आज गुरु पूर्णिमा है। गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक सुअवसर। मानस अवगाहन के वक्त मुझे संत कवि तुलसी द्वारा की गयी गुरु वंदना बहुत प्रभावित करती है। आइये आज आप भी मेरे साथ इस अनुपम भाव बोध से जुड़िये।
बंदऊं गुरु पद पदुम परागा सुरुचि सुवास सरस अनुरागा
अमिय मूरिमय चूरन चारू शमन सकल भव रुज परिवारू
तुलसी मानस की चौपाइयों की शुरुआत ही गुरु की वंदना से करते हैं। गुरु के प्रति उनके असीम समर्पण भाव को इन पंक्तियों में देखा जा सकता है - वे गुरु के कमलवत चरणों में नत हैं और उनसे निकलने वाले पराग की सुगंध सहज ही मन में अनुराग उत्पन्न करती है - मतलब यहां चरण धूलि की तुलना सुवासित पराग से की गयी है और इसी पग धूलि को ही तमाम रोगों के निवारण के लिए अमृत-चूर्ण कहा गया है। गुरु के प्रति तुलसी का यह समर्पण सम्मान भाव इस महाकवि के प्रति श्रद्धा से भर देता है!
वह आगे कहते हैं –
सुकृति शम्भु तन विमल विभूति मंजुल मंगल मोद प्रसूति
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी किये तिलक गुण गन बस करनी
अर्थात् वही गुरु पद रज शिव जी के शरीर पर लिपटी विभूति के समान है जो सुन्दर, कल्याणकारी और आनन्द देने वाली है और अपने भक्त के मन रूपी दर्पण पर आयी मलिनता को दूर करती है तथा इससे तिलक कर लेने पर वह गुणों के समूह को वश में करने वाली है। तुलसी गुरु चरण वंदना में भाव विभोर होकर कहते हैं कि उनके चरण नख मणियों के वे प्रकाश पुंज हैं जिनका स्मरण मात्र ही ह्रदय में ज्ञान का प्रकाश ला देता है। मन के मोह जनित अंधकार को दूर करने वाल है। मगर यह ज्ञान की ज्योति गुरु की कृपा से ही भाग्यशालियों को प्राप्य है।
श्रीगुर पद नख मनिगन ज्योती सुमिरत दिव्य दृष्टि हियँ होती
दलन मोह तम सो सप्रकासू बड़े भाग उर आवई जासू
वह आगे कहते हैं -
उघरहिं विमल बिलोचन ही के मिटहिं दोष दुःख भव रजनी के
अर्थात मणि सरीखे गुरु पद नखों की ज्योति के हृदय को आलोकित करते ही ज्ञान के चक्षु खुल जाते हैं और मोहमाया और संसारिकता रूपी रात्रि के कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। गुरु के प्रति अपने इसी श्रद्धा-समर्पण और उनकी अक्षुण कृपा के आह्वान के साथ ही तुलसी राम चरित मानस का प्रारम्भ करते हैं -
गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन नयन अमिय दृग दोष विभंजन
तेहिं कर बिमल बिबेक बिलोचन बरनऊँ राम चरित भव मोचन
अर्थात गुरु के पद रज के अंजन से नेत्रों के सभी विकारों को दूर करते हुए अपने निर्मल हुए विवेक रूपी नेत्रों से राम चरित का अवलोकन करके संसार रूपी बंधन से मुक्ति देने वाली रामकथा का वर्णन करता हूं।
आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर संत कवि की गुरु के प्रति असीम समर्पण के प्रसंग का उल्लेख मुझे समीचीन लगा सो आपसे साझा किया...आप सभी को गुरु पूर्णिमा की बहुत शुभकामनाएं!
'' मौनी करे म्यंत्र की आस |
जवाब देंहटाएंबिन गुर गुदरी नहीं बेसास || ''
गुरू ही सत्य बन हमारे अन्दर जीते हैं...
गुरु बिना ज्ञान कहाँ ..अच्छा लगा आज के अवसर पर यह लिखा हुआ ..
जवाब देंहटाएंआज के दिन के लिए सार्थक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंगुरु बिन कैसे गुन गावें...
जवाब देंहटाएंगुरु ना माने तो गुन नहीं आवे ...!!
गुरु ही ज्ञान मार्ग का अवरोध हटाते हैं ...!!
उत्कृष्ट प्रस्तुति ...
आभार .
श्रेष्ठ गुरु उत्तम गुणों का विकास करता है ....
जवाब देंहटाएंआजकल ऐसे गुरु दुर्लभ है !
गुरु पूर्णिमा की बहुत शुभकामनायें !
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआपको बहुत बहुत शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबिन गुरु ज्ञान कहाँ ते पाऊँ ....इसीलिए गुरु को गोबिंद से आगे रखा गया है .
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबंदऊं गुरु पद पदुम परागा
जवाब देंहटाएंसुरुचि सुवास सरस अनुरागा
आज के समय में गुरु चरण भी दुर्लभ हैं अरविन्द भाई !
गुरुर्ब्रह्मा,गुरुर्विष्णु, गुरूदेव महेश्वराः
जवाब देंहटाएंगुरू साक्षात परब्रह्म तस्मये श्री गुरवे नमः ।
गुरुपूर्णिमा के शुभ अवसर पर इस सुंदर लेख को पढ कर मन अभिभूत हो गया ।
बहुत अच्छी बातें। श्रद्धा बढ़ गयी मन में गुरुओं के प्रति।
जवाब देंहटाएंरामचरितमानस में कौन सा विषय नहीं है यह बता पाना मुश्किल है। आप मानस के साधक है यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। साधुवाद।
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जवाब देंहटाएंसादर वंदन , श्री गुरवे नमः
जवाब देंहटाएंसार्थक के लिए आभार आपका ....
सच कहा है,मुझे जब भी गुरु को याद करना हो तो ये पंक्तियाँ गुनगुना लेता हूँ.इनमें दिल के सम्पूर्ण भाव और गुरु के प्रति आदर समाहित है.
जवाब देंहटाएं...हम अपने गुरु के प्रति कृतज्ञ हैं !
बहुत सुन्दर ..
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सब ठीक है पर अपने को एक बात समझ नहीं आई कि तुलसी केवल गुरू के चरणों, चरणों से निकलने वाली सुगंध, चरण धूलि, चरण-नख-मणियों, गुरू पद रज अंजन आदि आदि पर ही क्यों फोकस करते हैं... भाई बिना लायक चेलों के तो कोई गुरू कहलाने का हकदार भी नहीं, तो फिर यह चरणों में लोटने, उन्हीं में सुगंध पाने व चरणों की मिट्टी को काजल-सूरमे सा आँखों में बसाने की अतिशयोक्ति क्यों... इन्हीं बातों के सहारे आज के बाबा-गुरू भी धंधा जमाये हैं...
गुरू हो या कोई सुपिरियर ही, क्या उसके चरणों में लोटना हम सबकी कुछ उसी तरह की चारित्रिक मजबूरी है जिस तरह जमीन पर लोटना गधे की ?
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अवसरानुकूल प्रसंग
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
aapka aabhaar |
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सहज उद्धरण, गुरु के ऊपर...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट .... आभार इसे साझा करने के लिए
जवाब देंहटाएंआपको भी शुभकामनायें .
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