बुधवार, 18 नवंबर 2009

रेल यात्रियों के लिए एक आपबीती बनाम कैटिल क्लास के संस्मरण !

या तो हनुमान की तरह मगर लौटा पूरा  अंगद बनकर  ! मगर जाते वक्त "जिय संशय कुछ फिरती बारा"  जैसी  कोई आशंका न थी ! बात ११ वें राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मलेन की है जिसमे शरीक होने को हम बड़े उत्साह से चल पड़े थे औरंगाबाद, पिछले 12 तारीख को . अभी कल ही लौटें हैं !कितनी कुछ ब्लॉग गंगा बह चुकी है यहाँ ! आते ही साथ गए जाकिर   ने एक तुरंता  रिपोर्ट भी ठोंक  ही दी है ! जो विज्ञान/वैज्ञानिक में  सूक्ष्मता के  प्रेमी हैं -अनूप शुकुल जी या विवेक जी मानिंद ,वहां झांक सकते हैं ! मगर अपुन तो यहाँ आर्डिनरी एक्स्ट्रा आर्डिनरी  लोग लुगायियों  से यानि आप से मुखातिब हैं ! और बयां करना चाहते हैं अपना दुःख दर्द वापसी यात्रा का ! मगर प्लीज हँस कर मेरे जले पर नमक  मत छिडकियेगा -वादा करिए तभी आगे बढूंगा !अपनी गलतियों के बजाय पानी पी पीकर रेल विभाग को कोसा हैं मैंने इस बार ! वैसे रेल के पिछले भी कुछ अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं !  बख्शता रहा हूँ हर बार, मगर इस बार नहीं क्योंकि तब मैं ब्लागिरी के धर्म से च्युत हो जाऊँगा ! ज्यों नहिं दंड करूऊँ खल तोरा भ्रष्ट होई श्रुति मारग मोरा ! अब आप देख लीजिये कि कितना गुस्सा  अभी भी है मन  में ....हाँ हाँ खिसियानी बिल्ली /बिल्ले जैसा ही !

बहरहाल किस्सा कोताह यह कि प्रस्थान  की दो चरणी रेल यात्रा तो ठीक ठाक रही ,बनारस से मनमाड और मनमाड से औरंगाबाद -मगर वापसी की ,अजी कुछ न पूछिए  -अभी भी रह रह कर हूंक उठ जा रही है  ! पहली बार बिना नए टाईम टेबल के साथ में रखे  यात्रा की -नामुरादों ने अभी तक भी नया टाइम टेबल जारी नहीं  किया है ! हद है रेल विभाग की निष्क्रियता  की ! वापसी की ट्रेन मुम्बई बनारस सुपर फास्ट 2165 में पिछले एक माह बुकिंग  करने के वक्त से ही वेटिंग   १  पर सूई अटक  गयी थी ! जाकर यात्रा की पूर्व संध्या को ही कन्फर्म हुआ . किसी के धैर्य की परीक्षा लेना तो कोई रेल विभाग से सीखे ! कमजोर दिल वाले कभी भी रेल के वेटिंग  लिस्ट वाले टिकट न लें !  ...


 वापसी में ६ बजे औरंगाबाद से जनशताब्दी पकडनी थी ! सो हम ५.३० पर स्टेशन पहुँच  चुके थे ! अभी रात ही थी ! पिछले ज्ञात एक साल के इतिहास में  जनशताब्दी पहली बार लेट हो गयी ! मराठी में जो उद्घोषणा हुई -उसके अनुसार तकनीकी खराबी  के चलते ट्रेन को लेट कर जाना था ! मतलब इस बार वह खड़े होकर नहीं जाने वाली थी ! हम लोग लेट कर जाने  वाली ट्रेन में खुद कैसे लेटेगें या बैठेगें यह  रणनीति बनाने लगे - जाकिर ने हंसी मजाक में मेरे लिए कुछ मुद्राएँ भी समझाईं ! खैर एक घंटे विलम्ब से ट्रेन एक के बजाय नंबर दो प्लेटफार्म पर आने को  उद्घोषित हुई ! सहयात्रियों ने बताया कि जनशताब्दी का २ पर आना भी एक अनहोनी है ! अब तक मुझे हिन्दी की वह कहावत याद आने लगी थी -जहाँ जाईं घग्घोरानी ऊहा बरसे पत्थर पानी ! मगर इस बार तो मिसेज साथ न थीं तो फिर मैं घग्घोरानी का चरित्र आरोपण किस पर करुँ ? दिमाग चकराया ! ट्रेन चल दी आखिरकार ! दो घंटे में ,९ बजे मनमाड पहुँच गयी ! प्लेटफार्म नंबर ५ पर . बरसात ने स्वागत क्या  किया -पूरी फजीहत कर डाली ! नसीहत नंबर एक -अंतर्राज्यीय यात्राओं में छाता अवश्य रखें !

मेरे और जाकिर के पास छाता नहीं था ! हाँ मेरे पास पालीथीन थे -हमने सर ढंका और आगे बढे  भीगते हुए ! हमारी अलग अलग ट्रेने थीं -मगर बनारस   सुपर फास्ट और पुष्पक दो नंबर  पर ही आने को घोषित थीं ! ज्ञात जानकारी के अनुसार दोपहर 12 बजे के आस पास थीं दोनों ट्रेने ! जाकिर ने कहा कि अभी क्या करेगें २ पर जाकर ! मैंने उन्हें कहा कि यही बैठ कर ही क्या उखाड़ लेगे !  मैंने देखा है कि जाकिर में  अभी ही इस कम उम्र में भी एक ठहराव है -एक खरामा खरमापन है ! मगर उम्र के इस पावदान में भी मुझमें एक व्यग्रता सी है -अब आगत से अनभिग्य जाकिर के कहने पर हम वहीं ५ पर रूक कर बिन मौसम की बरसात में रूचि  लेने में लग गए !

मेरे टिकट या किसी  के भी टिकट पर ट्रेन का प्रस्थान समय नहीं दर्ज था -वही ट्रेनों के रूटीन वार्षिक समय बदलाव का बहाना!और हद यह कि अभी तक भी नया रेल टाईम टेबल उपलब्ध नहीं हो पाया है -मैंने किस किस स्टेशन पर नहीं पूछा  !  घर से जो समय बेटे ने दर्ज किया था उसके मुताबिक़ मेरी ट्रेन ११. ४० पर आने वाली थी ! प्लेटफार्म नंबर पॉँच पर दस बज गए तो मेरी व्यग्रता ने फिर उछाल मारी ! "चलो जाकिर वहीं २ पर ही चलते हैं ! " मगर जाकिर तो उसी ठहराव मोड में ! "क्या करेगें अभी जाकर " वे बोले .आखिर  मैं हठात खीच ही लाया उन्हें ! मगर तब तक जो  होना था हो चुका था   ! नसीहत नंबर दो -स्टेशन पर जिस प्लेटफार्म पर ट्रेन हो वहीं पर सीधे जायं,अधर उधर न रुकें  ! बहरहाल २ नंबर पर आकर भी अभी ट्रेन के यथा ज्ञात समय से हम काफी पहले जम गए वहां ! मगर काफी देर तक  बनारस सुपर फास्ट का कोई अनाउन्समेंट नहीं ! अब छठीं हिस सक्रिय हुई ! जाकिर को कहा  जाकर पता करो भाई कि कहाँ अटक गयी  ट्रेन ! थोड़ी देर बाद ज़ाकिर लौटे तो व्यग्रता की प्रतिमूर्ति बने हुए थे  -चेहरा देख कर ही मैं किसी आशंका से काँप उठा  ! और यह सुनते ही की ट्रेन तो ९.४० पर ही जा चुकी ,यानि उस वक्त जब हम बगल के ही प्लेटफार्म पर वर्षा ऋतु  का आनंद  उठा रहे थे....सुनकर तो दिल की जैसे कुछ धडकने ही रुक सी गयीं ! अब क्या होगा ?
......जारी ...

28 टिप्‍पणियां:

  1. दिल दहला देने वाले मोड़ पर रोका है आपने पोस्ट को.

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  2. मैं अपने जीवन में ब्लॉग पर पहला
    यात्रा-वृतांत सुन रहा हूँ | संजीदगी
    के साथ नसीहतों की डबुल-कील !
    ''जारी '' है फलतः अभी और लाभान्वित
    होऊंगा ही | मुहाविरों को सजाया ,
    सुन्दर लगा ...
    बतियाय कै मन करै लागै
    सुनिके राह-खबरिया ...
    रोचक अहै ... नीक अहै ...
    फिरिंगी महराज कै जै... ...

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  3. हमको साथ लेकर नहीं गए थे! भुगत लिए न sss।
    अब आगे का हाल सुनाइए। ये ब्रेक लेने की आदत भी रेलवे से सीख आए हैं क्या?
    याद दिला दूँ कल 19 तारीख है।
    अजंता, एलोरा, मुम्बई जैसे स्थानों से घूम आए हैं, पेंटिंग नहीं फोटोग्रॉफ चाहिए।

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  4. बड़े रोचक मोड़ पर आ कर रुकी पोस्ट की गाड़ी...अगली पोस्ट की गाड़ी कब आवेगी..जरा टाईम टेबल छाप देते महाराज!! आप तो रेलवे नहिये न हैं!!

    वरना पता चले कि हम कहीं और मौसम का आनन्द लेते रह जायें.

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  5. पहले इलाहाबाद ब्लागर सम्मेलन जहाँ बाकी सब लोगों का समय मजे से कटा लेकिन आपको सारी रात मच्छर परेशान करते रहे,ओर तो ओर सुबह सुबह बैड टी भी नहीं मिली......ओर अब ये विज्ञान सम्मेलन की यात्रा जहाँ कभी तो बारिश से परेशानी, कभी रेलगाडी लेट तो कभी कोई ओर परेशानी....
    आपको नहीं लगता कि कहीं कुछ गडबड है.....मिश्रा जी, हमारी मानिए तो आप किन्ही पंडित जी को अपनी कुण्डली वुण्डली दिखवा लीजिए....क्या पता कहीं कोई राहू-केतु ही आपको परेशान करने में लगा हो :)

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  6. पढ़ते हुए तो सब रोचक ही जान पड़ता है तात....

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  7. मिसिरजी, बुरा न मानें तो एक बात कहें। वैसे बुरा मान ही लीजियेगा अच्छा रहेगा।मैंने देखा है आप हर यात्रा से लौटते हैं तो हलकान च परेशान होकर। कभी किसी बात से कभी किसी बात से। आपकी छवि हमारे मन में एक बहादुर व्यक्ति की थी। जरा -जरा सी परेशानियों आप बतासे की तरह गल जाते हैं। ई अच्छी बात नहीं है। लगता है आप भी मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा लिये थे और जरा सा परेशानी मिलते ही आप त्रस्त हो जाते है और की-बोर्ड मिलते ही उलट देते हैं।

    न न हमसे ई सब मत कहियेगा कि कष्ट झेलो तब पता चले। हम बहुत झेले हैं यात्रायें और हर यात्रा पर आनन्दित हुये हैं बावजूद तमाम चिरकुट कष्टों के। तीन महीने तो सड़क पर रहे! पुलिया/कुलिया/सड़क/ढ़ाबे/थाना/होटल/मोटल कहां नहीं सोये।

    आदरणीय मिसिर जी आपसे ई सब कोई नहीं कहेगा और सब आपके कष्टों से आह आह करते हुये निकल लेंगे लेकिन हम आपसे सच बताना चाह रहे हैं कि आप कष्टों से इतना आतंकित होते हैं कि हमें लगता है कि ये कैसा छुई-मुई वैज्ञानिक है। कहीं मच्छर इनको रुला देते हैं और कहीं यात्रायें।

    और जिस लिंक की बात किये ऊ त ठीक से लगाइये।

    थोड़ा मौज-मजे से रहा करिये।कोई जलजला थोड़ी आ जायेगा। आयेगा भी तो हम हैं न! देख लेंगे। आप थोड़ा सा मुस्करा दीजिये। सच में क्य़ूट लगेंगे।

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  8. सालों हो गये रेल यात्रा किये हुये।रेल से दूर ही रह्ते हैं महाराज अपन तो।

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  9. आगे का इंतजार कर रहे हैं.

    रामराम.

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  10. हम तो अपनी हंसी नहीं रोक पाए ;)

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  11. इसका अर्थ यह हुआ कि रेल की अक्षमता के बावजूद लौटा जा सकता है।
    हनुमान न होते तो राम का काम अंगद से भी चल ही जाता! :)

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  12. सुंदर रेलबोध.... एकदम व्यंग्य कविता जैसा... साधुवाद......... मगर ये व्यग्रता बढ़ा कर अच्छा नहीं किया...

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  13. @अनूप जी ,
    "लगता है आप भी मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा लिये थे"
    ताज्जुब, कैसे जाने आप !
    अभी वृत्तांत बाकी है ,आपका एक्सपर्ट कमेन्ट
    बाद में आता तो ज्यादा लाभान्वित होता
    लिंक सुधार लिया ,आभार !

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  14. बहुत रोचक मोड़ पर छोड़ा है अपने यात्रा वृतांत को .....

    जहाँ जाईं घग्घोरानी ऊहा बरसे पत्थर पानी ! मगर इस बार तो मिसेज साथ न थीं तो फिर मैं घग्घोरानी का चरित्र आरोपण किस पर करुँ ? ...

    चरित्र आरोपण करना ही है तो कुछ अशरीरी शक्तियों पर ही कर लें ...!!

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  15. @मिसिरजी, हमने तो एक बात कही। आप उसको मन में मती धारण करिये। लिंक सुधार करके बड़ा अच्छा किया आपने। बाकी आप लाभान्वित मती होइये। अनुरोध है कि आगे का किस्सा सुनाइये। मन थोड़ा खुश रखा कीजिये। थोड़ा हंस-मुस्करा लिया करिये। कोई नुकसान थोड़ी हो जायेगा।

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  16. जहाँ जाईं घग्घोरानी ऊहा बरसे पत्थर पानी !
    कही कुछ अशरीरी शक्तियां तो साथ नहीं रही ...!!

    यात्रा वृतांत रोचक मोड़ पर आकर रुक गया ...अगली कड़ी का इन्जार रहेगा ..!!

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  17. हाहा हा हा हा हा हा वर्ष ऋतू बड़ी महंगी पड़ी ये तो

    regards

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  18. वृंतात की प्रस्तुति जानदार है । अभी बाकी है..उसी की प्रतीक्षा में । हमें तो वहाँ के अनुभव भी सुनाइये, और जो उल्लिखित प्रस्तुत हुआ-उसके विवरण भी दीजिये । आभार ।

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  19. आगे क्या होगा रामा रे,

    आगे क्या होगा मौला रे...

    जय हिंद...

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  20. सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि रामभरोसे ही सब कुछ चल रहा है, चाहे वह रेलवे विभाग हो अथवा यह देश।
    ------------------
    11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
    गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?

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  21. रोचक यात्रा-संस्मरण के संग संग्रहणीय नसीहतें...अगली कड़ी के इंतजार में।

    हाँ, मिश्र जी अगर टंकण-त्रुटि करें तो ज्यादा अखरता है। "पूछना" के "पू" पर यत्र-तत्र बिंदु या अर्धचंद्र बिन्दु विचलित करता है मन को।

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  22. @बहुत आभार गौतम जी ,अशुद्धियों की इन्गिति के लिए !
    उन्हें सुधार लिया गया है !
    भैया ,हम हिन्दी साहित्य के नहीं हैं न ! और कहावत भी तो है -
    "टू इर्र इज ह्यूमन "

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  23. @पंडित "वत्स" जी ,
    अब कन्या राशि पर क्या कुछ हो रहा है भला आपसे कुछ छुपा है क्या?

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  24. रोचक यात्रा रही आपकी यह भी हर जगह एक रोचक कहानी बन जाती है आपके साथ ..अजब गजब सी :)

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  25. ॒ अरविन्द जी

    भैया ,हम हिन्दी साहित्य के नहीं हैं न ! और कहावत भी तो है -
    "टू इर्र इज ह्यूमन "


    एंड

    "टू टर्र इज मैंढक" :)

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