संस्मरण आखिर लिखे ही क्यों जायं?लिखने वाले के लिए तो मान सकते हैं यह बिना लिखे रहा न जाय किस्म की एक कशिश है मगर पढने सुनने वाले का इससे कोई भला न हो तो फिर ऐसे संस्मरण से फायदा ही क्या ? दूसरी ओर कोई संस्मरण ऐसा हो जाए कि लोग पढ़ें और उन्हें लगे की अरे इस संस्मरण में तो मेरी खुद की ही झलक है-खूबियों की और मासूम भूलों की भी तो फिर बात ही बन जाए! मतलब संस्मरणों को बयां करना एक तरह से लोगों के मन से जुड़ने की कवायद है ....इसलिए इस बार की भी दिल्ली यात्रा के कुछ क्षणों को मैं आपके मन मस्तिष्क में गिरवी रख देना चाहता हूँ ,ताकि कभी किसी मोड मुलाकात पर फिर से उसे जीवंत कर सकूँ .....अंतर्जाल और अपनी याददाश्त का तो कोई भरोसा नहीं .....मित्रों का भरोसा ही है जो अभी पूरी तरह टूटा नहीं ....अचानक ही कोई ऐसा शख्स आ मिल जाता है जो मानवता और दोस्ती में अपुन का विश्वास फिर से जगा जाता है .......दुनिया अच्छे लोगों से अभी पूरी तरह खाली नहीं हुई है ..ऐसा अनुभव शिद्दत के साथ दिल्ली में हुआ ...पर उसकी चर्चा आगे ...पहले यात्रा की कुछ बातें .....
दिल्ली में पी सी एस टी यानि पब्लिक कम्यूनिकेशन आफ साईंस एंड टेक्नोलाजी के ११वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में अपनी भागीदारी के लिए जाने के पहले सतीश सक्सेना जी को मैंने यह बता दिया था कि मैं कुछ अपनी पसंद के ब्लॉगर से जरूर मिलना चाहता हूँ और कम से कम एक चाय अपनी ओर से उन्हें पिलाना चाहता हूँ ,. यह कोई ब्लॉगर मीट की भूमिका नहीं थी ..वैसे भी महानुभावों में अब ब्लागर मीट को लेकर एक उपहासात्मक और व्यंगात्मक लहजा मुखर हो चला है ..तिस पर दिल्ली अभी अभी एक बड़े ब्लागर मीट से उबरी है और अपुन भी कोई सेलिब्रिटी थोड़े ही हैं .और .कुछ लोग आँखे तरेरे ही रहते हैं ....बकौल सोम ठाकुर के ...अपना धरम है खुशबू खुशबू ,अपनी व्यथा है मन ही मन फिर भी न जाने क्यों कुछ साथी आँख तरेरे देखे हैं ..क्या बतलाएं हमने कैसे सांझ सवेरे देखे हैं .....बस मेरी इच्छा कुछ मित्रों से मिल कर उनका कुशल क्षेम भर जान लेना था ,उन्हें आँख भर देख लेना था क्यूंकि उनकी रचनाओं से तो खूब परिचित हो ही लिया हूँ .....
बस मैंने सतीश सक्सेना जी की मदद मांग ली .....उन्ही से इसलिए कहा कि उनमें मुझे एक समन्वयक की प्रतिभा मूर्तमान दिखती रही है ..वे जब हिन्दू मुस्लिम के समन्वयन की बात इतनी सहजता से कर लेते हैं तो फिर चन्द ब्लागरों का समन्वय तो उनके बाएं हाथ क्या कनिष्ठा का ही खेल समझिये ....उन्होंने अपना कुछ संशय अंगरेजी में बोलें तो रिजर्वेशन जरूर मुझसे शेयर किये मगर यहाँ से मेरे चलने के पहले ही एक ब्लॉगर चाय पार्टी की बात पक्की हो गयी और वेन्यू टाईम वगैरह दिल्ली पहुँचने के बाद तय होने की सहमति बनी ...
अब दिल्लीवासियों की भी अपनी मुसीबतें हैं ..खुशदीप भाई ने कहा कि मेरी ड्यूटी कुछ ऐसी है कि मैं शाम को अवलेबुल नहीं हूँ ,अजय झा भाई कोर्ट के किसी सम्मन में फंसे ....किसी प्रिय ने कहा कि मुझे आपसे भीड़ में नहीं अकेले मिलना है ....डॉ दराल साहब की क्लीनिक सुबह ९ बजे से ४ बजे तक रहती है ....बस रंजना भाटिया ( रंजू ) जी ,सीमा गुप्त जी ,एम वर्मा जी ,दर्शन बवेजा जी जैसे मुझसे मिलने के लिए ही तैयार बैठे थे ....सतीश जी ने कहा कि आप आईये तो मिलने के लिए कम से कम मैं बेकरार हूँ! बहरहाल एक हसीन सी ब्लॉगर चाय पार्टी का तसव्वुर लिए मैं आई सी ४०५ की उडान में सवार हो चला .मेरे साथ ,मेरे परम मित्र किन्तु ब्लॉगर नहीं मित्र एम एल गुप्ता जी को भी सम्मलेन में मेरे ही सत्र में एक पेपर पढना था ..मगर उन्हें ब्लॉगर मीट का मतलब मैं समझा नहीं पाया ..उन्हें ब्लॉग किस चिड़िया का नाम है अब भी पता नहीं है और उन्हें समझाने का मुझे वक्त नहीं मिला बल्कि कहिये उनके पास वक्त नहीं है .. ...वे बस अपने हाथ में एक बैग लटकाए जहाज में सवार हो लिए थे ..उनका मानना था कि लगेज बुक करने पर वहां वापसी लेने में बड़ी किच किच होती है और एक बार उनका बुक किया लगेज भी मिसप्लेस हो गया था, कई दिन बाद मिला .....इसलिए वे दिल्ली केवल एक हैण्ड बैग लटका के चलने के अभ्यस्त हैं ...मैंने कहा भी कि दिल्ली में ठण्ड बढ चली है कुछ और गरम कपडे ले लीजिये तो उन्होंने कहा अगर ज्यादा ठण्ड लगी तो वहीं कुछ खरीद लेगें मगर समान बुक कर नहीं जायेगें..इधर मेरा हैंडबैग और जो स्ट्राली मैंने लगेज में बुक कराई गरम कपड़ों से ठसाठस भरे थे(सौजन्य श्रीमती जी ...) ..
दिल्ली तक की यात्रा एक घंटे २० मिनट में अच्छे स्नैक्स चाय /काफी के साथ पूरी हो गयी ..और विमान जब लैंड होने के बाद अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल तीन से आ लगा तो कामनवेल्थ के गेम के बाद की सजी सवरी दुलहन सी दिल्ली की मानो मुंह दिखाई हुई हो ....अद्भुत ,विस्मयपूर्ण दृश्य और यांत्रिकी ने हमारा मन मोह लिया .....
अभी जारी है .....
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मिश्र जी अपने ब्लौग पर एक दिन पहले इतना ही लिख देते कि 'दिल्ली आ रहा हूँ'.
जवाब देंहटाएंआपसे मिलने की बड़ी हसरत थी.
कोई बात नहीं. फिर कभी.
@..ओह निशांत जी ..सारी ....नोटेड फार फ्यूचर सर .....तब तक बनारस का एक चक्कर मार जाईये !
जवाब देंहटाएंआपसे मिलकर जाना कि अरविन्द मिश्र क्या शख्शियत है ! यादगार रहेगी यह मुलाकात !
जवाब देंहटाएंयकीनन अजय झा और खुशदीप भाई को आपके साथ साथ मुझसे भी नाराजी होगी कि मिल क्यों नहीं पाए !अब स्पष्टीकरण भाई लोगों को आप ही दें ! ...
सादर
@सतीश जी ,...स्थितियां विपरीत हो गयीं ..सब आयेगा यहाँ धीरे धीरे ....
जवाब देंहटाएंहमने भी दुल्हन सी दिल्ली देखी थी पर इतनी भी सुन्दर नहीं लगी।
जवाब देंहटाएंसंस्मरण रोचक है...पढ़कर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंदेखा ! मैंने कहा था कि कॉमनवेल्थ खेलों के बाद दिल्ली सजी-संवारी दिखाई पड़ रही है. हर बार आपको दिल्ली में अजीब-अजीब से अनुभव होते हैं, पर इस बार तो अचानक ही जाना पड़ गया यहाँ से... खैर आगे की कड़ी का इंतज़ार रहेगा :-)
जवाब देंहटाएंरोचक वर्णन ....आगे के लेखन का इंतज़ार है
जवाब देंहटाएंमुझे भी यह दुल्हन सी दिल्ली देखने का इंतजार है..... और अगली पोस्ट के लिए उत्सुकता भी....
जवाब देंहटाएंरोचक लग रहा है संस्मरण आगे आगे देखते हैं होता है क्या.
जवाब देंहटाएंकाश! हमारा नाम भी अबू बिन आदम की तरह आपकी लिस्ट में होता तो कम से कम हमारा एक बटा दो जो दिल्ली में रहता है आपके दर्शन अवश्य करता!!
जवाब देंहटाएं@ अपना धरम है खुशबू खुशबू ,अपनी व्यथा है मन ही मन फिर भी न जाने क्यों कुछ साथी आँख तरेरे देखे हैं ..क्या बतलाएं हमने कैसे सांझ सवेरे देखे हैं
जवाब देंहटाएंक्या बात है! आगे की प्रतीक्षा।
मुझे तो दिल्ली वेसी ही गंदी लगी जेसी हमेशा होती हे, चर्चा तो बहुत सुनी थी कि दिल्ली साफ़ हो गई हे, हरी भरी हो गई हे सडके वेसे ही टूटी फ़ुटी थी, चलिये अपनी अपनी नजर हे जी. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदिल्ली वाले बहुत ब्लोगर मीटिंग करते हैं..किस्मत वाले हैं, मुंबई मैं किसी को फुर्सत कहां और अगर है भी तो कैसी मीटिंग..लगता है दिल्ली आना ही पड़ेगा..
जवाब देंहटाएंभूमिका अच्छी बनी है, आगे की प्रतीक्षा है.
जवाब देंहटाएंअपना धरम है खुशबू खुशबू ,अपनी व्यथा है मन ही मन फिर भी न जाने क्यों कुछ साथी आँख तरेरे देखे हैं ..क्या बतलाएं हमने कैसे सांझ सवेरे देखे हैं ...
जवाब देंहटाएं...जानदार पंक्तियों से संस्मरण का शानदार आगाज, आगे और अधिक की आश जगाता है।
... bahut badhiyaa .......... !!!
जवाब देंहटाएंहम तो मिलने की तमन्ना लिये रह गये.
जवाब देंहटाएंहमें नहीं पता था वरना पहले ही मिल लेते.
बनारस में आपका सानिध्य मिला बहुत अच्छा लगा
आपके मित्र एम एल गुप्ता जी काफी प्रैक्टिकल और समय का सदुपयोग करने वाले लगे|
जवाब देंहटाएंमगर दिल के अरमान दिल में ही रह गये हा हा हा , (just joking) any way next time
जवाब देंहटाएंregards
@नहीं सीमा जी ,दिल के अरमा आंसुओं में बह गए .....मगर किसी के अट्ठाहास के आगे आंसुओं का क्या मोल /बिसात ?
जवाब देंहटाएंआपकी पर्सनालिटी बहुत ही डाइनामिक है... आप बहुत जल्द ही दिलों में प्यार बना लेते हैं.... मैं भी जब आपसे पहली बार मिला था....तो बहुत अच्छा लगा था.... ऐसे ही स्नेह बांटते रहिये....
जवाब देंहटाएं@महफूज भाई ,कहाँ आप और कहाँ मैं ? कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली !
जवाब देंहटाएंमगर आपकी सज्जनता है जो लोगों को मान देते हैं ,वरना यह नाचीज किस खेत की मूली है .
आप ब्लॉग- नारी ह्रदय सम्राट बन कैसी डाह ज्वाला हमारे दिलों में प्रज्वलित किये हुए हैं यह हमी से पूछिए :) (सच्ची )
अब आपके आगे डायिनिमिज्म भी पानी मांगे !
आपने तो दिल्ली संस्मरण भी लिख दिया ..इस बार लगता है मिलने का महूर्त नहीं था ..:( अगली बार सही ...
जवाब देंहटाएंbhali lagi ye mel-mulakat........
जवाब देंहटाएंbakiya.....
अपना धरम है खुशबू खुशबू ,अपनी व्यथा है मन ही मन फिर भी न जाने क्यों कुछ साथी आँख तरेरे देखे हैं ..क्या बतलाएं हमने कैसे सांझ सवेरे देखे हैं....
pranam.....
रोचक संस्मरण .. अगली कडी का इंतजार है !!
जवाब देंहटाएं`ई संस्मरण ऐसा हो जाए कि लोग पढ़ें और उन्हें लगे की अरे इस संस्मरण में तो मेरी खुद की ही झलक है'
जवाब देंहटाएंसंस्मरण के अनेक संस्करण निकलने ही चाहिए :)
हा हा हा क्या सर इस नहीं हो सकने वाले मिलन पर मैं एक पोस्ट बनाने वाला था कि उससे पहले ही आपने बना ली । अब तो मुलाकात में आपके साथ बैठ के एक मिश्रा जा आचार संहिता बना लेंगें । काहे से आजकल मुलाकातों में अचार संहिता बनाने का रिवाज सा फ़ैसन में है , ध्यान दीजीएगा ..फ़ैसन है ..अरे एक बार करिए महाराज फ़ैसनवो को थोडा सा एलीट फ़ील होने दीजीए न
जवाब देंहटाएंइस तरह की मेल मुलाकातें बढ़िया लगती हैं ... और जब भी समय मिले तो इस तरह के क्रम चलते रहना चाहिए ..दिल्ली यात्रा के संस्मरण रोचक लगे .. .. आभार
जवाब देंहटाएंमैं कुछ अपनी पसंद के ब्लॉगर से जरूर मिलना चाहता हूँ और कम से कम एक चाय अपनी ओर से उन्हें पिलाना चाहता हूँ
जवाब देंहटाएंअच्छा तो ये है असली कहानी, अपनी पसंद के ब्लागरों को ही चाय पिलाते हैं आप? और उनसे ही गुपचुपिया ब्लागर मीट करते हैं.
कोई बात नही ठाकुर, ये सांभा आपको याद रखेगा....क्या सुना? सांभा को चाय ना पिलाना बहुते भारी पडेगा ठाकुर.:)
रामराम.
आपकी नज़रों से दिल्ली देखना अच्छा लग रहा है...आगे की पोस्ट का इंतज़ार है....
जवाब देंहटाएंमैंने अपना पुराना ब्लॉग खो दिया है..
कृपया मेरे नए ब्लॉग को फोलो करें... मेरा नया बसेरा.......
अप इसे ब्लागर मीट कहने से क्यों डरते हैं ? जो कोई कुछ कहता है कहने दीजिये। मै अमेरिका मे केवल श्रीमति अजित गुपता से मिली थी मगर धदल्ले से उसे ब्लागर्ज़ मीट इन कैलिफोरनिया के नाम से दाग दिया ब्लाग पर तस्वीरों समेत। आप शायद अगली पोस्ट मे तस्वीरें दिखायेंगे। अच्छा लगता है जब अनजान लोग इतनी अत्मीयता से आपस मे मिलते हैं। आभासी रिश्तों को सच बना देते है। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंअच्छा संस्मरण लिखते हैं। प्रतीक्षा है आपके अगले कड़ी की।
जवाब देंहटाएंवाकई दिल्ली अभी काफी सजी - धजी दिख रही है.
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी , आपको दिल्ली अच्छी लगी , यह जानकर हमें तो बहुत अच्छा लगा । वर्ना लोग अभी तक गेम्स को लेकर खफ़ा हैं ।
जवाब देंहटाएंआपसे मिलने का करार पूरा नहीं हो सका , इसके लिए खेद रहेगा ।
सच मानिये , यदि आप हमारी तरफ आते तो दिल्ली को और भी खूबसूरत पाते ।
फिलहाल , दिल्ली का आँखों देखा हाल , आपसे ही सुनेंगे ।
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जवाब देंहटाएं.
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शुरूआत अच्छी है सर जी, अब आगे...
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@ मन ही मन फिर भी न जाने क्यों कुछ साथी आँख तरेरे देखे हैं ...
जवाब देंहटाएंमैं इस बीच ब्लॉगरी से जरा विरत हो चला था इसलिए संदर्भ नहीं समझ पाया। थोड़ा प्रकाश डालिए तो बात बने।
दिल्ली को आपकी निगाहों से देखने की प्रतीक्षा है। मुझे तो दिल्ली ने पिछले बहुत मजा चखाया था।
सब से पहले दिल्ली में पी सी एस टी जैसे महत्वपूर्ण आयोजन का हिस्सा बनने पर बधाई.
जवाब देंहटाएंगेम्स के बाद दिल्ली की रंगत ही निराली है.
एयर पोर्ट तो अब बहुत सुन्दर लगता है.
संस्मरण का यह भाग रोचक लगा.
रोचक संस्मरण ...
जवाब देंहटाएंआखिर लगेज मिल ही गया ...!
भाभी के सौजन्य से गर्म कपडे , ब्लागिंग से अपरिचित गुप्ता जी , समन्वयक सतीश भाई , आपकी एक कप चाय ,वगैरह वगैरह तो समझ में आया पर इस उम्र में आप ...
जवाब देंहटाएं...
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दिल्ली को दुल्हन की तरह देख रहे हैं ? समझने की कोशिश कर रहा हूं :)
@अली सा ,बच्चा और बुजुर्ग दुलहन को दुलहन के रूप में देखता है ,
जवाब देंहटाएंकहीं फर्क आपकी आपनी नजर में तो नहीं है ? :)