शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

मदमत्त हो रहा सावन

मदमत्त हो रहा सावन 

खुशबू खुशबू दिन हैं 
महकी महकी रातें
अलसाई सी सुबहें
औ बहकी बहकी बातें 
सुनहली हुई  दोपहरी
रुपहली घिरती शाम 
नित बरसा की फुहारें 
होठों पे उनका नाम 
मन मयूर का  नर्तन 
दहगल का शुभ गान 
मदमत्त हो रहा सावन 
छेड़ी अनंग ने तान 


24 टिप्‍पणियां:

  1. मदमत्त हो रहा सावन
    छेड़ी अनंग ने तान

    क्या खूब ! ... अतीव सुंदर

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  2. लगता है सावन ने आपको दबोच लिया है.बिलकुल मस्ताई अंदाज़ !

    ...यह दहगल किसका नाम है ?

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  3. @दहगल का फोटू लगा दिया है -जीवन में चेले ने अगर दहगल का गान नहीं सुना तो चेल्हयाई खारिज :-)
    पहले जाओ सुन आओ दिल्ली के किसी बागीचे में अल्लसुबह -बाग़ का पता डॉ. दराल से पूछ लो :-)

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  4. भई,यही सब जानने-समझने के लिए तो गुरु बनाया है,ऐसे कैसे बिना नोटिस दिए चेल्हाई खारिज कर सकते हैं...?

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  5. @ संतोष त्रिवेदी ,

    तेरी खुशबु दिन भर छाये, महक उठीं हैं रातें
    अलसाई सी सुबह सुनाये,रात की बहकी बातें !
    रात गयी पर याद ना जाए,कैसे उन्हें बुलाएं
    बैरन बरसा याद दिलाए, नाम न बोला जाए !

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  6. गूंज रही बूंदों की
    झरर-झरर कान में
    अंग-अंग गीला सा
    बरसता सावन प्राण में..

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  7. वाह सावनमई मदमस्त करती रचना ...
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
    शुभकामनायें...

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  8. ओह ! यह तो किसी नवयौवना के दिल की बात कह दी . :)

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  9. खुश्बू और महक के बीच अलसायापन और बहकी बहकी बातें !
    सुनहली और रुपहली के बीच की फुहारों संग उसका नाम !
    नर्तन और गान के दरम्यान मदमत्त सावन संग उन्मत्त अनंग :)

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  10. आपने कविता लिखनी शुरू कर दी (प्री मानसून वाला भी एक था) इसका मतलब ही है, सावन सर चढ़ गया है. वैसे सुन्दर ही लगी आपकी रचना.

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  11. बहुत बढ़िया सुन्दर सरस कविता!

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  12. सावन में सावन सी खूबसूरत रचना.

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  13. शरमाई सी हंसी हो ,और साथ तुम्हारा ,
    कोयल ने छेड़ी हो तान ,
    विरही बादल गाए गान .
    बढिया रूमानी रचना वर्षा बावरी का मानवीकरण .
    भाई साहब साइंस ब्लॉग खुल नहीं रहा है इस लिए रचनाए भी पोस्ट नहीं कर पा रहें हैं .कुछ कीजिएगा ,डॉ जाकिर को कहिएगा .प्रणाम केंटन के .कल तीन दिन के लिए लासवेगास(नेवादा राज्य ) की और कूच है .ट्रेवर सिटी मिशिगन और शिकागो (इलिनाय राज्य ) भ्रमण के बाद . आपकी याद के साथ वीरू भाई .

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  14. बहुत प्यारी कविता....
    सुन्दर..कोमल....भीगी सी..
    सादर
    अनु

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  15. पक्षी की मोहक मुद्रा ने कविता के प्रमद-भाव को जीवन्त कर दिया !

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  16. सावन का आना और कविताई के बीज फूटना दोनों ही अच्छा है ...

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  17. शब्दों ने सावन सा आनन्द दिया है...बहुत ही सुन्दर कविता..

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  18. बाप रे! आप तो कवियों की बिरादरी में आ गये!!

    मन मयूर का नर्तन
    दहगल का शुभ गान
    मदमत्त हो रहा सावन
    छेड़ी अनंग ने तान।
    ..वाह!

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  19. सावन ने दिन का हर पहर मस्त कर दिया ... सावन तो नहीं आप मदमत्त हो रहे हैं अरविन्द जी .. और होना भी चाहिए ...

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  20. वाह, पक्षी तो यहाँ भी मस्त होकर गान कर रहे हैं!

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