पहले बता दूँ कि कल रात साढ़े नौ बजे एन डी टी वी इंडिया ने डार्विन द्विशती पर एक विशेष रिपोर्ट प्रसारित की जिसे बेहद प्रभावशाली लहजे में प्रस्तुत किया रवीश कुमार नें -आज ११.३० दिन में यह पुनः प्रसारित होगा .मौका लगे/मिले तो जरूर देखें -बहुत ही परिश्रम से तैयार की गयी यह बहुत रोचक प्रस्तुति है .भारत में किसी भी टी वी चैनेल की डार्विन पर पहली और बेहतरीन प्रस्तुति ! मेरी बधाई !
अब आगे चलें, आज डार्विन के व्यक्तित्व पर कुछ चर्चा हो जाय ! डार्विन की विलक्षण विनम्रता प्रभावित करती है। उनके चुम्बकीय व्यक्तित्व से लोग उनकी ओर खिंचे चले आते थे। उनकी नीली भूरी आँखों में सहानुभूति की गहरी चमक सी थी। सभी से उनका व्यवहार मृदु था। जो एक बार भी उनसे मिल लेता था उनकी तारीफ किये बिना न रहता। डार्विन ने अपने एक मित्र को लिखे अपने पत्र में कहा था, ``ऐश्वर्य- सम्मान, सुख और समृद्धि सच्चे स्नेह सम्बन्धों के आगे धूल के समान है´´।
वे अपने धुर विरोधियों के प्रति भी बड़े उदार थे। उनके विरोधी भले ही गाली-गलौज तक उतर आते थे, डार्विन ने कभी भी अपना आपा नहीं खोया। उनके विरूद्ध कभी भी कटु शब्दों का इस्तेमाल तक नहीं किया। बल्कि उन्होंने सदैवे अपनी आलोचना के लिए उनके प्रति आभार ही जताया। अपनी कड़ी से कड़ी आलोचना को वे धैर्य से सुन लेते थे और अपनी कमियों पर ज्यादा ध्यान देते थे। डार्विन का यह व्यक्तित्व किसी के लिए भी अनुकरणीय हो सकता है। ( हमारे ब्लॉग मित्र सुन देख रहे हैं ना ?)
एक अविस्मरणीय मुलाकात ... ...
एक बार इग्लैण्ड के तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डस्टीन डार्विन से मिलने आये। मिलने के उपरान्त लोगों ने डार्विन से इस मुलाकात के बारे में पूँछा। डार्विन ने कहा, ``मेरे साथ तो गोल्डस्टीन साहब इतनी सहजता और विनम्रता से पेश आये कि कहीं से भी ऐसा प्रतीत नहीं हुआ कि वे प्रधानमंत्री हैं, उनका आचरण मेरे जैसे ही साधारण व्यक्ति के स्तर का था... ... ``यह बात जब गोल्डस्टीन को बतायी गई तो उनका जवाब था, `अरे... ... उनके बारे में तो मैं भी ऐसा ही सोच रहा था´´।
डार्विन, आस्तिक या नास्तिक?
डार्विन खुद को अज्ञेयवादी मानते थे यानि न तो नास्तिक और न ही आस्तिक। उनका महज यह मानना था कि परम सत्ता को समझ पाना सम्भव नहीं है। ईश्वर में विश्वास के प्रति वे बहुत आश्वस्त नहीं थे। आत्मा, परमात्मा के सम्बन्धों, अमरता की अवधारणा आदि विषयों को वे मनुष्य की बौद्धिक सीमा से बाहर का विषय मानते थे। उनकी पत्नी यद्यपि चर्च से बड़ी प्रभावित थीं, डार्विन के अज्ञेयवादी होने के बावजूद भी नैत्यिक कार्यो में उन्होंने सदैव उनका सहयोग किया।
विश्व चिन्तन पर चाल्र्स डार्विन का कितना जबर्दस्त प्रभाव रहा है यह अकेले इस वैज्ञानिक के व्यक्तित्व और कृतित्व से जुड़े निरन्तर तीन तीन शतकीय आयोजनों से इंगित होता है। डार्विन से जुड़े दो शताब्दी समारोहों-1959 में उनकी युगान्तरकारी पुस्तक `द ओरिजिन´ की प्रणयन शताब्दी, पुन: उनके मृत्यु (1882) की पुण्य शती (1992) और अब 2009 में उनके जन्म की द्विशती। यह वह तिहरा शतक है जब इस महान वैज्ञानिक, महामानव की प्रासंंगिकता को लेकर एक बार फिर सारे विश्व में बहस-मुबाहिसों का दौर शुरु हो रहा है।
मन्की ट्रायल यानि कटघरे में विकासवाद!
अमेरिका में इतिहास अपने को दुहरा रहा है। वहाँ के कुछ शहरों में सृजनवादियों ने फिर से बखेड़ा शुरू कर दिया है। उनकी माँग है कि डार्विनवाद के बजाय स्कूलों में सृजनवाद पढ़ाया जाय। अमेरिकी राष्ट्रपति बुश तक भी इन्हीं सृजनवादियों के बहकावें में आकर विकासवाद के साथ ही सृजनवाद को पढ़ाये जाने पर जोर दिया .अभी ओबामा इस मुद्दे पर मुखर नही हुए हैं .
इन घटनाओं ने बीते दिनों (1925) के एक चर्चित मुकदमें की याद दिला दी है जो कानून की किताबों में `मंकी ट्रायल आफ टेनेसी´ के नाम से विख्यात है। अमेरिका के टेनेसी राज्य में एक कानूनी प्रावधान ऐसा भी था जिसके अनुसार बाइबिल के सृजनवाद के दीगर किसी और मत का प्रवर्तन एक अपराध था।
टेनेसी के एक कस्बे `डेटेन´ में जब जान थामस स्कोप्स ने विकासवाद का पाठ बच्चों को पढ़ाना शुरु किया तो मानों बवेला मच गया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। फिर शुरू हुआ वह मुकदमा जो सृजनवाद और विकासवाद को लेकर शुरु हुए घमासान का एक काला अध्याय माना जाता है। स्कोप्स को कानून के उल्लंघन का दोषी माना गया - उन्हें गिरफ्तार किया गया, जुर्माना भी किया गया। हालांकि उच्च न्यायालय में अपील के बाद वे बरी हो गये और उस कानून को भी अब बदल दिया गया है। अमेरिका के अरकंसास प्रान्त में `सृजनवाद´ और विकासवाद को साथ-साथ पढ़ाये जाने का एक विवादास्पद कानून पुन: 1982 में लागू हुआ जब समूचा विश्व डार्विन की पुण्य शती मना रहा था। इसका भी पुरजोर विरोध हुआ तो इसे भी रदद् करना पड़ा।
किन्तु पुन: सृजनवादियों ने डार्विनवाद के खिलाफ कमर कस ली है और वे एक राजनीतिक शक्ति के रुप में उभर रहे हैं।
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
अच्छी जानकारी मिली!!
जवाब देंहटाएंपर अफ़सोस देख नहीं पाउँगा?
``ऐश्वर्य- सम्मान, सुख और समृद्धि सच्चे स्नेह सम्बन्धों के आगे धूल के समान है´´।
जवाब देंहटाएंयह कथन उनको एक महात्मा के तुल्य खडा करता है. टी.वी. पर देखने की जोगाड लगाते हैं. बहुत धन्यवाद आपको.
रामराम.
"टी वी चैनेल की डार्विन पर पहली और बेहतरीन प्रस्तुति सच मे सराहनीय प्रयास और पहल दुःख है ऑफिस होने के कारन देख नही पायेंगे ....."
जवाब देंहटाएंRegards
`ऐश्वर्य- सम्मान, सुख और समृद्धि सच्चे स्नेह सम्बन्धों के आगे धूल के समान है´´
जवाब देंहटाएंदार्शनिक विचार है.
यहाँ भारतीय टीवी के कार्यक्रमों के प्रसारण और भारत में प्रसारित कार्यक्रमों में भिन्नता होती है.इस लिए kal यह कार्यक्रम नहीं देखा जा सका.
फिर भी भारतीय समय के अनुसार आप के बताये गए समय पर टीवी चला कर देखूंगी.
शुक्रिया रोचक जानकारी के लिए जरुर देखेंगे यह प्रोग्राम
जवाब देंहटाएंt.v तो नही देख पायेंगे पर हाँ आपके लेख से बहुत कुछ जानने और समझने को मिल रहा है ।
जवाब देंहटाएंचार्ल्स डार्विन के बारे में पढ कर अच्छा लगा. विज्ञान का इतिहास पढना उतना ही जरूरी है जितना विज्ञान को जानना.
जवाब देंहटाएंसृष्टिवादी लोग अपनी मांग मनवाने में इतने सफल इसलिये हो रहे हैं कि उन में से काफी सारे लोग एडीचोटी के वैज्ञानिक हैं.
सस्नेह -- शास्त्री
जी हाँ मैने भी देखा था.. एन डी टी पर.. फिर नेशनल जोगरॉफ़िक पर भी आ रहा था.. वो भी बढ़िया प्रगरम था.. उसके बाद आज सुबह अख़बार में भी मिल गया.. हर बार सहसा आपकी याद आ गयी..
जवाब देंहटाएंजी हाँ कल मैंने ये प्रोग्राम देखा था .....वाकई एक प्रभाव शाली प्रस्तुति थी
जवाब देंहटाएंप्रोग्राम तो नहीं देख पाये पर आप के यहाँ तो पढ़ ही रहे हैं. ये लीजिये एक लिंक आपके लिए:
जवाब देंहटाएंhttp://www.open.ac.uk/darwin/devolve-me.php
डार्विन हिन्दू होते तो कोई पंगा न होता। वे विकास सिद्धान्त मीमांसा के आचार्य माने जाते। ऋषि तुल्य!
जवाब देंहटाएंमंकी ट्रायल अगर सम्भव हो जाता है, तो शायद इसे ही कहा जाएगा लौटके बुद्धू घर को आए।
जवाब देंहटाएंडार्विन पर हिन्दी में इतनी विस्तृत जानकारी मैंने पहले कभी नहीं पढी।
लगे हाथ बात रवीश भाई की, मेरी समझ से उन्हें अपनी रिपोर्ट में कहीं न कहीं आपका नाम, ब्लॉग शामिल करना चाहिए था। आखिर आधार तो आप ही को बनाया है।
१२ फरवरी १८०९ को जन्में डार्विन ने प्रकृति को करीब से देखा और अपने चिंतन से कुछ ऐसे तथ्य के निष्कर्ष निकाले जो उस समय बाइबल के जेनेसिस के विरुद्ध थे। इसीलिए उन्होंने अपने निष्कर्ष बहुत सावधानी से विज्ञान जगत के सामने रखे। फिर भी, उन्हें समाज से बहुत कुछ झेलना पडा। उनकी द्विशती आज विज्ञान जगत उस वैज्ञानिक के लिए मना रहा है जो अपने ही समय में तिरस्कार और व्यंग्य झेल चुका था।
जवाब देंहटाएंज्ञानदत्त जी से शत-प्रतिशत सहमति. डार्विन को याद करने के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंएक अच्छी जानकार दी आप ने .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
डार्विन का यह पहलू जानकर बडा अचछा लगा ।
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