कविता की अपनी एक कशमकश भरी सृजन प्रक्रिया है ..किसी प्रसव वेदना से कम नहीं ..
जब तक वह भीतर हो एक बेचैनी सी बनी रहती है ...मगर बाहर आते ही एक गहन संतोष भाव उमड़ता है -यह कविता जो परसों अंकुरित हुई,फेसबुक पर अवतरित हो अब आपके सामने है ....ब्लॉग जगत में इतनी अच्छी अच्छी कवितायें लिखी जा रही हैं .फिर ऐसी अनगढ़ कविता पोस्ट करना? आखिर बेशर्मी भी कोई चीज है! कविता पारखी जनों से क्षमा याचना सहित!
अब सावन से आस है!
आषाढ़ रीत गया
सावन से आस है ...
जीवन घट सूना सा
न मीत कोई पास है
न छाई है बदरी,
बेगानी उजास है
घटा कोई घिर आये
एक यही आस है!
अकेला यह सफ़र
औ' विछोह के दंश हैं
मृगतृष्णायें राह की
प्यास हुई अनंत है
कोई तो योग हो
मन का संयोग हो
मजिल मिले ना मिले
बस मनचाहा साथ हो
टूटती है आस अब
घुटती है साँस अब
मिलना हो उनका
तो आख़िरी पड़ाव हो
जरा जम के बरसो...
जवाब देंहटाएंलो जी आ गया सावन,
जवाब देंहटाएंभाई अब काहे उदास है ! :)
सच्ची कविता वही है जो अंतर्मन से निकलती है,प्रसव-वेदना बनकर फूटती है.इस लिहाज़ से यह सम्पूर्ण कविता है.भाव गहरे हैं ऐसे में आपको इसे कविता मानने में संकोच कैसा ?
जवाब देंहटाएं...अनुकूल मौसम आने पर हमारा दर्द भी सहजता से बाहर आ जाता है.सावन का आना इसलिए सुखद भी है.
विछोह की छटपटाहट फिर भी आस है ,मंजिल अब पास रे ,
जवाब देंहटाएंचलते ही रहना तू राही होना मत उदास रे ...
भाव बोध को बांधे आगे बढती है रचना .
मुझसे मिलना फिर आपका मिलना ,आप किसको नसीब होतें हैं .
@ अकेला यह सफ़र
जवाब देंहटाएंऔ'विछोह के दंश हैं
समाज शास्त्री प्रोफ़ेसर अली की मदद चाहिए यहाँ ....
आया सावन ..अब बरसेंगे बदरा भी और नैन भी.
जवाब देंहटाएंकविता जैसे लग तो रही है. एक पाकिस्तानी गाने से लिया गया अंश. "जब आ जाएँ तो तू जम के बरस और इतना बरस की वो जा न सकें".
जवाब देंहटाएंअसाढ़ ने सुंदर कविता दी, सावन आपकी सारी मुराद पूरी करे। ...बधाई।
जवाब देंहटाएंजब योग भी है , संयोग भी है सावन से आस है फिर मन क्यों उदास है ?
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
सुंदर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंसावन ने बरसात की शुरुआत तो कर दी ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया है !
बहुत बहुत सुन्दर कविता.....और ये आप भी जानते हैं :-)
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
सावन ने आस नहीं तोडी.
जवाब देंहटाएंये तो फिर भी बड़ी खूबसूरत सी कविता है, मुझसे पूछिए, क्या जबरदस्त और बोरिंग किस्म की घटिया कवितायेँ कभी पोस्ट किया करता था :) :)
जवाब देंहटाएंसावन है ही ऐसा महीना, सृजन के लिए मजबूर कर देता है, अच्छी और सच्ची अभिव्यक्ति के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंकिसी प्रसव वेदना पर अनंत गुणा भारी पड़ता है भाव-वेदना..जो समष्टि तक विस्तारित होकर गहरी रेखा खींच देता है..ये रचना उसी का प्रमाण है..
जवाब देंहटाएंसावन आया रे, अगन बुझाओ..जीभर के..
जवाब देंहटाएंसच्ची और सहज सरल कविता वही है जो मन को छुए और सच भी हो जाए .. जैसे की आपने याचना की और सावन भी प्रगट हो गया तुरंत ...
जवाब देंहटाएंपूछना सिर्फ इतना है कि ये सब क्यों ? और किसके लिए ?
जवाब देंहटाएंआ ही गया सावन ..:)बहुत सुन्दर लिखी है आपने यह पंक्तियाँ ...
जवाब देंहटाएंbeautiful :)
जवाब देंहटाएंअली सा के प्रश्न का जवाब दिया जाय। कविता पढ़ने के बाद यही प्रश्न मेरे मन भी हिलोरें ले रहा है।
जवाब देंहटाएंमंजिल न मिले, मनचाहा साथ हो .. . . . mukaam हो .. . . . . . दिल को छू लेने वालिपंक्तिया है जी. नमन जी
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