ब्लागजगत की मेरी एक मित्र को अपने लैपटाप से इतना मोह बल्कि व्यामोह सा है की वे उससे पल भर को अलग नही होना चाहतीं -उनका कहना है कि उनका लैपटाप उनके वजूद का ही एक विस्तार बन गया है ! मैंने उनको कहा कि वे विज्ञान फंतासी के साईबोर्ग अवधारणा की एक जीती जागती उदाहरण बनती जा रही हैं और वे इस दुनिया में अकेली नही है -अब वह पीढी आ रही है जिसे कलम से लिखना नही आएगा और उसके बाद जो पीढी आयेगी वह की बोर्ड को भी परे धकेल सीधे अपने पी सी पर बोल कर लिखेगी ! और उसके भी आगे मनुष्य के मस्तिष्क में ही ब्रेन इम्प्लान्ट्स लगा दिए जायेगें जो सीधे ब्रेन टू ब्रेन संवाद में सक्षम हो जायेगें ! और उसके आगे की दुनिया भी आप सोच सकते हैं यह आपकी वैयक्तिक कल्पनाशीलता पर निर्भर है ।
मगर क्या मशीनों पर इतनी निर्भरता मनुष्य के लिए उचित भी है -आज ही हमारी जीवन शैली कितनी बदलती जा रही है -मशीनों की दखल ने हमें बाहरी दुनिया के परिप्रेक्ष्य में बहुत आत्मकेंद्रित कर दिया है और एक बिल्कुल ही मायावी दुनिया की ओर लिए जा रही है जो आध्यात्म्वादियों के मायाजगत/मिथ्याजागत सरीखी ही है -आज की अंतर्जाल की आभासी दुनिया जिसके लिए नया शब्द -सायिबर्ब भी गढा चुका है अब विचारकों का धयान अपनी ओर खीच रही है -इस दुनिया का एक और रूप सेकंड लाईफ के रूप में हम देख ही रहे हैं -जहाँ एक सामानांतर संसार उभर रहा है -वहां समानानतर सरकारे वजूद में आ रही है ,आभासी मुद्रा का भी प्रचलन शुरू हो गया है जिसे वास्तविक दुनिया में भी भुनाया जा सकता है -वहां एक नयी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था कायम होने को अंगडाई ले रही है .कैसा होगा आभासी दुनिया का साईबर (प्रजा ) तंत्र ,क्या वहाँ भी साईबर आतंकवाद सिर उठाएगा ? चुनाव होगें ? नेता गण धमाचौकडी मचायेगें ? साईबर युद्ध होगें ? संप्रभुता कैसे परिभाषित होगी ? राष्ट्रवाद का क्या होगा ?कुल मिला कर कैसी होगी नयी साईबर संस्कृति ?
क्या ये सवाल आपके मन में भी कौंधते हैं ? मुझे इसलिए आक्रांत करते हैं कि मैं विज्ञान फन्तासिओं में रूचि रखता हूँ और मुझे आगामी दुनिया का कुछ कुछ आभास होने लगता है -मैं भी अगर फलित ज्योतिषी होता तो आए दिन कुछ न कुछ भविष्यवाणी करके आप सभी को हैरत में डालता रहता -मगर मुझे यह भी मालूम है कि भविष्य को सटीक देख पाना बहुत मुश्किल है -कौन बता सकता है कि स्वायिन फ्लू से भारत में कितने लोग काल कवलित होगें ? लगता तो है कि यह एक बड़ी संख्या होगी -मगर नही भी हो सकती ? आपका क्या ख्याल है ? गिरिजेश राव कहेगें कि सब फालतू बात है कमाने खाने का जरिए है बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का ! अनूप शुक्ल जी ने शायद इसके बारे में अभी सोचा तक न हो ! ज्ञानदत्त जी भी बेपरवाह ही हैं ! रंजना भाटिया जी और सीमा गुप्ता जी आज थोड़ी डरी हुयी दिखती हैं -और मैं ,मत पूँछिये अगर मन की बात कहँ दूँ तो दहशत फैल जायेगी यहाँ !
लीजिये कहाँ से बात शुरू कर ये कहाँ ले आया मैं आप सब को ! पर क्या यह उचित नहीं कि हम जरा अपनी आगामी दुनिया के बारे में भी सोचे और इस आभासी जगत से अपने रिश्ते के चलते मानवीयता के क्षरण (यदि संभावित है या हो रहा है ) की भयावनी संभावना की भी आहट लें ! मैंने अपने मित्र को आगाह कर रखा है कि मुझसे वे अपने लैपटाप को सदैव दूर रखें नही तो वह एक दिन टूट भी सकता है ! मशीन नहीं मनुष्यता सर्वोपरि है!
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
चैनल वाले तो शाम से ही डरा रहे है ...लगता है ब्लॉग पे आ गया भय...पर इस विषय में एक बहुत अच्छा लेख आज दैनिक जागरण में पढने को मिला.जरा नजर डालिए.तरुण विजय जी द्वारा लिखा हुआ....
जवाब देंहटाएंहम पूर्णतः सहमत हैं. हमारे एक सीनियर मित्र कैलकुलेटर के घोर विरोधी थे. उनका कहना रहता था की यह बुद्धि नाशक यंत्र है. जटिल गणित की गणनाओं के लिए तो ठीक है परन्तु अब तो लोग जोड़ घटाना भी भूल गए हैं.
जवाब देंहटाएंब्रह्म वाक्य: मशीन नहीं मनुष्यता सर्वोपरि है..
जवाब देंहटाएंतकनीक यदि मानवीय श्रम को सहज बनाने का एक माध्यम और हर किसी के लिए खुशहाली का सबब बनकर आती तो संभव था आपके भीतर बैठ रहे डर वैसे ही न होते। पर मुनाफ़ाखोर दुनिया के चंद लोग उस पर जिस तरह से कब्जा जमाते चले जा रहे हैं उसके चलते ही कई बार ऎसी आशंकाएं जन्म लेने लगती हैं। जो निर्मूल भी नहीं हैं। वे स्थितियां ही आत्मकेंद्रित भी बनाती हैं जिसकी गिरफ़्त में आज जो सामाजिक माहौल बन रहा है वह सामाजिकता को गए जमाने का विचार मानता है।
जवाब देंहटाएंआपकी चिन्ताओं के दायरे भी इसी लिए सिमटे हुए लग रहे है जो तकनीक के ही खिलाफ़ चले जाते हैं। तकनीक पर चंद लोगों का कब्जा न रहे, पूरे आवाम के लिए उसकी सुलभता हो तो, शायद उसके सही मायने खुलें।
अभासी जगत से रिश्ते के चलते निश्चय ही मानवीयता के क्षरण हो रहे है . बहुत सटीक बिंदास पोस्ट . आभार.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही .....ब्रह्म वाक्य:
जवाब देंहटाएंमशीन नहीं मनुष्यता सर्वोपरि है
बढिया आलेख।बधाई।
अनूप शुक्ल जी ने शायद इसके बारे में अभी सोचा तक न हो ! अब आपने बताया है !अब फ़ोड़ा जायेगा सोच का नारियल।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही बात,
जवाब देंहटाएंयह आत्मप्रशंसा नहीं
किन्तु मेरा 'कल की दुनिया' ब्लॉग भी इसी ओर इंगित करता है व आज की पोस्ट तो डरावनी ही है।
लिंक जानबूझ कर नहीं दे रहा
एक बात तो लिखना भूल गया कि इसी संदर्भ में हॉलीवुड की फिल्म 'I, Robot' बहुत कुछ कह जाती है
जवाब देंहटाएंमुझे तो यह सच सा लगता है।
जवाब देंहटाएंऔर उसके भी आगे मनुष्य के मस्तिष्क में ही ब्रेन इम्प्लान्ट्स लगा दिए जायेगें जो सीधे ब्रेन टू ब्रेन संवाद में सक्षम हो जायेगें ...
जवाब देंहटाएंवाह....वाह....आपको तो वैज्ञानिक होना चाहिए ......!!
प्रकृति संतुलित बनाने के लिए कई लीलाएं रचती हैं- तूफ़ान, महामारी, सूखा, सैलाब ......सभी इस संतुलन के लिए ही है। अब यदि मानव भी इसमें योगदान कर रहा है तो............स्वागतम:)
जवाब देंहटाएं@हरकीरत हकीर
जवाब देंहटाएंमै तो अरविंद जी को वैज्ञानिक ही मानता हूं। बढिया पोस्ट। हम सात दिन बाहर रहे और लैपटाप से दूर रहे। सुकून पाया।
हम तो फ़ुरसतिया जी के पीछे पीछे चलने वाले हैं..अब उन्होने सोचने का कहा है तो हम भी सोच कर बताते हैं. यानि नारियल फ़ोडकर बताते हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
फेसबुक पर मैंने एक सवाल किया था.. कि रियल्टी शो देखकर क्या आपका भी मन कहता है कि इस जंगल से मुझे बचाओ.. इस पर सबसे उम्दा टिपण्णी शिव कुमार मिश्र जी की थी.. उन्होंने लिखा.. इस जंगल से बचो.. इस लेख पर भी यही कहा जा सकता है.. वैसे सुगमता जरुरी है.. यदि कंप्यूटर पे लिखना सुगम है तो वही सही.. क्योंकि कलम तक भी तो हम कुछ छोड़ कर ही आये है..
जवाब देंहटाएंहाय-हाय, किस उलझन में पड़ गये भइया। मनुष्य को उसकी सोच ही परेशान करती है। थोड़ा कम सोचा करिए। आदरणीय समीर लाल जी को देख नहीं रहे हैं? ...बेचारे सोच-सोचकर हलकान हुए जा रहे हैं। सोचना कम कर दीजिए तो लैपटॉप का चक्कर भी कम हो जाएगा।
जवाब देंहटाएंसबसे भले हैं मूढ़ जिन्हें न ब्यापे जगतगति।
मशीन नहीं मनुष्यता सर्वोपरि है..
जवाब देंहटाएंTSALIIM pe bhi is baare khabardaar kiya hi jaataa rahaa hai.
जवाब देंहटाएं{ Treasurer-T & S }
SACH HAI.....LAPTOP KI DUNIYA MEIN PRAVESH KARNE WAALA SABSE PAHLE APNI BUDHI KA VISTAAR KHOTA HAI, FIR LAPTOP KA AADI HO JAATA HAI........BACHHON MEIN TO YE PRAVRITI VINAASH KI AUR LE JAA RAHI HAI.....LAPTOP MEIN BACHPAN KHOTAA JAA RAHA HAI....
जवाब देंहटाएंGar ham hadse zyada, machinon pe wishwaas karenge...to hashr theek nahee hoga..ye machines manav ke liye banee huee hai..aadmee kee eejaad kee huee hain...aadamee inke liye bana ho aisa to nahee..ye jinka apna naa dil hai naa dimaag!
जवाब देंहटाएंMaafee chahtee hun..transliteration band ho gaya hai..!
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( Ye kahan aa gaye ham..isee baat ko leke likha hai..)
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मेरी बात कह ही दिए हैं। अब क्या कहूँ?
जवाब देंहटाएंआभासी दुनिया के लिए 'मैट्रिक्स' फिल्म के स्तर की प्रगति की कोई आवश्यकता नहीं है। थोड़ा गहराई में देखें तो हम आप आज ही उस दुनिया में जी रहे हैं।
अंतत: मानव की जिजीविषा जीतेगी । इसमें कोई शक नहीं।
मशीन नहीं मनुष्यता सर्वोपरि है! अनमोल वचन।
जवाब देंहटाएंडरना तो मना था जी ..:) मशीन और मनुष्यता सब गडबडा रहा है आज कल न जाने क्यों ..आप भी बता ही दो दहशत पहले क्या कम फैली हुई हैं दुनिया में
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी ही आभासी हो गई है जी. फिर क्या होगा, हमारे-आपके सम्बन्ध भी इसी की भेंट चढ़ गए हैं. लेकिन इतना ही नहीं है, कुछ नए रिश्ते भी इसी आभासी दुनिया के चलते बने हैं और अच्छे बने हैं. भले वे दूर के ढोल टाइप हों, पर जो निकट के ढोल हैं उनका ही क्या भरोसा कि कब कड़वे हो जाएं!
जवाब देंहटाएंNischit roop se nai pidhi 'Aabhasi Dunia' mein khud ko jyada comfortable feel kar rahi hai. Samajikta ko to yeh prabhavit kar hi rahi hai.
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