बनारस काशी या वाराणसी नाम अलग भले हैं , स्थान एक और महात्म्य भी एक -भवसागर से मुक्ति की गारंटी! काशी के अनेक रंग हैं मगर मुक्तिदायिनी काशी का ही बोलबाला है -कहते हैं काश्याम मरणात मुक्तिः जो काशी में जीवन त्याग करता है वह मुक्त हो जाता है ....और काशी का यह रंग विगत एक दशक से मुझे अपनी ओर शनैः शनैः और भी आकर्षित करता रहा है .....मतलब जीवन की नश्वरता का भान उत्तरोत्तर और गुरुतर होता रहा है ....इन दस सालों में कितने ही स्वजनों परिजनों को मैंने यहाँ अंतिम विदाई दी है .....मणिकर्णिका घाट पर उनकी जलती चिता को सलामी दी है ..याद पड़ता है वर्ष १९९९ में जब पिता जी को यहाँ मुखाग्नि दी थी और जलते हुए अनेक शवों को सामने देखा था तो जीवन से मानो वैराग्य हो उठा था....मगर आश्चर्य है कि फिर जगत गति में लीन हो गया ...और वही वैराग्य फिर फिर जोर मारने लगता है जब किसी स्वजन की अंतिम यात्रा में भाग लेता हूँ और उनके अंतिम संस्कार में शरीक होने मणिकर्णिका पहुँचता हूँ ....युधिष्ठिर से एक यक्ष प्रश्न यह भी पूछा गया था कि सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है तो युधिष्ठिर का जवाब था कि लोग शव यात्रा में भाग लेते हैं ..उस वक्त यही अहसास करते हैं कि एक दिन यहीं परिणति मेरी भी होनी है मगर दूसरे ही दिन से फिर से दुनियादारी में लीन हो जाते हैं ...
कल सुबह ही पैतृक घर से माँ का फोन आ गया था कि फूफा जी(पिता जी की बहन के पति ) नहीं रहे ...फ़ूआ चार वर्ष पहले दिवंगत हुईं थी और गंगा के मणिकर्णिका घाट पर उनके भी दाह संस्कार में मैं शामिल था ...और अब फूफा भी ..दोनों की असमय मृत्यु ...फ़ूआ अपेंडिक्स -सेप्टिसीमिया और अब फूफा हार्ट फेल हो जाने से .असमय ही चल बसे .....उनकी अंतिम यात्रा की प्रतीक्षा दिन भर करता रहा ..शाम को ६ बजे शव यात्रा बनारस पहुँची ....दाह संस्कार की लम्बी प्रक्रिया में रात्रि के पांच घंटे वहीं मणिकर्णिका पर बीते ....गंगा का मणिकर्णिका घाट विदेशी पर्यटकों के बीच बर्निंग घाट के रूप में प्रसिद्ध है क्योंकि वहां चौबीसों पहर अनवरत ,लाशें जलती रहती हैं .कहते हैं कि यहाँ की अग्नि विगत तीन हजार वर्षों से बुझी ही नहीं ...वहां का अग्नि कुंड लाशों की अग्नि से प्रज्वलित होता रहा है ..और वहीं से अग्नि निरंतर आ रही लाशों को भस्म करती रही है ...चिरतन ज्वाला है यह ,शाश्वत अग्नि !.......मणिकर्णिका का नामकरण कहते हैं तब पड़ा जब अग्नि कुंड में जली सती के मृत शरीर को लेकर घूमते विदग्ध शिव यहाँ भी पहुंचे और सती का कर्ण फूल यहाँ गिरा ....यहीं पर गंगा से पृथक किन्तु घाट से ही लगा एक आदि तीर्थ कुंड -चक्र पुष्करिणी है .जहाँ स्नान से सीधे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो उठता है मगर विधि की विडंबना देखिये अब इसमें पानी की एक बूँद भी नहीं है .....मरणं मंगलम यत्र सफलं यत्र जीवनं .......... यत्र सैसा श्री मणिकर्णिका ....जहां मरना मंगलमय है और जीवन सफल वही मणिकर्णिका है ..ऐसा स्कन्द पुराण काशी खंड में वर्णित है .
फूफा जी के अब सहसा ही अनाथ हो गए दो पुत्र हैं ..बड़े २८ वर्षीय राघवेन्द्र शुक्ल और दूसरे कानपुर कृषि विद्यालय में पी एच डी कर रहे पंकज .....दिल्ली से राघवेन्द्र को आने में थोडा विलम्ब होने से अर्थी बनारस देर से पहुँची ..किन्तु विधान के अनुसार २४ घंटे के भीतर ही ....हमारे यहाँ मान्यता है कि पिता को मुखाग्नि ज्येष्ठ पुत्र जो शादी शुदा हो और जिसका यज्ञोपवीत हो गया हो (मतलब जनेऊ धारण करता हो ) वही करता है ....मगर पुरनियों ने विचार विमर्श कर कतिपय कारणों से छोटे पुत्र पंकज को मुखाग्नि देने को आदेशित किया और झटपट उनको जनेऊ धारण कराया गया ...उनका मुंडन -केश प्रक्षालन हुआ .....चिता सजाई गयी ....चन्दन और घी से उपचारित करने के बाद अग्नि कुंड से सरपत /नरकटों के बीच अग्नि स्फुलिंग लाकर दिया गया ..जिससे पांच बार परिक्रमा कर मुखाग्नि दे दी गयी ...सामान्यतः शव का पूर्ण दाह ढाई से तीन घंटे में होता है .....और तीन साढ़े तीन कुंटल लकडियाँ इस्तेमाल होती हैं .....जब तक शव का पूरा दाह नहीं हो गया ..हम सब वहीं शोकाकुल बैठे रहे ...शव दाह के उपरान्त जल कलश से कर्मकांड कर उसे पंकज ने पीछे की ओर गिरा कर फोड़ दिया ......दाह संस्कार पूरा हुआ ...
अब बारी थी गंगा स्नान की ..पंकज और कई और लोगों ने रात्रि के ११ डिग्री तापमान पर नंगे बदन वहीं बगल सिंधिया घाट पर स्नान किया .और हम जैसे विधर्मियों ने बस गंगा जल का छिडकाव कर अपना शुद्धिकरण किया ... कठिन कष्टप्रद कर्मकांड की प्रक्रिया पूरी करके सब लोग रात्रि ११ बजे जौनपुर रवाना हो गए ..अभी तो अंतिम संस्कार के कई चरण पूरे होने हैं जिसका तेरहवें दिन ब्रह्म भोज से, जो पुरातनकाल में निश्चित ही ब्रह्म गोष्ठी रही होगी ....से समापन होगा ....मुझे पंकज को देखकर बार बार रुलायी आ जा रही थी जिस बिचारे पर अभी ही इतना बड़ा बोझ आ पड़ा है ...
बर्निंग घाट मणिकर्णिका : यात्रा का आखिरी पड़ाव
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कल से ही मन खिन्न है .....वैराग्य भाव प्रबल हो उठा है ....अपनी भी काशी में ही अंतिम संस्कार की नियति तो सुनिश्चित है ...कब होगी नहीं पता मगर यहीं होगी देर सबेर ...वंश परम्परा अपना कर्तव्य निभाए बिना तो मानेगी. नहीं ..और मैं बेबस हूँ ..कुछ कर नहीं सकता ..इतनी चिरन्तन परम्परा से विद्रोह करना अपने बूते में नहीं ....
अपनों के देहावसान का दुःख तो होता है परन्तु होना नहीं चाहिए.........क्योंकि अनादिकाल से कहा जाता रहा है कि जो जन्मा है उसे एक दिन मरना ही पड़ेगा ..........तो जो होना है और अटल है ..उसके लिए शोक कैसा ?
जवाब देंहटाएंबहरहाल आपके दर्द में हम भी शामिल हैं
प्रभु दिवंगत आत्मा को परमशान्ति प्रदान करें.
दिवंगत आत्मा को परमपिता शांति प्रदान करे और परिजनों को इस दुःख को सहन करने की शक्ति दे!!
जवाब देंहटाएंओम! शांति, शांति, शांति!
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इतनी लकड़ियां जलते देख लगता है कि विद्युत शवदाह के पक्ष में जनजागरण करना चाहिये।
कहा ही जाता है श्मशान वैराग्य.
जवाब देंहटाएंदिवंगत आत्मा को परमपिता अपने चरणों में जगह दे..
जवाब देंहटाएंकाश्याम मरणात मुक्तिः
आपके दर्द में हम भी शामिल हैं दिवंगत आत्मा को परमपिता शांति प्रदान करे
जवाब देंहटाएंमरघट में कुछ नष्ट नहीं होता , मुक्त होता है.
जवाब देंहटाएंपञ्च तत्त्वों को विदा तो घर से शमशान के बीच पांच पिंडों का दान कर किया जा चुका होता है, आत्मा उनसे भी पहले विदा ले चुकी होती है... बची रहती है-- मिट्टी, जिसे अग्नि के हवाले कर मुक्त किया जाता है.
एक बार राजघाट से अस्सी घाट तक नौका-यात्रा की थी मार्च के महीने में. हरिश्चंद्र घाट पर जलती चिता से उठती आग का रंग पीलापन लिए था और दूसरी तरफ गंगा की रेती के पार खेतों में फूली सरसों का रंग भी पीला था!!! जीवन और मृत्यु पर बहुत देर सोचता रहा था.
कैसा कैसा सा जी हो गया .
जवाब देंहटाएं.प्रभु दिवंगत आत्मा को परमशान्ति प्रदान करें.
अपार शोक .....
जवाब देंहटाएंहमारे यहा भी कुछ लोग गंगा तट पर शवदाह करने ले जाते है . और वहा परम्परा सी हो गै शव दाह के बाद वही पर भोजन करने की
दिवंगत के परिजनों को इस दुःख को सहन करने की शक्ति दे ...ॐ हरी ॐ
जवाब देंहटाएंहमारे दादाजी कहा करते थे कि सौ शादियों में जाने से अच्छा है सौ दाह संस्कार पर जाओ ।
जवाब देंहटाएंशायद इसके पीछे यही विचार रहा होगा कि मनुष्य को आभास होता रहे कि यह पड़ाव अस्थायी है ।
अपनों से बिछुड़ने का ग़म तो होता ही है । लेकिन सही सत्य है , इसे मानना भी पड़ता है ।
मैं भी इस मामले में बड़ा कमजोर हूं काश कि प्रकान्त जी जैसी समझ पा सकूं.. मैं उन बच्चों के बारे में सोच रहा हूं...
जवाब देंहटाएंदिवंगत आत्मा को शांति और परिवार को शक्ति मिले ..यही कामना है ...ऐसे समय में यही भाव सबके मन में आते हैं ..लेकिन फिर सच ही न जाने कैसे दुनियादारी में लग जाते हैं ...
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अपने दुख में मुझे भी शामिल मानें, देव...
बनारस जब भी गया... मणिकर्णिका जरूर गया... नाव में बैठे-बैठे घाट पर जलती चिताओं को देखना... वह बची लकड़ियों के लिये होती छीना झपटी... वह अघोरियों का कुछ पा जाने के लालच में चिता के इर्द गिर्द मंडराना... सब कुछ याद है... वैराग्य भाव तो आता ही है वहाँ... पर थोड़ा गौर से देखें तो पता चलता है कि दुनियादारी वहाँ भी भुलाई नहीं जाती... सत्य है कि शरीर नश्वर है और मृत्यु निश्चित पर शायद उस से भी बड़ा सत्य है कि जीवन की गति कभी भी और किसी के लिये भी नहीं रूकती...
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Meree or se shraddha suman.
जवाब देंहटाएंKuchh arse tak ek aise makan me rah chuke hain ham( Banaras me),jiske saamne se Manikarnika ghaat kaa raasta guzarta tha. Subah se shaam tak fizaon me " raam naam saty hai" kee goonj bharee rahtee thee.
कुछ चीजें हैं जो जीवन में बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती हैं..... मृत्यु भी उनमे से एक है... दिवंगत आत्मा को नमन...
जवाब देंहटाएंक्या कहा जाय इस पर. ॐ शांति के अलावा.
जवाब देंहटाएं२० साल हो गए इस स्थान को अलविदा कहे हुए. १७ साल निकले हैं इसी कशी नगरी मैं और ना जाने कितने मित्रों के पिताओं की अंतिम यात्रा मैं शरीक हो ने मणिकर्णिका घाट पे गया हूँ. मन उदास हो जाता था यह सब देख के.. संसार से मन हट जाया करता था..
जवाब देंहटाएंमशान चिंतन तो मशान चिंतन लेकिन इस घाट में एक अलग ही चेतना का अनुभव हुआ है। हरिश्चंद्र घाट भी गया हूँ लेकिन मणिकर्णिका घाट में शव की मुखाग्नि हो चुकने के पश्चात जो बगल में बैठकर भाव उत्पन्न होता है उसको शब्दों में व्यक्त करना कठिन है।
जवाब देंहटाएंशमशान घाट पर अंतिम क्रिया को देखना तकलीफदेह और वैराग्य भाव उत्पन्न करता ही है , मगर दुनियादारी जल्दी ही अपने शिकंजे में ले लेती है ....ऐसा होना भी चाहिए वरना कोई अपना जीवन जी ही नहीं पाए मरने की ही चिंता में ...
जवाब देंहटाएंजो पीछे छूट जाते हैं , उनके दुःख का तो अंदाजा ही लगाया जा सकता है , उस दुःख को कोई दूसरा उसकी तरह अनुभव नहीं कर सकता ...
ईश्वर दिवंगत की आत्मा को शांति प्रदान करें और परिवार को दुःख सहने की क्षमता ...!
Mrutyu Satyam Jagat Mithya
हटाएंमृतात्मा को शान्ति प्राप्त हो।
जवाब देंहटाएंइस सत्य को जान कर वैराग्य भले ही न जग पाये पर अन्धानुराग भी नहीं पनप सकता है।
अफ़सोस में साथ जानिये !
जवाब देंहटाएंआपको लौटकर नहाना चाहिए था !
इस जगह मैं भी करीब चार साल पहले गया था केवल भ्रमण हेतु। वहां जिस जगह पर खड़े होकर फोटो ले रहा था तो पैरों के नीचे की धरती गर्म लगी। ध्यान दिया तो पता चला कि यह भी एक शव जलाये जाने वाला घाट स्थान है। अभी कुछ घंटों पहले किसी चिता को जलाकार राख हटाई गई थी।
जवाब देंहटाएंमन में उस वक्त अजीब सा भाव आया था।
.......
जवाब देंहटाएं.......
prnam.
@अली सा,
जवाब देंहटाएंरात में लौट कर गरम पानी से नहाया
`-चक्र पुष्करिणी है .जहाँ स्नान से सीधे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो उठता है मगर विधि की विडंबना देखिये अब इसमें पानी की एक बूँद भी नहीं है .'
जवाब देंहटाएंइस कलियुग में सब पापी ठहरे तो मुक्ति का सवाल ही नहीं... तो फिर पानी काहे के लिए?
दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना!!
जवाब देंहटाएंबर्निंग घाट भी कहते हैं यह पहली बार जाना.
दिवंगत आत्मा की शांति के लिये ईश्वर से प्रार्थना करता हूं और शोकाकुल परिवार को इस दुख करने की परमात्मा शक्ति दें.
जवाब देंहटाएंश्मसान वैराज्ञ सभी को होता है, वहां से निकलने के बाद फ़िर वही राग रंग शुरू.
रामराम.
दिवंगत आत्मा को परमपिता शांति प्रदान करे और परिजनों को इस दुःख को सहन करने की शक्ति दे!
जवाब देंहटाएंदिवंगत आत्मा को परमपिता शांति प्रदान करे और परिजनों को इस दुःख को सहन करने की शक्ति देवे.
जवाब देंहटाएं... shaanti ... shaanti ... shaanti ... !!!
जवाब देंहटाएंदिवंगत आत्मा को परमपिता शांति प्रदान करे.......
जवाब देंहटाएंआपके दुख में साथ हैं। अपन तो इस श्मशान वैराग्य से कभी मुक्त हुए ही नहीं, मुक्ति चाही भी नहीं
जवाब देंहटाएंजीवन है नश्वर टिकेगा ये कब तक
सवाल इक वही है जवाब अपना अपना
दिवंगत आत्मा को परमपिता शांति प्रदान करे और परिजनों को इस दुःख को सहन करने की शक्ति दे!!
जवाब देंहटाएंदिवंगत आत्मा को ईश्वर शांति प्रदान करे ......दुःख की इस घडी में आपका मनोबल बना रहे ...यही प्रार्थना है ....
जवाब देंहटाएंउनको मेरी श्रद्धांजलि....
जवाब देंहटाएंदिवंगत आत्मा को मेरी विनम्र श्रद्धाँजली और भगवान परिजनों को इस दुःख को सहन करने की शक्ति दे!! शम्शान मे ऐसे मन विर्क्त सा हो ही जाता है।
जवाब देंहटाएंदिवंगत आत्मा को ईश्वर शांति प्रदान करे
जवाब देंहटाएंफूफा जी को श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंमणिकर्णिका का दृश्य आखों के सामने आ गया.