यह लेख मैंने तीसेक वर्षों पहले लिखा था,जब इलाहाबाद विश्विद्यालय के प्राणिशास्त्र विभाग का शोध छात्र था .काफी पढ़ वढ ,अनेक किताबों की खाक छान कर ,अपने वजीफे की राशि को मुक्त हस्त लुटा किताबों की खरीद फरोख्त कर (जिनमें से कई बिल बिला गईं ,कुछ दोस्तों के हाथ लग गईं .और कुछ साल दर साल हो रहे तबादलों में तुड मुड कर भी मेरी किताबों की आलमारियों को बोझिल कर रही हैं ! ) ,पर यह लेख उस समय कहीं प्रकाशित नही हो सका -धर्मयुग ,कादम्बिनी और यहाँ तक सरिता से भी खेद सहित वापस हो गया ! फिर मैंने कहीं भेजा ही नहीं ! यह फाईलों में सिमटा दुबका पडा रहा बेचारा ! शायद यह लेख क्वचिदन्यतोअपि की ही बाट जोह रहा था ! मुझे आज तक यह समझ में नही आया की यह लेख कहीं क्यों नही छप सका -अब तो यह आपके सामने है आप ख़ुद बताने की कृपा कीजियेगा ! आज भी इसमें कहीं कामा फुलस्टाप तक के सम्पादन की कोई जरूरत मैं नहीं समझ पा रहा और इसके एक एक शब्द से मेरा पूरा इत्तेफाक है ! अब यह समवयी समीक्षा (पीयर रिव्यू ) के लिए पहली बार यहाँ प्रकाशित हो रहा है -शायद तीन कड़ियों में ! महाशिवरात्रि के अवसर पर इसका समापन नियोजित है !
लिंग पूजा की वैज्ञानिकता
लिंगार्चन के दार्शनिक-वैज्ञानिक पक्ष पर एक शोधपरक दृष्टि
भारत में लिंग पूजा का सम्बन्ध भगवान शिव से है। शिवलिंग जिस ``पीठिका´´ पर स्थापित किया जाता है, वह स्त्री ``योनि´´ का प्रतीक होता है। इस प्रकार से ``अर्धनारीश्वर´´ के प्रतीक के रूप में भी लिंगार्चन किया जाता है। सम्पूर्ण भारत, चाहे कश्मीर हो या कन्याकुमारी शिवलिंग समान रूप से पूजित है। पुराणों में, लिंगार्चन के सन्दर्भ में अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड लिखे गये हैं। लिंग की स्थापना और उसके महात्म्य से भारत का पूरा धार्मिक इतिहास भरा पड़ा है। प्राय: सभी प्रमुख पुराणों एवं महाकाव्यों में शिवोपासना के सन्दर्भ में लिंगार्चन का विशद विवरण मिलता है। यहाँ शिवोपासना और लिंग के सन्दर्भ में सभी कथाओं का वर्णन सम्भव नहीं हैं। एक कथा के अनुसार शिव को महिर्ष भृगु द्वारा श्राप ग्रस्त किये जाने के कारण लिंगार्चन प्रारम्भ हुआ। इस प्रकार विभिन्न स्थलों पर विभिन्न लिंगों के पूजा के सन्दर्भ में अनेक प्रकार की जनश्रुतियों एवं पौराणिक आख्यायिकायें प्रचलित हैं।
वास्तव में, शिवलिंग अपने में एक महान व्यापकता समेटे हुए है-
यथा-
सर्वेषां शिवलिंगानां मुने संख्या न विद्यते
सर्वां लिंगमयी भूमि: सर्वं लिंगमयं जगत।
(शिव पुराण, रूद्र संहिता, श्लोक 9)
विश्व के अन्य देशों में भी लिंगोपासना की पौराणिकता/ऐतिहासिकता के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। पश्चिम में इसका एक रूप ``फैलिज़्म´´ या ``फैलिसिज़्म´´ के नाम से प्रचलित है। प्राचीन यूनान में लिंग पूजा विधिवत सम्पन्न की जाती थी। प्राचीन रोम में ऐसे उत्सवों का उल्लेख है जिनमें सामूहिक रूप से स्त्रियों द्वारा चौराहों पर एक दीर्घकाय लिंग की पूजा अर्चना की जाती थी। चीन (हांगकांग) में, लिंग रूपी प्रस्तर खण्डों का पूजन स्त्रियाँ सन्तानोत्पत्ति के लिए और वैश्यायें अपने धंधे की सफलता के लिए करती रही है। विश्व के अन्य भूमध्यवर्ती देशों में लिंग देवता (प्रियापस) का पूजन सन्तानोत्पत्ति की आकांक्षा से होता आया है। ईसाई धर्म में, कहीं-कहीं सापों को लिंग का प्रतीक मान लिया गया है। प्राचीन मिस्र के चित्रों में सांपों के राजा ``अम्मन´´ के लिंग को विशिष्टता के साथ उभार कर दिखाया गया है।
हज़रत ईसा के जन्मकाल के पहले से ही लिंग पूजा के `तन्त्रवाद´´ से भी संयुक्त हो जाने के समुचित प्रमाण मिलते हैं। अधिकाशं मिन्दरों के भित्ति चित्र तन्त्रवाद से अनुप्राणित होने के नाते विशेष रूप से लिंग विषयक हो गये हैं। दक्षिण भारत और नेपाल के मिन्दरों की शिल्पकलायें और भित्ति चित्र इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय हैं। तन्त्रपूजा में भैरवी चक्र के अन्तर्गत, ``देवचक्र´ में लिंगोपासना का विधान है। भारत में, लिंगपूजा और उसके तन्त्रवाद से संयुक्त होने की प्राचीनता के यथोचित ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं वस्तुत: सिन्धु घाटी की सभ्यता से लेकर आज तक लिंग पूजा के सम्यक ऐतिहासिक प्रमाण विभिन्न संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। प्रयाग के संग्रहालय में गुप्तकालीन एकमुखी शिवलिंग व चतुर्मुखी शिवलिंग विशेष रूप से दर्शनीय हैं।
जारी .....
.लिंगपूजा :उदगम और उत्स (वैज्ञानिक विवेचन -२)
लिंग पूजा की वैज्ञानिकता
लिंगार्चन के दार्शनिक-वैज्ञानिक पक्ष पर एक शोधपरक दृष्टि
भारत में लिंग पूजा का सम्बन्ध भगवान शिव से है। शिवलिंग जिस ``पीठिका´´ पर स्थापित किया जाता है, वह स्त्री ``योनि´´ का प्रतीक होता है। इस प्रकार से ``अर्धनारीश्वर´´ के प्रतीक के रूप में भी लिंगार्चन किया जाता है। सम्पूर्ण भारत, चाहे कश्मीर हो या कन्याकुमारी शिवलिंग समान रूप से पूजित है। पुराणों में, लिंगार्चन के सन्दर्भ में अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड लिखे गये हैं। लिंग की स्थापना और उसके महात्म्य से भारत का पूरा धार्मिक इतिहास भरा पड़ा है। प्राय: सभी प्रमुख पुराणों एवं महाकाव्यों में शिवोपासना के सन्दर्भ में लिंगार्चन का विशद विवरण मिलता है। यहाँ शिवोपासना और लिंग के सन्दर्भ में सभी कथाओं का वर्णन सम्भव नहीं हैं। एक कथा के अनुसार शिव को महिर्ष भृगु द्वारा श्राप ग्रस्त किये जाने के कारण लिंगार्चन प्रारम्भ हुआ। इस प्रकार विभिन्न स्थलों पर विभिन्न लिंगों के पूजा के सन्दर्भ में अनेक प्रकार की जनश्रुतियों एवं पौराणिक आख्यायिकायें प्रचलित हैं।
वास्तव में, शिवलिंग अपने में एक महान व्यापकता समेटे हुए है-
यथा-
सर्वेषां शिवलिंगानां मुने संख्या न विद्यते
सर्वां लिंगमयी भूमि: सर्वं लिंगमयं जगत।
(शिव पुराण, रूद्र संहिता, श्लोक 9)
विश्व के अन्य देशों में भी लिंगोपासना की पौराणिकता/ऐतिहासिकता के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। पश्चिम में इसका एक रूप ``फैलिज़्म´´ या ``फैलिसिज़्म´´ के नाम से प्रचलित है। प्राचीन यूनान में लिंग पूजा विधिवत सम्पन्न की जाती थी। प्राचीन रोम में ऐसे उत्सवों का उल्लेख है जिनमें सामूहिक रूप से स्त्रियों द्वारा चौराहों पर एक दीर्घकाय लिंग की पूजा अर्चना की जाती थी। चीन (हांगकांग) में, लिंग रूपी प्रस्तर खण्डों का पूजन स्त्रियाँ सन्तानोत्पत्ति के लिए और वैश्यायें अपने धंधे की सफलता के लिए करती रही है। विश्व के अन्य भूमध्यवर्ती देशों में लिंग देवता (प्रियापस) का पूजन सन्तानोत्पत्ति की आकांक्षा से होता आया है। ईसाई धर्म में, कहीं-कहीं सापों को लिंग का प्रतीक मान लिया गया है। प्राचीन मिस्र के चित्रों में सांपों के राजा ``अम्मन´´ के लिंग को विशिष्टता के साथ उभार कर दिखाया गया है।
हज़रत ईसा के जन्मकाल के पहले से ही लिंग पूजा के `तन्त्रवाद´´ से भी संयुक्त हो जाने के समुचित प्रमाण मिलते हैं। अधिकाशं मिन्दरों के भित्ति चित्र तन्त्रवाद से अनुप्राणित होने के नाते विशेष रूप से लिंग विषयक हो गये हैं। दक्षिण भारत और नेपाल के मिन्दरों की शिल्पकलायें और भित्ति चित्र इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय हैं। तन्त्रपूजा में भैरवी चक्र के अन्तर्गत, ``देवचक्र´ में लिंगोपासना का विधान है। भारत में, लिंगपूजा और उसके तन्त्रवाद से संयुक्त होने की प्राचीनता के यथोचित ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं वस्तुत: सिन्धु घाटी की सभ्यता से लेकर आज तक लिंग पूजा के सम्यक ऐतिहासिक प्रमाण विभिन्न संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। प्रयाग के संग्रहालय में गुप्तकालीन एकमुखी शिवलिंग व चतुर्मुखी शिवलिंग विशेष रूप से दर्शनीय हैं।
जारी .....
.लिंगपूजा :उदगम और उत्स (वैज्ञानिक विवेचन -२)
Aakhirkaar to chhapaa, apne hi blog par sahi. aur kya khub chhapaa.
जवाब देंहटाएंshrveshanaam shivlinganaam .....
जवाब देंहटाएंyeh shashvt satya hai mishra ji . lekin yeh ghambheer vishay hai. ise sajhane ke liye shiv men ramanaa jaroori hai. blog par sambhavtah is lekh ki vishad vyakhyaa aur samiksa sambhav nahee hai.
halanki lekh ka pratham bhag achha laga par pura padhanae ke bad hi puri prtikriya dena uchit hoga.
जानकारीपूर्ण आलेख. लिंग पूजा के बारे में विविध तरह की जानकारी देने के लिए . आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख है । मुझे लगता है कि उन पत्रिकाओ के सम्पादक बहुत ही ज्यादा ज्ञानी थे । इस लिये उनकी समझ मे नही आया होगा । अच्छा हि हुआ वैसे पत्रिकायें तो एक बार पढ़ने के बाद रद्दी मे चली जाती है । लेकिन ब्लोग मे लिखा हुआ तो हमेशा के लिये पाठको के लिये उपलब्ध रहेगा ।
जवाब देंहटाएं'लिंग पूजा' संभवतः समग्र विश्व में प्राकैतिहाषिक नारी प्रधान समाज पर पुरूष के वर्चस्व से अस्तित्व में आई. किसी-न-किसी रूप में यह सारे विश्व में प्रचलित है.
जवाब देंहटाएंलिंग पूजा में एतिहासिकता है, पर उसका रेशनालिटी से कुछ लेना देना है क्या? शायद नेचर की फर्टिलिटी और फर्टिलाइज करने की क्षमता की पूजा हो यह।
जवाब देंहटाएंआपने बडी खोज परक जानकारी दी है कि सभी धर्मों मे यह लिंग पूजा का विधान है. इस श्रंखला को पढना बडा रोचक रहेगा. अगले भाग का इन्तजार है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शायद पहले से आप की नजर में आ चुका हो, पर फिर भी याद दिला दूं कि फेलिसिस्म पर हेस्टिंग्स एनसाईक्लोपीडिया आफ रिलिजन एन्ड एथिक्स में एक वृहद आलेख है जिसे मैं ने 1970 में पहली बार पढा था, और चकित रह गया था. अब आप के आलेख आ जायेंगे तो 1970 में आरंभ किये गये अध्ययन के शीर्ष पर पहुंचने का मौका मिलेगा.
जवाब देंहटाएंअगली कडी का बडी उत्सुकता से इंतजार है.
सस्नेह -- शास्त्री
भारतीय दर्शन की यही शक्ति है जो सहजता से सँसार के हर प्राकृतिक या अलौकिक नियम को रोज के जीवन से जोडने मेँ सक्षम है
जवाब देंहटाएं- लावण्या
जवाब देंहटाएंयह लेखमाला पूरी होने की प्रतीक्षा में..
बहुत ही सुंदर जानकारी, आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख है....अगली कडी का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक पोस्ट्।महाराज एक प्रश्न मन मे है,आंध्र प्रदेश स्थित ज्योतिर्लिंग श्रीशैल्मल्लिकार्जुन की पीठिका चौकोण है,जबकी यह अमूमन गोल ही होती है।मैने तब वंहा के पण्डित से पूछा था तो उसने जवाब नही दिया था।यदी इस पर प्रकाश डाल देते तो ज्ञान थोडा और बढ जाता और जिज्ञासा भी शांत हो जाती।
जवाब देंहटाएंयह अंतरजाल की महिमा है की ज्ञान लेने और देने के लिए मध्यस्थ की आवश्यकता नहीं पड़ती .अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा
जवाब देंहटाएंइस महत्वपूर्ण प्रविष्टि के लिये धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंमेरी जानकारी में लिंग पूजा के बहुत पहले ही योनि पूजा प्रारंभ हो गई थी और उस के प्रमाण उन सभी स्थानों पर देखे गए हैं जहाँ जहाँ मनुष्य बसता था।
जवाब देंहटाएंहां दुनिया के सबसे प्राचीन स्थलों पर योनी पूजा के अवशेष पाए जाते हैं लिंग पूजा के नहीं
हटाएं@अगली कड़ियों को देख लें तब किसी निष्कर्ष पर पहुंचना ठीक होगा !
जवाब देंहटाएंरोचक लगा यह जानना अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा
जवाब देंहटाएंअगली कड़ियों का इंतज़ार रहेगा. असली टिपण्णी तो पुरी श्रृंखला पढ़कर ही.
जवाब देंहटाएंइस विषय में जानकारी होना आवश्यक है क्योंकि शिव भक्ति तो हममें से बहुत करते हैं परन्तु इस विषय पर जानकारी अधिक नहीं होती।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
प्रत्येक देवता का एक विशिष्ट उपासना शास्त्र है। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक देवता की उपासना में प्रत्येक कृति को विशिष्ट प्रकारसे करने के पीछे कोई विज्ञानसम्मत कारण है. अवश्य ही लिंगापूजा में भी कोई वैज्ञानिक कारण समाहित होगा.
जवाब देंहटाएंsubah to maine tippani ki thi.. abhi yaha nahi dikh rahi.. khair dobara kah dete hai..
जवाब देंहटाएंaapne bilkul thik kaha..shivling ki jaleri ko yoni swaroop kaha jata hai.. ise srishti ki utpati ka prateek bhi kaha jata hai..
pratham drishtya lekh bahut chhota laga.. parantu jaankar khushi hui ki aage aur bhi hai..
is vishay mein aur janna kaafi rochak rahega...
aapko badhai is vishay par likhne ke liye..
ऐसा सुना है ,शिव के 'अर्ध नारी' रूप को शिवलिंग में देखा जाता है.
जवाब देंहटाएंआज आप के इस लेख को पढ़ कर कई नई बातें भी पता चलीं..आगे की कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
मेरी समझ में , आज अगर आप इस लेख को किसी बड़ी पत्रिका में भेजेंगे तो यह जरुर स्वीकारी जायेगी.
३० साल में नज़रिए बदल गए हैं.और आज यह विषय पाठकों में हलचल और आलोचनाएँ भी ला सकता है.
किसी टीवी में अगर इस लेख की विषय वस्तु देंगे तो यह यकीनन उन के लिए TRP generate करने का बहुत रोचक विषय होगा.इस तरह के शोधपूर्ण,ज्ञानवर्धक ,तर्क सम्मत लेखों की आज की तारीख में मांग है..ऐसा मेरा मानना है.आप ने राय मांगी इस लिए मैं ने यह सुझाव दिया है.
[एक बार नेट पर आप के लेख की पूरी सामग्री आ जाने पर ,आप इस के copyrights के लिए कहाँ तक लडेंगे.]
अल्पना जी ! प्रोत्साहन के लिए आभार ! पर आगे जो कड़ी आने वाली है उसे लेकर बावेला मचना तय है -मगर मैं मनसा वाचा कर्मणा इमानदार प्रयास क्र रहा हूँ -आगे बाबा भोले नाथ ही जाने !
जवाब देंहटाएंहाँ कापीराईट का मामला तो है मगर यह तीस साल से घुटन भरे माहौल में था -मेरी सहनशक्ति भी चुक रही थी -जानकारी को बाँटने का जो अनिर्वचनीय सुख है उसके आगे कापीराईट आदि तुच्छ हैं !
लिख तो आप बेशक़ बढिया रहे हैं और अभी तक की आपकी सूचनाएं भी विभिन्न स्रोतों से प्रमाणित हैं. पर इस पर अपना कोई स्पष्ट दृष्टिकोण मैं पूरी शृंखला पढने के बाद ही बनाउंगा.
जवाब देंहटाएंअछा लगा पढ़कर !
जवाब देंहटाएंजय हो भोलेनाथ की
जवाब देंहटाएंबवाल हो तो बवाल होने दें
हल मगर सब सवाल होनें दें
हो न पाया जो तीस सालों तक
उसे बाक़ायदा इस् साल होने दें
अगली कड़ियों में जान आयेगी
अब तो दादा धमाल होने दें
कोई लेता हजार ले मतलब
कोई होता हो लाल होने दें
हम तो दुनिया को ग्यान बांटेंगें
अब तो बालों में खाल होने दें
--योगेन्द्र मौदगिल
@अरे वाह मौदगिल जी कितनी प्यारी कविता लिखी आपने ! बहुत संबल मिला है इससे -आभार !
जवाब देंहटाएंप्रकृति-पुरूष का मेल ही,
जवाब देंहटाएं'सलिल' सनातन सत्य.
शिवा और शिव पूजकर,
हमने तजा असत्य.
योनि-लिंग हैं सृजन के,
माध्यम सबको ज्ञात.
आत्म और परमात्म का,
नाता क्यों अज्ञात?
गूढ़ सहज ही व्यक्त हो,
शिष्ट सुलभ शालीन.
शिव पूजन निर्मल करे,
चित्त- न रहे मलीन.
नर-नारी, बालक-युवा,
वृद्ध पूजते साथ.
सृष्टि मूल को नवाते,
'सलिल' सभी मिल माथ.
तथ्य किया इंगित, नहीं
इसमें तनिक प्रमाद.
साधुवाद है आपको,
लेख रहेगा याद.
-आचार्य संजीव 'सलिल'
sanjivsalil.blogspot.com
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divyanarmada.blogspot.com
प्रकृति-पुरूष का मेल ही,
जवाब देंहटाएं'सलिल' सनातन सत्य.
शिवा और शिव पूजकर,
हमने तजा असत्य.
योनि-लिंग हैं सृजन के,
माध्यम सबको ज्ञात.
आत्म और परमात्म का,
नाता क्यों अज्ञात?
गूढ़ सहज ही व्यक्त हो,
शिष्ट सुलभ शालीन.
शिव पूजन निर्मल करे,
चित्त- न रहे मलीन.
नर-नारी, बालक-युवा,
वृद्ध पूजते साथ.
सृष्टि मूल को नवाते,
'सलिल' सभी मिल माथ.
तथ्य किया इंगित, नहीं
इसमें तनिक प्रमाद.
साधुवाद है आपको,
लेख रहेगा याद.
-आचार्य संजीव 'सलिल'
प्रकृति-पुरूष का मेल ही,
जवाब देंहटाएं'सलिल' सनातन सत्य.
शिवा और शिव पूजकर,
हमने तजा असत्य.
योनि-लिंग हैं सृजन के,
माध्यम सबको ज्ञात.
आत्म और परमात्म का,
नाता क्यों अज्ञात?
गूढ़ सहज ही व्यक्त हो,
शिष्ट सुलभ शालीन.
शिव पूजन निर्मल करे,
चित्त- न रहे मलीन.
नर-नारी, बालक-युवा,
वृद्ध पूजते साथ.
सृष्टि मूल को नवाते,
'सलिल' सभी मिल माथ.
तथ्य किया इंगित, नहीं
इसमें तनिक प्रमाद.
साधुवाद है आपको,
लेख रहेगा याद.
-आचार्य संजीव 'सलिल'
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दोस्तों आदि से चर्चा के समय अक्सर इस मुददे पर बात होती रही है, जिसमें मैं कभी सटिस्फाई नहीं हो पाया। आशा है इस श्रंख्ला में समस्त जिज्ञासाओं का शमन होगा।
जवाब देंहटाएं