नहीं चाहिए मुझे
अधूरा, खंडित और विकलांग प्यार
देह और मन का द्वंद्व भी
नहीं आएगा रास मुझे
मैं प्यार को उसकी समग्रता में
हासिल करने का मुन्तजिर हूँ
अनमने विखंडित मन का प्यार
नहीं रास आता मुझे
दे सको तो दो अपना निर्बाध प्रेम
नहीं तो ,विवशता और बन्धनों से
ग्रसित यह तुम्हारा प्यार
नहीं चाहिए मुझे
अधूरा, खंडित और विकलांग प्यार
देह और मन का द्वंद्व भी
नहीं आएगा रास मुझे
मैं प्यार को उसकी समग्रता में
हासिल करने का मुन्तजिर हूँ
अनमने विखंडित मन का प्यार
नहीं रास आता मुझे
दे सको तो दो अपना निर्बाध प्रेम
नहीं तो ,विवशता और बन्धनों से
ग्रसित यह तुम्हारा प्यार
नहीं चाहिए मुझे
मेरे उस मित्र की याद है न आपको ,आज यह उनकी दूसरी कविता मेल में आयी है -बिल्कुल दुरुस्त लगती है ,इसमें क्या शुद्ध परिशुद्ध करना ! क्या कहते हैं आप ?
बिलकुल सही. कविता के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंbhaav aacchey lage....
जवाब देंहटाएंयह कविता एकदम से सही है या नहीं ये तो मुझे नहीं पता पर कविता का भावार्थ विल्कुल सही है .
जवाब देंहटाएंवैसे ये है कौन आपके मित्र ?
सुन्दर कविता !
जवाब देंहटाएंकविता तो भाव है, शब्द तो भावों के वाहक मात्र हैं !
दे सको तो दो अपना निर्बाध प्रेम
जवाब देंहटाएंनहीं तो ,विवशता और बन्धनों से
ग्रसित यह तुम्हारा प्यार
नहीं चाहिए मुझे
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
वाकई बहुत सुंदर रचना ..शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
भावपूर्ण !!!!!!! यही कहेगे जी
जवाब देंहटाएंSundar bhaav.
जवाब देंहटाएं{ Treasurer-S, T }
दे सको तो दो अपना निर्बाध प्रेम
जवाब देंहटाएंनहीं तो ,विवशता और बन्धनों से
ग्रसित यह तुम्हारा प्यार
नहीं चाहिए मुझे
सीधी सच्ची प्यारी सी बात ..कह दी है इस रचना में ..बहुत पसंद आई शुक्रिया इसको पढ़वाने का
बहुत ही गहरी बात है इस रचना में............ जिसको समग्र की चाह हो वो खंडित प्यार में विश्वास नहीं करता.......... ये रचना भी अपने आप में समग्र है ..........
जवाब देंहटाएंमुझे पूरा याद है। पहले आप स्पष्ट करें कि आप 'उन्हें' हमेशा सर्वनाम के साथ क्यों सन्दर्भित करते हैं? कहीं उनका नाम ही 'वह' या 'उस' तो नहीं है? एक और शंका मुझे 'आराम' नहीं करने दे रही है।
जवाब देंहटाएंकहीं आप ही छद्म रूप से तो कविताई न कर रहे हों? गम्भीर मसला है। हल करें मतलब उनका नाम बताएँ।
रही बात कविता की तो बड़ी उतावली टाइप की कविता है - चाहा न होने पर झाड़ कर चल देने वाली। ऐसे तो प्यार मिलने से रहा!
कविता बिलकुल दुरुस्त है।
जवाब देंहटाएंभाव प्रवण कविता लगी ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंकविता को ‘दिमाग’ लगाकर पढ़ने से मजा नहीं आता मुझे, इसीलिए ‘दिल लगाकर’ पढ़ने का यत्न करता हूँ। उस हिसाब से इस कविता में ठीक बात ही कही गयी है। माफ़ कीजिएगा, अब आपकी/आपके उस मित्र में हमारी रुचि बढ़ने लगी है। :)
जवाब देंहटाएंविचार आवेग से भरा हुआ है। अगर यह सच्चे प्रेम की पुकार है तो यह सुंदर है।
जवाब देंहटाएंवैसे उर्दू शब्द का एक घुसपैठ असामान्य लगा:)
वाह-वाह-वाह....बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंप्रेम का तिरस्कार !
जवाब देंहटाएंहाँ वो मित्र आपका बखूबी याद है, लिंक पे जाने की जरूरत नहीं पड़ी...सोचता हूँ कि इन कविताओं पर मित्र के मित्र कैसे मचलते होंगे...
जवाब देंहटाएंन दिल लगाकर पढ़ते हैं और न दिमाग लगाकर. हम तो कविता को चश्मा लगाकर पढ़ते हैं. अब आप इतनी जिद करके पूछ रहे हैं तो हम ईमानदारी से बताते हैं कि दावे से कह सकते हैं कि इन पंक्तियों में कविता का मसाला (Raw material) ज़रूर मौजूद है. अलबत्ता मसाले से पूरी कब तक बन पायेगी, यह तो कोई ज्योतिषी ही ठीक से बता पायेगा.
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं!
सही जी, प्रेम में भी क्या फाइन प्रिण्ट, क्या शर्तें?
जवाब देंहटाएंAtisundar bhavabhivyakti...badhai.
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें. "शब्द सृजन की ओर" पर इस बार-"समग्र रूप में देखें स्वाधीनता को"