लिंग पूजा के वैज्ञानिक विवेचन की इस दूसरी कड़ी को देते हुए किंचित संकोच /धर्मसंकट की मनोदशा में हूँ -यह लोगों की धार्मिक आस्था को कदाचित आहत न कर दे -पर मेरा यह मंतव्य कतई नही है और न ही मेरा उद्देश्य किसी नये वितंडा को तूल देने का है -मुझे मेरे सुदीर्घ अध्ययन और अल्प समझ के चलते जो सूझ रहा है उसे पूरी विनम्रता और सभी के प्रति (व्यक्ति , आस्था और संस्था ) आदर भाव के साथ यहाँ जानकारी बांटने की ही प्रबल इच्छा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ -बस अनुरोध है कि खुले मन से इसका अवगाहन करें और चाहें तो अपनी शंकाएं भी खुले मन से यहाँ रखें जिससे और भी ज्ञानार्जन हो सके !
प्रख्यात ब्रितानी जीव विज्ञानी (एन्थ्रोपोलाजिस्ट) एवं व्यवहारविद डॉ0 डिज्मांड मोरिस अपनी दो बहुचर्चित पुस्तकों ``द नेकेड ऐप "एवं द ह्यूमन जू´´ में लिंगपूजा के रोचक जैवीय (बॉयालाजिकल) एवं व्यवहार पक्षीय (इथोलोजिकल) कारणों पर प्रकाश डाला है। आज की सर्वमान्य वैज्ञानिक विचारधारा के अनुसार आधुनिक मानव, जैवीय विकास की प्रक्रिया में वानर-कपि सदृश प्राणी से ही विकसित हुआ एक अत्यन्त उन्नत सामाजिक पशु है। अतः लिंगपूजा के सन्दर्भ में ज़रा बानरों और कपियों (चिम्पांजी, गोरिल्ला गिब्बन आदि) के लिंग विषयक व्यवहार प्रदर्शनों पर भी दृष्टिपातकर लिया जाय ।
विकसित स्तनपोषी पशुओं (नर वानरगण / प्राइमेट) में लिंग का सम्बन्ध प्रजननशीलता से तो है ही, परन्तु साथ ही साथ यह उनके सामाजिक श्रेष्ठता के निर्धारण की भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कैसे ? व्यवहारविदों का कहना है कि पशुओं में लिंग प्रदर्शन एक दंबंग प्रक्रिया है। नर, मादा से शारीरिक रुप से अधिक दबंग, आक्रामक एवं सशक्त होते हैं। नर सरीखा व्यवहार (जिसमें लिंग प्रदर्शन की एक मुख्य भूमिका है) जहा दबंगता (डामिनेन्ट ) का परिचायक है, वहीं मादा सरीखा व्यवहार ठीक इसके विपरीत दब्बूपन( सब्मिस्सिवनेस ) का।
बन्दर व कपि मुख्यत: छोटे-छोटे दलों में रहते हैं। इन दलों का मुखिया उस दल का ही एक सशक्त नर सदस्य होता है। वह अपने ``विद्रोही´´ अनुचरों को अनुशासित करने के लिए अपने आक्रामक हाव भावों के साथ ही अपने " उत्थित लिंग´´ का प्रदर्शन करता है। विद्रोही सदस्य भयाक्रान्त होकर नतमस्तक हो उठता है। कभी-कभी वे इतना भयाक्रान्त हो उठते हैं कि अपने ``पुरुषत्व´´ को तिलांजलि दे मादा जैसा आचरण भी अपना लेते हैं। नर स्क्वीरेल मन्की (एक बन्दर प्रजाति) अपने क्रोध की चरमावस्था में दल के ``विद्रोही´´ सदस्य के मुँह पर अपने उठित लिंग से प्रहार सा करता है। तुरत फुरत भयग्रस्त सदस्य, उसका स्वामित्व स्वीकार कर लेता है। लगता है कि किसी उत्थित लिंग के प्रति नतमस्तक होने की यह भयग्रस्त भावना मानव मन में गहराई तक उतरती चली आयी है। विकास क्रम में सम्भव है ``बिनु भय होई न प्रीति´´ की भावना के वशीभूत होकर ही मानव लिंगार्चनोन्मुख न हुआ हो।
न्यू गुयेना के आदिवासी आज भी परस्पर कबीलाई युद्धों में अपने कमर के सहारे लिंग से बंधी एक फुट नलिका का आक्रामक प्रदर्शन करते हैं। उनका यह विचित्र लैंगिक प्रदर्शन विरोधियों को भयाक्रान्त करता है। अपने देश में भी नागा साधुओं में लिंग के सहारे वजनी पत्थर उठाने की प्रतिद्विन्द्वता होती रही है, जो उनके शक्ति सामर्थ्य और साधना के स्तर का निर्धारण करती है। तन्त्र शास्त्र में सजीव मानव लिंग को भिन्न-भिन्न विधियों से अलंकृत करके पूजने का विधान रहा है। मानव के सांस्कृतिक विकास के साथ ही साथ लिंग अपने वास्तविक रूप से कई गुना बढ़ता गया। विदेशों में प्रेम की देवी ``वीनस´´ के मिन्दर के चारों ओर लिंग स्तम्भों की ऊँचाई कहीं-कहीं 200-400 फीट तक पहुँच गयी है।
यह स्पष्ट है कि मानव कल्पना में लिंग के समक्ष अन्य शारीरिक अंग गौण हो गये हैं। ``लिंग´´ की विशिष्टिता ने अन्य मानवीय अंगो को जैसे निस्तेज सा कर दिया है। जिस प्रकार एक कार्टूनिस्ट किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के रेखांकन में उसके खास ``पहचान´´ को ही उभारता है और अन्य प्रत्यंगों को उपेक्षित सा कर देता है, उसी तरह लिंग की प्रधानता के सन्दर्भ में भी घटित हुआ लगता है।
जारी .......
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
मर्यादित भाषा का प्रयोग करके अच्छा ज्ञानवर्धक लेख लिखा है । आभार इसके लिये ।
जवाब देंहटाएंजानकारी अच्छी है। इस से किसी की धार्मिक भावनाएं आहत होने का सवाल नहीं है। इन तथ्यों को सामने लाना आज की आवश्यकता भी है।
जवाब देंहटाएंजैसा मैं ने आलेख 1 में कहा था, पिछले 35 साल से इस विषय के वैज्ञानिक अध्ययन में मेरी रुचि रही है. लेकिन इतने सालों में जितने लेख दिखे हैं उन में सबसे अधिक वैज्ञानिक आधार पर आपका यह लेख चल रहा है. लिखते रहें.
जवाब देंहटाएंसस्नेह -- शास्त्री
बहुत ही वैज्ञानिक आधार पर लिखा गया ये आलेख आपके अन्य लेखों की तरह ही बहुत पसंद आया और जानकारी मे वृ्द्धि हुई.
जवाब देंहटाएंअगले भाग का इन्तजार है.
रामराम.
डिस्कवरी पर एक प्रोग्राम देखा था.. जोधपुर के वानरो पर आधारित था.. उसमे भी लगभग यही बात कही थी.. वानर अपने दल से पृथक किसी दूसरे वानर को देखते ही उग्र हो जाता है.. शक्ति प्रदर्शन तो देयखहा था लाइव मगर उसमे वानर को लिंग का प्रदर्शन करते नही देखा.. मगर ज़रूरी नही की उसमे जो नही देखा वो हो ही नही..
जवाब देंहटाएंअभी तक के आलेख से तो नही लगता किसी की धार्मिक भावना आहत हो सकती है.. हा हिस्ट्री चैनल पर भी नगा साधुओ को लिंग से वजन उठाते हुए देखा है.. वीनस मंदिर की जानकारी नही थी.. कार्टून वेल उदाहरण से आपने बढ़िया बात कही...
खुशी है की अभी जारी है
Thanks for this type of information on 'LING PUJA' with respected language. SANJAY
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख है. इससे बेहतर इस वोषय पर लिख पाना शायद ही संभव हो..साधुवाद.
जवाब देंहटाएंमानव के विकास के साथ-साथ 'लिंग-पूजा' के स्वरुप का भी क्रमिक विकास होता गया. कई नई जानकारियां भी मिल रही हैं इस श्रंखला से.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी,अच्छी भावना से, अच्छी भाषा में।
जवाब देंहटाएं"लिंग" का एक अर्थ "प्रतीक" भी है। क्या लिंग पूजा से आशय परमात्मा के प्रतीक की पूजा से नहीं हो सकता है?
जवाब देंहटाएंदिलचस्प आलेख है सारगर्भित भाषा में .निसंदेह जानकारी पूर्वक भी.....
जवाब देंहटाएंनर सरीखा व्यवहार (जिसमें लिंग प्रदर्शन की एक मुख्य भूमिका है) जहा दबंगता (डामिनेन्ट ) का परिचायक है,
जवाब देंहटाएं------------------------- संभवतः इसी कारण मनुष्यों में सार्वजनिक लिंग प्रदर्शन नहीं होता. आप नोट करें पुरुष ग्रुप में शौच या स्नान नहीं करते jabकि स्त्रियां कर लेती हैं क्योंकि स्त्रियों में ऐसी परम्परा नहीं होती स्वभावतः.........
बहरहाल pichhli post ki tippaniyon me मेरी कुछ पंक्तंयों से आप को संबल मिला jaan kar मैं कृतार्थ हुआ.
वो धार्मिक भावना ही क्या जो आलेखों से आहत हो जाय ? बहुत बढ़िया चल रही है श्रृंखला.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया. विशुद्ध वैज्ञानिक और दार्शनिक आधारों पर चल रहा है. कोई आहत हो तो होने दें, आप जारी रहें.
जवाब देंहटाएंबहुत सी बातें हम नही जानते हैं आपने वैज्ञानिक ढंग से इस बात को बताया है ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंनारीवादी विचारक यह मानते हैं कि पुरुषों में लिंग-प्रदर्शन की प्रवृत्ति होती है.इसके द्वारा वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं.यही प्रवृत्ति जब समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा बालक के मन में घर कर जाती है तो वह ख़ुद को नारी से श्रेष्ठ और उसे कमतर मानने लगता है.अक्सर हम अपने आस-पास परिवारों में देखते हैं कि छोटे लड़के के लिंग को लेकर हँसी-मजाक किया जाता है ,जबकि छोटी बच्ची के प्रजनन -अंगों को ढककर रखा जाता है .आपने अपने लेख में बहुत ही महत्वपूर्ण बात को सरल शब्दों में व्यक्त किया है .निश्चित ही लिंग-पूजा का सम्बन्ध श्रेष्ठता के प्रदर्शन से है ,चाहे वह स्त्री से हो या अन्य पुरुषों से .
जवाब देंहटाएंआदरणीय अरविंद जी, महाशिवरात्रि के शुभ अवसर आपका ये वैज्ञानिक तथ्यों से सजा हुआ लेख बहुत सामयिक बन पड़ा है। बहुत आभार इसके लिए आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ढंग से आप ने अपने इस लेख को लिखा है फ़िर धार्मिक भावनाये आहत केसे होगी हम सब शिव लिंग को भी तो पुजते है,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आप के लेख में कोई नयी बात नहीं है. प्राणि शास्त्र, समाज शास्त्र, दर्शन शास्त्र के विद्यार्थी यह सब जानते हैं. शिव लिंग की पूजा प्रचलित होने का मूल भी यहीं है. आप न संकोच करें, न भय जो पढ़ा-समझा निस्संकोच लिखें. मैं आप के कथ्य से सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंएक बात और.. सिर्फ़ लिंग ही नहीं योनी की भी पूजा होती है वामाचार में. जबलपुर में चौंसठ योगिनी मन्दिर में देवी मूर्तियों में नीचे योनी के चिन्ह हैं. केवल योनी की मूर्तियाँ कम हैं पर हैं. वामाचार के कारण दशरथ के दरबार से महर्षि जाबाली बहिष्कृत किये गए थे. लिंग और योनी की अलग-गहन चिन्तन तथा वैज्ञानिक अवधारणा है. हमारे पोंगा पंडितों ने कर्म-कांड, अवैज्ञानिक दृष्टान्तों तथा कपोल कल्पित कथाओं से न केवल सत्य छिपाया अपितु जन-मन को सदियों से भ्रमित किया है. आपका लेख भ्रमों पर आघात करता है.
-sanjivsalil.blogspot.com
-divyanarmada.blogspot.com
संयंमित भाषा ,सशक्त लेखन,अनछुआ विषय.
जवाब देंहटाएंरोचक और नयी जानकारियां , सफल प्रस्तुति -अगले भाग का इंतज़ार
संयत लेखन - किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये।
जवाब देंहटाएंनारी वर्ग क्या कहेगा, कहना कठिन है।
पौराणिक रोचक जानकारी के लिए धन्यबाद
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com
आचार्य संजीव 'सलिल' जी की यह काव्यात्मक टिप्पणी भी प्राप्त हुयी है जिसे जस का तस् यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ !
जवाब देंहटाएंप्रकृति-पुरूष का मेल ही,
'सलिल' सनातन सत्य.
शिवा और शिव पूजकर,
हमने तजा असत्य.
योनि-लिंग हैं सृजन के,
माध्यम सबको ज्ञात.
आत्म और परमात्म का,
नाता क्यों अज्ञात?
गूढ़ सहज ही व्यक्त हो,
शिष्ट सुलभ शालीन.
शिव पूजन निर्मल करे,
चित्त- न रहे मलीन.
नर-नारी, बालक-युवा,
वृद्ध पूजते साथ.
सृष्टि मूल को नवाते,
'सलिल' सभी मिल माथ.
तथ्य किया इंगित, नहीं
इसमें तनिक प्रमाद.
साधुवाद है आपको,
लेख रहेगा याद.
-आचार्य संजीव 'सलिल'
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divyanarmada.blogspot.com
बहुत मौलिक और अद्भुत आलेख है। इसे पढ़कर बहुत कुछ नया सोचने समजने का रास्ता मिला है।
जवाब देंहटाएंकल शिवरात्रि है। देशभर के शिव मन्दिरों में शिवलिंग की पूजा-अर्चना होगी। महिलाएं और कुँआरी लड़किया भी मन्दिरों में जाकर जलाभिषेक करेंगी और व्रत उपवास करेंगी।
यहाँ इलाहाबाद के छात्र जीवन की याद आ रही है जब इसदिन विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास परिसर से भारद्वाज पार्क के शिवमन्दिर तक लड़कियों का ताँता लगा रहता था। कहीं से इसमें लोकमर्यादा के हनन या “टैबू” का भान नहीं होता है। यह तो प्रकृति में जीवन का मूल आधार है। हमारे आदि मनीषियों ने इसे धर्म से जोड़कर जो महिमा प्रदान की वह स्तुत्य है।
आपकी वैज्ञानिक गवेषणा प्रशंसनीय है। मैं अन्यत्र व्यस्तता के कारण यहाँ देर से आ सका इसके लिए पश्चाताप कर रहा हूँ।
इसी बहाने बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां मिल रही हैं।
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