आखिर एक वैज्ञानिक तकनीक ने दूध का दूध और पानी का पानी कर ही दिया .डीएनए फिंगर प्रिंटिंग तकनीक ने साबित कर दिया कि एन डी तिवारी (एन डी टी ) ही रोहित शेखर के जैविक पिता है . आजकल पूरी दुनिया में यह तकनीक तरह तरह के अपराधियों की शिनाख्त और पितृत्व के मामलों को सुलझाने में अचूक मानी जा रही है और अदालतें अब इन पर पूरी तौर से भरोसा करती हैं . आज इन तकनीकों के चलते कई ऐसे सामजिक मुद्दे सामने आ रहे हैं जिनकी गुजरे जमाने में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी . अब रोहित का मामला ही लें ,अब उनके दो पिता हैं .एक वैधानिक या कहिये धर्म पिता तो दूसरे जैवीय (या अधर्म पिता :-) ? ) शेखर के जन्म के बाद उनकी मां की दूसरी शादी हुयी और और एक और पुत्र हुआ .शेखर का सहोदर भाई .
जाहिर हैं अपने पिता का अधर्म जग जाहिर कर अब शेखर कुछ शांति महसूस कर रहे होंगे. मगर मित्र शेखर, पिता तो हमेशा बाई चान्स ही होते हैं बाई च्वायस नहीं ....हाँ दोस्त मित्र भले ही बाई च्वायस बनते हैं . फेसबुक पर इस मामले से प्रतिक्रियाओं की झड़ी लग गयी .बड़े रोचक रोचक शीर्षक उभरे. बेटे ने बाप को जन्मा......कई वर्षों का प्रसव काल और पुरायट पिता का जन्म ,जनम लियो मेरे पापा बजे बधाई चहुँ ओर आदि आदि .....ज्यादातर लोगों ने एन डी टी को कोसा तो कुछ उनके बचाव में भी उतरे....कहा कि शेखर एक नाजायज सम्बन्ध की उपज रहे और उनकी मां बेटे ने मिलकर एन डी टी के ऐश्वर्य का सुख भोगा और फिर नाजायज सम्बन्ध को जायज बनाने में जुट गए .
किसी ने यह सवाल भी किया कि ऐसा क्यों देखने में आता है कि पुरुष ऊंचे ओहदे और रसूख पर महिलायें मर मिटती हैं ....मेरे एक मित्र ने लिखा " यह तिवारी की सज्जनता है कि वे मां बेटे पर मेहरबान रहे और निजी तौर पर उनका ध्यान सम्मान रखते रहे मगर जो रिश्ता ही सार्वजनिक नहीं था उसे वे कैसे स्वीकारते? कोई और राजनेता रहा होता तो मां बेटे कब कहाँ लोप हो गए होते किसी को कानो कान खबर नहीं होती जैसा कि उत्तर प्रदेश में कई मामलों में ऐसा हो चुका है ..... या फिर खुद एन डी टी की ही डी एन ए टेस्ट की परोक्ष सहमति थी अन्यथा ब्लड सैम्पल दूषित कर देना उनके लिए कौन सा मुश्किल था.." बहरहाल यह तो त्वरित प्रतिक्रियाएं थीं ....बहुत सधी और सुचिंतित नहीं ...सरोकारनामा चिट्ठे ने तो एन डी टी के समर्थन में एक विकराल पोस्ट ही लिखी है -फुरसत हो तो आप भी पढ़िए.
मगर अभी तो यह शुरुआत भर है ..पिता जन्में हैं और बधाईयों का दौर है . अब शुरू होगा कानूनी लड़ाईयों का दौर. वैसे भी एन डी टी के पास कोई बड़ी जागीर नहीं हैं मगर फिर भी जो कुछ भी है बिना उनकी सहमति के वह जायज बेटे का भी नहीं हो सकता -यह उनकी मर्जी पर है या विधि विशेषज्ञ बेहतर जानते हैं . अब जैवीय हक़ तो काबिज हो गया मगर पिता तो कभी पुत्र का ऋणी माना नहीं गया है. सनातन व्यवस्था है कि पितृ ऋण तो पुत्र को ही चुकाना पड़ता है ...और यह बहस चलती रहेगी ...मगर इन सबसे ऊपर और अलग मेरा अपना मानना है कि अगर एन डी टी को यह इल्म था कि रोहित उनका ही बेटा है तो उन्हें इसे स्वीकार कर लेना था -इससे उनका कद और ऊंचा उठता और उनकी नैतिकता और साहस की लोग बडाई करते ..वे निःसंतान भी हैं ..खैर अब भी देर नहीं हुयी है उन्हें सार्वजनिक आयोजन कर बेटे को गले लगा लेना चाहिए ...
हा हा सार्वजनिक आयोजन !!
जवाब देंहटाएंवैसे यह एक अलग ही प्रकार का प्रकरण रहा, जिसमें एन डी टी ने शायद जान बूझकर या इमानदारी बताने के चक्कर में यह सब किया ।
mari bat shahi nikli
जवाब देंहटाएंविज्ञान के चमत्कार
जवाब देंहटाएंआज हम तिवारी की थू-थू कर रहे हैं पर क्या महज़ पुरुष होने के नाते वे अकेले दोषी हैं ? उज्ज्वला भी एक बालिग रहीं और तिवारी की स्थिति जानती थीं.काफ़ी हद तक राजनैतिक लाभ भी उठाया.तबके दोनों के सम्बन्ध बताते हैं कि दोनों इस अवैध रिश्ते से असहज नहीं थे.
जवाब देंहटाएंहाँ,रोहित के लिए ज़रूर अन्याय हुआ.इसके लिए तिवारी और उज्ज्वला दोनों दोषी हैं.उज्ज्वला को अगर यह न मालूम होता कि वे विवाहित हैं तब और बात थी.
आलोचना करने वालों में से अधिकतर की पोल-पट्टी खुल जाए तो तिवारी का भी रिकॉर्ड टूट जायेगा !
...और हाँ,जहाँ तक मैंने कहीं पढ़ा है कि उज्ज्वला का १९७० में अपने पति से अलगाव हो गया था,तलाक २००५ में जाकर हुआ है.
...शेखर का बड़ा भाई पहले से है और माँ के साथ ही है.
लिंक में दी गई पोस्ट कल ही देख चुका था आपके कथित मित्र को तिवारी में दिव्यता के सिवा कुछ दिखाई नहीं देता !
जवाब देंहटाएंजो व्यक्ति किसी विवाहिता को दूषित कर सकता है वो ब्लड सैम्पल भी कर सकता था , अगर उसका बस चला होता तो !
डी.एन.ए. टेस्ट के लिए बंदे की सहमति ? मुक़दमेबाजी में दिखी नहीं क्या ?
अपना ख्याल ये है मोटे तौर पर तीन तरह के पिता हो सकते हैं...
जैविक पिता / जैविक सामाजिक पिता / सामाजिक पिता !
जाने कौन कितना सही है.....?
जवाब देंहटाएंलिंक में उस पक्ष को जोरदार ढंग से उठाया गया है जो अब तक कहीं पढ़ने को नहीं मिला। बावजूद सभी दलिलों के गलत तो गलत ही है। उस व्यक्ति का गलत और भी दुखद हो जाता है जिसे हम अपना रहनुमा चुनते हैं।
जवाब देंहटाएंतिवारी जी में इतनी हिम्मत हो, तब न। :)
जवाब देंहटाएंनेता शामिल हैं...सो ये खबर बनी.......
जवाब देंहटाएंवरना बाप बेटे के झगड़े कौन सी नयी बात है...मुद्दा चाहे कुछ हो...
सादर
अनु
न जाने कितने खुलासे हवा में तैर रहे हैं अब..
जवाब देंहटाएंसच्चाई तो पहले भी सबको पता थी . अब सार्वजानिक तौर पर कानूनी मोहर लगाने से किसको क्या फायदा हुआ , यह समझ नहीं आ रहा . व्यक्तिगत मामले को जग हंसाई का माध्यम बना दिया है बेटे ने . तिवारी जी तो अब भी उनका परित्याग कर सकते हैं . हमें तो NDT से सहानुभूति है क्योंकि इस मामले में वे अकेले जिम्मेदार नहीं थे .
जवाब देंहटाएंलिंक में बताई गई बातें बहुत प्रभावशाली हैं .
जवाब देंहटाएंभेड़ चाल में शामिल होने से बचाती हैं .
Nuthing Doing Tiwari(NDT) ne ye kam bada uncha wala kia.
जवाब देंहटाएंसभी सम्बंधित पक्षों के साथ सहानुभूति|
जवाब देंहटाएंपहली बार पता चला एन डी टी की बदौलत और रोहित शेखर के अथक प्रयास से कि संतानें अस्पतालों के लेबर रूम में पैदा होती है और बाप अदालतों में .विज्ञान ने कितनी तरक्की कर ली! |वाह.
जवाब देंहटाएंउस लिंक को पढ़ने के बाद महसुस हुआ कि किसी भी बात पर सभी दृष्टिकोण चिंतन जरूरी है।
जवाब देंहटाएंबड़े लोगों की बातें इस छोटी सी खोपड़ी में नही घुसती है..उनलोगों का एक ही मंशा होता है कि सच को अंत-अंत तक दबाए रखो जबतक कि पूरे बेआबरू न हो जाओ..
जवाब देंहटाएंबड़े लोगों की बड़ी बड़ी बातें .... यह भेद खुलने से किसको क्या लाभ होगा ये बाप बेटे जाने .... विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि अब युधिष्ठिर का श्राप केवल स्त्रियॉं को ही नहीं झेलना है ... पुरुष भी नहीं छुपा सकते बहुत कुछ ।
जवाब देंहटाएं"...अगर एन डी टी को यह इल्म था कि रोहित उनका ही बेटा है तो उन्हें इसे स्वीकार कर लेना था -इससे उनका कद और ऊंचा उठता और उनकी नैतिकता और साहस की लोग बडाई करते" मैं भी यही कहती हूँ.
जवाब देंहटाएंजो लोग ये कहते हैं कि गलती तो माँ की भी थी, उनसे भी आंशिक तौर पर सहमत हूँ, लेकिन माँ की गलती होने के बावजूद माँ तो अपनी सन्तान के अपनी होने की बात से मुकर नहीं सकती और समस्या यही है. हमारे समाज में सन्तान को बाप के नाम से ही जाना जाता है. उसी का सरनेम बच्चों के नाम के साथ लगता है. ऐसे में किसी पुरुष को ये सोचना चाहिए कि उसके किसी स्त्री से सम्बन्ध के फलस्वरूप होने वाले बच्चे की जिम्मेदारी भी उसकी ही है. ये जानते हुए भी कि बच्चा उसका है, उससे बचने की कोशिश ये दिखाती है कि उस पुरुष को सिर्फ सम्बन्ध बनाने में रूचि थी, उसके परिणामों को भुगतने का सामर्थ्य नहीं था.
किरकिरी तो हुई ही. आदरणीय तिवारी जी कहलाने वाले के लिए "जी" का प्रयोग भी कहीं नहीं हो रहा है.
जवाब देंहटाएं@मुक्ति -चलिए किसी बात से सहमत तो हुईं आप -तिवारी जी में नैतिकता का यह आग्रह होना था !
जवाब देंहटाएंइस विषय पर चहुंओर बहस तो चल ही रही है, सबके अपने अपने ख्याल हैं.
जवाब देंहटाएंहम तो मेडिकल साईंस की तारीफ़ करते हैं कि उसने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया वर्ना इस तकनीक से पहले तो मां अपने बेटे को जिस व्यक्ति को उसका पिता बता देती थी वही अंतिम सत्य होता था. अब शायद समाज में इसके दूरगामी रिजल्ट दिखाई देंगे.
रामराम
आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है, भिक्षावृत्ति मजबूरी नहीं बन रहा है व्यवसाय - ब्लॉग बुलेटिन , के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसहमत
जवाब देंहटाएंbaaap bada na bhaiyaa...sab se bada rupaiyaa....
जवाब देंहटाएंसामयिक विषय पर अच्छी पोस्ट |सर आभार |
जवाब देंहटाएंतिवारी जी शुद्ध रूप से अपने समय के "विक्की डोनर" थे. उनके खुद के बच्चे नहीं हुए पर उन्होंने बहुतों की गोदें हरी की. भारतीय राजनीती की ही तरह उन्होंने समाज को भी समृद्ध किया. उन्हें प्रणाम.
जवाब देंहटाएं@ विचार शून्य साहब,
जवाब देंहटाएंअति सुंदर !
विचार शून्य :-)
जवाब देंहटाएंgalti beshak dono ki hai jise santaan ko bhugtana padta hai par antar ye hai ki maa ne pita ki tarah apni santaan ko asweekar nahin kiya....purush jyada gairjimmedar hote hai...
जवाब देंहटाएंतिवारी जी ने सार्वजनिक जीवन में कई राज्यों में सेवाएं दी हैं.सभी जगह उनके पथगामी हैं.
जवाब देंहटाएंतिवारी जी के अनुसार व्यक्तिगत जीवन को मीडिया तूल न दे..(या सभी पथगामियों के व्यक्तिगत जीवन का चिट्ठा उजागर करे.)
सिर्फ किसी एक को दोषमुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि संतान को दुनियां में लाने का फैसला दोनों का था .
जवाब देंहटाएंइसमें बच्चे की कोई गलती नहीं थी , इसलिए उसको पिता का नाम और अधिकार मिले , यह उचित है !
भाई साहब स्वीकृति और कन्फेशन ही जीवन के इस चरण में श्रेयस है दोनों परिवारों के लिए आपके कथन और उसके समर्थन में कही गई बातें एक दम से राजनीतिकों के सन्दर्भ में सही हैं ,मामलाये इश्क में फिसलन बहुत है कहीं न कहीं गलती सबसे होती है दूध का धुला कोई नहीं है .तिवारी जी की छवि अच्छी रही है .कहीं दाग न लग जाए .
जवाब देंहटाएं