सात दिसम्बर की सुबह दिल्ली बहुत ठण्ड थी ...पारा ६ डिग्री नीचे तक उतर चुका था ....टीवी के जरिये .इस ठण्ड की खबर के बावजूद भी मैं ठंड नहीं रख सका और बाबत ब्लॉगर मीट के सतीश सक्सेना जी को फोन कर डाला ...उनकी वही परिचित दुःख हारण तारण उमंगपूर्ण आवाज सुनायी पडी ...वे मिलने को उत्साहित दिखे ...तय पाया गया कि सभी होटल रायल पैलेस या फिर निकटस्थ सम्मलेन के वेन्यू पर ही ९ की सुबह १० बजे इकट्ठे हो जायं ....इसके पहले मैं जिन जिन से अलग भी बात कर चुका था वे अन्यान्य कारणों से ९ के पहले उपलब्ध नहीं थे ..सतीश जी ने कहा कि वे ९ को तो आयेगें ही मगर इसके पहले भी मुझसे मिलना चाहेगें ..अगला इतने प्रेम से मिलना चाहे तो मुझे मिलने में क्या दुविधा ..जाकर जेपर सत्य सनेहू तेहिं ता मिलई न कछु संदेहू ....आज कांफ्रेंस का उदघाटन सत्र था इसलिए हम सब पूरे औपचारिक तौर पर तैयार होकर जल्दी ही सम्मलेन स्थल पर पहुँच गए ....
आम जन के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार पर यह भारत का पहला अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन था ....प्रतिभागियों में काफी उत्साह था ....५० से भी अधिक देशों के प्रतिभागी उपस्थित हुए थे ...काफी गहमा गहमी थी ..उदघाटन हमारे सर्वप्रिय पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब ने किया और युवाओं को विज्ञान संचार के मुहिम से जोड़ने का आह्वान किया ....साईंस ब्लागर्स असोशिएसन और साईब्लॉग पर इसकी रपटें पढी जा सकती है ...
विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार के इस विशाल और अन्तर्ऱाष्ट्रीय सम्मलेन को भी अपने अहम् और संकीर्ण नजरिये के चलते कुछ विज्ञान संस्थानों /परिषदों ने बायकाट कर रखा था क्योकि सबको सेन्ट्रल चेयर की दरकार थी ....जबकि इसकी वेबसाईट पर सभी शर्ते ,भागीदारी के नियम स्पष्ट रूप से इंगित थे और यह साईट निरंतर अपडेट होती रही है मगर शायद कुछ लोगों की गलतफहमी या अहमन्यता थी कि उनका हाथ पकड़कर मुख्य कुर्सी तक लाकर बिठाया जाएगा ..आयोजकों ने ऐसे संकीर्ण मानसिकता वालों को घास तक नहीं डाला और एक भव्य सफल कार्यक्रम करके दिखा दिया ...लोग ठगे भकुए से बने देख रहे हैं ..बंधुओं क्या बिना मुर्गों के बाग़ दिए सूरज नहीं निकलता है ? ....अब मुर्गों/मूर्खों को कौन बताये ?
मुझे एक समान्तर सायंकालीन सत्र विज्ञान कथाओं के जरिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार पर कोआर्डिनेट करना था ....उसके पहले सतीश जी का फोन आ गया था कि वे मुझसे मिलने ही नहीं बल्कि लेने आयगें और हमने बिना विचारे झट से हाँ कर दी थी ....अब मुझे क्या पता था कि वे ठीक उसी समय आ जायेगें जब मैं अपने सत्र संचालन के मध्य में था ....ऐसे गलत वक्त साईलेंट मोबाईल थरथराया ..अन्तःप्रेरणा से जान गया कि सतीश जी हैं ....बिल्कुल वही थे...बोले कि वे बाहर इंतज़ार कर रहे हैं ..मैं फुसफुसाया बस आधे घंटे और ...वे मौके की नजाकत समझ गए और कहा कि ठीक है आधे घंटे बाद आते हैं ....लगभग दो तिहाई विदेशी प्रतिभागियों से भरे व्याख्यान हाल में जाकिर अली रजनीश ने भी साईंस फिक्शन इन ब्लाग्स पर अपना परचा पढ़ा .....बहरहाल आधे घंटे में सत्र का समय समाप्त हो गया ....आडियेंस दूसरे लेक्चर हालों की ओर लपक उठी और मैं मुख्य द्वार की ओर ..
जैसे ही मुख्य द्वार पर पहुंचा एक कार तेजी से भीतर घुसी -अन्तःप्रज्ञा ने तुरंत सचेत किया कि सतीश जी हैं ,हाँ वही थे... उन्होंने भीतर से हाथ हिलाया और गेट पर ही कार रोककर दरवाजा खोल दिया ...और पीछे से आई कार का हार्न बज उठा ..मैंने उन्हें आगे बढ़ाकर कार रोकने का इशारा किया ,थोड़े से असमंजस के बाद उन्होंने कार बढाई और आगे जाकर रोक दी ....सतीश जी सचमुच मुझे कांफ्रेंस स्थल से बलान्नयित करने का दृढ इरादा लेकर आये थे-इस प्रेमानुराग के चलते मैंने कांफ्रेंस डिनर को मारी गोली और चल पड़े इस यारों के यार और ब्लागरों के ब्लॉगर के साथ ...जाकिर अली रजनीश साथ में थे उन्हें शैलेश भारतवासी के यहाँ जाना था जहाँ वे ठहरे थे....सतीश ने उन्हें लिफ्ट दिया और शाम के भोज का गिफ्ट भी ..
यारों के यार और ब्लागरों के ब्लॉगर
हम पहली बार मिल रहे थे मगर अपरिचय की कोई दीवार नहीं ....खूब हंसी ठट्ठा हुआ ,ब्लागजगत के नामी गिरामियों की चर्चा हुई ....और उन्होंने एक जोरदार दावत मोतीमहल में दी ...उन्होंने मुझसे कुछ गोपन सवाल जवाब किये और मैंने उनका खुला जवाब दिया ..मेरे पास गोपन कुछ नहीं है ....कोई दुश्मन है या दोस्त एलानियाँ कहता हूँ जबकि कुछ नीति विशेषज्ञों का मानना है कि जीवन में गोपनीयता का अपना महत्व है और कभी कभार यह बेहद जरुरी है (जुलियन असान्जे ,सुन रहे हो न बास ) ....सतीश जी ..अरे अरे अभी ही सब कह दूंगा तो उनके बारे में अपने चिट्ठाकार स्तम्भ में फिर क्या कहूँगा ...यारो के यार ने मुझे होटल पर रात्रि के दस बजे के आस पास छोड़ा और जाकिर को छोड़ने आगे बढ गए ....होटल में पहुंचते ही बनारस के शीतला घाट पर हुए हादसे की खबर सुन कर सन्न रह गया ...अब ब्लॉगर मीट का क्या होगा? मुझे तो वापस भागना होगा ....परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी हो गयीं थीं ....
जारी है ....
दिल्ली संस्मरण की पूर्व कड़ियाँ -
महौल बना हुआ है। हम भी हैं, मिलने को उतावले।
जवाब देंहटाएंपिछले कुछ समय से ब्लोगर मिलन जोरों पर है..अच्छा लगा वृतांत.
जवाब देंहटाएंअच्छा वृतांत ..... आभासी जान पहचान से हकीकत के मिलने तक.....
जवाब देंहटाएंसक्सेन जी से मुलाकात हुई, अच्छा लगा। ब्लॉगर मिलन के कुछ चित्र भी लगाइये।
जवाब देंहटाएंविज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार के सम्मेलन पर बिन मुर्गों के सुबह हुई :)
जवाब देंहटाएंसतीश जी संग गोपनीयता वाले मामले पर कुछ नहीं कहेंगे पर जो ओपनीय था कम से कम उसे तो कहिये!
अब ब्लॉगर मीट का क्या होगा? मुझे तो वापस भागना होगा .
जवाब देंहटाएंहा हा हा अच्छा हुआ या बुरा पता नहीं......
regards
yeh....majedar...apni khushi bante hou ..... ishwar aise hi achhe logan
जवाब देंहटाएंek saath milabe......
pranam.
चलिए किसी से तो मुलाकात हो गयी आपकी :)
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा जानकार.
जवाब देंहटाएंकाश सरकारें समझ पातीं कि विज्ञान की ज़रूरत गांवों में कहीं ज़्यादा है इसलिए महानगरों में गाल बजाने के बजाय गांवों में स्थाई व्यवस्थाएं कर पातीं...
हसीन गोपन, गोया 'साफ छुपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं'
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जवाब देंहटाएंअरे रे रे भाई जी,
इतना सम्मान रखने लायक, जगह भी नहीं है मेरे पास , जहाँ तक आपके साथ खाना खाने की बात है तो शुरुआत से ही आपकी शख्शियत के मुरीद बन चुके, आपके इस दोस्त ने सिर्फ वह इज्ज़त देने का प्रयत्न ही किया था जिसके आप सर्वथा योग्य हैं !
मित्रता और मुहब्बत एक अजीब रंग है जो किस पर चढ़ जाए यह कोई नहीं जानता ! समान गुण स्वभाव के लोगों में परस्पर खिचाव स्वाभाविक ही है , सो ब्लॉग जगत में शुरुआत से ही जिन लोगों से आकर्षित रहा उनमें अनूप शुक्ल, अरविन्द मिश्र और समीर लाल प्रमुख रहे ...
इन लोगों के लेख कहीं न कहीं प्रभावित करते रहते थे और हम मुरीदों में शामिल होते चले गए समीर लाल और आपको तो मैं मजबूर कर चुका हूँ कि मेरे दोस्त बन पायें मगर महा गुरु अभी हाथ नहीं आ पाए हैं !
ब्लॉग जगत में एक से एक बड़े विद्वान् लिख रहे है जहाँ मेरे जैसे जैसे लोग पासंग भी नहीं है...अगर इन लेखों के कारण इन विद्वानों से कुछ सीख सकूं अथवा इनका सामीप्य नसीब हो सके तो यह ब्लाग लेखन धन्य हो जाए अरविन्द भाई !
मगर बिना किसी कारण यह लोग एक साथ कम ही जुड़ते हैं यही अफ़सोस जनक बात है ! अगर आप साथ दें तो शायद कुछ भला हो जाए !
सादर
जवाब देंहटाएंस्मार्ट इंडियन की सलाह आसानी से मत मान जाना ...भाई बहिने वैसे ही जीने नहीं देते यहाँ ....
सावधान ;-))
अरे वाह, क्या इसे टेलीपैथी कहेंगे। आज ही मैंने भी इस विषय पर पोस्ट लिखी है
जवाब देंहटाएंदिल्ली के दिलवाले ब्लॉगर। वाकई सतीश जी से मिलकर मजा आ गया। इस मुलाकात को करवाने के लिए आपका शुक्रिया।
खूब मुलाकातें..कभी हम भी तो मिलेंगें.
जवाब देंहटाएं________________
'पाखी की दुनिया; में पाखी-पाखी...बटरफ्लाई !!
अच्छा और रोचक प्रसंग।
जवाब देंहटाएंइसी तरह दोस्तों और दोस्ती में वृद्धि होती रहे...शुभकामनाएं।
मित्रों से तो मेल मिलाप होते ही रहना चाहिए....
जवाब देंहटाएंहम पहली बार मिल रहे थे मगर अपरिचय की कोई दीवार नहीं ....खूब हंसी ठट्ठा हुआ ,ब्लागजगत के नामी गिरामियों की चर्चा हुई ....
जवाब देंहटाएंआश्चर्य होता है इस बात पर .. लेकिन मैने खुद कई बार महसूस किया है .. रोहतक की ब्लॉगर मीट में सतीश सक्सेना जी से मिलने का सौभाग्य मुझे भी मिला .. जिनको आप पढते आए हैं .. उनसे मिलना एक सुखद अहसास देता है !!
हमने भी सतीशजी का नंबर नोट कर रखा है. दिल्ली में एक मुफ्त डिनर तो पक्का हो गया है :)
जवाब देंहटाएंयह आभासी संसार जब अपने सदस्यों को साक्षात् मिलने मिलाने का मौका देता है तो वातावरण निश्चित रूप से भावुकता प्रधान हो जाता है। यह अंतर्जाल का तंतु बहुत मजबूत जोड़ बना रहा है - फ़ेवीकोल की माफ़िक :)
जवाब देंहटाएंसतीश जी से रोहतक मे मिले बहुत अच्छा लगा था उनका अत्मीय व्यवहार किसी को भीपना बना लेने के लिये काफी है। आगले वृताँत की प्रतीक्षा। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसतीश भाई की गरमजोशी से दिल्ली की ठंड में कमी आई... बधाई हो :)
जवाब देंहटाएं@ डॉ अरविन्द मिश्र ,
जवाब देंहटाएंरंजना जी की बात पर ध्यान दीजियेगा ...लगता है मुझसे भी नाराज हैं :-)
@ संगीता पुरी ,
उस मीटिंग में आपसे और निर्मला जी से मिलना एक सुखद आश्चर्य ही था मेरे लिए !
@ अभिषेक ओझा ,
आओ तो सही ...मुफ्त का और पैसे का मिलकर फायदा नुक्सान देखकर तय कर लेंगे :-)
जवाब देंहटाएं@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ,
यकीनन भाई जी , सामान विचारों से पूर्वपरिचित होने के कारण यह पहली भेंट लगती ही नहीं ! लगता है परिवार बढ़ गया हो !
@ निर्मला कपिला ,
आत्मीयता की परिभाषा तो आपमें दिखी मुझे ...आपको प्रणाम !
@ सीएम् प्रसाद,
धन्यवाद भाई जी ...
रोचक वर्णन.
जवाब देंहटाएंअच्छा वृतांत है..मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
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