्सटेंशन है।

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  22. maine ye film dekhi hai aur mujhe lagta hai ki darshakon ko ye hee pasand aataa hai....shaayd ab se 10 saal baad ye bahut hee common lage hum sab ko!

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  23. हम्म.... पारिवारिक तो नहीं ही है. बाकी देखते हैं.

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  24. yaha bhi dirty picture....aapki baat se sahmat hu...mere apne blog par bhi is film ki samiksha likhte samay mere mn me yahi bhav the...film ke drushya thode aapatijanak ho sakte hai par concept sach me behtareen hai...pahle laga tha nasiruddin shah he to film acchi hogi par dekhkar laga bas vidhya balan hi vidhya balan hai film me...

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  25. smashits.com से पता चलता है कि इश्क सूफियाना गीत सुनिधि चौहान ने भी गाया है। अगर फिल्म में यह गीत विद्या बालन पर फिल्माया गया होता,तो लाल जोड़े में उसकी मौत के दृश्य से इसका तारतम्य बिठाया जा सकता था।

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  26. हमारा तो पहला सीन ही छूट गया सर जी....

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  27. तारीफ़ तो सुन ही चुकी थी, आपके और समर के मुँह से, लेकिन आपकी ये समीक्षा बहुत अच्छी लगी :) खासकर के नीचे की ये लाइनें-

    "उसे यह मुगालता रहता है कि वह लोगों को जो वे चाहते हैं देकर अपना मुकाम पा लेगी ...मगर विडंबना यह कि शोषण तो खुद उसी का होता है...और अंत में उसके पास केवल गंदी (पोर्न ) फिल्मों का विकल्प बचा रहता है -दैहिक भूख का बाज़ार ही ऐसा है जहाँ मनुष्य की मनुष्यता उससे छीन ली जाती है, उसकी चेतना को कुंद करती है, खुद को खुद से अलग कर देती है"..
    "प्रेम जैसी उदात्त भावना सर्वोपरि है ... देह का उत्सव मन के राग के आगे फीका है ....मानवीयता के इसी शाश्वत पहलू की पुरजोर प्रस्तावना और पुनरूस्थापना करती दिखती है फिल्म और इसलिए चिर स्थाई छाप छोड़ जाने में सफल होती है .....देह का आकर्षण ,वासना की भूख, प्रेम की एक महीन अनुभूति के आगे कितनी बौनी पड़ जाती है फिल्म ने इस पहलू को बहुत ही भावभीने और कलात्मक ढंग से उभारा है ..."

    दूसरी बात, विद्या बहुत अच्छी हिरोइन हैं, इसमें कोई शक ही नहीं है. वो पहली फिल्म से मेरी फेवरेट है. लेकिन इमरान हाशमी को कोई चाहे जैसा समझे, वो एक अच्छा अभिनेता है. बेशक उसकी शक्ल मुझे नहीं अच्छी लगती, अभिनय अच्छा लगता है.

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  28. सोचा था जब देखूंगा तबई टिपियाऊंगा बीस साल फ़िल्म देखना छोड़ दिया है. आज़ तक
    यू-ट्यूब पर देखी वो भी किश्तों में.. सिल्क-स्मिता की कहानी को कैश किया है. कैश करना डर्टी है. फ़िल्म बेशक डर्टी ही थी. किसी एंगल से मंटो की कहानियों जैसा वातावरण नहीं बनाती. अभिनय की दृष्टी से मुख्यकलाकार वास्तव में अच्छे है

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