अब आगे ....
बालकाण्ड में पहली बार नारी विषयक उदगार तब व्यक्त हुए हैं जब वन में नारी विछोह में भटकते भगवान राम की सती ने परीक्षा ले ली, शंकर जी की अनिच्छा के बावजूद -नारी के इसी दुराव छिपाव को लक्षित करते हुए संतकवि कहते हैं -सती कीन्ह चह तहहूँ दुराऊ देखऊँ नारि सुभाव प्रभाऊ ..अर्थात जो सर्वज्ञाता है सती उससे भी छल कर रही हैं -नारी का स्वभाव तो देखिये .....और इसी दुराव को लक्षित कर शंकर जी ने सती का परित्याग किया -यहिं तन सती मिलन अब नाहीं ... खुद सती के ही अगले जन्म में पार्वती यह स्वीकारती हैं -"नारि सहज जड़ अज्ञ ... नारी स्वभाव से ही मूर्ख और बेसमझ होती है ..मैंने शिवजी से कपट किया था और उसका परिणाम भोगा" -अयोध्या काण्ड में कैकेयी ने राजा दशरथ के साथ जो प्रपंच किया उससे भला कौन अपरिचित है ..वहां भी उल्लेख हुआ है -जदपि सहज जड़ नारि अयानी..नारी तो सहज ही मूर्ख और अज्ञानी है (मतलब जन्म से ही मूर्ख) ..राजा दशरथ नीति निपुण होते हुए भी नारी मोह में पड़ गए -कारण? जद्यपि नीति निपुण नरनाहू नारि चरित जलनिधि अवगाहू ..बिचारे क्या करते? त्रिया चरित्र ही अथाह है उसका पार नहीं पाया जा सकता . और राजा दशरथ नारी का विश्वास कर कहीं के नहीं रहे ....गयऊँ नारि विश्वास.....!
अयोध्या काण्ड में ही विभिन्न प्रसंगों में आया है -सत्य कहऊँ कवि नारि सुभाऊ सब बिधि अगहु अगाध दुराऊ यानि कविगण सत्य कहते हैं कि नारी का स्वाभाव पकड़ में आने वाला नहीँ है .अथाह है और भेद भरा है अपनी परछाईं तो फिर भी पकड़ी जा सकती है मगर नारी की गति समझ पाना असंभव है -निज प्रतिबिम्ब बरकु गहि जाई जानि न जाई नारि गति भाई ...हाँ एक जगहं वह निरी अबला भी नहीँ है -काह न पावक जारि सक का न समुद्र समाई का न करै अबला प्रबल केहि जग कालु न खाई ....आग क्या नहीँ जला सकती ,समुद्र में क्या नहीँ समां सकता काल किसे कवलित नहीँ कर सकता और नारी क्या नहीँ कर सकती -वह तो दरअसल प्रबला है, अबला बस कहने भर को ही है ....राजा दशरथ का तो प्राण ही हर लिया ...इतने ज्ञानी, विद्वान मगर अबला बिबस ग्यानु गुण गाजनु ..एक अबला से विवश हो गए ...
भरत स्वयं कैकेयी को धिक्कारते हुए कहते हैं -विधिहुं न नारि ह्रदय गति जानी सकल कपट अघ अवगुण खानी..अर्थात स्वयं ब्रह्मा भी नारी के ह्रदय की बात नहीँ जान सकते जो हर तरह के कपट बुराई और अवगुण की खान है...एक स्वीकारोक्ति शबरी की भी है -अधम ते अधम अधम अतिनारी तिन्ह में मैं मदिमंद अघारी ...जो अधम से भी अधम हैं नारी उनमें भी अधम है ...और उनमें भी मैं अति मंद बुद्धि की हूँ .....अरण्य काण्ड शुरू हुआ तो संतकवि ने राम के मुंह से -सीधे श्रीमुख से भी नारी की निंदा कराकर मनो संतुष्ट हुए हों -राख़िय नारि जदपि उर माहीं जुबती सास्त्र नृपति बस नाहीं -यानि नारी को भले ही ह्रदय में ही क्यों न रखा जाय वह ,शास्त्र और राजा किसी के वश में नहीं रह सकते ...वे स्वभावतः स्वच्छंद होते हैं ..अरण्य काण्ड का समपान ही नारी विमर्श /विषयक परामर्श से होता है -
दीप शिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतंग
युवती का तन दीपक के लौ के सामान है, हे मन तूं उसके लिए पतंगा मत बन (नहीं तो नष्ट हो जाएगा )......
क्या सचमुच ज्ञानार्जन और पुरुषार्थ का मार्ग नारीविमुखता या उससे तटस्थ रहने से ही संभव है? या फिर आर्ष ग्रथों की बात बस ऐसे ही कल्पना की बेवजह उड़ान है और उसे अनदेखा कर देना चाहिए? संतकवि का खुद का अपना भोगा हुआ यथार्थ -पत्नी की लताड़ उनकी आजीवन की कसक रही हो जिसे उन्होंने रामायण के पात्रों में यत्र तत्र आरोपित किया हो? ये सारे सवाल मेरे मन को मथते रहे हैं ,आप क्या कहते हैं ?
हम कुछ नहीं कहते हैं जी. कुछ भी कहने पर बवाल होता है.
जवाब देंहटाएंयहाँ कुछ कहो तो यह कहने की बजाय कि "मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूँ", लोग कहते हैं "आप ऐसा कैसे सकते हैं?", "आप इस बारे में जानते ही क्या हैं?".
कल पारिस्थितिकी के अनुसार एक ही व्यक्ति का आचरण अलग-अलग होता है उदाहरण के लिए यदि आप अपने भाई से मिलते हैं तो आपका व्यवहार अलग होगा मित्र से मिलते हैं तो अलग होगा और यदि किसी अपरिचित से मिलते हैं तो आप का वार्तालाप उसके प्रति दृष्टिकोण अलग-अलग होगा और परम पूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी ने जो कुछ भी लिखा है उसके पीछे हमें वह संदर्भ देखना पड़ेगा कि उन्होंने किस कथन के अनुसार किस पत्र के द्वारा क्या कहा गया है वह महत्वपूर्ण है यदि आप संगीत का आनंद लेते हैं तो केवल एक धुन सुनकर उसे संगीत के रात के बारे में कुछ नहीं जान सकते या मान लीजिए की कोई सुंदरतम चित्र है और कोई व्यक्ति इसका एक टुकड़ा आपको काट कर देता है तो आप चित्र किसका बनाई क्या बनाएगी आपको कुछ भी पता नहीं लगेगा ऐसे ही उक्त संग्रह में बताया गया है यदि आप जानने में रुचि रखते हैं तो हम आग्रह करते हैं कि आपको रामचरितमानस का अध्ययन करना होगा धन्यवाद जय जय श्री सीताराम 🔔🪔🔔
हटाएं:)
जवाब देंहटाएं@निशांत जी ,
जवाब देंहटाएंबात आपकी भी ठीक है -वही बस लोग जानबूझकर नारी -सहिष्णु और पुरुष -सहिष्णु टिप्पणियों से बचें -अपना निष्पक्ष विचार प्रस्तुत करें :-)
नारी स्वाभाव से ही मूर्ख और बेसमझ होती है --- यह तो आउट डेटेड आइडिया लगता है .
जवाब देंहटाएंबेशक नर और नारी में कुछ मूलभूत अंतर होते हैं लेकिन दोनों एक दुसरे के बगैर पूर्ण भी नहीं होते .
लेकिन यह सच है , नारी के मन को समझना --हमें तो हमेशा मष्तिष्क की कार्य प्रणाली को समझने जैसा लगता है जो हमें कभी समझ नहीं आया . :)
यहाँ फ़िर कहना चाहूँगा कि किसी खास सन्दर्भ में ही कोई बात अपना अर्थ रखती है,वह चाहे नारी स्वभाव की हो या पुरुष स्वभाव की!
जवाब देंहटाएंमेरा साफ़ कहना है कि धार्मिक आख्यानों से ऐसे विमर्श को सीधा जोड़ना गलत है.यह महज़ प्रवृत्तियां हैं जिनका किसी लिंग,जाति या वर्ग से कोई वास्ता नहीं है.
...शबरी का प्रसंग केवल इसलिए है कि उसने अपने भगवान के सामने अपने को अधम बताने की कोशिश की है जैसे एक जगह हनुमान जी ने कहा है...प्रात लेइ जो नाम हमारा|तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा ||अब अगर इतना ही पढ़कर अर्थ निकालें तो अनर्थ होता है,जबकि आगे वो कहते हैं,"अस मैं अधम सखा सुनु,मोहू पर रघुबीर ,कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर"|
रही बात अबला क्या नहीं कर सकती तो यह आज भी सत्य है.इसलिए नारी के स्वाभाव में केवल नकारात्मकता नहीं है.
हमारे ही शास्त्रों में यह भी कहा गया है,
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते.....'पर यह बात पूनम पाण्डेय और मल्लिका शेहरावत पर लागू नहीं होती
बहुत ही अच्छी बात कही आपने नारी शक्ति का रूप है और नारी शक्ति के बिना श्रृष्टि का कुछ नहीं हो सकता,
हटाएंइसीलिए नारी सम्मान योग्य हैं और हमें यह ज्ञात होना चाहिए।
मै समझ नहीं पा रहा हूँ आप बार बार किन्ही खास संदर्भो पर ही बहस क्यों करना चाहते है ? ओर मूर्खता पूर्ण तथ्यों पर बहस जारी रखने के पीछे आपका उद्देश्य क्या है ?
जवाब देंहटाएंये किस ने कहा है जो किसी भी धर्म ग्रन्थ में लिखा है वो अंतिम सत्य है ? या तुलसीदास एक दम परफेक्ट मनुष्य थे ? गुण अवगुण किसी व्यक्ति का जेंडर देखकर नहीं आते ये तो अनपढ़ आदमी भी जानता है .
हे भगवान। तू बडा महान है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
मुझे तो लगता है आपमें ही शिखंडी का कुछ अंश है | दूसरों को ढाल बनाकर अपनी विकृति को शब्द देना बंद करिए | यदि आपमें इतनी ही हिम्मत है तो अगले दो-चार पोस्ट में सिर्फ और सिर्फ अपनी बात रखिये | हम भी जाने आप नारी के विषय में क्या विचार रखते हैं | मैं खुले में आपको ललकार रही हूँ | हिम्मत है ? अरे इतने विद्वान् होकर किस विषय में उलझे हुए हैं ? कोई सार्थक पोस्ट लिखते तो सबका लाभ होता और आपको भी अपने ज्ञान पर गर्व होता .
जवाब देंहटाएंअग्नि की लौ कभी पकड़ में आयेगी नहीं। वश में करने के प्रयास असफल रहेंगे, आप हाथ मत जला लीजियेगा।
जवाब देंहटाएंडॉ.अनुराग
जवाब देंहटाएंआप आवेशित लग रहे है .मानस विमर्श लम्बे समय से इस ब्लॉग पर चल रहा है -इसके पहले तो कभी आये नहीं और आज निहित भाववश आये भी तो गोला दाग दिए ..आप के लिए सलाह है कि मानस प्रसंग -१ से आरम्भ करें -और किसी भी महान कवि के उद्धरणों को मूर्खतापूर्ण कहना आपकी खुद की प्रास्थिति को बयाँ कर रहा है!
बलोग जगत के राखी सावंत हैं आप सस्ती लोकप्रियता में न जाने कौन सा सुख का अनुभव करते हैं आप | आपको भी रचना कर्म समझाने की जरुरत है | लिखने वाला उन्हीं बिन्दुओं को उभारता है जो उसके अन्दर दवी होती है | किसी की कही हुई बातें तो बहाना होता है | पाठकों की कतार में आकर आप अपना पोस्ट पढ़िए तो समझ में आ जाएगा कि आपके लिए लोगों के मन में क्या आता है | जो (अ) पुरुष होगा वो ही ऐसी ओछी बात पर विवाद करेगा | इस उम्र में भी राम का नाम सच्चे मन से लीजिये | उनका नाम गन्दा मत कीजिये |
जवाब देंहटाएंdefinitions change with time. no comments.
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अपने को पता नहीं था कि यह भी लिखा है मानस में... धार्मिक भावनायें न जुड़ीं होती 'रामचरितमानस' के साथ तो कम से कम महिला आयोग तक शिकायत करने का तो बनता है... खैर आज भले ही नहीं हो पायेगा यह... पर कुछ समय बाद जब अंध आस्था की पट्टियाँ उतर चुकी होंगी सब की, तब यह होकर रहेगा...
...
चलिए, एक बार और हिम्मत जुटाकर हम भी कह देते हैं कि जो (तथाकथित) पौराणिक/अवतारी/ईश्वरीय चरित्र ऐसी बातें करते हैं उनपर मैं आस्था नहीं रख पाता.
जवाब देंहटाएंसन्दर्भ, प्रसंग, व्याख्या, देश, काल, समाज, परिस्तिथियाँ और विमर्श... आखिर ये सब मानवीयता से बड़े कैसे हो सकते हैं?
विषयांतर करता हूँ: जिन परशुराम ने सत्य जाने बिना अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए अपनी माँ का सर काट दिया हो उन्हें मैं किस विधि महान मान लूं? बाद में माता को जिला भी दिया हो तो उनका अपराध कम हो जाता है क्या? अब विद्वान पुरुष इसे उचित बताने के लिए इसकी भी बड़ी मोहक व्याख्या कर सकते हैं लेकिन यह तो तय है कि उन्होंने घोर अनुचित कर्म किया जो निंदनीय है और सदा रहेगा.
बाबा तुलसी के चरित्र ऊपर जो कुछ कह रहे हैं वह भी निंदनीय है. इन बातों को किन्हीं ख़ास सन्दर्भों से जोड़ने की बात करना उन्हें उचित ठहराना ही है.
@बेनामी और ललकार? :-)
जवाब देंहटाएं@अभी तक के आये विचारों में आवेश ज्यादा दिख रहा है -कुछ लोग स्तंभित हैं यह देखपढ़ कि मानस में ऐसा लिखा है -हाँ लिखा है ...मैंने अभी तक अपनी ओर से कुछ नहीं कहा है .....एक बहुत प्रसिद्ध काव्य रचना से कुछ अंश बिना संपादित यहाँ उद्धृत किये हैं!तुलसी ने ये विचार साठ वर्ष की उम्र के बाद लिपिबद्ध किये --लगता है मुझे भी कम से कम इतना समय तो लगना चाहिए .... :-)
जवाब देंहटाएंHarek naaree Kaikeyi nahee hotee.
जवाब देंहटाएं@हाँ यह जरुर लगता है कि अगर आज की कुछ महिलायें ऐसा काव्य लिखें तो पुरुष के लिए वे इससे भी बहुत अप्रिय और आपत्तिजनक बात लिखेगीं ...
जवाब देंहटाएंअब जैसे एक बेनामी मोहतरमा मुझे ललकार रही हैं जैसे पा जाएँ तो कच्चा चबाने की ही कोशिश कर डालेगीं (भले ही चबा न पायें) ..उनकी तुलना में एकाध नारी सहिष्णु पुरुषों को छोड़कर शेष सयंमित और विनम्र हैं!
अब वह समय सचमुच आता जा रहा है जब महिलायें ऐसी महान रचनाएं लिखेगीं और उसमें पुरुष की स्थिति देखने लायक होगी ..लक्ष्मण ने तो शूर्पनखा का नाक कान ही काटा था -एक महिला ब्लॉगर सरे आम बलात्कारी पुरुष का लिंग काट कर उसे सार्वजनिक तौर पर जलाने की घोषणा कर चुकी हैं -
नारी अब स्वतंत्र है तो देखिये कैसे कैसे फरमान आने लगे हैं ......तिस पर मानस का यह विमर्श लोगों को नागवार लग रहा है ..... :-(
@इससे तो सचमुच यही सिद्ध हो रहा है -काह न करै अबला प्रबल- :-)
जवाब देंहटाएंआशा ही नहीं विनम्र अनुरोध है आप सभी से संयम बनाए रखें और जो कुछ भी कहें शिष्ट होकर संयमित होकर कहें ..
मैं भी विचारों से बहुत कुछ सीखता हूँ -लाख बार कह चुका हूँ जो यहाँ व्यक्त होता है वह वह अनुमोदनार्थ ही होता है ..
मेरा ज्ञान अल्प ही है मैं बहुत कुछ सीखता हूँ विभिन्न स्रोतों से ...
मित्रगन सद्भाव बनाए रखें कृपा कर के! अन्यथा फिर कोई अर्थ नहीं रह जाएगा ऐसे विमर्श का ..
हाँ राजनीति करने वाले यहाँ कमेन्ट न ही करें तो अच्छा है -न तो उनका कोई भला होगा और नहीं विमर्श का ....
@ क्षमा जी ,
जवाब देंहटाएंहाँ बिलकुल सच है नारियों में सीता भी हैं ......
हर मनुष्य अलग है.... व्यक्तिगत सोच और व्यवहार के अनुसार हर स्त्री, हर पुरुष अलग अलग ही होते हैं और उसी के अनुसार वे आपके जीवन में भूमिका निभाते हैं ....
जवाब देंहटाएंआप मानस और नारी विशेषज्ञ ब्लागर हैं। ब्लाग पुरस्कार वितरक शिरोमणि को अगले साल इस कैटेगरी का ऐलान भी करना चाहिए:-)
जवाब देंहटाएंभाई साहब निस्संदेह आपने सिर्फ व्याख्या की है और सटीक की है प्रसंगेतरकुछ भी नहीं है अलबत्ता भारतीय आदर्श नटराज हैं शिव का अर्द्ध - नारीश्वर रूप ही है .नारी रही होगी कभी सबला आज तो रोज़ बालातकृत और अपमानित हो रही है लोग उसकी स्कर्ट की लम्बाई नाप रहें हैं भले वह सानिया मिर्ज़ा ही क्यों न हों ऐसे अधर्मी समाज को भला कौन आइना दिखा पायेगा तिस पर तुर्रा यह ,समाज के कुछ ठेकेदार वोट खोर और उनके भकुए कथित बौद्धिक चमचे सेकुलर होने का दंभ भी भरते हैं . .कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंram ram bhai
सोमवार, 23 जुलाई 2012
अमरीका नहीं देखा उसने जिसने लास वेगास नहीं देखा
http://veerubhai1947.blogspot.de/
तथा यहाँ भी -
कैसे बचा जाए मधुमेह में नर्व डेमेज से
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.co
मानस की नारी
जवाब देंहटाएंदिखा दी आप ने सारी
हम तो देखते आ रहे हैं
आज तक जो नारी वो
तुलसीदास की नारी से
क्यों नहीं मेल खा री ?
विचारणीय व रोचक विमर्श...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंतुलसी की विह्वलता में बंध
क्यों लोग मनाते दीवाली ?
अरे मिसिर बचुआ बहुते नीके लिखे हो। ई ससुर डागदरवा आज ईंहा आके काहे बिलबिलाय रहा है? ई भी लगत है शुक्लवा का चेला है। ऐसन ही लिखत रहो, ई कुकुर सुकर जैसन भौंकबे वारे प्राणियों की फ़िकिर नाही करो।
जवाब देंहटाएंसभी बच्चा लोगन को चच्चा की टिप टिप।
भयाक्रांत रविकर मुखर, गुरु चरणों में आय ।
जवाब देंहटाएंत्राहिमाम गुरुवर अगर, कोई जो धमकाय ।।
(1)
बिगत युगों की परिस्थिति, मुखर नहीं थी नार ।
सोच-समझ अंतर रखे, प्रगटे न उदगार ।
प्रगटे न उदगार, लांछित हो जाने पर ।
यह बेढब संसार, जिंदगी करता दूभर ।
रहस्यमयी वह रूप, किन्तु अब खुल्लमखुल्ला ।
पुरुषों को चैलेन्ज, बचे न पंडित मुल्ला ।
(2)
अब रहस्य कुछ भी नहीं, नहीं छुपाना प्रेम ।
कंधे से कन्धा मिला, करे कुशल खुद क्षेम ।
करे कुशल खुद क्षेम, मिली पूरी आजादी ।
कुछ भी तो न वर्ज्य, मस्त आधी आबादी ।
का न करे अबला, प्रबल है पक्ष चुपाओ ।
राम चरित का पाठ, इन्हें फिर कभी पढाओ ।।
.
जवाब देंहटाएं.
.
निशांत जी से अक्षरश: सहमत,
आस्था रखना सही है पर अंध आस्था किसी भी समाज को पीछे ले जाती है... तब थोड़ा और शीघ्रता से, जब हम थोथे व हास्यास्पद तर्कों से साफ-साफ लिखी बातों को किन्हीं खास संदर्भों में देखने की बात कह जस्टिफाई करने लगते हैं...
...
bahut sundar aur sarthak prastuti.
जवाब देंहटाएं@तुलसी की विह्वलता में बंध
जवाब देंहटाएंक्यों लोग मनाते दीवाली ?
अस्त्र-शस्त्र क्या खत्म हुए
मच गई यहाँ पर रूदाली !!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशायद तुलसीदास जी ने अपने अनुभव को ही इस काव्य में पिरो दिया हो .... वैसे आज तक नारी ही क्यों पुरुष को भी कहाँ कोई समझ पाया है .... सही कहूँ तो कोई भी इंसान दूसरे को यदि 20 प्रतिशत भी समझ ले तो बहुत बड़ी बात है ....
जवाब देंहटाएंनारी कभी भी अबला नहीं रही यह तो पुरुष की ही सोच है जो उसे अबला समझता है और वैसा ही व्यवहार करता है ....प्राकृतिक देन को समाज ने बन्दिशों में बांध दिया है अन्यथा जो पुरुष को जन्म देती है वो भला अबला कैसे ? और वही पुरुष नारी के अस्तित्व को रौंद देना चाहते हैं ...रामायण भले ही धार्मिक ग्रंथ है पर उसमें लिखी बात कोई अंतिम सत्य नहीं .... धारणाएं नित प्रतिदिन बदलती रहती हैं । पुरुषों के ही अत्याचारों के कारण पर्दा प्रथा का जन्म हुआ था ... आज नारी उससे मुक्ति चाहती है तो बर्दाश्त नहीं होता और यही मानसिकता गोहाटी जैसी घटनाओं को जन्म देती है ....
कृपया इसे हर पुरुष पर लागू न समझें / करते कुछ लोग हैं पिसना घुन को भी पड़ता है जैसे स्त्रियॉं में भी यह प्रवृति देखी जाती है ...कुछ के ही कारण बाकी स्त्रियाँ सवालों के कटघरे में खड़ी कर दी जाती हैं ...
जितने मुँह इतनी ही बातें,
जवाब देंहटाएंजितने दिन उतनी ही रातें।
विषयविमुख गोष्ठि अब तो
जैसे बिन दुल्हे की बरातें॥
आखिर बवाल हो ही गया .
जवाब देंहटाएंयह सही है -- धर्म ग्रंथों में लिखी सारी बातें वर्तमान में सारगर्भित नहीं हो सकती . इसलिए उन पर आँख मूँद कर विश्वास नहीं किया जा सकता . लेकिन किसी को भी आवेश में आने की भला क्या ज़रुरत है !
वैसे अनाम टिप्पणियों का ऑप्शन बंद होना चाहिए . आपने न जाने क्यों खुला छोड़ रखा है .
डॉ.दराल,
जवाब देंहटाएंअब कौन सी अपनी इज्जत बची रह गयी है जो कमेन्ट माडरेशन करूं..
वैसे भी मैं कमेन्ट माडरेशन के पक्ष में नहीं हूँ -लोग या तो प्रतिकूल टिप्पणी की
भीरुता या इमेज/इज्जत बचाए रखने के चक्कर में यह करते हैं ....अब कौन सी गाली या चित्र
ब्लॉग जगत में इस्तेमाल करने से बच गए हैं जिसका इस्तेमाल लोग करेगें और क्यों करेगें ?
मैं तो जैसा हूँ अच्छा बुरा वैसा हूँ और कोई कुछ भी कहे .....क्या फर्क पड़ता है ...
हाँ मेरे यहाँ कमेंट्स से किसी दूसरे का कुछ बिगड़ता हो तो दुखी पक्ष कहे मैं टिप्पणी हटाने पर विचार करूंगा...
हाँ तिप्पू चच्चा कुछ जरुर कह गए हैं मगर उनसे तो पुरानी जान पहचान है उनकी बात का गंभीरता से क्या लेना
वे भी अपने तरीके की मौज मस्ती करते रहे हैं जिनसे ब्लागजगत थोडा मनसायन रहता था :-)
नारी ही क्या पुरुष को ही कौन जान सका है जो अपने मन की बात की सहमति दूसरों से करवाना चाहता है . एक व्यक्ति ही कौन दूसरे व्यक्ति को अच्छी तरह जान पाता है .
जवाब देंहटाएंसमय और परिस्थितियों के साथ समाज के आचार- व्यवहार भी बदलते हैं. हर लेखन में कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक भी होता है , प्रत्येक व्यक्ति की स्वयं की मानसिकता या जीवन के अनुभव यह बताते हैं कि उसने उनसे क्या ग्रहण किया !
मित्रों आप सभी का बहुत आभार -आप आये और इस विमर्श में भाग लिया आपने -इसका समापन अंश अगली पोस्ट ही है -और आपके वाद प्रतिवाद को लेकर भी मेरी टिप्पणियाँ हैं वहां -आप वहां पधारें कृपया !
जवाब देंहटाएंये बेनामी की शैली कुछ जानी पहचानी लगती है। उनके पूर्णविराम पर ध्यान देने से पता चल जाता है कि वे कौन ब्लॉगर/ ब्लॉगरा हैं।
जवाब देंहटाएंइस तरह के बड़े पूर्णविराम छद्मी नारीवादी की एक तरह से वकील और जगह जगह उनकी स्पोक्सपर्सन बनकर तरफदारी करने वाली चार अक्षरी जी हैं :)
ओह !
जवाब देंहटाएंचार अक्षरी ?
समझ गई हूँ कि ये किस महिला की बात की जा रही है. मैं इतना ही कहना चाहूँगी कि पुरूषवादी सोच के तहत न तो आप इस तरह की पोस्टें लिखने से बाज आयेंगे और न तो वे तथाकथित नारीवादी महिला जिन्हें खुद पता नहीं कि वे कहना क्या चाहती हैं, पारिवारीक खटमिठ क्या होता है, सहज जीवन कैसा होता है। लेकिन विडंबना यह कि हां विडंबना ही कहूंगी कि उनके चक्कर में हमारी बहनें भी अपनी सहज सोच को गंवा बैठी हैं. अपनी लेखन शैली को कुंद कर कहीं और दिशा में उर्जा लगा रही हैं. अब एक उदाहरण यहीं देखिये कि जिन चार अक्षरी जी की बात हो रही है कभी वे मुखर होकर अपनी सोच अपने ब्लॉग पर बयां करती थीं और आज ये नौबत आ गई कि बेनामी होकर अपनी उर्जा एक अबूझ स्त्रीवादी के चक्कर में लगा रही हैं. वैसे बेनामी होकर तो मैं खुद भी लिख रही हूँ लेकिन इस ओर ध्यान दिलाना जरूरी था.
सहज लेखन का यह पतन निराशाजनक है।
@ अबूझ स्त्रीवाद
जवाब देंहटाएंउन्हें ब्लॉगजगत की महिलाओं ने अपनी आत्मरक्षा के लिये तैनात मान लिया है ताकि अरविंद मिश्र जैसी सोच वालों पर जब चाहें तब गले का पट्टा खोलते हुए "छू" बोलकर छोड़ सकें.
जो भी हो इस तरह से केवल पुरूषों को ही दोषी मानने की प्रवृत्ति को आंख मूंदकर समर्थन करना मैं अपनी सोच और समझ को कमतर करना ही कहूंगी,
जवाब देंहटाएंकिसी भी मामले में दोषी महिलायें भी हो सकती हैं पुरूष भी, इस तरह किसी के कहने मात्र से या स्त्री होने के नाते ही समर्थन करना अनुचित मानती हूँ
मुझे तो लगता है कि रामचरित मानस (या कोई अन्य ग्रंथ - पुराण इत्यादि,) को कोई तुलसीदासिनी जैसी महिला लिखती, तो शर्तिया ग्रंथ में हर जगह जहाँ नारी लिखा है, वहाँ नर होता. ही ही ही.... :)
जवाब देंहटाएंnar ho chahe ho nari burai aur achchai dono mein hi hoti hai bas burai ka prakar badal sakta hai. na nar kam hai na naari :)
जवाब देंहटाएंIt's enormous that you are getting thoughts from this paragraph as well as from our dialogue made here.
जवाब देंहटाएंLook at my homepage ... jordan-capri-sex.thumblogger.com
अरे मूर्खो शास्त्र समझने के पहले व्याक़रण पढो। अपने गुरु से ज्ञान लेना चाहिए
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