शनिवार, 8 अगस्त 2009

चर्चा एक शब्द साधक की ....

जी हाँ बिल्कुल सही समझे आप! आज चिट्ठाकार चर्चा के अतिथि हैं शब्दान्वेषी ,शब्द साधक अजित वडनेरकर जी जिन्हें हिन्दी ब्लॉग जगत का बच्चा बूढा आख़िर कौन नही जानता ? अजित जी का शब्दानुराग अप्रतिम है -वे अपना खुद का शब्द भंडार तो उत्तरोत्तर बढ़ा ही रहे हैं ,हिन्दी ब्लाग जगत को भी अपने अवदान से निरंतर समृद्ध कर रहे हैं -मुझे याद आता है कि मैंने हिन्दी ब्लॉग जगत में इसी ब्लॉग के बुकमार्क करने से इस सुविधा का श्रीगणेश किया था ! अजित जी कई चिट्ठों पर साझा लेखन करते हैं मगर शब्दों का सफर उनका नितांत अपना है -शब्दों की दुनिया के प्रति उनका समर्पण और हठयोग ही कुछ ऐसा है कि कोई उनके साथ होने का साहस भी शायद कर सके ! इतनी प्रतिबद्धता ,इतना समर्पण किसके बूते की बात है ?

अपने ब्लागजगत में सुवरण प्रेमी और भी हैं -मगर उनमें शब्द कौतुक का ही भाव प्राबल्य है । जबकि अजित जी जैसे शब्द शुचिता प्रेमी नित नए शब्दों के उदगम और व्युत्पत्ति की व्याख्या में ही लगे रहते हैं ,उन्हें निश्चित ही सायास की जाने वाली शब्द विकृतियों से चिढ होगी ! हाँ ,अज्ञेय जी की परम्परा को बुलंद किए ज्ञानदत्त जी जैसे शब्द शिल्पी होने की चाह उन्हें भले ही हो ! हिन्दी के शब्दों का कुछ ज्ञानी होने का मेरा प्रमाद शब्दों का सफर पर जा जा कर धूल धूसरित होता रहता है और मैं विस्फारित नेत्रों से शब्द व्युत्पत्तियों को देखता रहता हूँ, हतप्रभ होता हूँ और कभी कभी अतिशय उमंग उत्साह से कुछ टिट्टिभ प्रयास /योगदान करता हूँ जिसे अजित जी बड़े ही उछाह से स्वीकार करते हैं -मेरा मनोबल बढ़ा देते हैं ! अब जैसे एक दिन की शब्द चर्चा में उन्होंने डासना शब्द पर प्रकाश डाला तो मुझे बाबा तुलसी की ये पंक्ति याद हो आयी -डासत ही गयी बीत निशा ,कबहूँ नाथ नीद भरि सोयो -मैंने उनसे तुरत फुरत अनुरोध किया किया कि अवधी में डासना का एक अर्थ बिस्तर बिछाना भी होता है तो उन्होंने उल्लसित ,प्रमुदित मन से उसे स्वीकार ही नही किया मुझे प्रोत्साहित भी किया !

मगर अग्रेतर यह भी कह दूँ कि उनकी यह शब्द -एकनिष्ठता ,निरपेक्ष साधना कभी कभी संभवतः ईर्ष्या जनित चिढ भी उत्पन करती है -खास तौर पर उन अवसरों पर जब देश दुनिया में कुछ और चल रहा हो और यह शब्द योगी बेपरवाह अपनी दुनिया मे ही मग्न हो ! मुझे शिद्दत के साथ याद आता है 26/11 हादसे पर भी भाई जान शब्द साधना में ही रत रहे -मैं क्या पूरा हिन्दी ब्लागजगत ही मर्माहत था -नैराश्य जनित आक्रोश से क्षुब्ध था मगर अजित जी अपने शब्द प्रेम मे ही रमे थे .मुझे आघात सा लगा और मैंने कोई बेतुकी टिप्पणी कर दी शब्दों का सफर पर -वही कुछ जलते रोम में नीरो का बांसुरी वादन टाईप ! मगर अजित जी मेरी मनोभावना को तत्क्षण न समझ कर मेरी खीज को बढाते हुए उल्टे मेरे ऊपर ही फायर हो गए -तब मैंने जाना कि यह महारथी केवल एक शब्द बौद्ध /युद्धिष्टिर/भीष्म ही नहीं बल्कि आत्मरक्षार्थ सदैव तत्पर गांडीव धारी भी है -यह शब्दं शरणम् गच्छामि के साथ ही गाण्डीवं धारणाम -इदं शास्त्रं इदं शस्त्रं का अनुयाई भी है .बहरहाल हममें तब जो मल्ल शब्द युद्ध हुआ उसे सोचकर आज भी सिहरन आ जाती है -मगर समय जैसा कि सबसे बड़ा मरहम होता है हम धीरे धीरे सहज हो गए -आपसी गिले शिकवे दूर हुए -माफी साफी का विनिमय हुआ ! पास होते तो कुछ और भी हुआ ही होता !

आज हम परस्पर गहरी समझ वाले मित्र हैं -लगता है गाढी मित्रता में एकबार की गहरी उठापठक की भी भूमिका है /होनी चाहिए ! एक दो लोगों -लुगायियों से मेरी चल भी रही है इन दिनों और कुछ लोग छेड़ने पर भी छिटक ले रहे हैं ,बहरहाल आप शब्दों का सफर पर आज की पोस्ट सुर में सुरंग और धमाका पढ़ें और इस विरले शब्द साधक को शुभकामनाये दें !


25 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दान्वेषी ,शब्द साधक अजित वडनेरकर जी जिन्हें हिन्दी ब्लॉग जगत का बच्चा बूढा आख़िर कौन नही जानता ? अजित जी का शब्दानुराग अप्रतिम है -वे अपना खुद का शब्द भंडार तो उत्तरोत्तर बढ़ा ही रहे हैं ,हिन्दी ब्लाग जगत को भी अपने अवदान से निरंतर समृद्ध कर रहे हैं -मुझे याद आता है कि मैंने हिन्दी ब्लॉग जगत में इसी ब्लॉग के बुकमार्क करने से इस सुविधा का श्रीगणेश किया था ! अजित जी कई चिट्ठों पर साझा लेखन करते हैं मगर शब्दों का सफर उनका नितांत अपना है -शब्दों की दुनिया के प्रति उनका समर्पण और हठयोग ही कुछ ऐसा है कि कोई उनके साथ होने का साहस भी शायद कर सके ! इतनी प्रतिबद्धता ,इतना समर्पण किसके बूते की बात है ?

    मैं शब्दो के सफर का नियमित पाठक हूँ।
    अजित वडनेकर जी को बधाई।
    आपको धन्यवाद।

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  2. बड़े भैया,

    भाऊ के उपर लिख कर आप ने मेरे एक जन्मते पोस्ट की हत्या कर दी। मेरे शब्द आप के पास कैसे पहुँचे?

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  3. अजितजी की तो बात ही कुछ और है !

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  4. आज अजीतजी का जन्मदिन है। जन्मदिन की बधाई॥

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  5. क्षमा करें, अजितजी का नहीं अनिलजी का जन्मदिन है। अजितजी शब्दों के खिलाड़ी तो हैं और उनकी जानकारी से हमे लाभ भी मिलता रहता है॥

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  6. aapse poorntah sahamat...........
    ajit ji kamaal ki shabd sadhnaa kar rahe hain
    unke deergh jeevan va swaasthya k liye haardik shubhkaamnaayen

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  7. वाकई उसी एनेर्जी से ....लेखन ..बड़ा असाध्य काम है .अजित जी बधाई के पात्र है

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  8. अजित जी, वास्तव भी धीर-गंभीर साधक हैं। उन्हों ने अपने लक्ष्य चुन रखे हैं। उन के इर्द-गिर्द ही वे चलते हैं।

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  9. Shabd saadhak AJIT ji se koi aparichit hoga.....aisaa lagta nahi.... saadhna karne vaale ka tej jaise uske chahre se pragat hotaa hai.. vaise ho unke blog ki nooraani poore blog jagat mein chaai huyee hai...

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  10. @@cmpershad
    क्या सच ? यह तो अद्भुत संयोग है -मेरी यह बर्थ दे गिफ्ट उन्हें और ढेर सारी बधाईयाँ !

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  11. अजित जी के बारे में इतने विस्तार से आज ही जाना. धन्यवाद.
    उन्हें जन्मदिन की बधाई भी.

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  12. अरविंदजी की जैजैकार है...
    आपके स्नेहिल शब्दों के लिए आभारी हूं। इससे पहले शब्दों के सफर सफर में नियमित सहयात्री बनने के लिए था।

    मुंबई धमाकों के संदर्भ में आपकी टिप्पणी से उपजी स्थिति को तो 48 घंटों के भीतर ही हमने संभाल लिया था:)जिस क्षण आपकी भावभूमि पर खड़े होकर चीज़ों पर गौर किया, सब कुछ साफ हो गया था। बाकी जो कुछ भी असंतुलन था, वो तो मन का था, तात्कालिक था, परिस्थितिजन्य था। एक बेहतरीन याद के तौर पर मैं उसे याद रखना चाहूंगा।

    आज हम परस्पर गहरी समझ वाले मित्र हैं -लगता है गाढी मित्रता में एकबार की गहरी उठापठक की भी भूमिका है /होनी चाहिए !

    उपरोक्त रहस्यवादी पंक्तियों का निहितार्थ स्पष्ट नहीं हुआ :)

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  13. @ लगता है गाढी मित्रता में एकबार की गहरी उठापठक की भी भूमिका है /होनी चाहिए !
    कोई रहस्य नहीं है हम आज घनिष्ठ मित्र है तो उसमें पता नहीं उस मल्ल शब्द युद्ध का भी योगदान न हो -हा हा
    और जो आपको रहस्य लग रहा है वह किसी और के लिए भी है !

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  14. वडनेरकर जी को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं. उनकी बात ही निराली है. बहुत शुभकामनाएं उनको.

    रामराम.

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  15. अजित भाई की शब्दों पर खोज और नित नवीन सामग्री प्रस्तुत करना एक सुखद आश्चर्य के साथ संतोष भी देता रहा है
    ' बकलमखुद ' उनका दिया एक बेहतरीन व्यक्ति परिचय भी यादगार है - आपने अच्छा प्रकाश डाला - शुभकामनाएं आप दोनों को
    - लावण्या

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  16. आज चिट्ठाकार चर्चा के अतिथि हैं शब्दान्वेषी ,शब्द साधक अजित वडनेरकर जी जिन्हें हिन्दी ब्लॉग जगत का बच्चा बूढा आख़िर कौन नही जानता ? अजित जी का शब्दानुराग अप्रतिम है -वे अपना खुद का शब्द भंडार तो उत्तरोत्तर बढ़ा ही रहे हैं ,हिन्दी ब्लाग जगत को भी अपने अवदान से निरंतर समृद्ध कर रहे हैं -

    अजित जी बहुत -बहुत बधाई .....!!

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  17. अजित भाई की यह एकाग्रता और 26/11 जैसी घटनाओं के प्रति निस्पृहता क्या यह याद नहीं दिलाती है, कि

    सघ्नीचीनान वः सँमनस्कृणोम्येकश्नुष्टीन्त्सँवननेन सर्वान ।
    देवा इवामृतँ रक्षमाणाः साँयप्रातः सौमनसो वो अस्तु ॥

    साथ रहो, समान विचार वाले बन सकोगे
    विद्वानगण उस अमृत तत्वों की रक्षा कर सौमनस्य प्रदान करें ।
    तो.. आप तो खरे उतर गये
    अब उस घटना को दोहराना ही क्यों ?

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  18. @मित्रों ,अजित जी का जन्मदिन १० जनवरी है ,सी एम् प्रसाद जी से कहीं कोई चूक हो गयी !

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  19. अजित जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा! जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें!

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  20. लीजिए भाई अजीत जी को मेरी ओर से भी बधाई. और उन पर लिखने के लिए आपको साधुवाद!

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  21. हिन्दी भाषा को समझने-समझाने और समृद्ध करने में अजित वडनेरकर जी का योगदान आगे की पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य निधि के रूप में संचित हो रहा है। हम भी शुरुआत से ही इनके घनघोर प्रशंसक हैं।

    आपने उनके बारे में यह सार्थक चर्चा करके उनके परिश्रम और समर्पण को जो आदर और सम्मान दिया है उसके लिए आपको धन्यवाद।

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  22. शब्द की व्युत्पत्तियों को उघारते, क्षण-क्षण निर्विघ्न रमे रहकर कार्य-पूर्णता की साधना मैंने ’शब्दों के सफर’ के अलावा कहीं देखी हो- स्मरण नहीं ।
    आपने टिप्पणी दी होगी- तो गलत क्या था ? औचित्य तो खंडित हो ही रहा था । साम्यावस्था में गति तो नहीं होती । पर हाँ, गति की दिशा एक गुण के प्राबल्य से निश्चित होती है - और वह गुण अजित जी और उनकी चिट्ठाकारी में है ।

    चिट्ठाकार चर्चा में इस शब्द साधक की चर्चा की आपकी उत्फुल्लता देखते ही बनती है आपकी इस प्रविष्टि में । सब कुछ कितना ओजस्वी-रसपूर्ण-मनोविनोदी । मैं उत्साहित हूँ ऐसी प्रविष्टियों से बहुत ही । आभार ।

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