फैशन के नाम पर तन उघाडू संस्कृति के पोषक पश्चिमी जगत का अगर कोई जाना माना डिजाईनर भारतीय साड़ी संस्करण लांच करे तो साड़ियों की उस खेप को मैं दुशासन ब्रांड ही कहूँगा या आपके पास कोई और मौलिक सुझाव है? टाईम पत्रिका से मुझे जानकारी मिली कि 174 वर्ष पुराने पारसी फैशन हाउस हेर्मेस ने भारतीय साड़ियों की पहली खेप जारी की है जो बेहतरीन फ्रेंच सिल्क और भारतीय पारंपरिक कला और शिल्पकारिता की अद्भुत मिसाल के रूप में प्रचारित की जा रही है . मगर यह पहली खेप तो भारतीय नारियों को ललचाने के लिए है जैसा कि हेर्मेस के भारतीय अध्यक्ष बेरट्रेंड मिचौड का कहना है ....मगर इन साड़ियों का मूल्य ६००० से ८००० डालर के बीच है -मतलब तीन से चार लाख रुपये फी साड़ी....फिर तो इसे और भी दुशासन ब्रांड कहने का मन हो आया क्योंकि यह तो अमूमन भारतीय नारी के तन को घेरने वाली नहीं है ...बस फैशन शोज में दिखावे का आईटम बनके रह जायेगी जहां कपडे कम शरीर की नुमाईश ज्यादा होती है ..
इस ब्लॉग-पोस्ट के जरिये मैं हेर्मेस को यह सलाह देना चाहता हूँ कि इन साड़ियों को वे दुशासन ब्रांड का नामकरण देकर यहाँ के परिवेश के एक ख़ास उपभोक्ता वर्ग में इन्हें ज्यादा लोकप्रिय बना सकते हैं ....कहते हैं इसी वर्ग ने इन दुशासन ब्रांड की पहली खेप को हाथोहाथ खरीद लिया ....भारतीय पहनावों और खासकर साड़ी के धंधे में भारतीय व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से मुकाबला आसान नहीं है ...यहाँ तक कि चीन ,ब्राज़ील और रूस के उपभोक्ता तक पश्चिमी फैशन डिजाईनरों /हाउसों के नए नए उत्पादों -फैशन पहनावों को सहज ही स्वीकार कर लेते हैं मगर भारतीय जनता इन्हें घास नहीं डालती -क्योकि आज भी यहाँ पारम्परिक परिधानों का ज्यादा बोलबाला है -देशी पसंद है .ऐसे परिवेश में हेर्मेस का यह साड़ी -उद्यम एक बड़े साहस का ही काम लगता है ...जो भी हो अभी तो इन 'दुशासनी' साड़ियों की पहली खेप यहाँ बीते अक्टूबर में उतारी जा चुकी है और दावे हैं कि सभी की सभी बिक भी चुकी हैं ....
भारतीय नारी अपने पारम्परिक छवि में
(फोटो पत्नी की पसंद है)
फ्रेंच साड़ियों की इस खबर पर मेरी नज़र एक बनारसी होने के कारण भी पड़ी -अब बनारस की साड़ियों की एक अपनी अलग क्रेज है और अपुष्ट आकड़ों पर अगर कुछ भी भरोसा किया जाय तो यहाँ बनारसी साड़ियों का सालाना कारोबार करोड़ से अरब तक जा पहुंचता है -जबकि धंधे के मंदी की बात हर साड़ी दुकानदार और व्यवसाय से जुड़े लोगों की जुबान पर रहता है ...बनारसी साड़ियों की मांग व्याह शादी के अवसरों पर कई गुना बढ़ जाती है क्योकि फैशन से दीगर इनका अपना एक सांस्कृतिक महत्व भी है ....बरात में वधू से लेकर आधी दुनिया की पूरी नुमायन्दगी जब इन लक दक बनारसी साड़ियों में सज धज के होती है तो लगता है इन्द्रपुरी ही धरा पर उतर आयी हो ...और यह शुभ -सगुन की प्रतीक तो है ही ....नारी मन इन साड़ियों के साथ ही कल्पना /फंतासी के कितने ही ताने बाने बुनती रहती है .अभी अभी देखी फिल्म द डर्टी पिक्चर के आख़िरी दृश्य में बिस्तर पर लाल रेशमी साड़ी में आत्महत्या -मृत हीरोईन का शरीर अरमानों की मौत का दर्शक के लिए न भूल पाने वाले दर्दनाक मंजर को उभारता है.....
भारतीय साड़ी नारी के अरमानों और फंतासियों से जुडी है ...और भारतीय सौन्दर्य भी इस परिधान में सौन्दर्य का जो प्रगटन पाता है वह एक आम भारतीय के लिए किसी विदेशी परिधान में मूर्त नहीं हो पाता ....वैसे उदात्त सौन्दर्य परिधान का मुहताज हो भी क्यों यह रसिक जनों का एक अलग विषय है ....बात साड़ी की हो रही है तो यह भारतीय नारी परिधानों में निश्चय ही बेजोड़ है....तभी तो जब हेंडा सेल्मेरान वाराणसी आयीं तो यहाँ के साड़ी आवेष्टित नारी सौन्दर्य पर ऐसी फ़िदा हुईं कि खुद साड़ी पहनने का जिद कर बैठीं ....उनकी तमन्ना हमने शौक से पूरी कराई और उन्हें साड़ी का उपहार भी दिया ....
आप भी जब कभी बनारस आयें हम अपनी बेगम से आपको साड़ी खरीद में मदद की सिफारिश कर देगें ...अब तो वे कुछ भन्नाती हैं मगर यहाँ आने वाले परिजन पर्यटकों के लिए यह समाज सेवा वे खुशी खुशी करती थीं यद्यपि सेवा शुल्क मुझे चुकाना पड़ता था हर बार उनके खुद के किसी साड़ी के बिल को अदा करने के रूप में -उनके सामने तो मैं खुद को कितना वस्त्र निर्धन समझता हूँ जब भी उनका साड़ी वार्डरोब मेरे सामने खुलता है तो आँखे भी चुधियाती हैं और दिल अपनी वस्त्र -निर्धनता की स्थति पर धक से कर जाता है -हम तो मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों तौर पर उनके वस्त्र भण्डार की बराबरी कई जन्मों तक भी न कर पायें ..ओह यह विषय विचलन .....हाँ तो यहाँ १००-१५० रूपये की साड़ी से साठ पैसठ हजार की साड़ियाँ मैंने खुद शो रूमों में सामने पसरते देखी हैं ..शादी सगुन पर हजार बारह सौ और एकाध बार दस हजार तक की खरीदनी पड़ी है ..मगर यहाँ साड़ी का असली दाम किसी को भी शायद पता नहीं होता .गोदौलिया के साड़ी के अपरम्पार दुकानों में मोलभाव की आवाजें गूंजती रहती है -मगर समय और अनुभव के साथ हमने ऐसी दुकानों का चयन कर लिया है जहां मोलभाव बिलकुल नहीं है ...और इस तरह ज्यादा ठगे जाने का अहसास भी नहीं होता ....
बनारस के साड़ी प्रतिष्ठानों में अभी भी दुशासन ब्रैण्ड साड़ियों का इंतज़ार है .
'दुशासन-ब्रांड' साडियां एक खास तबके (एलीट क्लास)को टारगेट करके बनायीं गई हैं,जहाँ गुणवत्ता पर कम कीमत और टैग पर अधिक ध्यान दिया जाता है.
जवाब देंहटाएंवैसे तुलसी बाबा कह गए हैं,"सोह न बसन बिना बर नारी..." इसमें उनका उद्देश्य पारंपरिक भारतीय साड़ी से ही रहा होगा !
बनारस आने पर अब खर्चा और बढ़ेगा !
किरण खेर की साडि़यां, महिलाओं को लुभाती है या ईर्ष्या पैदा करती हैं, पता नहीं, लेकिन कुछ कुछ तो होता है.
जवाब देंहटाएंएक ऐड बन सकता है...... छह लाख की साडी देखकर दुशासन साड़ी खेंचना भूल उसकी सुंदरता निहारने में लग जाय और दुर्योधन कहे - यो साड़ी तो द्रोपदी ही पैन सके है....अकेले पति के बस में ना है छह लक्ख नो साड़ी खरीदना :)
जवाब देंहटाएंउफ उफ साड़ी, हाय हाय साड़ी
जवाब देंहटाएंक्या बताया जाये, सबसे बड़ा बाज़ार तो यही है।
@ बनारस के साड़ी प्रतिष्ठानों में अभी भी दुशासन ब्रैण्ड साड़ियों का इंतज़ार है .
जवाब देंहटाएंसर जी ! बस घुसने ही वाली होंगी। एक एक कर ‘वे’ हमारे जीवन के हर पहलु को घेरते जा रहे हैं।
हमने अपनी शादी में हमारे यहां एक रस्म होती है, घोघट, बनारसी साड़ी ही मंगवाई थी। कुछ दिनों के बाद हम २४वीं वर्षगांठ मनाएंगे। अभी भी ‘उनके’ तन की शोभा बढ़ाती है।
इस 'दुशासन-ब्रांड' से तो कोई कृष्ण ही बचाए।
साडियों का ऐसा ही बाजार है .. कपडे का बाजार करते वक्त कुल बजट में आधे में नारायणा .. और आधे में पूरे घराने के कपडे लिए जा सकते हैं !!
जवाब देंहटाएंसाड़ी नारी, नारी साड़ी
जवाब देंहटाएंकुछ याद आ रहा है हिंदी साहित्य कि क्लास में पढ़ा हुआ ----
नारी बिच सारी है कि, सारी बिच नारी है
सारी ही नारी है कि, नारी ही कि सारी है
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साड़ी-पुराण महिमा अपार !!
@ फोटो पत्नी की पसंद है.........
जवाब देंहटाएं.............
हाय, क्या दिन आ गये कि डिस्क्लेमर लगाने पड़ रहे हैं :)
सचमुच ब्लॉगरी बेहद कठिन विधा है :)
दुशासन साड़ी कहना ही उचित होगा .
जवाब देंहटाएंहा हा हा…………
जवाब देंहटाएंजय जय साडी …………
तेरी महिमा न्यारी ……
बन गयी दुश्शासन की प्यारी…………
कैसे पहनेगी अब भारतीय नारी...........
Baap re baap! 8 lakh kee ek sadee! Chakkar aa gaya padhke!
जवाब देंहटाएंअच्छा नाम दिया है ..दुशासन ब्रांड.. तो भला आज की द्रौपदियां इसे हाथो हाथ क्यों नहीं लेंगी . फैशन का जो जलवा विखेरना है . फिर रैम्प पर महाभारत का हिट सीन ही तो दिखया जाता है .
जवाब देंहटाएंसतीश पंचम का कमेंट - सन्नाट. :)
जवाब देंहटाएंबनारस आयेंगे तो सेवा ली जायेगी.
साड़ी की गरिमा को भारतीय नारी ही निभा सकती है ।
जवाब देंहटाएंइसी साड़ी ने सन्नी लियोन को भी देश में प्रसिद्द कर दिया ।
वर्ना बिना साड़ी के तो सब देख ही चुके थे ।
वैसे भाई जी , शायद आपने दो साड़ियों के दाम लिख दिए ।
डॉ साहब ,
जवाब देंहटाएंआपने सही गलती पकड़ी ....सुधार कर दे रहा हूँ मगर फर्क किन्हें पड़े है ? :)
कुछ कपड़ों की क़ीमत होती ही दो नंबर के पैसों में है.
जवाब देंहटाएंबर्बाद हुए पड़ें हैं भाई जी ....
जवाब देंहटाएंआपको शुभकामनायें !
साड़ी से नारी है कि नारी से साड़ी है ?
जवाब देंहटाएंतीन लाख की बनाओ
चार लाख की बनाओ
साड़ी की सुंदरता तो भारतीय नारी है।
साड़ी एक ऐसा गरिमामयी परिधान जिसे गरिमापूर्ण ढंग से पहना जाये तो ही अच्छा लगता है.....इसमें कोई दुशासन ब्रांड न ही आये ....किरण खेर की साड़ियाँ सच में बड़ी अच्छी लगती हैं मुझे भी ...... वे साड़ी को बहुत ग्रेसफुली पहनती हैं ..... फोटो चयन खूब भाया :)
जवाब देंहटाएंदु:शासन ब्रांड नाम सटीक दिया है ...सतीश पंचम जी की टिप्पणी पर अभी तक हंसी आ रही है :)
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट से ही हमें तो जानकारी मिली ..
बनारसी साड़ियों का अलग ही और अपना महत्त्व है ..
'दुशासन-ब्रांड' सही टैग लगा..मजा आ गया...
जवाब देंहटाएंबाकी हम नहीं जानते पर साड़ी से खूबसूरत परिधान दूसरा और कोई नहीं.
जवाब देंहटाएंदुशासन साड़ी कहना ही उचित होगा .
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंवास्ते यूंहीं ...
एक पोस्ट बनती है वस्त्रों की गरिमा बनाम वस्त्रों से गरिमा बनाम गरिमा के वस्त्र :)
दराल साहब ने 'उसे' बिना साड़ी के देखा पर जान लीजिए कीजिये कि उनके 'सभी' में मैं शामिल नहीं हूं :)
वास्ते साड़ी ...
रुपये १०००० की दर से साठ से अस्सी साड़ियां बेचना या फिर रुपये ५००० की दर से इससे दोगुनी संख्या में अथवा इससे भी कम कीमत में विक्रय की जा रही साड़ियों की संख्या को बेचते समय शो रूम वाला जितने ग्राहकों से टाइम खोटी / मगज मारी करता है उसके बजाये हेर्मेस ने केवल एक ग्राहक से निपटने की आनुपातिक आसानी चुनी है !
कीमत के हिसाब से यह साड़ी आम भारतीय की पहुंच से दूर भले ही दिखाई दे पर व्यवसाय के हिसाब से हेर्मेस कम ग्राहक और ज्यादा मुनाफा के मार्ग पर है ! वे पारसी फैशन हाउस हैं परम्परागत और खांटी व्यवसाई उन्होंने मार्केट में अपने लिए खास ग्राहक वर्ग पहचान कर ही यह ब्रांड लांच किया होगा ! मेरे हिसाब से भारतीय नवधनाढ्य वर्ग उनके टारगेट में है और एक गरिमा पूर्ण वस्त्र को अभिजात्यता / अहंकार के प्रतीक बतौर परोसने की जुगत है ! इस डिजाइन को धनश्रेष्ठि वर्ग तक सीमित रखने का एकमात्र आशय यही दिखता है मुझे वर्ना बनारसी /कांजीवरम साड़ियां तो थोड़ा बहुत हिम्मत करके आम भारतीय भी पहन लेता है मुद्दा ये है कि हेर्मेस की साड़ियां लंबे समय तक धनश्रेष्ठि वर्ग के अहम को तुष्ट करती रहेंगी जब तक कि आम भारतीय इसे खरीद कर इस्तेमाल करने का सामर्थ्य ना पा लें !
कहना शेष यह है कि यदि आप प्रेम भाव में हों तो वस्त्र मायने नहीं रखते :)
वस्त्र = महंगे सस्ते वस्त्र :)
@@अली भाई,
जवाब देंहटाएंअभी अभी जिस गरिमा की बात की है आपने तनिक उनका ब्लॉग यू आर एल भी तो देना भाई जी!कितनी पुरानी दोस्ती है आपकी? बाकी 'सभी 'से परहेज केवल क्या घोषित करने के ही उद्येश्य से ही है ?
अली भाई , काहे शर्मा रहे हैं !
जवाब देंहटाएंया फिर आपने अरविन्द जी की वो पोस्ट नहीं पढ़ी । :)
लेकिन एक बात अवश्य है --साड़ी ने सन्नी लियोन में भी भारतीय नारी के दर्शन करा दिए ।
वर्ना ---
@ अली साब
जवाब देंहटाएंजय हो आपकी,झंडा बुलंद रहे आपका !
बनारसी साडी देख भारतीय पुरुष अपनी नाडी पर हाथ रखते है.... इतनी महंगी:)
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंमुझे लगा आप उसे, मतलब गरिमा को जानते हैं :)
@ डाक्टर दराल साहब ,
अरविन्द जी की पोस्ट में सन्नी लियोन को मैंने देखा ज़रूर था पर वो स्किन कलर के कपड़े कन्फ्यूज कर रहे हैं कि वह साड़ी थी भी कि नहीं :)
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है,
जवाब देंहटाएंनारी की ही सारी है कि सारी की ही नारी है ।
badhiyaa
जवाब देंहटाएंइस से यह भी पता चलता है कि भारतीय पारंपरिक परिधान साडी, और भारतीय क्रय शक्ति का डंका अब विदेश में भी बजने लगा है
जवाब देंहटाएंइतनी महँगी ? !
जवाब देंहटाएंबधाई हो,आपकी यह पोस्ट आज के 'जनसत्ता' में छपी है !
जवाब देंहटाएं'दुशासन-ब्रांड' achcha aur sateek naamkaran kiya :)
जवाब देंहटाएंआपकी 'वस्त्र-निर्धनता' का वर्णन भविष्य के लिए हमें भी आशंकित ही कर रहा है...
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