शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

बौद्धिक प्रतिभाशीलता का ही नाम है गिरिजेश राव:चिट्ठाकार चर्चा !


                                                               गिरिजेश की एक भाव-मुद्रा 
बौद्धिक प्रतिभाशीलता का ही नाम है गिरिजेश राव -हाँ लम्बे समय से एक चुनिन्दा ब्लॉगर की तलाश में भटकता चिट्ठाकार चर्चा का यह यह ताजा  अंक आपके सामने हैं -और यहाँ पेश हैं  गिरिजेश राव ! एक आलसी का चिटठा और गाहे बगाहे लिखने के लिए कविता पर एक ब्लॉग  लिखने वाले गिरिजेश (मेरा उनके लिए यही स्नेहिल संबोधन है ) से मेरा परिचय कोई ज्यादा पुराना नहीं हैं -बस यही कुछ माहो से हम परिचित है मगर प्रयाग के संत समागम के बाद परिचय की प्रगाढ़ता और मिलन की गहनता सहसा काफी बढ़ गयी है!और यह अकारण नहीं  है !

सबसे पहले मुझे गिरिजेश के बारे में सिद्धार्थ जी (प्रयाग में धनुष यज्ञ जेहिं कारण होई वाले अपने सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी - हमारे एक पूर्व चयनित चुनिन्दा चिट्ठाकार ) ने बताया था ! सिद्धार्थ जी और गिरिजेश दोनों ही गुरुभाई हैं और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की   कथित धुर गोबर पट्टी के गुदडी के लाल हैं; न जाने ऐसे लाल गोपालों के वजूद के बावजूद किसी  गोबर पट्टी की इन्गिति भी  कैसे की जा  सकती है ?  गिरिजेश के ब्लॉग का नाम प्रथम दृष्टया ही नहीं पुनः पुनः दृष्टया भी  अजीब ही लगा था -यह कौन सा उद्धत सांसारिक जीव है जो अपने आलस्य को ही प्रोमोट करना चाहता है ! मगर वह होगा तो कोई विशिष्ट ही जो कबीर की भाषा में यहाँ  उलट्बानी उद्घोषित कर रहा है ,डंके की चोट पर ! सो देखना चाहिए .और मैंने देखा तो  विमोहित होता गया !कंटेंट से !

गिरिजेश के ये दोनों ब्लॉग लोकमान्यता की  दक्षिण की दिशा के समान हैं -और एतदर्थ प्रगटतः गमन निषेधित ! जी हाँ मत जयियो दक्खिन बबुआ  की बुजुर्गी सीख की याद दिलाती हुई - उधर गए तो फंसे ! जैसे मैं फंसा तो आपको यह सात्विक हिदायत भी कि आप गए तो फिर आप भी फन्सेगें ,अगर अब तक कहीं फंस न गएँ हो तो -फिर मोहपाश (मोहन वशीकरण सब) से छूट नहीं पायेगें ! ये दोनों ब्लॉग भावनाओं की गहन गहनता समेटे  हुए हैं -अभी अभी बाऊ चरितावली  सम्पन्न हुई है जिसने भाषा शिल्प के मामले  में लोगों को फणीस्वर नाथ रेणु  की याद दिला दिया  !

गिरिजेश मूलतः कवि ह्रदय हैं -उनका गद्य भी ह्रदय से ही निःसृत है ! मतलब मस्तिष्क के उस हिस्से से उद्भूत है जो दिल का डिपार्टमेंट संभालता है ! मैंने उन्हें बौद्धिक प्रतिभाशील कहा है क्योंकि केवल बौद्धिक या प्रतिभाशील  कहकर उन्हें मैं आंक नहीं पा  रहा था !  इलाहाबाद और कानपुर वालों ने बौद्धिकता को अब अपने तक ही सीमित कर लिया है ,हथिया लिया है-   कुछ कुछ अविजित लंका की कैद सरीखा  और जहां तक प्रतिभा की बात है तो  उस पर तो  देश के आई. ए . एस न जाने कब से काबिज हो चुके हैं ! अब मेरा  ब्लॉग नायक भला इन एकल और उच्छिष्ट पहचानों का मुहताज क्यों बने !  मनुष्य के ये दोनों ट्रेट -बौद्धिकता और प्रतिभा ,अलग अलग ज्यादा दीखते  हैं -मगर गिरिजेश में इन दोनों लक्षणों का समग्र  परिपाक हुआ है  ! वे बौद्धिक हैं मगर दयामागूं - दीन , शोचनीय  विह्वलता से दूर हैं -आत्म मुग्धता से भी दूर हैं -प्रतिभाशाली बौद्धिक हैं !  सहज है सरल हैं -ठठा कर ऐसा हंसते हैं जो एक निर्मल ह्रदय वाले के ही वश का है ! नहीं तो  आज के युग में हंसी ?

इलाहाबाद में हमने बहुत गुल गपाड़े किये  - मौज मस्ती वालों की बातें तो बस कहने भर की हैं ! दरअसल मुझ उद्धत उन्मत्त  के साथ गिरिजेश सरीखा भी कोई हो जाय तो दूसरों का पत्ता साफै समझिये -सारी दुनिया के लिए हम तत्क्षण पागल करार  हो सकते हैं ! अब जाकी रही भावना जैसी ...लोग गलत कहते हैं सभी डिजिटल रिश्ते धोखे होते है -गिरिजेश जीवंत उदाहरण हैं - कल्पित से भी ज्यादा उदात्त और मानवीय ! उन्होंने गहरी संवेदना से मुझे बड़ा भाई कहा  -और मैंने इस रिश्ते को यद्यपि यह उत्तरदायित्व भरा है स्वीकार भी कर लिया है ! मस्त रहो अनुज ! हुडदंग जारी रहे.....

इलाहाबाद की संगोष्ठी में ब्लॉग बनाम  साहित्य के मुद्दे पर गिरिजेश को सुनना एक अनुभव था ! कई वक्ताओं द्बारा उछाले गए कुछ जुमलो पर भी इनकी  कटाक्ष ब्लॉग पोस्ट पढने लायक है ! गिरिजेश आलस का परित्याग पर चुके हैं -यह उनका स्थायी भाव बान जाय -यही शुभेक्षा  है !

चिट्ठाकार चर्चा

35 टिप्‍पणियां:

  1. उनके ब्लाग का नाम देखते ही मैंने सोचा, सही कहते मनोवैज्ञानिक, चेहरे पर चेहरे लगा के घूमते हैं लोग, मल्टी पर्सनलिटी सिंड्रोम ! महोदय अपने को आलसी कहते हैं या कहूँ आलसी समझते हैं पर कथा, कविता, निबन्ध, रिपोर्ट क्या क्या नहीं लिखते, और सब की सब ऐसी कि बस पढने वाले का आलस्य भाग जाये.

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  2. गिरिजेश का संक्षेप में बहुत सही मूल्यांकन कर दिया है आप ने। उन से भेंट तो अब प्रबल इच्छा बन चुकी है।

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  3. Shri.Girijiesh ji ke vyaktitva ke baare mein jaan kar bahut achcha laga........

    itni achchi post likhne ke liye aapko bahut bahut badhai.........


    JAI HIND.........

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  4. अरविंद जी,
    गिरिजेश राव जी की शख्सीयत और अंतर्मन से साक्षात्कार कराने के लिए आभार...
    जय हिंद...

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  5. गिरिजेश राव जी के बारे में सबसे पहले आपसे ही जाना था ...ये आलस में इतना कुछ लिख लेते हैं तो बढ़िया है अलसाए ही रहें ...!!

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  6. चिट्ठाकार चर्चा में गिरिजेश राव जी के बारे में
    जानकर अच्छा लगा!

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  7. गिरिजेश जी के बारे में कुछ और जाना

    बी एस पाबला

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  8. गिरिजेश जी के बारे जानकर अच्छा लगा। आपका यह प्रयास सराहनीय है।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  9. @इलाहाबाद और कानपुर वालों ने बौद्धिकता को अब अपने तक ही सीमित कर लिया है ,हथिया लिया है- कुछ कुछ अविजित लंका की कैद सरीखा और जहां तक प्रतिभा की बात है तो उस पर तो देश के आई.ए.एस. न जाने कब से काबिज हो चुके हैं!

    मेरा मानना है कि प्रतिभा, बौद्धिकता, या मूर्खता इत्यादि क्षेत्र या इलाका देखकर पैदा नहीं होती। प्रकृति के किसी भी हिस्से में इसका प्रादुर्भाव हो सकता है। हम अपने बुद्धि विलास का प्रयोग करके इसका ऐसा इलाकाई बँटवारा कर लेते हैं जो हमारे मन को समझा लेता है। उचित होगा कि कोई ऐसा फालतू का वहम न पाले और प्रतिभा जहाँ भी दिख जाय उसका सम्मान करे और हो सके तो उससे कुछ सीखने का प्रयास करे।

    इस दिशा में आपका यह प्रयास मार्गदर्शक हो सकता है। गिरिजेश भ‍इया को हम बचपन से जानते हैं और उनकी प्रतिभा के कायल हैं। ऐसा वैचारिक संतुलन बिरलों में पाया जाता है।

    इस अच्छी पोस्ट के लिए साधुवाद।

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  10. स्वयं को सौभाग्यशाली मान रहे हैं हम की अंततोगत्वा फूलों के स्थान पर इक मुखडा नज़र आया....श्री गिरिजेश राव जी से हम सबको परिचित करवाने के आपका ह्रदय से धन्यवाद अरविन्द जी.....
    और हाँ....जब आलस है ऐसा गुणवाला तो फुर्ती का आलम क्या होगा...अजी क्या होगा ???

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  11. @@आप इलाहाबादी कब से हो गए सिद्धार्थ जी ? इस प्रश्न के उत्तर में ही आपकी जिज्ञासा, मैं ,आप और गिरिजेश और इन सभी का होना , विभिन्नतायें - साम्य और अन्तर्सम्बन्ध सभी कुछ व्याख्यायित है !
    इलाहाबादियों और कानपुरियों को भी तो कुछ कहने देगें की सब भार आपै वहन कर लिए हैं ?
    वैसे पोस्ट के एक विचार (या विचारा ) बिंदु को आपने संस्पर्शित किया आभारी हूँ ! यह आपकी विचार विदग्धता का भी परिचायक है !
    अब थोडा यह स्पष्ट भी कर दूं की सहज मनोवोनोद के पीछे कोई श्लेष हो ही यह सदैव आवश्यक नहीं है मगर आपके महनीय हस्तक्षेप से यह मुद्दा अब विवादित अवश्य हो गया -
    क्या बौद्धिकता दिक्काल निरपेक्ष है (मैंने काल भी जोड़ दिया आयर व्यापक अर्थ में बहस के लिए !
    कौन शुरू करेगा यह शाश्त्रार्थ और कहाँ ?

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  12. @अदा जी ने किस अदा से अपनी बात कह दी गिरिजेश -अब तो सारा आलस्य काफूर हो जाना चाहिए !
    हा हा !

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  13. बडी इच्छा थी गिरिजेश जी के बारे मे जानने की. आपने बहुत ही कम शब्दों मे इनका महती परिचय करवा दिया, वैसे भी यह आपकी विशेषता है.

    गिरिजेश जी मैं यह पूछना चाहूंगा कि आप क्या खाकर आलस करते हैं? वो हमे भी बताईयेगा. ईश्वर करे आपका यह आलस यूंही बरकरार रहे. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  14. मानते हैं गिरिजेश राव को.
    अदाजी वाली बात फिर दोहराता हूँ.आलस का आलम ये है तो फुर्ती का आलम क्या होगा?
    और अरविन्द सर की इस बात पर कि आलस्य का वे परित्याग कर चुके हैं औए ये अब उनका स्थाई भाव बना रहे, कहूँगा "आमीन".
    अच्छा हुआ उम्र में गिरिजेश जी के उम्र में कुछ दिन छोटे रहने से हमें किसी बात में तो बड़ा बनने का अवसर मिला.
    शुभकामनाएं.और आपका आभार.

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  15. मिश्र जी आभारी हैं आपके।आपने हमे गिरिजेश को जानने का मौका दिया।

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  16. "सबसे पहले मुझे गिरिजेश के बारे में सिद्धार्थ जी (प्रयाग में धनुष यज्ञ जेहिं कारण होई वाले अपने सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी - हमारे एक पूर्व चयनित चुनिन्दा चिट्ठाकार ) ने बताया था !"

    चलिए, प्रयाग धनुष यज्ञ का एक लाभ तो गिना ही सकते है अब:)

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  17. बहुत अच्छा लगा गिरिजेश राव जी के बारे जानकर ..............

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  18. गिरिजेश जी के बारे में विस्तार से आप के इस लेख से ही जाना.
    अब तक उनका परिचय उनकी कविताओं से ही था.
    मैं ने उनसे तारीख लिखने का रोचक और अनूठा ढंग सीखा..jo nahin jante--unke liye--उदाहरण के लिए -जैसे अभी यह कमेन्ट लिखा है-इस का तारीख-समय है---'071120091113'!!
    -शुभकामनायें
    -आभार.

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  19. मैं कब से सोच रहा था कि मिश्र जी की अप्रतिम लेखनी ने कई दिनों से किसी विशिष्ट ब्लौगर का परिचय नहीं करवाया।

    शुक्रिया अरविंद जी एक बार फिर से...सचमुच मोहपाश में बाँधने वाला है ये ब्लौगर। वहीं से चक्कर लगा कर आ रहा हूं-पहला चक्कर!

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  20. लंठ का आलस अद्बुत इतिहास बना रहा है ....गिरिजेश जी की लेखनी से जितना उनको जाना था ..उसी के अनुरूप आपने उनका परिचय आगे बढा दिया ..अदा जी की तरह मुझे भी खुशी हुई कि जिस फ़ूल के गुलदस्ते को रोज देखते थे...आज उनके चेहरे का दीदार तो हुआ
    बहुत बहुत आभार आपका मिश्रा जी ..उनसे परिचय करवाने के लिये..

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  21. आभार, गिरिजेश जी के बारे में इतना सब बताने के लिए। उनके लेखन से परिचित होने के बाद उनकी प्रतिभा से कौन नहीं कायल होगा भला।

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  22. गिरिजेश से ईर्ष्या है। और अगर आलसी बनने से उनकी प्रतिभा का अंश मात्र भी मिलता हो तो हम सहर्ष आलसी बनने को उद्धत हैं!

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  23. अभी अभी उनकी एक कहानी पढ़ी ओर मुग्ध हो गया .तमाम "सलेक्टिव नैतिक मोतियाबिंद "अपनी आंख में उतारे लोगो के लिए एक उदारहण है असल ब्लोगिंग का .....

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  24. हम तो इन्हें ज्ञान चचा की उम्र का व्यक्तित्व माना करते थे, लेकिन विगत दिनों उनकी एक स्तब्ध/सम्मोहित करने वाली पोस्ट पढ़कर(४ नवम्बर) एवं तत्पश्चात वार्तालाप करके उनकी उम्र के बारे में ये भ्रम दूर हुआ, और आज ये नूरानी चेहरा...अल्हम्दुलिल्लाह..!

    अभी उनसे कुछ अदृश्य तंतुओं के संबंध पर शोध चल रहा है..ज्यादा नहीं कहूँगा, शायद किसी व्यक्तित्व का निरपेक्ष मूल्यांकन कर सकने का अनुभव भी नहीं है मुझे। केवल तारीफ करना फॉर्मेलिटी लगेगी..!

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  25. कल रात से ही स्वास्थ्य गड़बड़ाया हुआ है, सासु जी भी आई हुई हैं (दोनों में कोई सम्बन्ध नहीं है।)
    मन प्रसन्न था कि आज ब्लॉगिंग की पूरी सहूलियत रहेगी। शनिवार की छुट्टी। अस्वस्थ गृह स्वामी। स्वामिनी अपनी माता जी की सुश्रुषा में व्यस्त। संत स्वभाव बच्चे। ब्लॉगिंग के लिए ऐसा आदर्श वातावरण कुण्डली में ग्रहों की स्थिति अति उत्तम होने पर ही मिलता है। संगीता पुरी जी का गत्यात्मक ज्योतिष जो कहे -हम तो मस्त थे। ब्लॉगवाणी खोला कि यह पोस्ट दिखी। चिकोटी काटा तो पता चला कि जगा हुआ था। आँख मलते हुए
    पुन: देखा तो दिल बाग बाग हो गया - हमहूँ नामी हो गइलीं की तर्ज पर। अरविन्द जी से विनम्रता का पाखण्ड ओढ़े हुए विरोध जताया। मन तो गुलगुला हो रहा था। ..

    अरविन्द भैया के स्नेह और इस सरप्राइज को अब क्या कहूँ! धन्यवाद तो बहुत छोटी बात होगी। नि:शब्द हूँ।

    कुछ चिंताएँ उठ खड़ी हुई हैं। अनजाने ही इतने बड़े ब्लॉग के स्तम्भ में स्थान पाने से पाठकों की (अगर वाकई ब्लॉगरी को लेखक और पाठक का सम्बन्ध माना जा सके) अपेक्षाएँ बढ़ जाती हैं। 'आलसी' नाम धारण कर मैंने जो सुरक्षा कवच सा अपने चारो ओर बुन रखा था, वह निरर्थक सा हो गया है। भैया ई का क दिहल Ss ? बीलेटेड बर्थ डे सरप्राइज ऐसा होगा! सोचा न था।

    भैया के इस पोस्ट ने यह भी दिखा दिया कि ब्लॉग जगत में बहुत से स्नेही जन हैं। ऐसा ही कुछ पंकज जी की मेरे जन्मदिन पर लिखी गई पोस्ट पर भी घटित हुआ है। जन्मदिन पर अपनी खुद की पोस्ट तो थी ही।

    आप लोगों ने जाने कितनी ही अच्छी बातें कही हैं, उनके लिए आभार। कोशिश रहेगी कि आलस पर नियंत्रण हो और विविध विषयों पर मन बहके, लहके और चहके। ऐसा लिख सकूँ कि आप लोग रसास्वादन करें - आप लोगों के स्नेह, आशीर्वाद और शुभकामनाएँ समर्थ हों।
    बन्दा सचमुच कमअक्ल है। कम अक्ली को इतना प्यार हिन्दी ब्लॉगिंग ही दे सकती है।
    चलूँ अब । जोश में आकर आज अपनी पहली लघु कहानी लिखी, एक घण्टा भी नहीं लगा होगा - गेट। तमाम प्रशंसात्मक (डा. अनुराग जी की स्पेशल) टिप्पणियों और अरविन्द जी की दुहरी टिप्पणी से मन आह्लादित था कि पंकज जी को कहानी लचर और नॉन-ऑरिजिनल लग गई। कम से कम उनकी टिप्पणी तो यही कहती है। अब वहाँ चलता हूँ - अपना पक्ष रखने। मेरी कम अक्ली पर अब तो आप सब को भरोसा हो ही जाना चाहिए।

    नकल करना भी ठीक से नहीं आता ;)
    नकलची पर स्नेह बनाए रखें। एक बार फिर आप सब को आभार। बड़के भैया को कुछ नहीं कह रहा हूँ, मेरा यह कुछ नहीं ही 'बहुत कुछ' है। ... हाँ, एक बात भूल गए। हम फोटो में जैसे दिख रहे हैं, उससे अधिक स्मार्ट दिखते हैं :) हो सकता है गलतफहमी हो पर है बहुत तगड़ी।

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  26. हम तो ये सब तभी जान गए थे जब पहले बार इनकी पोस्ट पढ़ी थी. इर्ष्या होती है की सब जान गए :) सच्ची !

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  27. गिरिजेश जी से मिलवाने उन के बारे विस्तार से बताने के लिये आप का धन्यवाद

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  28. girijeshji se milvane ke liye dhnywad
    abhi unhe jyda padha nhi par ab aalsy chod unka aalsi chithha jaldi pdhna hoga
    abhar

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  29. गिरिजेश जी वाकई एक गम्भीर व्यक्ति हैं, इसका भान मुझे भी है। हालाँकि मैंने उनके साथ इलाहाबाद की यात्रा की है, पर फिरभी उनके व्यक्तित्व से इतनी गहराई से परिचित नहीं हो सका था, जितना विस्तृत विवरण आपने दिया। इसके लिए आपको धन्यवाद देना चाहूंगा, क्योंकि हम लोग एक ही शहर के वासी हैं और आपकी यह पोस्ट मुझे उनको समझने में काफी मददगार होगी।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  30. ज्ञानजी की टिप्पणियां भी आजकल चुराने लायक हो गई हैं, सो वही लाकर रख रहे हैं। यही हमारे भाव हैं-

    गिरिजेश से ईर्ष्या है। और अगर आलसी बनने से उनकी प्रतिभा का अंश मात्र भी मिलता हो तो हम सहर्ष आलसी बनने को उद्धत हैं!

    गुरुजनों ने सिखाया है कि सच्ची बात स्वीकारने में देरी नहीं करनी चाहिए। गिरिजेश तो हैं ही सुहावने। उनकी तारीफ़ जितनी की जाए, कम है। आप मानें तो मानें कवि, हम तो उनमें एक उदीयमान कथाकार, उपन्यासकार का रूप देखते हैं। पर इस मामले में शायद वे सचमुच आलसी हैं।

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  31. ज्ञानजी की टिप्पणियां भी आजकल चुराने लायक हो गई हैं, सो वही लाकर रख रहे हैं। यही हमारे भाव हैं-

    गिरिजेश से ईर्ष्या है। और अगर आलसी बनने से उनकी प्रतिभा का अंश मात्र भी मिलता हो तो हम सहर्ष आलसी बनने को उद्धत हैं!

    गुरुजनों ने सिखाया है कि सच्ची बात स्वीकारने में देरी नहीं करनी चाहिए। गिरिजेश तो हैं ही सुहावने। उनकी तारीफ़ जितनी की जाए, कम है। आप मानें तो मानें कवि, हम तो उनमें एक उदीयमान कथाकार, उपन्यासकार का रूप देखते हैं। पर इस मामले में शायद वे सचमुच आलसी हैं।

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  32. गिरिजेश में एक अलहदा बोध है, थोड़ा दुर्लभ सा।
    उनकी गंभीरता का कायल होना चाहिए।

    बाकी तो एक अंतहीन यात्रा है ही, जिसके लिए उनमें आतुरता दिखती है।

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  33. नायिका-भेद के बीचो-बीच गिरिजेश भईया बैठे हैं - हम क्या जानें! छूट ही गयी थी, यह चर्चा ।

    गिरिजेश जी को जाना ही बाऊ से । बाऊ छाया की तरह खड़े हो जाते हैं हर वक्त - जब गिरिजेश जी के बारे में सोचता हूँ ।

    गिरिजेश भईया जो रचते हैं वह सर्जना के स्तर पर कई आयाम बड़ी गम्भीरता व सजगता के साथ उद्घाटित करता है । जाने-अनजाने एक बेचैनी आ खड़ी होती है पाठक के मन में, वह संवाद के लिये आतुर होता है ; फिर एक आत्मीय स्वीकार सहज ही उपलब्ध हो जाता है ।

    गिरिजेश भईया को कितना जान गये हैं हम ! इसलिये ही न कि वे अपने होने का एहसास हमें दिलाये चलते हैं - प्रविष्टि से भी, शीर्षक से भी । शायद किसीको उसके होने मात्र से जानना ही वस्तुतः जानना है । दान्ते का यह कथन कह दूँ (सटीक हो न हो) -

    "I was there in the image as conceived by 'him', not as conceived by 'me'.

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  34. महाराज की जय हो!
    यह पोस्ट हमसे कैसे छूट गयी भला? जब गिरिजेश के आलसी चिट्ठे को पढ़ना शुरू किया तो लगा ज़रूर कोई बहुत बुज़ुर्ग दादाजी हैं. नाम, शहर, व्यवसाय आदि जितना भी ब्लॉग पर लिखा था, इकट्ठा कर के इस अनोखे लेखक को ढूंढना शुरू किया. और फिर पहाड़ खोदना शुरू किया तो महाराज जी प्रकट हो गए, सरल, विनम्र और हमसे कहीं छोटे (उम्र में, लेखन-कौशल में तो अच्छों-अच्छों को पीछे छोड़ दिया है) ज़्यादा क्या कहूं, गिरिजेश बहुत ही प्रतिभाशाली (और उतने ही सरल स्वभाव के) व्यक्ति हैं. ब्लॉग लिखने के जो फायदे मुझे हुए हैं उनमें से एक गिरिजेश जैसे लोगों से परिचय का भी है.

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  35. अगर मैं भी आप सब के संग ये कहूं कि ,
    भाई गिरिजेश के लेखन से प्रथम पाठ के बाद से ही
    बहुत प्रभावित हूँ
    तो यह १०० % सही होगा
    आपके आलेख ने भी प्रभावित किया है --
    न जाने कैसे ये आज ही देख रही हूँ
    आप सब पर ,
    बसंत पर्व पर माँ सरस्वती की कृपा रहे ,,
    स स्नेह्म
    - लावण्या

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