इसे ही तो कहते हैं न कि गली में छोरा और नगर में ढिंढोरा ! कई दिन से इसी उधेड़बुन में था कि अबकी चिट्ठाकार चर्चा का शिकार किसे बनाऊँ ! कुछेक के बारे में सोचा तो देखा कि भाई तरुण और ताऊ जी उन पर पहले ही कुर्बान हो चुके हैं .कुछ निर्णय नहीं कर पा रहा था कि किसे पकडूँ किसे छोडूं ,किसे अभी पकडूं किसे जब कोई न मिले तब आजमाऊँ और इसी उधेड़बुन में सहसा ही देवदूत से प्रगट हो गये अपने जार जवार के ही सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी ! अभी अभी वे इन्द्रलोक से खलियाये हैं ! और इसके पहले कि वे फिर से देव मंडली में जा मिलें और हम लोगों को भूलते चले जायं (बड़े लोगों की कम्पनी ऐसे ही होती है भैया !) उन्हें अपनी याद दिलाई जाय और बताया जाय कि जिस भी मंडली में रहें कम से कम हमें भी कभी कभार याद तो कर लिया करें !
सिद्धार्थ जी अभी तक पूरी तरह युवा हैं -इस बारे में मेरी नेक सलाह है कि कोई उन्हें इस बारे में तो कतई न आजमाए और सिद्धार्थ जी किसी को भी अभी इस कच्ची युवावस्था में तो कदापि आजमाने को मौका ना ही दें ! अनुभव बताता है कि ज्यादातर इमोशनल लफडे इसी उम्र में परवान चढ़ जाते हैं और जिंदगी भर सालते रहते हैं .डर तो इसी बात का है कि सिद्धार्थ भाई कुछ ज्यादा ही डैन्जर जोन में हैं -उम्र का अल्हड़पन , गजटेड सरकारी नौकरी -साफ्ट टार्गेट तो वे वल्लाह हैं हीं ! खुदा बचाए ! लेकिन मानना होगा अपनी तल्ख़ लेखनी से वे इस मामले में अनजान रहकर भी लोगों को पास फटकने का मौका न देकर एक तरह से अपनी लक्ष्मण रेखा बनाए हुए हैं ! (यहाँ लिखना कम समझना ज्यादा ! )
होशियार तो खैर हैं हीं -कुछ तो इंसान कुदरती तौर पर होता है और कुछ सरकारी नौकरी भी बना भी देती है -वे लोगों की बडी बारीक छानबीन करके ही सम्बन्धों की पेंगें बढाते हैं .अब जैसे उनसे मेरे तवारुफ़ का वाकया बताऊँ -पिछले दिनों दुर्गापूजा के अवसर पर मैंने अपने किसी ब्लॉग पर लिखा कि मैं इन दिनों पूजा पंडालों की मजिस्ट्रेटी ड्यूटी में हूँ बस तड से भाई जी ने ताड़ ही तो लिया कि मैं कोई बड़ा प्रशासनिक अधिकारी ही होऊंगा -अब पानी तो अपना सतह ही ढूँढता है ना इसलिए उन्होंने फौरन यह दरियाफ्त कर ही लिया कि मैं आख़िर किस पद पर हूँ पर मुझे भी दुःख हुआ कि सिद्धार्थ जी को मजबूरन यह सच बता कर कि मैं मोहक्माये मछ्लियान का एक मरियल सा मुलाजिम हूँ मायूस सा कर दिया होगा .अब भाई कोई बडा प्रशासनिक आफीसर ब्लागिंग स्लागिंग के चक्कर में पड़ने से रहा -आख़िर है क्या यहाँ ? कौन सा पुरुषार्थ यहाँ दिखे है जो आला आफीसर यहाँ समय जाया करने को आयें ! ये तो ठलुआ लोगों का शगल है भर -अब अपवाद के तौर पर ही अपने सिद्धार्थ जी और ज्ञान जी यहाँ बने हुए हैं और केवल इसलिए कि उनमें लीक से हट कर कुछ करने की तमन्ना है .या फिर वे जहां हैं वहाँ अपने को शायद पूरी तरह संतुष्ट नहीं पा रहे हैं ! ये दिल मांगे मोर ! यह बात सिद्धार्थ जी के आत्मकथ्य से भी स्पष्ट होती है आईये देखें -
"अपनी रूचि के काम नहीं कर पाने का मलाल लिए मैं अपनी गृहस्थी में खुश रहने की कोशिश कर रहा हूँ. पत्रकारिता, लेखन, रंगमंच, पत्रमित्रता, चित्रकारी आदि एक-एक कर शगल बन कर आए और परवान चढ़ने से पहले ही चलते बने. मिडिल-क्लास मानसिकता ने सरकारी नौकरी को ही जीवन का श्रेय-प्रेय मान लिया था. जबसे मिल गई तबसे ही यह शेर हॉन्ट करता है:- जिंदगी में शौक क्या कारे- नुमाया कर गए; बी.ए. किया, नौकर हुए, पेंशन मिली और मर गए. अब फ़िर से कोशिश कर रहा हूँ अपने भीतर से टटोलकर कुछ बाहर लाने की...मित्रों से कुछ सीखने की लालसा है और कुछ बाँटने का उत्साह है…"
तो यह वह जज्बा है जो आज के मेरे अतिथि चिट्ठाकार को ब्लागिंग तक खींच लाया है .सिद्धार्थ जी तो मुझे जैसे भूलते से गए मगर मैं पूरी सजगता के साथ अपने प्रिय ब्लागर को फालो करता ही रहा हूँ -मैं और वे लगभग एक ही सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से ही हैं -शिक्षा दीक्षा का भी परिवेश एक जैसा ही है इसलिए सोच में काफी साम्यता है -इसलिए उन्हें बीते दिनों नारी विमर्श के मुद्दों पर अपनी बात रखने की पुरकशिश कोशिशों को देखकर सहानुभूति भी हुई पर मैं चूंकि ख़ुद इस मुहिम पर हथियार डाल चुका हूँ अतः बस चुपचाप इनके बलिदान को देखता रहा ! पर सच कहूं खूब लडा मरदाना ........काबिले तारीफ़ !
मैं सिद्धार्थ जी की लेखनी का कायल हूँ -ऐसा शब्द चित्र खींचते है सिद्धार्थ जी कि सारा दृश्य आखों के सामने साकार हो जाता है -मिसाल के तौर पर उनकी हालिया लेखनी का चमत्कार अप देख सकते हैं -तिल ने जो दर्ददिया और रामदुलारे जी नही रहे -ये तो बस बानगी भर हैं इन पोस्टों में सिद्धार्थ जी की मनोविनोद्प्रियता ,सम्मोहित करने वाली शैली और संवेदनशीलता को सहज ही देखा, महसूस किया जा सकता है .और एक प्रखर लेखनी की सम्भावनाशीलता के प्रति भी हम आश्वस्त होते है .
सिद्धार्थ जी इन दिनों हिन्दुस्तानी एकेडेमी को पुनर्जीवित करने में लगे हैं -मुझे याद है कि मेरे इलाहाबाद प्रवास में वह एक परित्यक्त सी जगह थी और कभी कभार वहां कोई लैक लस्टर कार्यक्रम हो जाता था जिसमें एकाध में शरीक होने के बद फिर अगले किसी भी एकेडेमी के प्रोग्राम में न जाने की मैं कसम खाता था ! पर आजकल इन पीयूष पाणि सिद्धार्थ जी ने वहाँ के माहौल को गुलजार कर रखा है ! किसी कायदे के आदमी को किसी भी अग्नि परीक्षा में झोंक दो वह कंचन सदृश होकर और भी आभामय हो उठता है ! सिद्धार्थ जी इसके जाज्वल्यमान मिसाल हैं !
सिद्धार्थ जी आप दिनों दिन शोहरत की बुलंदियां छुएं ,मगर हमें भी याद रखें !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी से रुबरु करवाने के लिये आपका बहुत आभार. उनका ब्लाग अभी तक जाने का मौका नही पडा. आज आपके ब्लाग से लिंक सुरक्षित कर लिया है. वहां जाकर अपना ज्ञानवर्धन करेंगे.
जवाब देंहटाएंत्रिपाठी जी को शुभकामनाएं और आपका बहुत २ आभार.
रामराम.
सिद्धार्थ शंकर भविष्य की सम्भावनाओं के ब्लॉगर हैं। ऊर्जा और रचनात्मकता से लोडेड!
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही फरमाया आपने. सिद्धार्थ चिट्ठाकार तो संभावनाशील हैं ही, चिट्ठाकारी के प्रति वह पूरे गंभीर भी हैं. चिट्ठाकारी को ऐसे ही लोग उसका वास्तविक अर्थ देंगे. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.भविष्य के ब्लॉगर हैं...
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी के तो हम यूँ भी फैन हैं भई. आपने और एक्सट्रा परिचय करा दिया, अब तो हम और तेजी से घूमेंगे उनके इर्द गिर्द.
जवाब देंहटाएंअच्छे लोग सभी को अच्छे लगते हैं, यह सिद्ध हुआ.
बहुत शुभकामनाऐं सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी को.
सिद्धार्थ जी वास्तव में तारीफ के काबिल हैं उनकी तारीफ करके आपने तारीफ का काम किया है .
जवाब देंहटाएंआपकी तारीफ ? जितनी की जाय कम है !
सिद्धार्थजी तो प्रतिष्ठित चिट्ठाकार हैं ही। अब तक तो वे सभी सम्भावनाओं को पार कर ही चुके हैं - अब यदि कुछ बची-कुची हैं भी तो फिर वे शीर्ष पर ही होंगे!!:)
जवाब देंहटाएं"सिद्धार्थ भाई कुछ ज्यादा ही डैन्जर जोन में हैं -उम्र का अल्हड़पन , गजटेड सरकारी नौकरी -साफ्ट टार्गेट तो वे वल्लाह हैं हीं ! खुदा बचाए ! लेकिन मानना होगा अपनी तल्ख़ लेखनी से वे इस मामले में अनजान रहकर भी लोगों को पास फटकने का मौका न देकर एक तरह से अपनी लक्ष्मण रेखा बनाए हुए हैं !"
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति का यह सौन्दर्य तो देखते ही बनता है, और इसकी बारीकी भी. इन पंक्तियों को ही सार मान लिया है मैने सिद्धार्थ जी के लिये.
इस शख्सियत से परिचय कराने के लिए आभार. कभी घांस नहीं डाली (दोनों तरफ़ से). अब तो एक बार कोशिश करनी ही होगी.
जवाब देंहटाएंसिधार्थ जी का ब्याक्तित्वा परिचय जिस तरह से आपने की है उसके लिए आपको पहले बधाई ,सिधार्थ जी पे लिखनी की असीम आशीर्वाद है ... ढेरो बधाई आप दोनों को ...
जवाब देंहटाएंअर्श
vaah.. inhe jaanna bhi achchha raha.. :)
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी के बारे में आज पहली बार आप के द्वारा जाना.
जवाब देंहटाएंएक माननीय ब्लॉगर से परिचय कराया इस के लिए आप को धन्यवाद .
उनकी एक पोस्ट पढ़ कर ही रीडर में जोड़ लिया था... तब से एक भी पोस्ट नहीं छूटती... आपकी च्वाइस बड़ी सही जा रही है ! हमारे पसंदीदा ब्लोगर्स की लिस्ट आपके हाथ कैसे लग गई :-)
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी से रुबरु करवाने के लिये आपका बहुत आभार. उनका ब्लोग अक्सर पढा करते हैं मगर उनके व्यक्तित्व और लेखन ऊर्जा की जानकारी आपके द्वारा ही जान पाये....हमारी तरफ से भी उन्हें ढेरो शुभकामनाये "
जवाब देंहटाएंRegards
सिद्दार्थ जी का लिखा हमेशा ही प्रभावित करता है ..कई गहरी बातें भी वह बहुत सहज ढंग से लिखते हैं ....उनके बारे में आपसे जान कर अच्छा लगा ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ जी से बिल्कुल नए अंदाज मे परिचय करवाने का शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंहिन्दुस्तानी एकेडमी का अपना गौरवशाली इतिहास है, अगर वह पुनर्जीवित हो उठती है, तो यह बहुत बडी उपलब्धि होगी। इसके लिए सिद्धार्थ जी को अग्रिम बधाई। आपको धन्यवाद इस बात का, जो आपने उनके संघर्षशील जीवन से परिचय कराया।
जवाब देंहटाएंसरकारी नौकरी में रहते हुए भी अपनी संवेदना को बचाये रखना ....उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानता हूँ...इस समाज को एक अच्छे इंसान की ज्यादा दरकार है ...मेरी शुभकामनाये हमेशा उनके साथ रहेगी
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ संभावनाशील अब न रहे। वे स्थापित, शानदार ब्लागर हैं। अब उनको आगे बढ़ना है। लिखना है और लिखवाना है। संभावनाशील ब्लागर तो उनकी श्रीमतीजी और उनके ब्लाग पर जिन दुलारी
जवाब देंहटाएंजी की कहानी प्रकाशित हुई वे हैं। अब ये सिद्धार्थ का इम्तहान है कि वे इन संभावनाशील ब्लागरों का लेखन नियमित करायें। नियमित बोले तो रेगुलर। ज्ञानजी की तरह नहीं कि जहां भाभीजी का लेखन पापुलर हुआ तो उनका लिखना बंद हो गया। :)
हम्म्म !!
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी के तो हम यूँ भी फैन हैं!!!!!
जवाब देंहटाएंसिध्धार्थ जी को और आप को भी बहुत शुभ कामनाएँ
जवाब देंहटाएंअब इत्मीनान से सारे लिन्क्ज़ पढेँगेँ :)
-- लावण्या
bahut dino se inke baare me janne ki chah thi..dhnyawaad jankari dene ka.
जवाब देंहटाएंसोचता हूँ क्या करूँ...। थोड़ा लजा रहा हूँ। यकबयक इतने लोगों का स्नेह और ध्यानाकर्षण एक साथ पाकर निःशब्द हो गया हूँ।
जवाब देंहटाएंश्रद्धेय (डॉ.)अरविन्द जी की सदाशयता को सादर प्रणाम और आप सभी शुभेच्छुओं का सत्यार्थमित्र पर हार्दिक स्वागत...।
पिछले दिनो शिमला गया था घूमने.. देख नही पाया आपकी पोस्ट.. आप तो इस बार मेरे फ़ेवरेट सिद्धार्थ जी को ले आए... संवेदनशीलता के मामले में इन्हे मैं अनुराग जी वाली केटेगरी में देखता हू.. इनकी पोस्ट में संवेदनाए भरपूर होती है..
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया..
जी इनके फ़ैन तो हम भी हैं। एक खास बात जो आपसे छूट गई लेकिन अनूप जी ने कह दी, वह है इनका नये लोगों को सामने लाने का प्रयास। सच पूछिये तो ब्लॉगजगत में मुझे इंट्रोड्यूस कराने का भी सारा श्रेय इन्हें ही जाता है।
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