"सखी ,भले ही उन्होंने 'वो ' गलती कर दी थी मगर वे अपने किये पर लज्जित भी तो थे ,और वे कितना पछता भी तो रहे थे .मगर सौत से डाह के चलते मेरी चिढ और जिद के आगे उनकी कहाँ कुछ चल पायी थी -उनकी सारी मान मनुहारों निष्फल ही तो हुयी थी ....और तो और वे मेरे पैरों पर भी गिर पड़े थे और बोल उठे थे ,"मेरी जान मुझे बस इस बार माफ़ कर दो "लेकिन मैं तो निष्ठुर हो गयी थी और फिर हताश से वे चले गए थे -आह अब मैं कितना पछता रही हूँ ..यह मैं ही जानती हूँ ! "
पश्चाताप!
चित्र सौजन्य : स्वप्न मंजूषा शैल कल चर्चा होगी अभिसारिका की ....
सौतिया-डाह के बाद पछतावा !
जवाब देंहटाएं'' समय चूकि पुनि का पछताने ''
आज तो नायक ...शायद अन्यत्र ...शायद ' वो '...
अच्छी चर्चा ... ...
बड़ी जल्दी अभिसारिका तक पहुँच गए !
जवाब देंहटाएंएकदम सोझवा हो गए हैं आप!!
यह रूप खुद पर ही भारी है। अब तक के सारे रूप परंपरागत हैं इन के बाद कुछ आधुनिक रूपों की भी चर्चा हो जाए।
जवाब देंहटाएंफेंक दिहले थरिया बलम गइलें झरिया, पहुँचलें कि ना....
जवाब देंहटाएंई निगरानी वाला चक्कर है। ..खुट खुट खु..
जवाब देंहटाएंपंडितजी गूढ़ बात की है आपने और उसे प्रस्तुत करने का ढ़ंग एकदम अलहदा। पिछली पोस्ट में साँप का वीडियो ज़ोरदार था।
जवाब देंहटाएंअब ये तो उसको डिसाइड करना कि - उसे मार दिया जाय या छोड दिया जाय:)
जवाब देंहटाएंओह !
जवाब देंहटाएंअरे... बहुत गलत हुआ:(
जवाब देंहटाएंकलहान्तरिता नायिका के विषय में भी दशरूपककार ने लिखा है. उनके अनुसार,"कलहान्तरिताऽमर्षाद्विधूतेऽनुशयार्तियुक्" अर्थात् कलहान्तरिता नायिका वह है जो नायक के अपराध करने पर क्रोध से उसका तिरस्कार करती है, बाद में अपने व्यवहार के विषय में पश्चात्ताप करती है. इसके उद्धरण में जो पद्य दिया गया है वह इतना सुन्दर है कि मैं उसे लिखे बिना नहीं रह पा रही हूँ.
जवाब देंहटाएं"निःश्वासां वदनं दहन्ति हृदयं निर्मूलामुन्मथ्यते
निद्रा नेति न दृश्यते प्रियमुखं नक्तंदिवं रुद्यते.
अङ्गं शोषमुपैति पादपतितः प्रेयांस्तथोपेक्षितः
सख्यः कं गुणमाकल्य्य दयिते मानं वयं कारिताः"
अर्थात् प्रियतम के अपमान के पश्चात्ताप के कारण जनित निःश्वास जैसे सारे मुख को जला रहे हैं, हृदय जैसे जड़ से हिल रहा है, उन्मथित हो रहा है, रात में नींद भी नहीं आती; प्रियतम का मुख भी नहीं दिखता ( क्योंकि वह रुष्ट होकर लौट गया है); रात-दिन रोने के सिवा कुछ नहीं सूझता; हमारा शरीर सूख गया है; इधर हमने पैरों पर गिरकर अपराध की क्षमा माँगते प्रिय का भी तिरस्कार कर दिया; हे सखियों, बताओ तो सही, तुमने किस गुण को सोचकर हमसे प्रिय के प्रति मान करवाया था.
@निश्चित ही मनोहारी ,..और अब दोषारोपण भी सखियों पर ...वाह री मानिनी !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
मुक्ति जी की सारगर्भित टिप्पणी के बाद मैं क्या कहूँ - उनकी टिप्पणी के कुछ अंश काव्य-रूप में -
जवाब देंहटाएं"निःश्वांसें मन को जला रहीं उन्मथित हृदय
आतीं न नींद प्रियतम मुख दर्शन हुआ विदा ।
सब सूख रहे हैं अंग कहो क्या करूँ सखी !
दिन रात हाय, रोना ही अब आ रहा सदा ।
चरणों पर मेरे नत-शिर पड़े रहे प्रियतम
कर दी मैंने तब क्यों सखि उसकी अवहेला ?
बतला दो ना क्या सोच समझकर तब तुमने
प्रियतम से मान कराने की रच दी बेला ।"
आह!! यह पछतावा,,,, क्या कहें!!
जवाब देंहटाएंआपकी अन्य नायिकाओं की भांति यह नायिका भी खूब रही .....मगर क्या चरणों में गिरकर मनाने वाले प्रेमी भी होते हैं ...और नायिकाएं उन्हें पसंद भी करती हैं ..उनसे विलगित होकर दुखी होती है ....किंचित सशंकित हूँ ....वैसे शायद साहित्यिक नायिकाओं का साहित्य से परे शोधन ही उचित नहीं है ....!!
जवाब देंहटाएं@वाह क्या खूब हिमांशु ! हाँ जब ऐसी मुक्त प्रेरणाएं हो तो समर्थ के लिए आशु हो उठना इतना सहज सानुकूल क्यों न हो ?
जवाब देंहटाएं@अमरेन्द्र ,
जवाब देंहटाएंकैसी मानिनी है यह तो आपने ही पैर पर कुल्हाडी मार रहे है -कोई उपेक्षित भला जाएगा कहाँ ? संकेत सार्थक है !
nari tere roop anek.............shayad isiliye kaha gaya hai.
जवाब देंहटाएंपैर पर गिर कर माफ़ी मांगने वाले प्रियतम ???
जवाब देंहटाएंन सुना न देखा.....इ अजूबा.....ऐसे प्राणी कहाँ मिलते हैं बाबा...!!!
कलहान्तरिता नायिका तो बहुते powerful नायिका होंगी भाई....
चलिए हम तो जानकारी से ही खुश हो लिए.....:):)
मुन्नाभाई सर्किट की ब्लोग चर्चा
जवाब देंहटाएंअरविंद मिश्रा जी
"@"मेरी जान मुझे बस इस बार माफ़ कर दो "लेकिन मैं तो निष्ठुर हो गयी थी और फिर हताश से वे चले गए थे -आह अब मैं कितना पछता रही हूँ ..यह मैं ही जानती हूँ ! "
कलहान्तरिता नायिका के लिऎ मुन्नाभाई ने गेट वेल सून बोलने को मागता है.