दुलहन सी दिखी दिल्ली -एक और दिल्ली संस्मरण!-1
ऐसा लगा हम चंद्रलोक पर आ पहुंचे हों-इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट नई दिल्ली टर्मिनल तीन का नजारा-2
और अब आगे ....
दिल्ली की पहली शाम हवाई अड्डे से रैन बसेरे तक की भीड़ भरी ट्रैफिक के भेंट चढ़ गयी .. किसी मित्र ने सही कहा था कि दिल्ली में आधी उम्र तो सड़कों की लम्बाई नापने में निकल जाती है ....आयोजन स्थल -राष्ट्रीय कृषि विज्ञान संचार परिसर टोडापुर तक पहुँचते पहुँचते रात हो आई ,ठंडक भी काफी हो आई थी -अगले दिन सुबह पता लगा कि दिल्ली की ठंड ने ६ दिसम्बर की रात को एक दशक के रिकार्ड को भी धराशायी कर दिया था . पारा ६ डिग्री तक आ गिरा था -पिछली रात तो नहीं अब यह सुनकर कंपकपी छूट गयी ..शायद यह बीती रात के स्वागत भोज और आयोजन स्थल की भव्यता और इंतजामों का कमाल था कि कंपकपी को भी शायद हमारे निकट आने में कंपकपी छूट गयी हो ....
काशी की ही डॉ .विधि नागर और उनके समूह की नृत्य नाटिका 'कृष्ण रास ' की रंगारंग प्रस्तुति और स्वागत भोज के अंतर्राष्ट्रीय संस्पर्श ने माहौल में गर्माहट घोल दी थी ..चहुँ ओर दूधिया रोशनी और जगह जगह दहकते अलावों की व्यवस्था ने परिवेश को गुलाबी बना दिया था -हर दृष्टि से सचमुच यह एक वार्म बल्कि वार्मेस्ट वेलकम /रिसेप्शन था ....अलग अलग समूहो ,देशी विदेशी वैज्ञानिको के परस्पर मिलते जुलते ग्रुपों के हाय हेलो ,तरह तरह के उष्म पेयों ने वातावरण को रूमानी बनाने में कोई कोर कसर न छोडी थी ....मेरे साथ मित्र गुप्त जी के पहले अन्तराष्ट्रीय सम्मलेन के संकोच सकुचाहट को रेड वाईन ने काफी हद तक दूर कर दिया था ..अन्य मित्रों के उद्दीप्त और प्रफुल्लित चेहरों से विदेशी ब्रांडों की उत्कृष्टता झलक पड़ रही थी ......भोज बहुत भव्य और भोजन सुस्वादु था ..देशज और अंतरद्वीपीय छप्पनों व्यंजन किंवा अधिक ही मे से मन पसंद का ढूंढना किसी टेढ़ी खीर से कम न था ....मेरा पेट तो स्टार्टरों /एपिटायिजर को चखने में ही भर गया था ..सुब्रमन्यन .साहब सही कहते हैं मैं एक खाऊ इंसान हूँ ...अब पालक पनीर आदि अनादि तो रोज ही खाते हैं ...इसलिए मैंने अपने मन पसंद का एक अंतरद्वीपीय व्यंजन ढूंढ ही निकाला -वेज आगरटिन /बेकड वेजिटेबल ...जिसके लिए मेरा पेट पुष्पक विमान सा व्यवहार कर हमेशा थोड़ी अतिरिक्त जगह दे ही देता है ....तदनंतर आईसक्रीम ..जी हाँ ठण्ड में आईसक्रीम का आनंद कुछ और ही होता है ...जिस मित्र ने मुझे यह राज कोई एक दशक पहले बताया था सहसा सामने आकर मुझे आईसक्रीम खाते देख ढेढ़ इंच मुस्कान बिखेरते कहीं खो गए ...आखिर पांच सौ से भी अधिक भीड़ में कौन किसके साथ कब तक टिके ..जब नए नए साथी इधर से उधर गुजरते दिख रहे हों ..आखिर बेहद अधीरता के आगोश में आती हुई इस दुनिया में कौन कब तक किसी का इंतज़ार करे ...
इन कुर्सियों को अभी भी शायद किसी का इन्तजार है
बहुत कुछ रंगीन होते हुए भी मेरा मन विरक्त सा ही बना रहा .... उम्र के लम्बे अनुभव मनुष्य को निश्चय ही उदासीन या फिर यथार्थ के धरातल पर ला देते हों .....मेरे मित्र गुप्ता जी बहुत खराब अंगरेजी के बावजूद पता नहीं एक विदेशी वैज्ञानिक बाला को न जाने भारतीय संस्कृति का कौन सा सबक देते दिख रहे थे ...शायद रेड़ वाईन या व्हिस्की का कोई कमाल का ब्रांड अपना कमाल दिखाने को उद्यत हो उठा हो ...मैं थोडा सशंकित हो उठा और उन्हें हठात अपनी ओर उन्मुख किया और एक दूसरे कोने की ओर ले चला .संस्कृतियों की विभिन्नता कभी कभी परिचय का एक ऐसा क्षद्म्मावरण तैयार कर देती है कि भोले भाले लोग धोखा खा जाते हैं ...और मेरे यह मित्र तो बड़े ही सरल ह्रदय के हैं ....सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी के एक वर्तमान वर्धा प्रवास के मित्र और मेरे पुराने मित्र अनिल अंकित राय मेरे खाने के आईटमों पर नजर रखे थे और उन्हें चिढाने के लिए मैं बार बार सीक कबाब .मछली टिक्का आदि आदि नान वेज लेने का उपक्रमं सा कर रहा था और वे किसी वेज आईटम के लिए व्यग्र दिखते थे....मैं बार बार उन्हें ताकीद करता बंधुवर कहाँ अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में शाकाहारी ढूंढ रहे हो ....
मेरा पसंदीदा कांटिनेंटल आईटम -बेकड वेजिटेबल
मेरे अनुज डॉ मनोज मिश्र अपने मा पलायनम उद्घोष के बावजूद भी बार बार मेरे पास से पलायन कर रहे थे....उन्हें मेरे खाने पीने का ख्याल रखना चाहिए था ,मगर शायद वे अपने प्रोफेसनल कैरियर के प्रति ज्यादा चैतन्य दिख रहे थे....लेकिन अगले दिन मेरे साथ संयुक्त पेपर के प्रेजेंटेशन के समय होटल में जा सोये और मुझे उनका पेपर पढना पड़ा ..जबकि मेरा स्पष्ट आदेश था कि पेपर वही पढ़ेगें और सवाल आदि उठेगा तो मैं झेल लूँगा ....
मुझे अब ठंडक का अहसास होने लगा था .रात के ग्यारह बज चुके थे ..नाक अन्दर से गीली गीली लग रही थी ....इसके पहले कि आयोजक जन विदेशी प्रतिभागियों को उनके प्रवासी ठिकानो पर ले जाने में व्यस्त हो जायं मैंने आयोजन के एक मजबूत स्तम्भ और एक बहुत ही नेक इंसान जिन्हें मनोज ने ग्रासरूट इंसान की संज्ञा से नवाजा ,संतराम दीक्षित जी को पकड़ा और जब उन्हें यह कहा कि हुजूर एक आप ही तो हैं इस भीड़ में जिसके रहमो करम पर हम जिन्दा हैं नहीं तो लंका निश्चर निकट निवासा इहाँ कहाँ सज्जन का वासा तो वे पुलकित हो उठे और तुरंत हमारे ठहरने के स्थल रायल पैलेस होटल ,पुराना राजेंद्रनगर तक एक टैक्सी का इंतजाम कर दिए ...मनोज मैं और गुप्ता जी रैन बसेरे की ओर चल पड़े ...इस तरह दिल्ली की यह पहली निशा बीत चली थी और मुझे अनायास ही भरत के प्रयाग प्रवास का वह मानस पद बार बार याद आ रहा था ...
सम्पति चकई भरत चक मुनि आयस खेलवार
तेहिं निसि आश्रम पिजरां राखे भा भिनुसार
दिल्ली की एक नई सुबह हमारी प्रतीक्षा कर रही थी ....
अभी जारी है ...
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क्या सर, icar पूसा तक आये - और हमसे नहीं मिले ....... गलत बात....... साहेब.. बन्दा वहीं कहीं नज़दीक ही है.
जवाब देंहटाएंखुदे आ जाते आपसे मिलने
जय राम जी की
जहां आज यह भवन बना है कभी वहां पूसा के खेत हुआ करते थे जिनमें ग्लाइडर से फ़सलों पर दवाई छिड़की जाती थी.
जवाब देंहटाएंhmm....बढ़िया विवरण है।
जवाब देंहटाएंवैसे इस तरह के आयोजनों में जाने पर यही मुश्किल सबसे ज्यादा होती है कि काश कोई परिचित नजर आ जाय :)
@सतीश जी ,या कोई परिचित नजर न आ जाए !
जवाब देंहटाएंdepends कि हमारा इरादा क्या है.
जवाब देंहटाएंयदि चाहेंगे कि कोई ऐसी वैसी डिश का आनंद लें जिसे कि अब तक नहीं चखा हो, साथ ही कुछ असमंजस में भी हों कि इसे कैसे खाना चाहिए, छूरी चम्मच से या हाथ से तब शायद यह इच्छा होती है कि कोई परिचित न दिखे तो ही अच्छा है, वरना हमारा बेढंगे से खाना कहीं मित्रों की महफिल में हंसी का विषय न बन जाय :)
अंत में जब अभी जारी है पढ़ा तो लगा आप कहना चाहते हैं..अभी तो ये झांकी है आगे और बांकी है!
जवाब देंहटाएंइरादा तो नेक है?
ई टेम्पलेट को तनिक ठीक तो करिये .....हनुमान जी की पूछ की तरह लंबा हुआ जा रहा ?
जवाब देंहटाएंसंतराम दीक्षित को हमारा धन्यवाद |
....नहीं तो आगे की कथा कैसे मिलेगी ?
.आखिर बेहद अधीरता के आगोश में आती हुई इस दुनिया में कौन कब तक किसी का इंतज़ार करे ...
जवाब देंहटाएंजीवंत वर्णन चल रहा है ...रोचक ...
बहुत सुंदर विवरण दिया,वो आप का मनपसंद खाना सच मै बहुत टेस्टी हे जी, कभी यहां आये तो आप कॊ खुब खिलायेगे, वो भी घर का बना हुआ, ओर शुद्ध शाका हारी. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंझांक रहे हैं आंख खोले सतर्कता
जवाब देंहटाएंसे
आपने तो हमारी प्यारी दिल्ली की
कहानी बतलाई है
अविनाश मूर्ख है
@दीपक बाबा जी ,अगली बार सर
जवाब देंहटाएंव्यंजनों की चर्चा मुख्य विषय से भटका देती है और चित्र तो चर्चा से भी भटका देते हैं।
जवाब देंहटाएंस्वागत भोज का विस्तृत वर्णन बेहद ही रोचक लगा......किस्मत अपनी अपनी ...यहाँ तो एक कप चाय का ही सवाल था....(next time).हा हा हा हा हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंregards
खाने का ब्यौरा खूब बन पड़ा..... बेक्ड वेजी ......बड़ी हैल्दी पसंद है....
जवाब देंहटाएंoh...muh me pani a gaya so bol nahi pa rahe ...... jari rakhiye .....hum bhi jame hue hain.....
जवाब देंहटाएंpranam.
हम्म ! ऊष्मा-पेय नहीं 'ऊष्म पेय' ठीक रहेगा. आपके उपमा और रूपकों का तो कहना ही क्या? पेट की उपमा पुष्पक विमान से खूब दी है आपने. मुझे तो वर्णन से कहीं अधिक आपकी भाषा-शैली रुचिकर लगी.
जवाब देंहटाएंये छोटे भाई लोग अक्सर चकमा दे जाते हैं. बाद में हिसाब निपटाना चाहिए था ना :-)
और ये प्रफुल्लित तो ठीक है 'उद्दीप्त' का तात्पर्य है? स्पष्ट किया जाए.:-)
@ अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंनोट किया जाय 'सुब्रह्मण्यम साहब' ने कभी नहीं कहा कि आप खाऊ इंसान हैं बल्कि ये बात 'सुब्रमनियन साहब' ने कही थी :)
संस्मरणों की चमक / दमक / रौनक से तो यही लगता है कि आप 'देस' में नहीं हैं :)
bhai arvind ji पूसा तक आये - और bloggers meet nahi huye ....... गलत बात....... साहेब.. वहीं कहीं नज़दीक ही है.
जवाब देंहटाएंham bhee deepak baba ke aas pass hi hai.
बहुत बढ़िया रहा यह खाना पीना बढ़िया :)
जवाब देंहटाएं@मुक्ति ,
जवाब देंहटाएंकर दिया ऊष्म पेय ,बाऊ नहीं आये -अच्छा ही हुआ आपने करेक्ट करा दिया
यहाँ विदेशी और देशी प्रतिभागियों के चेहरे उद्दीप्त लग रहे थे रेड वाईन आदि ऊष्म पेयों के के कारण
या कोई और मतलब हुआ उद्दीप्त का ....मैं व्याकरण अनाडी, नहीं जानता मदद कर दीजिये न प्लीज!
@प्रवीण जी फिर देखिये हनुमान की पूंछ !
जवाब देंहटाएं@पूर्विया भाई ,अगली बार .....
@अली सा ,ठीक कर दिया ...
@प्रवीण पांडेय जी,
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट भोज्य पदार्थों से गुजरकर उनकी चर्चा किए बिना कैसे रह सकते हैं बनारस निवासी पंडित जी। अनिल कुमार राय ‘अंकित’ से मिल कर पूछता हूँ कि इस रिपोर्ट में क्या-क्या छुपाया गया है :)
रोचक चर्चा है, जारी ही रहनी चाहिए।
बेहतरीन रिपोर्ट, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत मजेदार वर्णन. बहुत अच्छा लगा.आपकी ब्लॉग लेखन के प्रति गम्भीरता और समर्पण अनुकरणीय है.
जवाब देंहटाएंवेज आगरटिन /बेकड वेजिटेबल तो लाजवाब ही रहा होगा.
जवाब देंहटाएंkis programme me gaye the?
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