सावन का महीना काफी धरम करम का होता है. बनारस में काफी भीड़ जुटती है श्रद्धालुओं की. इनकी एक और कैटिगरी पिछले एक दशक से आ जुड़ी है, कांवरिये. हर गली हर सड़क इन श्रद्धालुओं से लबरेज दिखती हैं. सावन के सभी सोमवारों पर बाबा भोले के दर्शन को लक्खी भीड़ (लाख से ऊपर) आ जुटती है मानो श्रद्धा का सैलाब उमड़ा आ रहा हो. अब इतनी भीड़, शहर की गड्ढों से भरी सड़कें और पतली गलियां. तिस पर बाबा भोले का एक अलग घनी आबादी और सकरी जगहं विराजमान होना. इंतजामिया विभाग के लिए बड़ी चुनौती. कैसे करे श्रद्धा के उमड़ते सैलाब को व्यवस्थित. लिहाजा बाबा भोले जो खुद विश्वनाथ हैं उनके इर्द गिर्द चप्पे चप्पे पर पुलिस और हर गली कूचे में एक मैजिस्ट्रेट की व्यवस्था ताकि खुदा न खास्ता कुछ अनहोनी हो तो उसकी पतली गर्दन नाप दी जाए :-). हम भी लगभग ऐसी ही एक जिम्मेदारी और घोर श्रम के काम में लगते हैं. एक रात के 11 बजे से शुरू हुई ड्यूटी दूसरे दिन शाम तक की हो जाती है क्योंकि श्रद्धा का सैलाब अर्धरात्रि से ही ऐसा शुरू होता है कि लगातार अहर्निश दूसरे दिन के शाम तक चलता रहता है. बिना रुके बिना थमे. किसी को भी बिना चार घंटे लाइन में लगे बाबा भोले का दर्शन मिलना शायद ही मयस्सर हो.
भला आप भी दर्शन से क्यों वंचित रहें
ये दर्शनार्थी इतना कष्ट उठाते हैं कि मत पूछिए. कलेजा दहलता है और मुंह को आता है. और सिर श्रद्धा के इस रूप को देखकर स्वतः झुक जाता है. खुद की मुश्किल भरी ड्यूटी का कष्ट जाता रहता है. खुले में वर्षा में भीगते हुए, घंटों खड़े हुए, सूजे हुए और झलकों से अटे पैरों के बावजूद भी चेहरों पर आशा और उत्फुल्लता की चमक...बोल बम के नारे...महादेव महादेव की रटन...एक अद्भुत दृश्य. जमीन पर दंडवत करता आता हुआ एक श्रद्धालु दूर से दिखा. पता लगा किसी दूसरे जिले से एक महीने पहले जमीन पर दंडवत करता ही चला आ रहा है. अब बाबा के दरवाजे आ पहुंचा है. कतार में नहीं है वह. मगर इस हठयोगी और बाबा के भक्त के लिए कतार की जरूरत ही कहां. मुझे कहने की जरूरत भी नहीं पड़ती. मुख्य वीवीआईपी द्वार का अवरोध उठा दिया जाता है. मंत्रमुग्ध द्वार प्रहरियों द्वारा. वह निर्विकार भीतर प्रवेश कर जाता है. अब वह बाबा का ख़ास भक्त है. उसे किसकी परमिशन लेनी है! मानो बाबा की प्रेरणा से दरवाजा खुल गया है. यह है श्रद्धा की विवेक और तर्क पर जीत. मैं भी किंकर्तव्यविमूढ़ देखता रहा यह लीला.
घंटों से कतार में लगे हैं दर्शनार्थी
इन दृश्यों को देखकर सारे तर्क और बुद्धि की चंचलता जड़वत हो जाती है. भले ही चप्पे चप्पे पर पुलिस और सुरक्षा का भारी तामझाम है मगर सच पूछिए तो श्रद्धालुओं की यह भीड़ स्वयं बड़ी अनुशासित दीखती है. उसे बस बाबा भोलेनाथ का दर्शन चाहिए और किसी बात से उन्हें कोई मतलब नहीं है. वे एकाग्र होकर बस उसी पल की प्रतीक्षा में अपना नंबर लगाये रहते हैं. कतार में उन्हें घंटे दो घंटे चौबीस घंटे बीत जाएं कोई फरक नहीं है. मगर इतनी बड़ी भीड़ को नियमित करना सचमुच एक बड़ी समस्या है. प्रशासन के लिए नाकों चने चबाने का मौका है यह. पंजों पर खड़े रहने का वक्त. हम सब कुर्सी तोड़ मुलाजिम इतनी कठिन ड्यूटी के अभ्यस्त नहीं हैं तो दूसरे दिन तक पांव दुखते हैं. शरीर पोर पोर दुखता है और तापे पुरवईया भी पीर बढ़ाती चलती है. अब अगले सोमवार तक यह पीर बनी रहेगी जब तक दूसरी न घेर ले. यह सिलसिला इस महीने तक चलेगा. मगर यह कष्ट तो श्रद्धालुओं के कष्ट के सामने कुछ भी नहीं है..
नन्हा कांवरिया बड़ा सा डमरू -बोले डम डम
अब अगले सोमवार का इंतज़ार है...
आप बड़े भाग्यशाली हैं जो बाबा की नगरी में रहते हैं.यह और भाग्य की बात है कि जो सबकी पहरेदारी करते हैं,आप उनकी करते हैं.वहाँ इंतजाम देखना दर्शनार्थी से कहीं अधिक श्रम और पुण्य का काम है.इस नाते आप सौभाग्यशाली हैं.
जवाब देंहटाएं..अगले सोमवार को बाबा के दरबार में मेरी भी अर्जी लगा देना,याद करके !
जय बाबा भोलेनाथ की -
जवाब देंहटाएंकुर्सी-तोड़ मुलाजिमी, नत मस्तक हो जाय |
श्रद्धा का सैलाब जो, हर हर बम बम आय |
हर हर बम बम आय, विवेकी तर्क हारता |
अनुशासन में भक्त, पुष्प जल-दुग्ध ढारता |
हठयोगी भी मस्त, हुवे हैं धूल धूसरित |
बाबा का आशीष, प्रसन्न हैं चकित थकित ||
ऊपर भोलेनाथ, नीचे नन्हाँ कांवरिया
जवाब देंहटाएंभक्तों की भीड़, हुई कितनी बावरिया!
जय हो बाबा धाम की।
कहानी कठिन काम की।
@संतोष जी,
जवाब देंहटाएंआईये सीधे बाबा के यहाँ हाजिरी लगवा देता हूँ,द्वारपाल यह तो कर ही सकता है !
एक महीने से दंडवत करते आ रहे भक्त को दर्शन सुलभ कराया जाना तो उचित ही कहा जाएगा ! पुण्य तो आपने भी लूट लिया बन्दों को घर बैठे दर्शन करवा कर :)
जवाब देंहटाएंगुरूजी,न्योतने के लिए आभार...देखिये कब बाबा बुलाते हैं !
जवाब देंहटाएंश्रद्धा तो ठीक है नास्तिक हम भी नहीं.पर पूरा महिना ये भीड़, कावड़ियों के वजह से सड़कें जाम,पता नहीं यह सब ठीक नहीं लगता मुझे.
जवाब देंहटाएंड्यूटी भी पुण्यार्जन भी, सोने पे सुहागा| ऐसी सख्त ड्यूटी करते समय श्रद्धालुओं का अनुशासित व्यवहार निस्संदेह मन मोह लेता होगा|
जवाब देंहटाएंये 'पीर' अच्छी है, जैसे कुछ दाग अच्छे होते हैं|
पुण्य ही पुण्य है आपके तो इर्द गिर्द ..बम बम भोले हर वक़्त गूंजता रहता होगा ..:)
जवाब देंहटाएंइसका एक दूसरा रूप भी है --- सारे रास्ते जाम हो जाते हैं . बोर्डर सील हो जाते हैं . कुछ कंवाडिया मोटर साइकल्स पर बैठकर गुंडागर्दी करते फिरते हैं . दुर्घटना में हर साल कई मर जाते हैं . फिर तोड़ फोड़ में लाखों का माल फूंक दिया जाता है .
जवाब देंहटाएंश्रद्धा तो ठीक है लेकिन इस श्रद्धा से कितनों का भला हुआ है , यह एक सवाल है . देश में गरीबों की संख्या तो बढती ही जा रही है . धनवान कभी कांवड़ नहीं लाते . क्या इसमें भी कोई राजनीति है ?
बाबा के दर्शनों के लिए आभार आपका भाई जी !
जवाब देंहटाएंएक लोटा जल चढ़ा दीजियेगा. ब्लॉगर परिवार की तरफ से भी. बाबा शांति बनाएं रखें. वैसे उसके लिए तो रुद्राभिषेक लगेगा. एक लोटा में मुश्किल है :)
जवाब देंहटाएंबाबा को नमन ...हमने भी दर्शन कर लिए, आभार
जवाब देंहटाएंदो बार यहां हमने भी कई घंटो लाईन में लग कर बाबा के दर्शन किए तथा शाम का भांग का प्रसाद जीवन भर याद रहेगा। दूसरे दिन हमारी सारनाथ जाने वाली ट्रेन ही छूट गयी थी। रात भर खटिया गोल-गोल घुमते रही……… जय भोले भंडारी की।
जवाब देंहटाएंमेरे मन मे भी अभिषेक ओझा वाली ही बात आई...आप इतना तो कर ही सकते है...और हाँ बिना लाईन लगाए दर्शन करवाने के लिए आभार ..
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव!
जवाब देंहटाएंआपने शब्दों के माध्यम से जो श्रद्धा और भक्ति के सैलाब का दृश्य खींचा है, अभिभूत हूँ, ऐसे ही उज्जैन में भी बाबा महाकाल की सवारी सावन और भादो के सोमवार को निकलती है और यकीन मानिये सवारी मार्ग पर पैर रखने की जगह नहीं रहती ।
जवाब देंहटाएंजय-जय भोले नाथ
जवाब देंहटाएंजय-जय भोले नाथ
जवाब देंहटाएं@मित्रों,
जवाब देंहटाएंआप सभी की ओर से जलाभिषेक पक्का ....आप में से कोई आना चाहे तो उसका स्वागत भी है!
श्रद्धा के इस सैलाब के सामने तर्क वितर्क ने घुटने टेक दिए हैं .मगर डॉ. दराल और शिखा जी की बात से सहमत हूँ कि श्रद्धा के इस ज्वार से नागरिक समस्याएं बढ़ती जा रही है जो इंतजामिया के लिए एक बड़ी चुनौती है .....जब सोमवार बीतता है तो हम भी राहत की बड़ी सांस लेते हैं !
मुझे बनारस का एक सबेरा याद आता है, जब जल्दी नींद खुल जाने के कारण दशाश्वमेध घाट की ओर जाने लगा, उधर से ऐसा जन-सैलाब लौट रहा था मानों कुछ घटित हुआ हो, लेकिन पता लगा कि यह तो रोजमर्रा है और फिर सावन हो तो क्या कहने.
जवाब देंहटाएंOm Namah Shivay.
जवाब देंहटाएंइस सोमवार दर्शन रह गया शिव का ...आपकी पोस्ट के मध्यम से बाबा विश्वनाथ- दर्शन के लिए आभार .
जवाब देंहटाएंसर, आज तो आप ने भोले शंकर का यहीं दर्शन करवा दिया.॥.॥धन्यवाद सर॥......भक्तो की श्रद्धा को नमन...
जवाब देंहटाएंमेरी कब से ईच्छा है की सावन के महीने में बनारस घुमा जाए लेकिन जैसा शिखा दी ने कहा, कावड़ियों के वजह से जो जाम लगता है उससे मैं भी बहुत इरिटेट सा हो जाता हूँ...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग के माध्यम से ही दर्शन कर लिया हमने । इस पोस्ट के लिए धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंएक कावण लेके सैंकड़ों मील चलना एक योग तो है ही अनोखा करतब भी है जो पूरा सावन चलता है अफ़सोस है कई कावण धारी कावण खोर बन गएँ हैं,टल्ली हुए रहतें हैं . तमाम रास्ता इनकी सेवा होती है हरिद्वार में भी प्रसाशन के छक्के क्या अठ्ठे छूट जातें हैं पूरा ट्रेफिक री -रूट करना पड़ता है हमने यह नजारा बारह उत्तरा खंड बनने से पूर्व भी देखा है ,हरिद्वार में होता कावण दंगल भी .लेकिन श्रृद्धा का भी ज़वाब नहीं .गडबड तो सारी व्यवस्था में ही है फिर सिर्फ श्रृद्धालुओं को क्यों दोष दिया जाए प्रदूषक सब जगह घुस आते हैं .
जवाब देंहटाएंजय भोले बाबा की....
जवाब देंहटाएंशिवोहम शिवोहम सच्चिदानान्दोहम ...
जवाब देंहटाएंकाँवड़ लेने चल पड़े, भक्त, शम्भु के द्वार।
जवाब देंहटाएंबम-भोले के नाम की, होती जय-जयकार।।
बनारस के भोलेनाथ के दर्शन आपने घर बैठे करवा दिये ... आपका लेख पढ़कर लगता है की मुझे जल्द बनारस की यात्रा भी करना पड़ेगी ... बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंआप बहुत भाग्यशाली हैं जो आपको काशीविश्वनाथ की पूजा करने का सौभाग्य मिलता हैं ...
जवाब देंहटाएंमुझे तो बस एक बार उनके सामने वीणा बजाना हैं वही मेरी पूजा होगी ...
VIP भक्तो ने पिछले जन्म में बड़े पुण्य किये हैं इसलिए उन्हें बाबा चट से दर्शन देते हैं ...हम जैसे उनके दर्शनों की आस में सालो बिता देते हैं कभी कभी जीवन बिता देते हैं ..
इस पोस्ट और बाबा के दर्शन करवाने के लिए आभार
वीणा साधिका
आप बहुत भाग्यशाली हैं जो आपको काशीविश्वनाथ की पूजा करने का सौभाग्य मिलता हैं ...
जवाब देंहटाएंमुझे तो बस एक बार उनके सामने वीणा बजाना हैं वही मेरी पूजा होगी ...
VIP भक्तो ने पिछले जन्म में बड़े पुण्य किये हैं इसलिए उन्हें बाबा चट से दर्शन देते हैं ...हम जैसे उनके दर्शनों की आस में सालो बिता देते हैं कभी कभी जीवन बिता देते हैं ..
इस पोस्ट और बाबा के दर्शन करवाने के लिए आभार
वीणा साधिका
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जवाब देंहटाएंइतै दिन मन साधि रहौं साधु निहचय करि ,
फिर तो गृहस्थ हूँ जगत को निभाइहौं ,
व्रत को सत-भाव आसुतोस को प्रभाव
धारि मानस की वृत्तिन को निरमल बनाइहौं
माई , आनन्द-नीर मानस पखारन को
पाप-ताप-साप हू नसाये, रे कँवरिया !
*
इन आयोजनों की व्यवस्था वृहद होती है, एक एक बात ध्यान में रखना पड़ता है। छोटी सी गलती मँहगी पड़ जाती है।
जवाब देंहटाएंवाकई बाबा के भक्तों की भक्ति तर्क और बुद्धि से परे है...
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